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राजनीतिक सिद्धांत का पतन
[Decline of Political Theory]
द्वारा- डॉ. ममता उपाध्याय
प्रोफ
े सर, राजनीति विज्ञान
क
े .एम.जी. जी.पी.जी.सी, बादलपुर, गौतम बुध नगर
उद्देश्य-
● राजनीतिक सिद्धांत संबंधी विषय का बोध
● राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन संबंधी वाद- विवाद की जानकारी
● सामयिक संदर्भ में राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन संबंधी चर्चा की प्रासंगिकता क
े मूल्यांकन की
क्षमता का विकास
● सार्वजनिक विषयों क
े संबंध में चिंतन एवं वाद-विवाद की क्षमता का विकास
किसी भी विषय को स्वतंत्र अनुशासन क
े रूप में विकसित करने में सिद्धांतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती
है। सिद्धांत वे सामान्यीकरण हैं , जिनक
े आधार पर किसी विषय की व्याख्या की जाती है। शाब्दिक
दृष्टि से सिद्धांत शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘ थ्योरिया’ से हुई है , जिसका अर्थ है- ‘ समझने की
दृष्टि’। अर्थात सिद्धांत क
े माध्यम से किसी विषय को समझना हमारे लिए आसान हो जाता है। कार्ल
पॉपर ने सिद्धांत को एक प्रकार का जाल बताया है, जिससे संसार को पकड़ा जाता है ताकि उसे समझा
जा सक
े । राजनीतिक सिद्धांत का तात्पर्य राजनीति और राजनीति से जुड़े विविध पक्षों और घटनाओं का
विवेचन करने वाली अवधारणाओं से है। जैसे- राज्य ,संप्रभुता, कानून, अधिकार, स्वतंत्रता, समानता,
लोकतंत्र आदि।
सामान्यतः राजनीतिक सिद्धांत दो रूपों में वर्गीकृ त किए जाते हैं-
1. परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत
2. आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत
परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत को शास्त्रीय अथवा आदर्श आत्मक राजनीतिक सिद्धांत भी कहा जाता
है। इस प्रकार क
े सिद्धांत कल्पना पर आधारित होते हैं और सिद्धांतकार क
े व्यक्तिगत दृष्टिकोण एवं
व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं। ऐसे सिद्धांत की जड़ें इतिहास तथा दर्शन में होती है तथा इनक
े अंतर्गत
मौजूदा राजनीतिक जीवन की समस्याओं का संभावित समाधान प्रस्तुत किया जाता है ताकि मूल्य
आधारित एक आदर्शात्मक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की जा सक
े । प्लेटो, कांट, हीगल ,
एक्विनास, हॉब्स , लॉक ,रूसो आदि विचारक परंपरावादी राजनीतिक विचारको की श्रेणी में आते हैं।
परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत को रॉबर्ट डहल ने इंद्रिय जनित अनुभव से परे माना है । संक्षेप में,
परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक दर्शन का पर्यायवाची है जो अपनी प्रकृ ति से वर्णनात्मक
,ऐतिहासिक, संस्थात्मक एवं वैधानिक है।
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत द्वितीय विश्व युद्ध क
े बाद अमेरिका क
े
शिकागो स्क
ू ल क
े विद्वानों क
े प्रयासों से अस्तित्व में आया। व्यवहारवादी आंदोलन एवं अंतः
अनुशासनात्मक दृष्टिकोण क
े कारण आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का उदय हुआ जो पारंपरिक
राजनीतिक सिद्धांत से इस अर्थ में भिन्न है कि इसका उद्देश्य इस विषय को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान
करना है और इस हेतु यह मूल्यों व आदर्शों क
े बजाय तथ्यों पर आधारित व्यावहारिक अनुभवों पर जोर
देता है और यह मानता है कि राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन किए बिना वैज्ञानिक सिद्धांतों का
निर्माण संभव नहीं है। राजनीति का संबंध क
े वल राजनीतिक घटनाओं एवं व्यवस्था क
े मूल्यांकन मात्र
से नहीं है, बल्कि इस तथ्य से है कि राजनीतिक व्यवस्था से संबद्ध शासकों एवं नागरिकों का
वास्तविक व्यवहार क
ै सा है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत निरीक्षण, परीक्षण ,प्रयोग और वर्गीकरण
पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति क
े प्रयोग पर आधारित है। पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत से इस अर्थ में
भी अलग है कि यह घटनाओं एवं व्यवहारों का ज्यों का त्यों अर्थात वस्तुनिष्ठ अध्ययन करता है,
जबकि पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत, सिद्धांत कार की कल्पना की उपज होने क
े कारण व्यक्तिनिष्ठ
होता है। अतः यह कहा जा सकता है कि आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत राजनीति जैसे विषय को
विज्ञान बनाने, राजनीतिक व्यवहार को समझने एवं इस दिशा में शोध एवं तथ्य संग्रह को दिशा देने में
सहायक है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतकारों को दिशा दिखाने का कार्य फ्रांस क
े सिद्धांत शास्त्री
अगस्त काम्टे क
