स्ट्रोक के आपातकालीन उपचार के बाद हमारा पूरा ध्यान रोगी को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने, स्ट्रोक से आई अशक्तता, अक्षमता, अयोग्यता और अपंगता को दूर करने तथा उसे अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनाने की ओर रहता है। यही अच्छे स्ट्रोक पुनर्वास या रिहेब कार्यक्रम Rehabilitation (“rehab”) Program का मुख्य उद्देश्य होता है, जिसमें विशेषज्ञों की टोली परामर्श, प्रशिक्षण, अभ्यास, व्यायाम आदि के द्वारा रोगी में आई कमजोरी, अयोग्यता और विकलांगता को दूर करने में हर संभव मदद करती है। पुनर्वास तभी शुरू हो जाता है जब आप अस्पताल में भरती होते हो और बाद में आप के घर या किसी पुनर्वास कैन्द्र में चलता है। पुनर्वास इन तीन प्रमुख बिन्दुओं पर कैन्द्रित होता है।
• रोगी को अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनाना।
• स्ट्रोक से आई अक्षमता और अपंगता को दूर करने, स्वीकार करने और उनके साथ जीने की कला सिखाना।
• स्ट्रोक से जन्मी नई परिस्थितियों के अनुसार रोगी को घर, परिवार, कार्यस्थल और समाज में पुनर्स्थापित करना।
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स्�ोकपुनवार्स औ आरोग्य�ाि
Dr. O.P.Verma
M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
President, Flax Awareness Society
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota(Raj.)
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+919460816360
स्�ोक के आपातकालीन उपचार के बाद हमारा पूरा ध्यान रोगी को शारी� और मानिसक �प से स्वस्थ रख , स्�ोक से आई
अश�ता, अक्षम, अयोग्यता और अपंगता को दूर करने तथा उसे अिधक से अिधक आत्मिनभर्र बनाने क� ओर रहता है। यही अच
स्�ो पुनवार्स या �रहेब कायर्�म Rehabilitation (“rehab”) Program का मुख्य
उ�ेश्य होता ह, िजसम� िवशेषज्ञ� क� टोली पराम, �िशक्, अभ्या, �ायाम आ�द के
�ारा रोगी म� आई कमजोरी, अयोग्यता और िवकलांगता को दूर करने म� हर संभव मदद
करती है। पुनवार्स तभी शु� हो जाता है जब आप अस्पताल म� भरती होते हो और बाद म
आप के घर या �कसी पुनवार्स कैन् म� चलता है। पुनवार्स इन तीन �मुख िबन्दु� प
कैिन्�त होता है।
• रोगी को अिधक से अिधक आत्मिनभर्र बनाना
• स्�ोक से आई अक्षमता और अपंगता को दूर क, स्वीकार करने और उनके साथ
जीने क� कला िसखाना।
• स्�ोक से जन्मी नई प�रिस्थितय� के अनुसार रोगी को, प�रवार, कायर्स्थल औ
समाज म� पुनस्थार्िपत करना।
शब्दाथर: िशकस्त– हारना, िगरदाब – भंवर, दौरे-तलातुम - पानी का मौज� मारना, बाढ़
क्या स्�ोक से स्थाई अक्षमता और िवकलांगता आ?
खा-खा के िशकस्त फतह पाना सीख, िगरदाब म� कहकहा लगाना सीखो,
इस दौरे-तलातुम म� अगर जीना है, खुद अपने को तूफान बनाना सीखो।
तुम अपना रंजोगम अपनी परेशानी मुझे दे दो,
मुझे अपनी कसम यह दुख यह हैरानी मुझे दे दो।
म� देखूं तो सही, यह दुिनया तुझे कैसे सताती है,
कोई �दन के िलये तुम अपनी िनगहबानी मुझे दे दो।
ये माना म� �कसी कािबल नह� इन िनगाह� म�,
बुरा क्या है अग इस �दल क� वीरानी मुझे दे दो।
सािहर लुिधयानवी
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स्�ोक मिस्तष्क के कुछ भाग को क्षित�स्त करता है जो शरीर के कई काय� जैस, गित आ�द का सम्पादन करता था। ऐसी
िस्थित म� मिस्तष्क के स्वस्थ ऊतक इन काय� को करने लगत अिधकतर रोगी पुनवार्स से अपनी खोई �ई अक्षमता औअपंगता
को ठीक कर लेते ह�।
ले�कन कई रोिगय� म� थोड़ी ब�त स्थाई अपंगता रह ही जाती है। नेशनल स्�ो
एसोिसयेशन के अनुसार:
• 10% रोगी पूणर्तया ठीक हो जाते ह�।
• 25% रोिगय� म� मामूली अक्षमता रह जाती है
• 40% रोिगय� म� मध्यम से गंभीर स्तर क� अक्षमता और अपंगता रह जाती
तथा िवशेष देखरेख क� आवश्यकता होती है।
• 10% रोिगय� को लम्बे समय तक िच�कत्-क�� या पुनवार्स क�� म� रखना
पड़ता है।
पुनवार्स कब तक चलता ह?
