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छहढाला - ढाल २
तुतकता-
काश और पूजा छाबडा, यंग जैन टडी ुप, इ दौर
दुःख
का
कारण
दूसरी
ढाल म
कसका
वणन ह
जीव के दुःख का कारण या है?
िम यादशन िम या ान िम याचा र
का िम यापना
ऎसे िम या दृग- ान-चणवश
मत भरत दुःख ज म मण ।
ा ान चा र
=िम या व
िम यादशन िम या ान
िवपरीत
मा यता
िवपरीत
जानना
िम याचा र
िवपरीत
आचरण
= राग -
ेष
िम या व = िम या + व = िवपरीत भाव
िम या व जीव को कब से है?
अना द से
इसिलये दुःख भी कब से ह?
अना द से
ऎसे िम या दृग- ान-चणवश मत भरत दुःख ज म मण ।
तात इनको तिजये सुजान, सुन ितन सं ेप क ँ बखान ॥१॥
दुःख का कारण या है? िम या व
िम या व के कारण या
हो रहा है?
जीव संसार म घूमकर ज म-
मरण के दुःख भोग रहा ह
दुःख से बचने के िलये
अब या कर
अ छी कार से इ ह जानकर
छोड
इसिलये पि डतजी या
करते ह?
थोडे म िम या व का वणन
करते ह
हम या कर उसे सुन
िम या व के कार
अगृहीत गृहीत
िबना िसखाया गया नया हण कया गया
अना दकालीन नवीन - अगृहीत
को पु करता
देह और आ मा को
एक मानना
कुदेव, कुगु , कुधम
के सेवन से होता
दुःख के कारण
िम या ान
दशन
चा र
गृहीत
अगृहीत
गृहीत
अगृहीत
गृहीत
अगृहीत
❇ योजनभूत जीवा द
त व का िवपरीत ान
❇सात त व संबंधी भूल
अगृिहत िम या
दशन या है?
जीवा द योजनभूत त व
सरधै ितनमाँही िवपयय व ।
जीवा द त व कौन कौन से ह?
जीव
अजीव
आ व
बंध
मो
िनजरा
संवर
❇दुःख दूर करना
❇सुखी होना
योजन
या है?
❇िजससे दुःख दूर हो
❇सुख हो
योजनभूत
या आ?
❇जो व तु जैसी है उसका जो भाव
❇तत् + व = वह + भाव
त व कसे कहते ह?
ा
िव ास
❇ ान-दशन वभावी आ मा को
कहते ह
❇वह चेतन त व आ मा ही म ँ
जीव
❇ ान-दशन वभावी आ मा से िभ
सम त पु ला द पाँच
❇तथा मेरी आ मा को छोडकर शेष
सभी आ माय
(यहाँ अपे ा अव य समझे)
अजीव
आ व बंध मोिनजरासंवर
भाव
भाव
जीव के
िवशेष
अजीव के
िवशेष
िवशेष = पयाय
õÎu का आना
का ¡á¿tá yè yÉrÃo ÒáèÃáá
का आना कना
का एकदेश िखरना
का yÉqæ¾áë ÃááÏá
- ¡ádáw
- rÃo
- yßwË
- ãÃákëËá
- táèÖá
कम
का rÃáè ËÒÃáá
£¿qãÚá
वृि
qæ¾áëmá
- ¡ádáw
- rÃo
- yßwË
- ãÃákëËá
- táèÖá
Ïáås-¡Ïáås sáwáèß
शु भाव क
क £¿qãÚásáw
“चेतन को है उपयोग प,
िच मुरत िबनमुरत अनूप॥२॥”
जीव अजीव त व संबंधी भूल
जीव का व प कैसा है ?
