SlideShare uma empresa Scribd logo
1 de 20
Baixar para ler offline
गाणपत्य सम्प्रदाय
डॉ. विराग सोनटक्क
े
सहायक राध्यापक
राचीन भारतीय इततहास, संस्कृ तत और पुरातत्ि विभाग
बनारस हहंदू विद्यापीठ, िाराणसी
B.A. Semester III
Paper:301, UNIT: V
Cult Worship
गाणपत्य सम्प्रदाय
रस्तािना
• गणपतत को उपास्यदेि माननेिाला सम्प्रदाय।
• गणपतत को सिोच्च मानने िाले
• कालानुरुप गणपतत पूजा में विकास की रक्रिया दृष्टटगोचर होती
है।
• गणपतत पूजा में क्षेत्रीय रभाि पररलक्षक्षत होता है।
• उत्तर भारत: रभािशाली नही।
• दक्षक्षण भारत: लोकवरय (गणेश की पूजा मातृदेिी क
े सथ)
• मध्य भारत (महाराटर): अत्यंत लोकवरय
• पूजा विधि में बदलाि क
े कारण गणपतत उपासना में अनेक
संरदायों जन्म हुआ।
गाणपत्य सम्प्रदाय का विकास
1. िैहदक काल में वििरण:
गण, रुद्र क
े साथ
2. उत्तर िैहदक काल वििरण:
विनायक
3. पुराणों में वििरण:
विघ्नहताा
रुद्र/
गणपतत
विघ्नकताा/
विनायक
विघ्नहताा/
गणेश
िैहदक काल (रथम अिस्था): गणपतत-
रुद्र
• ऋग्िेद क
े ब्राह्मणस्पतत क
े मंत्रो में “गणपतत” शब्द का रयोग
• गणपतत का अथा: गण अथिा समुदाय का स्िामी
• िैहदक साहहत्य में नाम: महाहष्स्त, एकदन्त, िितुंड, दन्ती
• ऋग्िेद में मरुद को रुद्र का गण कहा है,
• अथिािेद में उसे रुद्र क
े अनुचर कहा है।
• यजुिेद में गणो को रुद्र का उपासक बताया है।
• मूषक का सम्प्बन्ि रुद्र क
े साथ
• अतः रारम्प्भ में रुद्र ही गणपतत थे।
• गण : भूत-वपशाच आहद श्रेणी क
े जीि थे, उन्हें “िव्याद” (मृतमांस
भक्षी” कहा जाता था।)
• ये गण उपद्रिी और विघ्नकारक थे, ष्जनको शांत रखने क
े ललए
रुद्र की उपासना होती थी।
उत्तर िैहदक काल (द्वितीय अिस्था: विनायक
)
• बौिायन िमासूत्र: विनायक संज्ञा से गणपतत का उल्लेख
• बौिायन िमासूत्र: एकदन्त, िितुंड, स्थूल,विघ्न, लम्प्बोदर की उपाधि
• गृह्यसूत्रों: विनायक को विघ्नो-बािाओं का देिता।
• मानि गृह्यसूत्र: विनायक की संख्या ४
• यह विनायक अहहतकारी है, जो मनुटय क
े शुभ कायों में बािा उत्पन्न
करते है।
1. ष्जससे मनुटय पागलों सा व्यिहार करता है, उसे दु:स्िप्न आते है।
2. विनायक क
े दुटरभाि से कन्या को िर नही लमलता।
3. राजक
ु मारों को राज्य नही लमलता
4. विद्िानो को सम्प्मान नही लमलता
5. विद्याथी को ज्ञान नही लमलता
6. व्यापारी की िन नही,
7. ष्स्त्रयों को पुत्र नही,
8. क्रकसानो को फल नही, आहद।
द्वितीय अिस्था: विनायक
• विनायकों क
े उपद्रिों को शांत करने क
े ललए
1. चार हदशाओं की लमट्टी एिं चार हदशाओं का जल से स्नान
2. सरसों क
े तुरंत तनकले तेल से विनायकों को आहुतत
3. ऊदंबर िृक्ष की टहनी व्यष्क्त क
े लसर पर डालना
4. दाल, चािल, िान,मछली टोकरी में रखक
े चौराहे पे बबछाना।
5. स्तुतत मंत्रो का जाप
6. सूया की स्तुतत
• गणपतत और विनायक सूत्रकाल तक रुद्र क
े रूप माने जाते थे।
