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न्याय की धारणा
https://ergodebooks.com/image/cache/data/may2016/DADAX0674880145-600x600.jpg
द्वारा - डॉ . ममता उपाध्याय
एसो . प्रो . , राजनीति विज्ञान
क
ु . मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय , बदलपुर , गौतमबुद्ध नगर
यह सामग्री विशेष रूप से शिक्षण और सीखने को बढ़ाने क
े शैक्षणिक उद्देश्यों क
े लिए है। आर्थिक / वाणिज्यिक अथवा
किसी अन्य उद्देश्य क
े लिए इसका उपयोग पूर्णत: प्रतिबंध है। सामग्री क
े उपयोगकर्ता इसे किसी और क
े साथ वितरित,
प्रसारित या साझा नहीं करेंगे और इसका उपयोग व्यक्तिगत ज्ञान की उन्नति क
े लिए ही करेंगे। इस ई - क
ं टेंट में जो
जानकारी की गई है वह प्रामाणिक है और मेरे ज्ञान क
े अनुसार सर्वोत्तम है।
न्याय की धारणा राजनीतिक सिद्धांत एवं व्यवहार दोनों में क
ें द्रीय महत्त्व रखती है।
वास्तविकता यह है कि एक सभ्य समाज एवं राज्य जिन मूल्यों को अपना आदर्श मानता
है, न्याय उनमें से एक है। प्राचीन यूनानी विचारक प्लेटो ने न्याय को आदर्श राज्य का
सर्वोच्च सद्गुण माना था। हार्वर्ड विश्वविद्यालय क
े प्रख्यात दार्शनिक जॉन रॉल्स ने
न्याय को ‘सभी सामाजिक संस्थाओं का प्रथम सद्गुण कहा’ है। व्यवहार में जितने भी
राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, सामाजिक, राजनीतिक या नागरिक अधिकार संबंधी आंदोलन हुए
हैं, चाहे वह महिलावादी आंदोलन हो, पर्यावरणवादी आंदोलन हो, दलित आंदोलन हो,
किसान या मजदूरों का आंदोलन हो या प्रजातिगत विभेद विरोधी आंदोलन हो,सभी का
व्यापक उद्देश्य न्याय की स्थापना रहा है।
न्याय का अर्थ एवं विशेषताएं-
शाब्दिक दृष्टि से न्याय शब्द अंग्रेजी क
े ‘ जस्टिस’ शब्द का हिंदी रूपांतर है जिसकी
उत्पत्ति लैटिन भाषा क
े शब्दों ‘Jungere’ एवं ‘Jus’ से हुई है जिसका तात्पर्य है-’ बांधना
या एक साथ जोड़ना। न्याय की धारणा पर विचार करने पर इसकी निम्नांकित
विशेषताएं बताई जा सकती हैं।
● यह एक जोड़ने वाली धारणा है जो लोगों क
े मध्य उनक
े हिस्से क
े अधिकारों एवं
दायित्व, पुरस्कार एवं दंड का समुचित वितरण कर उनक
े मध्य सौहार्दपूर्ण संबंधों
की स्थापना करती है।
● रोमन सम्राट जस्टिनियन क
े अनुसार न्याय का अर्थ है- दूसरों को चोट या
नुकसान न पहुंचाना एवं प्रत्येक व्यक्ति को वह उपलब्ध कराना जिसका वह
हकदार है।
● न्याय स्वतंत्रता, समानता एवं भ्रातृत्व जैसे राजनीतिक मूल्यों से अंतः संबंधित
है एवं उन मूल्यों क
े मध्य संतुलन स्थापित करता है।
न्याय संबंधी विभिन्न धारणाएं-
मानव इतिहास क
े विभिन्न कालों में न्याय क
े विषय में भिन्न-भिन्न धारणाएं प्रचलित
रही हैं। इनमें से क
ु छ प्रमुख इस प्रकार हैं-
1. पारंपरिक धारणा-
यह धारणा प्राचीन यूनान एवं भारतीय धर्म ग्रंथों में मिलती है। इस धारणा क
े अनुसार
मित्र क
े साथ भलाई एवं शत्रु क
े साथ बुराई का व्यवहार करना न्याय है। सत्य बोलने और
ऋण चुकाने में भी न्याय निहित है। एक पारंपरिक धारणा क
े अनुसार न्याय शक्तिशाली
का हित साधन है ,जबकि दूसरी धारणा क
े अनुसार न्याय की उपस्थिति दुर्बल लोगों क
े
हितों की रक्षा करने में है। ‘मनुस्मृति’ एवं ‘अर्थशास्त्र’ में वर्णित मत्स्य न्याय की धारणा
क
े अनुसार जिस प्रकार तालाब में बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा जाती है, उसी प्रकार
समाज में शक्तिशाली लोग दुर्बल लोगों को अधीन बनाते हैं, अतः इस धारणा क
े अनुसार
शक्तिशाली का हित साधन ही न्याय है।
2. नैतिक न्याय की धारणा-
इस धारणा का प्रतिपादन प्राचीन यूनानी विचारक प्लेटो क
े द्वारा किया गया, जिसक
े
अनुसार मानव आत्मा में निहित तीन गुणों- विवेक, उत्साह और तृष्णा क
े अनुसार समाज
में तीन वर्गों का अस्तित्व होता है। यह वर्ग है -शासक वर्ग ,सैनिक वर्ग एवं उत्पादक वर्ग।
तीनों वर्गों द्वारा कर्तव्य पालन न्याय का सृजन करता है। प्लेटो ने इसे सामाजिक न्याय
की संज्ञा दी, जबकि व्यक्तिगत न्याय वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी आत्मा में
निहित तीन स्वाभाविक गुणों में सामंजस्य स्थापित करते हुए जीवन जीता है।
3. मध्ययुगीन न्याय की धारणा-
यह धारणा यूरोप में मध्य युग में प्रचलित रही है जिसक
े अनुसार न्याय का स्रोत ईश्वर है
,इसलिए धर्म- ग्रंथों में वर्णित नियमों का पालन न्याय पूर्ण है क्योंकि यह नियम ईश्वरीय
इच्छा क
े प्रतीक हैं। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है इसलिए उसक
े आदेशों का पालन न्याय
पूर्ण है।
4. वितरणात्मक, सुधारात्मक एवं सामुदायिक न्याय की धारणा-[
Distributive,Corrective and Commutative Justice]
● इस धारणा को प्राचीन यूनानी विचारक अरस्तू ने प्रस्तुत किया। इसक
े अनुसार-
● वस्तुओं एवं सेवाओं का समान लोगों में वितरण करना वितरणात्मक न्याय है।
● दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाले या उनक
े अधिकारों का हनन करने वाले व्यक्ति
को कानूनी दंड देना सुधारात्मक न्याय है।
● समाज में व्यापार आदि क
े लिए व्यक्तियों क
े मध्य किए गए समझौतों का पालन
सुनिश्चित करना सामुदायिक न्याय हैं।
5. प्रक्रियात्मक एवं सार्थक न्याय की धारणा- [ Procedural and Substantive
Jstice]
यह न्याय की आधुनिक धारणा है जिसक
े अनुसार नीति निर्माण एवं निर्णय निर्माण
प्रक्रिया में किसी तरह का पक्षपात नहीं होना चाहिए ,यह धारणा कानून क
े समक्ष समानता
क
े सिद्धांत पर आधारित विधि क
े शासन को इंगित करती है एवं लिंग ,धर्म, प्रजाति,
जाति , धन क
े भेद क
े बिना सबक
े लिए एक जैसे कानूनी प्रावधान की मांग करती है।
सार्थक न्याय की धारणा कानूनी प्रक्रियाओं क
े परिणामों की निष्पक्षता पर बल देती है
अर्थात कानूनों क
े माध्यम से समाज को जो उपलब्ध होता है उसक
े वितरण में किसी तरह
का पक्षपात नहीं होना चाहिए।
6. आवश्यकता आधारित समानता वादी सामाजिक न्याय की धारणा-[ Need based