े द्वारा किया गया। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत कारों में चार्ल्स मेरियम, डेविड
ईस्टन, आप्टर , आमंड, डहल एवं लॉसवेल, डायस, अर्नाल्ड ब्रेचेट , मिहान, क
ै प्लैन आदि प्रमुख है।
राजनीतिक सिद्धांत का पतन- डेविड ईस्टन का तर्क -
बीसवीं शताब्दी क
े उत्तरार्ध में राज वैज्ञानिकों क
े मध्य यह एक वाद विवाद का विषय बना कि क्या
पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत पतन की ओर उन्मुख है? अल्फ्र
े ड कोबा एवं डेविड ईस्टन जैसे
समकालीन राज वैज्ञानिकों का मत है कि जिस राजनीतिक सिद्धांत का संबंध राजनीतिक दर्शन अर्थात
आदर्शों और मूल्यों से है, उसकी परंपरा का तेजी से ह्रास हो रहा है। पीटर लासलेट तथा रॉबर्ट दहल
जैसे सिद्धांतकार तो पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क
े निधन की घोषणा करते हैं। ईस्टन जैसे
विचारक निम्नांकित कारणों क
े आधार पर राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन को दर्शाते हैं-
1. सामाजिक राजनीतिक उथल-पुथल क
े बावजूद राजनीतिक दार्शनिकों की परंपरा का समाप्त
होना-
किसी भी राजनीतिक सिद्धांत को जन्म देने में समसामयिक सामाजिक- राजनीतिक उथल-पुथल का
विशेष योगदान होता है। प्राचीन यूनान की उथल-पुथल में प्लेटो और अरस्तू जैसे, मध्य युग क
े धार्मिक
संघर्ष में संत अगस्टाइन और एक्वीनस जैसे विचारकों को जन्म दिया, वही आधुनिक युग में ब्रिटिश
एवं फ्रांसीसी क्रांति की परिस्थितियों ने हॉब्स , लॉक, रूसो जैसे महान दार्शनिकों को जन्म दिया।
औद्योगिक क्रांति एवं पूंजीवाद की व्यवस्थाओं ने समाजवादी विचारको कार्ल मार्क्स एवं लास्की को
जन्म दिया। डेविड ईस्टन का तर्क है की 20 वी शताब्दी में भी पर्यावरण संकट, आतंकवाद, गृह युद्ध,
राजनीतिक हिंसा, गरीबी भूखमरी, क
ु पोषण, बेकारी जैसी समस्याएं मौजूद है, किं तु आश्चर्यजनक बात
यह है कि दुनिया क
े किसी भी कोने से इन समस्याओं क
े निदान स्वरूप राजनीतिक दर्शन का उत्थान
नहीं हो रहा है। ईस्टर्न क
े शब्दों में,’ समसामयिक राजनीतिक विचार एक शताब्दी पुराने विचारों पर
परजीवी क
े रूप में जीवित है और सबसे बड़ी हतोत्साही बात यह है कि हम नए राजनीतिक संश्लेषण क
े
विकास की कोई संभावना नहीं देखते है। ... समाज विज्ञान किसी नए अरस्तु और नए न्यूटन क
े आने
का इंतजार कर रहे ‘’।
2.राजनीति को तथ्यों पर आधारित विज्ञान बनाने का प्रयास-
पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क
े अवसान का एक प्रमुख कारण यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध क
े बाद
अन्य सामाजिक विषयों की तरह राजनीति को भी विज्ञान बनाने क
े प्रयास राजनीति विदों क
े द्वारा किए
जाने लगे। विज्ञान तथ्यों क
े अध्ययन पर जोर देता है । व्यवहारवादी प्रवृत्ति क
े अनुरूप राजनीति को
विज्ञान बनाने क
े प्रयास में यह मूल्यों से दूर होता जा रहा है , जबकि परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत
की प्रमुख विशेषता उसकी मूल्य पररकता रही है। इसका आधार दार्शनिक रहा है न की वैज्ञानिक।
3. इतिहास परकतावाद [ Historicism ]
डेविड ईस्टन का तर्क है की आधुनिक राजनीतिविद नए सिद्धांतों क
े निर्माण में संलग्न न होकर
राजनीतिक विचारों क
े इतिहास लेखन में संलग्न है। ईस्टन सेबाइन , मेकलविन , डर्निंग, आदि की कटु
आलोचना करते हैं क्योंकि यह विचारक अभी भी प्लेटो ,अरस्तु, हॉब्स , लॉक , रूसो द्वारा दिए गए
विचारों की व्याख्या और टिप्पणी करने में अपना समय व्यतीत करते हैं, स्वयं किसी नए सिद्धांत क
े
निर्माण की तरफ अग्रसर नहीं होते। राजनीतिक विचारों क
े इतिहास का विश्लेषण करने में ही संलग्न
होने क
े कारण स्वाभाविक रूप से पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत का अवसान हो रहा है।
4. वैज्ञानिक प्रविधियों क
े विकास पर जोर-
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत शास्त्री राजनीति क
े अध्ययन की अनुभव वादी प्रविधियां यथा-
सांख्यिकी पद्धति ,साक्षात्कार पद्धति, सर्वेक्षण पद्धति क
े माध्यम से राजनीतिक घटनाओं और
परिस्थितियों क
े अध्ययन में ज्यादा रुचि लेते हैं और उनका संपूर्ण ध्यान नई वैज्ञानिक प्रविधियों की
खोज में लगा रहता है जिसक
े कारण स्वाभाविक रूप से चिंतनशील एवं कल्पना शक्ति में कमी आई है।
संक्षेप में, राजनीतिक व्यवहार राजनीतिक आदर्श का अनुगामी न होकर व्यावहारिक जगत में जो क
ु छ हो
रहा है, उसे ही महिमामंडित करने या आदर्श स्वरूप में प्रस्तुत करने क
े प्रयास अधिक हो रहे हैं। ऐसे में
पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत का अवसान होना स्वाभाविक है।
अल्फ्र
े ड कोबा का तर्क -
कोबा क
े अनुसार पश्चिम में बौद्धिक विरासत ढाई हजार वर्षों तक चलती रही थी। इस दौरान
विचारधारा और संस्थाओं क
