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सामाजिक न्याय हेतु सकारात्मक कार्यवाही
द्वारा - डॉ. ममता उपाध्याय
प्रोफ
े सर, राजनीति विज्ञान
क
ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बादलपुर, गौतम बुध नगर, उत्तर प्रदेश
उद्देश्य-
● जातिगत विविधता पर आधारित भारतीय समाज की पारंपरिक संरचना का ज्ञान।
● समाज क
े कमजोर वर्गों क
े संरक्षण हेतु भारतीय संविधान द्वारा किए गए प्रावधानों
का ज्ञान।
● अवसर की समानता क
े साथ सामाजिक न्याय हेतु सकारात्मक कार्यवाही संबंधी
विभिन्न पहलुओं की जानकारी।
● भारत में आरक्षण संबंधी मुद्दों की जानकारी।
● सामाजिक न्याय की दिशा में अभिप्रेरित संवेदनशील व्यक्तित्व का विकास।
● सकारात्मक कार्यवाही संबंधी पहलुओं क
े वस्तुनिष्ठ एवं निष्पक्ष विवेचन की
क्षमता का विकास।
मानव सभ्यता का तकाजा यह है कि समाज में रहने वाले सभी समूह एवं वर्गों क
े
व्यक्तियों को उनक
े मूलभूत अधिकार एवं गरिमा पूर्ण जीवन जीने लायक परिस्थितियां
उपलब्ध हों । आधुनिक लोकतंत्र इसे स्वतंत्रता , समानता और बंधुत्व क
े आदर्श में
समाहित करता है और इसे सामाजिक न्याय क
े रूप में परिभाषित करता है। विचारधारा
की दृष्टि से समाजवाद एक समता पूर्ण और न्याय पूर्ण समाज की स्थापना का सबसे
बड़ा पक्षधर माना जाता रहा है, किं तु राजनीतिक व्यवस्था चाहे कोई भी हो, मानवीय
मूल्यों एवं गरिमा की सुरक्षा की अपेक्षा सभी से की जाती है। यही कारण है कि बीसवीं
शताब्दी में जब वैश्विक स्तर पर पूंजीवादी लोकतंत्र को समाजवाद से चुनौती मिल रही थी,
उसने लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा क
े अंतर्गत समाज क
े हाशिए पर रहने वाले
लोगों क
े लिए कल्याणकारी परिस्थितियां उपलब्ध कराना राज्य की आवश्यक जिम्मेदारी
घोषित की और इसक
े तहत गरीबों एवं मजदूरों क
े लिए कल्याणकारी योजनाएं ,कार्यक्रम
एवं नीतियां बनाई गई। पश्चिम में सामाजिक न्याय की अवधारणा को समसामयिक दौर
में परिभाषित करने वाले विद्वानों जॉन रॉल्स एवं अमर्त्य सेन ने अवसर की समानता
एवं सक्षमता सिद्धांत क
े माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त किए जाने क
े सुझाव दिए।
समसामयिक नव उदारवादी बाजार अर्थव्यवस्था क
े सिद्धांतों को तर्क संगत बताने वाले
अर्थशास्त्रियों हाइक एवं रॉबर्ट नोजिक ने भी स्वतंत्र बाजार का लाभ गरीबों को मिलने का
तर्क देने क
े बावजूद राज्य द्वारा गरीबों क
े संरक्षण में कदम उठाए जाने की बात स्वीकार
की है।
दुनिया क
े सभी समाजों में पारंपरिक रूप से क
ु छ ऐसे वर्ग अवश्य रहे हैं जो इतिहास में
उनक
े साथ हुए अन्याय एवं अन्य कारणों से सामाजिक, सांस्कृ तिक, शैक्षणिक और
आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। उनक
े साथ हुए अन्याय को दूर करने हेतु तथा उन्हें भी राष्ट्र
की मुख्यधारा में सम्मिलित करने क
े उद्देश्य से प्रत्येक राज्य क
े द्वारा ऐसे वर्गों क
े लिए
क
ु छ विशेष उपाय किए जाते हैं, उनक
े हित में नीतियां बनाई जाती हैं जो ऊपरी तौर पर
भेदभाव मूलक प्रतीत होती हैं, किं तु ऐसे वर्गों क
े उत्थान क
े लिए आवश्यक होती हैं। राज्य
द्वारा किए गए ऐसे प्रयत्नों को सकारात्मक कार्यवाही की संज्ञा दी जाती है। संयुक्त
राज्य अमेरिका में प्रजातिगत आधार पर अफ्रीकी अमेरिकी लोगों जिनक
े पूर्वजों को दास
बनाकर लाया गया था, को राजकीय नीतियों क
े द्वारा विशेष संरक्षण दिया जाता है। कई
देशों जैसे- मलेशिया मे मूलनिवासी मलय लोगों क
े साथ राज्य का संरक्षण युक्त
व्यवहार होता है क्योंकि अन्य नागरिकों जिनमें भारतीय और चीनी मूल क
े लोग हैं, की
तुलना में वे आर्थिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं। ‘एफर्मेटिव एक्शन अराउंड द वर्ल्ड’
क
े लेखक थॉमस सॉवेल का अवलोकन है कि सकारात्मक कार्यवाही से संबंधित प्रावधान
दुनिया भर में एक छोटे से समूह क
े लिए क
ु छ समय क
े लिए बनाए गए थे, किं तु उनका
समय का दायरा बढ़ता जा रहा है क्योंकि नए-नए समूह विशेष अधिकारों की मांग करने
लगे हैं और सकारात्मक कार्यवाही संबंधी प्रावधानों को स्थाई बनाने क
े प्रयत्नों में जुटे
हुए हैं। 1949 में भारतीय संविधान द्वारा दलित वर्ग क
े लिए आरक्षण की व्यवस्था 10
वर्षों क
े लिए की गई थी, किं तु आज आरक्षण की मांग क
े दायरे में 60% से अधिक
जनसंख्या आ चुकी है। 95% से ऊपर दक्षिण अफ्रीका क
े लोग किसी न किसी रूप में
संरक्षण कारी नीतियों से आच्छादित है। सकारात्मक कार्यवाही का एक अन्य पहलू यह है
कि यद्यपि वंचित समूह अभी भी बहुत लाभ की स्थिति में नहीं है, किं तु इन समूहों क
े
क
ु छ व्यक्ति अवश्य इन प्रावधानों का लाभ उठाकर अपनी स्थिति को अच्छा बनाने में
सफल हुए हैं । अमेरिका का व्यापार कानून सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूह
का पक्ष लेता है, किं तु इस समूह क
े क
ु छ व्यक्ति औसत अमेरिकी परिवारों से कहीं ज्यादा
धनवान है, फिर भी अपनी त्वचा क
े रंग क
े कारण वंचित समूह क
े अंतर्गत आते हैं । इस
संबंध में क
ु छ व्यक्तियों का तर्क यह है कि संरक्षण वादी नीतियों का लाभ वंचित समूह में
उन्हीं को मिलना चाहिए जो वास्तव में गरीब है, न कि जातिगत या प्रजातिगत आधार
पर । पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा यद्यपि वे सकारात्मक कार्यवाही क
े पक्षधर
थे, ने भी एक बार कहा था कि ‘’ मेरी बच्चियों क
े साथ यदि प्रजातिगत आधार पर गरीब
श्वेत वर्ण बच्चों की तुलना में संरक्षण युक्त व्यवहार किया जाता है, तो यह नितांत गलत
होगा। ‘’
भारत में सकारात्मक कार्यवाही
भारतीय समाज एक प्राचीन, किं तु पारंपरिक समाज रहा है जिसे आधुनिक राष्ट्र क
े रूप में
निर्मित करना स्वतंत्र भारत क
े संविधान निर्माताओं एवं राजनीतिक व्यवस्था क
े धारकों
क
े सम्मुख एक गंभीर चुनौती रही है। बहु धार्मिक, बहु भाषाई और बहु सांस्कृ तिक राष्ट्र
जाति-व्यवस्था क
े पद -सोपान पर आधारित रहा है, जिसमें निचले पायदान पर मौजूद
जातियों को अतीत में असमानता एवं अन्याय झेलना पड़ा है। यह जातियां सामान्य रूप से
घृणित पेशे अपनाती रही हैं । दूसरी तरफ ऐसे जनसमूह भी हैं, जो पारंपरिक रूप से
जंगलों में रहने क
े कारण सभ्यता गत विकास से वंचित रहे हैं। भारतीय संविधान में ऐसे
समूहों को अनुसूचित जाति और जनजाति का दर्जा दिया गया है और इनक
े उत्थान क
े
लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। भारत में वंचित समूह में अनुसूचित जाति, जनजाति,
पिछड़ा वर्ग, महिलाएं एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आते है। राजनीति विज्ञान कोश
क
े अनुसार पिछड़े हुए वर्गों का अभिप्राय समाज क
े उस वर्ग से है जो आर्थिक, सामाजिक
तथा शैक्षणिक निर्योग्यता ओं क
े कारण समाज क
े अन्य वर्गों की तुलना में निचले स्तर
पर हो।
वंचित वर्गों क
े लिए संवैधानिक प्रावधान एवं आरक्षण की सुविधा-
भारतीय संविधान द्वारा विभिन्न वंचित वर्गों क
े लिए पृथक - पृथक प्रावधान किए गए
हैं- जिन का विवेचन निम्न वत है-
● अनुसूचित जाति और जनजाति क
े लिए प्रावधान-
अनुसूचित जातियों और जनजातियों हेतु विशेष संरक्षण का प्रारंभ संविधान
निर्माण से पूर्व ही हो चुका था जब ‘पूना पैक्ट’ क
े माध्यम से महात्मा गांधी और
भीमराव अंबेडकर इस बात पर सहमत हुए थे कि प्रतिनिधि संस्थाओं में इनक
