SlideShare uma empresa Scribd logo
1 de 7
जीवन की Ultimate बैचेनी 
सारी खुशियााँ, सब जरुरते, सब इच्छायेंपूरी होनेके बाद भी जीवन में 
अधुरापन, अकेलापन, सूनापन, अिाांतत बनी रहती है– खोज-खोज कर भी 
बन्दा परेिान रहता हैककन्तुअसली कारण ढूांढ ही नहीांपाता।
जीवात्मा की बेचैनी का आखखरी (Ultimate) कारण 
• तुलसीदास, बबल्वामांगल जैसेमहान सांत ररवाजी इश्क मेंअपनी बैचेनी का हल 
(solution) ढूांढतेरहे, लेककन तनराकार नेउन्ही स्त्रीयों के घट मेंबैठकर ततरस्त्कार 
और धधक्कारपूणण(भयानक) वचन द्वारा उनकी बैचेनी का Real कारण बताया 
और उनका मागण-दिणन परमात्म-मागणददखा कर ककया। 
• हम सब जन्म लेनेसेपहलेगभाणवस्त्था के दौरान भगवान सेएक प्रतत्ा करतेहै 
कक “मैजन्म लेनेके बाद आपको कभी भी नहीांभूलूांगा और सांसार मेंन फ़ांसकर 
जीवन्मुक्त बनकर लौटूांगा”। लेककन ऐसा होता नहीांहै। जन्म लेनेके बाद हम तन 
में, मन मेंफ़ांस जातेहै, माया की ववधचर िक्क्त हमेंसब भुलावा देदेती है। ककन्तु 
जीवन मेंजब सब इच्छायें, भोग आदद सब चुक लेतेहै, तब वही परमात्मा को ददया 
हुआ वचन इस ववधचर बेचैनी के रूपणमेंउभर कर आता हैऔर हमेंददन-रात 
कचौटता है। (गभणउपतनषद) 
• यह बेचैनी आध्याक्त्मक प्रकार की होती है, ना कक मानशसक या मनोवै्ातनक 
प्रकार की। कोई भी प्रकार की साांसाररक दवा इस बेचैनी को ठीक न कर पायेगी। यह 
बेचैनी कारण- िरीर मेंवास करती है।
अांि-अांिी का शसद्धान्त (गीता 4/5-6, 15/6) 
• यह बेचैनी हैअांि की अपनेअांिी सेशमलनेके शलये। इसी शसद्धान्त के अनुसार 
सांसार का कोई भी जीव, वविेषकर मनुष्य हमेिा परमात्मा की और जायेगा 
क्योंकक की वह उसका अांि है। 
• यही बेचैनी नदी को सागर सेशमलनेके शलयेउत्सादहत करती है। अक्नन कहीांभी हो 
वो हमेिा ऊपर सूयण की ओर अग्रसर होता है क्योंकक वह सूयण का अांि है, उसी 
प्रकार शमट्टी को ऊपर फ़ेंकने पर वह नीचेही आता है क्योंकक वह पृथ्वी का 
अांि है (गुरुत्वाकषणण का तनयम बाद में आया और हजारो साल पहले यह 
वेद में शलखा हुआ आया की अांि हमेिा अांिी की ओर जायेगा) उसी प्रकार हवा 
हमेिा आकाि मेंचारो ओर फ़ैलेगा क्योंकक वह उसका अांि है। 
• गीता 15/6 – अांि की अांिी की ओर गतत होती हैऔर जब अांि अांिी सेदूर होता 
जाता है, तब प्रवृतत होती है। प्रवृतत सांसार की तरफ़ होती है, उसमेंपररश्रम, उधोग 