Egalitarian Concept of Social Justice ]
न्याय की इस धारणा का प्रतिपादन मार्क्सवादियों क
े द्वारा किया गया जिसक
े अनुसार
समाज में सभी क
े द्वारा कार्य योग्यता क
े आधार पर किए जाने चाहिए एवं उपलब्धि
आवश्यकता क
े अनुसार प्राप्त होनी चाहिए।
7. अधिकार आधारित उदारवादी सामाजिक न्याय की धारणा- [ Rights based
Libertarian Concept of Social Justice ]
न्याय की यह धारणा लॉक एवं ह्यूम जैसे शास्त्रीय उदारवादियों तथा रॉबर्ट नॉजिक जैसे
नव उदारवादी चिंतकों क
े विचारों में मिलती है जो सामाजिक न्याय की प्राप्ति क
े लिए
राज्य द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता क
े संरक्षण की सिफारिश करती है। न्याय की समानता
वादी धारणा क
े अंतर्गत नागरिकों की सकारात्मक स्वतंत्रता एवं लोक कल्याणकारी राज्य
की धारणा पर बल दिया जाता है।
8. प्राकृ तिक न्याय- [ Natural Justice ]
एडमंड बर्क एवं डार्विन द्वारा प्रतिपादित इस धारणा क
े अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को
उपलब्धियां उसक
े प्राकृ तिक गुणों एवं योग्यताओं क
े अनुसार प्राप्त होनी चाहिए।
9. उपयोगितावादी न्याय की धारणा - [ Utilitarian Concept of Justice ]
बेंथम एवं जे. एस. मिल जैसे उपयोगिता वादी विचारकों क
े विचारों पर आधारित इस
धारणा क
े अनुसार सामाजिक न्याय का आधार ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम
सुख’ है।
10. जॉन रॉल्स की उदारता वादी- समानता वादी सामाजिक न्याय की धारणा
[Liberal Egalitarian Principles of Social Justice]
जॉन रॉल्स बीसवीं शताब्दी क
े अमेरिकी राजनीतिक दार्शनिक हैं जो उदारवादी परंपरा से
संबंधित हैं। उनकी न्याय संबंधी धारणा एक ऐसे समाज का चित्र प्रस्तुत करती है जिसमें
नागरिक समान अधिकारों का प्रयोग करते हुए समतावादी आर्थिक व्यवस्था क
े अंतर्गत
सहयोग पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। उनक
े उदारवादी धारणा जनतंत्र में वैध शक्ति क
े
प्रयोग की संभावना को खोजती है और एक ऐसे नागरिक समाज क
े स्थापना का चित्र
प्रस्तुत करती है जो लोगों क
े विभिन्न दृष्टिकोणों क
े बावजूद उन्मे मौजूद एकता क
े भाव
को प्रस्तुत करती है।
जॉन लॉक, कांट ,मिल, रूसो आदि दार्शनिकों क
े विचारों से प्रभावित जॉन
रॉल्स ने न्याय की उपयोगिता वादी धारणा की आलोचना की क्योंकि यह सिद्धांत समाज
क
े अधिकतम व्यक्तियों क
े अधिकतम सुख का उद्देश्य रखता है, न कि समाज क
े प्रत्येक
व्यक्ति क
े कल्याण का। रॉल्स ने कांट क
े प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता
की धारणा में विश्वास व्यक्त किया है। उनक
े अनुसार ‘’एक सभ्य एवं तार्कि क समाज
पारस्परिक लाभ पर आधारित एक सहयोगी व्यवस्था है। ‘’ एक न्यायपूर्ण समाज में
‘प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं’[ Primary Social Goods ] का इसक
े सभी सदस्यों में
न्याय पूर्ण ढंग से वितरण किया जाता है एवं समाज में दायित्व और लाभों का वितरण
निष्पक्ष रुप से होता है। प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं में अधिकार एवं स्वतंत्रताए,
शक्तियां, अवसर एवं धन -संपदा आते हैं ,जो समाज की आधारभूत संरचना द्वारा
वितरित किए जाते हैं।
न्याय क
े दो सिद्धांत-
रॉल्स क
े अनुसार वस्तुओं का न्यायपूर्ण वितरण तब संभव होता है जब न्याय क
े
निम्नांकित दो सिद्धांतों का पालन किया जाता है।
1. आधारभूत स्वतंत्रताओं की समानता का सिद्धांत-
इस सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए राल्स ने यह प्रतिपादित किया कि समाज में प्रत्येक
व्यक्ति को आधारभूत स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए। आधारभूत स्वतंत्रता में अंतर चेतना,
विचार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संपत्ति की स्वतंत्रता, संघ की स्वतंत्रता, बिना कारण
गिरफ्तारी से स्वतंत्रता, विधि क
े शासन की स्वतंत्रता आदि शामिल है। रॉल्स क
े अनुसार
यह स्वतंत्रता व्यक्ति को दो सर्वोच्च नैतिक शक्तियों क
े उपयोग योग्य बनाती है। यह दो
नैतिक शक्तियां हैं- 1. न्याय क
े सिद्धांत क
े अनुसार समझ एवं कार्य क्षमता का
विकास। 2. सामाजिक वस्तुओं को विकसित करने ,संशोधित करने एवं प्राप्त करने की
क्षमता का विकास।
2. अवसर की निष्पक्ष समानता का सिद्धांत-
जॉन रॉल्स क
े अनुसार न्याय की प्राप्ति क
े लिए यह आवश्यक है कि आधारभूत स्वतंत्रता
सभी को उपलब्ध होने क
े साथ-साथ अवसर की समानता उपलब्ध हो। रोल्स का तर्क है
कि यदि किसी समाज में असमानता दिखाई देती है तो वह भी उस स्थिति में न्याय पूर्ण
बन जाती है जब उस असमानता का उद्देश्य समाज क
े सर्वाधिक कमजोर वर्गों को लाभ
पहुंचाना हो। जैसे भारत जैसे देश में राज्य क
े द्वारा दलित वर्गों क
े उत्थान क
े लिए
आरक्षण की जो नीति लागू की गई है वह रॉल्स क
े सिद्धांत क
े अनुसार न्याय पूर्ण है।
भले ही समाज का एक वर्ग इसे अवसर की समानता क
े विरुद्ध मानता हो, किं तु इस
नीति से कमजोर वर्गों का उत्थान होता है। दूसरी तरफ यदि कोई व्यक्ति अपनी
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए समाज की अधिक संपत्ति पर अधिकार कर लेते
हैं तो यह भी न्याय पूर्ण है, क्योंकि तार्कि क दृष्टि से सभी को वे अवसर समान रूप से
उपलब्ध है जिनका लाभ उठाकर सभी संपत्ति का अर्जन कर सकते हैं। रोल्स का तर्क है
कि अत्यधिक आय की समानता समाज से रचनात्मकता और उत्पादकता को समाप्त
कर देती है, क्योंकि तब योग्य एवं कर्मठ लोग कोई विशेष उपलब्धि न देखते हुए
अकर्मण्यता एवं आलस्य क
े शिकार हो जाते हैं और उनकी योग्यता का लाभ समाज को
नहीं मिल पाता है।
● न्याय क
े 2 सिद्धांतों का सोपान-
रोल्स क
े मतानुसार न्याय क
े उपर्युक्त 2 सिद्धांतों में एक सोपानात्मक क्रम है,अर्थात
प्रथम सिद्धांत क
े अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को आधारभूत स्वतंत्रताएँ उपलब्ध कराए बिना
अवसर की समानता क
े लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सकता है, अतः सबको स्वतंत्रता
उपलब्ध कराने क
े पश्चात राज्य को शैक्षणिक, सांस्कृ तिक और आर्थिक क्षेत्र में अवसर की
समानता स्थापित करना सुनिश्चित करना चाहिए एवं बीमारी तथा बेरोजगारी संबंधी लाभ
उपलब्ध कराने चाहिए।
● सामाजिक समझौता प्रक्रिया -
रूसो क
े चिंतन से प्रेरणा ग्रहण करते हुए सामाजिक न्याय को मूर्त रूप देने क
े लिए जॉन
रॉल्स एक ऐसे समाज क
े पुनर्गठन का सुझाव देते हैं जिसका निर्माण लोगों द्वारा आपसी
समझौते से किया जाएगा। समझौते में भाग लेने वाले व्यक्ति अपने गुणों, सामाजिक
प्रस्थिति एवं ‘सामाजिक वस्तुओं’ क
े विषय में अपनी धारणा से अनभिज्ञ होंगे, इस
स्थिति को रोल्स ‘ वेल ऑफ़ इग्नोरेंस’ कहते हैं।तात्पर्य यह है कि लोग बिना किसी
पूर्वाग्रह क
े न्याय क
े सिद्धांतों पर सहमति बनाएंगे । सामाजिक समझौते में भाग लेने
वाले लोगों को न्याय की सामान्य परिस्थितियों का बोध होगा और वह सामाजिक न्याय
की उपर्युक्त धारणाओं क
े आधार पर समाज का गठन करेंगे।
● न्याय क
े क्रियान्वयन हेतु सरकार की 4 शाखाएं-
रोल्स की मान्यता है कि सामाजिक न्याय की उपर्युक्त धारणाओं को क्रियान्वित करने क
े
उद्देश्य से सरकार की 3 शाखाओं का गठन किया जाना चाहिए। यह शाखाएं हैं-
1. आवंटन शाखा [ Allocation Branch ]
इस शाखा का कार्य मूल्य- व्यवस्था को प्रतिस्पर्धी बनाना एवं अतार्कि क बाजारी शक्तियों
क
े विकास को रोकना होगा।
2. स्थायित्व शाखा-[ Stabilization Branch ]
यह शाखा बाजार अर्थव्यवस्था की क
ु शलता को बनाए रखते हुए आवंटन शाखा क
े
सहयोग से समाज में पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखेगी।
3. स्थानांतरण शाखा - [ Transfer Branch ]
यह शाखा लोगों की जरूरतों एवं औचित्य पूर्ण जीवन शैली की मांगों को पूरा करने का
कार्य करेगी।
4. वितरण शाखा- [ Distribution Branch ]
यह शाखा कर- व्यवस्था एवं संपत्ति संबंधी अधिकारों में सामंजस्य बनाए रखते हुए
वितरणात्मक न्याय व्यवस्था का संरक्षण करेगी।
आलोचना-
यद्यपि राल्स ने तार्कि क ढंग से सामाजिक न्याय क
े सिद्धांत का प्रस्तुतीकरण किया,
किं तु उदारवादियों, समाजवादियों एवं समुदाय वादियों आदि सभी ने उनक
े विचारों की
आलोचना की है। आलोचना क
े प्रमुख आधार इस प्रकार है-
● नव उदारवादी रॉबर्ट नॉजिक ने अपनी पुस्तक ‘एनार्की , स्टेट एंड यूटोपिया’[
1974] मे लिखा कि रोल्स की न्याय की धारणा संरक्षणवादी धारणा है, जो राज्य
को साध्य मानते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को रौदती है,जबकि स्वतंत्रता सहित
संपत्ति संबंधी व्यक्तिगत अधिकार अनुलंघनीय है । प्रकारांतर से राल्स ने मुक्त
बाजार एवं पूंजीवाद को न्याय क
े पर्याय क
े रूप में प्रस्तुत करते हुए पूंजीवादी
व्यवस्था क
े समर्थक क
े रूप मे राज्य को प्रस्तुत किया है।
● मार्क्सवादियों क
े अनुसार रॉल्स की न्याय की धारणा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में
होने वाले मजदूरों क
े शोषण को रोकने में नाकाम है। समाजवादियों ने ऐसे समाज
को न्याय पूर्ण माना है जिसमें कार्य योग्यता क
े अनुसार संपन्न हो, किं तु सभी को
सामाजिक आर्थिक उपलब्धियां उनकी आवश्यकता क
े अनुसार प्राप्त हो।
आलोचकों क
े अनुसार अवसर की समानता एवं स्वतंत्रता की समानता औद्योगिक
समाज मे शोषण को रोकने मे सक्षम नहीं हैं ।
● समुदायवादी विचारको माइकल सैंडल एवं चार्ल्स टेलर क
े अनुसार राल्स ने
व्यक्तिगत अधिकारों को सामुदायिक अधिकारों पर प्रमुखता प्रदान की है। अपनी
पुस्तक ‘ लिबरलिज्म एंड लिमिट्स आफ जस्टिस’ में सैंडल ने राल्स की
व्यक्तिगत अधिकार की धारणा को ‘ सिचुएटेड सेल्फ’ की धारणा कहकर
आलोचना की है एवं टेलर ने इसे ‘ आणविक धारणा’[ Atomistic ] कहा है।
उनकी मान्यता है कि व्यक्ति का कल्याण समुदाय क
े कल्याण पर निर्भर करता है,
इसलिए सामुदायिक अधिकार व्यक्तिगत अधिकारों क
े न्यायपूर्ण वितरण से कम
महत्वपूर्ण नहीं है।
अमर्त्य सेन की न्याय की धारणा
[ Social Realization Theory ]
अमर्त्य सेन 20- 21 वी शताब्दी क
े राजनीतिक अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने न्याय की
प्रचलित धारणाओं विशेषकर जॉन रॉल्स क
े न्याय सिद्धांत की आलोचना की है और
सामाजिक वास्तविकता पर आधारित न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया है। उनक
े चिंतन
पर जॉन स्टूअर्ट मिल ,बेंथम, मार्क्स, मेरी वोल्स्टोन क्राफ्ट आदि क
े विचारों का प्रभाव
है। अमर्त्य सेन द्वारा लिखित पुस्तक
ें हैं- ‘
● द आइडिया ऑफ जस्टिस
● पावर्टी एंड फ
े मिने
● डेवलपमेंट एस फ्रीडम
● इनिक्वालिटी रिएग्जामिन्ड
राल्स क
े न्याय सिद्धांत की आलोचना-
अमर्त्य सेन की मान्यता है कि न्याय क
े सर्व सम्मत सिद्धांत क
े आधार पर किसी
संस्था का मूल्यांकन करने से ज्यादा अच्छा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन
में अन्याय क
े विभिन्न पहलुओं और कारणों को उजागर करना है। अतः न्याय क
े
संस्थागत सिद्धांत क
े स्थान पर सेन ने सामाजिक वास्तविकता पर आधारित न्याय का
सिद्धांत प्रतिपादित किया है। इसलिए वह इसे सामाजिक न्याय का सिद्धांत कहते हैं।
सेन ने रॉल्स क
े न्याय सिद्धांत की आलोचना निम्नांकित आधारों पर की है-
● राल्स ने समाज की मूल स्थिति में ‘अज्ञान क
े पर्दे’ [ veil of ignorance]
क
े साथ आपसी समझौते क
े आधार पर न्याय क
े सर्वमान्य सिद्धांतों क
े
निर्माण की बात कही है। सेन क
े अनुसार यह सिद्धांत सर्वमान्य नहीं हो
सकता क्योंकि समझौते से वह लोग बाहर हो जाते हैं, जो मूल स्थिति में
अज्ञान क
े पर्दे में नहीं है। जैसे विदेशी नागरिक और भावी पीढ़ी क
े लोग।
अमर्त्य सेन यह प्रश्न करते हैं कि क्या उन्हें समझौते से बाहर रखना उनक
े
साथ अन्याय नहीं है?