े लिए
स्थानों का आरक्षण होना चाहिए। 1935 क
े भारतीय शासन अधिनियम द्वारा इस
तरह क
े आरक्षण को वैधानिक रूप प्रदान किया गया। संविधान सभा में भी
अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व था जो प्रांतीय विधानसभाओं में चुनकर आए
थे और संविधान सभा का गठन प्रांतीय विधानसभाओं क
े सदस्यों से मिलकर ही
हुआ था । संविधान सभा ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया कि अनुसूचित
जाति और जनजातियों क
े लिए लोक संस्थाओं में स्थान आरक्षित होने चाहिए।
परिणामतः संविधान क
े अनुच्छेद 15 और 16 में इनक
े लिए आरक्षण क
े प्रावधान
किए गए जो 1950 में संविधान क
े लागू होने क
े साथ प्रभावी हुए । 1947 में ही यह
निश्चित कर लिया गया था कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों क
े लिए
आरक्षण की व्यवस्था प्रतिनिधि संस्थाओं क
े साथ रोजगार में भी हो। 1954 में
इसका विस्तार करते हुए शैक्षणिक संस्थानों में भी प्रवेश हेतु आरक्षण की व्यवस्था
की गई और उच्च शिक्षण संस्थानों में 22.5 प्रतिशत स्थानों का आरक्षण
अनुसूचित जाति और जनजाति क
े प्रवेशार्थियों क
े लिए किया गया। स्थान
आरक्षण का तात्पर्य है कि उन सीटों पर क
े वल उसी वर्ग क
े अभ्यर्थियों का चयन
किया जाएगा जिनक
े लिए यह व्यवस्था की गई है।
संविधान क
े अनुच्छेद 17 क
े द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है और किसी
भी प्रकार का छ
ु आछ
ू त का व्यवहार दंडनीय अपराध घोषित किया गया है ।
अनुच्छेद 15 क
े माध्यम से सामाजिक समानता की स्थापना की गई है जिसक
े
अनुसार राज्य किसी व्यक्ति क
े साथ क
े वल धर्म, वंश ,जाति , लिंग , जन्म स्थान
आदि क
े आधार पर भेदभाव नहीं करेगा और न ही सार्वजनिक स्थानों में नागरिकों
क
े द्वारा आपस में इन आधारों पर किसी तरह का भेद पूर्ण व्यवहार किया जाएगा।
अनुच्छेद 19 [ 5 ] क
े अनुसार आदिम जनजातियों क
े हितों की रक्षा क
े लिए
नागरिकों क
े भ्रमण की स्वतंत्रता क
े अधिकार को सीमित किया जा सकता है।
आदिम जनजाति क
े लोग एक पृथक समुदाय हैं जिनकी अपनी अलग सांस्कृ तिक
परंपराएं हैं, जिन्हे सुरक्षित रखने क
े लिए यह प्रावधान किए गए हैं। निर्देशक तत्वों
क
े अंतर्गत अनुच्छेद 46 क
े माध्यम से राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह
अनुसूचित जातियों और जनजातियों की शिक्षा तथा आर्थिक हितों की रक्षा क
े लिए
संरक्षण कारी प्रावधान करे। लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभा में अनुसूचित
जातियों और जनजातियों क
े लिए स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई थी।
प्रारंभ में यह व्यवस्था 25 जनवरी 1960 तक क
े लिए थी, किं तु बार-बार संविधान
में संशोधन करक
े इसकी सीमा को बढ़ाया जाता रहा । संविधान क
े 126 वे संशोधन
अधिनियम 2019 क
े अनुसार आरक्षण की व्यवस्था अगले 10 वर्षों क
े लिए पुनः
बढ़ा दी गई है। हालांकि इस अधिनियम ने लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय क
े
2 सदस्यों क
े मनोनयन की व्यवस्था को समाप्त कर दिया। परिसीमन आयोग क
े
एक आदेश [ 2008] क
े अनुसार वर्तमान समय में लोकसभा में अनुसूचित जातियों
क
े लिए 84 और जनजातियों क
े लिए 47 स्थान आरक्षित है।
संविधान क
े अनुच्छेद 335 क
े अनुसार क
ें द्र तथा
राज्य सरकारों की सेवाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को समुचित
प्रतिनिधित्व प्रदान करने का आश्वासन दिया गया और उनक
े लिए क
ु छ रियायतेँ
प्रदान की गई। जैसे- आयु सीमा में छ
ू ट, योग्यता स्तर में छ
ू ट, कार्यक
ु शलता का
निम्न स्तर पूरा करने पर ही इनका चयन , नीचे की श्रेणियों में उनकी नियुक्ति
और पदोन्नति क
े विशेष प्रबंध। अखिल भारतीय सेवाओं में भी जहां खुली
प्रतियोगिता क
े आधार पर नियुक्ति होती है, अनुसूचित जातियों क
े लिए 15% तथा
जनजातियों क
े लिए 7.5% स्थान आरक्षित किए गए हैं ।
अनुच्छेद 275 क
े अनुसार अनुसूचित जातियों क
े
विकास क
े लिए बनाई गई योजनाओं को पूरा करने क
े लिए राज्य सरकारों को विशेष
अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। इस वर्ग क
े विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दिए जाने,
निशुल्क शिक्षा देने तथा प्राविधिक एवं व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों में भी स्थान
आरक्षित रखने क
े प्रावधान किए गए हैं।
● अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों क
े लिए क
ु छ महत्वपूर्ण योजनाएं-
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय क
े द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति क
े
सामाजिक आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने हेतु अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं।
जैसे- उच्च शिक्षा में फ
ै लोशिप, निशुल्क कोचिंग सुविधा, सफाई कर्मचारियों क
े लिए
स्वरोजगार शुरू करने हेतु अनुदान, इन वर्गों क
े लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों
को अनुदान, विदेशों में पढ़ाई क
े लिए ब्याज पर सब्सिडी युक्त ऋण की सुविधा, प्रधानमंत्री
दक्षता और क
ु शलता संपन्न हितग्राही योजना, नेशनल शेड्यूल कास्ट फाइनेंस एंड
डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की स्थापना आदि। इसक
े अतिरिक्त इन वर्गों क
े सामाजिक हितों
की सुरक्षा क
े लिए नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम ,1955 एवं अनुसूचित जाति
संरक्षण अधिनियम, 1989 क
े समुचित क्रियान्वयन पर जोर दिया जा रहा है।
2. पिछड़े वर्ग क
े कल्याण क
े लिए की गई व्यवस्थायें एवं आरक्षण की सुविधा-
सामाजिक शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों क
े लिए आरक्षण सहित
सकारात्मक कार्यवाही की शुरुआत 1953 में हुई जब गांधीवादी विचारक काका कालेलकर
की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा जाति आयोग का गठन किया गया, जिस ने 30 मार्च
1955 को अपनी रिपोर्ट में 2399 पिछड़ी जातियों की पहचान की तथा स्त्रियों को भी
पिछड़ी जाति में रखने की सिफारिश की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में प्रथम श्रेणी की
सरकारी नौकरियों में 25% द्वितीय श्रेणी ने 33% और तृतीय श्रेणी में 40% स्थान
पिछड़ी जाति क
े लिए आरक्षित करने की बात कही। किं तु आयोग क
े सात में से 3
सदस्यों ने इस बात पर असहमति व्यक्त की कि जातीयता पिछड़ेपन का आधार है ।
पारस्परिक सहमति क
े अभाव में इस आयोग की सिफारिशें प्रभावी नहीं हो सकी और
राज्य सरकारों ने इस संबंध में अपने-अपने आयोग नियुक्त किए जिन की सिफारिशों क
े
आधार पर पिछड़े वर्गों क
े लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई । किं तु राज्यों द्वारा की गई
इन व्यवस्थाओं में अनेक विसंगतियां पाई गई। क
ु छ राज्यों में जैसे कर्नाटक में 48%
क
े रल में 30% और तमिलनाडु में 50% स्थान पिछड़े वर्ग क
े लिए आरक्षित किए गए, तो
दूसरी और बहुत से ऐसे राज्य थे जहां इनक
े लिए आरक्षण की बिल्क
ु ल व्यवस्था नहीं थी
जैसे पंजाब ,राजस्थान ,उड़ीसा और दिल्ली।
पिछड़े वर्ग को आरक्षण प्रदान करने हेतु क
ें द्र सरकार द्वारा
दूसरा महत्वपूर्ण प्रयास 1978 में किया गया जब बिहार क
े भूतपूर्व मुख्यमंत्री बी..पी..