और कताणपना होता है, जबकक गतत मेंपररश्रम नहीांहोता, केवल उद्धेश्य होता है, गतत परमात्मा की तरफ़ होती है। गतत=उध्वणगतत, असीम की ओर; प्रवृतत=अधोगतत, सीशमत की ओर। अहांकार आदद ववकार = प्रवृतत; दैवीभाव, श्रद्धाभाव, िरणागत 
भाव = गतत।
अद्भुत-अखूट बेचैनी का ईलाज 
• तब यदद सत्गुरु प्रकट अवस्त्था मेंशमलेऔर स्त्वयांका वववेक भी सुजाग हो, बुद्धध 
जड़ता को प्राप्त न कर गई हो, तो ही यह रहस्त्य खुल पाता है, वरना जीवात्मा यूाँही 
देह छोड़ देता है, ककन्तुउन आखखरी क्षणो मेंउसको यह परमात्मा सेककया हुआ कौल 
जरुर याद आ जाता है, और अपनेअसन्तोष का कारण भी वह जान जाता है। मगर 
अफ़सोस कक तब तक वह कुछ करनेकी हालत मेनहीांरहता, ठीक उसी तरह जैसे 
गभाणवस्त्था के दौरान Helpless था और परमात्मा ही उसकी रक्षा करतेथे। 
• इस तरह जन्म-दर-जन्म यह Same कहानी दोहरायी जाती है। 
• जब वववेक भी ्ान उठानेमें, रहणी मेंउतारनेमेंएक हद के बाद न साथ देसके, तब 
ऐसेबन्देको सत्गुरु-िरण मेंअपने-आपको तन+मन सेजुट जाना चादहये। कोरे 
दिणन से, दृक्ष्टपात से, गुरु सेभीख माांगतेरहनेसेकाम न बने। काम बनेउन छोटे- 
छोटेकदमो पर चलनेसेजो गुरु नेवाणी द्वारा मन्र के रूप मेंबतायेहै। घड़ी-घड़ी, 
हर-घड़ी दीन भाव से, नम्र भाव से, बालक भाव से(ना कक ‘दादा’ भाव से) लगा ही रहे 
– “ और काज तेरेकतई न काम, शमल साध-सांगत भज केवल राम”।
हरर ही हैदासों का भी दास 
• कबीर हरी सबकांूभजे, हरी को भजे ना कोई । 
जब लग आस िरीर की, तब लधग दास ना होई ॥ 
• आपको पता होगा कक हरी हमको एक ददन के २४ घन्टों में २१,६१२ बार भजता है, 
याने उतने सासांहम एक ददन में लेते है, और हर सासांमें ‘सोहम’ की ध्वतन से वो 
हमको भजता है । और ककतने िमण की बात है कक हम एक ददन तो क्या उसकी 
कभी भी याद तक नहीां करते, िुक्रगुजारी तो बहुत दूर की बात है । और उसे 
भजने की बात तो असम्भव सी ही रहती है । कारण? हम िरीर और इसकी माया 
की गुलामी में इतने बेहोिांहुये रहते है । और एक ददन हरी हमको भजना बन्द 
कर देता है, ये कठ्पुतली िाांत हो जाती है । वैसे ऊपर शलखा कक हम सान्स लेते 
है, वो गलत बात है, हम सान्स नहीां लेते, वो तो आपोआप चलता है । और जो 
काम आपोआप होता है वो ही तो राम करते है हमारे भीतर बैठ कर । बडे बडे और 
भी काम करते है ये रामजी हमारे अन्दर बैठे बैठे । कहाां तक धगनायें…और हम 