े मध्य अंतर क्रिया जारी थी यह दोनों परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते थे
और एक दूसरे में सुधार भी करते थे, किं तु आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत में इस तरह का समन्वय या
संश्लेषण देखने को नहीं मिलता है विचारधारा और संस्थाओं क
े मध्य अंतर क्रिया गोवा क
े अनुसार 18 वीं
शताब्दी में रुक गई। कोबा क
े अनुसार निम्नांकित कारणों से आधुनिक युग में पारंपरिक आदर्श
राजनीतिक सिद्धांतों का पतन हुआ है-
1. राज्य क
े कार्यों का बढ़ता दायरा-
विगत वर्षों में राज्य क
े कार्यों का दायरा असीमित रूप में बढा है । राज्य द्वारा सभी कार्यों को संपन्न
कर दिए जाने क
े कारण व्यक्तियों की निर्भरता राज्य क
े ऊपर बढ़ती गई है और उनक
े स्वयं क
े व्यक्तित्व
में निहित कल्पनाशीलता, चिंतनशीलता मानों सुषुप्त हो गई है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक सिद्धांत
शास्त्री भी राज्य व्यवस्था क
े परजीवी हो गए हैं और स्वतंत्र चिंतन करने से परहेज करने लगे हैं।
2. नौकरशाही की बढ़ती शक्तियां-
कोबा क
े अनुसार बीसवीं शताब्दी में नौकरशाही की बढ़ती शक्तियों ने भी पारंपरिक राजनीतिक
दार्शनिकों की परंपरा को अवरुद्ध किया है क्योंकि नौकरशाही का सर्वाधिकार वादी नियंत्रण जीवन क
े हर
क्षेत्र में स्थापित हो गया है। बीसवीं शताब्दी क
े राज्य को प्रशासनिक राज्य की संज्ञा दी गई और यह
माना गया की जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति क
े जीवन में प्रशासन का अनवरत हस्तक्षेप रहता है। इन
स्थितियों में स्वतंत्र राजनीतिक चिंतन का बाधित होना बहुत स्वाभाविक है।
3. सैनिक संगठनों का निर्माण-
द्वितीय विश्व युद्ध क
े बाद व्यापक रूप में सैनिक संगठनों क
े निर्माण क
े कारण भी राजनीतिक चिंतन
की परंपरा का अवसान हुआ है। नाटो, सीटो, सेंटो, वारसा पैक्ट जैसे सैनिक संगठनों क
े निर्माण क
े
माध्यम से राष्ट्रों को लामबंद करने की कोशिश की गई। इन संगठनों में सम्मिलित प्रत्येक देश दूसरे
सदस्यों की सुरक्षा क
े लिए तत्पर रहता है और वैश्विक राजनीतिक घटनाओं और परिस्थितियों को
विचारधारा क
े आईने में देखने की कोशिश करता है। जब विचारधारा की दीवार हो और सैन्य सुरक्षा की
आवश्यकता क
े दृष्टिगत राष्ट्रीय विदेश नीति का निर्माण हो रहा हो, तो ऐसी स्थिति में स्वतंत्र चिंतन पर
आदर्शों पर आधारित मूल्य वादी राजनीतिक सिद्धांत का पतन होना निश्चित है।
4. साम्यवादी देशों में एक दल का वर्चस्व-
कोबा साम्यवादी देशों में भी राजनीतिक सिद्धांत क
े निर्माण की स्थिति पर चर्चा करते हैं और यह
मानते हैं कि इन देशों में जीवन क
े सभी क्षेत्रों पर साम्यवादी दल का नियंत्रण होता है और सभी निर्णय
उसी क
े द्वारा लिए जाते हैं। दल दमन की नीति पर चलता है जिसक
े कारण स्वतंत्र चिंतन का विकास
नहीं हो पाता।
5. पश्चिमी देशों में प्रजातंत्र का वांछित विकास न होना और विचारधाराओं क
े विकास पर बल
दिया जाना-
प्रजातंत्र को एक ऐसी मूल्य व्यवस्था वाली राजनीतिक व्यवस्था माना जाता है जहां स्वतंत्र चिंतन को
प्रोत्साहित किया जाता है और व्यक्ति एवं समाज क
े समवेत विकास पर आधारित जीवन दृष्टिकोण को
स्वीकार किया जाता है। कोबा मानते हैं कि पश्चिमी देशों में भी लोकतंत्र का वांछित विकास नहीं हो
सका अर्थात लोकतांत्रिक मूल्य व्यावहारिक धरातल पर नहीं अपनाये जा सक
े । इसक
े स्थान पर राष्ट्रवाद
साम्यवाद, फासीवाद आदि विचारधाराएं 19वीं शताब्दी में उभर कर सामने आई जिनक
े आधार पर
राजनीतिक जीवन क
े अस्तित्व की व्याख्या करने क
े प्रयास किए गए। ऐसे में मूल्यों पर आधारित
राजनीतिक सिद्धांत का विकास अवरुद्ध हुआ।
6. आधुनिक सिद्धांत कारों में लक्ष्य हीनता की स्थिति-
पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन का एक कारण कोबा यह भी बताते हैं की प्लेटो ,अरस्तु, बेंथम,
मिल,लॉक जैसे विचार को क
े जीवन का एक लक्ष्य था। जैसे- प्लेटो और अरस्तू ने यूनानी समाज की
बुराइयों को दूर करने का लक्ष्य सामने रखते हुए चिंतन किया, जॉन स्टूअर्ट मिल ने पश्चिम क
े
उपभोक्तावादी समाज को दिशा दिखाने क
े निमित्त उपयोगिता वादी चिंतन में संशोधन प्रस्तुत किया,
बेंथम ने इंग्लैंड की कानून और न्याय व्यवस्था में सुधार का लक्ष्य रखते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए,
किं तु आधुनिक सिद्धांत शास्त्री ऐसे किसी लक्ष्य क
े निमित्त चिंतन करते दिखाई नहीं देते और यही
कारण है कि लक्ष्य विहीनता की स्थिति में वे मूल्य पर चिंतन से हट जाते हैं।
ईसाह बर्लिन एवं एस. एम. लिपसेट क
े तर्क -
पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क
े अवसान क
े लिए बर्लिन और लिपसेट जैसे विचारक पश्चिम में
जनतांत्रिक सामाजिक क्रांति की विजय को उत्तरदाई मानते हैं। बीसवीं शताब्दी में उदारवादी जनतांत्रिक
