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लाल बहादुर शास्त्री 
(1904 – 1966)
लाल बहादुर शास्त्री 
लाल बहादुर शास्त्री एक प्रसिद्ध भारतीय राजनेता, महान स्त्वतंरता 
िेनानी और जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के दूिरे प्रधानमंरी थे। 
लाल बहादुर शास्त्री एक ऐिी हस्त्ती थे जजन्होंने प्रधानमंरी के रूप में 
देश को न सिर्फ िैन्य गौरव का तोहर्ा ददया बजकक हररत क्ांतत और 
औद्योगीकरण की राह भी ददखाई। शास्त्री जी ककिानों को जहां देश का 
अन्नदाता मानते थे, वह ं देश के िीमा प्रहररयों के प्रतत भी उनके मन 
में अगाध प्रेम था जजिके चलते उन्होंने 'जय जवान, जय ककिान' का 
नारा ददया।
जीवन पररचय 
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मगुलिराय, उत्तर प्रदेश में'मशंुी शारदा प्रिाद 
श्रीवास्त्तव' केयहााँहुआ था। इनकेपपता प्राथसमक पवद्यालय मेंसशक्षक थे। अत: िब उन्हें'मंशुी जी' ह 
कहते थे। बाद मेंउन्होंने राजस्त्व पवभाग मेंसलपपक (क्लकफ) की नौकर कर ल थी। लालबहादुर की मााँ 
का नाम 'रामदलुार ' था। पररवार मेंिबिेछोटा होनेकेकारण बालक लालबहादरुको पररवार वाले 
प्यार िे नन्हेंकहकर ह बुलाया करते थे। जब नन्हेंअठारह मह ने का हुआ तब दुभाफग्य िे पपता का 
तनधन हो गया। उिकी मााँरामदुलार अपने पपता हजार लाल के घर समर्ाफपुर चल गयीं। कुछ िमय 
बाद उिके नाना भी नह ं रहे। बबना पपता के बालक नन्हेंकी परवररश करने मेंउिके मौिा रघुनाथ 
प्रिाद ने उिकी मााँका बहुत िहयोग ककया। नतनहाल मेंरहते हुए उिने प्राथसमक सशक्षा ग्रहण की। 
उिके बाद की सशक्षा हररश्चन्र हाई स्त्कूल और काशी पवद्यापीठ मेंहुई। काशी पवद्यापीठ िे शास्त्री की 
उपाधध समलते ह प्रबुद्ध बालक ने जन्म िे चला आ रहा जाततिूचक शब्द श्रीवास्त्तव हमेशा के सलये 
हटा ददया और अपने नाम के आगेशास्त्री लगा सलया। इिके पश्चात 'शास्त्री' शब्द 'लालबहादुर' के नाम 
का पयाफय ह बन गया। 
सशक्षा 
भारत मेंबिदटश िरकार के ख़िलाफ़ महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अिहयोग आंदोलन के एक 
कायकफताफलाल बहादरुथोडेिमय (1921) केसलयेजेल गए। ररहा होनेपर उन्होंनेएक राष्ट्रवाद 
पवश्वपवद्यालय काशी पवद्यापीठ (वतफमान महात्मा गांधी काशी पवद्यापीठ) मेंअध्ययन ककया और 
स्त्नातकोत्तर शास्त्री (शास्त्रों का पवद्वान) की उपाधध पाई। स्त्नातकोत्तर के बाद वह गांधी के अनुयायी के 
रूप मेंकर्र राजनीतत मेंलौटे, कई बार जेल गए और िंयुक्त प्रांत, जो अब उत्तर प्रदेश है, की कांग्रेि 
पाटी मेंप्रभावशाल पद ग्रहण ककए। 1937 और 1946 मेंशास्त्री प्रांत की पवधातयका मेंतनवाफधचत हुए। 
पववाह 
1928 मेंउनका पववाह गणेशप्रिाद की पुरी 'लसलता' िे हुआ। लसलता जी िे उनके छ: िन्तानेंहुईं, 
चार पुर- हररकृष्ट्ण, अतनल, िुनील व अशोक; और दो पुबरयााँ- कुिुम व िुमन। उनके चार पुरों मेंिे 
दो- अतनल शास्त्री और िुनील शास्त्री अभी भी हैं, शेष दो ददवंगत हो चुके हैं।
राजनीतिक जीवन 
िंस्त्कृत भाषा में स्त्नातक स्त्तर तक की सशक्षा िमाप्त करने के पश्चात ्वे भारत िेवक िंघ 
िे जुड गये और देशिेवा का व्रत लेते हुए यह ं िे अपने राजनैततक जीवन की शुरुआत की। 
शास्त्रीजी िच्चे गान्धीवाद थे जजन्होंने अपना िारा जीवन िादगी िे बबताया और उिे गर बों 
की िेवा में लगाया। भारतीय स्त्वाधीनता िंग्राम के िभी महत्वपूणफ कायफक्मों व आन्दोलनों 
में उनकी िकक्य भागीदार रह और उिके पररणामस्त्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना 