उपयोग प ान-दशन प
िच मुरत चैत य ( ान) क मू त
िबन मुरत अमूत
अनूप िजसक कोई उपमा नह
पु ल,आकाश,धम
,अधम , काल
से जीव अलग है
य क ये अचेतन ह
जीव
चेतन है
“ पु ल नभ धम अधम काल,
इनत यारी है जीव चाल।”
जीव ( वयं)
‫٭‬ चेतना गुण सिहत
‫٭‬ अमू तक
‫٭‬ असं यात देशी
एक अख ड
‫٭‬ चेतना गुण रिहत
(जड)
‫٭‬ मू तक
‫٭‬ अन त परमाणु
का िप ड
पु ल
(मु य प से शरीर)
‫٭‬ मने चलाया
‫٭‬ मने रोका
‫٭‬ मने ठहराया
‫٭‬ मने प रणमाया
‫٭‬ पु ल,धम ,अधम , आकाश,
काल को अपने से िभ न जान
‫٭‬ अपने मानता
‫٭‬ शरीर से ही अपनी पहचान मानता
“ताको न जान िवपरीत मान,
क र करे देह मे िनज िपछान॥३॥”
शरीर से ही अपनी पहचान मानने के कारण
४ कार क जीव िवपरीत बुि रखता ह
एक व मम व कतृ व भो ृ व
म मेरे म करता म भोगता
म सुखी- दुःखी म रंक-राव,
मेरे धन गृह गोधन भाव।
मेरे सुत ितय म सबल दीन,
बे प-सुभग मूरख वीण॥४॥
‫٭‬ सुखी
‫٭‬ दुखी
‫٭‬ रंक (गरीब)
‫٭‬ राव (अमीर)
‫٭‬ सबल (बलवान)
‫٭‬ दीन (िनबल)
‫٭‬ बे प(कु प)
‫٭‬ सुभग (सु दर)
‫٭‬ मूरख (गंवार)
‫٭‬ वीण (होिशयार)
‫٭‬ धन
‫٭‬ गृह (घर)
‫٭‬ गोधन(गाया द
पशु धन)
‫٭‬ भाव(ऐ य)
‫٭‬ सुत(पु )
‫٭‬ ितय(पि )
एक व/अहं बुि (म) मम व बुि (मेरा)
“तन उपजत अपनी उपज जान,
तन नशत आपको नाश मान।”
‫٭‬ शरीर क उ पि म अपनी उ पि
‫٭‬ और नाश म अपना नाश मानना
‫٭‬ व क भाँित
‫٭‬ तबादले क भाँित
शरीर और आ मा का संबंध
कैसा है
जीव को
अजीव
मानना
अजीव को
जीव
मानना
जैसे - वयं को
मोटा,पतला,गोरा,
काला मानना
जैसे - ान आ मा
का है
मानना इि य से
होता है
जीव अजीव
त व संबंधी भूल
के अ य िब दु
शरीराि त वचन और काय
क या अपनी मानता
जैसे - मने
उपदेश दया
मने उपवास
कया
िनधार प ान नह
‫٭‬ शा ानुसार स ी बात भी बनाता
‫٭‬ जैसे मतवाला माता को माता कहता
ान
कैसा ?
‫٭‬ कसी और क बात कर रहा हो
उस कार आ मा का कथन करता
‫٭‬ जैसे कसी और को और से िभ
बतलाता हो उस कार शरीर और
आ मा क िभ ता बतलाता है
भाव भासन नह
‫٭‬ कसी न कसी म जीव को
अपनापन थािपत करना है
‫٭‬ िनिम - नैमेि क संबंध ब त ह
ये भूल जीव
य करता है?
आ व त व संबंधी भूल
राग ेष मोह आ द िवकारी भाव जो
‫٭‬ कट म दुःख देने वाले है
‫٭‬ उनको करके अपने को सुखी मानता
रागा द कट जे दुःख देन,
ितनही को सेवत िगनत चैन।।५॥
आ व
कैसे ह ?
वतमान म आगामी
दुःख प दुःख के कारण
आ व कैसे है ?
अिन य शीत - उ ण वर
अ ुव मृगी का वेग
अशुिच काई
घातक लाख
अशरण रोक नह सकता
जड वयं को नह जानते
िम या व-कषाया द
भाव को
अपना
वभाव
मानता
कम के िनिमत से
उ प िवभाव
नह मानता
दुःख का
कारण
वयं के
कषाय
भाव
वृथा अ य को दुःख उ प
करने वाला मानता
िम या-
दशन
वयं का
ोध
दुःख का
कारण
मानतामानतामानतामानता
जो व तु इसके ान
अनुसार न वत उसे
सामने वाले को
वयं का
लोभ
इ व तु क
अ ाि को
‫٭‬ शुभ राग को
पु य बंध का
कारण जान
पु या व
को
उपादेय
मानता
आनंद
मानता
अशुभ राग से
मोशुभ राग से
बंध त व संबंधी भूल
शुभ अशुभ बंध के फल मंझार,
रित अरित करे िनज पद िवसार
‫٭‬ शुभ कम के
फल म
‫٭‬ अशुभ कम
के फल म
राग करता ेष करता
अपने आ म व प को भूल कर
अशुभ कम का फल
दुःख प
शुभ कम का फल
वो भी
दुःखमय
भोग
साम ी
‫٭‬ कम का फल दखाई देता
‫٭‬ कम दखाई नह देता इसिलए
१ - या तो अपने को कता मानता
२ - या, पर को कता मानता
३ - या, िबना िनणय के भिवत
को मानता
आतम िहत हेतु िवराग- ान,
ते लखे आपको क दान।
संवर त व संबंधी भूल
आ मा
के िहत
के
कारण
ान = स य ान
वैरा य= संसार शरीर
और भोग से उदासीनता
इ ह क देने वाला मानता
‫٭‬ उसे संवर त व
संबंधी भूल है ही
‫٭‬ जो राग म सुख
मानता है
‫٭‬ वो वैरा य म
सुख कैसे मानेगा
िजसे
आ व
त व
संबंधी
भूल है
‫٭‬ अना द से आ व भाव ही आ
‫٭‬ संवर कभी नह आ
‫٭‬ इसिलए -
‫٭‬ संवर होने पर सुख होगा ऐसा
नह मानता
संवर
कैसे है ?