• रुद्र की उपाधियााँ गणपतत क
े ललए रयुक्त हुई है।( भूतपतत, उग्र, भीम)
• अथिालशरस उप॰: रुद्र एिं विनायक एक ही देिता
• कालांतर में रुद्र का समीकरण लशि से हुआ और
• विनायक एक स्ितंत्र देिता क
े रूप में गणेश क
े नाम से कष्ल्पत क्रकए।
पुराणों में गणपतत (तृतीय अिस्था: विघ्नहताा/ गणेश
)
• एक स्ितंत्र देि
• िराहपुराण : सत्काया में बािा डालने िाला
• अष्ग्नपुराण: मानिों क
े कायों में विघ्न डालने क
े ललए ब्रम्प्हा,
विटणु और लशि ने गणेश की उत्पवत्त की
• ब्रम्प्हपुराण: गणेश को देिताओं क
े यज्ञ में विघ्न डालने िाला
• िाहन : मूषक का उल्लेख
• लशि क
े द्वितीय पुत्र क
े रूप में स्थावपत
• कालांतर में गणेश को विघ्नकारक न मानकर विघ्नो का नाश
करनेिाला माना जाने लगा।
• सौया पुराण: लशि ही गणेश
• ललंगपुराण : देिताओं क
े विनती पे लशि स्ितः गणेश रूप में जन्म
• ब्रम्प्हिैिता पुराण: गणेश :- विटणु का अितार।
तृतीय अिस्था: विघ्नहताा/ गणेश
1. रारम्प्भ में विघ्नकारक गणपतत
2. विघ्नो का देिता विनायक
3. विघ्नकारक गणेश क
े रूप में उपासना
4. अष्ग्नपुराण: काया क
े तनविाघ्न समाष्प्त क
े ललए
गणेश की पूजा
5. अष्ग्नपुराण: माघ कृ टण पक्ष की चतुथी (विशेष
ततधथ)
6. अष्ग्नपुराण:एक मंडल क
े मध्य “गणेश” रततमा
स्थावपत करक
े , मंत्र की पूजा।
7. गणपतत क
े उपासकों को “गाणपत्य सम्प्रदाय” कहा
ऐततहालसक काल में गाणपत्य
सम्प्रदाय
• भण्डारकर: गाणपत्य सम्प्रदाय ईसा की ५ िी सदी से ८ िी सदी क
े
मध्य अष्स्तत्ि में आया होगा।
• िाकाटकों क
े राजिानी नगरिन क
े उत्खनन में ५-६ िी सदी की लघु
गणेश रततमा राप्त हुई है।
• एलोरा की गुफाओं में गणपतत की मूततायााँ है।
• ८५२ ईसिी सन क
े जोिपुर (घहटयरा) क
े स्तम्प्भ अलभलेख में गणेश
पूजा क
े रचलन का धचन्ह
• पूिा-मध्यकाल एिं मध्यकाल क
े अनेक मंहदरों में गणेश रततमा
गाणपत्य सम्प्रदाय क
े लोकवरयता का संक
े त है।
• ऐततहालसक काल एिं परिती काल में गणेश पूजा सप्त-मातृकाओं
क
े साथ होती थी।
गाणपत्य सम्प्रदाय मान्यताएाँ
• गणेश ही विश्ि क
े सृटटा, पालनकताा और संहारकताा है।
• पृथक पुराण: गणेश पुराण
• गणेश पुराण में गणेश क
े नाम: महाविटणु, महाशष्क्त, महब्रह्म,
सदालशि
• गणेश क
े विलभन्न रूप है।
• इनक
े विलभन्न रूपो का धचंतन ही योग है।
• मानि हहत क
े ललए गणेश भी अितार लेते है,
• विटणु क
े जैसे गणेश क
े विलभन्न अितार है,
• विटणु,लशि और अन्य देि गणेश से ही उत्पन्न है,
• अंत में सभी गणेश में समा जाते है।
• मोक्ष राष्प्त क
े पश्च्यात पतन का भय गणेश भक्तों को नही
होता।
उप-सम्प्रदाय
स्त्रोत: आनंदधगरी का शंकरहदष्ग्िजय
1. महा गाणपत्य सम्प्रदाय
2. हररद्र गाणपत्य सम्प्रदाय
3. हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय
स्त्रोत: िनपतीने माििाचायाक
े शंकरहदष्ग्िजया पर भाटय
1. निनीत गणपती: निनीत
2. स्िणा गणपती: स्िणा
