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Indian Comics Fandom (Volume #11)
News, photos and Updates: Diamond Comics, Tinkle, Campfire Graphic Novels,
Tamil Comics, Champak, Lot Pot, Jasoos Babloo, Red Streak Publications, Raj
Comics, Amar Chitra Katha, Holy Cow Entertainment, Meta Desi Comics, TBS
Planet Comics, Yali Dreams Creations, Anik Planet, Kavya Comics, Premeir Artfx
Studio, Green Humor, MB Comics Studio.
Special: Artist-Author Akshay Dhar Interview, Late Writer Ved Prakash Sharma
(Tribute), Artist Gaman Palem, ICF Awards 2016 Champions Corner
Contributors: Vipul Dixit, Vyom Dayal, Aakash Kumar, Mohit, Avyact,
Youdhveer Singh, Rishabh Kurmi, Sanjay Singh
Editor: Mohit Trendster
Freelance Talents (March 2017)
*) - Red Streak Publications
Ashes – Adish Origin
Mr. Abhishek Bose (Comic Con India - Delhi, December 2016)
Adhish-Epiphany
*) - Girl with a Red Nose Ring
Horror Graphic Novel, Sivappu Kal Mookuthi / Girl with a Red Nose Ring (MB Comics Studio)
Creator and Writer - Nandhini JS
Illustrators - Magesh.R and Sainath.B
Assistant Writer - Gerald Rakesh
Synopsis: A young man struggles against a deadly supernatural entity who possesses his
loving wife when she wears a mysterious red nose ring.
*) - Inspector Rishi
Inspector Rishi is a detective comics (webcomics) series written and illustrated by Nandhini
JS. It follows the mystery-solving adventures of Rishi Nandhan, a fictional police inspector
from the Criminal Investigation Department, Tamilnadu, India.
The first story in the series, 'The Legend of Vana Yakshi' has been conceptualized by
Nandhini JS along with freelance writer Sujatha Natarajan. In this, the skeptic and quick-
minded Rishi investigates a series of bizarre murders in a small mountain village supposedly
by a mythical ‘vana yakshi’ (native name for a blood sucking forest nymph).
Read it online at http://inspectorrishi.in/
Available in Tamil and English.
*) – Magazines
*) - Karna: Victory in Death (Campfire Graphic Novels)
ACK Workshop
*) - Holy Cow Entertainment
Superhero Caster
*) – Tamil Comics
Tamil Comics - Moolai Thirudargal (மூளை திருடர்கை்) starring Johny Nero & Stella
Artist Gaman Palem
Gaman Palem is an Indian comic book illustrator. He has illustrated more than 100
Indian children's comics, working mainly on mythological subjects.
Education in Mass Communication took Gaman Palem, Chennai, to procure a
doctorate degree in the same subject from the Madurai Kamaraj University, Tamil
Nadu. However, Palem’s mind was not glued to academics. A true graphic visualizer
and an avid follower of graphic novels from all over the world, Palem decided to set
sails into the larger ocean of graphic visualizing and today he is one of the highly
acclaimed graphic designers and an artist who uses graphic novel format as a
medium to express his ideas. With a deep understanding of Indian mythologies as
well as their regional versions and interpretations, Gaman Palem makes use of his
knowledge for creating a series of works that blend the mythical characters to
contemporary contexts.
Gaman's first series of eight picture books, The Golden Mythology Series, won the
National Award for Excellence in Printing Children's Books. Gaman Palem worked at
Loyola College of Education in Chennai, Tamil Nadu, was a visiting faculty at Raffles
College, a creative consultant in many publishing houses and animation studios.
He became interested in comics at a very young age of two. Later, it just became a
passion. He also works in 3D animation, but is more interested in creating graphic
novels and comics. Gaman's artistic style is influenced by Indian iconography,
combining the traditional illustration techniques of watercolour, pen and ink with
modern digital techniques. His debut art show was in September at The United Art
Fair 2012. An exhibition on Freedom to March with Ojas Gallery 2013, New Delhi,
where he interpreted Mahatma Gandhi, Dandi march, in his unique graphic novel
format and in Punebiennale 2015 with 'Swachh Bharath' in his own unique graphic
narrative manner. Gaman Palem lives and works in Chennai. His works have been
published in major graphic magazines, journals and he has exhibited widely in India.
*) – Anik Planet
(January 2017 Issue)
Publisher – Comics Our Passion
December 2016 Issue
*) - Nonte Phonte
Nonte Phonte is a Bengali comic-strip (and later comic book) creation of Narayan Debnath
which originally was serialized for the children's monthly magazine Kishore Bharati. The
stories featuring in the comic strips focusses on the trivial lives of the title characters, Nonte
and Phonte, along with a school-senior, Keltuda, and their Hostel Superintendent. The
comics have appeared in book form and have been recreated since 2003 in colour. A
popular animation series based on the characters has also been filmed.
Batul the Great
*) – Kavya Comics (Freelance Talents)
Kavya Comics (Volume 4)
Kadr (Kavya Comics Series)
Illustrator – Deepjoy Subba
Colorist – Harendra Saini
Writer, Poet – Mohit Sharma (Trendster)
Letterer – Youdhveer Singh
Jug Jug Maro #1 – Muawza
Illustrator – Abhilash Panda
Colourist – Harendra Saini, Jyoti Singh
Writer – Mohit Sharma Trendser
Letterer – Youdhveer Singh
*) - स्वगीय वेद प्रकाश शमाा जी को श्रद्ाांजलि
मुझे हहिंदी साहहत्य की कु छ बातें कभी समझ नहीिंआईिं। वेद प्रकाश शमाा की खामोश मृत्यु ने बहुत से
प्रश्न मन में खड़े हकये। करोड़ोिं लोगोिं द्वारा पढ़े गए लेखक के न तो कोई इिंटरव्यू हकसी पत्र पहत्रका और टी
वी में मुझे हदखे न ही हकसी साहहत्यत्यक सिंस्था ने उन्हें कभी सराहा। पुरुस्कार तो दू र। जब व्यावसाहयक
हसनेमा के लेखकोिं हनदेशकोिं को पद्मश्री जैसे पुरुस्कार हमले तब इतने सस्ते में बेहद मनोरिंजक और
मौहलक हलखने वाले लेखक को क्ोिं नहीिं। हहिंदी साहहत्य में मैंने एक अजीब झुकाव देखा हक जो भी बहुत
प्रचहलत हो जो भी हकताब या रचना बहुत हबके उसे कु छ दरहकनार कर दो। हजसमें भी बेचने की प्रवृहि
हो , व्यवसाय हो आम पाठकोिं तक पिंहुचने या लोकहप्रय होने की प्रवृहि हो उसे रचना को पढ़े और समझे
हबना ही घहटया, बाज़ारू ,लुगदी साहहत्य जैसे नाम दे दो। मैंने प्रेमचिंद, जयशिंकर
प्रसाद,शरतचिंद्र,हशवानी,अमृताप्रीतम, मन्नू भिंडारी,महादेवी वमाा, अज्ञेय, हनमाल वमाा श्रीलाल शुक्ल ,
वगैरह को पढ़ा तो वेद प्रकाश शमाा और सुरेंद्र मोहन पाठक को भी। कोई भी रचना, पररवेश, चररत्र