वतमान म आगामी
सुख प सुख का कारण
रोके न चाह िनज शि खोय
‫٭‬ अपनी इ छा का अभाव
नह करता
‫٭‬ आ म शि को भूल कर
िनजरा त व संबंधी भूल
इ छा
क पू त म
सुख
मानता
के अभाव म
सुख
नह
मानता
इ छा के रोकने म भी सुख नह है
‫٭‬ उसे िनजरा त व
संबंधी भूल है ही
‫٭‬ शुभ कम के फल
को जो चाहता
‫٭‬ वो इ छा पू त म
सुख मानेगा ही
िजसे
बंध
त व
संबंधी
भूल है
‫٭‬मो म पूण स ा सुख है उसे
नह जानता
मो त व संबंधी भूल
िशव प िनराकुलता न जोय॥
मो सुख क जाित
नह पहचानता
‫٭‬ वग के सुख से
अनंत गुणा सुख
मो म है, ऐसा
मानता है
वग
सुख
अतीि य सुख
मो
सुख
इि य सुख
आकुलता प िनराकुलता प
‫٭‬ उसे मो त व
संबंधी भूल है ही
‫٭‬ पु य के फल
(आकुलता) म सुख
मानने वाला
‫٭‬ िनराकुलता के सुख
को नह जानता
िजसे
बंध
त व
संबंधी
भूल है
कस त व संबंधी भूल होने पर
अ य कस त व संबंधी भूल होगी
जीव अजीव
आ व संवर
बंध िनजरा और मो
वैसे तो - िजसे एक त व संबंधी भूल है,
उसे सात त व संबंधी भूल है
‫٭‬ जीव जुदा
पु ल जुदा
‫٭‬ रागा द भाव
दुःख प
दो बात म
सात का सार
»िम या ान के साथ जो भी जानना
» योजनभूत जीवा द त व को िवपरीत
जानना
»संशय, िवपयय, अन यवसाय सिहत पदाथ
को जानना
अगृिहत िम या
ान या है?
याही तीितजुत कछुक ान
सो दुखदायक अ ान जान ।
संशय शंका
होना
ऎसा
ही क
ऎसे
म शरीर ँ
क आ मा
िनणय
नह
िवपयय िवपरीत
जानना
ऎसा
ही है
म शरीर ँ िवपरीत
िनणय
अन यवसाय कुछ
िनणय
न होना
कुछ है म कोई ँ िनणय क
इ छा भी
नह
ान म होने वाले तीन दोष
अ योजनभूत त व को सही - गलत
जानने क अपे ा िम या - स यक् नह
य क यहाँ मो माग का करण ह
इसिलये िम यादृि र सी को र सी
जाने तो भी िम या ान
स य दृि र सी को सप भी जाने तो
भी स य ान
»िम या दशन और ान के साथ जो भी
िवषय म वृि
अगृहीत िम या
चा र या है?
इन जुत िवषयिन म जो वृ ,
ताको जानो िम याच र ।
िवषय म वृि
हण प याग प
अशुभ आचरण शुभ आचरण
िम या व के साथ सव वृि िम याचा र
िम या व के िबना अशुभ वृि अचा र
िम या व के साथ कषाय भाव को िम या
चा र कहते ह
कषाय का कारण ?
पदाथ म इ - अिन क पना
उपकारी अनुपकारी
» एक ही पदाथ कसी को इ लगता ह , कसी को अिन
» एक जीव को भी एक ही पदाथ कसी काल म इ , कसी
काल म अिन लगता
» जो पदाथ मु य प से इ लगता,वह भी अिन होता
दखता
» जो पदाथ मु य प से अिन लगता,वह भी इ होता
दखता
इ - अिन को क पना य कहते ह?
िन कष
»पदाथ इ - अिन ह नह
» य क -
»जो पदाथ इ वह सव को सव काल म
इ होना चािहये
»जो पदाथ अिन वह सव को सव काल
म अिन होना चािहये
»पु य - पाप के उदय से
»तो फर पु य पाप म राग- ेष कर
»कम वयमेव पु य पाप प नह
होते
»जीव के भाव के िनिम से होते ह
पदाथ उपकारी - अनुपकारी भी
कैसे होता ?
पदाथ म इ - अिन बुि होने पर
राग - ेष प प रणमन
िम याचा र है
राग -
ेष के ही
िवशेष
४ कषाय
९ नोकषाय
»कुगु कुदेव कुधम के सेवन से
»जो अगृहीत िम या व पु हो
जे कुगु कुदेव कुधम सेव,
पोषै िचर दशनमोह एव
गृहीत िम या
दशन या ह?
»जो अंतरंग प र ह - रागा द
»बिहरंग प र ह - धन व ा द
»नाना कार के वेश (कु लग) धारी
»उपयु प र ह और वेश होने पर
भी वयं को पूजवाते
अंतर रागा द धर जेह, बाहर धन अ बरत ेह
धार कु लग लिह महत भाव, ते कुगु ज म-जल उपल नाव
कुगु कसे कहते ह ?
सिहत
»उपल अथात प थर क
नाव क -
»जो वयं डूबते
»दूसर को भी डुबोते
कुगु
को
कसक
उपमा
दी गई
है?
िजन माग म पू य
तीन लग (वेश)
िन थ
दग बर
मुिन लग -
ितलतुष
मा प र ह
रिहत
उ कृ
ावक -
यारहव
ितमाधारी
-ऎलक
ु लक
आ यका
प
»१व धारी
ऎलक ु लक
उ कृ ावक
»भोजन के िलये पा
नह रखते, हाथ म
बैठकर भोजन करते ह
»२व धारी
»भोजन के िलये
पा रखते ह
»जो राग - ेष सिहत - अंतरंग म
»विनता ( ी) आ द(राग सूचक)
»गदा द ( ेष सूचक) - बा िच न
सिहत हो
जो राग ेष-मल क र मिलन, विनता गदा दजुत िच न चीन
ते ह कुदेव ितनक जु सेव, शठ करत न ितन भव मण-छेव
कुदेव कसे कहते ह ?