3. सन्तान गणपती: संतान
• (निनीत, स्िणा और सन्तान- ये तीनों गणपततयों क
े उपासक अपने को
श्रुततमागी कहते हैं
• यह गणपतत को सिोपरर ब्रह्म क
े रूप में ही मानते हैं।
• िे विश्ि को भगिान्गणेश का रतीक मानते हैं और
• सभी देिताओं को उनका अंश मानते हैं।)
१॰ महा गाणपत्य सम्प्रदाय
• पौराणणक उपासना पद्ितत
• महागणपतत जगत क
े स्िामी है और
रलयकाल में एकमात्र िही शेष बचते
है।
• महागणपतत अपने शष्क्त से देिताओं
की रचना करते है।
• िह शांत रहते है।
• शष्क्त से पररपूणा रहते है।
• महागणपतत की उपासना इसी रूप में
करनी चाहहए।
२॰ हररद्र गाणपत्य सम्प्रदाय
• इस सम्प्रदाय में गणेश
1. वपतंबरयुक्त
2. यज्ञोपिीतिारी
3. चतुभुाज
4. बत्रनेत्र
5. पाश-अंक
ु श और
6. दंडिारी गणेश की उपासना
• उपासक दोनो हाथों में गणपतत का मुख और दंत
धचष्न्हत करिाते थे।
३॰ हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय
•गणेश क
े लभन्न स्िरूप की
आरािना
•िाममागी सम्प्रदाय
•शाक्त िमा क
े “कौलाचररयों”
का रभाि
•गणेश की “हेरम्प्ब” नाम से
उपासना।
•गणेश को कामुक और अश्लील
रूप में कष्ल्पत क्रकया गया।
३॰ हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय
• िाममागी सम्प्रदाय
• गणेश विशाल आसान पर आसीन सुरापान करते हुए,
कालमनी को आलंधगत करते हुए रस्तुत क्रकया गया।
• गणेश चतुभुाज, बत्रनेत्रिारी, हाथों में पाश ललए हदखाया
गया।
• इस सम्प्रदाय की उपासना विधि भी कामुक और अश्लील
थी।
• उपासक नर को हेरम्प्ब और नारी को शष्क्त मानकर
स्ितंत्र यौन संबंिो की पद्ितत।
• उपासकों को महदरापान और कामिीडा की पूणा स्ितंत्रता
• उपासक अंक
ु श तथा परशु िारण करते थें
• मस्तक पर रक्त धचन्ह
• संध्या-िंदना क
े ललए कोई तनयम नही
• जातत –भेद मान्य नही
• शंकर ने इस सम्प्रदाय की घोर भत्साना की है।
• हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय का एक नाम उष्च्छटट सम्प्रदाय था
जो नेपाल में रचललत था।
क्षेत्र विस्तार
• सामान्यत: गणेश की उपासना शुभ काया क
े आरम्प्भ में
की जाती है।
• उत्तर भारत में अधिक रभाि नही।
• दक्षक्षण भारत में अधिक रचललत और लोकवरय
• गणेश विघ्नहताा और समृद्धि क
े देिता माने गए।
• इनकी उपासना मातृदेिी क
े साथ की जाती थी।
• ततब्बत में बौद्ि मंहदरो क
े द्िार पर गणेश की रततमाए
स्थावपत करने की परम्प्परा।
• मंहदर क
े संरक्षक देिता
गणेश रततमा
1. उष्च्छटटगणपती: लालिणा, चतुभुाज.
2. महागणपती : रक्तिणा, दशभुज.
3. ऊध्िागणपती : सुिणापीतिणा, षड्‍
भुज.
4. वपंगलगणपती : वपलािणा, षड्‍
भुज.
5. लक्ष्मीगणपती : शुभ्रिणा, चतुभुाज या
अटटभुज.
6. हररद्रागणपती: वपलािणा, चतुभुाज
गणेश प्रतिमा
उपसंहार
• गणेश ज्ञान और बुद्धि क
े देिता
• विघ्नहताा
• मंगल कायों में पूजनीय
• बुद्धि क
े देिता
• दक्षक्षण भारत विशेष रूप से महाराटर में अत्यधिक
लोकवरय एिं रचललत।