सोचते है कक हम खाते है, हजम करते है, दौडतेहै, हमारी बुद्धध में इतनी िक्क्त 
है, ऐसी प्रचन्ड है, इत्यादद । लेककन वो तो सब अन्दर में बैठे रामजी ही कर रहे 
है, और हम फालतू में ही अहम में मरे जाते है । ये तो वैसी कहानी हुई जैसे गाडी 
के नीचे चलता हुआ कुत्ता ये मानता है कक गाडी वो ही हाकांरहा है ।
करना क्या है? वो बताओ – Actionable Points 
• पूरेऔर Full-time गुरु-वचनो के मांथन मेंरहनेसेअनुभव, आपको शमलने लग सांकेत, इष्ट के आदेि ददन पेंगे। जो आत्मा प्रसुप्त है, तटस्त्थ है, जागतृहोनेलगेगी और एकूरी तरह भी जाग जाएगी। 
• यदद जीतेजी आत्म-जागरण नहीांहुआ तो भी कफ़क्र नहीांहै, क्रम-मुक्क्त के मागणशमल मजांक्ातजेलहैऔकोरअअवगश्यलेप्रजाप्न्तमकमरेंजताीवहन्ीमहै।ुक्क्पतहलशमालकदहमी जबातढ़ाीनहेै।वाजलोाचहली दपड़ा है, एक ददनहैसूरा कदम उठा पाता , खड़ेरहनेवाला नहीां। 
• न यह आत्मा प्रवचन से प्राप्त होती है, न ववशिष्ट बुद्धध से प्राप्त होती है, न 
बहुत सुनने-समझने से प्राप्त होती है, ना आपस के Discussions सेप्राप्त होती है। हवोहतता ोहगै औुरु करे वपचल्लनाो तकभा पी ल्पलकाड़पगेका ड़जनबेसकके, उ एनककेम तानर दपेिरनम तमत्ें वचलपरकमरा त्उमसाे मप्राप्त करनाऔर तत्वदिी सद् गें श्रद्धा हो ुरु प्रकट रूप मेंउपलब्ध हों। इसीशलयेसत्सांगीयों को Encourage करनेक शलयेउन्हे‘सांत’ कहतेहै। 
• ससांांतस ारक ाम ें मभतील उबस जकोी सप्र्ांतुशाल गतज हबो कगीय ाह।ै . , सप्रांत् ाजवोा नभहीतै र. अकना ुभभवी ्ककान पराँूजखीतहाै औहै रब ाहर 
प्रअ्पना ीकमी पाँूजी है। दो हाथ इसीशलयेतो है– एक मेंइहलोक और दसूरेमेंपरलोक कोुठ्ठी मेंरखना आना चादहये।
अांि-अांिी के ववषय पर उपयुक्त कबीर वाणी 
हम न मरैं, मररहेंसांसारा। हम कांूशमला क्जयावनहारा।। 
अब न मरूाँ मरनै मन माना। तेई मुए क्जन राम न जाना।। 
साकत मरैंसांत जन जीवैं। भरर भरर राम रसायन पीवैं।। 
हरर मररहैंतो हमहूाँमररहैं। हरर न मरैंहम काहे काँूमररहै।। 
कहैंकबीर मन मनदह शमलावा। अमर भये सुख सागर पावा।। 
गुरु शमले िीतल भया, शमटी मोह तन ताप। 
तनिु बासर सुख-तनधध लहौं, अन्तर प्रगटे आप।। 
िब्द सुरतत और तनरतत, ये कदहबे को हैंतीन। 
तनरतत लौदट सुरतदहांशमली, सुरतत िबद मेंलीन।। 
सुरतत समानी तनरतत में, अजपा माहीांजाप। 
लेख समाना अलेख में, आपा माहीांआप।। 
सुरतत समानी तनरतत में, तनरतत रही तनरधार। 
सुरतत तनरतत पररचय भया, तब खुला शसधांदवुार।।

