1. िफलम और समाज का सफ़र
पसतावना
िफलम सािहतय और कला का िवजानं की मदद से बना एक पिरकृषत रप है. भारतीय समाज मे ४००० वषर पूवर से संगीत
और नृतय मनोरंजन का साधन रहा िजसे हम रामलीला, रसिललला. नौटंकी आिद नाम से जानते है. उस समय िथएटर का
बहत महतव था जो पारिसयो मे काफी पचिलत था. इसिलए पारंभ से िफलम ने एक साथ कई सािहतय के अंगो को अंगीकृत
कर मनोरंजन का सबसे बड़ा माधयम रहा. िफलम का आज के समय मे इतनी लोकिपयता है की करीब एक करोड़ पचास
लाख लोग रोजाना िफलम देखते है. िफलम संसकृित, िशका, मनोरंजन और नए अवधारणाएं को पदशरन एक बेहतरीन माधयम
है. इसिलए तातकािलक पधान मंती नेहर जी ने एक भाषण मे कहा “ भारत मे िफलम का पभाव अखबार और िकताबो से
जयादा है.”
भारतीय िफलम का इितहास
भारतीय िफलम का इितहास काफी पुराना है जब १८९६ मे लुिमरे बोथेसर ने अपनी पहली िफलम १८९६ मे बॉमबे मे
िदखाया. हिरशंद सुखराम भटवडेकर ( भारतीय िफलम का िपता जो दादासाहेब फालके के नाम से आज जाने जाते है) एक
कुशल फोटोगाफर थे इतने पभािवत हए की उनहोने इंगलैड से िवशेष कैमरा मंगाया. उनहोने अपनी पहली िफलम “थे रेसलर”
को बॉमबे के हैिगग गाडरन मे १८९९ शूट िकया. यह भारत की पहली चलिचत था. यदिप कालकम के अनुसार पहली
भारतीय िफलम राम चनद गोपाल दारा िनिमत “” पुंडिलक” १८.०५.१९१२ को िदखया गया जो महाराष के लोकिपय संत
पुंडिलक के जीवन को दशरया गया यह िफलम एक िवदेशी िफलम अ डेड मन’स चाइलड के साथ िदखाया गया. इसका
िफलमांकन एक िवदेशी कैमरा मन के दरा हआ. १९२० से १९३० के बीच बनी िफ़लमे िवदेशी अिभनेती दारा िनभाया गया
कयूंिक समािनये समाज मे नारी को िफलमो मे आना पिठसथा के िखलाफ था. कुछ िवदेशी नािवनेती का नाम बदल िदया
गया. जैसे रबी मेयेसर सुलोचना बनी, मैिरन िहल िवलोचना, रेने िसमत सीता देवी तािक वो भारतीय लगे. पहली मराठी
िफलम “ अयोदेचा राजा “ िफलम के काफी जाने माने हसती िव शांताराम दारा १९३२ मे पभात िफलम कमपनी दारा. के
बैनर के अंतरगत बनायी गयी. इसे िहदी मे “ अयोधया का राजा “ के नाम से भी िफलमाया गया.