अिधकतर रोिगय� म� पुनवार्स जीवन पयर्न्त चलता है। आरोग्य �ाि� क� यह डगर , उबाऊ और थकाने वाली ज�र है, ले�कन
आप दृढ़ इच्छा शि� और सकारात्मक दृि�कोण रख�गे तो राह� ब�त आसान हो जायेगी। बस आप बतलाये गये �ाय, अभ्या,
कायर् और ददर् िनवारण के िलए यथासंभव उपाय करते जाइये। िवशेषज्ञ आप क� मदद के िलए सदैव तत्पर रहते ह�। आपके प�
और िम�� का प्या, �ोत्साहन और �ेरणा तो जादू क� झप्पी का काम करेगी। वैसे तो कुछ ही हफ्त� या महीन� म� आप काफ� ठ
हो जायेगे परन्तु स्वास-सुधार क� यह ���या धीरे-धीरे वष� तक चलती ही रहेगी। बस आप आशा के दीपक को कभी बुझने मत
देना।
कसरते-गम म� लुत्फ-गमख्वार, सागरे-मय का काम देती है,
व� पर इक लफ्ज-हमदद�, इ�े-म�रयम का काम देती है।
शब्दाथर: कसरत - बा�ल्, अिधकता, सागरे-मय - शराब का प्यला, गमख्वारी– हमदद�, इ�े-म�रयम - म�रयम का पु� ईसा जो
फूंक से मुद� को िजला देते थे।
स्�ोक पुनवार्स का एक ज�री उ�ेश्य भिवष्य म� दूसरे संभािवत दौरे को रोकना भी है। आरोग्य �ाि� हेतु रोगी को दवाइयां दी
है, उसके िलए बेहतर आहार तथा �ायाम बतलाये जाते है और जीवनशैली म� बदलाव लाया जाता है। पुनवार्स से सबसे अिधक लाभ
शु� के कुछ महीन� म� होता है, इसिलए पुनवार्सकायर्�मिजतना जल्दी संभव हो शु� कर देना चािहए।
स्�ोक से खोई �ई अक्षमता और अपंगता के �ा� करन
मिस्तष्क एक अनूठा और शि�शाली अंग , जो ज�रत पड़ने
पर नये स�कट बना लेता है, अपनी कोिशका� को नये काम
करने के िलए �ो�ाम कर देता है और अपनी क्षमता� क
िवस्तार कर लेता है। स्�ोक म� इसके कुछ ऊतक बेकार हो जात
ह�, तो मिस्तष्क का स्वस्थ भाग स्�ोक से क्षित�स्त �
के कायर् अपने हाथ म� ले लेता है।
पुनवार्स कायर्�म म� सबसे पहले सुधार चल, हाथ� और पैर�
को िहलाने-डुलाने आ�द काय� म� आता है। �ायः पुनवार्स स्�ो
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के 24 से 48 घन्टे बाद ही शु� हो जाता ह, जब रोगी आई.सी.यू. या वाडर् म� ही होता है। जैस-जैसे रोगी सश� और स��य होने
लगता है, नसर् या थैरेिपस्ट रोगी को छ-छोटे काम िसखाना शु� कर देती है िजन्ह� वह स्�ोक के कारण कर पाने म� अक्षम हो च
था। हर रोगी क� पुनवार्स या�ा अल-अलग होती है और रोगी क� ज�रत और प�रिस्थित पर िनभर्र करती है। मसलन य�द रोग
को �दयरोग है तो उसे धीरे-धीरे काम िसखाये जाय�गे।
अस्पताल से छु�ी होने के बाद पूरा ध्यान पुनवार्स पर �दया जाता है। रोगी पुनवार्स अपन, न�सग होम या �कसी अच्छे �रहे-
सेन्टर म� ले सकता है। दैिन चयार् के काम दोबारा िसखाने के िलए ऑक्युपेशन थैरेपी का भी सहारा िलया जाता है । इसके तहत
�ायाम, �िशक्षऔर अभ्यास करवाया जाता ह। स्�ोक के बादरोगी को खाना, पीना, िनगलना, नहाना-धोना, तैयार होना, कपड़े
पहनना, खाना पकाना, िलखना, पढ़ना, बाथ�म जाना आ�द सभी कायर् नए िसरे से िसखलाये जाते ह�। मरीज़ को पूरी तरह