,घटनाओिं के तारतम्य ,समय काल, क्लाइमेक्स की अहनहितता, पात्रोिं की सिंवेदना से हदल को छू ती बनती
है और यही तो साहहत्य है। हिर वेद प्रकाश के उपन्यासोिं में भी अच्छाई की ही जीत अिंततः होती थी।
सरोकार और सन्देश तो थे ही। मनोरिंजन की प्रमुखता के बावजूद। उनके चररत्र आम जीवन के थे और
चररत्र हचत्रण बेहद सुदृढ़ था।
उनके वाक् मत्यस्तष्क में वीहडयो से हचत्र उके र देते थे और पात्रोिं से नायक की हर खोज़ पर गवा का
अहसास देते थे मानो वो नायक हमारा अपना कोई हो। जानबूझ कर त्यक्लष्ट हलखना ही हहिंदी साहहत्य तो
नहीिं? दू सरा हहिंदी में हहिंदी के प्रोिे सर और हहिंदी के हशक्षकोिं से परे अन्य व्यवसाय से हलखने वाले लोगोिं के
हलए बड़ी मोटी दीवारें बना दी गईिं। जबहक अलग अलग पररवेश और व्यवसायोिं से आने लेखकोिं से
रचनाओिं में हवहवधता और नए प्रयोग आने की सम्भावना बढ़ ज़ातीिंहै। सफ़लता की प्रहिया को इस क्षेत्र
में जानबूझ कर बड़े त्यक्लष्ट, और दृढ हनयमोिं के द्वारा धीमा बना हदया गया। हहिंदी साहहत्य से हकसी
प्रकाशक को अच्छी कमाई होना और लेखक के पररवार का गुज़र हो सकना असिंभव है। ऐसे में नयी
प्रहतभाओिं को न तो अच्छे प्रकाशक हमलते न ही पाठकोिं को अच्छी हकताबें।
नयी पीढी तो वैसे भी हहिंदी पढ़ने के नाम से मुिंह बनाती है। भारत के मुख्य लेखकोिं के नाम पूछो तो चेतन
भगत, शोभा डे, अमीश हत्रपाठी जैसे अिंग्रेज़ी लेखकोिं के ही नाम लोग देखेंगे हपछले एक दशक में।
मज़ेदार बात आत्म मुघ्द, हम हहिंदी वाले इन लोकहप्रय लेखकोिं को भी स्तरहीन कह कर दरहकनार कर
जाते हैं। लेहकन नयी हहिंदी हकताबोिं को इस स्तर पर लोकहप्रय बनाने और माके हटिंग के कड़वे सच को
स्वीकारने हम तैयार नहीिं। हबना पैसोिं के अच्छी हकताबें, अच्छा हडस्ट्रीब्यूशन असिंभव है। ऐसे में वेद
प्रकाश शमाा ने जो हकया वह बेहद प्रशिंसनीय है। बेहद सस्ती ,सुलभ हकताबें ज़गह ज़गह ,स्ट्ेशन स्ट्ेशन।
ऐसी कालजयी रचना का क्ा अथा जो मात्र 10 लोगोिं द्वारा पढी गयी हो। पुरुस्कृ त हो। लेहकन आलमारी में
धूल िािंकते या लेखक के झोले से फ्री हगफ्ट के रूप में बिंटती हो। सुनील गावस्कर आया तो सबने कहा
अब कोई न आएगा.... सहचन आ गया। सहचन था तो हम सब कहते रहे अब कोई न आएगा..... हवराट आ
गया। लेहकन हहिंदी साहहत्य में रचनाओिं का लेखकोिं का सूखा क्ोिं नज़र आता है? जबहक मानव मत्यस्तष्क
समय के साथ हर क्षेत्र में पररष्कृ त ही होते जाता है। हिर हहिंदी साहहत्य में क्ोिं कोई नया बड़ा नाम नहीिं
हदखता। वज़ह प्रहतभा की कमी तो हो ही नहीिंसकती क्ोिंहक प्रकृ हत समयकाल में ऐसा असुिंतलन कभी
नहीिंरखती। वज़ह उस पूरे अज़ीब से त्यक्लष्ट ,बिंद अँधेरे कमरे से हसस्ट्म में है हजसमें न तो पारदहशाता है न
ही कोई सुलभ मिंच। उस बिंद ,सीडन भरे पुराने अँधेरे कमरे का दरवाज़ा ही नया लेखक ढूिंढ नहीिंपाता।
कुिं हठत हो लौट जाता है।
90 प्रहतशत हहिंदी भाषी या भाषा को समझने वाले देश में 10 प्रहतशत अिंग्रेज़ी साहहत्य की अमीरी के और
हहिंदी के हाहशये में जाने के मुख्य कारण हैं, त्यक्लष्टता, आत्ममुघ्दता, आत्म कें हद्रत, गुट बाज़ी, बेहद पुराने
हनयम और एक दू सरे को आगे न बढ़ने देने, आम पाठक को सतही समझने की प्रवृिी का हशकार है
हहिंदी साहहत्य की मुख्य धारा। जहाँ रचना को नहीिंरचनाकार को पढ़ा जाने लगा। हफ़र कोई रचना
किं प्यूटर पर टाइप हो, मोबाइल पर या कागज़ पर रहेगी तो रचना ही। लेहकन इिंटेरनेट पर हलखने वालोिं
को लुगदी साहहत्य की ही तरह सतही साहहत्य कह दरहकनार करने की प्रवृहि भी हदखती है। वे लोग
रचना को नहीिं, माध्यम को और रचनाकार को महत्त्व देने लगे। जबहक आज अिंग्रेज़ी हकताबोिं का
मुकाबला सही मायनोिं में ऑनलाइन उपत्यस्थहत वाले लेखक ही कु छ हद तक कर पा रहे हैं। करोड़ोिं लोगोिं
को मन्त्र मुघ्द करती रचनाएँ लल्रू, वदी वाला गुिंडा बुरी कै सी हो सकती हैं। हजस तरह व्यिंग्य एक हवद्या है
साहहत्य की, जासूसी लेखन को भी वह स्वीकायाता हमलनी ही चाहहए। हालाँहक मैं इस बात से सिंतुष्ट हँ हक
महान वेद प्रकाश शमाा कॉिी हाउस की गुटबाहज़योिं , पुरुस्कारोिं की जोड़ तोड़, पहत्रकाओिं की लल्रो
चप्पो, सेहलहिटी और राजनीहतज्ञोिं के तलवोिं के मोहताज़ कभी नहीिंरहे। बस हलखते रहे और हदलोिं में राज़
करते रहे। उनकी सफ़लता सच्चे मायनोिं में एक लेखक की सफ़लता है।
उन्हें हदल से श्रद्ािंजहल।
अव्यक्त अग्रवाल
================
कहते हैं हक हररद्वार में रहने वाले गिंगा जी में नहीिंनहाते। वैसे नहाते तो होिंगे पर कहने का मतलब यहाँ
कु छ और है...हक जो बात करने में बहुत आसान हो उसे हम "ये तो कभी भी हो जाएगा" कहकर टाल देते
हैं। आज प्रख्यात लेखक वेद प्रकाश शमाा जी के हनधन का समाचार हमला। 2015 में Parshuram
Sharma जी का साक्षात्कार हलया था, उसके बाद उनसे कभी-कभार हमलना हो जाता था। वैसे परशुराम
जी से हमलना एक सिंयोग था, नहीिंतो शायद वह बात भी टालता रहता। एक-दो बार तो यूँ ही टहलते हुए
हमल गए। Ved prakash sharma जी से मेरठ में हमलना हकसी ना हकसी कारण से टलता रहा। हदसम्बर
2013 में हदल्री में आयोहजत कॉहमक िे स्ट् इिंहडया इवेंट में उन्हें नमस्ते कर बस उनके हाल-चाल पूछ
पाया और एक-दो बार कहीिंजाते हुए उनकी झलक हदखी। मैंने तुलसी कॉहमक्स में उनकी हलखी कु छ
कॉहमक्स पढ़ी और कु छ उपन्यास पढ़े। बाद में एक हमत्र ने बताया हक मेरे पास रखे उपन्यास वेद जी की
बेस्ट् सेलर कृ हतयािं नहीिंहैं। हिर वही टालने की आदत में सोचा कभी बाद में आराम से पढता हँ। अब
लगता है जब मैं मेरठ में रहता था तो हकतने हदन ऐसे थे जब मैं उनके पास जा सकता था और उनका
साक्षात्कार ले सकता था। जब आप हकसी कलाकार, रचनाकार के साथ तसल्री से बैठते हैं तो उनके
अनुभव, मेहनत के असिंख्य क्षणोिं के हनचोड़ के कु छ कणोिं का अमृत वो हनस्वाथा आपसे बाँट लेते हैं। एक
सबक मेरे और आप सबके हलए हक काम होने से पहले उसे पूरा हकया हुआ ना मान बैठें । वेद जी को
नमन व श्रद्ािंजहल! भगवान उनकी आत्मा को शात्यि दे। RIP
- मोहहत शमाा
*) - Interview with Akshay Dhar (Meta Desi Comics) - ल ांदी
साक्षात्कार
कािी समय से कॉहमक्स जगत में सिीय लेखक-कलाकार-प्रकाशक अक्षय धर का माचा 2016 में
साक्षात्कार हलया। जानकार अच्छा लगा हक भारत में कई कलाकार, लेखक इतने कम प्रोत्साहन के
बाद भी लगातार बहढ़या काम कर रहें हैं। पेश है अक्षय के इिंटरव्यू के मुख्य अिंश। - मोहहत शमाा ज़हन
Q - अपने बारे में कु छ बताएां ?
अक्षय - मेरा नाम अक्षय धर है और मैं एक लेखक हँ। लेखन मुझे हकसी भी और चीज़ से ज़्यादा पसिंद
है। मैं मेटा देसी कॉहमक्स प्रकाशन का सिंस्थापक हँ। अपने प्रकाशन के हलए कु छ कॉहमक्स का लेखन
और सिंपादन का काम भी करता हँ। अपने काम में हकतना सिल हँ, यह आप लोग बेहतर बता सकते
हैं।
Q - प िे और अब आलटास्ट व िेखकोां में क्या अांतर म सूस लकया आपने?
अक्षय - कॉहमक्स के मामले में ज़्यादा अिंतर नहीिं लगता मुझे, क्ोहक हवदेशो की तुलना में भारत में
कभी भी उतना हवस्तृत और प्रहतस्पधाात्मक कॉहमक्स कल्चर नहीिं रहा। हाँ हपछले कु छ वषों में हवहभन्न
कलाकारोिं, लेखकोिं का काम देखने को हमल रहा है। हिर भी पहले लेखकोिं की िोल्रोहविंग अहधक थी,
यह त्यस्थहत धीरे-धीरे हचत्रकारोिं, कलाकारोिं के पक् ष में झुक रही है। भारत के साथ-साथ अन्य देशो के
कॉहमक इवेंट्स में लेखकोिं की तुलना में कलाकारोिं अहधक आकषाण का कें द्र रहते हैं। अब कॉहमक्स
की कहाहनयोिं और कला में बेहतर सिंतुलन देखने को हमल रहा है।
Q - आपके पसांदीदा किाकार, िेखक और क्योां?