राजनीतिक व्यवस्था को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किए जाने क
े कारण आदर्श राजनीतिक व्यवस्था
संबंधी वाद- विवाद एक तरह से समाप्त हो गया क्योंकि यह मान लिया गया कि सदियों से हमें जिस
अच्छे समाज की तलाश थी, वह जनतांत्रिक समाज क
े रूप में हमें प्राप्त हो गया है। इन विचारकों क
े
शब्दों में, ‘’ यदि शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धांत मर चुका है, तो यह संभवतः प्रजातंत्र की विजय क
े
कारण मारा गया है।’’
पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत का पुनरुत्थान-
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि 19वीं शताब्दी क
े उत्तरार्ध एवं बीसवीं शताब्दी में पारंपरिक
राजनीतिक सिद्धांत का पतन हुआ है, किं तु यह कहना उचित नहीं है कि पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत
पूर्णतः समाप्त हो गया है। यह कहा जा सकता है कि पश्चिम में विज्ञान और व्यवहारवाद क
े कारण
परंपरा बाद कमजोर हुआ है किं तु पूर्व क
े देशों में धर्म और दर्शन क
े प्रभाव क
े कारण यह उग्र और
आक्रामक हुआ है। श्री यह कहना भी समीचीन होगा की पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क
े स्थान पर
पश्चिम में वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांतों का आश्चर्यजनक विकास हुआ है जिसकी राजनीतिक
सिद्धांत का पुनरुत्थान कहकर प्रशंसा की गई है। लियो स्ट्रास क
े शब्दों में,’’ राजनीतिक सिद्धांत
पूर्णता अदृश्य नहीं हो गया है।’’
यही नहीं, बीसवीं शताब्दी क
े उत्तरार्ध में दुनिया में होने वाले
विभिन्न युद्धों और संकटों क
े दृष्टिगत पश्चिम में भी क
ु छ सिद्धांत कारों की रूचि परंपरावादी
राजनीतिक दर्शन में दिखाई देती है। 1970 क
े दशक में जॉन रॉल्स की पुस्तक ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’
क
े प्रकाशन क
े साथ राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन संबंधी बहस पर एक तरह की लगाम लग गई। रोल्स
क
े साथ पश्चिम में कई अनेक विचारक जैसे- माइकल ऑक शॉट , हनन आरंट , बट्रेंड जूबेनल , लिओ
स्ट्रॉस, एरिक वोगविन आदि परंपरा वादी राजनीतिक दर्शन का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनक
े चिंतन में
मूल्यपरकता देखी जा सकती है।
मुख्य शब्द- राजनीतिक सिद्धांत, मूल्य परकता, व्यवहारवाद, पतन, वैज्ञानिक प्रविधियां, परंपरावाद ,
बहस
Reference and Suggested readings
● Alfred Cobban,’’ The decline of Political Theory’’, Political science quarterly,68 [
3], September 1953, PP. 321- 337.
● Dante Germino, ‘’ The Revival of Political Theory’’, the journal of politics,25 [ 3 ],
August 1963, PP. 437- 460
● David Easton, ‘ The Decline of Modern Political Theory’, the journal of
Politics,13[1], February 1951, PP. 36 - 58
● Rajiv Bhargav, “Political Theory : An Introduction, Perasan Education India, 2008
● V. Mahajan , Political Theory, S chand & Company Ltd, 2015
प्रश्न-
निबंधात्मक-
1. राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।
2. राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन क
े पक्ष में डेविड ईस्टन और कोबा द्वारा दिए गए तर्को की
विवेचना कीजिए।
3. राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन क
े प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए। क्या आप इस कथन से
सहमत हैं कि बीसवीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धांत का पतन हुआ है?
वस्तुनिष्ठ-
1. राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन संबंधित बहस की शुरुआत कब हुई?
[ a ] बीसवीं शताब्दी क
े प्रारंभ में [ b ] 19वीं शताब्दी क
े प्रारंभ में [ c ] 18 वीं सदी क
े प्रारंभ में
[ d ] बीसवीं शताब्दी क
े अंत में.
2. निम्नलिखित में से कौन एक परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत कार है?
[ a ] हन्ना आरंट [ b ] डेविड ईस्टन [ c ] अल्फ्र
े ड गोवा [ d ] बर्लिन
3. परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत की मुख्य विशेषता क्या है?
[ a ] दार्शनिकता [ b ] मूल्यपरकता [ c ] वर्णनात्मकता [ d ] उपर्युक्त सभी.
4. राजनीतिक सिद्धांत क
े निधन की घोषणा किस सिद्धांत कार क
े द्वारा की गई?
[ a ] डेविड ईस्टन [ b ] रॉबर्ट दहल [ c ] ईशा बर्लिन [ d ] लासवेल
5. प्रजातंत्र की विजय को राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन का कारण किस सिद्धांत कार क
े द्वारा
बताया गया?
[ a ] जरमीनो [ b ] ईशा बर्लिन [ c ] रॉबर्ट दहल [ d ] उपरोक्त सभी
6. राजनीतिक सिद्धांत क
े पतन क
े बाद किस प्रकार क
े राजनीतिक सिद्धांत क
े विषय में कही
जाती है?