»मूख ( अ ानी,
िम यादृि ) है
»उसके संसार का अंत
नह आता है
कुदेव को
मानने
वाला कौन
है? उसको
या फल
िमलता है?
देव के कार
सुदेव देव कुदेव अदेव
वीतरागी
अ रहंत
िस
भवनवासी
, ंतर,
योितषी,
वैमािनक -
देव गित के
देव
ह र - हर
आ द
पीपल,
तुलसी
आ द
कि पत देव
कुदेव का सेवन
जीव य करते है
१.मो के
योजन से
२. पर
लोक के
योजन से
३. इस
लोक के
योजन से
» वयं का बांधा पूव पु य का उदय चािहये
» वयं पाप बांधता
»देव के नाम पर हसा, िवषया द करता
»पु य का फल चाहता, कैसे िमले?
» य क उसका तो सही व प और
माग ही नह समझता
इन योजन क पू त
य नह होती ह?
१.मो
क
२. पर
लोक क
३. इस
लोक क
कुदेव के सेवन से
हजार िव ह
उसे नह िगनता
पु य के उदय से इ
काय हो तो मानता
कुदेव सेवन से आ
कुदेव के सेवन न करने
पर भी अनेक इ हो
उ ह नह िगनता
एक िव आये तो
मानता उनका सेवन
न करने से आया
कुदेवा द को मानना कुछ कायकारी
नह , तो कुछ िबगाड भी तो नह ?
बडा पाप
मो माग दुलभ हो
जाता है (पर म
इ -अिन मा यता
होने से)
पाप बंध से आगामी
दुःख पाते
»कम पर भी िव ास न हो तो
»धना द के िलये बा कारण
ापारा द कर
»कुदेवा द तो बा कारण भी नह ह
िवचार
जीवा द
त व के
ान व
ान का
अंश भी न
होने से
जीवा द
त व के
ान व
ान का
अंश भी न
होने से
राग - ेष
क अित
ती ता
होने पर
राग - ेष
क अित
ती ता
होने पर
जो कारण
नह ह,
उ ह भी
इ -अिन
के कारण
मानता ह
जो कारण
नह ह,
उ ह भी
इ -अिन
के कारण
मानता ह
रागा द भाव हसा समेत, द वत स थावर मरण खेत
जे या त ह जान कुधम ितन सरधै जीव लहे अशम
कुधम कसे कहते ह ?
»अंतर म उठने वाले राग- ेष प भाव हसा
» स - थावर के घात प हसा
»सिहत जो भी याय
»उ ह धम मानना = कुधम
»इनम ा रखने से जीव दुःखी होता ह
अधम कुधम
हसा द, िवषय सेवन, कषाया द
होना
म वृि होना
और उसे धम
मानना
»य ा द
»तीथ म ान द
»सं ाि त, हण, ितपात म दान
»बुरे हा द के नाम पर दान
»पा समझकर लोभी पु ष को दान
कुधम प मा यता के कुछ
उदाहरण
» ता द का नाम धारण कर ृंगार बनाना,
इ भोजना द करना, कुतूहला द, कषाय
बढाने के काय, जुआ इ या द महान पाप
काय करना
»िजन मं दर म बाग - बावडी बनवाना,
नाना कुकथा करना, सोना इ या द
जैन नाम धा रय क भी
कुछ कुधम मा यताय
कुि छयदेवं ध मं कुि छय लगं च बंदए जो दु ।
ल ाभयगारवदो िम छा द ी हवे सो ॥
»अथ :- य द ल ा से, भय से, बडाई से भी
कुदेवा द को वंदन करता है तो िम यादृि है
»गृहीत िम या व को स सना द से भी
बडा पाप बताया गया है
कुदेवा द के वंदन िनषेध के
िलये मो पा ड क गाथा
» सम त एकांत(व तु व था से िवपरीत)कथन से दूिषत
» िवषय - कषाय, पाप का पोषण करने वाले
» कि पत अ ानी जीव के ारा बनाये गये शा को
» िहतकारी मानकर उनका अ यास करना(पढना, पढाना,
सुनना, सुनाना, अधययन करना आ द)
» ये िम या ान ब त दुःख देता है
एकांतवाद दूिषत सम त, िवषया दक - पोषक अ श त
किपला द रिचत ुतको अ यास, सो है कुबोध ब देन ास
गृहीत िम या
ान या ह?
गृहीत िम या
चा र या है?
जो याित लाभ पूजा द चाह,ध र करन िविवध-िवध देहदाह
आतम अना म के ान-हीन, जे जे करनी तन करन-छीन
िसि , लाभ, पूजा, स कार आ द क ाि क इ छा से
शरीर को
क देने
वाले
ीण
करने वाले
आ मा-
अना मा
(आ म-देह) के
ान से रिहत
क गई
िविवध
याय
१ २ ३
िम या व से बचने के उपाय
या ह?