हालाँिक पहली िहदी िफलम का इितहास तब रचा गया जब पहली वावसाियक भारतीय िफलम, जो पौरािणक कथा पर
आधािरत था, “ राजा हिरशंद“ २१.०४.१९१३( 17.०४.२०१३ को िफलमो का शताबदी िदवस मनाया गया ) को
धुिनदराज गोिवनद फालके( दादासाहेब फालके के नाम से मशहर) िरलीज हई. इसकी खास बात थी की वो ही िनमारता,
िनदेशक, लेखक, कैमरामन, संपादक, अिभनेता और कला िनदेशक बने. इस िफल ने काफी सफलता पाई और इसे लोदन मे
१९१४ को िफलमाया गया. मिहला का भूिमका पुरष के दारा अदा िकया गया कयूंिक मिहला के िलए यह अनैितक माना
जाता था. लेिकन िसफर यही एक कारण नही था िजसके कारण पुरष के दारा अदा िकया गया. उस समय मे भी कोठो पर
मुजरे खुलेआम मिहलायो के दारा अदा िकया जाता था. और शादी िववाह जैसे अवसर पर वो नाचने और गाने का काम
करती थी. इसके वाबजूद आदरणीय फालके ने सी की भूिमका पुरष के दारा की कयूंिक वो इस कला को इतना पिवत मानते
थे की इसमे िकसी तरह का सामािजक मूलयो के साथ समझौता पसंद नही िकया. उनहोने अपने िनदेशन मे १९१३ से १९१८
तक करीब २३ िफ़लमे बनाई. शुरआती दौर मे पौरािणक िफलमे ही बनी जो भारतीय धरामगंथो पर आधािरत थे. ये सारी
2. िफ़लमे मुक नही थी. इन सब के बाबजूद रेिडयो के बाद िफलम ही मनोरंजन का साधन रहा जो रोमांच और मनमोहक दृशयो
दारा लोगो को मंतमुगध कर िलया.
मुक िफलमो का दौर खतम और बोलती िफलमो का उदय
भारत मे पहली बोलती िफलम का िनमारण १९३१ मे अदेिशर इरानी ने िकया िजसका नाम था “ आलम आरा “ . िफरोज
शाह पहले संगीत िनदेशक थे.पहली गीत िजसके बोल थे “ दे दे खुदा के नाम पर “ को िव एम् खान ने गाया. इसके बाद तो
िफलम िनमारण की झड़ी लग गयी और उसी साल ३२८ िफ़लमे बनी. ये सब िफलमे काफी पिशध रहे और कई टािकजे बनी.
देबकी बोसे . चेतन आनंद, एस एस वासन , िनितन बोसे जैसे कई जिन मिण हिसतयाँ का पदापरण हआ. दशरको की संखया भी
काफी बढ़ी.
इसी दौरान कई केतीय िफ़लमे भी पनपी. िजसमे बंगाल की १९१७ मे बनी “ नल दमयंती” जो मदन के दारा िनिमत थी
काफी लोकिपय रहा. इसकी खास बात यह थी की इतािलयन कलाकारो दारा काम िकया जाना. १९१९ मे दिकण भारत
की िफलम “ कीचक बधं” काफी लोकिपय हआ. इसके अलावा आसािमज, उिड़या, पंजाबी, मराठी आिद भी काफी फला
फु ला.
दूसरा िवश युद की छाया
दुसरे िवश युद के दौरान अंगेजो ने अनैितक और अवैध रप से िफलमो के ऊपर काफी पितबनध लगाया कयूंिक उनहे डर था
आजादी के िलए संघषररत पयास का मनोबल बढेगा. इसिलए आजादी के िखलाफ चल रहे जन आनदोलन को िवषय बनाने
की मनाही थी. िफलम की लमबाई ११००० िफट टेलर ४०० िफट के कानून १९४२ मे लगाये गए. १९४३ मे िनयमो को और
कदा िकया गया और अनुमोिदत िवषय के अलाबे और िकसी भी िवषय पर िफलम िदखने की मनाही थी. १९३० से १९४०
तक कई िफल सटूिडयो बने. काफी पितभाशाली कलाकारो और कुशल तिकतगय का उदय हआ. इस दोरान देशभिक की
धारा, सामिजक बदलाब, िकसानो और मजदूरो के उसके अपने अिदकारो के पित सजगता और पजातंत की सथापना को
िवषय बनाया गया. लेिकन १९४१ को दुसरे िवश युधय की काली छाया भारतीय िफलमो पर भी पड़ी. काला धन का चलन,
सटार संसकृित का पनपना, िफलम सटूिडयो का उदय हआ. १९४४ मे और पतन हआ. हालांिक इसी दौरान कई मागर दशरक
िफ़लमे भी बनी. गांधीवाद ने न केवल समाज को आजादी के िलए लड़ने की पृषभूिम बनी बिलक िफलम मे बी इसका पभाव्
शांताराम, वाड़ी ने िदखाया . अछूत कनया (१९३६) जो छुया छूत को िवषय बनाया. दुिनया न माने (१९३७) कम उम के
लड़की को जयादा उम के मदर के साथ शादी से उतपन समसया को दशारया. आदमी(१९३९) ने तो एक िमसाल कायम की.
