5. अह ांसट
मि, वचि या कमय से
नकसी को हानि ि
पहुचािे का मतलब है
– अह ांसट
6. अपवटद
देि रक्षा के नलए की जािे वाली नहिंसा की नििती
अनहिंसा मेंहोती है
7. सत्य
जो समय, स्थाि, और व्यनि के भेद सेपरे है
जो हमेंसत्य लिे वैसे ही बोलिे, चलिे, या व्यव्हार
करिे का मतलब हैहमारी मािनसक नस्थरता
8. अस्तेय
सिंस्कृ त में"स्तेय" का मतलब है मानलक को पूछे नबिा
उसकी चीज लेलेिा
अस्तेय का मतलब ऐसा ि करिा यानि “चोरी” ि करिा
9. ब्रह्मचयय
सिंयनमत काम-जीवि, ईश्वरोपासिा और वेदों का अभ्यास
यानि "ब्रĺचयय“
आधुनिक और स्वच्छिंदता वाली जीवििैली की देय
कष्टसाध्य “नवनवध रोि”
10. अपरिग्र
हमेंआवश्यकता सेअनधक मात्रा मेंकोई भी चीजों का सिंग्रह ि
करिा
और सिंनचत की हुई अिावश्यक चीजों का उनचत निकाल करिा
11. सटिटांश
मिुष्य एक सामानजक प्राणी होते हुए सिंसार मेंउसे उनचत
व्यव्हार करिा चानहए, और जैसा व्यवहार वो दुसरों से
चाहता हो वैसा ही व्यव्हार उसका खुद का होिा चानहए योि
साधक को उनचत ढिंि सेयम का पालि करिा चानहए
12. हियम
साधक की खुद की सेहद और स्फू नतयलेपि के नलए
पालि करिे योग्य िते यानि "नियम"
13. शौच
िौच का आम अथय हैसफा करिा, मिर योिसाधिा मेंउसका सुक्ष्म अथय बहुत ही िहरा
है। ि नसफय िरीर को बलके उसीके साथ साथ मिको, हमारे कमो की भी सफाई करिा
पािी, तेज (अनग्ि), वायु, और आकाि की मदद सेिरीर की आिंतररक और बाह्म िुनि
होती है, और नवचार - नववेक सेमािनसक िुनि होती है।
ऐसी िुनि साधक को बार बार करिी चानहए
14. सांतोष
सिंतोष का मतलब हैपररतृप्त होिा ।
अपिे अच्छे सेअच्छे प्रयास (कमय) द्वारा जो फल की प्रानप्त हुई है
उससे सिंतुष्ट होिा ।
अक्सर हम कमय सेपहले ही फल की आिा रखते हैऔर अिर
अपिी आिा के अिुसार फल िहीं नमला तो निराि हो जाते है।
योिसाधक को ऐसा िहीं करिा चानहए ।
15. तप
तप का मतलब है दीर्य काल तक नकया हुआ पररश्रम ।
और तप का दूसरा अथय है माि - हानि रनहत के वल साक्षी भाव से
नकया हुआ कमय ।
चाहे वो श्रेयस हो या प्रेयि हो उसे के वल साक्षीभाव से करिा ।
16. स्वटध्यटय
स्वाध्याय: स्व + अध्याय खुद की योिसाधिा को लिातार बार बार
निररक्षण करिा । योििास्त्र का िहराई सेअभ्यास करिा और नचिंति,
मिि करिा ।
अपिी कमजोरीओिंका पता लिािा और उसे दूर करिा ।
17. इश्विप्रहिधटि
अपिे नकये हुए कमो के पररणाम सेहमारा अहम बढ़ता है।
तो नकये हुए कमो का फल इश्वर को अपयण कर दे तो हमारा अहम
निकल जाता है । जब हमारी सारी िनि कम पड़े तब सच्चे नदल से
इश्वर सेसहायता मािंििी चानहए । साधिा करते समय इश्वर को माि
कर उसमे लीि हो जािा भी “इश्वरप्रनणधाि” है।
18. सटिटांश
भिवाि िेनदए हुए मिुष्य अवतार को साथयक करिे के नलए और अपिी
आध्यानत्मक उन्िनत करिे के नलए नियमों का पालि करिा योि साधक
के नलए अनत आवश्यक है।
नियमों का पालि करिे सेवह िारीररक, मािनसक और आध्यानत्मक
रूप सेमजबूत रहते हुए आध्यानत्मक उन्िनत कर सकता है।
19. अष्टािंि योि में नियम का स्थाि _____ है ।
यम ______ है और नियम _______ है ।
_______, ________, ________ नमलकर निया योि होता है ।
नबिा पूछे नकसीकी चीज ि लेिा __________ यम का पालि है ।
िारीररक और मािनिक िुनि __________नियम ।
जो जैसा है वैसा कहिा यानि _________यम ।
मोल में खरीदी करते समय छु टिे वाला यम ______ ।
इन्टरिेट से दुसरे की फाइल नबिा पूछे लेते हुए छु टिे वाला यम ____ ।