3. गद्य साहित्य का मित्िपूणण अंग
िै।
19िी. एिं 20िी. िताब्दी में
गद्य साहित्य प्रगततिील
िुआ।
गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ
िैं- कथा साहित्य, नाटक, जीिन
4. गद्य शिक्षण के सामान्य उद्देश्य
oछात्रों के िब्द एिं सूक्तत भण्डाि में
िृद्धध किना।
oछात्रों के िब्दोच्चािण को िुद्ध
किना।
oिाचन एिं पठन कला में तनपुण
बनाना।
5. oशलवप का ज्ञान देना।
oमौन िाचन की कला में तनपुण
बनाना।
oतथ्यों को समझने तथा उन्िें जीिन में
प्रयुतत किने की क्षमता का विकास
किना।
oभािाशभव्यक्तत की क्षमता का विकास
6. oअध्ययन के प्रतत प्रेिणा देना तथा
उसका आनंद प्राप्त किने की क्षमता
उत्पन्न किना।
oगद्य की विशभन्न िैशलयों का ज्ञान
प्रदान किना।
oछात्रों की िचनात्मक एिं
सृजनात्मक िक्तत का विकास
7. oभाषा एिं भािों का माधुयण ग्रिण
किना।
oछात्रों को भाषण कला का ज्ञान किा
कि इस कला में तनपुण किना।
oछात्रों की कल्पना िक्तत का
विकास किना।
8. oमुिाििों तथा किाितों का ज्ञान प्रदान
किना।
oछात्रों में तनिीक्षण, वििेचना एिं
आलोचना की िक्तत पैदा किना।
oछात्रों को विविध विषयों का
ज्ञान किाना।
oउनके व्यक्ततत्ि का विकास किना।
9. oउनमें साहित्य के प्रतत प्रेम उत्पन्न किना।
oमानशसक, तार्कण क एिं बौद्धधक िक्ततयों
का विकास किना।
oगद्य शिक्षण का विशिष्ट उद्देश्य– गद्य
की विविध विधाओं का विविध उद्देश्य िोता
िै।
किानी शिक्षण का, नाटक शिक्षण का िचना
शिक्षण का, िाचन शिक्षण का अपना- अपना
विशिष्ट उद्देश्य िैं।
10. गद्य शिक्षण की प्रर्िया (सोपान)
सामान्यतया िाििटण के पंचपदी का
प्रयोग र्कया जाता िै। जो तनम्न िैं-
प्रस्तािना
विषय प्रिेि या प्रस्तुतीकिण
आत्मीकिण या तुलना
शसद्धांत- स्थापना या तनयमीकिण
प्रयोग या व्यििारिक जीिन से संबध
स्थापन।
11. प्रस्तावना
प्रस्तावना का मूल उद्देश्य है, छात्रों
में ववषय के प्रतत रूचि उत्पन्न करना,
पढ़ने के ललए उत्साहहत तथा प्रेररत
करना। प्रस्तावना में प्रश्नों का क्रलमक
श्रृंखला का उपयोग करते हैं। इसमें
चित्रों, कथानकों आहद का भी सहायता
ली जा सकती है। यह अनेक प्रकार से
सृंपाहदत की
जा सकती है-
12. •पूववकथन के द्वारा
•प्रश्नोत्तर प्रणाली द्वारा
•लिक्षोपकरणों द्वारा
इस स्थल पर 3 से 5 लमनट तक का
समय व्यततत करना िाहहए। अृंततम
प्रश्न पाठ के उद्देश्य कथन से ज़ुडा होना
िाहहए। उद्देश्य कथन स्पष्ट, सृंक्षक्षप्त
और रोिक होना िाहहए। इस स्थल पर
छात्रों को पाठ का िीषवक एवृं परष्ठा
सृंख्या बता देना िाहहए।
13. विषय प्रिेि
पाठ को एक साथ पढाना साथवक
नहीृं है। पाठ को इकाईयों या अृंवततयों
में ववभाजजत करना िाहहए और एक-
एक अृंववतत को छात्रों के सम्म़ुख
श्रृंखलाबद्ध रूप से क्रमि: उपजस्थत
करना िाहहए।
वािन-
वािन क्रक्रया में पयावप्त सावधानी
14. क्रक्रया के तीन सोपान हैं-
आदिव वािन- यह वािन स्वयृं
लिक्षक करता है। उचित हाव- भाव,
आरोह- अवरोह के साथ उच्िारण का
ध्यान रखते ह़ुए आदिव वािन प्रस्त़ुत
करना िाहहए।
अऩुकरण वािन- छात्रों द्वारा क्रकये
जानेवाले वािन को अऩुकरण वािन
कहते है। इस श्धान पर उच्िारण तथा
15. मौन वािन- आदिव वािन के सफल
सृंपादन के उपराृंत छात्रों को मौन वािन
का अवसर प्रदान करना िाहहए।
व्यख्या-
वािन के उपराृंत िब्दों, वाक्यािों,
वाक्यों आहद की व्यख्या की जाती है।
इस स्थल पर सूक्ष्माततसूक्ष्म अध्ययन
की जाती है। इसका प्रम़ुख उद्देश्य है,
पाठ को बालक भली प्रकार से समझ
16. िब्दाथों के ललए तनम्न ववचधयँ प्रय़ुक्त
की जानी िाहहए,
•दृश्य सामग्री का प्रदिवन द्वारा
•अृंग सृंिालन द्वारा
•वाक्य प्रयोग द्वारा
•पयावयवािी िब्दों द्वारा
•ववलोम िब्दों द्वारा
व्यख्या के स्पष्टीकरण के ललए तीन ववचधयाँ भी
हैं,
उद्बोधन ववचध-
इसमें अध्यापक कहठन िब्दों का अथव स्वयृं
17. करता है। जैसे- सहायक सामग्री, प्रत्यक्ष
प्रदिवन, श्यामपट्ट, चित्र, अृंग सृंिालन।
स्पष्टीकरण ववचध-
उद्बोधन से स्पष्ट न हो तो इस ववचध
अपनाया जा सकती है। जैसे, व्य़ुत्पवत्त
द्वारा, प्रत्यय द्वारा, उपसगव द्वारा, त़ुलना
द्वारा।
प्रविन ववचध-
पयावयवािी िब्दों, पररभाषा आहद
की सहायता से िब्दों की व्यख्या की जाती
है।
18. वविार ववश्लेषण-
वािन एवृं व्यख्या के बाद वविार
ववश्लेषण का स्थान आता है। वािन एवृं
व्यख्या से छात्रों के भाषा ज्ञान में वरद्चध
होती है, परृंत़ु वविार ग्रहण करने की क्षमता
वविार ववश्लेषण की माध्यम से ववकलसत
होती है।
गद्य तथा साहहत्य के अन्य ववधाओृं
के लिक्षण से छात्रों को हहन्दी
भाषा से अचधक पररिय पाने की
अवसर लमलता है।