1. हरियाली की गोद में-
श्रीमती शान्ता शमाा
नमस्ते / प्रणाम
चािों ओि घनी – हिी झाड़ियों
की छँटी हुई चहाि दीवािी (पिकोटा), अन्दि
प्रवेश किने के ललए गोल-गोल, सफ़े द,
चचकनी कं कड़ियों का बिछा सुन्दि िास्ता,
उसके दोनों ओि ववशाल लॉन् मानो ककसीने
पन्ने बिखेि िखे हों, ककनािों पि िंग-बििंगे
खुशिूदाि फू लों की क्यारियाँ, उन पि उिती
तिह तिह की तततललयाँ, लॉन् के उस ककनािे खिे छायेदाि पेि, उनकी
शाखाओं पि चहकती, कू जती िंगीन चचड़ियाँ, औि आगे प्लम, सेि, संतिे
आदद से लदे पेि, दूसिी ओि साग-सब्जजयों के पौधे, भोंपू (हाना) की
आवाज़ सुनते ही घि के द्वाि से सफे द िेशम के गेंद-से उछलते हुए
िाहि तनकलनेवाले प्यािे-प्यािे नाटे-छोटे कु त्ते, वनस्पततयों से छू ट िही
महक – क्यों आप लोगों को लगता होगा कक मैं कोई वणानात्मक,
काल्पतनक लेख ललख िही हूँ | मैं जो भी ललखती हूँ अनुभव-जन्य सच
ललखती हूँ, सच के लसवा कु छ नहीं |
2. ये सािे दृश्य युनैटि ककं ग्िम (U.K.) के ऊब्ल्पट ( Woolpit) गाँव में
देखने को लमलते हैं जो Bury St. Edmunds क्षेत्र में ब्स्ित हैं |
इस गाँव तक पहुँचने के ललए लण्िन हवाई अड्िे से लगभग दो घंटे का
समय लगता है| गाँव क्या है यह
तो प्रभुओं (उस ज़माने के ) औि
िईसों की िस्ती है| सािे घि ििे
औि पुिानी शैली के हैं| िफ़ा औि
सदी से िचने के ललए काठ
(लकिी) की दीविें, फ़शा, छत
आदद िने हुए हैं| ऊपिी तल्ले पि
खपिैलों की छाजन (छप्पि) है,
ऊँ ची चचमनी है क्योंकक सददायों में (साल के कई महीने) तनिंति आग
जलती िहती है|
इस गाँव के वािन लेन का आखखिी मकान है श्रीमान् दटम मेिोज़-ब्स्मि
का जो हमािे न्यू मीड़िया इन्फ़ोमेशन टेक्नोलोजीस के मैनेब्जंग िाइिेक्टि
हैं| वे ििे कािोिािवाले हैं| भाित, श्रीलंका (चाय एस्टेट) ही नहीं अन्य
कु छ देशों में भी उनका कािोिाि िुलन्द है| कफ़ि भी वे सिल स्वभाव के
लमलनसाि व्यब्क्त हैं| उनकी पत्नी औि ज्येष्ट पुत्री ककसी ववद्यालय में
गखणत का अध्यापन काया किती हैं| छोटी िेटी आक्स्फ़ोिा ववश्वववद्यालय
में अध्ययन कि िही है| वह शाकाहािी है| वपछले साल श्रीलंका के
3. सुनामी पीड़ितों के िच्चों तिा अनाि िच्चों को अंग्रेज़ी लसखाने के ललए
तीन महीने तक वहाँ िही (ककसी समुद्र ककनािे के गाँव में)| वहाँ से चेन्नै
आई, पाँच ददन िहकि घूमकि देखने के िाद उसने कहा ‘श्रीलंका के
गिीि गाँव भी िहुत साफ़-सुििे हैं| हमािी गैि-ब्ज़म्मेदािी हमािे वाताविण
पि असि किता है| हम कु छ िोल न पाए न ही नकाि पाए|
श्री दटम की माताजी अपने गाँव में (Orpington, Kent District)
ववशाल क्षेत्र में िने घि में अके ली िहती हैं| िुढ़ापे में भी खुद सािा काम
किती हैं, िाग़-िग़ीचों, पेि-पौधों को सँभालती हैं| उनकी वाणी में मानो
ईश्वि ने लमठास भि िखी हो, िहुत सत्काि किती हैं आगन्तुकों का|
मेिे िेटे को दो-तीन महीने में एक िाि ऊलवपट जाना पिता है| दटमजी
उसे अपने घि से िाहि कहीं ठहिने नहीं देते, अपने साि ही िखते हैं
जैसे वह उनके परिवाि का कोई सदस्य हो| वे लोग भी तनिालमष भोजन
किते हैं जि तक यह वहाँ िहता है|
उनका घि, प्रदूषण-िदहत वाताविण, हरियाली, लेवेण्िि की खुशिू, जि के
ति पेि से तोिे गए फ़ल, ताज़ी सब्जज़याँ, सामनेवालों के मुस्कु िाहट भऱे
चेहिे, कहीं शोिगुल नहीं, नल से लमलनेवाला ववशुद्ध जल (वहाँ कहीं
मच्छिों का नामो-तनशान नहीं है) – सचमुच ददल भि जाता है|
काश, हमािे गाँव न सही, शहि कम-से-कम ऐसे होते !