● रॉल्स ने अज्ञान क
े पर्दे की जो धारणा दी है, उसक
े अनुसार लोग न्याय क
े
सिद्धांतों का निर्माण करते समय पद एवं प्रस्थिति , संपदा, जाति -प्रजाति,
योग्यता ,क्षमता या कौशल एवं शक्ति क
े पूर्वाग्रहों से मुक्त होंगे। सेन की
आपत्ति है कि लोग अपने मूल्यों से मुक्त रहकर क
ै से न्याय क
े सिद्धांतों का
निर्माण करेंगे, इसक
े निरीक्षण की कोई व्यवस्था रॉल्स क
े सिद्धांत में नहीं
है।
● समाज की मूल स्थिति में रहते हुए वैश्विक न्याय की स्थापना नहीं हो
सकती क्योंकि दुनिया क
े सभी राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय कर्ताओं का पूर्वाग्रहों
से मुक्त रहना व्यवहार में संभव नहीं है।
● राल्स ने अपनी न्याय की धारणा को वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष बताया है।
इस संबंध में सेन ने यह प्रतिपादित किया है कि रोल्स की धारणा क
े
अलावा बहुत सी ऐसी धारणाएँ है, जिन्हें निष्पक्ष कहा जा सकता है।
● रॉल्स का सिद्धांत नीति पर आधारित है, न्याय पर नहीं।
न्याय क
े सिद्धांत क
े निर्माण क
े दो आधार-
रॉल्स क
े सिद्धांत की आलोचना करने क
े बाद अमर्त्य सेन ने न्याय क
े सिद्धांत क
े
निर्माण हेतु दो आधार प्रस्तुत किए। यह है-
1. तुलनात्मक दृष्टिकोण- जिसक
े अनुसार समाज में विद्यमान न्याय क
े विभिन्न
विकल्पों का चयन किया जाना चाहिए और उनकी पारस्परिक तुलना क
े आधार पर
सर्वोत्तम दृष्टिकोण क
े अनुसार न्याय क
े सिद्धांत का निर्माण होना चाहिए। स्पष्ट है कि
सेन ने व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए वैज्ञानिक ढंग से न्याय क
े सिद्धांत क
े निर्माण
का पक्ष लिया है।
2. दूसरे, न्याय का सिद्धांत निर्मित करते समय व्यापक विचार - विमर्श की पद्धति को
अपनाया जाना चाहिए। यहां सेन मिल की वैचारिक स्वतंत्रता क
े धारणा क
े समर्थक
दिखाई देते हैं।
सेन की मान्यता है कि इन आधारों पर भले ही न्याय क
े सर्वमान्य सिद्धांतों तक
पहुंचना संभव न हो, लेकिन अन्याय को दूर करने का यह आधार वस्तुनिष्ठ अवश्य होगा।
● अन्याय क
े कारण-
अमर्त्य सेन ने सामाजिक वास्तविकता पर विचार करते हुए उन कारणों की विवेचना भी
की है, जिनसे किसी समाज में अन्याय का जन्म होता है। अन्याय क
े निम्नांकित कारण
सेन द्वारा बताए गए हैं-
● सेन क
े अनुसार एक सर्वसत्तावादी राज्य जो स्वतंत्र विचारों को दबा देता है और
अन्याय क
े विरुद्ध आवाजों को नहीं सुनता, अन्याय का सबसे बड़ा कारण होता है।
1943 का बंगाल का दुर्भिक्ष इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब औपनिवेशिक
सरकार क
े द्वारा सर्व सत्तावादी रवैया अपनाया गया।
● लोगों में जागरूकता का अभाव भी अन्याय का कारण है। जागरूकता की कमी क
े
कारण लोग अपने प्रति होने वाले अन्याय को समझ नहीं पाते, समझते हैं, तो
व्यक्त नहीं कर पाते।
सेन का विचार है कि गरीबी, क
ु पोषण, अशिक्षा और दुर्भिक्ष अन्याय क
े विभिन्न
रूप है। अब तक विकासशील देशों में राजनीतिक अधिकारों की अनुपलब्धता की गलत
व्याख्या करते हुए यह प्रतिपादित किया गया कि गरीबी क
े कारण लोग राजनीतिक
अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते हैं, किं तु सेन यह मानते हैं कि अन्याय पूर्ण
राजनीतिक कार्यवाहियाँ और जन जागरूकता का अभाव इसक
े लिए उत्तरदाई है।
संसाधनों का अभाव दुर्भिक्ष क
े लिए जिम्मेदार नहीं है।
● न्याय प्राप्ति क
े उपाय- क्षमता निर्माण सिद्धांत [ Capability Theory]
अन्याय क
े कारणों का विश्लेषण करने क
े बाद सेन ने न्याय प्राप्ति क
े उपायों की भी
चर्चा की है। सेन यह मानते हैं कि न्याय प्राप्ति क
े लिए आवश्यक है कि लोगों की
क्षमताओं का इस तरीक
े से विकास किया जाय ताकि वे अवसरों को जान सक
े और उसका
लाभ उठा सक
ें । इस तरह की क्षमता का निर्माण स्वास्थ्य ,शिक्षा और पोषण क
े माध्यम
से किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में विकास ही स्वतंत्रता का सूचक है। न्याय की प्राप्ति क
े
लिए संचार माध्यमों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रोत्साहित किया जाना भी आवश्यक
है, क्योंकि यह अन्याय क
े विरुद्ध आवाज उठाने का सर्वाधिक कारगर साधन हो सकते हैं
और सर्व सत्तावादी राज्य की अन्याय पूर्ण राजनीतिक कार्यवाहियों से जन सामान्य की
रक्षा करने में सहायक हो सकते हैं।
मुख्य शब्द- न्याय, वितरण आत्मक न्याय, सुधारात्मक न्याय, प्राथमिक सामाजिक
वस्तुएं, सामाजिक वास्तविकता
References and Suggested Readings
● John Rawls , Stanford Encyclopaedia of Philosophy
● John Rawls,A Theory of Justice
● Work by Rawls,Britannica,britannica.com
● The Idea of Justice,Amartya Sen,Harvard University
Press,www.hup.harvard.edu
● Carlos Hoevel, Amartya Sen”s Theory of Justice And The
Idea of Social Justice in Antonio
Rosmini,www.researchgate.net
● Earnest Barkar, Greek Political Thinking
प्रश्न-
निबंधात्मक-
1. नैतिक एवं वितरणात्मक न्याय क
े विशेष संदर्भ में न्याय की पारंपरिक धारणा की
विवेचना कीजिए.
2. जॉन रॉल्स द्वारा प्रतिपादित न्याय की धारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन
कीजिए.
3. अमर्त्य सेन की सामाजिक वास्तविकता पर आधारित न्याय की धारणा क्या है?
सेन ने जॉन रॉल्स की न्याय की धारणा की किन आधारों पर आलोचना की है.
वस्तुनिष्ठ-
1. शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘Justice’ शब्द का क्या तात्पर्य है?
[ a ] समानता [ b ] बांधना या एक साथ जोड़ना [ c] स्वतंत्रता [ d ] उपर्युक्त
सभी
2. प्राचीन भारत में न्याय की किस अवधारणा का प्रतिपादन किया गया?
[ a ] मित्र क
े साथ भलाई एवं शत्रु क
े साथ बुराई
[ b ] दुर्बल का हित साधन
[ c ] मत्स्य न्याय
[ d ] योग्यतम की उत्तरजीविता
3. यूरोप में मध्य युग में न्याय की अवधारणा क
ै सी थी?
[ a ] समझौते पर आधारित
[ b ] ईश्वरीय न्याय की धारणा
[c ] धर्म ग्रंथों में वर्णित नियमों का पालन
[ d ] c और b सही है.
4. प्राचीन यूनानी विचारक अरस्तु ने न्याय की किस धारणा का प्रतिपादन किया?
[ a ] वितरणात्मक न्याय [ b ] सुधारात्मक न्याय [ c ] सामुदायिक न्याय [ d ]
उपर्युक्त सभी
5. प्लेटो द्वारा प्रतिपादित न्याय की अवधारणा किस श्रेणी में रखी जाती है।
[ a ] कानूनी [ b ] राजनीतिक [ c ] नैतिक [ d ] उपर्युक्त सभी
6. प्रक्रियात्मक न्याय क्या है?
[ a ] न्याय की उचित प्रक्रिया का पालन
[ b ] नीति निर्माण एवं निर्णय निर्माण प्रक्रिया में किसी तरह का पक्षपात ना होना
[ c ] कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करना
[ d ] उपर्युक्त सभी
7. न्याय की समानता वादी धारणा की विशेषता क्या है?
[ a ] मार्क्स वादियों द्वारा प्रतिपादित
[ b ] कार्य योग्यता क
े आधार पर, उपलब्धि आवश्यकता क
े आधार पर
[ c ] उपर्युक्त दोनों
[ d ] उपर्युक्त में से कोई नहीं
8. न्याय की उदारता वादी- समानतावादी धारणा क
े प्रतिपादक कौन है?
[ a ] ह्यूम [ b ] लॉक [ c ] रॉबर्ट नाजिक [ d ] उपर्युक्त सभी
9. रोल्स क
े चिंतन में ‘प्राथमिक सामाजिक वस्तुएं’ क्या है?
[ a ] अधिकार एवं स्वतंत्रता [ b ] शक्तियां [ c ] अवसर एवं धन संपदा [ d ] उपर्युक्त
सभी
10. रॉल्स की दृष्टि में किस स्थिति मेंअसमानता भी न्याय पूर्ण बन जाती है।
[ a ] यदि अवसर की समानता उपलब्ध है।
[ b ] असमानता समाज क
े सर्वाधिक कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचाने वाली हो।
[ c ] उपर्युक्त दोनों
[d ] b सही है, किं तु a गलत
11. रॉल्स ने किस तरह की समानता का समर्थन किया है।
[ a ] आय की समानता [ b ] अवसर की समानता [ c ] आधारभूत स्वतंत्रताओं की
समानता [ d ] b और c सही है।
12. ‘द आइडिया ऑफ जस्टिस’ क
े लेखक कौन है?