मंडल की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग का गठन किया गया। 31 दिसंबर 1980 को
दी गई अपनी रिपोर्ट में आयोग ने स्पष्ट किया कि जाति हिंदू समाज रचना की
आधारशिला है। हिंदू धर्म क
े अलावा अन्य धर्मों की क
ु ल 3743 पिछड़ी जातियों को
चिन्हित किया गया और देश भर में इनकी संख्या क
ु ल आबादी का 54% बताया गया।
आयोग की मुख्य सिफारिश यह थी कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में
पिछड़ी जाति क
े लोगों क
े लिए 27% सीटें आरक्षित की जाए । आयोग का तर्क था कि यदि
22.5 प्रतिशत जनसंख्या वाले अनुसूचित जाति और जनजाति क
े व्यक्तियों क
े लिए उतने
ही प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था हो सकती है तो 54% पिछड़ी जातियों क
े लिए 27%
आरक्षण की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती । ऐसा करने से हजारों वर्षों से दलित और
शोषित जनता को मनोवैज्ञानिक सहारा प्राप्त होगा। 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने
अपने घोषणा - पत्र क
े अनुसार ‘मंडल आयोग’ की सिफारिशों को लागू कर दिया जिसका
प्रचंड विरोध हुआ ।
● संपन्न वर्ग या क्रीमी लेयर की व्यवस्था -
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव क
े नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने पिछड़े वर्ग क
े आरक्षण
की व्यवस्था को संशोधित करते हुए यह व्यवस्था दी कि भारत सरकार क
े अधीन
नागरिक पदों और सेवाओं में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों क
े लिए
आरक्षित 27% स्थानों में वरीयता उन उम्मीदवारों को दी जाएगी जो सामाजिक
और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग में अधिक गरीब है। यहीं से क्रीमी लेयर की
अवधारणा विकसित हुई। यह व्यवस्था दी गई निम्नांकित पदों पर कार्यरत
व्यक्तियों की संतानों को आरक्षण का यह लाभ प्राप्त नहीं होगा।
1. भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय क
े
न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग, राज्य सेवा आयोग क
े अध्यक्ष तथा सदस्य,
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और भारत क
े नियंत्रक और महालेखा परीक्षक।
2. माता-पिता में से कोई एक प्रथम श्रेणी का राजपत्रित अधिकारी हो ।
3. दोनों अभिभावक द्वितीय श्रेणी क
े अधिकारी हो।
4. अभिभावकों में से कोई एक या दोनों सेना में कर्नल या उससे ऊपर क
े पद पर
,नौसेना ,वायु सेना ,अर्धसैनिक बलों में इन पदों क
े समकक्ष पदों पर हो।
5. जिन परिवारों क
े पास भूमि सीमा कानून क
े अंतर्गत सिंचित भूमि का 85
प्रतिशत या उससे अधिक भाग हो।
6. जिन व्यक्तियों की सकल वार्षिक आय ढाई लाख रुपए से ज्यादा हो। वर्तमान
में यह आय सीमा ₹800000 वार्षिक है।
इसक
े अतिरिक्त सरकारी नौकरियों में क
ु छ रियायतें भी इन्हें प्रदान की गई । जैसे
आयु सीमा में 3 वर्ष की ढील एवं सिविल सेवाओं संबंधी प्रतियोगी परीक्षाओं में
बैठने क
े लिए अवसरों की संख्या बढ़ाकर सात किए जाने संबंधी प्रावधान किए
गए।
आरक्षण संबंधी विवाद-
मंडल कमीशन की रिपोर्ट क
े क्रियान्वयन ने देशभर में हिंसक विरोध को जन्म
दिया, विशेष रूप से उत्तरी भारत में। न्यायालयों में कमीशन की रिपोर्ट को चुनौती
देते हुए कई याचिकाएं दाखिल की गई। इन सभी याचिकाओं का संज्ञान लेते हुए
सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में ‘इंदिरा साहनी बनाम भारतीय संघ’ क
े विवाद में
कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने क
े सरकार क
े निर्णय को क
ु छ शर्तों क
े साथ
मंजूरी दी। शर्त यह थी कि क्रीमी लेयर में आने वाली पिछड़ी जातियों को आरक्षण
का लाभ नहीं मिलेगा। क्रीमी लेयर की आय सीमा समय-समय पर भारत सरकार
क
े द्वारा परिवर्तित की जा सक
े गी। अर्थात ओबीसी आरक्षण क्रीमी लेयर में न
आने वाली पिछड़ी जातियों को ही प्राप्त होगा। दूसरे क
ु ल आरक्षित पद 50% से
अधिक नहीं हो सकते। 2006 में यूपीए - 1 सरकार ने ओबीसी क
े आरक्षण का
दायरा क
ें द्र सरकार क
े शैक्षिक संस्थानों तक बढ़ा दिया।
● राज्यों में ओबीसी आरक्षण -
‘काका कालेलकर कमीशन’ की सिफारिशों को लागू करने क
े क्षेत्र में विभिन्न
राज्य सरकारों ने विशेषकर दक्षिण भारतीय सरकारों ने पिछड़ी जातियों को
चिन्हित करने क
े लिए और उन्हें विशेष संरक्षण प्रदान करने क
े लिए
भिन्न-भिन्न आयोग नियुक्त किए। दक्षिण भारत में पेरियार क
े नेतृत्व में
द्रविड़ कड़गम आंदोलन एवं उत्तर भारत में समाजवादियों क
े द्वारा इसको
लेकर एक आंदोलन छेड़ दिया गया। उत्तर प्रदेश में हेमवती नंदन बहुगुणा
सरकार ने ‘छेदीलाल साठी आयोग’’ की नियुक्ति की । कर्पूरी ठाक
ु र नीत
जनता पार्टी की सरकार ने ‘’मुंगेरीलाल कमिशन’’ की नियुक्ति की। इन
आयोगों की सिफारिशों क
े आधार पर उत्तर प्रदेश में 1970 क
े दशक में
पिछड़ी जातियों क
े लिए आरक्षण की शुरुआत हुई। दक्षिण भारत में इसका
प्रारंभ पहले ही हो चुका था।
● कर्पूरी ठाक
ु र सूत्र-
पिछड़ी जातियों क
े आरक्षण क
े विषय में कर्पूरी ठाक
ु र क
े द्वारा क
ु छ
सीमाओं की चर्चा की गई। जैसे- ओबीसी ऐसी जातियों का समूह है जिन की सामाजिक,
आर्थिक और राजनीतिक स्थिति समान नहीं है। ओबीसी में जाट , क
ु र्मी,
यादव,वोककलिगा , गुर्जर ऐसे समुदाय है जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से अत्यधिक
प्रभावी है, जबकि दूसरी तरफ इन्हीं जातियों में ऐसे समुदाय भी हैं जो सामाजिक और
आर्थिक रूप से हाशिये पर हैं और इनका पारंपरिक व्यवसाय ‘जजमानी व्यवस्था’ से जुड़ा
हुआ है। इन्हें अति पिछड़ा वर्ग की संज्ञा दी जाती है । यद्यपि ऐसी जातियों की संख्या
अधिक है, किं तु उनका आरोप है कि पिछड़ी जातियों क
े आरक्षण का लाभ पिछड़ी जातियों
में जो संपन्न जातियां हैं उनको ही मिलता जा रहा है क्योंकि वे वर्चस्व कारी स्थिति में है
। समस्या क
े समाधान क
े लिए कर्पूरी ठाक
ु र का सूत्र यह है कि अति पिछड़ी जातियों को
आरक्षण का अत्यधिक लाभ मिल सक
े , इसक
े लिए पिछड़ी जातियों को उप वर्गों में
विभाजित कर उनक
े लिए स्थान आरक्षित किया जाना चाहिए।
4. महिलाओं क
े लिए आरक्षण -
संविधान क
े 73वें एवं 74 वे संशोधन अधिनियम, 1992,1993 क
े द्वारा स्थानीय
स्वशासन की संस्थाओं में 33% स्थान महिलाओं क
े लिए आरक्षित किए गए हैं। इससे
पूर्व महिलाओं क
े लिए प्रतिनिधि संस्थाओं में आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसे
राजनीतिक आरक्षण से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है और वे अपने लोकतांत्रिक
अधिकारों क
े प्रति सचेत हुई है । हालांकि इसका व्यावहारिक पहलू यह सामने आया है कि
अधिकांश निर्वाचित महिला प्रतिनिधि रबर स्टांप क
े रूप में कार्य कर रही हैं । उनक
े
स्थान पर उनक
े पति, भाई या पुत्र ही कार्य कर रहे हैं। हालांकि अपवाद स्वरूप क
ु छ
महिला जनप्रतिनिधियों ने अपने कार्य क
े क्षेत्र में मिसाल भी स्थापित की है। स्थानीय
संस्थाओं क
े अतिरिक्त संसद एवं राज्य विधानसभाओं में भी महिलाओं क
े राजनीतिक
प्रतिनिधित्व की मांग विभिन्न नागरिक समाज संगठनों क
े द्वारा की जाती रही है। इस
संबंध में 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में 186 मतों क
े साथ संसद में महिलाओं क
े आरक्षण
हेतु बिल पारित भी कर दिया था , किं तु लोकसभा में यह बिल आज भी लंबित है। इस
संबंध में विभिन्न राजनीतिक दलों क
े भिन्न-भिन्न विचार हैं । बहुत से दल यह मानते हैं
कि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं क
े लिए 33% स्थान आरक्षित कर देने से
पिछड़ा वर्ग क
े आरक्षण की व्यवस्था दुष्प्रभावित होगी। बहुत से राज्यों ने अपने यहां
कानून बनाकर सरकारी नौकरियों में महिलाओं क
े लिए पद आरक्षित किए हैं। इन राज्यों
में प्रमुख है- तमिलनाडु ,तेलंगाना, उत्तराखंड आदि।
5. दुर्बल आय वर्ग क
े लिए आरक्षण-
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों क
े अतिरिक्त भारत में क
ु छ जातियां ऐसी भी
हैं जो सामाजिक रूप से पिछड़ी न होते हुए भी आर्थिक रूप से गरीब हैं। आरक्षण की
जाति आधारित व्यवस्था क
े अंतर्गत उन्हें सकारात्मक कार्यवाही का लाभ नहीं मिल
सकता। ऐसे लोग सामान्यतया सवर्ण जातियों से है। भारत सरकार ने उन्हें आर्थिक रूप
से दुर्बल वर्ग क
े रूप में [ EWS] क
े रूप में चिन्हित किया है। जनवरी 2019 में इस वर्ग से
संबंधित व्यक्तियों को क