Mais conteúdo relacionado

Mais procurados

Mais procurados (20)

शाक्त धर्म
शाक्त धर्म शाक्त धर्म
शाक्त धर्म
 
Meaning and nature of religion
Meaning and nature of religionMeaning and nature of religion
Meaning and nature of religion
 
व्रत एवं दान
व्रत एवं दान व्रत एवं दान
व्रत एवं दान
 
Shaiva Cult
Shaiva CultShaiva Cult
Shaiva Cult
 
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ  .pptxउत्तर वैदिक यज्ञ  .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
 
Avatarvad
AvatarvadAvatarvad
Avatarvad
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय
 
Early and later vaidik religion
Early and later vaidik religionEarly and later vaidik religion
Early and later vaidik religion
 
Later vedik sacrifices
Later vedik sacrificesLater vedik sacrifices
Later vedik sacrifices
 
Teaching of bhagvatgita
Teaching of bhagvatgitaTeaching of bhagvatgita
Teaching of bhagvatgita
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptxDifference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)
Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)
Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)
 
Primitive Religion
Primitive ReligionPrimitive Religion
Primitive Religion
 
Panchdevopasana
PanchdevopasanaPanchdevopasana
Panchdevopasana
 
वार्ता.pptx
वार्ता.pptxवार्ता.pptx
वार्ता.pptx
 
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina TirthankaraLife sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
 
शाक्त धर्म .pptx
शाक्त धर्म .pptxशाक्त धर्म .pptx
शाक्त धर्म .pptx
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects
Difference between Shwetamber and Digambar SectsDifference between Shwetamber and Digambar Sects
Difference between Shwetamber and Digambar Sects
 
Life and teaching of Gautam Buddha
Life and teaching of Gautam BuddhaLife and teaching of Gautam Buddha
Life and teaching of Gautam Buddha
 
1Economic Conditions during 6th Century BCE.pdf
1Economic Conditions during 6th Century BCE.pdf1Economic Conditions during 6th Century BCE.pdf
1Economic Conditions during 6th Century BCE.pdf
 

Semelhante a गाणपत्य सम्प्रदाय

जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _ भगवान महावीर स्वामी का जीवन...
जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _  भगवान महावीर स्वामी का जीवन...जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _  भगवान महावीर स्वामी का जीवन...
जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _ भगवान महावीर स्वामी का जीवन...
PRAVIN KUMAR
 
Shiv puran
Shiv puranShiv puran
Shiv puran
SangiSathi
 

Semelhante a गाणपत्य सम्प्रदाय (20)

Vishnu cult
Vishnu cult Vishnu cult
Vishnu cult
 
जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _ भगवान महावीर स्वामी का जीवन...
जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _  भगवान महावीर स्वामी का जीवन...जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _  भगवान महावीर स्वामी का जीवन...
जैन धर्म के उदय के कारण _ जैन धर्म के संस्थापक _ भगवान महावीर स्वामी का जीवन...
 