[ a] आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत [ b ] पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत [ c ] वैज्ञानिक
सिद्धांत
[ d ] आधुनिक एवं पारंपरिक दोनों
उत्तर- 1.a 2. a 3. d 4.b 5. b 6.b

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  • 1. राजनीतिक सिद्धांत का पतन [Decline of Political Theory] द्वारा- डॉ. ममता उपाध्याय प्रोफ े सर, राजनीति विज्ञान क े .एम.जी. जी.पी.जी.सी, बादलपुर, गौतम बुध नगर उद्देश्य- ● राजनीतिक सिद्धांत संबंधी विषय का बोध ● राजनीतिक सिद्धांत क े पतन संबंधी वाद- विवाद की जानकारी ● सामयिक संदर्भ में राजनीतिक सिद्धांत क े पतन संबंधी चर्चा की प्रासंगिकता क े मूल्यांकन की क्षमता का विकास ● सार्वजनिक विषयों क े संबंध में चिंतन एवं वाद-विवाद की क्षमता का विकास किसी भी विषय को स्वतंत्र अनुशासन क े रूप में विकसित करने में सिद्धांतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सिद्धांत वे सामान्यीकरण हैं , जिनक े आधार पर किसी विषय की व्याख्या की जाती है। शाब्दिक दृष्टि से सिद्धांत शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘ थ्योरिया’ से हुई है , जिसका अर्थ है- ‘ समझने की दृष्टि’। अर्थात सिद्धांत क े माध्यम से किसी विषय को समझना हमारे लिए आसान हो जाता है। कार्ल पॉपर ने सिद्धांत को एक प्रकार का जाल बताया है, जिससे संसार को पकड़ा जाता है ताकि उसे समझा जा सक े । राजनीतिक सिद्धांत का तात्पर्य राजनीति और राजनीति से जुड़े विविध पक्षों और घटनाओं का विवेचन करने वाली अवधारणाओं से है। जैसे- राज्य ,संप्रभुता, कानून, अधिकार, स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र आदि। सामान्यतः राजनीतिक सिद्धांत दो रूपों में वर्गीकृ त किए जाते हैं- 1. परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत 2. आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत को शास्त्रीय अथवा आदर्श आत्मक राजनीतिक सिद्धांत भी कहा जाता है। इस प्रकार क े सिद्धांत कल्पना पर आधारित होते हैं और सिद्धांतकार क े व्यक्तिगत दृष्टिकोण एवं व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं। ऐसे सिद्धांत की जड़ें इतिहास तथा दर्शन में होती है तथा इनक े अंतर्गत
  • 2. मौजूदा राजनीतिक जीवन की समस्याओं का संभावित समाधान प्रस्तुत किया जाता है ताकि मूल्य आधारित एक आदर्शात्मक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की जा सक े । प्लेटो, कांट, हीगल , एक्विनास, हॉब्स , लॉक ,रूसो आदि विचारक परंपरावादी राजनीतिक विचारको की श्रेणी में आते हैं। परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत को रॉबर्ट डहल ने इंद्रिय जनित अनुभव से परे माना है । संक्षेप में, परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक दर्शन का पर्यायवाची है जो अपनी प्रकृ ति से वर्णनात्मक ,ऐतिहासिक, संस्थात्मक एवं वैधानिक है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत द्वितीय विश्व युद्ध क े बाद अमेरिका क े शिकागो स्क ू ल क े विद्वानों क े प्रयासों से अस्तित्व में आया। व्यवहारवादी आंदोलन एवं अंतः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण क े कारण आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का उदय हुआ जो पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत से इस अर्थ में भिन्न है कि इसका उद्देश्य इस विषय को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करना है और इस हेतु यह मूल्यों व आदर्शों क े बजाय तथ्यों पर आधारित व्यावहारिक अनुभवों पर जोर देता है और यह मानता है कि राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन किए बिना वैज्ञानिक सिद्धांतों का निर्माण संभव नहीं है। राजनीति का संबंध क े वल राजनीतिक घटनाओं एवं व्यवस्था क े मूल्यांकन मात्र से नहीं है, बल्कि इस तथ्य से है कि राजनीतिक व्यवस्था से संबद्ध शासकों एवं नागरिकों का वास्तविक व्यवहार क ै सा है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत निरीक्षण, परीक्षण ,प्रयोग और वर्गीकरण पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति क े प्रयोग पर आधारित है। पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत से इस अर्थ में भी अलग है कि यह घटनाओं एवं व्यवहारों का ज्यों का त्यों अर्थात वस्तुनिष्ठ अध्ययन करता है, जबकि पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत, सिद्धांत कार की कल्पना की उपज होने क े कारण व्यक्तिनिष्ठ होता है। अतः यह कहा जा सकता है कि आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत राजनीति जैसे विषय को विज्ञान बनाने, राजनीतिक व्यवहार को समझने एवं इस दिशा में शोध एवं तथ्य संग्रह को दिशा देने में सहायक है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतकारों को दिशा दिखाने का कार्य फ्रांस क े सिद्धांत शास्त्री अगस्त काम्टे क े द्वारा किया गया। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत कारों में चार्ल्स मेरियम, डेविड ईस्टन, आप्टर , आमंड, डहल एवं लॉसवेल, डायस, अर्नाल्ड ब्रेचेट , मिहान, क ै प्लैन आदि प्रमुख है। राजनीतिक सिद्धांत का पतन- डेविड ईस्टन का तर्क - बीसवीं शताब्दी क े उत्तरार्ध में राज वैज्ञानिकों क े मध्य यह एक वाद विवाद का विषय बना कि क्या पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत पतन की ओर उन्मुख है? अल्फ्र े ड कोबा एवं डेविड ईस्टन जैसे समकालीन राज वैज्ञानिकों का मत है कि जिस राजनीतिक सिद्धांत का संबंध राजनीतिक दर्शन अर्थात आदर्शों और मूल्यों से है, उसकी परंपरा का तेजी से ह्रास हो रहा है। पीटर लासलेट तथा रॉबर्ट दहल जैसे सिद्धांतकार तो पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क े निधन की घोषणा करते हैं। ईस्टन जैसे विचारक निम्नांकित कारणों क े आधार पर राजनीतिक सिद्धांत क े पतन को दर्शाते हैं-
  • 3. 1. सामाजिक राजनीतिक उथल-पुथल क े बावजूद राजनीतिक दार्शनिकों की परंपरा का समाप्त होना- किसी भी राजनीतिक सिद्धांत को जन्म देने में समसामयिक सामाजिक- राजनीतिक उथल-पुथल का विशेष योगदान होता है। प्राचीन यूनान की उथल-पुथल में प्लेटो और अरस्तू जैसे, मध्य युग क े धार्मिक संघर्ष में संत अगस्टाइन और एक्वीनस जैसे विचारकों को जन्म दिया, वही आधुनिक युग में ब्रिटिश एवं फ्रांसीसी क्रांति की परिस्थितियों ने हॉब्स , लॉक, रूसो जैसे महान दार्शनिकों को जन्म दिया। औद्योगिक क्रांति एवं पूंजीवाद की व्यवस्थाओं ने समाजवादी विचारको कार्ल मार्क्स एवं लास्की को जन्म दिया। डेविड ईस्टन का तर्क है की 20 वी शताब्दी में भी पर्यावरण संकट, आतंकवाद, गृह युद्ध, राजनीतिक हिंसा, गरीबी भूखमरी, क ु पोषण, बेकारी जैसी समस्याएं मौजूद है, किं तु आश्चर्यजनक बात यह है कि दुनिया क े किसी भी कोने से इन समस्याओं क े निदान स्वरूप राजनीतिक दर्शन का उत्थान नहीं हो रहा है। ईस्टर्न क े शब्दों में,’ समसामयिक राजनीतिक विचार एक शताब्दी पुराने विचारों पर परजीवी क े रूप में जीवित है और सबसे बड़ी हतोत्साही बात यह है कि हम नए राजनीतिक संश्लेषण क े विकास की कोई संभावना नहीं देखते है। ... समाज विज्ञान किसी नए अरस्तु और नए न्यूटन क े आने का इंतजार कर रहे ‘’। 2.राजनीति को तथ्यों पर आधारित विज्ञान बनाने का प्रयास- पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क े अवसान का एक प्रमुख कारण यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध क े बाद अन्य सामाजिक विषयों की तरह राजनीति को भी विज्ञान बनाने क े प्रयास राजनीति विदों क े द्वारा किए जाने लगे। विज्ञान तथ्यों क े अध्ययन पर जोर देता है । व्यवहारवादी प्रवृत्ति क े अनुरूप राजनीति को विज्ञान बनाने क े प्रयास में यह मूल्यों से दूर होता जा रहा है , जबकि परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत की प्रमुख विशेषता उसकी मूल्य पररकता रही है। इसका आधार दार्शनिक रहा है न की वैज्ञानिक। 3. इतिहास परकतावाद [ Historicism ] डेविड ईस्टन का तर्क है की आधुनिक राजनीतिविद नए सिद्धांतों क े निर्माण में संलग्न न होकर राजनीतिक विचारों क े इतिहास लेखन में संलग्न है। ईस्टन सेबाइन , मेकलविन , डर्निंग, आदि की कटु आलोचना करते हैं क्योंकि यह विचारक अभी भी प्लेटो ,अरस्तु, हॉब्स , लॉक , रूसो द्वारा दिए गए विचारों की व्याख्या और टिप्पणी करने में अपना समय व्यतीत करते हैं, स्वयं किसी नए सिद्धांत क े निर्माण की तरफ अग्रसर नहीं होते। राजनीतिक विचारों क े इतिहास का विश्लेषण करने में ही संलग्न होने क े कारण स्वाभाविक रूप से पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत का अवसान हो रहा है। 4. वैज्ञानिक प्रविधियों क े विकास पर जोर-
  • 4. आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत शास्त्री राजनीति क े अध्ययन की अनुभव वादी प्रविधियां यथा- सांख्यिकी पद्धति ,साक्षात्कार पद्धति, सर्वेक्षण पद्धति क े माध्यम से राजनीतिक घटनाओं और परिस्थितियों क े अध्ययन में ज्यादा रुचि लेते हैं और उनका संपूर्ण ध्यान नई वैज्ञानिक प्रविधियों की खोज में लगा रहता है जिसक े कारण स्वाभाविक रूप से चिंतनशील एवं कल्पना शक्ति में कमी आई है। संक्षेप में, राजनीतिक व्यवहार राजनीतिक आदर्श का अनुगामी न होकर व्यावहारिक जगत में जो क ु छ हो रहा है, उसे ही महिमामंडित करने या आदर्श स्वरूप में प्रस्तुत करने क े प्रयास अधिक हो रहे हैं। ऐसे में पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत का अवसान होना स्वाभाविक है। अल्फ्र े ड कोबा का तर्क - कोबा क े अनुसार पश्चिम में बौद्धिक विरासत ढाई हजार वर्षों तक चलती रही थी। इस दौरान विचारधारा और संस्थाओं क