गृहीत
िम या व से
देव, शा , गु का स ा व प
समझना
अगृहीत
िम या व से
जीवा द योजनभूत त व क स ी
जानकारीपूवक आ मानुभूित पाना

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Chadhala Dhaal - 2 | छहढाला ढाल 2

  • 1. छहढाला - ढाल २ तुतकता- काश और पूजा छाबडा, यंग जैन टडी ुप, इ दौर
  • 3. जीव के दुःख का कारण या है? िम यादशन िम या ान िम याचा र का िम यापना ऎसे िम या दृग- ान-चणवश मत भरत दुःख ज म मण । ा ान चा र =िम या व
  • 4. िम यादशन िम या ान िवपरीत मा यता िवपरीत जानना िम याचा र िवपरीत आचरण = राग - ेष िम या व = िम या + व = िवपरीत भाव
  • 5. िम या व जीव को कब से है? अना द से इसिलये दुःख भी कब से ह? अना द से
  • 6. ऎसे िम या दृग- ान-चणवश मत भरत दुःख ज म मण । तात इनको तिजये सुजान, सुन ितन सं ेप क ँ बखान ॥१॥ दुःख का कारण या है? िम या व िम या व के कारण या हो रहा है? जीव संसार म घूमकर ज म- मरण के दुःख भोग रहा ह दुःख से बचने के िलये अब या कर अ छी कार से इ ह जानकर छोड इसिलये पि डतजी या करते ह? थोडे म िम या व का वणन करते ह हम या कर उसे सुन
  • 7. िम या व के कार अगृहीत गृहीत िबना िसखाया गया नया हण कया गया अना दकालीन नवीन - अगृहीत को पु करता देह और आ मा को एक मानना कुदेव, कुगु , कुधम के सेवन से होता
  • 8. दुःख के कारण िम या ान दशन चा र गृहीत अगृहीत गृहीत अगृहीत गृहीत अगृहीत
  • 9. ❇ योजनभूत जीवा द त व का िवपरीत ान ❇सात त व संबंधी भूल अगृिहत िम या दशन या है? जीवा द योजनभूत त व सरधै ितनमाँही िवपयय व ।
  • 10. जीवा द त व कौन कौन से ह? जीव अजीव आ व बंध मो िनजरा संवर
  • 11. ❇दुःख दूर करना ❇सुखी होना योजन या है? ❇िजससे दुःख दूर हो ❇सुख हो योजनभूत या आ?
  • 12. ❇जो व तु जैसी है उसका जो भाव ❇तत् + व = वह + भाव त व कसे कहते ह?
  • 14. ❇ ान-दशन वभावी आ मा को कहते ह ❇वह चेतन त व आ मा ही म ँ जीव
  • 15. ❇ ान-दशन वभावी आ मा से िभ सम त पु ला द पाँच ❇तथा मेरी आ मा को छोडकर शेष सभी आ माय (यहाँ अपे ा अव य समझे) अजीव
  • 16. आ व बंध मोिनजरासंवर भाव
  • 18. õÎu का आना का ¡á¿tá yè yÉrÃo ÒáèÃáá का आना कना का एकदेश िखरना का yÉqæ¾áë ÃááÏá - ¡ádáw - rÃo - yßwË - ãÃákëËá - táèÖá कम
  • 19. का rÃáè ËÒÃáá £¿qãÚá वृि qæ¾áëmá - ¡ádáw - rÃo - yßwË - ãÃákëËá - táèÖá Ïáås-¡Ïáås sáwáèß शु भाव क क £¿qãÚásáw
  • 20. “चेतन को है उपयोग प, िच मुरत िबनमुरत अनूप॥२॥” जीव अजीव त व संबंधी भूल
  • 21. जीव का व प कैसा है ? उपयोग प ान-दशन प िच मुरत चैत य ( ान) क मू त िबन मुरत अमूत अनूप िजसक कोई उपमा नह
  • 22. पु ल,आकाश,धम ,अधम , काल से जीव अलग है य क ये अचेतन ह जीव चेतन है “ पु ल नभ धम अधम काल, इनत यारी है जीव चाल।”
  • 23. जीव ( वयं) ‫٭‬ चेतना गुण सिहत ‫٭‬ अमू तक ‫٭‬ असं यात देशी एक अख ड ‫٭‬ चेतना गुण रिहत (जड) ‫٭‬ मू तक ‫٭‬ अन त परमाणु का िप ड पु ल (मु य प से शरीर)
  • 24. ‫٭‬ मने चलाया ‫٭‬ मने रोका ‫٭‬ मने ठहराया ‫٭‬ मने प रणमाया
  • 25. ‫٭‬ पु ल,धम ,अधम , आकाश, काल को अपने से िभ न जान ‫٭‬ अपने मानता ‫٭‬ शरीर से ही अपनी पहचान मानता “ताको न जान िवपरीत मान, क र करे देह मे िनज िपछान॥३॥”
  • 26. शरीर से ही अपनी पहचान मानने के कारण ४ कार क जीव िवपरीत बुि रखता ह एक व मम व कतृ व भो ृ व म मेरे म करता म भोगता
  • 27. म सुखी- दुःखी म रंक-राव, मेरे धन गृह गोधन भाव। मेरे सुत ितय म सबल दीन, बे प-सुभग मूरख वीण॥४॥
