आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों को उनकी शरीर में उपस्थित को माप कर बताता है । यह रिपोर्ट रोगी की प्रकृति यानी वात, पित्त या कफ या इनमें से दो या इनमें से तीनों के सम्मिलित गुणों को शरीर में उपस्थिति को निदान ज्ञान करके बताती है । प्रकृति जब दूषित हो जाती है तो यही तीनो गुण शरीर के अन्दर दोष युक्त या विषम या अव्यवस्थित होकर शरीर को रोगी या बीमार बनाते हैं , ऐसी स्थिति में इन्हें दोष अथवा त्रिदोष कहते हैं । यह आयुर्वेद की इटियोलाजी कही जा सकती हैं ।