ें द्र सरकार की संस्थाओं में 10% स्थानों का आरक्षण दिया गया है
। इनक
े लिए आय सीमा ₹800000 वार्षिक रखी गई है। यह प्रावधान संविधान में 124 वां
संशोधन करक
े किया गया।
आरक्षण एक राजनीतिक हथक
ं डे क
े रूप में
सकारात्मक कार्यवाही क
े रूप में आरक्षण की व्यवस्था भारत में राजनीति का शिकार हुई
है। राजनीतिक दल अपना वोट बैंक मजबूत करने क
े लिए जहां एक ओर आरक्षण की
नीति को जारी रखने का पक्षधर बना रहता है वहीं दूसरी ओर आरक्षण का लाभ उठाने
वाले वर्गों क
े द्वारा संगठित होकर आरक्षण को निरंतर बनाए रखने हेतु राजनीतिक
सौदेबाजी की जाती है। आरक्षण की नीति का विरोध करने वाली सवर्ण जातियां संगठित
होकर इसक
े विरुद्ध आंदोलन करती है । ऐसे आंदोलन गुजरात और बिहार में प्रभावी रहे
हैं। हाल ही में हरियाणा क
े जाटों, गुजरात क
े पाटीदारों, राजस्थान क
े गुर्जरों एवं महाराष्ट्र
क
े मराठों द्वारा अपने लिए आरक्षण की मांग उठाकर आरक्षण की राजनीति को व्यापक
करने का कार्य किया गया है। राजनीतिक दल चुनाव में टिकट बांटते समय उम्मीदवारों
की जाति और उनक
े निर्वाचन क्षेत्र में जातिगत समीकरणों का बहुत ध्यान रखते हैं,अपनी
जाति में प्रभावी उम्मीदवारों को टिकट देने में दिलचस्पी दिखाते हैं ताकि उस जाति क
े
लोगों का वोट प्राप्त कर सत्ता में पहुंच सक
ें । कई बार वे अगड़ी - पिछड़ी जातियों को एक
चुनावी मंच पर लाकर उसे सामाजिक अभियांत्रिकी का नाम देते हैं। हालांकि रजनी
कोठारी जैसे विद्वान जाति क
े राजनीति करण को सकारात्मक रूप में लेते हुए उसे
लोकतंत्र का विस्तार मानते हैं। जातियों ने अपने संगठन क
े माध्यम से राजनीतिक
व्यवस्था में अपनी व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की है, जो प्रतिनिधित्व की दृष्टि से
लोकतंत्र क
े लिए एक शुभ संक
े त है। इससे सरकारों का जनाधार विस्तृत हुआ है , किं तु
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आरक्षण की राजनीति ने जातीय संघर्ष,
तनाव, टकरा हट और हिंसा को आमंत्रित किया है। इस संबंध में इंडिया टुडे का आकलन
रहा है कि ‘’ इतने वर्षों में आरक्षण से विभिन्न वर्गों में जितनी समानता आई उससे भी
कहीं ज्यादा एक तरह की विषमता भी पैदा हुई.................. यह विषमता आरक्षण की
विभिन्न श्रेणियों से लाभ उठाने वाले वर्गों की कड़ी प्रतिस्पर्धा का परिणाम
है।...................... यह स्पर्धा इस कारण है कि कम समर्थ जातियों को लगता है कि
उनसे अधिक समर्थ और सशक्त जातियां उनकी श्रेणी क
े आरक्षण की सारी मलाई बटोर
लिए जा रही हैं और उनक
े हिस्से छाछ भी नहीं आ रही है। ‘’
बहरहाल , आरक्षण संबंधी समस्या जटिल बनती जा रही है । आरक्षण का आधार क्या हो
- जातीय वर्ग?, आरक्षण की समय सीमा क्या हो ?इन प्रश्नों का उत्तर शायद कोई भी देने
क
े पक्ष में नहीं है। बिहार में जाति आधारित जनगणना क
े माध्यम से संभवत यह जानने
का प्रयास किया जाएगा कि जिन्हें अब तक पिछड़ा माना जाता रहा है, उनकी सामाजिक-
आर्थिक स्थिति में कितना और क
ै सा परिवर्तन हुआ है। जातियों क
े मध्य बढ़ता वैमनस्य
भारतीय लोकतंत्र क
े लिए चिंता का विषय है। सकारात्मक कार्यवाही तो सामाजिक न्याय
की दृष्टि से उचित है, किं तु आरक्षण से लाभान्वित जातियों द्वारा पद और प्रस्थिति को
प्राप्त कर प्रतिशोध मूलक व्यवहार कहां तक न्याय पूर्ण कहा जा सकता है। तभी तो यह
प्रश्न भी आज भारतीय राजनीति क
े समक्ष है कि संविधान ने समानता को प्रोत्साहित
किया है या नई विषमता को जन्म दिया है? यह कहा जा रहा है कि समानता को प्राप्त
करने क
े प्रयास में भारतीय संविधान का बंधुत्व का आदर्श धूमिल होता जा रहा है।
आरक्षण की नीति क
े पक्ष और विपक्ष में तर्क -
● पक्ष में तर्क -
1. आरक्षण क
े कमजोर वर्गों क
े आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है।
2. लोक सेवाओं एवं शिक्षण संस्थानों में वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।
3. इससे कमजोर वर्गों की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ी है।
4. कमजोर वर्गों की आर्थिक उन्नति संभव हो पाई है।
5. कमजोर वर्गों को भी राजनीतिक व्यवस्था में भागीदारी का अवसर मिला है।
6. कमजोर वर्गों में राजनीतिक और शैक्षणिक जागरूकता बढ़ी है।
7. कमजोर वर्ग सत्ता में भागीदारी और समान अधिकारों क
े प्रति सचेत हुआ है।
● विपक्ष में तर्क -
1. शासन और राजनीति में जातिवाद का विस्तार हुआ है।
2. अगड़ी एवं पिछड़ी जातियों क
े मध्य टकराव बढ़ा है।
3. लोक सेवाओं की गुणवत्ता में कमी आई है।
4. आरक्षण का लाभ कमजोर वर्गों में से क
ु छ ही लोगों द्वारा उठाया जा सका है, जिसक
े
कारण इन वर्गों क
े संपन्न और विपन्न लोगों क
े मध्य खाई चौड़ी हुई है।
5. आरक्षित जातियों की सूची में सम्मिलित होने क
े लिए पिछड़ी जातियों में प्रतिस्पर्धा
शुरू हुई है।
6. आरक्षण क
े कारण अवसर की समानता क
े स्थान पर परिणाम की समानता स्थापित
हुई है, जो कमजोर वर्गों क
े उत्थान की दृष्टि से भी उचित नहीं है।
7. आरक्षण क
े कारण कमजोर वर्गों की सरकार पर निर्भरता बढ़ी है , जिससे स्वतंत्र रूप
से अपनी पहल पर कार्य करने की उनकी क्षमता दुष्प्रभावित हुई है।
8. इसक
े कारण समानता स्थापित होने क
े बजाय नई विषमता पैदा हुई है।
9. सवर्ण जातियों क
े योग्य उम्मीदवारों में क
ुं ठा एवं निराशा की स्थिति बनी है।
10. अनुसूचित जातियों क
े लोग एक तरफ जाति व्यवस्था को सामाजिक जीवन का
अभिशाप मानते हैं, तो दूसरी तरफ राजनीतिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने क
े लिए जाति
आधारित आरक्षण की व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं।
11. आरक्षण की व्यवस्था का लाभ उठाकर संपन्न हो चुक
े कमजोर वर्ग क
े लोग इस
सुविधा को छोड़ना नहीं चाहते, जिसक
े कारण उन्हीं क
े वर्ग में गरीब लोगों तक इसका लाभ
नहीं पहुंच पाता।
12. आरक्षण का लाभ उठाकर उच्च पद और प्रस्थिति पर पहुंचे कमजोर वर्ग क
े लोगों
द्वारा सवर्णों क
े साथ कई बार प्रतिशोध की भावना क
े आधार पर कार्य किया जाता है, जो
एक समरसतापूर्ण समाज क
े विकास में बाधक है।
संदर्भ -
● Economist.com
● Subhash Kashyap & Vishvaprakash Gupta , Rajneeti Vigyan
Kosh
● Rajni Kothari, Caste In Indian politics,Orient Black swan, 2010
प्रश्न-
निबंधात्मक प्रश्न-
1. सामाजिक न्याय को परिभाषित करते हुए भारत में इसे प्राप्त करने क
े
मुख्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख कीजिए.
2. सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु सकारात्मक कार्यवाही क
े रूप में भारत में
आरक्षण की नीति का मूल्यांकन कीजिए.
3. आरक्षण क
े पक्ष और विपक्ष में दिए जाने वाले तर्कों का उल्लेख करते हुए
भारत में आरक्षण की राजनीति पर एक निबंध लिखिए.
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
1. भारतीय संविधान द्वारा सकारात्मक कार्यवाही क
े रूप में आरक्षण की व्यवस्था
कितने वर्षों क
े लिए की गई थी?
[ अ ] 5 वर्ष [ ब ] 10 वर्ष [ स ] 15 वर्ष [ द् ] 20 वर्ष
2. समाज क
े कमजोर वर्गों को सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने हेतु संविधान क
े किस
अनुच्छेद में प्रावधान किए हैं?
[ अ ] अनुच्छेद 15 [ ब ] अनुच्छेद 16 [ स ] अनुच्छेद 335 [ द ] उपर्युक्त सभी।
3. भारतीय संविधान में आरक्षण क
े प्रावधान का आधार निम्नांकित में से कौन सी
घटना रही है?
[ अ ] पूना पैक्ट [ ब ] गांधी इरविन समझौता [ स ] गोलमेज सम्मेलन [ द ]
माउंटबेटन योजना।
4. प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना किस वर्ष की गई थी ?
[ अ ] 1952 [ ब ] 1953 [ स ] 1950 [ द ] 1960
5. मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट किस वर्ष दी थी?
[ अ ] 1982 [ ब ] 1979 [ स ] 1978 [ द ] 1990
6. संविधान का कौन सा अनुच्छेद जनजातियों क
े हितों क
े संरक्षण हेतु स्वतंत्रता क
े
अधिकार पर समुचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार सरकार को देता है?
[ अ ] अनुच्छेद 16 [ ब ] अनुच्छेद 17 [ स ] अनुच्छेद 19 [ द ] अनुच्छेद 20
7. महिलाओं क
े लिए आरक्षण का प्रावधान संविधान क
े किस संशोधन अधिनियम क
े
माध्यम से किया गया?
[ अ ] 73 वा संशोधन [ ब ] 74वां संशोधन [ स ] उक्त दोनों [ द ] उक्त में से किसी में
नहीं।
8. ‘कर्पूरी ठाक
ु र सूत्र’ क
े अनुसार पिछड़े वर्गों क
े लिए आरक्षण की व्यवस्था किस आधार
पर की जानी चाहिए?