[ a ] रॉल्स [ b ] अमर्त्य सेन [ c ] नोजिक [d ] मार्क्स
13. अमर्त्य सेन द्वारा प्रतिपादित न्याय का सिद्धांत क
ै सा है।
[ a ] संस्थागत सिद्धांत [ b ] सामाजिक वास्तविकता पर आधारित सिद्धांत
[ c ] सामाजिक समझौते पर आधारित सिद्धांत [ d ] उपर्युक्त में से कोई नहीं
14 . अमर्त्य सेन ने न्याय क
े सिद्धांत क
े निर्माण हेतु किन दो दृष्टिकोण पर जोर दिया
है।
[ a ] तुलनात्मक दृष्टिकोण [ b ] विमर्शात्मक दृष्टिकोण [ c ] काल्पनिक दृष्टिकोण
[ d ] a और b सही है।
15. अमर्त्य सेन समाज में होने वाले अन्याय क
े लिए किसे उत्तरदायी ठहराया है।
[ a ] सर्व सत्तावादी राज्य
[ b ] जन जागरूकता का अभाव
[ c ] उपर्युक्त दोनों
[ d ] उपर्युक्त में से कोई नहीं।
16. अमर्त्य सेन की दृष्टि में सामाजिक न्याय की प्राप्ति क
े लिए क्या आवश्यक है।
[ a ] अवसरों को समझने क
े लिए लोगों की क्षमताओं का विकास
[ b ] संचार माध्यमों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रोत्साहन
[ c ]स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण की व्यवस्था
[ d ] उपर्युक्त सभी
उत्तर- 1. b 2. c 3. d 4. d 5. c 6. d 7. c 8. d 9. d 10. c 11.d 12. b 13.
b 14. d 15. c 16. d

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Nyay ki dharana

  • 1. न्याय की धारणा https://ergodebooks.com/image/cache/data/may2016/DADAX0674880145-600x600.jpg द्वारा - डॉ . ममता उपाध्याय एसो . प्रो . , राजनीति विज्ञान क ु . मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय , बदलपुर , गौतमबुद्ध नगर
  • 2. यह सामग्री विशेष रूप से शिक्षण और सीखने को बढ़ाने क े शैक्षणिक उद्देश्यों क े लिए है। आर्थिक / वाणिज्यिक अथवा किसी अन्य उद्देश्य क े लिए इसका उपयोग पूर्णत: प्रतिबंध है। सामग्री क े उपयोगकर्ता इसे किसी और क े साथ वितरित, प्रसारित या साझा नहीं करेंगे और इसका उपयोग व्यक्तिगत ज्ञान की उन्नति क े लिए ही करेंगे। इस ई - क ं टेंट में जो जानकारी की गई है वह प्रामाणिक है और मेरे ज्ञान क े अनुसार सर्वोत्तम है। न्याय की धारणा राजनीतिक सिद्धांत एवं व्यवहार दोनों में क ें द्रीय महत्त्व रखती है। वास्तविकता यह है कि एक सभ्य समाज एवं राज्य जिन मूल्यों को अपना आदर्श मानता है, न्याय उनमें से एक है। प्राचीन यूनानी विचारक प्लेटो ने न्याय को आदर्श राज्य का सर्वोच्च सद्गुण माना था। हार्वर्ड विश्वविद्यालय क े प्रख्यात दार्शनिक जॉन रॉल्स ने न्याय को ‘सभी सामाजिक संस्थाओं का प्रथम सद्गुण कहा’ है। व्यवहार में जितने भी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, सामाजिक, राजनीतिक या नागरिक अधिकार संबंधी आंदोलन हुए हैं, चाहे वह महिलावादी आंदोलन हो, पर्यावरणवादी आंदोलन हो, दलित आंदोलन हो, किसान या मजदूरों का आंदोलन हो या प्रजातिगत विभेद विरोधी आंदोलन हो,सभी का व्यापक उद्देश्य न्याय की स्थापना रहा है। न्याय का अर्थ एवं विशेषताएं- शाब्दिक दृष्टि से न्याय शब्द अंग्रेजी क े ‘ जस्टिस’ शब्द का हिंदी रूपांतर है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा क े शब्दों ‘Jungere’ एवं ‘Jus’ से हुई है जिसका तात्पर्य है-’ बांधना या एक साथ जोड़ना। न्याय की धारणा पर विचार करने पर इसकी निम्नांकित विशेषताएं बताई जा सकती हैं। ● यह एक जोड़ने वाली धारणा है जो लोगों क े मध्य उनक े हिस्से क े अधिकारों एवं दायित्व, पुरस्कार एवं दंड का समुचित वितरण कर उनक े मध्य सौहार्दपूर्ण संबंधों की स्थापना करती है।
  • 3. ● रोमन सम्राट जस्टिनियन क े अनुसार न्याय का अर्थ है- दूसरों को चोट या नुकसान न पहुंचाना एवं प्रत्येक व्यक्ति को वह उपलब्ध कराना जिसका वह हकदार है। ● न्याय स्वतंत्रता, समानता एवं भ्रातृत्व जैसे राजनीतिक मूल्यों से अंतः संबंधित है एवं उन मूल्यों क े मध्य संतुलन स्थापित करता है। न्याय संबंधी विभिन्न धारणाएं- मानव इतिहास क े विभिन्न कालों में न्याय क े विषय में भिन्न-भिन्न धारणाएं प्रचलित रही हैं। इनमें से क ु छ प्रमुख इस प्रकार हैं- 1. पारंपरिक धारणा- यह धारणा प्राचीन यूनान एवं भारतीय धर्म ग्रंथों में मिलती है। इस धारणा क े अनुसार मित्र क े साथ भलाई एवं शत्रु क े साथ बुराई का व्यवहार करना न्याय है। सत्य बोलने और ऋण चुकाने में भी न्याय निहित है। एक पारंपरिक धारणा क े अनुसार न्याय शक्तिशाली का हित साधन है ,जबकि दूसरी धारणा क े अनुसार न्याय की उपस्थिति दुर्बल लोगों क े हितों की रक्षा करने में है। ‘मनुस्मृति’ एवं ‘अर्थशास्त्र’ में वर्णित मत्स्य न्याय की धारणा क े अनुसार जिस प्रकार तालाब में बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा जाती है, उसी प्रकार समाज में शक्तिशाली लोग दुर्बल लोगों को अधीन बनाते हैं, अतः इस धारणा क े अनुसार शक्तिशाली का हित साधन ही न्याय है। 2. नैतिक न्याय की धारणा- इस धारणा का प्रतिपादन प्राचीन यूनानी विचारक प्लेटो क े द्वारा किया गया, जिसक े अनुसार मानव आत्मा में निहित तीन गुणों- विवेक, उत्साह और तृष्णा क े अनुसार समाज में तीन वर्गों का अस्तित्व होता है। यह वर्ग है -शासक वर्ग ,सैनिक वर्ग एवं उत्पादक वर्ग। तीनों वर्गों द्वारा कर्तव्य पालन न्याय का सृजन करता है। प्लेटो ने इसे सामाजिक न्याय की संज्ञा दी, जबकि व्यक्तिगत न्याय वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी आत्मा में निहित तीन स्वाभाविक गुणों में सामंजस्य स्थापित करते हुए जीवन जीता है।
  • 4. 3. मध्ययुगीन न्याय की धारणा- यह धारणा यूरोप में मध्य युग में प्रचलित रही है जिसक े अनुसार न्याय का स्रोत ईश्वर है ,इसलिए धर्म- ग्रंथों में वर्णित नियमों का पालन न्याय पूर्ण है क्योंकि यह नियम ईश्वरीय इच्छा क े प्रतीक हैं। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है इसलिए उसक े आदेशों का पालन न्याय पूर्ण है। 4. वितरणात्मक, सुधारात्मक एवं सामुदायिक न्याय की धारणा-[ Distributive,Corrective and Commutative Justice] ● इस धारणा को प्राचीन यूनानी विचारक अरस्तू ने प्रस्तुत किया। इसक े अनुसार- ● वस्तुओं एवं सेवाओं का समान लोगों में वितरण करना वितरणात्मक न्याय है। ● दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाले या उनक े अधिकारों का हनन करने वाले व्यक्ति को कानूनी दंड देना सुधारात्मक न्याय है। ● समाज में व्यापार आदि क े लिए व्यक्तियों क े मध्य किए गए समझौतों का पालन सुनिश्चित करना सामुदायिक न्याय हैं। 5. प्रक्रियात्मक एवं सार्थक न्याय की धारणा- [ Procedural and Substantive Jstice] यह न्याय की आधुनिक धारणा है जिसक े अनुसार नीति निर्माण एवं निर्णय निर्माण प्रक्रिया में किसी तरह का पक्षपात नहीं होना चाहिए ,यह धारणा कानून क े समक्ष समानता क े सिद्धांत पर आधारित विधि क े शासन को इंगित करती है एवं लिंग ,धर्म, प्रजाति, जाति , धन क े भेद क े बिना सबक े लिए एक जैसे कानूनी प्रावधान की मांग करती है। सार्थक न्याय की धारणा कानूनी प्रक्रियाओं क े परिणामों की निष्पक्षता पर बल देती है अर्थात कानूनों क े माध्यम से समाज को जो उपलब्ध होता है उसक े वितरण में किसी तरह का पक्षपात नहीं होना चाहिए।