पडा। स्त्वाधीनता िंग्राम के जजन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूणफ भूसमका रह उनमें 1921 
का अिहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी माचफ तथा 1942 का भारत छोडो आन्दोलन 
उकलेखनीय हैं। 
दूिरे पवश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुर तरह उलझता देख जैिे ह नेताजी ने आजाद दहन्द 
र्ौज को "ददकल चलो" का नारा ददया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भााँपते हुए 8 
अगस्त्त 1942 की रात में ह बम्बई िे अाँग्रेजों को "भारत छोडो" व भारतीयों को "करो या 
मरो" का आदेश जार ककया और िरकार िुरक्षा में यरवदा पुणे जस्त्थत आगा खान पैलेि में 
चले गये। 9 अगस्त्त 1942 के ददन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुाँचकर इि आन्दोलन के 
गान्धीवाद नारे को चतुराई पूवफक "मरो नह ीं, मारो!" में बदल ददया और अप्रत्यासशत रूप िे 
क्ाजन्त की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे ददया। पूरे ग्यारह ददन तक भूसमगत रहते 
हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त्त 1942 को शास्त्रीजी धगरफ्तार हो गये। 
शास्त्रीजी के राजनीततक ददग्दशकफों में पुरुषोत्तमदाि टंडन और पजण्डत गोपवदं बकलभ पंत के 
अततररक्त जवाहरलाल नेहरू भी शासमल थे। िबिे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद 
उन्होंने टण्डनजी के िाथ भारत िेवक िंघ की इलाहाबाद इकाई के िधचव के रूप में काम 
करना शुरू ककया। इलाहाबाद में रहते हुए ह नेहरूजी के िाथ उनकी तनकटता बढ । इिके 
बाद तो शास्त्रीजी का कद तनरन्तर बढता ह चला गया और एक के बाद एक िर्लता की 
िीदढयााँ चढते हुए वे नेहरूजी के मंबरमण्डल में गृहमन्री के प्रमुख पद तक जा पहुाँचे। और 
इतना ह नह ं, नेहरू के तनधन के पश्चात भारतवषफ के प्रधान मन्री भी बने।
भारि के दूसरे प्रधानमींरी 
1961 में गृह मंरी के प्रभावशाल पद पर तनयुजक्त के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्त्थ के रूप में प्रततष्ट्ठा 
समल । 3 िाल बाद जवाहरलाल नेहरू के बीमार पडने पर उन्हें बबना ककिी पवभाग का मंरी तनयुक्त ककया 
गया और नेहरू की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह भारत के प्रधानमंरी बने। भारत की आधथफक 
िमस्त्याओं िे प्रभावी ढंग िे न तनपट पाने के कारण शास्त्री जी की आलोचना हुई, लेककन जम्मू-कश्मीर 
के पववाददत प्रांत पर पडोिी पाककस्त्तान के िाथ वैमनस्त्य भडकने पर (1965) उनके द्वारा ददखाई गई 
दृढ़ता के सलये उन्हें बहुत लोकपप्रयता समल । ताशकंद में पाककस्त्तान के राष्ट्रपतत अयूब ़िान के िाथ युद्ध 
करने की ताशकंद घोषणा के िमझौते पर हस्त्ताक्षर करने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। 
'जय जवान, जय ककसान' का नारा 
धोती कुते में सिर पर टोपी लगाए गांव-गांव ककिानों के बीच घूमकर हाथ को हवा में लहराता, जय जवान, 
जय ककिान का उद्घोष करता। ये उिके व्यजक्तत्व का दूिरा पहलू है। भले ह इि महान व्यजक्त का कद 
छोटा हो लेककन भारतीय इततहाि में उिका कद बहुत ऊंचा है। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद शास्त्री 
जी ने 9 जून, 1964 को प्रधानमंरी का पदभार ग्रहण ककया। उनका कायफकाल राजनीततक िरगसमफयों िे 
भरा और तेज गततपवधधयों का काल था। पाककस्त्तान और चीन भारतीय िीमाओं पर नर्रें गडाए खडे थे 