[ अ ] पिछड़े वर्ग की संपन्न एवं गरीब जातियों को पृथक- पृथक वर्गीकृ त करक
े क
े वल
अति पिछड़ी गरीब जातियों को ही आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
[ ब ] सभी पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
[ स ] आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़ी जाति क
े क्रीमी लेयर क
े
अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों को नहीं मिलना चाहिए।
[ द ] उपर्युक्त सभी
9. सवर्ण गरीबों क
े लिए 10% स्थानों का आरक्षण संविधान क
े किस संशोधन अधिनियम
क
े माध्यम से किया गया?
[ अ ] 125 वां संशोधन अधिनियम [ ब ] 124 वां संशोधन अधिनियम [ स ] 123 वां
संशोधन अधिनियम [ द ] 120 वा संशोधन अधिनियम
10. समाज क
े कमजोर वर्गों क
े अधिकारों की रक्षा क
े लिए भारत सरकार का कौन सा
मंत्रालय स्थापित किया गया है?
[ अ ] समाज कल्याण मंत्रालय [ ब ] सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय
[ स ] अनुसूचित जाति मंत्रालय [ द ] पिछड़ा वर्ग मंत्रालय
उत्तर- 1. ब 2. द 3. अ 4. ब 5. 6. स 7. स 8. अ 9. ब 10. ब

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सामाजिक न्याय हेतु सकारात्मक कार्यवाही.pdf

  • 1. सामाजिक न्याय हेतु सकारात्मक कार्यवाही द्वारा - डॉ. ममता उपाध्याय प्रोफ े सर, राजनीति विज्ञान क ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय बादलपुर, गौतम बुध नगर, उत्तर प्रदेश उद्देश्य- ● जातिगत विविधता पर आधारित भारतीय समाज की पारंपरिक संरचना का ज्ञान। ● समाज क े कमजोर वर्गों क े संरक्षण हेतु भारतीय संविधान द्वारा किए गए प्रावधानों का ज्ञान। ● अवसर की समानता क े साथ सामाजिक न्याय हेतु सकारात्मक कार्यवाही संबंधी विभिन्न पहलुओं की जानकारी। ● भारत में आरक्षण संबंधी मुद्दों की जानकारी। ● सामाजिक न्याय की दिशा में अभिप्रेरित संवेदनशील व्यक्तित्व का विकास। ● सकारात्मक कार्यवाही संबंधी पहलुओं क े वस्तुनिष्ठ एवं निष्पक्ष विवेचन की क्षमता का विकास। मानव सभ्यता का तकाजा यह है कि समाज में रहने वाले सभी समूह एवं वर्गों क े व्यक्तियों को उनक े मूलभूत अधिकार एवं गरिमा पूर्ण जीवन जीने लायक परिस्थितियां उपलब्ध हों । आधुनिक लोकतंत्र इसे स्वतंत्रता , समानता और बंधुत्व क े आदर्श में समाहित करता है और इसे सामाजिक न्याय क े रूप में परिभाषित करता है। विचारधारा की दृष्टि से समाजवाद एक समता पूर्ण और न्याय पूर्ण समाज की स्थापना का सबसे बड़ा पक्षधर माना जाता रहा है, किं तु राजनीतिक व्यवस्था चाहे कोई भी हो, मानवीय मूल्यों एवं गरिमा की सुरक्षा की अपेक्षा सभी से की जाती है। यही कारण है कि बीसवीं शताब्दी में जब वैश्विक स्तर पर पूंजीवादी लोकतंत्र को समाजवाद से चुनौती मिल रही थी, उसने लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा क े अंतर्गत समाज क े हाशिए पर रहने वाले लोगों क े लिए कल्याणकारी परिस्थितियां उपलब्ध कराना राज्य की आवश्यक जिम्मेदारी
  • 2. घोषित की और इसक े तहत गरीबों एवं मजदूरों क े लिए कल्याणकारी योजनाएं ,कार्यक्रम एवं नीतियां बनाई गई। पश्चिम में सामाजिक न्याय की अवधारणा को समसामयिक दौर में परिभाषित करने वाले विद्वानों जॉन रॉल्स एवं अमर्त्य सेन ने अवसर की समानता एवं सक्षमता सिद्धांत क े माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त किए जाने क े सुझाव दिए। समसामयिक नव उदारवादी बाजार अर्थव्यवस्था क े सिद्धांतों को तर्क संगत बताने वाले अर्थशास्त्रियों हाइक एवं रॉबर्ट नोजिक ने भी स्वतंत्र बाजार का लाभ गरीबों को मिलने का तर्क देने क े बावजूद राज्य द्वारा गरीबों क े संरक्षण में कदम उठाए जाने की बात स्वीकार की है। दुनिया क े सभी समाजों में पारंपरिक रूप से क ु छ ऐसे वर्ग अवश्य रहे हैं जो इतिहास में उनक े साथ हुए अन्याय एवं अन्य कारणों से सामाजिक, सांस्कृ तिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। उनक े साथ हुए अन्याय को दूर करने हेतु तथा उन्हें भी राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित करने क े उद्देश्य से प्रत्येक राज्य क े द्वारा ऐसे वर्गों क े लिए क ु छ विशेष उपाय किए जाते हैं, उनक े हित में नीतियां बनाई जाती हैं जो ऊपरी तौर पर भेदभाव मूलक प्रतीत होती हैं, किं तु ऐसे वर्गों क े उत्थान क े लिए आवश्यक होती हैं। राज्य द्वारा किए गए ऐसे प्रयत्नों को सकारात्मक कार्यवाही की संज्ञा दी जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रजातिगत आधार पर अफ्रीकी अमेरिकी लोगों जिनक े पूर्वजों को दास बनाकर लाया गया था, को राजकीय नीतियों क े द्वारा विशेष संरक्षण दिया जाता है। कई देशों जैसे- मलेशिया मे मूलनिवासी मलय लोगों क े साथ राज्य का संरक्षण युक्त व्यवहार होता है क्योंकि अन्य नागरिकों जिनमें भारतीय और चीनी मूल क े लोग हैं, की तुलना में वे आर्थिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं। ‘एफर्मेटिव एक्शन अराउंड द वर्ल्ड’ क े लेखक थॉमस सॉवेल का अवलोकन है कि सकारात्मक कार्यवाही से संबंधित प्रावधान दुनिया भर में एक छोटे से समूह क े लिए क ु छ समय क े लिए बनाए गए थे, किं तु उनका समय का दायरा बढ़ता जा रहा है क्योंकि नए-नए समूह विशेष अधिकारों की मांग करने लगे हैं और सकारात्मक कार्यवाही संबंधी प्रावधानों को स्थाई बनाने क े प्रयत्नों में जुटे हुए हैं। 1949 में भारतीय संविधान द्वारा दलित वर्ग क े लिए आरक्षण की व्यवस्था 10 वर्षों क े लिए की गई थी, किं तु आज आरक्षण की मांग क े दायरे में 60% से अधिक जनसंख्या आ चुकी है। 95% से ऊपर दक्षिण अफ्रीका क े लोग किसी न किसी रूप में
  • 3. संरक्षण कारी नीतियों से आच्छादित है। सकारात्मक कार्यवाही का एक अन्य पहलू यह है कि यद्यपि वंचित समूह अभी भी बहुत लाभ की स्थिति में नहीं है, किं तु इन समूहों क े क ु छ व्यक्ति अवश्य इन प्रावधानों का लाभ उठाकर अपनी स्थिति को अच्छा बनाने में सफल हुए हैं । अमेरिका का व्यापार कानून सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूह का पक्ष लेता है, किं तु इस समूह क े क ु छ व्यक्ति औसत अमेरिकी परिवारों से कहीं ज्यादा धनवान है, फिर भी अपनी त्वचा क े रंग क े कारण वंचित समूह क े अंतर्गत आते हैं । इस संबंध में क ु छ व्यक्तियों का तर्क यह है कि संरक्षण वादी नीतियों का लाभ वंचित समूह में उन्हीं को मिलना चाहिए जो वास्तव में गरीब है, न कि जातिगत या प्रजातिगत आधार पर । पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा यद्यपि वे सकारात्मक कार्यवाही क े पक्षधर थे, ने भी एक बार कहा था कि ‘’ मेरी बच्चियों क े साथ यदि प्रजातिगत आधार पर गरीब श्वेत वर्ण बच्चों की तुलना में संरक्षण युक्त व्यवहार किया जाता है, तो यह नितांत गलत होगा। ‘’ भारत में सकारात्मक कार्यवाही भारतीय समाज एक प्राचीन, किं तु पारंपरिक समाज रहा है जिसे आधुनिक राष्ट्र क े रूप में निर्मित करना स्वतंत्र भारत क े संविधान निर्माताओं एवं राजनीतिक व्यवस्था क े धारकों क े सम्मुख एक गंभीर चुनौती रही है। बहु धार्मिक, बहु भाषाई और बहु सांस्कृ तिक राष्ट्र जाति-व्यवस्था क े पद -सोपान पर आधारित रहा है, जिसमें निचले पायदान पर मौजूद जातियों को अतीत में असमानता एवं अन्याय झेलना पड़ा है। यह जातियां सामान्य रूप से घृणित पेशे अपनाती रही हैं । दूसरी तरफ ऐसे जनसमूह भी हैं, जो पारंपरिक रूप से जंगलों में रहने क े कारण सभ्यता गत विकास से वंचित रहे हैं। भारतीय संविधान में ऐसे समूहों को अनुसूचित जाति और जनजाति का दर्जा दिया गया है और इनक े उत्थान क े लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। भारत में वंचित समूह में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाएं एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आते है। राजनीति विज्ञान कोश क े अनुसार पिछड़े हुए वर्गों का अभिप्राय समाज क े उस वर्ग से है जो आर्थिक, सामाजिक