GSP - 1 Bauddh Bharm (बौद्ध धर्म)
GSP - 1   Bauddh Bharm (बौद्ध धर्म)GSP - 1   Bauddh Bharm (बौद्ध धर्म)
GSP - 1 Bauddh Bharm (बौद्ध धर्म)
 
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ  .pptxउत्तर वैदिक यज्ञ  .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
 
Qci ved Upnishad Agam Puran
Qci ved Upnishad Agam PuranQci ved Upnishad Agam Puran
Qci ved Upnishad Agam Puran
 
वैदिक वास्तु .pptx
वैदिक वास्तु .pptxवैदिक वास्तु .pptx
वैदिक वास्तु .pptx
 
Shraddha mahima
Shraddha mahimaShraddha mahima
Shraddha mahima
 
Jainism in varanasi by vivekanand jain bhu
Jainism in varanasi by vivekanand jain bhuJainism in varanasi by vivekanand jain bhu
Jainism in varanasi by vivekanand jain bhu
 
Vaartaa.pdf
Vaartaa.pdfVaartaa.pdf
Vaartaa.pdf
 
Economic conditions during 6th century bce
Economic conditions during 6th century bceEconomic conditions during 6th century bce
Economic conditions during 6th century bce
 
1 economic conditions during 6th century bc [auto saved]
1 economic conditions during 6th century bc [auto saved]1 economic conditions during 6th century bc [auto saved]
1 economic conditions during 6th century bc [auto saved]
 
Tapa तप
Tapa तपTapa तप
Tapa तप
 
Jain monk yogindra sagar ji maharaj
Jain monk yogindra sagar ji maharajJain monk yogindra sagar ji maharaj
Jain monk yogindra sagar ji maharaj
 
वार्ता
वार्तावार्ता
वार्ता
 
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptxत्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
 
Shiv puran
Shiv puranShiv puran
Shiv puran
 
SANKARACHRYA
SANKARACHRYASANKARACHRYA
SANKARACHRYA
 
General introduction and scope of kaumarbhritya
General introduction and scope of kaumarbhrityaGeneral introduction and scope of kaumarbhritya
General introduction and scope of kaumarbhritya
 
Mimansa philosophy
Mimansa philosophyMimansa philosophy
Mimansa philosophy
 
HINDU DHARM .pdf
HINDU DHARM .pdfHINDU DHARM .pdf
HINDU DHARM .pdf
 

Mais de Virag Sontakke

Mais de Virag Sontakke (20)

समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in Indiaसमुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
 
Military Administration and Ethics of War .pdf
Military Administration and Ethics of War .pdfMilitary Administration and Ethics of War .pdf
Military Administration and Ethics of War .pdf
 
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular IndiaMegalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
 
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of IndiaPainted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
 
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
 
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Periodगुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
 
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptxवैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
 
Odisha Temple Architecture .pptx
Odisha Temple Architecture .pptxOdisha Temple Architecture .pptx
Odisha Temple Architecture .pptx
 
Kandariya Mahadev Temple.pdf
Kandariya Mahadev Temple.pdfKandariya Mahadev Temple.pdf
Kandariya Mahadev Temple.pdf
 
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal” .pptx
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal”   .pptxTemple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal”   .pptx
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal” .pptx
 
Pallava Ratha.pptx
Pallava Ratha.pptxPallava Ratha.pptx
Pallava Ratha.pptx
 
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptxOrigin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
 
KONARK SUN TEMPLE.pptx
KONARK SUN TEMPLE.pptxKONARK SUN TEMPLE.pptx
KONARK SUN TEMPLE.pptx
 
Ellora Caves 16.46.42.pptx
Ellora Caves 16.46.42.pptxEllora Caves 16.46.42.pptx
Ellora Caves 16.46.42.pptx
 
Ellora cave no 10 .pptx
Ellora cave no 10 .pptxEllora cave no 10 .pptx
Ellora cave no 10 .pptx
 
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja, Kondane...
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja,  Kondane...Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja,  Kondane...
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja, Kondane...
 
Pataliputra.pptx
Pataliputra.pptxPataliputra.pptx
Pataliputra.pptx
 
Rajgriha town.pptx
Rajgriha town.pptxRajgriha town.pptx
Rajgriha town.pptx
 
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptxTown Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
 
Collection- Nature, Purchase.pptx
Collection- Nature, Purchase.pptxCollection- Nature, Purchase.pptx
Collection- Nature, Purchase.pptx
 