अक्षय - मेरे पसिंदीदा लेखक और कलाकार पािात्य प्रकाशनोिं से हैं क्ोहक वहािं जैसे प्रयोग, अनुशासन
और अनुभव भारत में कम देखने को हमलते हैं। लेखकोिं में मैं Mark Waid, Greg Rucka, Jim
Zum, Jeff Parker, Grant Morrison, Garth Ennis, Gail Simone and Warren Ellis का काम
बड़े चाव से पढता हँ। कलाकारोिं में Geof Darrow and J.H.Williams. हालािंहक, Adam Hughes,
Stjepan Sejic and Darick Robertson जैसे आहटास्ट््स का काम मुझे अच्छा लगता है।
Q - अपने देश में कॉलमक्स का क्या भलवष्य देखते ैं?
अक्षय - भारत में बहुत सम्भावनाएिं है। कला, कहाहनयोिं-हकवदिंहतयोिं-हकस्ोिं के रूप में हमारे पास
अथाह धरोहर है। हमारे इहतहास में इन कलाओिं के कई उदाहरण है। इतनी सिंभावनाओिं के होने के
बाद भी आम देशवासी का नजररया कॉहमक्स के प्रहत बड़ा नकारात्मक और हनराश करने वाला है।
अगर लोग कॉहमक्स को बच्चोिं की तरह बड़ो के हलए भी माने और उनको साहहत्य में जगह दें।
कॉहमक्स को नकारने के बजाये एक कहानी, हशक्षा को बताने का साहहत्यत्यक तरीका मानें, तो भारतीय
कॉहमक्स बहुत जल्द बड़े स्तर पर आ जाएिं गी।
Q - इांलडपेंडेंट कॉलमक्स प्रकालशत करना इतना मुश्किि काम क्योां ै?
अक्षय - भारत में इिंहडपेंडेंट कॉहमक्स बनाना और प्रकाहशत करना बहुत मुत्यिल हैं, क्ोहक -
1. "बचकानी चीज़" कॉहमक्स की जो छहव बनी है देश के लोगो के हदमाग में वो सबसे बड़ी बाधा है।
लोगो को थोड़ा लचीला होना चाहहए।
2. दुभााग्यवश, पहले से ही कम कॉहमक पाठकोिं में अहधकतर भारतीय कॉहमक िैं स कु छ हकरदारोिं या
2-3 प्रकाशनोिं के अलावा हकसी नयी कॉहमक को पढ़ना पसिंद नहीिं करते। बैटमैन, नागराज, चाचा
चौधरी पहढ़ए पर नए प्रकाशनोिं को भी ज़रूर मौका दीहजये।
Q - अब तक का अपना सबसे चुनौतीपूर्ा और सवाश्रेष्ठ काम लकसे मानते ैं और क्योां?
क्षय - ग्राउिंड जीरो ऍिं थोलॉजी के अिंहतम 2 कॉहमक्स के बारे में सोचकर गवा महसूस करता हँ। यह काम
दजान भर से अहधक उन लोगो की ऐसी टीम के साथ हकया हजन्हे कॉहमक्स के बारे में कोई अनुभव नहीिं
था। मुझे प्रकाशन का अनुभव नहीिं था हिर भी हजस स्तर की ये कॉहमक्स बनी है देख कर अच्छा लगता
है। साथ ही पाठको को हर कॉहमक्स के साथ हमारे लेखन, कला में सुधार लगेगा।
रैटर ोग्रेड के हलए मन में एक सॉफ्टस्पॉट हमेशा रहेगा। हदल्री में आयोहजत, भारत के पहले कॉहमक
कॉन में पॉप कल्चर द्वारा प्रकाहशत मेरी यह कॉहमक पाठकोिं द्वारा कािी सराही गयी थी। यह एक
बड़ी कहानी है, हजसे मैं आगे जारी करना चाहता हँ, हजसपर हवचार चल रहा है। अभी तक इवेंट्स में
लोग हमारे स्ट्ाल पर रूककर इस कॉहमक, कहानी के बारे में पूछते हैं।
Q - मेटा देसी कॉलमक्स के अब तक के सफर के बारे मे बताएां ।
अक्षय - मेटा देसी कॉहमक्स की शुरुआत मैंने उन प्रहतभाओिं को मौका देने के हलए की थी, हजनसे मैं
अपने देश भर में कॉहमक इवेंट्स के दौरान हमला था। अपनी तरि से कु छ कलाकारोिं, लेखकोिं की
मदद के हलए यह कदम उठाया था। धीरे-धीरे इसका इतना हवस्तार हुआ हक अब मेटा देसी की अच्छी-
खासी िॉलोइिंग है। ग्राउिंड जीरो सीरीज में 3 कॉहमक्स आने के बाद अब हमनें पाठको की मािंग पर
अहभजीत हकनी द्वारा बनाए गए होली हेल को अलग कॉहमक दी है। जातक माँगा के रूप में हमारी
वेबसाइट पर वेबकॉहमक चल रही है। हजसमे हम हबना शब्ोिं का प्रयोग कर माँगा स्ट्ाइल में जातक
कथाएिं बना रहें हैं। हाल ही में चेररयट कॉहमक्स के साथ हमलकर एक नयी लाइन आईसीबीएम
कॉहमक्स की शुरुआत की है, हजसमे पाठको को अलग अिंदाज़ में कु छ कॉहमक्स हमलेंगी। ऐसा करने से
प्रकाशन में हमारा खचा भी साझा हुआ है।
Ground Zero (Vol. 1)
Q - कॉलमक कॉन जैसे इवेंट्स में क्या सुधार ोने चाल ए?
अक्षय - कॉहमक कॉन में दोनोिं तरह की बातें है। एक तरि इतने बड़े इवेंट के रूप में कई इिंहडपेंडेंट
पत्यिशर, रचनाकारोिं को एक प्लेटिामा हमलता है, वहीिं दू सरी और उनपर मकें डाइज, हगफ्ट आहद
किं पहनयोिं को अहधक स्ट्ाल देकर कॉहमक इवेंट को डाइल्यूट करने की बात कही जाती है। मेरे मत में
अगर प्रकाशनोिं से उन्हें पयााप्त सेल नहीिं हमल रही तो अपना व्यापार बनाए रखने के हलए और आगे के
इवेंट्स करने के हलए उन्हें अन्य किं पहनयोिं की ज़रुरत पड़ती है।
यह कम करने के हलए हमे इवेंट्स पर और कॉहमक्स िैं स की ज़रुरत है। जो हमारी कॉहमक्स खरीदें
और हमे बताये हक हम क्ा सही कर रहें है, कहाँ हम गलत हैं, हकस हकरदार या रचनाकार में क्ा
सम्भावनाएिं है।
Q - भलवष्य में कॉलमक्स से जुडी योजनाओां के बारे में जानकारी साझा कीलजये।
अक्षय - अभी कु छ प्रोजेक्ट्स शुरुआती चरण में है हजनके बारे में बताना सिंभव नहीिं। वैसे इस साल
चेररयट कॉहमक् स के साथ हमलकर 3 कॉहमक्स प्रकाहशत करने की योजना है। हजनमे से एक होली
हल का तीसरा अिंक होगा।
Q - कई पाठक कम प्रचलित या नए प्रकाशन की कॉलमक्स, नोवेल्स और लकताबे खरीदने से
डरते ै। उनके लिए आपका क्या सांदेश ै?
अक्षय - मेरा यही सिंदेश है हक हम लालची नहीिं है, कला-कॉहमक्स और अिंतहीन काल्पहनक जगत के
प्रहत अपने जनून के हलए कर रहें है। जैसा लोग कहते हैं हसिा जनून से पेट नहीिं भरते इसहलए हमे
आपके सहयोग और मागादशान की आवश्यकता है। यह हबल्कु ल ज़रूरी नहीिं हक हजस चीज़ से आप
अिंजान होिं वह अच्छी नहीिं होगी। नयी प्रहतभाओिं को मौका दीहजये, कु छ नया मनोरिंजन आज़मा कर
देत्यखये.....हो सकता है आपके सहयोग से कई कलाकारोिं का जीवन सिल हो जाए। बहुत-बहुत
धन्यवाद!