देवदास (१९३५) लोगो पर काफी पभाव डाला. सरदार वललभ भाई पटेल ने जब बांडी की बोतली ( मराठी िहदी१९३९)
िफलम िवनायक के िनदेशन मे बनी उसमे शराब के बुराईयो को समाज से हटाने के िलए जो पटेल जी ने भाषण िदया उसे
िफलम के पथम दृशय मे िदखाया गया. पटेल जी ने तसकरी से लायी गयी िफलम सुभाष चनद बोसे और आजाद िहनद फौज को
भारत मे िदखाए िदखये जाने मे पतक मदद की.
3. बाल गंगाधर ितलक जैसे महान सवतंतता सेनानी ने भारतीय िफलमो के िवकास मे महतवपूवर भूिमका अदा की. उनहोने
अपने अखबार केसरी मे िफलम राजा हिरशंद की तारीफ की. लाला लाजपत राय, नेहर जी ने भी अहम् भूिमका अदा की.
रिवदनाथ टैगोर तथा गाँधी जी ने भी काफी अहम् भूिमका अदा की. गाँधी जी ने पहली बार िफलम देखा जो १९४३ मे राम
राजय िजसे िवजय भट ने िनदेिशत िकया.. यह महज एक इतेफाक है की आजादी के साथ साथ भारतीय िफलमो का
आधुिनकरण हआ. इसी दौरान िहदी िफलम ने अपनी एितहािसक और पौरािणक िवषय से हटकर सामिजक मुदो पर िफ़लमे
बननी लगी. वेशयावृित, दहेज़ पथा, एक से जयादा औरतो के साथ समबनध, अनधिवशास का पदारफास जैसे बुराईयो को
सामिजक चेतना जगाने के िलए िकया.सतयिजत रे िबमल रॉय ऋितवक घटक मृणाल सेन जैसे महान िनदेशको ने सामानय
आदमी की परेशािनयो, िववशता और उससे जुझने को दशारया.
िफलमो का सवणरकाल
१९५० और १९६० का दशक िफलमो के सवणर काल माना गया. इस दौरान िबमल रॉय, राज कपूर और गुरदत
जैसे िनदेशको ने गामीण लोगो का महानगरो मे पलायन और राजिनितक भिवषय की अिनिशतया को काफी
गंभीरता से िदखाया गया. इन िफलमो ने चीन और रस मे भी िदखाई गयी.इसी दौरान पखयात कलाकारो का उदय
हआ जैसे, गुरदत, राज कपूर, िदलीप कुमार, मीना कुमारी, मधुबाला, नरगीश, नूतन, देव आनंद वहीदा रहमान,
का नाम उललेखनीय है. १९६० के दशक मे भारतीय िफलमो ने हमारे समाज मे फै ले असमानता का हल खोजने की
कोिशश की. मनोज कुमार जी ने लाल बहादुर शाशती जी के िदए गए नारा “ जय जवान जय िकसान” के ममर को
साथरक करते हए कालजयी िफ़लम उपकार बनाई जो िकसानो को भारतीय अथरववसथा मे महतवपूणर भूिमका को
िनरिपत िकया गया. वहीँ हकीकत िफलम मे चेतन आनंद ने हमारी सेनायो के धैयर, सहास और बिलदान को
िनरिपत िकया गया. वही गाइड िफलम मे विक के भम को िदखाया की कैसे वो सही मागर का चुनाब करे. यह
दशक हकीकत से भागने और भम के टूटने को काफी पभावशाली ढंग से िदखाया. भारतीय समाज मे आजादी के
बाद तीव वदलाव हए.ाानगरो मे तेजी से गामीण इलस. ाे गरीब लोगो का गमन हआ. इसी समय मदर इंिडया
और दो बीघा जमी बनी जो गामीण लोगो की िव के सामने लाया गया. गुरदत के िनदेशन मे १९५७ मे पयासा
िफलम बनाया जो उस समय के टाइम पितका के सबसे अचछे १०० िफलमो मे जगह बनाने मे कामयाब हआ. यह
आजादी के बाद विकगत आदमी के संघषर का गनथ बना. १९५० का दशक पेम और आशा को दशरया गया. सभी
िफ़लमे इसी के आस पास घुमती रही.