गाणपत्य सम्प्रदाय

  • 1. गाणपत्य सम्प्रदाय डॉ. विराग सोनटक्क े सहायक राध्यापक राचीन भारतीय इततहास, संस्कृ तत और पुरातत्ि विभाग बनारस हहंदू विद्यापीठ, िाराणसी B.A. Semester III Paper:301, UNIT: V Cult Worship
  • 3. रस्तािना • गणपतत को उपास्यदेि माननेिाला सम्प्रदाय। • गणपतत को सिोच्च मानने िाले • कालानुरुप गणपतत पूजा में विकास की रक्रिया दृष्टटगोचर होती है। • गणपतत पूजा में क्षेत्रीय रभाि पररलक्षक्षत होता है। • उत्तर भारत: रभािशाली नही। • दक्षक्षण भारत: लोकवरय (गणेश की पूजा मातृदेिी क े सथ) • मध्य भारत (महाराटर): अत्यंत लोकवरय • पूजा विधि में बदलाि क े कारण गणपतत उपासना में अनेक संरदायों जन्म हुआ।
  • 4. गाणपत्य सम्प्रदाय का विकास 1. िैहदक काल में वििरण: गण, रुद्र क े साथ 2. उत्तर िैहदक काल वििरण: विनायक 3. पुराणों में वििरण: विघ्नहताा रुद्र/ गणपतत विघ्नकताा/ विनायक विघ्नहताा/ गणेश
  • 5. िैहदक काल (रथम अिस्था): गणपतत- रुद्र • ऋग्िेद क े ब्राह्मणस्पतत क े मंत्रो में “गणपतत” शब्द का रयोग • गणपतत का अथा: गण अथिा समुदाय का स्िामी • िैहदक साहहत्य में नाम: महाहष्स्त, एकदन्त, िितुंड, दन्ती • ऋग्िेद में मरुद को रुद्र का गण कहा है, • अथिािेद में उसे रुद्र क े अनुचर कहा है। • यजुिेद में गणो को रुद्र का उपासक बताया है। • मूषक का सम्प्बन्ि रुद्र क े साथ • अतः रारम्प्भ में रुद्र ही गणपतत थे। • गण : भूत-वपशाच आहद श्रेणी क े जीि थे, उन्हें “िव्याद” (मृतमांस भक्षी” कहा जाता था।) • ये गण उपद्रिी और विघ्नकारक थे, ष्जनको शांत रखने क े ललए रुद्र की उपासना होती थी।
  • 6. उत्तर िैहदक काल (द्वितीय अिस्था: विनायक ) • बौिायन िमासूत्र: विनायक संज्ञा से गणपतत का उल्लेख • बौिायन िमासूत्र: एकदन्त, िितुंड, स्थूल,विघ्न, लम्प्बोदर की उपाधि • गृह्यसूत्रों: विनायक को विघ्नो-बािाओं का देिता। • मानि गृह्यसूत्र: विनायक की संख्या ४ • यह विनायक अहहतकारी है, जो मनुटय क े शुभ कायों में बािा उत्पन्न करते है। 1. ष्जससे मनुटय पागलों सा व्यिहार करता है, उसे दु:स्िप्न आते है। 2. विनायक क े दुटरभाि से कन्या को िर नही लमलता। 3. राजक ु मारों को राज्य नही लमलता 4. विद्िानो को सम्प्मान नही लमलता 5. विद्याथी को ज्ञान नही लमलता 6. व्यापारी की िन नही, 7. ष्स्त्रयों को पुत्र नही, 8. क्रकसानो को फल नही, आहद।
  • 7. द्वितीय अिस्था: विनायक • विनायकों क े उपद्रिों को शांत करने क े ललए 1. चार हदशाओं की लमट्टी एिं चार हदशाओं का जल से स्नान 2. सरसों क े तुरंत तनकले तेल से विनायकों को आहुतत 3. ऊदंबर िृक्ष की टहनी व्यष्क्त क े लसर पर डालना 4. दाल, चािल, िान,मछली टोकरी में रखक े चौराहे पे बबछाना। 5. स्तुतत मंत्रो का जाप 6. सूया की स्तुतत • गणपतत और विनायक सूत्रकाल तक रुद्र क े रूप माने जाते थे। • रुद्र की उपाधियााँ गणपतत क े ललए रयुक्त हुई है।( भूतपतत, उग्र, भीम) • अथिालशरस उप॰: रुद्र एिं विनायक एक ही देिता • कालांतर में रुद्र का समीकरण लशि से हुआ और • विनायक एक स्ितंत्र देिता क े रूप में गणेश क े नाम से कष्ल्पत क्रकए।