==========
*) - Green Humour Webcomic
*) - मेरा कालमक सांग्र - सांजय लसां
2011 Comic Con India
8 साल हो गए है हहिंदी काहमक्सो से सिंबिंहधत हवहभन्न आनलाईन ग्रुप्स, िारम, कम्यूहनहटस, इत्याहद मे
एक सहिय काहमक िै न के तौर पर हवचार-हवमशा, पररचचाा, इत्याहद करते हुए। हहिंदी काहमक्सोिं से
जुडे हुए कई सारे पहलओ पर अपने हवचारो का रखा है। हिर चाहे वो राज काहमक्स की कायाशैली की
समीक्षा हो या आजकल चल रही काहमक्सोिं की कालाबाजारी की हनिंदा। अगस्त 2008 मे जब मैंने राज
काहमक िारम को ज्वाईन हकया था तब मेरा मकसद था काहमक्सोिं से जुडी हुई अपनी यादोिं को ताजा
करना। लेहकन उसी साल अक्टू बर मे कु छ ऐसा हुआ हक काहमक्सोिं से जुडी हुई यादोिं को ताजा करने
का एक और तरीका हमल गया। ये था पहला “नागराज जन्मोत्स”। और वो तरीका था काहमक्से सिंग्रह
करने का।
2008 नागराज जन्मोत्सव मेरे हलए कई मायनोिं से यादगार और खास रहा। एक खास वजह तो ये ही थी
हक मैं पहली बार अपने हप्रय हचत्रकारोिं और लेखकोिं से हमल रहा था। लेहकन एक दू सरी वजह भी थी
हजसने मेरे काहमक के जुनून को उस हदन कई गुणा बढा हदया। मैं पहली बार ऐसे काहमक िै न्स से
हमला हजनमे मेरी ही तरह काहमक के हलए बेइतिंहा दीवानापन था। यहािं मैं रहव यादव का नाम लेना
चाहँगा जो उस भाग्यवादी हदन मुझे वहािं हमला था। काहमक्सोिं के प्रहत लोगो का प्यार देखकर मुझ मे
और मेरे दोस्त आकाश मे एक नए जोश का सिंचार हुआ और इस कायािम से प्रेररत और उत्साहहत हो
कर हम दोनो ने अपने काहमक सिंग्रह को बढाने का हनिय हकया।
इससे पहले मेरे पास मुत्यिल से 50 या उससे भी कम काहमक्से थी और वो भी हसिा ध्रुव की
काहमक्से। इस वक्त मे एक बहुत कम वेतन वाली नौकरी कर रहा था। (हजसे मैंने नवम्बर 2008 मे
छोड भी हदया था और उसके बाद 2 साल तक बेरोजगार रहा) और काहमक्से भी हगनी-चुनी लेता था।
ध्रुव, नागराज की आिंतकहताा और नागायाण सीररज। हालािंहक उस वक्त और भी अच्छी सीररजे आ रही
थी दू सरे हीरोज की लेहकन पैसे की कमी के चलते उन्हे प्राथहमकता देने मेरे बस की बात नही थी। तो
अब ये तो सोच हलया था हक काहमक्से खरीदनी है लेहकन नई काहमक्सें खरीदना अभी हैहसयत से बाहर
था। तो ये हनिय हकया हक हिलहाल उन काहमक्सोिं को खरीदा जाए हजनको बचपन मे पढा था और
हजनकी वजह से आज हम काहमक्सोिं पर इतनी चचाा करने लायक बने। पुरानी काहमक/हकताबोिं के बारे
मे सोचते ही ध्यान आया दररयागिंज की सिंडे बुक माके ट का। मैं साल 2007 मे एक बार इस बुक
माके ट मे आया था और तब देखा था हक काहमक्से भी हमल रही थी। उस वक्त इनकी कीमत भी बहुत
साधारण हुआ करती थी। अकसर आधे दाम पर हमल जाती थी। हबना हकसी मोल-भाव के । तो मैंने और
आकाश ने ये िै सला हकया हक हम हर रहववार को माके ट जाएिं गे काहमक खरीदने। और इसका श्री
गणेश भी साल 2008 के अिंत से पहले हो भी गया।
शुरु मैं हमारी प्राथहमकता हसिा राज काहमक ही थी। क्ोिंहक उस वक्त काहमक खरीदने की मुख्य
वजह उन्हे हसिा पढना ही था। यहािं मैं एक बात बताना चाहँगा हक मेरा काहमक सिंग्रहकताा बनने का
कोई इरादा नही था। मुझे तो उस वक्त ये मालूम भी नही था हक लोग काहमक्सोिं का भी सिंग्रह करते है।
मुझे 1-2 साल बाद इस बात का पता चला।
शुरुआत मे काहमक्सोिं की खरीदारी कािी धीमी रही। उसके एक वजह तो पैसे की कमी थी। मैं अपनी
नौकरी छोड चुका था। और आगे भी दो साल तक बेरोजगार रहा। दू सरी वजह ये थी हक उस वक्त हम
काहमक्से लेने मे बहुत ही नुख्ता-चीनी करते थे। मतलब हक हसिा वही काहमक्से ले रहे थे हजन्हे हम
पसिंद करते थे। याहन हक हसिा अपने हप्रय हकरदारोिं की ही काहमक्से ले रहे थे हजनमे राज काहमक्स मे
नागराज, ध्रुव आहद की काहमक्से ही मुख्य तौर पर शाहमल थी। उस वक्त मनोज, तुलसी, राधा इत्याहद
प्रकाशकोिं की काहमक्से भी हमलती थी लेहकन हमने उस वक्त उन पर कभी ज्यादा ध्यान नही हदया।
कभी मन हकया या कोई काहमक अच्छी लगी तभी उसे खरीदा वनाा उन्हे छोड ही हदया। ये सब साल
2008-2009 के बीच हुआ। उस वक्त काहमक्से हम कम ढूिंढ पाते थे लेहकन बाकी चीजो की खरीदारी
पर ज्यादा पैसे खचा कर रहे थे।
दररयागिंज मे जब ज्यादा सिलता नही हमली तो मैंने अपने घर के आसपास काहमक्सोिं को तलाशना
शुरु हकया। हकसी जमाने मे नािंगलोई मे काहमक्सोिं की कािी दुकानें हुआ करती थी। और लगभग हर
एक बुक हडपो वाले ने कभी ना कभी तो काहमक्से रखी ही थी अपने पास। लेहकन वक्त और तकनीक
के साथ काहमक्से अपनी लय बरकरार नही रख पाई और धीरे-धीरे वहाँ काहमक्से हदखनी बिंद हो गई।
हिर भी मुझे कु छ दुकानोिं पर उनके हमलने की उम्मीद अभी भी थी। यही सोचकर एक दुकान पर
पहुिंचा। और वहािं तो जैसे मुझे खजाना ही हमल गया। ज्यादातर राज काहमक थी और उन मे से मुझे मेरे
हप्रय सुपर हीरो सुपर कमािंडो ध्रुव की भी कु छ ऐसी काहमक्से हमल गई जो मैं ढूिंढ रहा था। शाम को
िोन करके मैंने आकाश को सारी बात बताई और अगले हदन वो भी मेरे घर आ गया काहमक्से लेने।
उसने भी कािी सारी काहमक्से उस दुकान से ली। हिर मैंने कु छ और दुकानोिं पर भी भाग्य को
आजमाया और सिलता भी हमली लेहकन बहुत थोडी सी। अब हिर से दररयागिंज की तरि रूख
करना पडा। लेहकन अब वहािं हमे अपने मतलब की काहमक्से बहुत कम ही हमल पा रही थी। इसहलए
अब काहमक्सोिं को लेकर कु छ ज्यादा उत्साह नही रह गया था दररयागिंज मे। ज्यादातर तिरी ही हो
रही थी। सुबह पहुिंच जाते वहाँ, और हर तरह की दुकान देखकर दोपहर तक वाहपस भी आ जाते।
और ऐसा साल 2010 के मध्य तक जारी रहा। लेहकन मैंने और आकाश ने दररयागिंज जाना बिंद नही
हकया। चाहे गमी हो, बाररश हो या सदी हो। या हिर 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे बडे अवसरोिं पर
सुरक्षा के तहत बाजार ही क्ोिं ना बिंद हो। हम जाते जरूर थे। बीच मे हमारा दोस्त रहव भी 1-2 बार
हमारा साथ देने आया।
अब साल 2010 शुरु हो गया था और हम अपने नए घर मे चले गए थे। अब दररयागिंज और भी दू र हो
गया था। अब बाजार मे पहुिंचने के हलए साईकल, रेल और पैदल यात्रा तीनोिं माध्यमोिं का इस्तेमाल हो
रहा था। ये समय मेरे हलए कािी मुत्यिल भरा था। क्ोिंहक इतनी मेहनत करने के बाद भी बाजार
पहुिंचने पर मुझे कु छ नही हमलता था। ऊपर से अब बेरोजगार हुए डेढ साल से ज्यादा हो गए थे और
सेहविंग भी खत्म होने लगी थी। इन्ही सब के बीच मे 2010 के शुरु के चार 4-5 महीने हनकल गए। पैसे
खत्म हो रहे थे, जोश दम तोड रहा था, और उम्मीद ना-उम्मीद मे तबदील हो रही थी।
मई का महीना चल रहा था और ऐसे ही खाली हनकला जा रहा था। एक रहववार को मैंने आकाश से
कहा हक यहद आज भी कोई काहमक बाजार मे नही हमली तो मैं अगले 3-4 रहववार बाजार नही
आऊिं गा। उसने भी मेरी बात का समथान हकया। लेहकन जैसे उस हदन भगवान हमे हपछले डेढ साल
की कडी मेहनत का िल देने वाला था। बाजार मे थोडा घूमने पर हमे एक जगह बहुत सारी काहमक्से
नजर आई। वो भी हमिंट किं हडशन मे। राज काहमक्स की बहुत सारी पुरानी काहमक्से हजसमे ध्रुव,