मसाला और बॉकस ऑिफस िफलम का उदय
4. १९७० का काल मसाला िफलम का पदापरण हआ मनमोहन देसाई को मसाला िफलम का जनक माना गया. उनका मानना
था की जो दशरक िफलम देखने आते है वो अपनी साड़ी िचता िफक भूलकर आनंद उठाये. पखयात कलाकार राजेश खना,
धमेनद, हेमा मािलनी, संजीव कुमार का उदय हआ. १९७० के दशक मे समाज मे वाप गुससा और हताशा को दशरया. यह वो
दशक था जब पेटोल के बढ़ते दामो ने मुदासफीित को बढाकर समाज के जयादा वगर को अनदर तक तोड़ िदया. इसी दौरान
मनोज कुमार जी की िफलम रोटी कपडा और मकान का उधाहणर िलया जा सकता है. हालाँिक इसी दौरान काफी सुपरिहट
िफलमे जंजीर शोले और िदवार बनी िजसमे अिमताभ बचन ने अपनी बेिमशाल अिभनय को पदिशत कर जन जन के हीरो हो
गए. उनके कोिधत युवा का जो चेहरा पेश िकया जो हर सामिजक उतपीडन और अनयाय से लड़ा. मिफययो से भी लड़ा.
उनकी िफलमे टकी, मोराको जैसे सुदूर अफीका मे भी काफी लोकिपय हआ.
१९८० का दशक मे कुछ ऐसी सुपरिहट िफ़लमे बनायी गयी जो अपने पेम को अंजाम तक लाने के िलए काफी संघषर िकया.
पेम को नए आयाम िदए. लोग पेम के िलए जान तक देने को तैयार हए. १९८० मे मीणा नायर, अपणार सेन रेखा ने इस
दौरान काफी लोकिपय िफ़लमे बनायी. रेखा ने १९८१ मे उमराव जान मे गज़ब का अिभनय िकया.
समानांतर िफलम या कला िफलम का उदय
यहाँ यह बताना आवशयक है की १९७०-१९८० के दशक मे समानांतर िफलम जो की इतालवी नयनायी सतय दशरन से
पभिवत हई. इस नए वगर के िफलमो का आगे लाने मे गुलजार, शयाम बेनेगल, मिण कॉल, रािजदर िसह बेदी, कांितलाल
राठोड, सैियद अखतर िमजार, महेश भट, गोिवनद िनहलानी आिद पखयात िनदेशको ने काफी बड़ी भूिमका अदा की..मिण
कॉल की पथम िफलम उसकी रोटी(१९७१), आषाड़ का एक िदन (१९७२), दुिवधा(१९७४) ने अंतरारषीय खयाती िमली..
उसी तरह बेनेगल की िफलम अंकुर ने भी वही सफलता अिजत की. ऋितवक घटक के िशषय कुमार सहनी. ने अपनी पहली
फीचर िफलम माया दपरण (१९७२) ने एक कला िफलम कशेनी मे मील का पतथर बना. इन लोगो ने सतयता को नए अंदाज मे
दशरको के सामने पेश िकया. इस दौरान काफी नए अिभनेतायो और अिभनेितयो ने िफलम की दुिनया मे पवेश िकया िजनहोने
अपनी बेिमशाल अदाकारी से दशरको को मंतमुगध कर िदया उसमे से पमुख है : शबाना आजमी, िसमता पािटल, अमोल
पारकर, ओ पूरी, नासृदुनी शाह, कुलभुसन खरबंदा, पंकज कपूर, दीिप नवल, फारक शेख.आिद.. इनमे से कई लोग आज भी
वावसाियक िफलमो मे भी काफी यादगार िकरदार िनभाया..