  • 8. पुराणों में गणपतत (तृतीय अिस्था: विघ्नहताा/ गणेश ) • एक स्ितंत्र देि • िराहपुराण : सत्काया में बािा डालने िाला • अष्ग्नपुराण: मानिों क े कायों में विघ्न डालने क े ललए ब्रम्प्हा, विटणु और लशि ने गणेश की उत्पवत्त की • ब्रम्प्हपुराण: गणेश को देिताओं क े यज्ञ में विघ्न डालने िाला • िाहन : मूषक का उल्लेख • लशि क े द्वितीय पुत्र क े रूप में स्थावपत • कालांतर में गणेश को विघ्नकारक न मानकर विघ्नो का नाश करनेिाला माना जाने लगा। • सौया पुराण: लशि ही गणेश • ललंगपुराण : देिताओं क े विनती पे लशि स्ितः गणेश रूप में जन्म • ब्रम्प्हिैिता पुराण: गणेश :- विटणु का अितार।
  • 9. तृतीय अिस्था: विघ्नहताा/ गणेश 1. रारम्प्भ में विघ्नकारक गणपतत 2. विघ्नो का देिता विनायक 3. विघ्नकारक गणेश क े रूप में उपासना 4. अष्ग्नपुराण: काया क े तनविाघ्न समाष्प्त क े ललए गणेश की पूजा 5. अष्ग्नपुराण: माघ कृ टण पक्ष की चतुथी (विशेष ततधथ) 6. अष्ग्नपुराण:एक मंडल क े मध्य “गणेश” रततमा स्थावपत करक े , मंत्र की पूजा। 7. गणपतत क े उपासकों को “गाणपत्य सम्प्रदाय” कहा
  • 10. ऐततहालसक काल में गाणपत्य सम्प्रदाय • भण्डारकर: गाणपत्य सम्प्रदाय ईसा की ५ िी सदी से ८ िी सदी क े मध्य अष्स्तत्ि में आया होगा। • िाकाटकों क े राजिानी नगरिन क े उत्खनन में ५-६ िी सदी की लघु गणेश रततमा राप्त हुई है। • एलोरा की गुफाओं में गणपतत की मूततायााँ है। • ८५२ ईसिी सन क े जोिपुर (घहटयरा) क े स्तम्प्भ अलभलेख में गणेश पूजा क े रचलन का धचन्ह • पूिा-मध्यकाल एिं मध्यकाल क े अनेक मंहदरों में गणेश रततमा गाणपत्य सम्प्रदाय क े लोकवरयता का संक े त है। • ऐततहालसक काल एिं परिती काल में गणेश पूजा सप्त-मातृकाओं क े साथ होती थी।
  • 11. गाणपत्य सम्प्रदाय मान्यताएाँ • गणेश ही विश्ि क े सृटटा, पालनकताा और संहारकताा है। • पृथक पुराण: गणेश पुराण • गणेश पुराण में गणेश क े नाम: महाविटणु, महाशष्क्त, महब्रह्म, सदालशि • गणेश क े विलभन्न रूप है। • इनक े विलभन्न रूपो का धचंतन ही योग है। • मानि हहत क े ललए गणेश भी अितार लेते है, • विटणु क े जैसे गणेश क े विलभन्न अितार है, • विटणु,लशि और अन्य देि गणेश से ही उत्पन्न है, • अंत में सभी गणेश में समा जाते है। • मोक्ष राष्प्त क े पश्च्यात पतन का भय गणेश भक्तों को नही होता।
  • 12. उप-सम्प्रदाय स्त्रोत: आनंदधगरी का शंकरहदष्ग्िजय 1. महा गाणपत्य सम्प्रदाय 2. हररद्र गाणपत्य सम्प्रदाय 3. हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय स्त्रोत: िनपतीने माििाचायाक े शंकरहदष्ग्िजया पर भाटय 1. निनीत गणपती: निनीत 2. स्िणा गणपती: स्िणा 3. सन्तान गणपती: संतान • (निनीत, स्िणा और सन्तान- ये तीनों गणपततयों क े उपासक अपने को श्रुततमागी कहते हैं • यह गणपतत को सिोपरर ब्रह्म क े रूप में ही मानते हैं। • िे विश्ि को भगिान्गणेश का रतीक मानते हैं और • सभी देिताओं को उनका अंश मानते हैं।)