नागराज, डोगा, जनरल, आहद सभी तरह की काहमक्से शाहमल थी। हमारी तो खुशी का हठकाना ही
नही रहा। कीमत भी बहुत ही साधारण। मात्र 5-10 रु। उस हदन मेरे पास हजतने पैसे थे वो सारे
काहमक खरीदने मे ही खचा हो गए। लेहकन हमे ये मालूम नही था हक ये तो हसिा शुरुआत है और
अगले 1-2 महीने तक हमे इतनी काहमक्से हमलने वाली है हक हमे पैसो की भारी कमी का सामना
करना पडेगा। अगले हफ्ते जब हम हिर बाजार पहुिंचे तो हिर से वही दुकानदार ढेर सारी काहमक्से
लाया था। इस बार उनमे राज के अलावा मनोज, राधा, तुलसी, गोयल इत्याहद दू सरे प्रकाशकोिं की
काहमक्से भी सब एकदम नयी किं हडशन मे। और सोने पर सुहागा ये हक उन काहमक्सोिं मे से कु छ के
अिंदर स्ट्ीकसा भी थे। मेरे पास हजतने भी तुलसी काहमक्से के स्ट्ीकसा है वो सारे यही से ली गई
काहमक्सोिं से है। अब तो जैसे एक नया जुनून सा सवार हो गया बाजार मे आने का। आने वाले 3-4
हफ्ते तक वो बिंदा ढेरोिं काहमक्से लाता रहा और हम भी अपने बजट और जरूरत के हहसाब से
काहमक्से खरीदते रहे। इसी बीच मैंने अपने दोस्त हवशाल उिा बिंटी को भी इस बारे मे बता हदया और
वो और हमारा एक और दोस्त राहुल भी 1-2 बार काहमक्से लेने के हलए बाजार आए। बिंटी को मैं अपने
साथ कु छ और दुकानोिं पर भी लेकर गया और वहािं से भी हमने बहुत सारी काहमक्से खरीदी। इसके
साथ ही मेरी और आकाश की मुलाकात कु छ और भी काहमक्स प्रेहमयोिं से हुई। आशीष त्यागी, प्रदीप
शेहरावत और शाहहद अिंसारी। (उस वक्त शाहहद अिंसारी हमारे हलए िै न ही थे) इन लोगो के साथ
हमलकर भी खूब सारी काहमक्से खरीदी। शाहहद अिंसारी हमे एक दुकान पर भी लेकर गए हजसके पास
बहुत सारी काहमक्से थी। वहािं से मैंने अपने एक िारम के दोस्त अजय हढल्ल्न के हलए भी बहुत सारी
काहमक्से खरीदी। सब 5-10 रुपये मे। इसी बीच मेरे एक्जाम शुरु हो गए। एक्जाम के हदनोिं मे ही रहव,
आकाश और बिंटी उस दुकानदार के घर पर भी गए जो रहववार को बाजार मे काहमक्से लाता था और
उसके घर से भी उन्होिंने कािी काहमक्से खरीदी। बाद मैं िारम का एक और दोस्त (सुप्रतीम) जब
अपनी छु ट्टी मे हदल्री आया तो मैंने और आकाश ने उसको बहुत सारी काहमक्से हदलवाई। कु छ तो
रहववार बाजार से ही और कािी सारी उस दुकान से हजस पर शाहहद हमे लेकर गया था। इसके
अलावा मैंने एक दुकान और ढूिंढ ली थी हजस पर हमे कािी काहमक्से हमली। यहािं से काहमक्से खरीदने
वालो मे मेरे, आकाश और प्रदीप जी के अलावा शाहहद अिंसारी भी थे। इस तरह मई से लेकर जुलाई-
अगस्त तक काहमक्सोिं की कािी खरीदारी हुई। लेहकन अब समस्या ये आ गई हक मेरे पास सेहविंग
लगभग खत्म हो चुकी थी। नागराज जन्मोत्सव 2010 के बाद त्यस्थहत ये आ गई थी हक अब नौकरी
करना जरुरी हो गया था। अब दो साल होने वाले थे हबना हकसी रोजगार के । नवम्बर 2010 मे एक
नौकरी हमल गई और पैसोिं की हचिंता कु छ हद तक खत्म हुई।
साल 2011 की शुरुआत हपछले साल से भी बेहतर रही। इस साल माचा मे एक दुकानदार के कािी
सारी काहमक्से आई थी। लेहकन उनमे से ज्यादातर शाहहद अिंसारी ने ही ले ली थी। मुझे थोडी बहुत ही
अपनी पसिंद की काहमक्से हमली। लेहकन उस दुकानदार ने मुझे बताया हक उसके पास घर पर अभी
और भी काहमक्से रखी हुई है। मैंने उसका पता और िोन नम्बर ले हलया और शहनवार को उसके घर
गाहजयाबाद जा पहुिंचा। वहािं से मैंने अपनी हजिंदगी की अब तक की सबसे ज्यादा काहमक्से एक साथ
खरीदी। और वो भी आधे दामोिं मे। उसके पास ज्यादातर राज काहमक्से ही थी। लेहकन उससे मुझे
महारावण सीररज की कािी सारी काहमक्से एक साथ हमल गई। और इसके साथ ही मुझे कनकपुरी
की राजकु मारी भी हमली। साथ ही और भी बहुत सारी नई-पुरानी काहमक्से हमली। वो हदन एक यादगार
हदन रहा मेरी हजिंदगी का। पहली बार हदल्री से बाहर जाकर काहमक्से खरीदना वाकई मेरे हलए एक
बेहद खास अनुभव रहा। हिर आगे भी उस दुकानदार से बाजार मे ही काहमक्से लेते रहे जब तक हक
उसके पास काहमक्से खत्म ना हो गई हो। इसके बाद शायद अगस्त-हसतम्बर के बाद एक बार हिर से
बहुत सारी काहमक्से बाजार आई। शुरु मे तो वो काहमक्सें हमे जायद दामोिं (5-10 रुपए) मे हमल गई।
लेहकन जब अगले सप्ताह हम उन्ही दुकानदारोिं पर दुबारा पहुिंचे तो सबने कीमत बढा कर बताई कु छ
तो हप्रिंट पर ही दे रहे थे। हमारे हलए ये पहला ऐसा मौका था जब हम काहमक्से महिंगे दामोिं पर हमल रही
थी। हम पुरानी काहमक्से हमेशा 5-10 रुपए मे ही लेते आए थे। अत:एव हमने वो काहमक्से नही खरीदी
और उन्हे छोड हदया। बाद मे काहमक्सोिं के हविे ताओिं ने वो काहमक्से खरीदी। इसके बाद 2011 मे
कु छ खास नही हुआ।
2012 मे तो याद भी नही हक कु छ खास हुआ था या नही। हसिा काहमक कान याद है। इसके अलावा
महिू ज भाई से मुलाकात हुई और उन्हे कोबी और भेहडया काहमक दी। साथ ही ध्रुव के कु छ हवशेषािंक
भी महिू ज को हदए थे। बदले मे महिू ज ने भी मुझे काहमक्से दी। अब सिंडे माहका ट जाने का भी मन
नही करता था। आकाश ने अब माहका ट आना बहुत कम कर हदया था। और मैं ही अके ला आता था।
ऐसे ही एक बार 15-20 रुपए मे इिंद्रजाल काहमक्से हमल गई थी। तकरीबन 25-35 काहमक्से थी और
ज्यादातर अिंग्रेजी मे ही थी। एक बार 40 के करीब हटिंकल भी हमली थी। पुरानी हटिंकल हहिंदी और
अिंग्रेजी मे। 5 रुपए प्रहत काहमक। काहमक्से अब कम हमल रही थी लेहकन उनकी कीमते हिर भी
कािी हनयिंत्रण मे थी।
साल 2013 के शुरुआत मे ही मैंने ये मन बना हलया था हक अब ये आत्यखरी साल है काहमक्से कलैक्ट
करने का। शुरुआत ठीक-ठाक रही। अप्रैल मे महिू ज भाई का हनमिंत्रण हमला हक उनके शहर
सहारनपुर मे कािी काहमक्से है मेरे लायक। वहािं जाकर तकरीबन 1000 रु की काहमक्से खरीदी।
सब हप्रिंट रेट पर ली। बहुत ही बेहतरीन अनुभव रहा दू सरे शहर मे जाकर काहमक्से खरीदने का। बाद
मे इसी महीने सागर राणा जी से भी मुलाकात हुई। वो हदल्री आए हुए थे। उन्होिंने मुझे जम्बू की पहली
काहमक सुपर कम्पयूटर का बाप दी। महिू ज भी उसी हदन हदल्री आया और उसने भी उनसे
मुलाकात करी। मैंने महिू ज को कोहराम काहमक दी और बदले मे उसने मुझे बुत्यद्पासा दी। वो हदन
भी बहुत खास रहा। आकाश भी उस हदन सागर राणा जी से हमलने बाजार आ गया था। अप्रैल के बाद
जुलाई मे मुझे गाहजयाबाद वाले बिंदे से बहुत सारी तुलसी काहमक्से हमली। सब आधे दाम मे। 250
रुपए मे 59 काहमक्से। जुलाई मे ही मेरी मुलाकात िारम मैम्बर स्पाकी रहव से हुई। उसी हदन मैं
अयाज अहमद से भी हमला। हिर उसके अगले ही महीने मे मुझे बहुत सारी मनोज काहमक्से हमली।
ज्यादातर हवशेषािंक ही थे। राम-रहीम, हवलदार बहादुर, िु कबािंड, कािंगा और दू सरे मनोज काहमक्स
के हकरदारोिं की तकरीबन 90 के करीब काहमक्से मैंने खरीदी। लेहकन ये खरीदारी अब तक की सबसे
महिंगी खरीदारी साहबत हुई। क्ोिंहक मैंने हर काहमक के दुगने दाम हदए। याहन हक इस बार और पहली
बार मैंने हप्रिंट रेट से भी ज्यादा कीमत अदा करी। 10-20 रूपए। और जब मैंने ये िे सबुक पर पोस्ट्
हकया तो एक दोस्त (मोहहत शमाा) को बहुत हैरानी हुई हक पुरानी काहमक्से इतनी महिंगी कै से हो गई?