आत्मिनभर्र बनाना इसका ल�य होता ह
स्�ोक के दुष्�भ
स्�ोक के कारण कई अस्थाई या स्थाई अक्षमता या अपंगता हो सकती है जो इस बात पर िनभर्र करती है �क र� का �वाह म
के �कस भाग म� और �कतनी देर बन्द रहा। स्�ोक म� िन� अक्षमता या अपंगता हो सकती
• पक्षाघा- माँस-पेिशय� म� दुबर्लता व गितहीनत – स्�ोक म� मां-पेिशयाँ दुबर्, गितहीन, बेकार, िनिष्�य
और िनज�व सी हो जाती ह�। स्�ोक के कारण मिस्तष्क म� िजस तरफ क्षित �ई है उसके िवपरीत या दूसरी तरफ शरीर क�-
पेिशय� म� कमजोरी और लकवा पड़ता है। अथार्त य�द मिस्तष्क म� खराबी बांई तरफ �ई है तो शरीर का दायां भाग ल-�स्त
होता है। य�द पक्षाघात या लकवा शरीर के आधे भाग को �भािवत करता है तो इसे हेमीप्लेिज( Hemiplegia) और आधे
शरीर म� आई माँस-पेिशय� क� दुबर्लता या कमजोरी को हेमीपरेिसस(Hemiparesis) कहते ह�। हेमीपरेिसस या हेमीप्लेिजया
के कारण रोगी को चलने-�फरने या कोई चीज पकड़ने म� �द�त होती है।
कभी कुछ मांस-पेिशय� का एक समूह बेकार हो जाता है जैसे �क बेल्स पाल्सी म� आधे चहेरे क� पेिशयां लक -�स्त होती ह�।
दौरा पड़ने पर रोगी के मुँह और गले क� मांस-पेिशयाँ कमजोर और िनिष्�य हो जाती ह� और उन पर रोगी का िनयं�ण नह�
रहता है, िजससे उसे िनगलने और बोलने म� �द�त (dysphagia और dysarthria) हो सकती है। रोगी शरीर म� संतुलन और
सामंजस्य बनाये रखने म�(ataxia) भी असमथर् महसूस करता है
• संवेदनात्मक(Sensory) िवकार और ददर्– स्�ोक म� स्प, ददर, तापमान, गुंजन आ�द संवेदना� को महसूस
करने क� क्षमता कम हो जाती है। पक्षाघात से �स्त पैर या हाथ म, सु�ता, चुभन, जलन या झनझनाहड़ (paresthesia)
हो सकती है। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है। कुछ रोिगय� को अपने लकव -�स्त हाथ या पैर क�
अनुभूित ही नह� होती है। कई रोगी हाथ या पैर के असहनीय ददर् से परेशान रहते ह�। यह ददर् कई बार गितहीन जोड़� आ
अकड़न क� वजह से भी होता है। माँस-पेिशय� म� अकड़न और जकड़न आ जाना सामान्य बात है। उसके हाथ म� ठंड के �ित
संवेदना ब�त बढ़ सकती है। यह दुष्�भाव आमतौर पर स्�ोक के कई हफ्त� के बाद होता है। संवेदनात्मक िवकार के क
मू�त्याग और मलिवसजर्न पर िनयं�ण भी कमजोर पड़ जाता है।
• वाणी, भाषा और सं�ेक् िवकार (Speech, Language and Communication
disabilities) -
स्�ोक के25% रोिगय� को बोलने, पढ़ने, िलखने और समझने म� �द�त होती है। अपने िवचार� को भाषा और वाणी के माध्यम
से �� न कर पाने को वाचाघात या ( aphasia) कहते ह�। स्मृि, िवचार और सीखने क� योग्यता कमजोर पड़ जाती है कभी
रोगी को उपयु� शब्द या वाक्य याद तो होता है पर वह बोल नह� पाता है इसे वाणीदो(dysarthria) कहते ह�।