  • 13. १॰ महा गाणपत्य सम्प्रदाय • पौराणणक उपासना पद्ितत • महागणपतत जगत क े स्िामी है और रलयकाल में एकमात्र िही शेष बचते है। • महागणपतत अपने शष्क्त से देिताओं की रचना करते है। • िह शांत रहते है। • शष्क्त से पररपूणा रहते है। • महागणपतत की उपासना इसी रूप में करनी चाहहए।
  • 14. २॰ हररद्र गाणपत्य सम्प्रदाय • इस सम्प्रदाय में गणेश 1. वपतंबरयुक्त 2. यज्ञोपिीतिारी 3. चतुभुाज 4. बत्रनेत्र 5. पाश-अंक ु श और 6. दंडिारी गणेश की उपासना • उपासक दोनो हाथों में गणपतत का मुख और दंत धचष्न्हत करिाते थे।
  • 15. ३॰ हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय •गणेश क े लभन्न स्िरूप की आरािना •िाममागी सम्प्रदाय •शाक्त िमा क े “कौलाचररयों” का रभाि •गणेश की “हेरम्प्ब” नाम से उपासना। •गणेश को कामुक और अश्लील रूप में कष्ल्पत क्रकया गया।
  • 16. ३॰ हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय • िाममागी सम्प्रदाय • गणेश विशाल आसान पर आसीन सुरापान करते हुए, कालमनी को आलंधगत करते हुए रस्तुत क्रकया गया। • गणेश चतुभुाज, बत्रनेत्रिारी, हाथों में पाश ललए हदखाया गया। • इस सम्प्रदाय की उपासना विधि भी कामुक और अश्लील थी। • उपासक नर को हेरम्प्ब और नारी को शष्क्त मानकर स्ितंत्र यौन संबंिो की पद्ितत। • उपासकों को महदरापान और कामिीडा की पूणा स्ितंत्रता • उपासक अंक ु श तथा परशु िारण करते थें • मस्तक पर रक्त धचन्ह • संध्या-िंदना क े ललए कोई तनयम नही • जातत –भेद मान्य नही • शंकर ने इस सम्प्रदाय की घोर भत्साना की है। • हेरम्प्बसुत सम्प्रदाय का एक नाम उष्च्छटट सम्प्रदाय था जो नेपाल में रचललत था।
  • 17. क्षेत्र विस्तार • सामान्यत: गणेश की उपासना शुभ काया क े आरम्प्भ में की जाती है। • उत्तर भारत में अधिक रभाि नही। • दक्षक्षण भारत में अधिक रचललत और लोकवरय • गणेश विघ्नहताा और समृद्धि क े देिता माने गए। • इनकी उपासना मातृदेिी क े साथ की जाती थी। • ततब्बत में बौद्ि मंहदरो क े द्िार पर गणेश की रततमाए स्थावपत करने की परम्प्परा। • मंहदर क े संरक्षक देिता
  • 18. गणेश रततमा 1. उष्च्छटटगणपती: लालिणा, चतुभुाज. 2. महागणपती : रक्तिणा, दशभुज. 3. ऊध्िागणपती : सुिणापीतिणा, षड्‍ भुज. 4. वपंगलगणपती : वपलािणा, षड्‍ भुज. 5. लक्ष्मीगणपती : शुभ्रिणा, चतुभुाज या अटटभुज. 6. हररद्रागणपती: वपलािणा, चतुभुाज
  • 20. उपसंहार • गणेश ज्ञान और बुद्धि क े देिता • विघ्नहताा • मंगल कायों में पूजनीय • बुद्धि क े देिता • दक्षक्षण भारत विशेष रूप से महाराटर में अत्यधिक लोकवरय एिं रचललत।