१९९० का दशक वासतिवक िसथित को हबह रपांतर कर िदखाया गया. जैसे बॉमबे (१९९५) मे िहनदू मुिसलम के बीच के
संबंधो को िदखाया. िदल से ने अलगाबवादी और आतंक का भयानक चेहरा को लोगो तक पहँचाया..१९९० मे शाहरक खान,
सलमान खान, माधुरी िदिकसत,आिमर खान िचरंजीव,ने अपनी अलग एक पहचान बनायी. इसी दौर मे भारतीय
राजिनितक,आिथक और सामािजक पतन को िवषय बनाया. खलनायक ने रोज के अपराध से लेकर आताकबाद को शािमल
िकया. इसमे रोजा, मिचश, सरफ़रोश, िदल से, बॉमबे ने काफी हद तक ससतय को िदखया. .
२००० से िफलमो ने हौिलबुड की तजर पर आधुिनक तकनीक से बनी िफलमो का िनमारण शुर हआ. सेकस को काफी बढ़
चढ़कर िदखाया गया..मडरर,खावािहस,लव सेकस एंड धोखा मे इसको काफी पतयाकसझा रप से िदखया गया. आपरािधक
िफलमो मे कमपनी, सतया, गंगा जल, ओमकारा, का नाम िलया जा सकता है. बलाक, कॉपोरेट, लगे रहो मुना भाई, बलैक
फाइडे, ने काफी जिटल िवषयो को चुना. लकय, रंग दे बसंती देश पेम पर बनी.
कुछ िफलमे ऐसी बनी जो नपुंसकता, होमेसेकसुँल, लाइव इन समबनध और बेबफायी जैसे िवषय को चुना. डे आफटर तोममोरो,
माय नाम इस खान, िवकी डोनर, दोसताना, सलाम नानामसते, कोकटेल, कभी अलिबदा न कहना.अपोकालयसपे नो.. २००५
मे एस िस नोह उहिरग ने अपने शोध पत शीषरक “ िसनेमा आपके िलए अचछा है: िसनेमा देखने का पभाव सवत िचनता ,
अवसाद को घटाने मे तथा ख़ुशी पाप करना ”म मे उनहोने ”कहा िसनेमा की कहानी और उसका िफलमांकन इसे कला का उच
5. पकार है. इसके अलाबा समपूणर िफलम का पभाव अपने खली समय मे मनोरंजन का बेहतर माधयम है. इसका सीधा पभाव
मानिसक सवाशथय पर पड़ता है कयूंिक दृशय के दारा जो हमारे संवेदनशीलता को जागृत करता है और हमारे कई भावो को
उभरता है िजसे और िकसी माधयम से पाप करना असंभव है. यह समाज के सभी वगो के िलए उपलबध है.
अगर हम हाल के िदनो मे पदिशत िफलमो को अधययन करेगे तो यह साफ़ हो जायेगा कैसे समाज के बदलाब के साथ साथ
िफलम भी उसी तरह बदला है. यह कहना मुिशकल है की भारतीय समाज ने िफलमो को पभािवत िकया या िफलमो ने समाज
को. लेिकन तथय ये है की मनोरंजन को नयी िदशा िमली, संगीत ने इसे और बेहतर िकया. संगीत शादी िववाह और पािटयो
की जान बनी. लोगो ने अिभनेतायो की तरह अपनी वेशभुसा और बदली. िफ़लमे पुरे भारत के कलाकारो को एक जगह इकटा
िकया. औरते जो समाज मे उपेका की िशकार थी सतयिजत रे ने नयी िदशा दी. पेम की नयी पिरभाषा दी. देश मे समाज के
ववसथा का पभाव िफलमो मे भी देखा गया. जयादातर िफलमे पुरष पधान बनी. िफलम ने हमेशा समाज के बदलाब को
अंगीकार कर समकालीन मुदो पर धयान केिनदत िकया. इसने वैशीकरण के साथ समाज को संसार मे तातकािलक सामािजक
रहन सहन को भी िदखाया. करीब करीब सभी बड़े बजट की िफलमो मे कुछ िवदेशी दृशयो को िदखाया. इसने समय समय पर
हर िवषय जैसे सामािजक, राजनैितक, सांसकृितक, धािमक आिद को चुना.