  • 5. 6. आवश्यकता आधारित समानता वादी सामाजिक न्याय की धारणा-[ Need based Egalitarian Concept of Social Justice ] न्याय की इस धारणा का प्रतिपादन मार्क्सवादियों क े द्वारा किया गया जिसक े अनुसार समाज में सभी क े द्वारा कार्य योग्यता क े आधार पर किए जाने चाहिए एवं उपलब्धि आवश्यकता क े अनुसार प्राप्त होनी चाहिए। 7. अधिकार आधारित उदारवादी सामाजिक न्याय की धारणा- [ Rights based Libertarian Concept of Social Justice ] न्याय की यह धारणा लॉक एवं ह्यूम जैसे शास्त्रीय उदारवादियों तथा रॉबर्ट नॉजिक जैसे नव उदारवादी चिंतकों क े विचारों में मिलती है जो सामाजिक न्याय की प्राप्ति क े लिए राज्य द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता क े संरक्षण की सिफारिश करती है। न्याय की समानता वादी धारणा क े अंतर्गत नागरिकों की सकारात्मक स्वतंत्रता एवं लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा पर बल दिया जाता है। 8. प्राकृ तिक न्याय- [ Natural Justice ] एडमंड बर्क एवं डार्विन द्वारा प्रतिपादित इस धारणा क े अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्धियां उसक े प्राकृ तिक गुणों एवं योग्यताओं क े अनुसार प्राप्त होनी चाहिए। 9. उपयोगितावादी न्याय की धारणा - [ Utilitarian Concept of Justice ] बेंथम एवं जे. एस. मिल जैसे उपयोगिता वादी विचारकों क े विचारों पर आधारित इस धारणा क े अनुसार सामाजिक न्याय का आधार ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ है। 10. जॉन रॉल्स की उदारता वादी- समानता वादी सामाजिक न्याय की धारणा [Liberal Egalitarian Principles of Social Justice] जॉन रॉल्स बीसवीं शताब्दी क े अमेरिकी राजनीतिक दार्शनिक हैं जो उदारवादी परंपरा से संबंधित हैं। उनकी न्याय संबंधी धारणा एक ऐसे समाज का चित्र प्रस्तुत करती है जिसमें नागरिक समान अधिकारों का प्रयोग करते हुए समतावादी आर्थिक व्यवस्था क े अंतर्गत सहयोग पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। उनक े उदारवादी धारणा जनतंत्र में वैध शक्ति क े प्रयोग की संभावना को खोजती है और एक ऐसे नागरिक समाज क े स्थापना का चित्र
  • 6. प्रस्तुत करती है जो लोगों क े विभिन्न दृष्टिकोणों क े बावजूद उन्मे मौजूद एकता क े भाव को प्रस्तुत करती है। जॉन लॉक, कांट ,मिल, रूसो आदि दार्शनिकों क े विचारों से प्रभावित जॉन रॉल्स ने न्याय की उपयोगिता वादी धारणा की आलोचना की क्योंकि यह सिद्धांत समाज क े अधिकतम व्यक्तियों क े अधिकतम सुख का उद्देश्य रखता है, न कि समाज क े प्रत्येक व्यक्ति क े कल्याण का। रॉल्स ने कांट क े प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता की धारणा में विश्वास व्यक्त किया है। उनक े अनुसार ‘’एक सभ्य एवं तार्कि क समाज पारस्परिक लाभ पर आधारित एक सहयोगी व्यवस्था है। ‘’ एक न्यायपूर्ण समाज में ‘प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं’[ Primary Social Goods ] का इसक े सभी सदस्यों में न्याय पूर्ण ढंग से वितरण किया जाता है एवं समाज में दायित्व और लाभों का वितरण निष्पक्ष रुप से होता है। प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं में अधिकार एवं स्वतंत्रताए, शक्तियां, अवसर एवं धन -संपदा आते हैं ,जो समाज की आधारभूत संरचना द्वारा वितरित किए जाते हैं। न्याय क े दो सिद्धांत- रॉल्स क े अनुसार वस्तुओं का न्यायपूर्ण वितरण तब संभव होता है जब न्याय क े निम्नांकित दो सिद्धांतों का पालन किया जाता है। 1. आधारभूत स्वतंत्रताओं की समानता का सिद्धांत- इस सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए राल्स ने यह प्रतिपादित किया कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को आधारभूत स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए। आधारभूत स्वतंत्रता में अंतर चेतना, विचार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संपत्ति की स्वतंत्रता, संघ की स्वतंत्रता, बिना कारण गिरफ्तारी से स्वतंत्रता, विधि क े शासन की स्वतंत्रता आदि शामिल है। रॉल्स क े अनुसार यह स्वतंत्रता व्यक्ति को दो सर्वोच्च नैतिक शक्तियों क े उपयोग योग्य बनाती है। यह दो नैतिक शक्तियां हैं- 1. न्याय क े सिद्धांत क े अनुसार समझ एवं कार्य क्षमता का विकास। 2. सामाजिक वस्तुओं को विकसित करने ,संशोधित करने एवं प्राप्त करने की क्षमता का विकास। 2. अवसर की निष्पक्ष समानता का सिद्धांत-
  • 7. जॉन रॉल्स क े अनुसार न्याय की प्राप्ति क े लिए यह आवश्यक है कि आधारभूत स्वतंत्रता सभी को उपलब्ध होने क े साथ-साथ अवसर की समानता उपलब्ध हो। रोल्स का तर्क है कि यदि किसी समाज में असमानता दिखाई देती है तो वह भी उस स्थिति में न्याय पूर्ण बन जाती है जब उस असमानता का उद्देश्य समाज क े सर्वाधिक कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचाना हो। जैसे भारत जैसे देश में राज्य क े द्वारा दलित वर्गों क े उत्थान क े लिए आरक्षण की जो नीति लागू की गई है वह रॉल्स क े सिद्धांत क े अनुसार न्याय पूर्ण है। भले ही समाज का एक वर्ग इसे अवसर की समानता क े विरुद्ध मानता हो, किं तु इस नीति से कमजोर वर्गों का उत्थान होता है। दूसरी तरफ यदि कोई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए समाज की अधिक संपत्ति पर अधिकार कर लेते हैं तो यह भी न्याय पूर्ण है, क्योंकि तार्कि क दृष्टि से सभी को वे अवसर समान रूप से उपलब्ध है जिनका लाभ उठाकर सभी संपत्ति का अर्जन कर सकते हैं। रोल्स का तर्क है कि अत्यधिक आय की समानता समाज से रचनात्मकता और उत्पादकता को समाप्त कर देती है, क्योंकि तब योग्य एवं कर्मठ लोग कोई विशेष उपलब्धि न देखते हुए अकर्मण्यता एवं आलस्य क े शिकार हो जाते हैं और उनकी योग्यता का लाभ समाज को नहीं मिल पाता है। ● न्याय क े 2 सिद्धांतों का सोपान- रोल्स क े मतानुसार न्याय क े उपर्युक्त 2 सिद्धांतों में एक सोपानात्मक क्रम है,अर्थात प्रथम सिद्धांत क े अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को आधारभूत स्वतंत्रताएँ उपलब्ध कराए बिना अवसर की समानता क े लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सकता है, अतः सबको स्वतंत्रता उपलब्ध कराने क े पश्चात राज्य को शैक्षणिक, सांस्कृ तिक और आर्थिक क्षेत्र में अवसर की समानता स्थापित करना सुनिश्चित करना चाहिए एवं बीमारी तथा बेरोजगारी संबंधी लाभ उपलब्ध कराने चाहिए। ● सामाजिक समझौता प्रक्रिया - रूसो क े चिंतन से प्रेरणा ग्रहण करते हुए सामाजिक न्याय को मूर्त रूप देने क े लिए जॉन रॉल्स एक ऐसे समाज क े पुनर्गठन का सुझाव देते हैं जिसका निर्माण लोगों द्वारा आपसी