Mais conteúdo relacionado

Mais procurados

Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Virag Sontakke
 
Guru poornimasandesh
Guru poornimasandeshGuru poornimasandesh
Guru poornimasandeshgurusewa
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय Virag Sontakke
 
सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय Virag Sontakke
 
Meaning and nature of religion
Meaning and nature of religionMeaning and nature of religion
Meaning and nature of religionVirag Sontakke
 
वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म Virag Sontakke
 
गाणपत्य सम्प्रदाय
गाणपत्य सम्प्रदाय गाणपत्य सम्प्रदाय
गाणपत्य सम्प्रदाय Virag Sontakke
 
Teaching of bhagvatgita
Teaching of bhagvatgitaTeaching of bhagvatgita
Teaching of bhagvatgitaVirag Sontakke
 
अवतारवाद
अवतारवाद  अवतारवाद
अवतारवाद Virag Sontakke
 
Early and later vaidik religion
Early and later vaidik religionEarly and later vaidik religion
Early and later vaidik religionVirag Sontakke
 
Jivan jhaanki
Jivan jhaankiJivan jhaanki
Jivan jhaankigurusewa
 
Religion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodReligion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodVirag Sontakke
 
Bhagat singh
Bhagat singhBhagat singh
Bhagat singhjunglleee
 
प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ Virag Sontakke
 
Purusharth paramdev
Purusharth paramdevPurusharth paramdev
Purusharth paramdevgurusewa
 

Mais procurados (16)

Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic
 
Guru poornimasandesh
Guru poornimasandeshGuru poornimasandesh
Guru poornimasandesh
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय
 
सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय
 
Meaning and nature of religion
Meaning and nature of religionMeaning and nature of religion
Meaning and nature of religion
 
वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म
 
गाणपत्य सम्प्रदाय
गाणपत्य सम्प्रदाय गाणपत्य सम्प्रदाय
गाणपत्य सम्प्रदाय
 
Teaching of bhagvatgita
Teaching of bhagvatgitaTeaching of bhagvatgita
Teaching of bhagvatgita
 
अवतारवाद
अवतारवाद  अवतारवाद
अवतारवाद
 
Early and later vaidik religion
Early and later vaidik religionEarly and later vaidik religion
Early and later vaidik religion
 
Jivan jhaanki
Jivan jhaankiJivan jhaanki
Jivan jhaanki
 
Religion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodReligion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic period
 
Bhagat singh
Bhagat singhBhagat singh
Bhagat singh
 
प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ
 
Purusharth paramdev
Purusharth paramdevPurusharth paramdev
Purusharth paramdev
 
JivanRasayan
JivanRasayanJivanRasayan
JivanRasayan
 

Semelhante a Ansh anshi principle (20)

ध्यान ही बीज है
ध्यान ही बीज हैध्यान ही बीज है
ध्यान ही बीज है
 
Geeta
GeetaGeeta
Geeta
 
Antar shanti ki awaaz stillness speaks in hindi (hindi edition)
Antar shanti ki awaaz   stillness speaks in hindi (hindi edition)Antar shanti ki awaaz   stillness speaks in hindi (hindi edition)
Antar shanti ki awaaz stillness speaks in hindi (hindi edition)
 
Nirbhaya naad
Nirbhaya naadNirbhaya naad
Nirbhaya naad
 
NirbhayaNaad
NirbhayaNaadNirbhayaNaad
NirbhayaNaad
 
Chhand 14-17
Chhand 14-17Chhand 14-17
Chhand 14-17
 
JivanJhaanki
JivanJhaankiJivanJhaanki
JivanJhaanki
 
Ananya yog
Ananya yogAnanya yog
Ananya yog
 
IshvarKiOr
IshvarKiOrIshvarKiOr
IshvarKiOr
 
JoJagatHaiSoPavatHai
JoJagatHaiSoPavatHaiJoJagatHaiSoPavatHai
JoJagatHaiSoPavatHai
 
Jo jagathaisopavathai
Jo jagathaisopavathaiJo jagathaisopavathai
Jo jagathaisopavathai
 
विषय मनसा शक्ति.pdf
विषय मनसा शक्ति.pdfविषय मनसा शक्ति.pdf
विषय मनसा शक्ति.pdf
 
Purusharth paramdev
Purusharth paramdevPurusharth paramdev
Purusharth paramdev
 
AmritkeGhoont
AmritkeGhoontAmritkeGhoont
AmritkeGhoont
 
Amritke ghoont
Amritke ghoontAmritke ghoont
Amritke ghoont
 
Happiness -प्र्सन्नता
Happiness -प्र्सन्नता Happiness -प्र्सन्नता
Happiness -प्र्सन्नता
 