े मध्य अंतर क्रिया जारी थी यह दोनों परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते थे और एक दूसरे में सुधार भी करते थे, किं तु आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत में इस तरह का समन्वय या संश्लेषण देखने को नहीं मिलता है विचारधारा और संस्थाओं क े मध्य अंतर क्रिया गोवा क े अनुसार 18 वीं शताब्दी में रुक गई। कोबा क े अनुसार निम्नांकित कारणों से आधुनिक युग में पारंपरिक आदर्श राजनीतिक सिद्धांतों का पतन हुआ है- 1. राज्य क े कार्यों का बढ़ता दायरा- विगत वर्षों में राज्य क े कार्यों का दायरा असीमित रूप में बढा है । राज्य द्वारा सभी कार्यों को संपन्न कर दिए जाने क े कारण व्यक्तियों की निर्भरता राज्य क े ऊपर बढ़ती गई है और उनक े स्वयं क े व्यक्तित्व में निहित कल्पनाशीलता, चिंतनशीलता मानों सुषुप्त हो गई है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक सिद्धांत शास्त्री भी राज्य व्यवस्था क े परजीवी हो गए हैं और स्वतंत्र चिंतन करने से परहेज करने लगे हैं। 2. नौकरशाही की बढ़ती शक्तियां- कोबा क े अनुसार बीसवीं शताब्दी में नौकरशाही की बढ़ती शक्तियों ने भी पारंपरिक राजनीतिक दार्शनिकों की परंपरा को अवरुद्ध किया है क्योंकि नौकरशाही का सर्वाधिकार वादी नियंत्रण जीवन क े हर क्षेत्र में स्थापित हो गया है। बीसवीं शताब्दी क े राज्य को प्रशासनिक राज्य की संज्ञा दी गई और यह माना गया की जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति क े जीवन में प्रशासन का अनवरत हस्तक्षेप रहता है। इन स्थितियों में स्वतंत्र राजनीतिक चिंतन का बाधित होना बहुत स्वाभाविक है। 3. सैनिक संगठनों का निर्माण- द्वितीय विश्व युद्ध क े बाद व्यापक रूप में सैनिक संगठनों क े निर्माण क े कारण भी राजनीतिक चिंतन की परंपरा का अवसान हुआ है। नाटो, सीटो, सेंटो, वारसा पैक्ट जैसे सैनिक संगठनों क े निर्माण क े माध्यम से राष्ट्रों को लामबंद करने की कोशिश की गई। इन संगठनों में सम्मिलित प्रत्येक देश दूसरे
  • 5. सदस्यों की सुरक्षा क े लिए तत्पर रहता है और वैश्विक राजनीतिक घटनाओं और परिस्थितियों को विचारधारा क े आईने में देखने की कोशिश करता है। जब विचारधारा की दीवार हो और सैन्य सुरक्षा की आवश्यकता क े दृष्टिगत राष्ट्रीय विदेश नीति का निर्माण हो रहा हो, तो ऐसी स्थिति में स्वतंत्र चिंतन पर आदर्शों पर आधारित मूल्य वादी राजनीतिक सिद्धांत का पतन होना निश्चित है। 4. साम्यवादी देशों में एक दल का वर्चस्व- कोबा साम्यवादी देशों में भी राजनीतिक सिद्धांत क े निर्माण की स्थिति पर चर्चा करते हैं और यह मानते हैं कि इन देशों में जीवन क े सभी क्षेत्रों पर साम्यवादी दल का नियंत्रण होता है और सभी निर्णय उसी क े द्वारा लिए जाते हैं। दल दमन की नीति पर चलता है जिसक े कारण स्वतंत्र चिंतन का विकास नहीं हो पाता। 5. पश्चिमी देशों में प्रजातंत्र का वांछित विकास न होना और विचारधाराओं क े विकास पर बल दिया जाना- प्रजातंत्र को एक ऐसी मूल्य व्यवस्था वाली राजनीतिक व्यवस्था माना जाता है जहां स्वतंत्र चिंतन को प्रोत्साहित किया जाता है और व्यक्ति एवं समाज क े समवेत विकास पर आधारित जीवन दृष्टिकोण को स्वीकार किया जाता है। कोबा मानते हैं कि पश्चिमी देशों में भी लोकतंत्र का वांछित विकास नहीं हो सका अर्थात लोकतांत्रिक मूल्य व्यावहारिक धरातल पर नहीं अपनाये जा सक े । इसक े स्थान पर राष्ट्रवाद साम्यवाद, फासीवाद आदि विचारधाराएं 19वीं शताब्दी में उभर कर सामने आई जिनक े आधार पर राजनीतिक जीवन क े अस्तित्व की व्याख्या करने क े प्रयास किए गए। ऐसे में मूल्यों पर आधारित राजनीतिक सिद्धांत का विकास अवरुद्ध हुआ। 6. आधुनिक सिद्धांत कारों में लक्ष्य हीनता की स्थिति- पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क े पतन का एक कारण कोबा यह भी बताते हैं की प्लेटो ,अरस्तु, बेंथम, मिल,लॉक जैसे विचार को क े जीवन का एक लक्ष्य था। जैसे- प्लेटो और अरस्तू ने यूनानी समाज की बुराइयों को दूर करने का लक्ष्य सामने रखते हुए चिंतन किया, जॉन स्टूअर्ट मिल ने पश्चिम क े उपभोक्तावादी समाज को दिशा दिखाने क े निमित्त उपयोगिता वादी चिंतन में संशोधन प्रस्तुत किया, बेंथम ने इंग्लैंड की कानून और न्याय व्यवस्था में सुधार का लक्ष्य रखते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए, किं तु आधुनिक सिद्धांत शास्त्री ऐसे किसी लक्ष्य क े निमित्त चिंतन करते दिखाई नहीं देते और यही कारण है कि लक्ष्य विहीनता की स्थिति में वे मूल्य पर चिंतन से हट जाते हैं। ईसाह बर्लिन एवं एस. एम. लिपसेट क े तर्क -