खैर वो काहमक्से खरीदकर मैं आकाश के पास गया और उसने उन मे कु छ काहमक्से ले ली। उस
दुकानदार के पास अभी और भी बहुत काहमक्से बच गई थी। तो अगले सप्ताह मैं, आकाश और
मोहनीश हिर वहािं पहुिंचे और आकाश और मोहनीश को अपनी पसिंद की काहमक्से हमल गई।
मोहनीश उस हदन बहुत खुश था क्ोिंहक उसकी महारावण सीररज पूरी हो गई थी। इसके अगले
रहववार भी हमने वहािं से कु छ काहमक्से और खरीदी।
इसके बाद सिंडे माहका ट से कु छ नही हमला। हिर नवम्बर-हदसम्बर मे राज काहमक्से ने काहमक िे स्ट्
इिंहडया का आयोजन हकया। इस इवेंट मे राज काहमक्स ने पुरानी काहमक्सोिं का स्ट्ाल लगा रहा था जहािं
पर 30 रुपए प्रहत काहमक की दर से काहमक बेची जा रही थी। मैं ज्यादा काहमक्से नही खरीद सका
और जो खरीदी भी उन मे से ज्यादातर उसी दाम पर बाद मे बेच भी दी। काहमक िे स्ट् के बाद ही
दोस्त की शादी मे नागपुर जाना पडा और वहािं से भी थोडी बहुत काहमक्से खरीदी। अब साल का
आत्यखरी महीना चल रहा था और आत्यखरी महीने के आत्यखरी रहववार मैं पूरा हदन वही माहका ट मे ही
घूमता रहा। जैसे उस जगह से जुडी हुई सारी पुरानी यादोिं को इकट्ठा कर रहा था।
साल 2014 मे मैं दररयागिंज कािी कम गया। अगर गया भी तो काहमक्स खरीदने के इरादे से नही और
ज्यादातर शाम के वक्त ही गया। साल 2008 से 2013 तक मैंने कािी काहमक्से खरीदी और अब तो
ऐसा लगता है हक हमने कािी अच्छे समय मे काहमक्सोिं का सग्रिंह बनाया। आज के दौर मे तो मेरे हलए
ये हबल्कु ल ही नामुमहकन होता। हिलहाल मेरे सिंग्रह मे 2400 से ज्यादा काहमक्से है। हहिंदी, अिंग्रेजी,
नई, पुरानी, ओररहजनल, ररहप्रिंट्स सब तरह की हमलाकर। सबसे ज्यादा काहमक्से राज काहमक्स की ही
है। इसके अलावा स्ट्ीकसा, टरेहडिंग काडास, पोस्ट्र और दू सरे तरह की काहमक्सोिं से जुडी हुई चीजो का
भी अच्छा खासा क्लैक्शन है। कािी खुशी होती है अपना काहमक सिंग्रह देखकर। उसकी दो खास
वजह है। पहली तो ये हक मैंने अपना काहमक क्लैक्शन बहुत ही मेहनत, ईमानदारी और हकिायती
कीमत पर बनाया है। इसमे हजन दोस्तो ने मदद करी उनका नाम मैं इस लेख मे हलख चुका हँ। कोई
रह गया है तो उसके हलए मािी चाहँगा। काहमक सिंग्रह करते समय कभी भी कालाबाजारी को बढावा
नही हदया। कभी ऊिं चे दाम पर काहमक्से नही खरीदी। दू सरी वजह यह है हक मैं बचपन से ये चाहता था
हक मेरे आस-पास ढेर सारी काहमक्से हो। अब जब अपनी अलमारी या अपन हदवान खोलकर देखता हिं
तो पाता हिं हक हजतना मैंने बचपन मैं सोचा था अब उससे कही गुना ज्यादा काहमक्से मेरे पास है। ये
एक सपने को जीने के जैसा ही है।
मेरे काहमक सिंग्रह की एक और हवशेषता ये भी है हक मेरे पास सबसे ज्यादा काहमक्से राज काहमक्स ही
है लेहकन मेरे पास उनके हकसी भी बडे हकरदार की सारी काहमक्से नही है। यहािं तक हक मेरे हप्रय पात्र
सुपर कमािंडो ध्रुव की भी मेरे पास सारी काहमक्से नही है। जबहक मनोज के 3-4 हकरदारोिं की सारी
काहमक्से मेरे पास है।
2008 से शुरु हुई मेरी काहमक की इस जुनूनी यात्रा के दौरान मुझे भारतीय काहमक जगत और
काहमक क्लचर के बारे मे बहुत सी बाते जानने को हमली। बहुत से हचत्रकारोिं और लेखकोिं से भेट हुई।
कािी सारे कायािमोिं का हहस्ा बना। खासतौर से नागराज जन्मोत्सव और बुक िे यर। जहािं तक मुझे
याद है 2009 के बाद से ये पहला अवसर था जब इस साल मे अगस्त-हसतम्बर बुक िे यर नही गया।
कािी दोस्त बने और सब के साथ बहुत ही अदभुत अनुभव सािंझा हकए।
तो ये थी मेरे काहमक सिंग्रह की कहानी। कै से शुरु हुआ, कहािं से शुरुआत हुई, कै से प्रगहतशील हुआ
और कै से अिंत हुआ। काहमक क्लैक्ट करने का सिर तो साल 2013 मे खत्म हो गया। लेहकन काहमक
पढने का शौक अभी भी जारी है। अब काहमक्सोिं पर ज्यादा चचाा नही कर पाता लेहकन राज काहमक्स
के नए सैट और नए प्रकाशकोिं की काहमक्से खरीदना और पढना अभी भी जारी है। और उम्मीद करता
हिं हक जैसे हपछले 21 सालोिं से काहमक्से पढता आया हँ वैसे ही आगे भी पढता रहिंगा।
जुनून।
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Cartoonist Neerad (Neelkamal Verma)
बहुत कम ही लोग जानते होिंगे हक काटूाहनस्ट् नीरद का पूरा नाम नीलकमल वमाा 'नीरद' है। भारतीय
कॉहमक जगत के सिल और लोकहप्रय काटूाहनस्ट् नीरद जी का जन्म १५ अगस्त १९६७ को हुआ। १०-
११ साल की उम्र से ही इन्होिंने काटूाहनिंग की शुरुआत कर दी थी और तब से अब तक देश भर की शीषा
पत्र-पहत्रकाओिं के हलए कॉहमक त्यस्ट्रप और काटूान्स तो बनाये ही, साथ ही डायमिंड कॉहमक्स के तमाम
लोकहप्रय चररत्रोिं (जैसे ताऊ जी, चाचा-भतीजा, लम्बू मोटू , राजन इऺबाल आहद) के ढेरोिं कॉहमक
बुक् स के हलए रेखािंकन भी हकया। अब नीरद जी के काटूान्स लोकहप्रय पहत्रका नन्हे सम्राट के साथ-साथ
हवहभन्न स्थानीय समाचार पत्रोिं, पहत्रकाओिं में प्रकाहशत होते है।
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*) - वायरस का वायरस
लेखक - ऋषभ कु मी
स्थान -हसटीमाल एररया, डी डी पुरम, राजनगर।
समय-01:00 A.M.
अभी कु छ देर पहले ही हसटीमाल के starworld हसनेमा में 'अ फ्लाइिंग जट्ट' का आत्यखरी शो खत्म हुआ
था।
Mr Mehta - क्ा बकवास शो था! ये भी कोई देखने लायक मूवी थी!
Mrs Mehta- मूवी के बारे में जो बोला सो बोला ,अगर टाइगर श्रॉि के बारे में कु छ बोला तो मुझसे
बुरा कोई नहीिं होगा।
Mr. Mehta - हुँह! इतनी बकवास एत्यक्टिंग! उसको तो एत्यक्टिंग का A भी नहीिं आता। पता नहीिं कहा से
ये बच्चे एत्यक्टिंग करने चले आते है!
Mrs. Mehta- आत्यखरी वाहनिंग है प्राणनाथ! इसके आगे कु छ कहा तो आपके प्राणोिं पर भी बन सकती
है। गुरार!
और क्ा एत्यक्टिंग-एत्यक्टिंग लगा रखा है। खुद को क्ा बहुत बड़ी तोप समझते हैं! पजामे में रहना सीख
लीहजये, ज्यादा िै लेंगे तो िट जाएगा । हीहीही!
Mr. Mehta-(गुस्े से) में क्ा डरता हँ तुमसे,जो धौिंस हदखा रही हो!
Mrs. Mehta-हिर से बोहलये तो सही!!!अब चूहे भी दहाड़ेंगे क्ा?
(तभी पीछे से दो लोग आते हैं)
Pehla-(जोर से Mr Mehta के चमाट रसीद करके ) ये का बवाल मचा रहे हो बे! दिा हो जाओ! वनाा
पैर तोड़कर हाथ में दे देंगे।
Mrs. Mehta- तुम लोगो की इतनी जुरात! मेरे चूहे! मेरा मतलब, मेरे पहत पर हाथ उठाया! छोडूिंगी नहीिं
मैं तुम्हे....(बक.... बक....बक....)
