🔹About the content creator :-
- Prakash Chabbra Jain ( Ex Software Engineer, Microsoft USA)
- Giving lectures across the India to spread the Jain Philosophy.
- Read and taught numerous Jain Scriptures for more than two decades.
- Proficient in Prakrit, Sanskrit, Hindi, English.
- His lectures are a blend of logical, practical and scientific connotation.
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3. जीव के दुःख का कारण या है?
िम यादशन िम या ान िम याचा र
का िम यापना
ऎसे िम या दृग- ान-चणवश
मत भरत दुःख ज म मण ।
ा ान चा र
=िम या व
4. िम यादशन िम या ान
िवपरीत
मा यता
िवपरीत
जानना
िम याचा र
िवपरीत
आचरण
= राग -
ेष
िम या व = िम या + व = िवपरीत भाव
5. िम या व जीव को कब से है?
अना द से
इसिलये दुःख भी कब से ह?
अना द से
6. ऎसे िम या दृग- ान-चणवश मत भरत दुःख ज म मण ।
तात इनको तिजये सुजान, सुन ितन सं ेप क ँ बखान ॥१॥
दुःख का कारण या है? िम या व
िम या व के कारण या
हो रहा है?
जीव संसार म घूमकर ज म-
मरण के दुःख भोग रहा ह
दुःख से बचने के िलये
अब या कर
अ छी कार से इ ह जानकर
छोड
इसिलये पि डतजी या
करते ह?
थोडे म िम या व का वणन
करते ह
हम या कर उसे सुन
7. िम या व के कार
अगृहीत गृहीत
िबना िसखाया गया नया हण कया गया
अना दकालीन नवीन - अगृहीत
को पु करता
देह और आ मा को
एक मानना
कुदेव, कुगु , कुधम
के सेवन से होता
8. दुःख के कारण
िम या ान
दशन
चा र
गृहीत
अगृहीत
गृहीत
अगृहीत
गृहीत
अगृहीत
9. ❇ योजनभूत जीवा द
त व का िवपरीत ान
❇सात त व संबंधी भूल
अगृिहत िम या
दशन या है?
जीवा द योजनभूत त व
सरधै ितनमाँही िवपयय व ।
10. जीवा द त व कौन कौन से ह?
जीव
अजीव
आ व
बंध
मो
िनजरा
संवर
25. ٭ पु ल,धम ,अधम , आकाश,
काल को अपने से िभ न जान
٭ अपने मानता
٭ शरीर से ही अपनी पहचान मानता
“ताको न जान िवपरीत मान,
क र करे देह मे िनज िपछान॥३॥”
26. शरीर से ही अपनी पहचान मानने के कारण
४ कार क जीव िवपरीत बुि रखता ह
एक व मम व कतृ व भो ृ व
म मेरे म करता म भोगता
27. म सुखी- दुःखी म रंक-राव,
मेरे धन गृह गोधन भाव।
मेरे सुत ितय म सबल दीन,
बे प-सुभग मूरख वीण॥४॥
33. शरीराि त वचन और काय
क या अपनी मानता
जैसे - मने
उपदेश दया
मने उपवास
कया
34. िनधार प ान नह
٭ शा ानुसार स ी बात भी बनाता
٭ जैसे मतवाला माता को माता कहता
ान
कैसा ?
35. ٭ कसी और क बात कर रहा हो
उस कार आ मा का कथन करता
٭ जैसे कसी और को और से िभ
बतलाता हो उस कार शरीर और
आ मा क िभ ता बतलाता है
भाव भासन नह
36. ٭ कसी न कसी म जीव को
अपनापन थािपत करना है
٭ िनिम - नैमेि क संबंध ब त ह
ये भूल जीव
य करता है?
37. आ व त व संबंधी भूल
राग ेष मोह आ द िवकारी भाव जो
٭ कट म दुःख देने वाले है
٭ उनको करके अपने को सुखी मानता
रागा द कट जे दुःख देन,
ितनही को सेवत िगनत चैन।।५॥
38. आ व
कैसे ह ?