  • 8. समझौते से किया जाएगा। समझौते में भाग लेने वाले व्यक्ति अपने गुणों, सामाजिक प्रस्थिति एवं ‘सामाजिक वस्तुओं’ क े विषय में अपनी धारणा से अनभिज्ञ होंगे, इस स्थिति को रोल्स ‘ वेल ऑफ़ इग्नोरेंस’ कहते हैं।तात्पर्य यह है कि लोग बिना किसी पूर्वाग्रह क े न्याय क े सिद्धांतों पर सहमति बनाएंगे । सामाजिक समझौते में भाग लेने वाले लोगों को न्याय की सामान्य परिस्थितियों का बोध होगा और वह सामाजिक न्याय की उपर्युक्त धारणाओं क े आधार पर समाज का गठन करेंगे। ● न्याय क े क्रियान्वयन हेतु सरकार की 4 शाखाएं- रोल्स की मान्यता है कि सामाजिक न्याय की उपर्युक्त धारणाओं को क्रियान्वित करने क े उद्देश्य से सरकार की 3 शाखाओं का गठन किया जाना चाहिए। यह शाखाएं हैं- 1. आवंटन शाखा [ Allocation Branch ] इस शाखा का कार्य मूल्य- व्यवस्था को प्रतिस्पर्धी बनाना एवं अतार्कि क बाजारी शक्तियों क े विकास को रोकना होगा। 2. स्थायित्व शाखा-[ Stabilization Branch ] यह शाखा बाजार अर्थव्यवस्था की क ु शलता को बनाए रखते हुए आवंटन शाखा क े सहयोग से समाज में पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखेगी। 3. स्थानांतरण शाखा - [ Transfer Branch ] यह शाखा लोगों की जरूरतों एवं औचित्य पूर्ण जीवन शैली की मांगों को पूरा करने का कार्य करेगी। 4. वितरण शाखा- [ Distribution Branch ] यह शाखा कर- व्यवस्था एवं संपत्ति संबंधी अधिकारों में सामंजस्य बनाए रखते हुए वितरणात्मक न्याय व्यवस्था का संरक्षण करेगी। आलोचना- यद्यपि राल्स ने तार्कि क ढंग से सामाजिक न्याय क े सिद्धांत का प्रस्तुतीकरण किया, किं तु उदारवादियों, समाजवादियों एवं समुदाय वादियों आदि सभी ने उनक े विचारों की आलोचना की है। आलोचना क े प्रमुख आधार इस प्रकार है-
  • 9. ● नव उदारवादी रॉबर्ट नॉजिक ने अपनी पुस्तक ‘एनार्की , स्टेट एंड यूटोपिया’[ 1974] मे लिखा कि रोल्स की न्याय की धारणा संरक्षणवादी धारणा है, जो राज्य को साध्य मानते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को रौदती है,जबकि स्वतंत्रता सहित संपत्ति संबंधी व्यक्तिगत अधिकार अनुलंघनीय है । प्रकारांतर से राल्स ने मुक्त बाजार एवं पूंजीवाद को न्याय क े पर्याय क े रूप में प्रस्तुत करते हुए पूंजीवादी व्यवस्था क े समर्थक क े रूप मे राज्य को प्रस्तुत किया है। ● मार्क्सवादियों क े अनुसार रॉल्स की न्याय की धारणा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में होने वाले मजदूरों क े शोषण को रोकने में नाकाम है। समाजवादियों ने ऐसे समाज को न्याय पूर्ण माना है जिसमें कार्य योग्यता क े अनुसार संपन्न हो, किं तु सभी को सामाजिक आर्थिक उपलब्धियां उनकी आवश्यकता क े अनुसार प्राप्त हो। आलोचकों क े अनुसार अवसर की समानता एवं स्वतंत्रता की समानता औद्योगिक समाज मे शोषण को रोकने मे सक्षम नहीं हैं । ● समुदायवादी विचारको माइकल सैंडल एवं चार्ल्स टेलर क े अनुसार राल्स ने व्यक्तिगत अधिकारों को सामुदायिक अधिकारों पर प्रमुखता प्रदान की है। अपनी पुस्तक ‘ लिबरलिज्म एंड लिमिट्स आफ जस्टिस’ में सैंडल ने राल्स की व्यक्तिगत अधिकार की धारणा को ‘ सिचुएटेड सेल्फ’ की धारणा कहकर आलोचना की है एवं टेलर ने इसे ‘ आणविक धारणा’[ Atomistic ] कहा है। उनकी मान्यता है कि व्यक्ति का कल्याण समुदाय क े कल्याण पर निर्भर करता है, इसलिए सामुदायिक अधिकार व्यक्तिगत अधिकारों क े न्यायपूर्ण वितरण से कम महत्वपूर्ण नहीं है। अमर्त्य सेन की न्याय की धारणा [ Social Realization Theory ]
  • 10. अमर्त्य सेन 20- 21 वी शताब्दी क े राजनीतिक अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने न्याय की प्रचलित धारणाओं विशेषकर जॉन रॉल्स क े न्याय सिद्धांत की आलोचना की है और सामाजिक वास्तविकता पर आधारित न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया है। उनक े चिंतन पर जॉन स्टूअर्ट मिल ,बेंथम, मार्क्स, मेरी वोल्स्टोन क्राफ्ट आदि क े विचारों का प्रभाव है। अमर्त्य सेन द्वारा लिखित पुस्तक ें हैं- ‘ ● द आइडिया ऑफ जस्टिस ● पावर्टी एंड फ े मिने ● डेवलपमेंट एस फ्रीडम ● इनिक्वालिटी रिएग्जामिन्ड राल्स क े न्याय सिद्धांत की आलोचना- अमर्त्य सेन की मान्यता है कि न्याय क े सर्व सम्मत सिद्धांत क े आधार पर किसी संस्था का मूल्यांकन करने से ज्यादा अच्छा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में अन्याय क े विभिन्न पहलुओं और कारणों को उजागर करना है। अतः न्याय क े संस्थागत सिद्धांत क े स्थान पर सेन ने सामाजिक वास्तविकता पर आधारित न्याय का सिद्धांत प्रतिपादित किया है। इसलिए वह इसे सामाजिक न्याय का सिद्धांत कहते हैं। सेन ने रॉल्स क े न्याय सिद्धांत की आलोचना निम्नांकित आधारों पर की है- ● राल्स ने समाज की मूल स्थिति में ‘अज्ञान क े पर्दे’ [ veil of ignorance] क े साथ आपसी समझौते क े आधार पर न्याय क े सर्वमान्य सिद्धांतों क े निर्माण की बात कही है। सेन क े अनुसार यह सिद्धांत सर्वमान्य नहीं हो सकता क्योंकि समझौते से वह लोग बाहर हो जाते हैं, जो मूल स्थिति में अज्ञान क े पर्दे में नहीं है। जैसे विदेशी नागरिक और भावी पीढ़ी क े लोग। अमर्त्य सेन यह प्रश्न करते हैं कि क्या उन्हें समझौते से बाहर रखना उनक े साथ अन्याय नहीं है? ● रॉल्स ने अज्ञान क े पर्दे की जो धारणा दी है, उसक े अनुसार लोग न्याय क े सिद्धांतों का निर्माण करते समय पद एवं प्रस्थिति , संपदा, जाति -प्रजाति, योग्यता ,क्षमता या कौशल एवं शक्ति क े पूर्वाग्रहों से मुक्त होंगे। सेन की
  • 11. आपत्ति है कि लोग अपने मूल्यों से मुक्त रहकर क ै से न्याय क े सिद्धांतों का निर्माण करेंगे, इसक े निरीक्षण की कोई व्यवस्था रॉल्स क े सिद्धांत में नहीं है। ● समाज की मूल स्थिति में रहते हुए वैश्विक न्याय की स्थापना नहीं हो सकती क्योंकि दुनिया क े सभी राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय कर्ताओं का पूर्वाग्रहों से मुक्त रहना व्यवहार में संभव नहीं है। ● राल्स ने अपनी न्याय की धारणा को वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष बताया है। इस संबंध में सेन ने यह प्रतिपादित किया है कि रोल्स की धारणा क े अलावा बहुत सी ऐसी धारणाएँ है, जिन्हें निष्पक्ष कहा जा सकता है। ● रॉल्स का सिद्धांत नीति पर आधारित है, न्याय पर नहीं। न्याय क े सिद्धांत क े निर्माण क े दो आधार- रॉल्स क े सिद्धांत की आलोचना करने क े बाद अमर्त्य सेन ने न्याय क े सिद्धांत क े निर्माण हेतु दो आधार प्रस्तुत किए। यह है- 1. तुलनात्मक दृष्टिकोण- जिसक े अनुसार समाज में विद्यमान न्याय क े विभिन्न विकल्पों का चयन किया जाना चाहिए और उनकी पारस्परिक तुलना क े आधार पर सर्वोत्तम दृष्टिकोण क े अनुसार न्याय क े सिद्धांत का निर्माण होना चाहिए। स्पष्ट है कि सेन ने व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए वैज्ञानिक ढंग से न्याय क े सिद्धांत क े निर्माण का पक्ष लिया है। 2. दूसरे, न्याय का सिद्धांत निर्मित करते समय व्यापक विचार - विमर्श की पद्धति को अपनाया जाना चाहिए। यहां सेन मिल की वैचारिक स्वतंत्रता क े धारणा क े समर्थक दिखाई देते हैं। सेन की मान्यता है कि इन आधारों पर भले ही न्याय क े सर्वमान्य सिद्धांतों तक पहुंचना संभव न हो, लेकिन अन्याय को दूर करने का यह आधार वस्तुनिष्ठ अवश्य होगा। ● अन्याय क े कारण-