Dusra-यही reason है, मैं शादी नहीिं करने का decide हकया हँ! देखो कै सा जुबान चल रहा है! कै से
रहते हो ई नरकवा में, भाईसाहब!
Pehla-अरे! ये तो कु छ बोल ही नहीिं रहे हैं! लगता है हाथ कु छ ज्यादा ही भारी पड़ गया बे! अभी तक
असर है। हीहीही।
Mr. Mehta- ये सब क्ा हो रहा है? हम यहाँ कै से आ गये माहलनी? कौन हो आप दोनोिं?
Mrs. Mehta- गहजनी में तो देखा था, हतौड़ा मारा तो आहमर खान की याददाश्त गयी थी, यहाँ तो एक
ही हाथ में चली गयी।
Pehla- ह्म्म।
Mrs. Mehta- मैं इस हिल्म की पूरी cast पर case करूँ गी ....हदखाते कु छ है और होता कु छ
है...consumer कोटा में घसीटूँगी इनको मैं.....ये तो कु छ वैसा ही हुआ जैसे अनार कहकर अचार
पकड़ा हदया जाये! गुरार!
Dusra- सही कह रहीिं हैं मैडम! ये तो ससुर गहजनी वाला case हो गया। कम्पलीट याददाश्त गया।
Mrs. Mehta- लेहकन मुझको तो पहचान रहे हैं मेरे प्राणनाथ! शायद थोड़ी याददाश्त गयी है। हीहीही!
(अचानक) ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है कमीनो!...मैं तम्हारा खून पी जाऊिं गी! ..मैंने घर जा कर
इनको बेलन और हचमटे से धरने का प्लान बनाया था ...लेहकन तुम लोगो ने पहले ही उनके गाल पर
धर हदया! गुरार!
Pehla- ये क्ा मैडम ! ...कॉमेडी नाइट्स हवद कहपल से सीधा WWF! ये तो चीहटिंग है!
Dusra- रे भैंस की पूँछ! ये तो 'लेडी धमेंद्र ' है रे...खून पीयेगी! भागो! हीहीही!
Pehla- और वैसे भी मैडम! आपका हस्बैंड तो साबुत ही है न ...आराम से घर जाकर वापस धरना
ससुर को! P K तो देखी ही होगी!...टक्कर लगने से याददाश्त जावे है तो दू सरी टक्कर से आ भी जावे
है! हीहीही!
Mr. Mehta - बहुत हुई तुम सब की बकवास... अब ज्यादा....
(इतने में वहाँ एक स्पेशल बाइक की आवाज़ आती है और हिर आता है राजनगर का रक्षक सुपर
कमािंडो ध्रुव! और साथ ही आते है पीटर और रेनू।)
(ध्रुव अपने बेल्ट से एक अजीब सा हडवाइस हनकालकर उसको एत्यक्टवेट करता है।हडवाइस हवा में
200 फ़ीट ऊपर जाकर िट जाता है और उससे एक लाल गैस हनकलती है हजससे झगड़ रहे चारो
लोग बेहोश हो जाते हैं।)
Dhruv- पीटर इन लोगो को हॉत्यस्पटल पिंहुचा दो...जब ये होश में आयेंगे तो इनका अपने मत्यततष्क पर
वापस हनयिंत्रण होगा। लेहकन इस एिं टीडोट की वजह से कु छ घिंटोिं के हलए कमजोरी महसूस होगी।
Peter- ठीक है कै प्टेन!
Dhruv-रेनू! तुम श्वेता और डा० हप्रशा से कहकर ढेर सारी एिं टीडोट बनवाओ ताहक पूरे राजनगर पर
एक साथ उसका प्रयोग कर सकें ।अभी रात का वक़्त है लेहकन असली समस्या तो आज सुबह को होगी
जब लाखो लोग सो कर उठें गे और अपने मत्यततष्क पर से हनयिंत्रण खो बैठें गे। ऐसी त्यस्थहत में प्रशासन भी
लाचार हो जायेगा।
Renu- मैंने करीम को कॉल करके बोल हदया है कै प्टेन! मगर ये मानहसक हनयिंत्रण खो बैठना, और
इतना जल्दी उसका एिं टीडोट तैयार होना!ये सब क्ा है कै प्टेन ?
Dhruv- ये सिंयोग की बात है। राजनगर की बायोलॉजी लैब की हेड साइिंहटस्ट् डॉ०हप्रशा और श्वेता की
चार महीने पहले मुलाकात हुई थी, और इस मुलाकात में एक प्रोजेक्ट पर साथ काम करने की
सहमहत बनी।
Renu- कै सा प्रोजेक्ट कै प्टेन?
Dhruv- डॉ० हप्रशा मानहसक रूप से हवहक्षप्त लोगो को ठीक करने के हलए एक ररसचा कर रही
थीिं.....और श्वेता भी एक जीहनयस साइिंहटस्ट् है...और इसीहलए डा० हप्रशा इस प्रोजेक्ट में श्वेता को लेना
चाहती थीिं। तीन महीने बाद इस प्रोजेक्ट को एक बड़ी सिलता हमली...जब ये पता चला की िेन को
कमािंड करने के हलए कु छ ऻास प्रकार के िेन सेल्स होते हैं और मानहसक रूप से हवहक्षप्त लोगो के
िेन में ये सेल्स पूणा क्षमता से काया नहीिं कर रहे थे,हजसकी वजह से नवा सेल्स से इनका पूणा सामिंजस्य
नहीिं हो पाता था। इसकी वजह से हनणाय लेने और सोचने-हवचारने की क्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता
था।
Renu- हिहलयिंट! श्वेता ने एक बार हिर खुद को साहबत कर हदया!
Dhruv- डा० हप्रशा को मत भूलो!...ये उनका ही आईहडया था और इस प्रोजेक्ट में उनका और उनकी
टीम का बहुत बड़ा योगदान है।
Renu- हम्म। आगे बताओ कै प्टेन।
Dhruv-इसके बाद उन सेल्स पर कई एक्सपेररमेंट हकये गये। लेहकन सिलता स्ट्ेम सेल्स के साथ
हमली। जब स्ट्ेम सेल्स को ऻास किं टेनसा में ऐसी पररत्यस्थहतयोिं में रखा गया जैसी हक स्त्री के गभा में होती
हैं तो स्ट्ेम सेल्स से कई नए सेल्स उत्पन्न हुए। उनमे ये िेन सेल्स भी थे। ये सेल्स िेन की, बॉडी पर
कमािंड को हनदेहशत करते हैं, consciousness बढ़ाते हैं। इन सेल्स से सटीक हनणाय लेने में मदद
हमलती है। जो लोग मानहसक रूप से मजबूत होतेहैं,उनके ये सेल्स बहुत एत्यक्टव होते हैं।
Renu- तुम इतने यकीन से कै से कह सकते हो?
Dhruv-जब शुरू शुरू मे इन सेल्स के बारे में मालूम पड़ा तो इनका अध्ययन हकया गया।नतीजे
चौकाने वाले थे.....इन सेल्स में अपना खुद का हदमाग था।तभी मैंने सोचा इन सेल्स को महामानव के
सेल्स से compare करते हैं। धनिंजय की मदद से महामानव का सैंपल हमारे हाथ लग गया।
Renu- अब ये महामानव बीच में कहा से आ गया?
Dhruv- सोच कर देखो रेनू,महामानव एक अहतहवकहसत मत्यस्तष्क वाला प्राणी है... लेहकन ऐसा क्ा है
जो उसका हदमाग इतना हवकहसत है? इसका जवाब आसान नहीिं था और एक सिंभावना मेरे सामने थी।
मैंने इसकी जािंच करने का हनणाय ले हलया। और देखो ...इस बार जवाब हमें हमल गया। वो ये सेल्स ही
हैं, हजन्होिंने महामानव को महामानव बनाया। बस महामानव के सेल्स हवकहसत थे और ये सेल्स अभी
भ्रूण हैं। इस प्रकार हमें इन सेल्स का महत्त्व समझ में आया।
Renu- interesting! और इसी बीच आज रात को ये हदमाग वाली बीमारी शुरू हुई, और तुमको ये
सेल्स का इस्तेमाल करने का आईहडया सूझा।
Dhruv- हा ये इिेिाक की बात है हक हमारे पास इलाज पहले से था....और इसीहलए एिं टीडोट समय
से तैयार हो गया...वनाा कल की तस्वीर बहुत भयानक हो सकती थी।
Renu- लेहकन तुमको इस ररसचा की इतनी हडटेल्स कै से मालूम है captain!
क्ा िाइम िाइहटिंग छोड़कर साइिंहटस्ट् बनने वाले हो!
Dhruv- हा! हा! हा! मैंने श्वेता की थीहसस पढ़ी थी इसीहलए मुझे ये सब मालूम है।
लेहकन,इस बीमारी के पीछे हकसका हाथ है, ये पता लगाना बहुत जरुरी है। ये प्राकृ हतक तो नहीिं है।
Renu- ये जरूर हकसी microbiologist का काम होगा कै प्टेन! िेन सेल्स को डैमेज पहुचाना हकसी
आम साइिंहटस्ट् की बस की बात नहीिं।
और डा० वायरस अभी हपछले महीने ही जेल से ररहा हुआ है।
Dhruv- हम्म! वह इतने समय से तो खामोश है।मुझे कन्फमा करना होगा।
तुम श्वेता के पास जाओ और जैसे ही एिं टीडोट तैयार हो , उसे राजनगर के atmosphere में िै ला
देना। मै डा० वायरस की छान बीन करता हँ।
Renu-ओके कै प्टेन! गुड लक!
