3. 3 इतिहास
• मुद्रा का सबसे पहेले उल्लेख िंत्र शास्त्र मे तमलिा है, िंत्र शास्त्र
का ज्ञान भगवान तशव ने अपनी प्रथम तशष्या देवी पावविी को
तदया:
• मत्स्येन्द्द्रनाथ > गोरक्ष नाथ >
• हठयोग मेंपचीस मुद्रा ओ का वर्वन तकया गया है|
• ये प्रमुख मुद्राए मानी गयी है, िथा घेरंड संतहिा और हठयोग
प्रदीतपका जैसे हठयोग के ग्रंथो मेंभी इनका वर्वन तकया गया है|
• मुद्राए अन्द्नमय कोष और प्रार्मय कोषोको एक साथ जोडिी है
तजससे हमारा मनोमय कोष प्रभातवि होिा है|
4. 4 क्रम ग्रंथ लेखक समय मुद्रा और बंध अंग
१ हठयोग
प्रदीतपका
चिुरंग योग
्वात्समाराम
मुनी
१४०० २५ १.आसन
२.कुं भक
३.मुद्रा और बंध
४.नादानुसंधान
२ घेरंड संतहिा
सप्ांग योग
घेरंड मुनी १८०० २५ १.षट्कमव
२.आसन
३.मुद्रा और बंध
४.प्रत्सयाहार
५.प्रार्ायाम
६. ध्यान
७.समातध
हठ योग के प्रमुख ग्रंथ
5. 5 क्रम ग्रंथ लेखक समय मुद्रा और
बंध
अंग
३. तशव संतहिा श्री आतदनाथ बी.सी.
११००
१३ --
४. गोरक्ष शिक श्री गोरक्षनाथ ११०० ५ --
५. तसद्द तसद्दांि पद्दति श्री गोरक्षनाथ ११०० -- --
६. अमन्क योग श्री गोरक्षनाथ ११०० -- --
6. पररभाषा
सं्कृ ि शब्द मुद + द्रा से बनिा है मुद्रा.
मुद का मिलब है -आनंद (bliss), द्रा का मिलब है (Generate).
तचत्त को प्रकट करने वाले तकसी तवशेष भाव को मुद्रा कहिे है.
शाररररक अंगो की तवशेष आनंददायक त्थति, तजसके द्वारा मानतसक
तवचार और भावनाओ को व्यक्त तकया जािा है .
भारिीय नृत्सय मे मुद्रा, हाथो की तवशेष अव्था है, जो आंिररक भावो या
संवेदनाओ को दशाविी है .
6
7. I ह्ि मुद्रा
हाथो की उंगतलयों के अग्र भाग पर हलका सा दबाव बनाकर उसके ्पंदन द्वारा सुखद
सकारात्समक अनुभूति प्राप् करना
उदा. द्रोर् मुद्रा, नम्कार मुद्रा, ध्यान मुद्रा, वायू मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, चीन्द्मुद्रा
अंगुष्ठ: अतनन
िजवनी: वायु
मध्यमा: आकाश
अनातमका: पृथ्वी
कतनष्ठा: जल
मुद्रा के प्रकार
7
8. 8
आकाश मुद्रा पृथ्वी मुद्रा जल मुद्रा
ज्ञान मुद्रा
अतनन मुद्रा वायु मुद्रा
द्रोर् मुद्रा नम्कार मुद्रा ध्यान मुद्रा चीन्द्मुद्रा
9. मुद्रा के प्रकार
II मन मुद्रा :
कुं डतलनी शक्ती जागृि करने के तलये इन मुद्रोओ की साधना की जािी है
उदा: शांभवी मुद्रा , खेचरी मुद्रा इ.
9
10. मुद्रा के प्रकार
III काया मुद्रा:
आसनो के समान तदखने वाली शरीर की तवशेष त्थिी को काया मुद्रा कहिे है
उदा: तवपरीि करर्ी मुद्रा, योगमुद्रा, िडागी मुद्रा, वज्रॊर्ी मुद्रा, ब्रम्ह मुद्रा etc..
10
11. बंध
बंध मतलब बंधना, कडा करना, अवरोध पैदा करना
शरीर के भिन्न भिन्न अंग को धीरे से, परंतु शभिपूववक संकुभित
(contract) एवं कडा भकया जाता है
बंध का अभ्यास प्राणायाम मे कंुिक के साथ भकया जाता ह.ै
11
12. बंध के प्रकार
1. मूल बंध
2. उड् डीयान बंध
3. जालंधर बंध
4. तजव्हा बंध
12
4
3
2
1
13. लाभ
मुद्रोओ ंका तवशेष उĥेश आध्यातत्समक उन्द्नति है .
शारीररक ्वा्थ्य की दृति सेअंिस्त्रातव ग्रंतथया का
स्त्राव सही मात्रा में होने से मानतसक और शारीररक
लाभ होिा है (See Slide No.14)
कुं डतलनी शक्ती के जागरर् के तलए मुद्रा और बंध का
अभ्यास बहुि उपयोगी है
नाडी िंत्र का तवकास होिा है
चक्रो का जागरर् होिा है
13
14. अंि: स्त्रातव ग्रंतथया
१. शीषव्थ ग्रंतथ
२. कं ठ्थ ग्रंतथ (थाईरोड़ ग्रंतथ )
३. उर्थ ग्रंतथ
४. उध्वव तपंड
५. ्वादुतपंड
६. रज: तपंड
७. शुक्र ग्रंतथ
८. पेराथाईरोड़ ग्रंतथ
14
१
२
३
४
६
७
५
८
18. सावधानी
गुरु के मागवदशवन से भह मुद्रा और बंध का अभ्यास भकया जाता है
18
19. सारांश
मुद्रा के प्रकार तकिने है ? 19
३
कौनसे िीन प्रकार है ?
ह्ि मुद्रा , मन मुद्रा , काया मुद्रा
कोई भी िीन काया मुद्राओ के नाम बिाए ?
योगमुद्रा , तवपरीि करर्ी मुद्रा, िडागी मुद्रा, ब्रम्हा मुद्रा, वज्रॊर्ी मुद्रा
मुद्रा का अभ्यास करने से मुख्यिह क्या लाभ होिा है?
अंि:स्त्रातवय ग्रतन्द्थयों का तनयमन होिा है.
20. सारांश
बंध के प्रकार तकिने है ? 20
४
कौनसे चार प्रकार है ?
मूल बंध, उड् डीयान बंध, जालंधर बंध, तजव्हा बंध
बंध का अभ्यास ________मे ________ के साथ तकया जािा है.
प्रार्ायाम , कुं भक
बंध का अभ्यास करने से मुख्यिह क्या लाभ होिा है?
चक्रो और कुं डतलनी शतक्त का जागरर् होिा है.