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• बोधन, िवचार और स्मृित िवकार( Cognitive, Thought and Memory Problems)–
स्�ोक रोगी क� सजगता औरअल्पकाली स्मृित का �ास करता है। याददाश्त कमजोर पड़ जाती है या रोगी �ि, अस्त�स,
बुि�हीन और िववेकहीन �दखाई देता है। रोगी कोई योजना बनाने, नया काम सीखने, िनद�श� का पालन करने म� असमथर्
महसूस करता है। कई रोिगय� को िनणर्य लेन, तकर-िवतकर् करने और चीज� को समझने म� ब�त �द�त होती है। कई बार रोगी को
अपने शरीर म� आई अयोग्यता और अपंगत का अनुमान और अनुभूित भी नह� होती है।
• भावनात्मक िवकार( Emotional Disturbances) – स्�ोक से रोगी म� कई भावनात्मक औ �ि�त्
सम्बंधी प�रवतर्न होते ह�। स्�ोक के रोगी अक्स, �चता, तनाव, कुंठा, �ोध, उ�ता, संताप, अकेलेपन और अवसाद का
िशकार हो ही जाते ह�। रोगी अपनी भावना� पर िनयं�ण नह� रख पाता है और उसके िलए अकारण चीखना, िचल्लान, हंसना
या मुस्कुराना सामान्य बात हो जाती है। उन्हे अपने दैिनक कायर् करने म� भी क�ठनाई होती है और प�रवार के �कसी सदस्
नौकर पर आि�त रहना पड़ता ह�।
• ल�िगक िवकार – स्�ोक के बाद ल�िगक समस्याएं होना स्वाभािवक बात है। स्�ोक के कारण रोगी और उसके जीवनसाथी
आपसी �मानी संबन्ध� म� िशिथलता आ जाती है। कई बार स्�ोक के वष� बाद तक रोगी ल�िगक अयोग्यता का िशकार बना रह
है। स्�ोक के बाद दी जाने वाली िड�ेशन क� दवाइयाँ भी ल�िगक िवकार पैदा करती है। माँ-पेिशय� म� ददर, एंठन, �खचाव, जोड़�
म� आई जकड़न और शारी�रक िनष्चलता भी ल�िगक संसगर् अ�िचकर और क�दायक बना देती है। स्�ोक के कारण
जननेिन्�य� म� चेतना और संवेदना भी ब�त कम हो जाती ह, पु�ष� म� स्तंभनदोष होना सामान्य बात है और मिस्तष्क
कामेच्छा और ल�िगक हाम�न्स को िनयंि�त करने वाला उपांग हाइपोथेलेमस भी क्षित�स्त हो जात
पुनवार्स टीम–
स्�ोक पुनवार्- य�द आपके �कसी अजीज को स्�ोक होता है तो िसफर् उसे सांत्वना देने
उसक� देखभाल करने मा� से काम चलने वाला नह� है। आपको अच्छे पुनवार्स क�न्� से संप
करना होगा और िवशेषज्ञ� से तालमेल रख कर उसका पुनवार्स उपचार शु� करवाना होग
रोगी के पुनवार्स म� सबसे महत्वपूणर् भूिमका तो उसके प�रवार के सदस्य� क� होती है। डाक
और प�रचा�रका� के अलावा पुनवार्स टोली म� मुख्यतः िन� िवशेषज्ञ होते
1- भौितक िच�कत्सक( Physiotherapist) पुनवार्स टोली का ब�त महत्वपूणर् सदस्, जो
स्�ोक से अंगो क� खोई �ई शि, गित और स��यता को पुनः �ा� करने म� आपक� मदद
करता है और आपके दुबर्ल और अपंग �ए अंग� के िलए उिचत �ायाम करना िसखलाता है।
यह आपको व्हीलचेय, वाकर आ�द का सही �योग करना बतलाता है। शारी�रक संतुलन
और सामंजस्य बनाये रखना िसखलाता है।
2- ऑक्युपेशनल थैरेिपस्– आपको खाना, नहाना, कपड़े पहनना, िलखना और दैिनक-चयार् के
काम िसखलाता है।
