2. सर्मिेिी शिक्षम
समावेशी शशक्षा से आशय उस शशक्षा प्रणाली से है शिसमें एक सामान्य छात्र एक शिवयाांग छात्र के साथ शवद्यालय में
अशिकतर समय शिताता है। िूसरे शब्िों में, समावेशी शशक्षा शवशशष्ट आवश्यकता वाले िालकों को सामान्य िालकों से
अलग शशक्षा िेने की शवरोिी है। शशक्षाका समावेशीकरण यह िताता है शक शवशेष शैक्षशणक आवश्यकताओां की पूशति के
शलए एक सामान्य छात्र और एक शिवयाांग को समान शशक्षा प्राशि के अवसर शमलने चाशहए। पहले समावेशी शशक्षा की
पररकल्पना शसर्ि शवशेष छात्रों के शलए की गई थी लेशकन आिुशनक काल में हर शशक्षक को इस शसद्ाांत को शवस्तृत
दृशष्टकोण में अपनी कक्षा में वयवहार में लाना चाशहए।
समावेशी शशक्षाया एकीकरण के शसद्ाांत की ऐशतहाशसक िडें कनाडाऔर अमेररका से िुड़ींहैं।
प्राचीन शशक्षापद्शत की िगह नई शशक्षानीशत का प्रयोग आिुशनक समय में होने लगा है। समावेशी शशक्षाशवशेषशवद्यालय
या कक्षा को स्वीकार नह़ीं करता। अशक्त िच्चों को सामान्य िच्चों से अलग करना अि मान्य नह़ीं है। शवकलाांग िच्चों
को भी सामान्य िच्चों की तरह ही शैशक्षक गशतशवशियों में भाग लेने का अशिकार है।
सर्मिेिी शिक्षम की वििेषतमएाँ
1. समावेशी शशक्षाऐसी शशक्षाहै शिसके अन्तगित शारीररक रूप से िाशित िालक तथा सामान्य िालक साथ-साथ सामान्य
कक्षा में शशक्षाग्रहण करते हैं। अपांग िालकों को कुछ अशिक सहायता प्रिान की िातीहै। इस प्रकारसमावेशी शशक्षाअपांग
िालकों के पृथक्कीकरण के शवरोिी वयावहाररक समािान है।
2. समावेशी शशक्षा शवशशष्ट का शवकल्प नह़ीं है। समावेशी शशक्षा तो शवशशष्ट शशक्षा का पूरक है। कभी-कभी िहुत कम
शारीररक रूप से िाशित िालकों को समावेशी शशक्षा सांस्थान में प्रवेश कराया िा सकता है। गम्भीर रूप से अपांग िालक
को िो शवशशष्ट शशक्षण सांस्थाओां में शशक्षा ग्रहण करते हैं, सम्प्रेषण व अन्य प्रशतभा ग्रहण करने के पश्चात् वे समशन्वत
शवद्यालयों में भी प्रवेश पा सकते हैं।
3. इस शशक्षाका ऐसा प्रारूपशिया गया है शिससे अपांग िालक को समान शशक्षा के अवसरां प्रािहों तथा वे समाि में अन्य
लोगों की भााँशत आत्मशनभिर होकर अपना िीवनयान कर सकें ।
4. यह अपांग िालकों को कम प्रशतिशन्ित तथा अशिक प्रभावी वातावरण उपलब्ि कराती है शिससे वे सामाय िालकों के
समान िीवनयापन कर सकें ।
5. यह समाि में अपांग तथा सामान्य िालकों के मध्य स्वथ सामाशिक वातावरण तथा सम्िन्ि िनाने में समाि के प्रत्येक
सतर पर सहायक है। समाि में एक-िूसरे के मध्य िूरी कम तथा आपसी सहयोग की भावना को प्रिान करती है।
6. यह एक ऐसी वयवस्था है शिसके अन्तगित शारीररक रूप से िाशित िालक भी सामान्य िालकों के समान महत्त्वपूणि
समझे िाते हैं।
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3. सर्मिेिी शिक्षम कम र्हत्ि
1. शारीररक िोषमुक्त शवशभन्न िालकों की शवशेष आवश्यकताओां की सविप्रथम पहचान करना तथा शनिािरण करना।
2. शारीररक िोष की िशा को िढाने से पहले शक वे गम्भीर शस्थशत को प्राि हो, उनके रोकथाम के शलये सविप्रथम उपाय