तो वह ं देश के िामने कई आधथफक िमस्त्याएं भी थीं। लेककन शास्त्री जी ने हर िमस्त्या को बेहद िरल 
तर के िे हल ककया। ककिानों को अन्नदाता मानने वाले और देश की िीमा प्रहररयों के प्रतत उनके अपार 
प्रेम ने हर िमस्त्या का हल तनकाल ददया "जय जवान, जय ककिान" के उद्घोष के िाथ उन्होंने देश को 
आगे बढ़ाया। 
भारत-पाककस्त्तान युद्ध (1965) 
जजि िमय लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंरी बने उि िाल 1965 में पाककस्त्तानी हुकूमत ने कश्मीर घाट को 
भारत िे छीनने की योजना बनाई थी। लेककन शास्त्री जी ने दूरदसशफता ददखाते हुए पंजाब के रास्त्ते लाहौर 
में िेंध लगा पाककस्त्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर ददया। इि हरकत िे पाककस्त्तान की पवश्व स्त्तर पर 
बहुत तनदंा हुई। पाक हुक्मरान ने अपनी इज्जत बचाने के सलए तत्काल न िोपवयि िघं िे िपंकफ िाधा 
जजिके आमंरण पर शास्त्री जी 1966 में पाककस्त्तान के िाथ शांतत िमझौता करने के सलए ताशकंद गए। 
इि िमझौते के तहत भारत, पाककस्त्तान के वे िभी दहस्त्िे लौटाने पर िहमत हो गया, जहां भारतीय िेना 
ने पवजय के रूप में ततरंगा झंडा गाड ददया था।
सम्मान और पुरस्त्कार 
शास्त्रीजी को उनकी िादगी, देशभजक्त और ईमानदार के सलये पूरा भारत श्रद्धापूवफक याद करता है। उन्हें वषफ 
1966 में भारत रत्न िे िम्मातनत ककया गया। और पुरस्त्कार 
तनधन 
ताशकंद िमझौते के बाद ददल का दौरा पडने िे 11 जनवर , 1966 को ताशकंद में शास्त्री जी का तनधन हो 
गया। हालांकक उनकी मृत्यु को लेकर आज तक कोई आधधकाररक ररपोटफ िामने नह ं लाई गई है। उनके पररजन 
िमय िमय पर उनकी मौत का िवाल उठाते रहे हैं। यह देश के सलए एक शमफ का पवषय है कक उिके इतने 
काबबल नेता की मौत का कारण आज तक िार् नह ं हो पाया।

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  • 2. लाल बहादुर शास्त्री लाल बहादुर शास्त्री एक प्रसिद्ध भारतीय राजनेता, महान स्त्वतंरता िेनानी और जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के दूिरे प्रधानमंरी थे। लाल बहादुर शास्त्री एक ऐिी हस्त्ती थे जजन्होंने प्रधानमंरी के रूप में देश को न सिर्फ िैन्य गौरव का तोहर्ा ददया बजकक हररत क्ांतत और औद्योगीकरण की राह भी ददखाई। शास्त्री जी ककिानों को जहां देश का अन्नदाता मानते थे, वह ं देश के िीमा प्रहररयों के प्रतत भी उनके मन में अगाध प्रेम था जजिके चलते उन्होंने 'जय जवान, जय ककिान' का नारा ददया।
  • 3. जीवन पररचय लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मगुलिराय, उत्तर प्रदेश में'मशंुी शारदा प्रिाद श्रीवास्त्तव' केयहााँहुआ था। इनकेपपता प्राथसमक पवद्यालय मेंसशक्षक थे। अत: िब उन्हें'मंशुी जी' ह कहते थे। बाद मेंउन्होंने राजस्त्व पवभाग मेंसलपपक (क्लकफ) की नौकर कर ल थी। लालबहादुर की मााँ का नाम 'रामदलुार ' था। पररवार मेंिबिेछोटा होनेकेकारण बालक लालबहादरुको पररवार वाले प्यार िे नन्हेंकहकर ह बुलाया करते थे। जब नन्हेंअठारह मह ने का हुआ तब दुभाफग्य िे पपता का तनधन हो गया। उिकी मााँरामदुलार अपने पपता हजार लाल के घर समर्ाफपुर चल गयीं। कुछ िमय बाद उिके नाना भी नह ं रहे। बबना पपता के बालक नन्हेंकी परवररश करने मेंउिके मौिा रघुनाथ प्रिाद ने उिकी मााँका बहुत िहयोग ककया। नतनहाल मेंरहते हुए उिने प्राथसमक सशक्षा ग्रहण की। उिके बाद की सशक्षा हररश्चन्र हाई स्त्कूल और काशी पवद्यापीठ मेंहुई। काशी पवद्यापीठ िे शास्त्री की उपाधध समलते