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3- संभाषण िवशेषज्( speech-language therapist) – यह स्�ोक के बाद आपक� वाणी म� आई
िवकृितय� को दूर करने म� मदद करता है। आपको िनगलना िसखलाता है। आपको सं�ेक् के अन्य तरीके जैसे हा-भाव, मु�ा
आ�द िसखलाता है। यह आपक� संज्ञानात्मक क्षमता
योजना बनाना, िनद�श� का पालन करना, िनणर्य लेन,
तकर-िवतकर् करना आ�द को पुनः �ा� करने म� मदद करता
है।
4- समाजसेवक या केस मेनेजर ( social
worker or case manager) – यह रोगी
और पुनवार्स टोली दोन� के बीच संपकर् और सामंजस
रखता है और आपको घर पर पुनवार्स करना म� यथासंभव
मदद करता है।
5- मनोिवशेषज्ञ या सलाहका – यह घबराहट,
िचन्त, उ�ता और अवसाद से उबरने म� आपक� मदद करता है और भावनात्मक सम्बल देता है।
6- आहार िच�कत्सकDietitian – रोगी को वजन घटना, मू�-असंयमता और िनगलने म� �द�त हो सकती है। आहार
िच�कत्सक सभी पहलु� को ध्यान म� रख कर आपका आहार सुिनि�त करता है। वह आपको कम सोिडयम और �दयानुकू
(heart-healthy) आहार क� सलाह देता है ता�क आपको भिवष्य म� दूसरा दौरा न पड़े
ध्यान रख�स्�ोकका दूसरा दौरा न पड़ जाये
स्�ोक के बाद स्� का दूसरा दौरा पड़ने क� संभावना भी बनी रहती है। इसिलए हम� पूरी सतकर्ता रखनी चािहए ता�क रोगी को
दूसरा दौरा न पड़े। दौरे से बचने के िलए िन� उपाय करने चािहए।
• धू�पान तुरंत बंद कर�।
• एिस्प�रन औत अन्य �बबाणुरोधी दवाइयां
• िनयिमत िलिपड �ोफाइल चेक करवाते रह� और य�द र� म� LDL कोलेस्�ोल क� मा�ा 100 mg/dl से ज्यादा है तो उसे
कम करने हेतु दवाइयां ल�।
• य�द रोगी को ए��यल �फि�लेशन (Atrial Fibrillation) हो तो उसका समुिचत उपचार ज�री है।
• फल, सिब्जयाँ और रेशायु� भोजन खूब खाय�।
• कॉफ�, सं�� वसा, चीनी, �रफाइन्ड ते, वनस्पित घ, एनीमल फैट, फास्ट फू, और प�रष्कृत फूड आ�द का सेवन न कर�।
• म�दरापान एक पैग �ित�दन से ज्यादा कभी ना ल�।
• अपना वजन संतुिलत रख�।
• र�-चाप और र�-शकर्रा को िनयं�ण म� रख।
• िच�कत्सक �ारा बतलाए गये आहार िनद�श� का पालन कर�।
• रोज तेज �मण करे और �ायाम कर�।
पुनवार्स कायर्
चूं�क स्�ोक मिस्तष्क के िविभ� िहस्स� को �भािवत करत, इसिलए इसम� लक्षण भी िविवध और िवस्तृत होते ह� और िच�कत
तथा पुनवार्स करते समय इन्ह� ध्यान म� रखा जाता है। पुनवार्स का मुख्य उ�ेश्-पेिशय� को शि�शाली बनाना और उन्ह� �ठन
और �खचाव से बचाना होता है। म� कुछ महत्वपूणर् कायर्�म� को संक्षेप म� नीचे िलख रहा
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• �ायाम और अभ्यास- स्�ोक के बाद हमारी �ाथिमकता यही रहती है �क रोगी को िजतना जल्दी हो सके चलने का अभ्य
करवा �दया जाये, ता�क उसे डीप वेन �ोम्बोिसस(DVT) जैसे क�दायक कु�भाव से भी बचाया जा सके। रोगी को रोज कम से