शकया िाना।िालकों के सीखने की समस्याओांको ध्यान में रखते हुए कायि करने की शवशभन्न नवीन शवशियों द्वारा शवद्याशथियों
को शशक्षा प्रिान करना।
3. शारीररक रूप से शवकृशतयुक्त िालकों का पुनवािस कराया िाना।
4. शारीररक रूप से शवकृशतयुक्त िालकों की शशक्षण समस्याओां की िानकारी प्रिान करना।
5. शारीररक रूप से शवकृशतयुक्त िालकों की शशक्षणसमस्याओांकी िानकारी प्रिानकरना तथा सुिार हेतु सामूशहक सांगठन
की तैयारी शकया िाना।
6. िालकों की असमथिताओां का पता लगाकर उनके शनवारण का प्रयास करना।
सर्मिेिी शिक्षम की प्रक्रियम
1.मानकीकरण- सामान्यीकरण वहप्रशिया है िो प्रशतभाशाली िालकों तथा युवकों को िहााँ तक सांभव हो कायि सीखने के
शलए सामन्य सामाशिक वातावरण पैिा करें।
2. सांस्थारशहत शशक्षा- सांस्थारशहत शशक्षा ऎसी प्रशिया है शिसमे अशिक से अशिक प्रशतभाशाली िालकों तथा युवक
छात्राओांकी सीमाओांको समाि कर िेती है िो आवासीय शवद्यालय में शशक्षा ग्रहण करते हैं एवां उन्हें िनसािारण के मध्य
शशक्षा ग्रहण करने का अवसरप्रिान करते हैं।
3.शशक्षा की मुख्य िारा- शशक्षा की मुख्य िारा वह प्रशिया है शिनमे प्रशतभाशाली िालकों को समान्य िालकों के साथ
शिन प्रशतशिन शशक्षा के माध्यम से आपस मे सांिांि रखते हैं।
4.समावेश- समावेश वह प्रशिया है िो प्रशतभाशाली िालकों को प्रत्येक िशा में सामान्य शशक्षा कक्ष में उनकी शशक्षा के
शलये लाती है । समशन्वत पृथक्करण के शवपरीत है । पृथक्करण वह प्रशिया है शिसमें समाि का शवशशष्ट समुह अलग से
पहचाना िाता है तथा िीरे िीरे सामाशिक तथा वयशक्तगत िूरी उस समूह की तथा समाि की िढती िाती है।
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4. सर्मिेिी कक्षमओं की समर्मन्य प्रथमएाँ
सािारणतः छात्र एक कक्षा में अपनी आयुके शहसाि से रखे िाते हैं चाहे उनका अकािशमक स्तर ऊ
ाँ चा या नीचा ही क्यों
न हो। शशक्षक सामान्य और शवकलाांग सभी िच्चों से एक िैसा ितािव करते हैं। अशक्त िच्चों की शमत्रता अक्सर सामान्य
िच्चों के साथ करवाई िाती है ताशक ऐसे ही समूह समुिाय िनता है। यह शिखाया िाता है शक एक समूह िूसरे समूह से श्रेष्ठ
नह़ीं है। ऐसे ितािव से सहयोग की भावना िढती है।
शिक्षक कक्षम र्ें सहयोग की भमििम बढमिे क
े शिए क
ु छ तरीकों कम उपयोग करते हैं
1. समुिाय भावना को िढाने के शलए खेलों का आयोिन
2. शवद्याशथियों को समस्या के समािान में शाशमल करना
3. शकतािों और गीतों का आिान-प्रिान
4. सम्िांशित शवचारों का कक्षा में आिान-प्रिान
5. छात्रों में समुिाय की भावना िढाने के शलए कायििम तैयार करना
6. छात्रों को शशक्षक की भूशमका शनभाने का अवसरिेना
7. शवशभन्न शियाकलापों के शलए छात्रों का िल िनाना
8. शप्रय वातावरण का शनमािण करना
9. िच्चों के शलए लक्ष्य-शनिािरण
10. अशभभावकों का सहयोग लेना
11. शवशेष प्रशशशक्षत शशक्षकों की सेवा लेना
दि शिक्षण पद्धनत द्िमरम समर्मन्यतः व्यिहमर र्ें आिे िमिी सर्मिेिी प्रथमएाँ