  • 6. पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क े अवसान क े लिए बर्लिन और लिपसेट जैसे विचारक पश्चिम में जनतांत्रिक सामाजिक क्रांति की विजय को उत्तरदाई मानते हैं। बीसवीं शताब्दी में उदारवादी जनतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किए जाने क े कारण आदर्श राजनीतिक व्यवस्था संबंधी वाद- विवाद एक तरह से समाप्त हो गया क्योंकि यह मान लिया गया कि सदियों से हमें जिस अच्छे समाज की तलाश थी, वह जनतांत्रिक समाज क े रूप में हमें प्राप्त हो गया है। इन विचारकों क े शब्दों में, ‘’ यदि शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धांत मर चुका है, तो यह संभवतः प्रजातंत्र की विजय क े कारण मारा गया है।’’ पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत का पुनरुत्थान- उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि 19वीं शताब्दी क े उत्तरार्ध एवं बीसवीं शताब्दी में पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत का पतन हुआ है, किं तु यह कहना उचित नहीं है कि पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत पूर्णतः समाप्त हो गया है। यह कहा जा सकता है कि पश्चिम में विज्ञान और व्यवहारवाद क े कारण परंपरा बाद कमजोर हुआ है किं तु पूर्व क े देशों में धर्म और दर्शन क े प्रभाव क े कारण यह उग्र और आक्रामक हुआ है। श्री यह कहना भी समीचीन होगा की पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत क े स्थान पर पश्चिम में वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांतों का आश्चर्यजनक विकास हुआ है जिसकी राजनीतिक सिद्धांत का पुनरुत्थान कहकर प्रशंसा की गई है। लियो स्ट्रास क े शब्दों में,’’ राजनीतिक सिद्धांत पूर्णता अदृश्य नहीं हो गया है।’’ यही नहीं, बीसवीं शताब्दी क े उत्तरार्ध में दुनिया में होने वाले विभिन्न युद्धों और संकटों क े दृष्टिगत पश्चिम में भी क ु छ सिद्धांत कारों की रूचि परंपरावादी राजनीतिक दर्शन में दिखाई देती है। 1970 क े दशक में जॉन रॉल्स की पुस्तक ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ क े प्रकाशन क े साथ राजनीतिक सिद्धांत क े पतन संबंधी बहस पर एक तरह की लगाम लग गई। रोल्स क े साथ पश्चिम में कई अनेक विचारक जैसे- माइकल ऑक शॉट , हनन आरंट , बट्रेंड जूबेनल , लिओ स्ट्रॉस, एरिक वोगविन आदि परंपरा वादी राजनीतिक दर्शन का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनक े चिंतन में मूल्यपरकता देखी जा सकती है। मुख्य शब्द- राजनीतिक सिद्धांत, मूल्य परकता, व्यवहारवाद, पतन, वैज्ञानिक प्रविधियां, परंपरावाद , बहस Reference and Suggested readings
  • 7. ● Alfred Cobban,’’ The decline of Political Theory’’, Political science quarterly,68 [ 3], September 1953, PP. 321- 337. ● Dante Germino, ‘’ The Revival of Political Theory’’, the journal of politics,25 [ 3 ], August 1963, PP. 437- 460 ● David Easton, ‘ The Decline of Modern Political Theory’, the journal of Politics,13[1], February 1951, PP. 36 - 58 ● Rajiv Bhargav, “Political Theory : An Introduction, Perasan Education India, 2008 ● V. Mahajan , Political Theory, S chand & Company Ltd, 2015 प्रश्न- निबंधात्मक- 1. राजनीतिक सिद्धांत क े पतन पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें। 2. राजनीतिक सिद्धांत क े पतन क े पक्ष में डेविड ईस्टन और कोबा द्वारा दिए गए तर्को की विवेचना कीजिए। 3. राजनीतिक सिद्धांत क े पतन क े प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए। क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि बीसवीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धांत का पतन हुआ है? वस्तुनिष्ठ- 1. राजनीतिक सिद्धांत क े पतन संबंधित बहस की शुरुआत कब हुई? [ a ] बीसवीं शताब्दी क े प्रारंभ में [ b ] 19वीं शताब्दी क े प्रारंभ में [ c ] 18 वीं सदी क े प्रारंभ में [ d ] बीसवीं शताब्दी क े अंत में. 2. निम्नलिखित में से कौन एक परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत कार है? [ a ] हन्ना आरंट [ b ] डेविड ईस्टन [ c ] अल्फ्र े ड गोवा [ d ] बर्लिन 3. परंपरावादी राजनीतिक सिद्धांत की मुख्य विशेषता क्या है? [ a ] दार्शनिकता [ b ] मूल्यपरकता [ c ] वर्णनात्मकता [ d ] उपर्युक्त सभी. 4. राजनीतिक सिद्धांत क े निधन की घोषणा किस सिद्धांत कार क े द्वारा की गई? [ a ] डेविड ईस्टन [ b ] रॉबर्ट दहल [ c ] ईशा बर्लिन [ d ] लासवेल 5. प्रजातंत्र की विजय को राजनीतिक सिद्धांत क े पतन का कारण किस सिद्धांत कार क े द्वारा बताया गया? [ a ] जरमीनो [ b ] ईशा बर्लिन [ c ] रॉबर्ट दहल [ d ] उपरोक्त सभी
  • 8. 6. राजनीतिक सिद्धांत क े पतन क े बाद किस प्रकार क े राजनीतिक सिद्धांत क े विषय में कही जाती है? [ a] आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत [ b ] पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत [ c ] वैज्ञानिक सिद्धांत [ d ] आधुनिक एवं पारंपरिक दोनों उत्तर- 1.a 2. a 3. d 4.b 5. b 6.b