िफलम को कई वगो मे िवभािजत कर सकते है जैसे डाकयूमेटी िफलम, बॉकस ऑिफस िफलम,(फीचर िफलम), कला िफलम.
डरावनी िफलम, कामुक िफलम, रोमांचक िफलम, हासय िफलम आिद मे बांट सकते है. उच तकनीक के दारा कई ऐसे दृशयो को
िफलमाया गया जो देखने वाले लोगो के मन को उदेिलत करने की ताक़त रखता है. कुछ लोगो को िफलमो का गीत-संगीत,
लाजरर थैन लाइफ़ कैनवस, हक़ीकत से दूर कालपिनक दुिनया और इसकी रंगीनयत पसंद आती है और कुछ को इस सबसे
अलग वासतिवकता के इदर िगदर घूमती, जीवन के कड़वे सच िदखाती िफ़लमे.
मनुषय एक सामािजक पाणी है. समाज मे कई िनयमो की अवधरणा है जो सामािजक मूलय और नैितक मूलय का रप लेता
है और समाज के अिधकतर विकयो को सवीकार करना पड़ता है। िफलमी गीत समाज एवं विक के जीवन मे महतवपूणर
भूिमका अदा करते है। सािहतय मे जो कुछ घिटत होता है, उसका पभाव विक और समाज पर पड़ता है। िहदी िफलमो का
संगीत देश-िवदेश दोनो जगहो पर सुना जाता है। िफलम आम जनता के िलए सबसे बड़ा मनोरंजन का साधन है। कई िफलमो
के गीत मनोरंजन के साथ िशका और पेरणा देने मे समथर हआ. िजसमे अनेक गीतकारो ने अपना महतवपूणर योगदान िदया,
जैसे सािहर लुिधयानवी, आनंद बखशी, जाँ िनसार अखतर, शैलेनद, राहल देव बमरन, नौशाद, गोपालदास नीरज आिद इन
गीतकारो ने अपने गीतो के माधयम से समाज मे नई िदशा दी है। गोपालदास नीरज सािहतय और िफलमो के गीतो दरा सबको
मदहोश िकया. कुछ लोगो को िफलमो का गीत-संगीत, लाजरर थैन लाइफ़ कैनवस, हक़ीकत से दूर कालपिनक दुिनया और
इसकी रंगीनयत पसंद आती
िसनेमा का भिवषय अचछा ही नजर आ रहा है. पूरे भारत भर मे अब िजस तरह की िफलमे बनने लगी है वो बहत पगितशील
है चाहे वो मराठी, तिमल या तेलगु िफलमे हो. अब तक हम बंधे हए थे लेिकन अब हम लोग और हमारा िसनेमा खुल रहा है,
आजाद हो रहा है. आगे जो भी होगा अचछा ही होगा.