  • 4. तथा शैक्षणिक निर्योग्यता ओं क े कारण समाज क े अन्य वर्गों की तुलना में निचले स्तर पर हो। वंचित वर्गों क े लिए संवैधानिक प्रावधान एवं आरक्षण की सुविधा- भारतीय संविधान द्वारा विभिन्न वंचित वर्गों क े लिए पृथक - पृथक प्रावधान किए गए हैं- जिन का विवेचन निम्न वत है- ● अनुसूचित जाति और जनजाति क े लिए प्रावधान- अनुसूचित जातियों और जनजातियों हेतु विशेष संरक्षण का प्रारंभ संविधान निर्माण से पूर्व ही हो चुका था जब ‘पूना पैक्ट’ क े माध्यम से महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर इस बात पर सहमत हुए थे कि प्रतिनिधि संस्थाओं में इनक े लिए स्थानों का आरक्षण होना चाहिए। 1935 क े भारतीय शासन अधिनियम द्वारा इस तरह क े आरक्षण को वैधानिक रूप प्रदान किया गया। संविधान सभा में भी अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व था जो प्रांतीय विधानसभाओं में चुनकर आए थे और संविधान सभा का गठन प्रांतीय विधानसभाओं क े सदस्यों से मिलकर ही हुआ था । संविधान सभा ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया कि अनुसूचित जाति और जनजातियों क े लिए लोक संस्थाओं में स्थान आरक्षित होने चाहिए। परिणामतः संविधान क े अनुच्छेद 15 और 16 में इनक े लिए आरक्षण क े प्रावधान किए गए जो 1950 में संविधान क े लागू होने क े साथ प्रभावी हुए । 1947 में ही यह निश्चित कर लिया गया था कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों क े लिए आरक्षण की व्यवस्था प्रतिनिधि संस्थाओं क े साथ रोजगार में भी हो। 1954 में इसका विस्तार करते हुए शैक्षणिक संस्थानों में भी प्रवेश हेतु आरक्षण की व्यवस्था की गई और उच्च शिक्षण संस्थानों में 22.5 प्रतिशत स्थानों का आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजाति क े प्रवेशार्थियों क े लिए किया गया। स्थान आरक्षण का तात्पर्य है कि उन सीटों पर क े वल उसी वर्ग क े अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा जिनक े लिए यह व्यवस्था की गई है।
  • 5. संविधान क े अनुच्छेद 17 क े द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है और किसी भी प्रकार का छ ु आछ ू त का व्यवहार दंडनीय अपराध घोषित किया गया है । अनुच्छेद 15 क े माध्यम से सामाजिक समानता की स्थापना की गई है जिसक े अनुसार राज्य किसी व्यक्ति क े साथ क े वल धर्म, वंश ,जाति , लिंग , जन्म स्थान आदि क े आधार पर भेदभाव नहीं करेगा और न ही सार्वजनिक स्थानों में नागरिकों क े द्वारा आपस में इन आधारों पर किसी तरह का भेद पूर्ण व्यवहार किया जाएगा। अनुच्छेद 19 [ 5 ] क े अनुसार आदिम जनजातियों क े हितों की रक्षा क े लिए नागरिकों क े भ्रमण की स्वतंत्रता क े अधिकार को सीमित किया जा सकता है। आदिम जनजाति क े लोग एक पृथक समुदाय हैं जिनकी अपनी अलग सांस्कृ तिक परंपराएं हैं, जिन्हे सुरक्षित रखने क े लिए यह प्रावधान किए गए हैं। निर्देशक तत्वों क े अंतर्गत अनुच्छेद 46 क े माध्यम से राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह अनुसूचित जातियों और जनजातियों की शिक्षा तथा आर्थिक हितों की रक्षा क े लिए संरक्षण कारी प्रावधान करे। लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभा में अनुसूचित जातियों और जनजातियों क े लिए स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई थी। प्रारंभ में यह व्यवस्था 25 जनवरी 1960 तक क े लिए थी, किं तु बार-बार संविधान में संशोधन करक े इसकी सीमा को बढ़ाया जाता रहा । संविधान क े 126 वे संशोधन अधिनियम 2019 क े अनुसार आरक्षण की व्यवस्था अगले 10 वर्षों क े लिए पुनः बढ़ा दी गई है। हालांकि इस अधिनियम ने लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय क े 2 सदस्यों क े मनोनयन की व्यवस्था को समाप्त कर दिया। परिसीमन आयोग क े एक आदेश [ 2008] क े अनुसार वर्तमान समय में लोकसभा में अनुसूचित जातियों क े लिए 84 और जनजातियों क े लिए 47 स्थान आरक्षित है। संविधान क े अनुच्छेद 335 क े अनुसार क ें द्र तथा राज्य सरकारों की सेवाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को समुचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने का आश्वासन दिया गया और उनक े लिए क ु छ रियायतेँ प्रदान की गई। जैसे- आयु सीमा में छ ू ट, योग्यता स्तर में छ ू ट, कार्यक ु शलता का निम्न स्तर पूरा करने पर ही इनका चयन , नीचे की श्रेणियों में उनकी नियुक्ति और पदोन्नति क े विशेष प्रबंध। अखिल भारतीय सेवाओं में भी जहां खुली
  • 6. प्रतियोगिता क े आधार पर नियुक्ति होती है, अनुसूचित जातियों क े लिए 15% तथा जनजातियों क े लिए 7.5% स्थान आरक्षित किए गए हैं । अनुच्छेद 275 क े अनुसार अनुसूचित जातियों क े विकास क े लिए बनाई गई योजनाओं को पूरा करने क े लिए राज्य सरकारों को विशेष अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। इस वर्ग क े विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दिए जाने, निशुल्क शिक्षा देने तथा प्राविधिक एवं व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों में भी स्थान आरक्षित रखने क े प्रावधान किए गए हैं। ● अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों क े लिए क ु छ महत्वपूर्ण योजनाएं- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय क े द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति क े सामाजिक आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने हेतु अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। जैसे- उच्च शिक्षा में फ ै लोशिप, निशुल्क कोचिंग सुविधा, सफाई कर्मचारियों क े लिए स्वरोजगार शुरू करने हेतु अनुदान, इन वर्गों क े लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों को अनुदान, विदेशों में पढ़ाई क े लिए ब्याज पर सब्सिडी युक्त ऋण की सुविधा, प्रधानमंत्री दक्षता और क ु शलता संपन्न हितग्राही योजना, नेशनल शेड्यूल कास्ट फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की स्थापना आदि। इसक े अतिरिक्त इन वर्गों क े सामाजिक हितों की सुरक्षा क े लिए नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम ,1955 एवं अनुसूचित जाति संरक्षण अधिनियम, 1989 क े समुचित क्रियान्वयन पर जोर दिया जा रहा है। 2. पिछड़े वर्ग क े कल्याण क े लिए की गई व्यवस्थायें एवं आरक्षण की सुविधा- सामाजिक शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों क े लिए आरक्षण सहित सकारात्मक कार्यवाही की शुरुआत 1953 में हुई जब गांधीवादी विचारक काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा जाति आयोग का गठन किया गया, जिस ने 30 मार्च 1955 को अपनी रिपोर्ट में 2399 पिछड़ी जातियों की पहचान की तथा स्त्रियों को भी पिछड़ी जाति में रखने की सिफारिश की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में प्रथम श्रेणी की
  • 7. सरकारी नौकरियों में 25% द्वितीय श्रेणी ने 33% और तृतीय श्रेणी में 40% स्थान पिछड़ी जाति क े लिए आरक्षित करने की बात कही। किं तु आयोग क े सात में से 3 सदस्यों ने इस बात पर असहमति व्यक्त की कि जातीयता पिछड़ेपन का आधार है । पारस्परिक सहमति क े अभाव में इस आयोग की सिफारिशें प्रभावी नहीं हो सकी और राज्य सरकारों ने इस संबंध में अपने-अपने आयोग नियुक्त किए जिन की सिफारिशों क े आधार पर पिछड़े वर्गों क े लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई । किं तु राज्यों द्वारा की गई इन व्यवस्थाओं में अनेक विसंगतियां पाई गई। क ु छ राज्यों में जैसे कर्नाटक में 48% क े रल में 30% और तमिलनाडु में 50% स्थान पिछड़े वर्ग क े लिए आरक्षित किए गए, तो दूसरी और बहुत से ऐसे राज्य थे जहां इनक े लिए आरक्षण की बिल्क ु ल व्यवस्था नहीं थी जैसे पंजाब ,राजस्थान ,उड़ीसा और दिल्ली। पिछड़े वर्ग को आरक्षण प्रदान करने हेतु क ें द्र सरकार द्वारा दूसरा महत्वपूर्ण प्रयास 1978 में किया गया जब बिहार क े भूतपूर्व मुख्यमंत्री बी..पी.. मंडल की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग का गठन किया गया। 31 दिसंबर 1980 को दी गई अपनी रिपोर्ट में आयोग ने स्पष्ट किया कि जाति हिंदू समाज रचना की आधारशिला है। हिंदू धर्म क े अलावा अन्य धर्मों की क ु ल 3743 पिछड़ी जातियों को चिन्हित किया गया और देश भर में इनकी संख्या क ु ल आबादी का 54% बताया गया। आयोग की मुख्य सिफारिश यह थी कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़ी जाति क े लोगों क े लिए 27% सीटें आरक्षित की जाए । आयोग का तर्क था कि यदि 22.5 प्रतिशत जनसंख्या वाले अनुसूचित जाति और जनजाति क े व्यक्तियों क े लिए उतने ही प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था हो सकती है तो 54% पिछड़ी जातियों क े लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती । ऐसा करने से हजारों वर्षों से दलित और शोषित जनता को मनोवैज्ञानिक सहारा प्राप्त होगा। 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने अपने घोषणा - पत्र क े अनुसार ‘मंडल आयोग’ की सिफारिशों को लागू कर दिया जिसका प्रचंड विरोध हुआ । ● संपन्न वर्ग या क्रीमी लेयर की व्यवस्था - प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव क े नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने पिछड़े वर्ग क े आरक्षण की व्यवस्था को संशोधित करते हुए यह व्यवस्था दी कि भारत सरकार क े अधीन