ह प्रबुद्ध बालक ने जन्म िे चला आ रहा जाततिूचक शब्द श्रीवास्त्तव हमेशा के सलये हटा ददया और अपने नाम के आगेशास्त्री लगा सलया। इिके पश्चात 'शास्त्री' शब्द 'लालबहादुर' के नाम का पयाफय ह बन गया। सशक्षा भारत मेंबिदटश िरकार के ख़िलाफ़ महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अिहयोग आंदोलन के एक कायकफताफलाल बहादरुथोडेिमय (1921) केसलयेजेल गए। ररहा होनेपर उन्होंनेएक राष्ट्रवाद पवश्वपवद्यालय काशी पवद्यापीठ (वतफमान महात्मा गांधी काशी पवद्यापीठ) मेंअध्ययन ककया और स्त्नातकोत्तर शास्त्री (शास्त्रों का पवद्वान) की उपाधध पाई। स्त्नातकोत्तर के बाद वह गांधी के अनुयायी के रूप मेंकर्र राजनीतत मेंलौटे, कई बार जेल गए और िंयुक्त प्रांत, जो अब उत्तर प्रदेश है, की कांग्रेि पाटी मेंप्रभावशाल पद ग्रहण ककए। 1937 और 1946 मेंशास्त्री प्रांत की पवधातयका मेंतनवाफधचत हुए। पववाह 1928 मेंउनका पववाह गणेशप्रिाद की पुरी 'लसलता' िे हुआ। लसलता जी िे उनके छ: िन्तानेंहुईं, चार पुर- हररकृष्ट्ण, अतनल, िुनील व अशोक; और दो पुबरयााँ- कुिुम व िुमन। उनके चार पुरों मेंिे दो- अतनल शास्त्री और िुनील शास्त्री अभी भी हैं, शेष दो ददवंगत हो चुके हैं।
  • 4. राजनीतिक जीवन िंस्त्कृत भाषा में स्त्नातक स्त्तर तक की सशक्षा िमाप्त करने के पश्चात ्वे भारत िेवक िंघ िे जुड गये और देशिेवा का व्रत लेते हुए यह ं िे अपने राजनैततक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी िच्चे गान्धीवाद थे जजन्होंने अपना िारा जीवन िादगी िे बबताया और उिे गर बों की िेवा में लगाया। भारतीय स्त्वाधीनता िंग्राम के िभी महत्वपूणफ कायफक्मों व आन्दोलनों में उनकी िकक्य भागीदार रह और उिके पररणामस्त्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पडा। स्त्वाधीनता िंग्राम के जजन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूणफ भूसमका रह उनमें 1921 का अिहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी माचफ तथा 1942 का भारत छोडो आन्दोलन उकलेखनीय हैं। दूिरे पवश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुर तरह उलझता देख जैिे ह नेताजी ने आजाद दहन्द र्ौज को "ददकल चलो" का नारा ददया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भााँपते हुए 8 अगस्त्त 1942 की रात में ह बम्बई िे अाँग्रेजों को "भारत छोडो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जार ककया और िरकार िुरक्षा में यरवदा पुणे जस्त्थत आगा खान पैलेि में चले गये। 9 अगस्त्त 1942 के ददन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुाँचकर इि आन्दोलन के गान्धीवाद नारे को चतुराई पूवफक "मरो नह ीं, मारो!" में बदल ददया और अप्रत्यासशत रूप िे क्ाजन्त की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे ददया। पूरे ग्यारह ददन तक भूसमगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त्त 1942 को शास्त्रीजी धगरफ्तार हो गये। शास्त्रीजी के राजनीततक ददग्दशकफों में पुरुषोत्तमदाि टंडन और पजण्डत गोपवदं बकलभ पंत के अततररक्त जवाहरलाल नेहरू भी शासमल थे। िबिे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के िाथ भारत िेवक िंघ की इलाहाबाद इकाई के िधचव के रूप में काम करना शुरू ककया। इलाहाबाद में रहते हुए ह नेहरूजी के िाथ उनकी तनकटता बढ । इिके बाद तो शास्त्रीजी का कद तनरन्तर बढता ह चला गया और एक के बाद एक िर्लता की िीदढयााँ चढते हुए वे नेहरूजी के मंबरमण्डल में गृहमन्री के प्रमुख पद तक जा पहुाँचे। और इतना ह नह ं, नेहरू के तनधन के पश्चात भारतवषफ के प्रधान मन्री भी बने।