1. एक शिक्षा, एक सहयोग :- इस मॉडल में एक शशक्षक शशक्षा िेता है और िूसरा प्रशशशक्षत शशक्षक शवशेष छात्र की
आवश्यकताओां को और कक्षा को सुवयवशस्थत रखने में सहयोग करता है।
2. एक शिक्षा एक शिरीक्षण :– एक शशक्षा िेता है िूसरा छात्रों का शनरीक्षण करता है।
3. शथिरऔर घूणणि शिक्षा :— इसमें कक्षा को अनेक भागों में िााँटा िाता है। मुख्य शशक्षक शशक्षण कायि करता है
िूसरा शवशेष शशक्षकिूसरे िलों पर इसी की िााँच करता है।
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5. 4. समान्तरशिक्षा : – इसमें आिी कक्षा को मुख्य शशक्षकतथा आिी को शवशशष्ट शशक्षाप्राि शशक्षक शशक्षािेता है।
िोनों समूहों को एक िैसा पाठ पढाया िाता है।
5. वैकशपिकशिक्षा :– मुख्य शशक्षकअशिक छात्रों को पाठ पढाता है ििशक शवशशष्ट शशक्षक छोटे समूह को िूसरा पाठ
पढाता है।
6. समूहशिक्षा :– यह पारांपररक शशक्षा पद्शत है। िोनों शशक्षक योिना िनाकर शशक्षा िेते हैं। यह काफी सर्ल शशक्षण
पद्शत है।[
बच्चे जजन्हें अत्यधधक सहमयतम की आिश्यकतम है
ऐसे िच्चों को अशिक िेखभाल और सांरक्षण की आवश्यकता होती है शिनके साथ उनकी िेखरेख करने वाला कोई नह़ीं
होता है अथवा शिनके पररवारों ने गरीिी अन्य शकसी कारण से उन्हें त्याग शिया हो। शकशोर न्याय (िच्चों की िेख रेख और
सांरक्षण अशिशनयम) 2000 उनकी िेखभाल, सांरक्षण और पुनवािस का प्राविान करता है शिसमें ित्तक ग्रहण, पोषण िेख –
रेख, प्रायोिन भी शाशमल है।
कुछ िच्चे शवशभन्न कारणों से अपने माता – शपता को खो िेते हैं िैसे – गरीिी, शवकलाांगता, िीमारी,
माता – शपता की मृत्यु अथवा कारावास, प्रवास अथवा सशस्त्र शववाि के कारण उनसे अलगाव। ऐसे िच्चों की सांख्या भी
िहुत अशिक है शिनके माता – शपटा में से एक अथवा िोनों िीशवत नह़ीं हैं। अशभभावकीय िेखरेख के अभाव वाले ऐसे
िच्चे उत्पीडन,शोषण और उपेक्षा के उच्च िोशखम में िीते हैं।
कभी – कभी िीवन में आई कशठनाइयों और िीशवत रहने के शलए उनके द्वारा शकया िाने वाला सांघषि
उन्हें अपराि करने पर शववश कर िेता है शिसके उन्हें कानूनी पररणाम झेलने पडते हैं। कभी – कभी एचआईवी/एड्स से
पीशडत िच्चे अथवा ऐसे िच्चे शिन्होंने स्वयां कानून का उल्लांघन शकया है या शिनके माता – शपता ने अपराि शकया है,
गााँव में कलांक माने िाते हैं और सामाशिक िशहष्कार के शशकार िन िाते हैं। इससे उनका िीवन अत्यांत कष्टकर हो िाता
है। शारीररक अथवा मानशसक शवकलाांगता से पीशडत िच्चों को भी प्राय: पररवार और समुिाय द्वारा िोझ समझा िाता है।
लोग इन िच्चों को कोसते हैं तथा ऐसे िच्चे भी उत्पीडन, उपेक्षा और शहांसा के शशकार िनते हैं। कनािटक के िागलकोट
शिले के शिगम्िेश्वर मांशिर में मनाए िाने वाले महोत्सव के िौरान, छोटे िच्चों को 30 र्ूट ऊ
ाँ चे मांशिर की छत से नीचे र्ें का
िाता है। छत से र्ें के िाने वाले िच्चे िो वषि से कम की आयु के होते हैं। स्थानीय लोगों का शवश्वास है की यह अनुष्ठान