  • 28. ‫٭‬ सुखी ‫٭‬ दुखी ‫٭‬ रंक (गरीब) ‫٭‬ राव (अमीर) ‫٭‬ सबल (बलवान) ‫٭‬ दीन (िनबल) ‫٭‬ बे प(कु प) ‫٭‬ सुभग (सु दर) ‫٭‬ मूरख (गंवार) ‫٭‬ वीण (होिशयार) ‫٭‬ धन ‫٭‬ गृह (घर) ‫٭‬ गोधन(गाया द पशु धन) ‫٭‬ भाव(ऐ य) ‫٭‬ सुत(पु ) ‫٭‬ ितय(पि ) एक व/अहं बुि (म) मम व बुि (मेरा)
  • 29. “तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान।” ‫٭‬ शरीर क उ पि म अपनी उ पि ‫٭‬ और नाश म अपना नाश मानना
  • 30. ‫٭‬ व क भाँित ‫٭‬ तबादले क भाँित शरीर और आ मा का संबंध कैसा है
  • 31. जीव को अजीव मानना अजीव को जीव मानना जैसे - वयं को मोटा,पतला,गोरा, काला मानना जैसे - ान आ मा का है मानना इि य से होता है
  • 32. जीव अजीव त व संबंधी भूल के अ य िब दु
  • 33. शरीराि त वचन और काय क या अपनी मानता जैसे - मने उपदेश दया मने उपवास कया
  • 34. िनधार प ान नह ‫٭‬ शा ानुसार स ी बात भी बनाता ‫٭‬ जैसे मतवाला माता को माता कहता ान कैसा ?
  • 35. ‫٭‬ कसी और क बात कर रहा हो उस कार आ मा का कथन करता ‫٭‬ जैसे कसी और को और से िभ बतलाता हो उस कार शरीर और आ मा क िभ ता बतलाता है भाव भासन नह
  • 36. ‫٭‬ कसी न कसी म जीव को अपनापन थािपत करना है ‫٭‬ िनिम - नैमेि क संबंध ब त ह ये भूल जीव य करता है?
  • 37. आ व त व संबंधी भूल राग ेष मोह आ द िवकारी भाव जो ‫٭‬ कट म दुःख देने वाले है ‫٭‬ उनको करके अपने को सुखी मानता रागा द कट जे दुःख देन, ितनही को सेवत िगनत चैन।।५॥
  • 38. आ व कैसे ह ? वतमान म आगामी दुःख प दुःख के कारण
  • 39. आ व कैसे है ? अिन य शीत - उ ण वर अ ुव मृगी का वेग अशुिच काई घातक लाख अशरण रोक नह सकता जड वयं को नह जानते
  • 40. िम या व-कषाया द भाव को अपना वभाव मानता कम के िनिमत से उ प िवभाव नह मानता
  • 41. दुःख का कारण वयं के कषाय भाव वृथा अ य को दुःख उ प करने वाला मानता
  • 42. िम या- दशन वयं का ोध दुःख का कारण मानतामानतामानतामानता जो व तु इसके ान अनुसार न वत उसे सामने वाले को वयं का लोभ इ व तु क अ ाि को
  • 43. ‫٭‬ शुभ राग को पु य बंध का कारण जान पु या व को उपादेय मानता
  • 45. बंध त व संबंधी भूल शुभ अशुभ बंध के फल मंझार, रित अरित करे िनज पद िवसार
  • 46. ‫٭‬ शुभ कम के फल म ‫٭‬ अशुभ कम के फल म राग करता ेष करता अपने आ म व प को भूल कर
  • 47. अशुभ कम का फल दुःख प शुभ कम का फल वो भी दुःखमय भोग साम ी
  • 48. ‫٭‬ कम का फल दखाई देता ‫٭‬ कम दखाई नह देता इसिलए १ - या तो अपने को कता मानता २ - या, पर को कता मानता ३ - या, िबना िनणय के भिवत को मानता
  • 49. आतम िहत हेतु िवराग- ान, ते लखे आपको क दान। संवर त व संबंधी भूल आ मा के िहत के कारण ान = स य ान वैरा य= संसार शरीर और भोग से उदासीनता इ ह क देने वाला मानता
  • 50. ‫٭‬ उसे संवर त व संबंधी भूल है ही ‫٭‬ जो राग म सुख मानता है ‫٭‬ वो वैरा य म सुख कैसे मानेगा िजसे आ व त व संबंधी भूल है
  • 51. ‫٭‬ अना द से आ व भाव ही आ ‫٭‬ संवर कभी नह आ ‫٭‬ इसिलए - ‫٭‬ संवर होने पर सुख होगा ऐसा नह मानता
  • 52. संवर कैसे है ? वतमान म आगामी सुख प सुख का कारण
  • 53. रोके न चाह िनज शि खोय ‫٭‬ अपनी इ छा का अभाव नह करता ‫٭‬ आ म शि को भूल कर िनजरा त व संबंधी भूल
  • 54. इ छा क पू त म सुख मानता के अभाव म सुख नह मानता इ छा के रोकने म भी सुख नह है
  • 55. ‫٭‬ उसे िनजरा त व संबंधी भूल है ही ‫٭‬ शुभ कम के फल को जो चाहता ‫٭‬ वो इ छा पू त म सुख मानेगा ही िजसे बंध त व संबंधी भूल है
  • 56. ‫٭‬मो म पूण स ा सुख है उसे नह जानता मो त व संबंधी भूल िशव प िनराकुलता न जोय॥