  • 8. नागरिक पदों और सेवाओं में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों क े लिए आरक्षित 27% स्थानों में वरीयता उन उम्मीदवारों को दी जाएगी जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग में अधिक गरीब है। यहीं से क्रीमी लेयर की अवधारणा विकसित हुई। यह व्यवस्था दी गई निम्नांकित पदों पर कार्यरत व्यक्तियों की संतानों को आरक्षण का यह लाभ प्राप्त नहीं होगा। 1. भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय क े न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग, राज्य सेवा आयोग क े अध्यक्ष तथा सदस्य, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और भारत क े नियंत्रक और महालेखा परीक्षक। 2. माता-पिता में से कोई एक प्रथम श्रेणी का राजपत्रित अधिकारी हो । 3. दोनों अभिभावक द्वितीय श्रेणी क े अधिकारी हो। 4. अभिभावकों में से कोई एक या दोनों सेना में कर्नल या उससे ऊपर क े पद पर ,नौसेना ,वायु सेना ,अर्धसैनिक बलों में इन पदों क े समकक्ष पदों पर हो। 5. जिन परिवारों क े पास भूमि सीमा कानून क े अंतर्गत सिंचित भूमि का 85 प्रतिशत या उससे अधिक भाग हो। 6. जिन व्यक्तियों की सकल वार्षिक आय ढाई लाख रुपए से ज्यादा हो। वर्तमान में यह आय सीमा ₹800000 वार्षिक है। इसक े अतिरिक्त सरकारी नौकरियों में क ु छ रियायतें भी इन्हें प्रदान की गई । जैसे आयु सीमा में 3 वर्ष की ढील एवं सिविल सेवाओं संबंधी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने क े लिए अवसरों की संख्या बढ़ाकर सात किए जाने संबंधी प्रावधान किए गए। आरक्षण संबंधी विवाद- मंडल कमीशन की रिपोर्ट क े क्रियान्वयन ने देशभर में हिंसक विरोध को जन्म दिया, विशेष रूप से उत्तरी भारत में। न्यायालयों में कमीशन की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दाखिल की गई। इन सभी याचिकाओं का संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में ‘इंदिरा साहनी बनाम भारतीय संघ’ क े विवाद में कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने क े सरकार क े निर्णय को क ु छ शर्तों क े साथ
  • 9. मंजूरी दी। शर्त यह थी कि क्रीमी लेयर में आने वाली पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। क्रीमी लेयर की आय सीमा समय-समय पर भारत सरकार क े द्वारा परिवर्तित की जा सक े गी। अर्थात ओबीसी आरक्षण क्रीमी लेयर में न आने वाली पिछड़ी जातियों को ही प्राप्त होगा। दूसरे क ु ल आरक्षित पद 50% से अधिक नहीं हो सकते। 2006 में यूपीए - 1 सरकार ने ओबीसी क े आरक्षण का दायरा क ें द्र सरकार क े शैक्षिक संस्थानों तक बढ़ा दिया। ● राज्यों में ओबीसी आरक्षण - ‘काका कालेलकर कमीशन’ की सिफारिशों को लागू करने क े क्षेत्र में विभिन्न राज्य सरकारों ने विशेषकर दक्षिण भारतीय सरकारों ने पिछड़ी जातियों को चिन्हित करने क े लिए और उन्हें विशेष संरक्षण प्रदान करने क े लिए भिन्न-भिन्न आयोग नियुक्त किए। दक्षिण भारत में पेरियार क े नेतृत्व में द्रविड़ कड़गम आंदोलन एवं उत्तर भारत में समाजवादियों क े द्वारा इसको लेकर एक आंदोलन छेड़ दिया गया। उत्तर प्रदेश में हेमवती नंदन बहुगुणा सरकार ने ‘छेदीलाल साठी आयोग’’ की नियुक्ति की । कर्पूरी ठाक ु र नीत जनता पार्टी की सरकार ने ‘’मुंगेरीलाल कमिशन’’ की नियुक्ति की। इन आयोगों की सिफारिशों क े आधार पर उत्तर प्रदेश में 1970 क े दशक में पिछड़ी जातियों क े लिए आरक्षण की शुरुआत हुई। दक्षिण भारत में इसका प्रारंभ पहले ही हो चुका था। ● कर्पूरी ठाक ु र सूत्र- पिछड़ी जातियों क े आरक्षण क े विषय में कर्पूरी ठाक ु र क े द्वारा क ु छ सीमाओं की चर्चा की गई। जैसे- ओबीसी ऐसी जातियों का समूह है जिन की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति समान नहीं है। ओबीसी में जाट , क ु र्मी, यादव,वोककलिगा , गुर्जर ऐसे समुदाय है जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से अत्यधिक प्रभावी है, जबकि दूसरी तरफ इन्हीं जातियों में ऐसे समुदाय भी हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिये पर हैं और इनका पारंपरिक व्यवसाय ‘जजमानी व्यवस्था’ से जुड़ा
  • 10. हुआ है। इन्हें अति पिछड़ा वर्ग की संज्ञा दी जाती है । यद्यपि ऐसी जातियों की संख्या अधिक है, किं तु उनका आरोप है कि पिछड़ी जातियों क े आरक्षण का लाभ पिछड़ी जातियों में जो संपन्न जातियां हैं उनको ही मिलता जा रहा है क्योंकि वे वर्चस्व कारी स्थिति में है । समस्या क े समाधान क े लिए कर्पूरी ठाक ु र का सूत्र यह है कि अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का अत्यधिक लाभ मिल सक े , इसक े लिए पिछड़ी जातियों को उप वर्गों में विभाजित कर उनक े लिए स्थान आरक्षित किया जाना चाहिए। 4. महिलाओं क े लिए आरक्षण - संविधान क े 73वें एवं 74 वे संशोधन अधिनियम, 1992,1993 क े द्वारा स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में 33% स्थान महिलाओं क े लिए आरक्षित किए गए हैं। इससे पूर्व महिलाओं क े लिए प्रतिनिधि संस्थाओं में आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसे राजनीतिक आरक्षण से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है और वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों क े प्रति सचेत हुई है । हालांकि इसका व्यावहारिक पहलू यह सामने आया है कि अधिकांश निर्वाचित महिला प्रतिनिधि रबर स्टांप क े रूप में कार्य कर रही हैं । उनक े स्थान पर उनक े पति, भाई या पुत्र ही कार्य कर रहे हैं। हालांकि अपवाद स्वरूप क ु छ महिला जनप्रतिनिधियों ने अपने कार्य क े क्षेत्र में मिसाल भी स्थापित की है। स्थानीय संस्थाओं क े अतिरिक्त संसद एवं राज्य विधानसभाओं में भी महिलाओं क े राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग विभिन्न नागरिक समाज संगठनों क े द्वारा की जाती रही है। इस संबंध में 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में 186 मतों क े साथ संसद में महिलाओं क े आरक्षण हेतु बिल पारित भी कर दिया था , किं तु लोकसभा में यह बिल आज भी लंबित है। इस संबंध में विभिन्न राजनीतिक दलों क े भिन्न-भिन्न विचार हैं । बहुत से दल यह मानते हैं कि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं क े लिए 33% स्थान आरक्षित कर देने से पिछड़ा वर्ग क े आरक्षण की व्यवस्था दुष्प्रभावित होगी। बहुत से राज्यों ने अपने यहां कानून बनाकर सरकारी नौकरियों में महिलाओं क े लिए पद आरक्षित किए हैं। इन राज्यों में प्रमुख है- तमिलनाडु ,तेलंगाना, उत्तराखंड आदि।
  • 11. 5. दुर्बल आय वर्ग क े लिए आरक्षण- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों क े अतिरिक्त भारत में क ु छ जातियां ऐसी भी हैं जो सामाजिक रूप से पिछड़ी न होते हुए भी आर्थिक रूप से गरीब हैं। आरक्षण की जाति आधारित व्यवस्था क े अंतर्गत उन्हें सकारात्मक कार्यवाही का लाभ नहीं मिल सकता। ऐसे लोग सामान्यतया सवर्ण जातियों से है। भारत सरकार ने उन्हें आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग क े रूप में [ EWS] क े रूप में चिन्हित किया है। जनवरी 2019 में इस वर्ग से संबंधित व्यक्तियों को क ें द्र सरकार की संस्थाओं में 10% स्थानों का आरक्षण दिया गया है । इनक े लिए आय सीमा ₹800000 वार्षिक रखी गई है। यह प्रावधान संविधान में 124 वां संशोधन करक े किया गया। आरक्षण एक राजनीतिक हथक ं डे क े रूप में सकारात्मक कार्यवाही क े रूप में आरक्षण की व्यवस्था भारत में राजनीति का शिकार हुई है। राजनीतिक दल अपना वोट बैंक मजबूत करने क े लिए जहां एक ओर आरक्षण की नीति को जारी रखने का पक्षधर बना रहता है वहीं दूसरी ओर आरक्षण का लाभ उठाने वाले वर्गों क े द्वारा संगठित होकर आरक्षण को निरंतर बनाए रखने हेतु राजनीतिक सौदेबाजी की जाती है। आरक्षण की नीति का विरोध करने वाली सवर्ण जातियां संगठित होकर इसक े विरुद्ध आंदोलन करती है । ऐसे आंदोलन गुजरात और बिहार में प्रभावी रहे हैं। हाल ही में हरियाणा क े जाटों, गुजरात क े पाटीदारों, राजस्थान क े गुर्जरों एवं महाराष्ट्र क े मराठों द्वारा अपने लिए आरक्षण की मांग उठाकर आरक्षण की राजनीति को व्यापक करने का कार्य किया गया है। राजनीतिक दल चुनाव में टिकट बांटते समय उम्मीदवारों की जाति और उनक े निर्वाचन क्षेत्र में जातिगत समीकरणों का बहुत ध्यान रखते हैं,अपनी जाति में प्रभावी उम्मीदवारों को टिकट देने में दिलचस्पी दिखाते हैं ताकि उस जाति क े लोगों का वोट प्राप्त कर सत्ता में पहुंच सक ें । कई बार वे अगड़ी - पिछड़ी जातियों को एक चुनावी मंच पर लाकर उसे सामाजिक अभियांत्रिकी का नाम देते हैं। हालांकि रजनी