वतमान म आगामी
दुःख प दुःख के कारण
39. आ व कैसे है ?
अिन य शीत - उ ण वर
अ ुव मृगी का वेग
अशुिच काई
घातक लाख
अशरण रोक नह सकता
जड वयं को नह जानते
40. िम या व-कषाया द
भाव को
अपना
वभाव
मानता
कम के िनिमत से
उ प िवभाव
नह मानता
45. बंध त व संबंधी भूल
शुभ अशुभ बंध के फल मंझार,
रित अरित करे िनज पद िवसार
46. ٭ शुभ कम के
फल म
٭ अशुभ कम
के फल म
राग करता ेष करता
अपने आ म व प को भूल कर
47. अशुभ कम का फल
दुःख प
शुभ कम का फल
वो भी
दुःखमय
भोग
साम ी
48. ٭ कम का फल दखाई देता
٭ कम दखाई नह देता इसिलए
१ - या तो अपने को कता मानता
२ - या, पर को कता मानता
३ - या, िबना िनणय के भिवत
को मानता
49. आतम िहत हेतु िवराग- ान,
ते लखे आपको क दान।
संवर त व संबंधी भूल
आ मा
के िहत
के
कारण
ान = स य ान
वैरा य= संसार शरीर
और भोग से उदासीनता
इ ह क देने वाला मानता
50. ٭ उसे संवर त व
संबंधी भूल है ही
٭ जो राग म सुख
मानता है
٭ वो वैरा य म
सुख कैसे मानेगा
िजसे
आ व
त व
संबंधी
भूल है
51. ٭ अना द से आ व भाव ही आ
٭ संवर कभी नह आ
٭ इसिलए -
٭ संवर होने पर सुख होगा ऐसा
नह मानता
59. ٭ उसे मो त व
संबंधी भूल है ही
٭ पु य के फल
(आकुलता) म सुख
मानने वाला
٭ िनराकुलता के सुख
को नह जानता
िजसे
बंध
त व
संबंधी
भूल है
60. कस त व संबंधी भूल होने पर
अ य कस त व संबंधी भूल होगी
जीव अजीव
आ व संवर
बंध िनजरा और मो
वैसे तो - िजसे एक त व संबंधी भूल है,
उसे सात त व संबंधी भूल है
61. ٭ जीव जुदा
पु ल जुदा
٭ रागा द भाव
दुःख प
दो बात म
सात का सार
62. »िम या ान के साथ जो भी जानना
» योजनभूत जीवा द त व को िवपरीत
जानना
»संशय, िवपयय, अन यवसाय सिहत पदाथ
को जानना
अगृिहत िम या
ान या है?
याही तीितजुत कछुक ान
सो दुखदायक अ ान जान ।
63. संशय शंका
होना
ऎसा
ही क
ऎसे
म शरीर ँ
क आ मा
िनणय
नह
िवपयय िवपरीत
जानना
ऎसा
ही है
म शरीर ँ िवपरीत
िनणय
अन यवसाय कुछ
िनणय
न होना
कुछ है म कोई ँ िनणय क
इ छा भी
नह
ान म होने वाले तीन दोष
64. अ योजनभूत त व को सही - गलत
जानने क अपे ा िम या - स यक् नह
य क यहाँ मो माग का करण ह
इसिलये िम यादृि र सी को र सी
जाने तो भी िम या ान
स य दृि र सी को सप भी जाने तो
भी स य ान
65. »िम या दशन और ान के साथ जो भी
िवषय म वृि
अगृहीत िम या
चा र या है?
इन जुत िवषयिन म जो वृ ,
ताको जानो िम याच र ।
66. िवषय म वृि
हण प याग प
अशुभ आचरण शुभ आचरण
िम या व के साथ सव वृि िम याचा र
िम या व के िबना अशुभ वृि अचा र
67. िम या व के साथ कषाय भाव को िम या
चा र कहते ह
कषाय का कारण ?