  • 57. मो सुख क जाित नह पहचानता ‫٭‬ वग के सुख से अनंत गुणा सुख मो म है, ऐसा मानता है
  • 58. वग सुख अतीि य सुख मो सुख इि य सुख आकुलता प िनराकुलता प
  • 59. ‫٭‬ उसे मो त व संबंधी भूल है ही ‫٭‬ पु य के फल (आकुलता) म सुख मानने वाला ‫٭‬ िनराकुलता के सुख को नह जानता िजसे बंध त व संबंधी भूल है
  • 60. कस त व संबंधी भूल होने पर अ य कस त व संबंधी भूल होगी जीव अजीव आ व संवर बंध िनजरा और मो वैसे तो - िजसे एक त व संबंधी भूल है, उसे सात त व संबंधी भूल है
  • 61. ‫٭‬ जीव जुदा पु ल जुदा ‫٭‬ रागा द भाव दुःख प दो बात म सात का सार
  • 62. »िम या ान के साथ जो भी जानना » योजनभूत जीवा द त व को िवपरीत जानना »संशय, िवपयय, अन यवसाय सिहत पदाथ को जानना अगृिहत िम या ान या है? याही तीितजुत कछुक ान सो दुखदायक अ ान जान ।
  • 63. संशय शंका होना ऎसा ही क ऎसे म शरीर ँ क आ मा िनणय नह िवपयय िवपरीत जानना ऎसा ही है म शरीर ँ िवपरीत िनणय अन यवसाय कुछ िनणय न होना कुछ है म कोई ँ िनणय क इ छा भी नह ान म होने वाले तीन दोष
  • 64. अ योजनभूत त व को सही - गलत जानने क अपे ा िम या - स यक् नह य क यहाँ मो माग का करण ह इसिलये िम यादृि र सी को र सी जाने तो भी िम या ान स य दृि र सी को सप भी जाने तो भी स य ान
  • 65. »िम या दशन और ान के साथ जो भी िवषय म वृि अगृहीत िम या चा र या है? इन जुत िवषयिन म जो वृ , ताको जानो िम याच र ।
  • 66. िवषय म वृि हण प याग प अशुभ आचरण शुभ आचरण िम या व के साथ सव वृि िम याचा र िम या व के िबना अशुभ वृि अचा र
  • 67. िम या व के साथ कषाय भाव को िम या चा र कहते ह कषाय का कारण ? पदाथ म इ - अिन क पना उपकारी अनुपकारी
  • 68. » एक ही पदाथ कसी को इ लगता ह , कसी को अिन » एक जीव को भी एक ही पदाथ कसी काल म इ , कसी काल म अिन लगता » जो पदाथ मु य प से इ लगता,वह भी अिन होता दखता » जो पदाथ मु य प से अिन लगता,वह भी इ होता दखता इ - अिन को क पना य कहते ह?
  • 69. िन कष »पदाथ इ - अिन ह नह » य क - »जो पदाथ इ वह सव को सव काल म इ होना चािहये »जो पदाथ अिन वह सव को सव काल म अिन होना चािहये
  • 70. »पु य - पाप के उदय से »तो फर पु य पाप म राग- ेष कर »कम वयमेव पु य पाप प नह होते »जीव के भाव के िनिम से होते ह पदाथ उपकारी - अनुपकारी भी कैसे होता ?
  • 71. पदाथ म इ - अिन बुि होने पर राग - ेष प प रणमन िम याचा र है
  • 72. राग - ेष के ही िवशेष ४ कषाय ९ नोकषाय
  • 73. »कुगु कुदेव कुधम के सेवन से »जो अगृहीत िम या व पु हो जे कुगु कुदेव कुधम सेव, पोषै िचर दशनमोह एव गृहीत िम या दशन या ह?
  • 74. »जो अंतरंग प र ह - रागा द »बिहरंग प र ह - धन व ा द »नाना कार के वेश (कु लग) धारी »उपयु प र ह और वेश होने पर भी वयं को पूजवाते अंतर रागा द धर जेह, बाहर धन अ बरत ेह धार कु लग लिह महत भाव, ते कुगु ज म-जल उपल नाव कुगु कसे कहते ह ? सिहत
  • 75. »उपल अथात प थर क नाव क - »जो वयं डूबते »दूसर को भी डुबोते कुगु को कसक उपमा दी गई है?
  • 76. िजन माग म पू य तीन लग (वेश) िन थ दग बर मुिन लग - ितलतुष मा प र ह रिहत उ कृ ावक - यारहव ितमाधारी -ऎलक ु लक आ यका प
  • 77. »१व धारी ऎलक ु लक उ कृ ावक »भोजन के िलये पा नह रखते, हाथ म बैठकर भोजन करते ह »२व धारी »भोजन के िलये पा रखते ह
  • 78. »जो राग - ेष सिहत - अंतरंग म »विनता ( ी) आ द(राग सूचक) »गदा द ( ेष सूचक) - बा िच न सिहत हो जो राग ेष-मल क र मिलन, विनता गदा दजुत िच न चीन ते ह कुदेव ितनक जु सेव, शठ करत न ितन भव मण-छेव कुदेव कसे कहते ह ?