िफलमे जहाँ रचनातमकता और कला िदखाने का एक जिरया है वही इसमे पैसा भी खूब लगता है.दोनो के बीच की ये जंग
बरसो से चली आ रही है. भारतीय िसनेमा के 100 साल के सफ़र मे हमारा रहन सहन, कपड़ने पहनने का तरीका, बोलचाल,
संसकृित ...इन सब पर िजतना असर िफ़लमो ने डाला है उतना असर शायद िकसी और चीज ने नही डाला. आज िसनेमा के
िबना भारत की कलपना करना मुिशकल है. सोिचए अगर िफलमो के डायलॉग नही होते, गीत नही होते. कभी पशंसा तो कभी
आलोचना के बीच 100 साल का सफ़र तो पूरा हआ लेिकन ये पड़ाव केवल इंटरवल भर है।
6. िफलमो ने समाज के सच को एक दसतावेज की तरह संजो रखा है। चाहे वह 1930 मे आर एस डी चौधरी की
बनाई वत हो, िजसमे मुखय पात महातमा गांधी जैसा िदखता था और इसी वजह से िबतानी सरकार ने इस िफलम को बैन भी
कर िदया था, चाहे 1937 मे वी शांताराम की दुिनया न माने। बेमेल िववाह पर बनी इस िफलम को सामािजक समसया पर
बनी कालजयी िफलमो मे शुमार िकया जा सकता है।
िजस दौर मे पािकसतान अलग करने की मांग और सांपदाियक वैमनसय जड़े जमा चुका था, 1941 मे िफलम
बनी पड़ोसी, जो सांपदाियके सौहादर पर आधािरत थी। िफलम शकुंतला के भरत को नए भारत के मेटाफर के रप मे इसतेमाल
िकया गया था। जाित हालांिक आज भी लगान और राजनीित तक मे िदखी है,लेिकन इससे बहत पहले 1936 मे ही देिवका
रानी और अशोक कुमार बॉमबे टॉकीज की अछूत कनया मे जाित पथा का मुदा उठा चुके थे। दिलत मुदे पर िफलमो मे बाद मे
बनी िफलम सुजाता को कोई कैसे िबसरा सकता है।
देश आजाद हआ तो एक नए िकसम का आदशरवाद छाया था। िफलमे भी इस लहर से अछूती नही थी। देश के नविनमारण मे
उसने कदमताल करते हए युवा वगर को नई िदशा,नया सोच और नए सपने बुनने के अवसर पदान िकए।50 का दशक संयुक
पिरवार और सामािजक समरता की िफ़लमोका दशक था। संसार’, ‘घूँघट’,घराना’, और ‘गृहसथी’ जैसी िफ़लमो ने समाज की
पािरवािरक इकाई मे भरोसे को रपहले परदे पर आवाज दी।इनही मूलयो और सुखांत कहािनयो के बीच कुछ ऐसी िफलमे भी
इस दौर मे आई, िजनने समाज मे वैचािरक सतर पर आ रहे बदलाव को रेखांिकत भी िकया।
एक ओर तो राज कपूर-िदलीप कुमार-देव आनंद की ितकड़ी अपने रोमांस के सुनहरे रोमांस से दुिनया जीत रहे थे। लेिकन
राज कपूर की िफलमो एक वैचािरक रझान साफ िदख रहा था, और वह असर था माकसरवादका। गौरी से किरअर शुर करने
वाले राज कपूर अिभनेता के तौर पर चाली चैिपलन का भारतीय संसकरण पेश करने की कोिशश मे थे। हालांिक शी420 मे
वह नाियका के साथ एक ही छतरी के नीचे बािरश मे भीगकर गाते भी है, और इस तरह राज कपूर ने दब-िछप कर रहने
वाले भारतीय रोमांस को एक नया अहसास िदया।
हालांिक, भारतीय िसनेमा के संदभर मे िकसी िवचारधारा की बात थोड़ी िवसंगत लग सकती है। लेिकन पचास के दशक के
शुरआती दौर मे िवचारधारा का असर िफलमो पर िदखा। िबमल रॉय की दो बीघा जमीन भारत मे नव-यथाथरवाद का मील
का पतथर है।
लेिकन जयादातर भारतीय िफलमो मे वामपंथी िवचारधारा के दशरन होते है वह कोई कांितकारी िवचारधारा न होकर
सामािजक नयाय की िहमायत करने वाली है। इसमे समाजसुधार, भूिम सुधार,गाँधीवादी दशरन और सामािजक नयाय सभी