  • 5. भारि के दूसरे प्रधानमींरी 1961 में गृह मंरी के प्रभावशाल पद पर तनयुजक्त के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्त्थ के रूप में प्रततष्ट्ठा समल । 3 िाल बाद जवाहरलाल नेहरू के बीमार पडने पर उन्हें बबना ककिी पवभाग का मंरी तनयुक्त ककया गया और नेहरू की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह भारत के प्रधानमंरी बने। भारत की आधथफक िमस्त्याओं िे प्रभावी ढंग िे न तनपट पाने के कारण शास्त्री जी की आलोचना हुई, लेककन जम्मू-कश्मीर के पववाददत प्रांत पर पडोिी पाककस्त्तान के िाथ वैमनस्त्य भडकने पर (1965) उनके द्वारा ददखाई गई दृढ़ता के सलये उन्हें बहुत लोकपप्रयता समल । ताशकंद में पाककस्त्तान के राष्ट्रपतत अयूब ़िान के िाथ युद्ध करने की ताशकंद घोषणा के िमझौते पर हस्त्ताक्षर करने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। 'जय जवान, जय ककसान' का नारा धोती कुते में सिर पर टोपी लगाए गांव-गांव ककिानों के बीच घूमकर हाथ को हवा में लहराता, जय जवान, जय ककिान का उद्घोष करता। ये उिके व्यजक्तत्व का दूिरा पहलू है। भले ह इि महान व्यजक्त का कद छोटा हो लेककन भारतीय इततहाि में उिका कद बहुत ऊंचा है। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद शास्त्री जी ने 9 जून, 1964 को प्रधानमंरी का पदभार ग्रहण ककया। उनका कायफकाल राजनीततक िरगसमफयों िे भरा और तेज गततपवधधयों का काल था। पाककस्त्तान और चीन भारतीय िीमाओं पर नर्रें गडाए खडे थे तो वह ं देश के िामने कई आधथफक िमस्त्याएं भी थीं। लेककन शास्त्री जी ने हर िमस्त्या को बेहद िरल तर के िे हल ककया। ककिानों को अन्नदाता मानने वाले और देश की िीमा प्रहररयों के प्रतत उनके अपार प्रेम ने हर िमस्त्या का हल तनकाल ददया "जय जवान, जय ककिान" के उद्घोष के िाथ उन्होंने देश को आगे बढ़ाया। भारत-पाककस्त्तान युद्ध (1965) जजि िमय लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंरी बने उि िाल 1965 में पाककस्त्तानी हुकूमत ने कश्मीर घाट को भारत िे छीनने की योजना बनाई थी। लेककन शास्त्री जी ने दूरदसशफता ददखाते हुए पंजाब के रास्त्ते लाहौर में िेंध लगा पाककस्त्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर ददया। इि हरकत िे पाककस्त्तान की पवश्व स्त्तर पर बहुत तनदंा हुई। पाक हुक्मरान ने अपनी इज्जत बचाने के सलए तत्काल न िोपवयि िघं िे िपंकफ िाधा जजिके आमंरण पर शास्त्री जी 1966 में पाककस्त्तान के िाथ शांतत िमझौता करने के सलए ताशकंद गए। इि िमझौते के तहत भारत, पाककस्त्तान के वे िभी दहस्त्िे लौटाने पर िहमत हो गया, जहां भारतीय िेना ने पवजय के रूप में ततरंगा झंडा गाड ददया था।
  • 6. सम्मान और पुरस्त्कार शास्त्रीजी को उनकी िादगी, देशभजक्त और ईमानदार के सलये पूरा भारत श्रद्धापूवफक याद करता है। उन्हें वषफ 1966 में भारत रत्न िे िम्मातनत ककया गया। और पुरस्त्कार तनधन ताशकंद िमझौते के बाद ददल का दौरा पडने िे 11 जनवर , 1966 को ताशकंद में शास्त्री जी का तनधन हो गया। हालांकक उनकी मृत्यु को लेकर आज तक कोई आधधकाररक ररपोटफ िामने नह ं लाई गई है। उनके पररजन िमय िमय पर उनकी मौत का िवाल उठाते रहे हैं। यह देश के सलए एक शमफ का पवषय है कक उिके इतने काबबल नेता की मौत का कारण आज तक िार् नह ं हो पाया।