कम 50 फुट चलने का अभ्यास करना चािहये। रोगी को चलने का अभ्यास करने म��े�, छड़ी, वाकर और �ेडिमल आ�द ब�त
मददगार होते ह�। रोगी को �ायाम और अभ्यास करवाते समय उसक� शारी�रक दशा को ध्यान म� रखा जाता है। �ायाम म
ऐरोिबक्, स्�ेन, स्�े�चग और न्युरोमस्कुलर ��याएं करवाई जाती ह
• माँस-पेिशय� का अभ्यास– माँस-पेिशय� के तनाव और जकड़न को दूर करने के िलए स्�े�चग और मोशन �ायाम करवाये जाते
ह�। इन अभ्यास� को िनयिमत और बा-बार पुनरावृि� करने से दुबर्ल और लकवा�स्त मा-पेिशयां धीरे-धीरे स��य होने लगती
ह�।
• स्पीच थैरेप - स्पीच थैरेपी भाषा और वा-पटुता , संभाषण करने के अलावा सम्� कण के वैकिल्प तरीके भी िसखलाती है ।
िजन लोग� को संभाषण और िलिखत शब्द� को समझने म� �द�त आ रही ह, वाक्य बनान, बोलने म� मुिश्कल रही है, स्पीच
िथरेपी उनके िलए अनुकूल िस� होती है। स्पीच िथरेिपस्ट भाषागत �वीणता के अलावा इन्ह� तालमेल िबठाने के तरीके
िसखलाता है, ता�क उन्ह� अपने आपको अिभ�� न कर पान का दुख न हो। धीरे-धीरे धैयर् के साथ मरी वह सब कुछ भी सीख
सकता है, जो उसे स्�ोक सेपहले आता था।
• ध्यान �िशक्(Attention training) – स्�ोक म� ध्य, सजगता, बोधन और संज्ञानात्मकता संब समस्याएं होना सामान्
बात है। रोगी को िवशेष अनुभूित (stimuli) के �त्यु�र म� कोई अमुक कायर् ब-बार सम्प� करना िसखाया जाता है। उदाहरण
के िलए जैसे रोगी को एक अमुक संख्या सुन कर एक घन्टी बजाने को कहा जाता है। इन्ह� तरीक� म� बदलाव करके रोगी को
ज�टल कायर् जैसे �ाइव करन, बातचीत करना या अन्य कायर् करना िसखाया जाता है
• ल�िगक समस्या� का समाधान– 1- सेक्स थैरेपी 2- अपने जीवनसाथी से इस िवषय पर खुल कर बात कर� और आपस म� िमल
कर ल�िगक आनंद के नये सरल तरीके खोज�। 3- अपने िच�कत्सक से पूछ� �क क्या उसे ऐसी कोई दवा तो नह� दी गई है िजसक
कारण उसे ल�िगक िवकार �आ हो। 4- स्पश, चुम्बन और आ�लगन जैसी �े-��ड़ा� से संबन्ध� को पुनः �मानी बनाने का य�
कर�। 5- औषिधयाँ।
• बो�ुिलनम टॉिक्सन– कई बार हेिमपरेिसस के रोिगय� क� मासँ-पेिशय� म� तनाव, �खचाव और अकड़न भी आ जाती है। इसके
उपचार म� बो�ुिलनम टॉिक्सन के इंजेक्शन ब�त फायदेमंद सािबत �ए है। आजकल तीन तरह के बो�ुिलनम टॉिक्सन उपल
ह�। िजनके नाम टाइप-ए - बोटोक्स और िडस्पोटर् तथा ट-बी - मायोब्लॉक ह�।
• रोबो�टक उपकरण – स्�ोक पुनवार्स म� आजकल क
रोबो�टक उपकरण काम म� िलए जा रहे ह�। ये उपकरण
रोगी को उनके लकवा-�स्त पैर या हाथ� क� खोई �ई
शि� और अपंगता को पाने म� ब�त कारगर सािबत हो
रहे ह�। इनक� मदद से रोिगय� को कसरत और अभ्यास
करने म� ब�त स�िलयत होती है और काम करना जल्दी
सीखते है। रोबोट एक अच्छे �ि कक क� तरह रोगी के
हाथ या पैर� क� हरकत पर पैनी नजर रखते ह�, उसी
िहसाब से कसरत करवाते ह�। य�द रोगी िगरने लगे तो
रोबोट उसे पकड़ कर थाम लेते ह�। रोगी य�द अपने हाथ