पदाथ म इ - अिन क पना
उपकारी अनुपकारी
68. » एक ही पदाथ कसी को इ लगता ह , कसी को अिन
» एक जीव को भी एक ही पदाथ कसी काल म इ , कसी
काल म अिन लगता
» जो पदाथ मु य प से इ लगता,वह भी अिन होता
दखता
» जो पदाथ मु य प से अिन लगता,वह भी इ होता
दखता
इ - अिन को क पना य कहते ह?
69. िन कष
»पदाथ इ - अिन ह नह
» य क -
»जो पदाथ इ वह सव को सव काल म
इ होना चािहये
»जो पदाथ अिन वह सव को सव काल
म अिन होना चािहये
70. »पु य - पाप के उदय से
»तो फर पु य पाप म राग- ेष कर
»कम वयमेव पु य पाप प नह
होते
»जीव के भाव के िनिम से होते ह
पदाथ उपकारी - अनुपकारी भी
कैसे होता ?
71. पदाथ म इ - अिन बुि होने पर
राग - ेष प प रणमन
िम याचा र है
73. »कुगु कुदेव कुधम के सेवन से
»जो अगृहीत िम या व पु हो
जे कुगु कुदेव कुधम सेव,
पोषै िचर दशनमोह एव
गृहीत िम या
दशन या ह?
74. »जो अंतरंग प र ह - रागा द
»बिहरंग प र ह - धन व ा द
»नाना कार के वेश (कु लग) धारी
»उपयु प र ह और वेश होने पर
भी वयं को पूजवाते
अंतर रागा द धर जेह, बाहर धन अ बरत ेह
धार कु लग लिह महत भाव, ते कुगु ज म-जल उपल नाव
कुगु कसे कहते ह ?
सिहत
75. »उपल अथात प थर क
नाव क -
»जो वयं डूबते
»दूसर को भी डुबोते
कुगु
को
कसक
उपमा
दी गई
है?
76. िजन माग म पू य
तीन लग (वेश)
िन थ
दग बर
मुिन लग -
ितलतुष
मा प र ह
रिहत
उ कृ
ावक -
यारहव
ितमाधारी
-ऎलक
ु लक
आ यका
प
77. »१व धारी
ऎलक ु लक
उ कृ ावक
»भोजन के िलये पा
नह रखते, हाथ म
बैठकर भोजन करते ह
»२व धारी
»भोजन के िलये
पा रखते ह
78. »जो राग - ेष सिहत - अंतरंग म
»विनता ( ी) आ द(राग सूचक)
»गदा द ( ेष सूचक) - बा िच न
सिहत हो
जो राग ेष-मल क र मिलन, विनता गदा दजुत िच न चीन
ते ह कुदेव ितनक जु सेव, शठ करत न ितन भव मण-छेव
कुदेव कसे कहते ह ?
79. »मूख ( अ ानी,
िम यादृि ) है
»उसके संसार का अंत
नह आता है
कुदेव को
मानने
वाला कौन
है? उसको
या फल
िमलता है?
80. देव के कार
सुदेव देव कुदेव अदेव
वीतरागी
अ रहंत
िस
भवनवासी
, ंतर,
योितषी,
वैमािनक -
देव गित के
देव
ह र - हर
आ द
पीपल,
तुलसी
आ द
कि पत देव
81. कुदेव का सेवन
जीव य करते है
१.मो के
योजन से
२. पर
लोक के
योजन से
३. इस
लोक के
योजन से
82. » वयं का बांधा पूव पु य का उदय चािहये
» वयं पाप बांधता
»देव के नाम पर हसा, िवषया द करता
»पु य का फल चाहता, कैसे िमले?
» य क उसका तो सही व प और
माग ही नह समझता
इन योजन क पू त
य नह होती ह?