  • 12. अमर्त्य सेन ने सामाजिक वास्तविकता पर विचार करते हुए उन कारणों की विवेचना भी की है, जिनसे किसी समाज में अन्याय का जन्म होता है। अन्याय क े निम्नांकित कारण सेन द्वारा बताए गए हैं- ● सेन क े अनुसार एक सर्वसत्तावादी राज्य जो स्वतंत्र विचारों को दबा देता है और अन्याय क े विरुद्ध आवाजों को नहीं सुनता, अन्याय का सबसे बड़ा कारण होता है। 1943 का बंगाल का दुर्भिक्ष इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब औपनिवेशिक सरकार क े द्वारा सर्व सत्तावादी रवैया अपनाया गया। ● लोगों में जागरूकता का अभाव भी अन्याय का कारण है। जागरूकता की कमी क े कारण लोग अपने प्रति होने वाले अन्याय को समझ नहीं पाते, समझते हैं, तो व्यक्त नहीं कर पाते। सेन का विचार है कि गरीबी, क ु पोषण, अशिक्षा और दुर्भिक्ष अन्याय क े विभिन्न रूप है। अब तक विकासशील देशों में राजनीतिक अधिकारों की अनुपलब्धता की गलत व्याख्या करते हुए यह प्रतिपादित किया गया कि गरीबी क े कारण लोग राजनीतिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते हैं, किं तु सेन यह मानते हैं कि अन्याय पूर्ण राजनीतिक कार्यवाहियाँ और जन जागरूकता का अभाव इसक े लिए उत्तरदाई है। संसाधनों का अभाव दुर्भिक्ष क े लिए जिम्मेदार नहीं है। ● न्याय प्राप्ति क े उपाय- क्षमता निर्माण सिद्धांत [ Capability Theory] अन्याय क े कारणों का विश्लेषण करने क े बाद सेन ने न्याय प्राप्ति क े उपायों की भी चर्चा की है। सेन यह मानते हैं कि न्याय प्राप्ति क े लिए आवश्यक है कि लोगों की क्षमताओं का इस तरीक े से विकास किया जाय ताकि वे अवसरों को जान सक े और उसका लाभ उठा सक ें । इस तरह की क्षमता का निर्माण स्वास्थ्य ,शिक्षा और पोषण क े माध्यम से किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में विकास ही स्वतंत्रता का सूचक है। न्याय की प्राप्ति क े लिए संचार माध्यमों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रोत्साहित किया जाना भी आवश्यक है, क्योंकि यह अन्याय क े विरुद्ध आवाज उठाने का सर्वाधिक कारगर साधन हो सकते हैं और सर्व सत्तावादी राज्य की अन्याय पूर्ण राजनीतिक कार्यवाहियों से जन सामान्य की रक्षा करने में सहायक हो सकते हैं।
  • 13. मुख्य शब्द- न्याय, वितरण आत्मक न्याय, सुधारात्मक न्याय, प्राथमिक सामाजिक वस्तुएं, सामाजिक वास्तविकता References and Suggested Readings ● John Rawls , Stanford Encyclopaedia of Philosophy ● John Rawls,A Theory of Justice ● Work by Rawls,Britannica,britannica.com ● The Idea of Justice,Amartya Sen,Harvard University Press,www.hup.harvard.edu ● Carlos Hoevel, Amartya Sen”s Theory of Justice And The Idea of Social Justice in Antonio Rosmini,www.researchgate.net ● Earnest Barkar, Greek Political Thinking प्रश्न- निबंधात्मक- 1. नैतिक एवं वितरणात्मक न्याय क े विशेष संदर्भ में न्याय की पारंपरिक धारणा की विवेचना कीजिए. 2. जॉन रॉल्स द्वारा प्रतिपादित न्याय की धारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए. 3. अमर्त्य सेन की सामाजिक वास्तविकता पर आधारित न्याय की धारणा क्या है? सेन ने जॉन रॉल्स की न्याय की धारणा की किन आधारों पर आलोचना की है. वस्तुनिष्ठ- 1. शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘Justice’ शब्द का क्या तात्पर्य है?
  • 14. [ a ] समानता [ b ] बांधना या एक साथ जोड़ना [ c] स्वतंत्रता [ d ] उपर्युक्त सभी 2. प्राचीन भारत में न्याय की किस अवधारणा का प्रतिपादन किया गया? [ a ] मित्र क े साथ भलाई एवं शत्रु क े साथ बुराई [ b ] दुर्बल का हित साधन [ c ] मत्स्य न्याय [ d ] योग्यतम की उत्तरजीविता 3. यूरोप में मध्य युग में न्याय की अवधारणा क ै सी थी? [ a ] समझौते पर आधारित [ b ] ईश्वरीय न्याय की धारणा [c ] धर्म ग्रंथों में वर्णित नियमों का पालन [ d ] c और b सही है. 4. प्राचीन यूनानी विचारक अरस्तु ने न्याय की किस धारणा का प्रतिपादन किया? [ a ] वितरणात्मक न्याय [ b ] सुधारात्मक न्याय [ c ] सामुदायिक न्याय [ d ] उपर्युक्त सभी 5. प्लेटो द्वारा प्रतिपादित न्याय की अवधारणा किस श्रेणी में रखी जाती है। [ a ] कानूनी [ b ] राजनीतिक [ c ] नैतिक [ d ] उपर्युक्त सभी 6. प्रक्रियात्मक न्याय क्या है? [ a ] न्याय की उचित प्रक्रिया का पालन [ b ] नीति निर्माण एवं निर्णय निर्माण प्रक्रिया में किसी तरह का पक्षपात ना होना [ c ] कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करना [ d ] उपर्युक्त सभी 7. न्याय की समानता वादी धारणा की विशेषता क्या है? [ a ] मार्क्स वादियों द्वारा प्रतिपादित [ b ] कार्य योग्यता क े आधार पर, उपलब्धि आवश्यकता क े आधार पर [ c ] उपर्युक्त दोनों [ d ] उपर्युक्त में से कोई नहीं
  • 15. 8. न्याय की उदारता वादी- समानतावादी धारणा क े प्रतिपादक कौन है? [ a ] ह्यूम [ b ] लॉक [ c ] रॉबर्ट नाजिक [ d ] उपर्युक्त सभी 9. रोल्स क े चिंतन में ‘प्राथमिक सामाजिक वस्तुएं’ क्या है? [ a ] अधिकार एवं स्वतंत्रता [ b ] शक्तियां [ c ] अवसर एवं धन संपदा [ d ] उपर्युक्त सभी 10. रॉल्स की दृष्टि में किस स्थिति मेंअसमानता भी न्याय पूर्ण बन जाती है। [ a ] यदि अवसर की समानता उपलब्ध है। [ b ] असमानता समाज क े सर्वाधिक कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचाने वाली हो। [ c ] उपर्युक्त दोनों [d ] b सही है, किं तु a गलत 11. रॉल्स ने किस तरह की समानता का समर्थन किया है। [ a ] आय की समानता [ b ] अवसर की समानता [ c ] आधारभूत स्वतंत्रताओं की समानता [ d ] b और c सही है। 12. ‘द आइडिया ऑफ जस्टिस’ क े लेखक कौन है? [ a ] रॉल्स [ b ] अमर्त्य सेन [ c ] नोजिक [d ] मार्क्स 13. अमर्त्य सेन द्वारा प्रतिपादित न्याय का सिद्धांत क ै सा है। [ a ] संस्थागत सिद्धांत [ b ] सामाजिक वास्तविकता पर आधारित सिद्धांत [ c ] सामाजिक समझौते पर आधारित सिद्धांत [ d ] उपर्युक्त में से कोई नहीं 14 . अमर्त्य सेन ने न्याय क े सिद्धांत क े निर्माण हेतु किन दो दृष्टिकोण पर जोर दिया है। [ a ] तुलनात्मक दृष्टिकोण [ b ] विमर्शात्मक दृष्टिकोण [ c ] काल्पनिक दृष्टिकोण [ d ] a और b सही है। 15. अमर्त्य सेन समाज में होने वाले अन्याय क े लिए किसे उत्तरदायी ठहराया है। [ a ] सर्व सत्तावादी राज्य [ b ] जन जागरूकता का अभाव [ c ] उपर्युक्त दोनों
  • 16. [ d ] उपर्युक्त में से कोई नहीं। 16. अमर्त्य सेन की दृष्टि में सामाजिक न्याय की प्राप्ति क े लिए क्या आवश्यक है। [ a ] अवसरों को समझने क े लिए लोगों की क्षमताओं का विकास [ b ] संचार माध्यमों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रोत्साहन [ c ]स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण की व्यवस्था [ d ] उपर्युक्त सभी उत्तर- 1. b 2. c 3. d 4. d 5. c 6. d 7. c 8. d 9. d 10. c 11.d 12. b 13. b 14. d 15. c 16. d