नैतिकता_का_सुख_Joy_of_Ethics_हिंदी.pdf
नैतिकता_का_सुख_Joy_of_Ethics_हिंदी.pdfनैतिकता_का_सुख_Joy_of_Ethics_हिंदी.pdf
नैतिकता_का_सुख_Joy_of_Ethics_हिंदी.pdf
 
Iswar ki aor
Iswar ki aorIswar ki aor
Iswar ki aor
 
Gunsthan 3 - 6
Gunsthan 3 - 6Gunsthan 3 - 6
Gunsthan 3 - 6
 
MuktiKaSahajMarg
MuktiKaSahajMargMuktiKaSahajMarg
MuktiKaSahajMarg
 

Ansh anshi principle

  • 1. जीवन की Ultimate बैचेनी सारी खुशियााँ, सब जरुरते, सब इच्छायेंपूरी होनेके बाद भी जीवन में अधुरापन, अकेलापन, सूनापन, अिाांतत बनी रहती है– खोज-खोज कर भी बन्दा परेिान रहता हैककन्तुअसली कारण ढूांढ ही नहीांपाता।
  • 2. जीवात्मा की बेचैनी का आखखरी (Ultimate) कारण • तुलसीदास, बबल्वामांगल जैसेमहान सांत ररवाजी इश्क मेंअपनी बैचेनी का हल (solution) ढूांढतेरहे, लेककन तनराकार नेउन्ही स्त्रीयों के घट मेंबैठकर ततरस्त्कार और धधक्कारपूणण(भयानक) वचन द्वारा उनकी बैचेनी का Real कारण बताया और उनका मागण-दिणन परमात्म-मागणददखा कर ककया। • हम सब जन्म लेनेसेपहलेगभाणवस्त्था के दौरान भगवान सेएक प्रतत्ा करतेहै कक “मैजन्म लेनेके बाद आपको कभी भी नहीांभूलूांगा और सांसार मेंन फ़ांसकर जीवन्मुक्त बनकर लौटूांगा”। लेककन ऐसा होता नहीांहै। जन्म लेनेके बाद हम तन में, मन मेंफ़ांस जातेहै, माया की ववधचर िक्क्त हमेंसब भुलावा देदेती है। ककन्तु जीवन मेंजब सब इच्छायें, भोग आदद सब चुक लेतेहै, तब वही परमात्मा को ददया हुआ वचन इस ववधचर बेचैनी के रूपणमेंउभर कर आता हैऔर हमेंददन-रात कचौटता है। (गभणउपतनषद) • यह बेचैनी आध्याक्त्मक प्रकार की होती है, ना कक मानशसक या मनोवै्ातनक प्रकार की। कोई भी प्रकार की साांसाररक दवा इस बेचैनी को ठीक न कर पायेगी। यह बेचैनी कारण- िरीर मेंवास करती है।
  • 3. अांि-अांिी का शसद्धान्त (गीता 4/5-6, 15/6) • यह बेचैनी हैअांि की अपनेअांिी सेशमलनेके शलये। इसी शसद्धान्त के अनुसार सांसार का कोई भी जीव, वविेषकर मनुष्य हमेिा परमात्मा की और जायेगा क्योंकक की वह उसका अांि है। • यही बेचैनी नदी को सागर सेशमलनेके शलयेउत्सादहत करती है। अक्नन कहीांभी हो वो हमेिा ऊपर सूयण की ओर अग्रसर होता है क्योंकक वह सूयण का अांि है, उसी प्रकार शमट्टी को ऊपर फ़ेंकने पर वह नीचेही आता है क्योंकक वह पृथ्वी का अांि है (गुरुत्वाकषणण का तनयम बाद में आया और हजारो साल पहले यह वेद में शलखा हुआ आया की अांि हमेिा अांिी की ओर जायेगा) उसी प्रकार हवा हमेिा आकाि मेंचारो