१.मो
क
२. पर
लोक क
३. इस
लोक क
83. कुदेव के सेवन से
हजार िव ह
उसे नह िगनता
पु य के उदय से इ
काय हो तो मानता
कुदेव सेवन से आ
कुदेव के सेवन न करने
पर भी अनेक इ हो
उ ह नह िगनता
एक िव आये तो
मानता उनका सेवन
न करने से आया
84. कुदेवा द को मानना कुछ कायकारी
नह , तो कुछ िबगाड भी तो नह ?
बडा पाप
मो माग दुलभ हो
जाता है (पर म
इ -अिन मा यता
होने से)
पाप बंध से आगामी
दुःख पाते
85. »कम पर भी िव ास न हो तो
»धना द के िलये बा कारण
ापारा द कर
»कुदेवा द तो बा कारण भी नह ह
िवचार
86. जीवा द
त व के
ान व
ान का
अंश भी न
होने से
जीवा द
त व के
ान व
ान का
अंश भी न
होने से
राग - ेष
क अित
ती ता
होने पर
राग - ेष
क अित
ती ता
होने पर
जो कारण
नह ह,
उ ह भी
इ -अिन
के कारण
मानता ह
जो कारण
नह ह,
उ ह भी
इ -अिन
के कारण
मानता ह
87. रागा द भाव हसा समेत, द वत स थावर मरण खेत
जे या त ह जान कुधम ितन सरधै जीव लहे अशम
कुधम कसे कहते ह ?
»अंतर म उठने वाले राग- ेष प भाव हसा
» स - थावर के घात प हसा
»सिहत जो भी याय
»उ ह धम मानना = कुधम
»इनम ा रखने से जीव दुःखी होता ह
88. अधम कुधम
हसा द, िवषय सेवन, कषाया द
होना
म वृि होना
और उसे धम
मानना
89. »य ा द
»तीथ म ान द
»सं ाि त, हण, ितपात म दान
»बुरे हा द के नाम पर दान
»पा समझकर लोभी पु ष को दान
कुधम प मा यता के कुछ
उदाहरण
90. » ता द का नाम धारण कर ृंगार बनाना,
इ भोजना द करना, कुतूहला द, कषाय
बढाने के काय, जुआ इ या द महान पाप
काय करना
»िजन मं दर म बाग - बावडी बनवाना,
नाना कुकथा करना, सोना इ या द
जैन नाम धा रय क भी
कुछ कुधम मा यताय
91. कुि छयदेवं ध मं कुि छय लगं च बंदए जो दु ।
ल ाभयगारवदो िम छा द ी हवे सो ॥
»अथ :- य द ल ा से, भय से, बडाई से भी
कुदेवा द को वंदन करता है तो िम यादृि है
»गृहीत िम या व को स सना द से भी
बडा पाप बताया गया है
कुदेवा द के वंदन िनषेध के
िलये मो पा ड क गाथा
92. » सम त एकांत(व तु व था से िवपरीत)कथन से दूिषत
» िवषय - कषाय, पाप का पोषण करने वाले
» कि पत अ ानी जीव के ारा बनाये गये शा को
» िहतकारी मानकर उनका अ यास करना(पढना, पढाना,
सुनना, सुनाना, अधययन करना आ द)
» ये िम या ान ब त दुःख देता है
एकांतवाद दूिषत सम त, िवषया दक - पोषक अ श त
किपला द रिचत ुतको अ यास, सो है कुबोध ब देन ास
गृहीत िम या
ान या ह?
93. गृहीत िम या
चा र या है?
जो याित लाभ पूजा द चाह,ध र करन िविवध-िवध देहदाह
आतम अना म के ान-हीन, जे जे करनी तन करन-छीन
िसि , लाभ, पूजा, स कार आ द क ाि क इ छा से
शरीर को
क देने
वाले
ीण
करने वाले
आ मा-
अना मा
(आ म-देह) के
ान से रिहत
क गई
िविवध
याय
१ २ ३
94. िम या व से बचने के उपाय
या ह?
गृहीत
िम या व से
देव, शा , गु का स ा व प
समझना
अगृहीत
िम या व से
जीवा द योजनभूत त व क स ी
जानकारीपूवक आ मानुभूित पाना