कुछ शािमल है। लेिकन हर आदशरवाद की तरह िफलमो का यह गांधी पेिरत आदशरवाद जयादा िदन िटका नही। ऐसे मे
आराधना से राजेश खना का आिवभारव हआ। खना का रोमांस लोगो को पथरीली दुिनया से दूर ले जाता, यहां लोगो ने परदे
पर बािरश के बाद सुनसान मकान मे दो जवां िदलो को आग जलाकर िफर वह सब कुछ करते देखा, जो िसफर उनके खवाबो मे
था।
इस तरह का पलायनवाद जयादा िटकाऊ होता नही। दशरक बेचैन था। मंहगाई, बेरोजगारी, भषाचार और पंगु होती
ववसथा से लड़ने वाली एक बुलंद आवाज कीजररत थी। उदारीकरण के दौर मे भारतीय जनता का मानस बदल गया था।
अब लोगो के पास खचर करने के िलए पैसा था, तो वह रोटी के मसले पर कयो गुससा जािहर करे।
हालांिक, परदेसी भारतीयो के िलए बनाए जा रहे िसनेमा मे तड़क-भड़क जयादा हो गया और भारत के आम आदमी का
िसनेमा के कथानक से िरशता कमजोर हो गया। ऐसे मे िमडल िसनेमा ताजा हवा का झोका बनकर आया है। वावसाियक रप
से सफल इन िफलमो का काफट और कंटेट दोनो मुखयधारा की िफलमो से बेहतर है। आिमर खान की लगान, तारे जमीन पर
7. जैसी कई िफलमो, शाहरख की सवदेश और चक दे इंिडया,और शयाम बेनेगल की वेवकम टू सजनपुर और बेलडन अबबा ने
सामियक िवषयो को िफलमो मे जगह दी है। और तब अलग से यह कहने की जररत रह नही जाती िकिसनेमा समाज
का अकस है।
िहदी िफलमी गीतो की िविशषता ये है िक इनके सूर ताल बडी सहजता से लोगो का याद हो जाते है। सािहतय की सीमा
जहाँ शबद माधयम तक है। वही िफलम दृशय-््रव से सुसिजत पितमा माधयम होने के कारण दृशयो एवं अिभनय से अथर
लगाने मे सहजता पदान करता है। इसिलए िसनेमा अंतरारषीय मंच पर सबसे लोकिपय कला है। िहदी िसनेमा पेिमयो के
िलए यह गौरव की बात है िक भारत मे बनी िफलमे अपनी वैिशक संवेदना एवं सोच के कारण ऑसकर के िलए नॉिमनेट भी
होती है तथा पुरसकृत भी होती है। लगान, सलैम डॉग जैसी िफलमे िवश मंच पर अपनी धाक जमा चुकी है।
िहदी िफलम िवदेशी िफलम की बेहतर तकनीक ततव एवं पवृितयाँ को अपना रहा है। इसिलए िहदी िफलम अपना
एक सतरीय अतरारषीय सवरप िवकिसत हो रहा है। िहदी िसनेमा अपने िवषयो और संवेदनाओ के सामथर के कारण िवदेशो मे
भी लोकिपय हो पाया है।
िफलम कला अंतरारषीय भाषा एवं संसकृितक सीमाओ को लांघने वाला शेष माधयम है। इसिलए िसनेमा िवश भाषा और
िवश संसकृित का पितक बन गया है। इसिलए सारा िवश इस कला का सवागत करता है।िवजान ने िफलम को इतना सबल
बनाया िक आज िहदी िसनेमा सेटेलाइट और इनटरनेटे की अतयाधुिनक टेकनोलॉजी से सात समुनदर पार िवश के कोने कोने
मे रहने वाले िवदेिशयो और पवािशयो तक उसी पल पहँच रहा है। इन िसनेमाओ ने भारतीयो के अंतरंग मे झॉकने का
पयास िकया है। आज िसनेमा के केत मे ऐसा मोड आया है िक मानवीय संवेदनाओ की सोच और संवेदनाओ के िकितज को
असीम िवसतार दे रहा है कयोिक िसनेमा भािषक सीमाएँ लॉघने की सकम िवधा है। ऐसी कोई भी कला नही जो िसनेमा
जैसा सवरगुण संपन हो? इसिलए िहदी िसनेमा आज न केवल अंतरारषीय पुरषकार जीत रहा है। बिलक िहदी िसनेमा के
िनदेशको एवं िसने कलाकारो को अतरारषीय खयाित भी िदला रहा है तथा वैिशक मंच भी पदान कर रहा है।