ओर फ़ैलेगा क्योंकक वह उसका अांि है। • गीता 15/6 – अांि की अांिी की ओर गतत होती हैऔर जब अांि अांिी सेदूर होता जाता है, तब प्रवृतत होती है। प्रवृतत सांसार की तरफ़ होती है, उसमेंपररश्रम, उधोग और कताणपना होता है, जबकक गतत मेंपररश्रम नहीांहोता, केवल उद्धेश्य होता है, गतत परमात्मा की तरफ़ होती है। गतत=उध्वणगतत, असीम की ओर; प्रवृतत=अधोगतत, सीशमत की ओर। अहांकार आदद ववकार = प्रवृतत; दैवीभाव, श्रद्धाभाव, िरणागत भाव = गतत।
  • 4. अद्भुत-अखूट बेचैनी का ईलाज • तब यदद सत्गुरु प्रकट अवस्त्था मेंशमलेऔर स्त्वयांका वववेक भी सुजाग हो, बुद्धध जड़ता को प्राप्त न कर गई हो, तो ही यह रहस्त्य खुल पाता है, वरना जीवात्मा यूाँही देह छोड़ देता है, ककन्तुउन आखखरी क्षणो मेंउसको यह परमात्मा सेककया हुआ कौल जरुर याद आ जाता है, और अपनेअसन्तोष का कारण भी वह जान जाता है। मगर अफ़सोस कक तब तक वह कुछ करनेकी हालत मेनहीांरहता, ठीक उसी तरह जैसे गभाणवस्त्था के दौरान Helpless था और परमात्मा ही उसकी रक्षा करतेथे। • इस तरह जन्म-दर-जन्म यह Same कहानी दोहरायी जाती है। • जब वववेक भी ्ान उठानेमें, रहणी मेंउतारनेमेंएक हद के बाद न साथ देसके, तब ऐसेबन्देको सत्गुरु-िरण मेंअपने-आपको तन+मन सेजुट जाना चादहये। कोरे दिणन से, दृक्ष्टपात से, गुरु सेभीख माांगतेरहनेसेकाम न बने। काम बनेउन छोटे- छोटेकदमो पर चलनेसेजो गुरु नेवाणी द्वारा मन्र के रूप मेंबतायेहै। घड़ी-घड़ी, हर-घड़ी दीन भाव से, नम्र भाव से, बालक भाव से(ना कक ‘दादा’ भाव से) लगा ही रहे – “ और काज तेरेकतई न काम, शमल साध-सांगत भज केवल राम”।
  • 5. हरर ही हैदासों का भी दास • कबीर हरी सबकांूभजे, हरी को भजे ना कोई । जब लग आस िरीर की, तब लधग दास ना होई ॥ • आपको पता होगा कक हरी हमको एक ददन के २४ घन्टों में २१,६१२ बार भजता है, याने उतने सासांहम एक ददन में लेते है, और हर सासांमें ‘सोहम’ की ध्वतन से वो हमको भजता है । और ककतने िमण की बात है कक हम एक ददन तो क्या उसकी कभी भी याद तक नहीां करते, िुक्रगुजारी तो बहुत दूर की बात है । और उसे भजने की बात तो असम्भव सी ही रहती है । कारण? हम िरीर और इसकी माया की गुलामी में इतने बेहोिांहुये रहते है । और एक ददन हरी हमको भजना बन्द कर देता है, ये कठ्पुतली िाांत हो जाती है । वैसे ऊपर शलखा कक हम सान्स लेते है, वो गलत बात है, हम सान्स नहीां लेते, वो तो आपोआप चलता है । और जो काम आपोआप होता है वो ही तो राम करते है हमारे भीतर बैठ कर । बडे बडे और