िच्चे के शलए स्वश्त्य और भाग्य लेकर आता है।
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6. भमरत र्ें चिी आ क
ु छ परंपरमगत और अंधविश्िमसी प्रथमएाँ बच्चों की संिृद्धध, विकमस और
क
ु िितम क
े शिए बहुत हमनिकमरक हैं।
1. पुशत्रयों को पररवार में एक िोझ तथा पररवार का अवाांछनीय सिस्य समझा िाता है अनेक पररवारों में उन्हें िन्म लेने से
पूवि ही माता के गभि में अथवा िन्म के तत्काल पश्चात् मार शिया िाता है। ऐसे प्रथाओांके र्लस्वरूप भारत में पुरूषों के
मुकािले मशहलाओां की सांख्या में कार्ी कम हो गई है।
2. िेविासी (अथाित मांशिर की सेशवका) के नाम पर िाशलकाओां को वेश्यावृशत के शलए शववश करना िशक्षण भारत के कुछ
भागों में एक प्राचीन प्रथा है शिसके र्लस्वरूप छोटी िाशलकाओां को 10 वषि के आयु से भी पूवि वेश्यावृशत में झोंक
शिया िाता है।
3. अनके समुिायों में, यह अांिशवश्वास वयाि है शक प्रसव के तुरांत पश्चात माता का िूि शशशु के स्वास्थय के शलए अच्छा
नह़ीं होता है। अत: िाई/प्रसव पररचाररका/पररवार के सिस्य उस िूि को प्रसव के तत्काल पश्चात शरीर से शनकाल कर
र्ें क िेते हैं, िो वास्तव में िच्चे की प्रशतरक्षण प्रणाली के शलए अत्यांत महत्वपूणि होता है।
4. िि िच्चे पीशलया िैसे रोगों से पीशडतहोते हैं, तो उन्हें पररवार द्वारा इलाि के शलए नीम हकीमों के पास ले िाया िाता
है। गलत िारणाओां के कारण शशशु के टीकाकरण को या तो आरांभ नह़ीं शकया िाता या टीकाकरण पूरा नह़ीं शकया
िाता है।
5.िच्चों के साथ यौन–शिया को यौन–सांचाररत रोगों के शलए उपचार माना िाता है, शिसके र्लस्वरूप िच्चों के प्रशत
यौन उत्पीडन की घटनाओां में वृशद् होती है।
6. भारत के अनेक भागों में िच्चों के अांगों को ईश्वर के प्रशत समशपित करने के शलए अथवा काटने तथा अांिशवश्वासपूणि
आस्थाओां के कारण िच्चों की िशल िेने की प्रथा प्रचशलत हैं।
सर्मिेिी शिक्षम की आिश्यकतम
समावेशी शशक्षा की आवश्यकता हर िेश में आवश्यक है क्योंशक िालक समावेशी शशक्षा की सहायता से सामान्य रूप से
शशक्षा ग्रहण करता है तथा अपने आप को सामान्य िालक के समान िनाने का प्रयास करता है भले ही समावेशी शशक्षामें
प्रशतभाशाली िालक, शवशशष्ट िालक, अपांग िालक और िहुत सारे ऐसे िालक होते हैं िो सामान्य िालक से अलग होते
हैं उन्हें एक साथ इसशलए शशक्षा िी िाती है क्योंशक उन िालकों में अशिगम की क्षमता को िढाया िा सके ।
िीचे हर् सर्मिेिी शिक्षम की आिश्यकतमओं क
े बमरे र्ें बबंदु बद रूप से पढेंगे –
1. समावेशी शशक्षावयवस्था के माध्यम से समावेशी शशक्षा िालकों के शलए एक ऐसा अवसर प्रिान करता है शिसमें अपांग
िालकों को सामान्य िालकों के साथ मानशसक रूप से प्रगशत प्राि करने का अवसरशमलता है।
2. समावेशी शशक्षा एक ऐसा शशक्षा है शिसमें शशक्षा के समानता के शसद्ाांत का अनुपालन शकया िाता है साथ ही इस
शशक्षा के माध्यम से शैशक्षक एकीकरण भी सांभव होता है।
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