  • 12. कोठारी जैसे विद्वान जाति क े राजनीति करण को सकारात्मक रूप में लेते हुए उसे लोकतंत्र का विस्तार मानते हैं। जातियों ने अपने संगठन क े माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था में अपनी व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की है, जो प्रतिनिधित्व की दृष्टि से लोकतंत्र क े लिए एक शुभ संक े त है। इससे सरकारों का जनाधार विस्तृत हुआ है , किं तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आरक्षण की राजनीति ने जातीय संघर्ष, तनाव, टकरा हट और हिंसा को आमंत्रित किया है। इस संबंध में इंडिया टुडे का आकलन रहा है कि ‘’ इतने वर्षों में आरक्षण से विभिन्न वर्गों में जितनी समानता आई उससे भी कहीं ज्यादा एक तरह की विषमता भी पैदा हुई.................. यह विषमता आरक्षण की विभिन्न श्रेणियों से लाभ उठाने वाले वर्गों की कड़ी प्रतिस्पर्धा का परिणाम है।...................... यह स्पर्धा इस कारण है कि कम समर्थ जातियों को लगता है कि उनसे अधिक समर्थ और सशक्त जातियां उनकी श्रेणी क े आरक्षण की सारी मलाई बटोर लिए जा रही हैं और उनक े हिस्से छाछ भी नहीं आ रही है। ‘’ बहरहाल , आरक्षण संबंधी समस्या जटिल बनती जा रही है । आरक्षण का आधार क्या हो - जातीय वर्ग?, आरक्षण की समय सीमा क्या हो ?इन प्रश्नों का उत्तर शायद कोई भी देने क े पक्ष में नहीं है। बिहार में जाति आधारित जनगणना क े माध्यम से संभवत यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि जिन्हें अब तक पिछड़ा माना जाता रहा है, उनकी सामाजिक- आर्थिक स्थिति में कितना और क ै सा परिवर्तन हुआ है। जातियों क े मध्य बढ़ता वैमनस्य भारतीय लोकतंत्र क े लिए चिंता का विषय है। सकारात्मक कार्यवाही तो सामाजिक न्याय की दृष्टि से उचित है, किं तु आरक्षण से लाभान्वित जातियों द्वारा पद और प्रस्थिति को प्राप्त कर प्रतिशोध मूलक व्यवहार कहां तक न्याय पूर्ण कहा जा सकता है। तभी तो यह प्रश्न भी आज भारतीय राजनीति क े समक्ष है कि संविधान ने समानता को प्रोत्साहित किया है या नई विषमता को जन्म दिया है? यह कहा जा रहा है कि समानता को प्राप्त करने क े प्रयास में भारतीय संविधान का बंधुत्व का आदर्श धूमिल होता जा रहा है। आरक्षण की नीति क े पक्ष और विपक्ष में तर्क - ● पक्ष में तर्क -
  • 13. 1. आरक्षण क े कमजोर वर्गों क े आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है। 2. लोक सेवाओं एवं शिक्षण संस्थानों में वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। 3. इससे कमजोर वर्गों की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ी है। 4. कमजोर वर्गों की आर्थिक उन्नति संभव हो पाई है। 5. कमजोर वर्गों को भी राजनीतिक व्यवस्था में भागीदारी का अवसर मिला है। 6. कमजोर वर्गों में राजनीतिक और शैक्षणिक जागरूकता बढ़ी है। 7. कमजोर वर्ग सत्ता में भागीदारी और समान अधिकारों क े प्रति सचेत हुआ है। ● विपक्ष में तर्क - 1. शासन और राजनीति में जातिवाद का विस्तार हुआ है। 2. अगड़ी एवं पिछड़ी जातियों क े मध्य टकराव बढ़ा है। 3. लोक सेवाओं की गुणवत्ता में कमी आई है। 4. आरक्षण का लाभ कमजोर वर्गों में से क ु छ ही लोगों द्वारा उठाया जा सका है, जिसक े कारण इन वर्गों क े संपन्न और विपन्न लोगों क े मध्य खाई चौड़ी हुई है। 5. आरक्षित जातियों की सूची में सम्मिलित होने क े लिए पिछड़ी जातियों में प्रतिस्पर्धा शुरू हुई है। 6. आरक्षण क े कारण अवसर की समानता क े स्थान पर परिणाम की समानता स्थापित हुई है, जो कमजोर वर्गों क े उत्थान की दृष्टि से भी उचित नहीं है। 7. आरक्षण क े कारण कमजोर वर्गों की सरकार पर निर्भरता बढ़ी है , जिससे स्वतंत्र रूप से अपनी पहल पर कार्य करने की उनकी क्षमता दुष्प्रभावित हुई है। 8. इसक े कारण समानता स्थापित होने क े बजाय नई विषमता पैदा हुई है। 9. सवर्ण जातियों क े योग्य उम्मीदवारों में क ुं ठा एवं निराशा की स्थिति बनी है। 10. अनुसूचित जातियों क े लोग एक तरफ जाति व्यवस्था को सामाजिक जीवन का अभिशाप मानते हैं, तो दूसरी तरफ राजनीतिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने क े लिए जाति आधारित आरक्षण की व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं।
  • 14. 11. आरक्षण की व्यवस्था का लाभ उठाकर संपन्न हो चुक े कमजोर वर्ग क े लोग इस सुविधा को छोड़ना नहीं चाहते, जिसक े कारण उन्हीं क े वर्ग में गरीब लोगों तक इसका लाभ नहीं पहुंच पाता। 12. आरक्षण का लाभ उठाकर उच्च पद और प्रस्थिति पर पहुंचे कमजोर वर्ग क े लोगों द्वारा सवर्णों क े साथ कई बार प्रतिशोध की भावना क े आधार पर कार्य किया जाता है, जो एक समरसतापूर्ण समाज क े विकास में बाधक है। संदर्भ - ● Economist.com ● Subhash Kashyap & Vishvaprakash Gupta , Rajneeti Vigyan Kosh ● Rajni Kothari, Caste In Indian politics,Orient Black swan, 2010 प्रश्न- निबंधात्मक प्रश्न- 1. सामाजिक न्याय को परिभाषित करते हुए भारत में इसे प्राप्त करने क े मुख्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख कीजिए. 2. सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु सकारात्मक कार्यवाही क े रूप में भारत में आरक्षण की नीति का मूल्यांकन कीजिए. 3. आरक्षण क े पक्ष और विपक्ष में दिए जाने वाले तर्कों का उल्लेख करते हुए भारत में आरक्षण की राजनीति पर एक निबंध लिखिए. वस्तुनिष्ठ प्रश्न- 1. भारतीय संविधान द्वारा सकारात्मक कार्यवाही क े रूप में आरक्षण की व्यवस्था कितने वर्षों क े लिए की गई थी? [ अ ] 5 वर्ष [ ब ] 10 वर्ष [ स ] 15 वर्ष [ द् ] 20 वर्ष
  • 15. 2. समाज क े कमजोर वर्गों को सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने हेतु संविधान क े किस अनुच्छेद में प्रावधान किए हैं? [ अ ] अनुच्छेद 15 [ ब ] अनुच्छेद 16 [ स ] अनुच्छेद 335 [ द ] उपर्युक्त सभी। 3. भारतीय संविधान में आरक्षण क े प्रावधान का आधार निम्नांकित में से कौन सी घटना रही है? [ अ ] पूना पैक्ट [ ब ] गांधी इरविन समझौता [ स ] गोलमेज सम्मेलन [ द ] माउंटबेटन योजना। 4. प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना किस वर्ष की गई थी ? [ अ ] 1952 [ ब ] 1953 [ स ] 1950 [ द ] 1960 5. मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट किस वर्ष दी थी? [ अ ] 1982 [ ब ] 1979 [ स ] 1978 [ द ] 1990 6. संविधान का कौन सा अनुच्छेद जनजातियों क े हितों क े संरक्षण हेतु स्वतंत्रता क े अधिकार पर समुचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार सरकार को देता है? [ अ ] अनुच्छेद 16 [ ब ] अनुच्छेद 17 [ स ] अनुच्छेद 19 [ द ] अनुच्छेद 20 7. महिलाओं क े लिए आरक्षण का प्रावधान संविधान क े किस संशोधन अधिनियम क े माध्यम से किया गया? [ अ ] 73 वा संशोधन [ ब ] 74वां संशोधन [ स ] उक्त दोनों [ द ] उक्त में से किसी में नहीं। 8. ‘कर्पूरी ठाक ु र सूत्र’ क े अनुसार पिछड़े वर्गों क े लिए आरक्षण की व्यवस्था किस आधार पर की जानी चाहिए? [ अ ] पिछड़े वर्ग की संपन्न एवं गरीब जातियों को पृथक- पृथक वर्गीकृ त करक े क े वल अति पिछड़ी गरीब जातियों को ही आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। [ ब ] सभी पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। [ स ] आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़ी जाति क े क्रीमी लेयर क े अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों को नहीं मिलना चाहिए। [ द ] उपर्युक्त सभी
  • 16. 9. सवर्ण गरीबों क े लिए 10% स्थानों का आरक्षण संविधान क े किस संशोधन अधिनियम क े माध्यम से किया गया? [ अ ] 125 वां संशोधन अधिनियम [ ब ] 124 वां संशोधन अधिनियम [ स ] 123 वां संशोधन अधिनियम [ द ] 120 वा संशोधन अधिनियम 10. समाज क े कमजोर वर्गों क े अधिकारों की रक्षा क े लिए भारत सरकार का कौन सा मंत्रालय स्थापित किया गया है? [ अ ] समाज कल्याण मंत्रालय [ ब ] सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय [ स ] अनुसूचित जाति मंत्रालय [ द ] पिछड़ा वर्ग मंत्रालय उत्तर- 1. ब 2. द 3. अ 4. ब 5. 6. स 7. स 8. अ 9. ब 10. ब