भी काम करते है ये रामजी हमारे अन्दर बैठे बैठे । कहाां तक धगनायें…और हम सोचते है कक हम खाते है, हजम करते है, दौडतेहै, हमारी बुद्धध में इतनी िक्क्त है, ऐसी प्रचन्ड है, इत्यादद । लेककन वो तो सब अन्दर में बैठे रामजी ही कर रहे है, और हम फालतू में ही अहम में मरे जाते है । ये तो वैसी कहानी हुई जैसे गाडी के नीचे चलता हुआ कुत्ता ये मानता है कक गाडी वो ही हाकांरहा है ।
  • 6. करना क्या है? वो बताओ – Actionable Points • पूरेऔर Full-time गुरु-वचनो के मांथन मेंरहनेसेअनुभव, आपको शमलने लग सांकेत, इष्ट के आदेि ददन पेंगे। जो आत्मा प्रसुप्त है, तटस्त्थ है, जागतृहोनेलगेगी और एकूरी तरह भी जाग जाएगी। • यदद जीतेजी आत्म-जागरण नहीांहुआ तो भी कफ़क्र नहीांहै, क्रम-मुक्क्त के मागणशमल मजांक्ातजेलहैऔकोरअअवगश्यलेप्रजाप्न्तमकमरेंजताीवहन्ीमहै।ुक्क्पतहलशमालकदहमी जबातढ़ाीनहेै।वाजलोाचहली दपड़ा है, एक ददनहैसूरा कदम उठा पाता , खड़ेरहनेवाला नहीां। • न यह आत्मा प्रवचन से प्राप्त होती है, न ववशिष्ट बुद्धध से प्राप्त होती है, न बहुत सुनने-समझने से प्राप्त होती है, ना आपस के Discussions सेप्राप्त होती है। हवोहतता ोहगै औुरु करे वपचल्लनाो तकभा पी ल्पलकाड़पगेका ड़जनबेसकके, उ एनककेम तानर दपेिरनम तमत्ें वचलपरकमरा त्उमसाे मप्राप्त करनाऔर तत्वदिी सद् गें श्रद्धा हो ुरु प्रकट रूप मेंउपलब्ध हों। इसीशलयेसत्सांगीयों को Encourage करनेक शलयेउन्हे‘सांत’ कहतेहै। • ससांांतस ारक ाम ें मभतील उबस जकोी सप्र्ांतुशाल गतज हबो कगीय ाह।ै . , सप्रांत् ाजवोा नभहीतै र. अकना ुभभवी ्ककान पराँूजखीतहाै औहै रब ाहर प्रअ्पना ीकमी पाँूजी है। दो हाथ इसीशलयेतो है– एक मेंइहलोक और दसूरेमेंपरलोक कोुठ्ठी मेंरखना आना चादहये।
  • 7. अांि-अांिी के ववषय पर उपयुक्त कबीर वाणी हम न मरैं, मररहेंसांसारा। हम कांूशमला क्जयावनहारा।। अब न मरूाँ मरनै मन माना। तेई मुए क्जन राम न जाना।। साकत मरैंसांत जन जीवैं। भरर भरर राम रसायन पीवैं।। हरर मररहैंतो हमहूाँमररहैं। हरर न मरैंहम काहे काँूमररहै।। कहैंकबीर मन मनदह शमलावा। अमर भये सुख सागर पावा।। गुरु शमले िीतल भया, शमटी मोह तन ताप। तनिु बासर सुख-तनधध लहौं, अन्तर प्रगटे आप।। िब्द सुरतत और तनरतत, ये कदहबे को हैंतीन। तनरतत लौदट सुरतदहांशमली, सुरतत िबद मेंलीन।। सुरतत समानी तनरतत में, अजपा माहीांजाप। लेख समाना अलेख में, आपा माहीांआप।। सुरतत समानी तनरतत में, तनरतत रही तनरधार। सुरतत तनरतत पररचय भया, तब खुला शसधांदवुार।।