  • 79. »मूख ( अ ानी, िम यादृि ) है »उसके संसार का अंत नह आता है कुदेव को मानने वाला कौन है? उसको या फल िमलता है?
  • 80. देव के कार सुदेव देव कुदेव अदेव वीतरागी अ रहंत िस भवनवासी , ंतर, योितषी, वैमािनक - देव गित के देव ह र - हर आ द पीपल, तुलसी आ द कि पत देव
  • 81. कुदेव का सेवन जीव य करते है १.मो के योजन से २. पर लोक के योजन से ३. इस लोक के योजन से
  • 82. » वयं का बांधा पूव पु य का उदय चािहये » वयं पाप बांधता »देव के नाम पर हसा, िवषया द करता »पु य का फल चाहता, कैसे िमले? » य क उसका तो सही व प और माग ही नह समझता इन योजन क पू त य नह होती ह? १.मो क २. पर लोक क ३. इस लोक क
  • 83. कुदेव के सेवन से हजार िव ह उसे नह िगनता पु य के उदय से इ काय हो तो मानता कुदेव सेवन से आ कुदेव के सेवन न करने पर भी अनेक इ हो उ ह नह िगनता एक िव आये तो मानता उनका सेवन न करने से आया
  • 84. कुदेवा द को मानना कुछ कायकारी नह , तो कुछ िबगाड भी तो नह ? बडा पाप मो माग दुलभ हो जाता है (पर म इ -अिन मा यता होने से) पाप बंध से आगामी दुःख पाते
  • 85. »कम पर भी िव ास न हो तो »धना द के िलये बा कारण ापारा द कर »कुदेवा द तो बा कारण भी नह ह िवचार
  • 86. जीवा द त व के ान व ान का अंश भी न होने से जीवा द त व के ान व ान का अंश भी न होने से राग - ेष क अित ती ता होने पर राग - ेष क अित ती ता होने पर जो कारण नह ह, उ ह भी इ -अिन के कारण मानता ह जो कारण नह ह, उ ह भी इ -अिन के कारण मानता ह
  • 87. रागा द भाव हसा समेत, द वत स थावर मरण खेत जे या त ह जान कुधम ितन सरधै जीव लहे अशम कुधम कसे कहते ह ? »अंतर म उठने वाले राग- ेष प भाव हसा » स - थावर के घात प हसा »सिहत जो भी याय »उ ह धम मानना = कुधम »इनम ा रखने से जीव दुःखी होता ह
  • 88. अधम कुधम हसा द, िवषय सेवन, कषाया द होना म वृि होना और उसे धम मानना
  • 89. »य ा द »तीथ म ान द »सं ाि त, हण, ितपात म दान »बुरे हा द के नाम पर दान »पा समझकर लोभी पु ष को दान कुधम प मा यता के कुछ उदाहरण
  • 90. » ता द का नाम धारण कर ृंगार बनाना, इ भोजना द करना, कुतूहला द, कषाय बढाने के काय, जुआ इ या द महान पाप काय करना »िजन मं दर म बाग - बावडी बनवाना, नाना कुकथा करना, सोना इ या द जैन नाम धा रय क भी कुछ कुधम मा यताय
  • 91. कुि छयदेवं ध मं कुि छय लगं च बंदए जो दु । ल ाभयगारवदो िम छा द ी हवे सो ॥ »अथ :- य द ल ा से, भय से, बडाई से भी कुदेवा द को वंदन करता है तो िम यादृि है »गृहीत िम या व को स सना द से भी बडा पाप बताया गया है कुदेवा द के वंदन िनषेध के िलये मो पा ड क गाथा
  • 92. » सम त एकांत(व तु व था से िवपरीत)कथन से दूिषत » िवषय - कषाय, पाप का पोषण करने वाले » कि पत अ ानी जीव के ारा बनाये गये शा को » िहतकारी मानकर उनका अ यास करना(पढना, पढाना, सुनना, सुनाना, अधययन करना आ द) » ये िम या ान ब त दुःख देता है एकांतवाद दूिषत सम त, िवषया दक - पोषक अ श त किपला द रिचत ुतको अ यास, सो है कुबोध ब देन ास गृहीत िम या ान या ह?
  • 93. गृहीत िम या चा र या है? जो याित लाभ पूजा द चाह,ध र करन िविवध-िवध देहदाह आतम अना म के ान-हीन, जे जे करनी तन करन-छीन िसि , लाभ, पूजा, स कार आ द क ाि क इ छा से शरीर को क देने वाले ीण करने वाले आ मा- अना मा (आ म-देह) के ान से रिहत क गई िविवध याय १ २ ३
  • 94. िम या व से बचने के उपाय या ह? गृहीत िम या व से देव, शा , गु का स ा व प समझना अगृहीत िम या व से जीवा द योजनभूत त व क स ी जानकारीपूवक आ मानुभूित पाना