या पैर से कोई हरकत न कर पाये तो रोबोट उसे सहारा
देता है और हरकत करने म� मदद करता है। कसरत क�
बार-बार पुनरावृि� और अभ्यास करवाता है। आप संत
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कबीर का दोहा प�ढ़ये। संल� िच� म� रोगी लोकोमोट रोबोट पर कसरत कर रहा है।
हाथ� क� कसरत के िलए इनमोशन-2, इनमोशन-3, एमािडयो, मायोमो ई-100 और पैर� के िलए लोकोमोट, एंकलबोट, पीके-
100, �रयोएम्बुलेटर आ�द रोबोट ब�त �चिलत हो रहे ह�।
• काल्पिनकवास्तिवकत (Virtual Reality) - इस तकनीक म� कम्प्युट सॉफ्टवेयर के
�ारा एक वास्तिवक लगने वाली ले�कन काल्पिनक दुिनयां सजाई जाती , िजसक�
मदद से रोगी अपने हाथ और पैर� से कई तरह के काम करना सीखते ह�। इस तकनीक के
अच्छे प�रणाम िमल रहे ह� और इसे रोबो�टक उपकरण� के साथ भी �योग �कया जा
रहा है।
• एक्युपंक्च– यह चीन क� ब�त पुरानी और सुरिक्षत उपचार प�ित है िजसम� त्वचा के खास ऊजार् क म� सुइयां घुसाई जाती
ह�। स्�ोक के कई लक्षण� जैसे म-पेिशय� क� दुबर्लत, तनाव और ददर् म� एक्युपंक्चर से काफ� फायदा िमलता इससे लाभ
भले धीरे-धीरे िमलता है परन्तु यह पूणर्तः सुरिक्षत उपचार ह
• िव�ुत उ�ेजना (Electrical stimulation) – इस तकनीक म� कमजोर माँस-पेिशय� म� कम िवभव क� िव�ुत-धारा �वािहत क�
जाती है िजससे उनका संकुचन होता है और वे अपनी खोई �ई शि� पुनः �ा� करती ह�।
स्�ोक पुनवार्स म� दवाइया
स्�ोक के बाद रोगी को शारी�रक वेदना, पीड़ा, ददर, आकषर्( Muscular spasm), �ाकुलता, �चता, अिन�ा और अवसाद
(Depression) रहता है िजसके उपचार के िलए समुिचत दवाइयां दी जाती ह�।
ददर् िनवारक और अवसादरोधी दवाइयां–
सलेिक्टव सीरोटोिनन �रअपटेक इिन्हिबटस–
इनम� िसटेलो�ाम, एिसटेलो�ाम, फ्लुओक्से�, परोक्से�ट, सट�िलन आ�द �मुख ह�। SSRIs मिस्तष्क म�मुख नाड़ीसंदेशवाहक� का
संतुलन बनाये रखते ह�, िजससे अवसाद के लक्षण� म� सुधार आता है। अवसाद के अलावा ये वेद, पीड़ा और ददर् का भी िनवारण
करते ह�। ये ि�च��य, चतुचर्��य अवसादरोधी और माओ इिन्हिबटसर् से ज्यादा सुरिक्षत माने जात SSRIs का असर एक से तीन
स�ाह म� होने लगता ह� ले�कन रोगी को पूरा लाभ छः से आठ स�ाह म� होता है। इन्ह� कभी भी अचानक बंद नह� करना चािहए।
SSRIs से कभी-कभी रोगी को ल�िगक-िवकार हो सकता है। िजसके िलए उसे िसलडेना�फल दी जा सकती है। बु�ोिपयोन से ल�िगक-
िवकार कम होते ह�।
इनके पाष्वर् �भाव िमत, भूख न लगना, दस्त लगन, अधैयर्त, िचड़िचड़ापन, सुस्त, िन�ा-िवकार, काम-दुबर्लत, ल�िगक-िवकार,
िसरददर, च�र, आत्महत्या करने का िवचार आना आ�द होते ह�
ि�च��य और चतुचर्��य अवसादरोध
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िजनम� एिम��प्टीली, डेिस�ेमीन, डोक्सेपी, इिम�ेिमन, नोर��प्टीली आ�द �मुख ह�। ये मिस्तष्क म� मन को �स� रखने और दद
क� अनुभूित को कम करने वाले कुछ नाड़ीसंदेशवाहक� का स्तर बढ़ाते ह�। कम मा�ा म� ये अच्छे ददर् िनवारक है और ज्यादा मा�ा
अवसादरोधी ह�। कम मा�ा म� ये िचरकारी ददर-िवकार� ( Long-term Pain Syndrome) म� ब�त असरकारी ह�। साथ म� ये मन म�
उदासी, अिन�ा, ग्लाि, कुन्ठ, बेचैनी और �ाकुलता से भी राहत �दलाते ह�। इन्ह� राि� म� सोने के पहले �दया जाता है क्य��क इन्ह
लेने के बाद सुस्ती आती है।SSRIs क� भांित इनका असर भी एक से तीन स�ाह म� होने लगता ह� ले�कन रोगी को पूरा लाभ छः से
आठ स�ाह म� होता है। इन्ह� कभी भी अचानक बंद नह� करना चािहए।
इनके पाष्वर् �भाव मुँह सीख, च�र, सुस्ती आन, िसरददर, वजन बढ़ना, कब्ज, िमतली, उलटी, �ासक�, ह�ठ, जीभ, चेहरे या गले
म� सूजन, आत्महत्या करने का िवच, उ�ता, बैचेनी, दौरा पड़ना, �दयगित तेज होना आ�द ह�।
अप्समाररोधी(Anticonvulsants)
काबार्मापेजी, गाबापेिन्ट, ऑक्सकाब�जी, वेल�ोइक एिसड, ि�गाबािलन, टोिपरामेट आ�द दवाइयां �योग म� ली जाती ह�। ये
संभवतः मिस्तष्क म� ददर् क� संवेदना� के �वाह को बािधत करती ह� इसिलए िचरकारी और नाड़ीजिनत -िवकार� म� ब�त
�भावशाली ह�। इन्ह� भी कम मा�ा से शु� करके धीर-धीरे मा�ा बढ़ाई जाती है और अचानक बंद नह� �कया जाता है।
इनके मुख्य पाष्वर् �भाव िसरद, वजन बढ़ना/कम होना, �िमत होना, भूख न लगना, त्वचा म� चक�, िमतली, उलटी, पेट ददर, पैर�
म� सूजन आ�द ह�।
िन�ाकारी दवाइयां (Sedatives) – स्�ोक के बाद रोगी को न�द न आना सामान्य घटना है। इसके िलए रोगी क
िन�ाकारी या अवसादरोधी दवाइयां जैसे नाइ�ेजेपाम, मटार्जेपी, जोिल्पडो, जोिपक्लो आ�द दी जाती ह�।
�शांतक दवाइयां (Tranquilizers) – स्�ोक के रोिगय� म� अधैयर्त, उत्सुकत, घबराहट, दुिनया भर िचन्त और
तनाव रहना सामान्य बात ह, िजसके उपचार के िलए बेन्जोडायजेपीन्स जैसे डायजेप, लोराजेपाम, एल्�ाजोला, बुिस्परो ,
क्लोनाजेपा, ए�टजोलाम आ�द दी जाती ह�। िमथाइल फेिनडेट (Addwise 10-30 mg/day in div doses) रोगी के मन को �स�
रखने और मनोदशा को सकारात्मक बनाये रखने के िलए �दया जाता है।
मनोिवयोगी और मनोिवकाररोधी दवाइयाँ ( Neuroleptics are Antipsychotic
Medicines) - स्�ोक म� य�द रोगी को उ�त, उ�ेजना और �ाकुलता हो तो हेलोपे�रडोल, �रसपे�रडोल आ�द िलखी जाती
ह�।
मसल-�रलेक्सेन्ट दवाईया- माँस-पेिशय� म� �खचाव, तनाव और अकड़न दूर करने के िलए डेन्�ोली, �टजािनडीन,
बेक्लोफेन आ�द गुणकारी सािबत �ई ह�।
थ�ारोधी दवाईयाँ (Anticoagulants) – स्�ोक के बाद पैर� क� िशरा� म� र� के थ�े न बने इसिलए िहपे�रन दी
जाती है।
लेख के अंत म� स्�ोक के रोिगय� को ये शेर भ�ट करता �ँ
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इन्सान मुसीबत में िहम्मत न अगर हार,
आसाँ से वो आसां है, मुिश्कल से जो मुिश्कल ह