(ध्रुव अपने हमत्र पशु पहक्षयोिं को वायरस को ढूँढने के काम पर लगा कर हटता ही है, तभी उसके
टरािंसमीटर पर एक अिंजान फ्रीक्वें सी से कॉल आती है।)
हपिंग हपिंग
Dhruv- ध्रुव हीयर!
Ajnabi- हेल्रो ध्रुव!
Dhruv- कौन हो तुम? और मेरे टरािंसमीटर पर कनेक्ट कै से कर हलया? ये तो कोडेड है।
Ajnabi-ऐसे बचकाने सवाल पूछकर अपनी समझदारी पर सवाल खड़े मत करो ध्रुव!
Dhruv-में तुम्हारी तरह िु सात में नही हँ। पहेहलया मत बुझाओ! मुझे हकसहलए कॉल हकया?
Ajnabi- अब तुमने अक्लमिंदी भरा सवाल पूछा!....तो सुनो,.....तुम्हारा डा० वायरस पर शक सही है।
इन घटनाओिं के पीछे उसका ही हाथ है।
Dhruv- तुम्हे कै से मालूम मुझे हकस पर और क्ोिं शक है? कौन हो तुम? और मुझे ये सब क्ोिं बता रहे
हो?
Ajnabi- इतने सारे सवाल! हाहाहा! लेहकन जवाब एक ही हमलेगा कमािंडो! आम खाओ, पेड़ मत हगनो।
Dhruv- तुम कु छ ज्यादा ही रहस्यमयी बन रहे हो! मैं तुम्हारा यकीन कै से करूँ ?
Ajnabi-यकीन करना है या नहीिं, ये हनणाय तुम्हारे हाथ में है। हवदा ध्रुव! जल्द ही मुलाकात होगी।
(कॉल कट जाती है।)
Dhruv- ( कौन था ये रहस्यमयी शख्स? इसकी बातोिं से एक चीज स्पष्ट है,..मामला ऊपर से जैसा
नजर आता है, असल में उससे कहीिं गहरा और उलझा हुआ है। इसका बोलने का लहजा भी कु छ
अलग था....ये मुझे हकसी की याद हदलाता है...लेहकन हकसकी? ऐसा क्ोिं लगता है जैसे में इसको
पहले से जानता हँ? मुझे कु छ बुरा होने का आभास हो रहा है।और जल्द मुलाकात होने का क्ा
मतलब है? हमलना ही है तो खुद को इतना गुप्त क्ोिं रख रहा था...पररचय क्ोिं नहीिं हदया?
कु छ तो गड़बड़ है। सतका रहना होगा।)
(ध्रुव करीम से सिंपका करता है।)
Kareem- यस कै प्टेन! करीम हीयर!
Dhruv- राजनगर के सभी cctv िु टेज चेक करो। देखो डा० वायरस राजनगर में कहाँ है।मुझे ऐसी
सभी जगहोिं की हलस्ट् चाहहए जहाँ कहीिं भी वह जेल से ररहा होने के बाद गया है। और कै डेट्स को
वहाँ भेजकर वायरस की गहतहवहधयोिं की जानकारी इकठ्ठा करो।
Kareem- मैं समझ गया कै प्टेन।
( ध्रुव हडसकनेक्ट कर देता है। तभी कु छ पक्षी उसको वायरस के हठकाने का पता देते हैं।)
Dhruv- (इस बार कु छ अजीब हो रहा है, मुझे खास तैयारी करनी होगी। तब तक करीम भी लोके शन
कन्फमा कर देगा।)
Same time, unknown place-
Ajnabee- अभी तक सब कु छ उसी प्रकार हो रहा है कु शाग्र , जैसी हमने कल्पना की थी।
kushagr- आप महान हैं श्रेष्ठ! आपका उद्देश्य महान है, आपकी योजना जरूर सिल होगी।
Ajnabi- तुम भूल रहे हो, ध्रुव आज तक हकसी से नहीिं हारा।और वह समय नजदीक है , जब उसे
अपने अत्यस्तत्व का भान होगा,अपनी ताकत का पूणा ज्ञान होगा। ऐसी त्यस्थहत में हम सोचने को मजबूर
हैं, क्ा हमने वायरस को चुनकर सही िै सला हलया है?
Kushagr- ताकत से ध्रुव को नहीिं जीता जा सकता श्रेष्ठ! वह कोई न कोई युत्यक्त खोजकर, उसका
अपने प्रहतहद्वन्दी पर ही इस्तेमाल कर लेता है।उसको हराने के हलए उसके हदमाग पर वार करना
होगा। आप हनहििंत रहहये, मैंने वायरस को सारी योजना समझ दी है।
Ajnabi- हमें तुम पर पूणा हवश्वास है कु शाग्र, ध्रुव पर कतई नहीिं है।
Kushagr- आप बस देखते जाइये श्रेष्ठ! आज सूया बुझ सकता है,पृथ्वी अपनी गहत करना छोड़ सकती
है, इस सृहष्ट के समस्त हिया-कलाप रुक सकते हैं...सब कु छ बदल सकता है, नहीिं बदलेगी, तो बस
एक चीज....सुपर कमािंडो ध्रुव की हार! हाँ आज हारेगा ध्रुव और आज़ाद करेगा उसको, ऻत्म करेगा
उसका इिंतजार....हजसके हलए ध्रुव ने ली थी - "प्रेम प्रहतज्ञा!"
(भाग एक समाप्त।)
कौन हैं अजनबी और कु शाग्र? ध्रुव के हलए वायरस ने क्ा तैयारी कर रखी है जो कु शाग्र इतना आश्वस्त
है? कौन है वह जो कर रहा है ध्रुव का इिंतजार, हकसके हलए ध्रुव ने ली है प्रेम प्रहतज्ञा? इन सब सवालो
का जवाब हमलेगा अगले भाग - 'प्रेम प्रहतज्ञा' में।
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Indian Comics Fandom (Vol. 11)

  • 1.
  • 2. Indian Comics Fandom (Volume #11) News, photos and Updates: Diamond Comics, Tinkle, Campfire Graphic Novels, Tamil Comics, Champak, Lot Pot, Jasoos Babloo, Red Streak Publications, Raj Comics, Amar Chitra Katha, Holy Cow Entertainment, Meta Desi Comics, TBS Planet Comics, Yali Dreams Creations, Anik Planet, Kavya Comics, Premeir Artfx Studio, Green Humor, MB Comics Studio. Special: Artist-Author Akshay Dhar Interview, Late Writer Ved Prakash Sharma (Tribute), Artist Gaman Palem, ICF Awards 2016 Champions Corner Contributors: Vipul Dixit, Vyom Dayal, Aakash Kumar, Mohit, Avyact, Youdhveer Singh, Rishabh Kurmi, Sanjay Singh Editor: Mohit Trendster Freelance Talents (March 2017)
  • 3. *) - Red Streak Publications Ashes – Adish Origin Mr. Abhishek Bose (Comic Con India - Delhi, December 2016)
  • 5. *) - Girl with a Red Nose Ring Horror Graphic Novel, Sivappu Kal Mookuthi / Girl with a Red Nose Ring (MB Comics Studio)
  • 6. Creator and Writer - Nandhini JS Illustrators - Magesh.R and Sainath.B Assistant Writer - Gerald Rakesh Synopsis: A young man struggles against a deadly supernatural entity who possesses his loving wife when she wears a mysterious red nose ring.
  • 7. *) - Inspector Rishi Inspector Rishi is a detective comics (webcomics) series written and illustrated by Nandhini JS. It follows the mystery-solving adventures of Rishi Nandhan, a fictional police inspector from the Criminal Investigation Department, Tamilnadu, India.
  • 8. The first story in the series, 'The Legend of Vana Yakshi' has been conceptualized by Nandhini JS along with freelance writer Sujatha Natarajan. In this, the skeptic and quick- minded Rishi investigates a series of bizarre murders in a small mountain village supposedly by a mythical ‘vana yakshi’ (native name for a blood sucking forest nymph). Read it online at http://inspectorrishi.in/ Available in Tamil and English.
  • 10.
  • 11. *) - Karna: Victory in Death (Campfire Graphic Novels) ACK Workshop
  • 12. *) - Holy Cow Entertainment Superhero Caster
  • 13. *) – Tamil Comics Tamil Comics - Moolai Thirudargal (மூளை திருடர்கை்) starring Johny Nero & Stella
  • 14. Artist Gaman Palem Gaman Palem is an Indian comic book illustrator. He has illustrated more than 100 Indian children's comics, working mainly on mythological subjects. Education in Mass Communication took Gaman Palem, Chennai, to procure a doctorate degree in the same subject from the Madurai Kamaraj University, Tamil Nadu. However, Palem’s mind was not glued to academics. A true graphic visualizer and an avid follower of graphic novels from all over the world, Palem decided to set sails into the larger ocean of graphic visualizing and today he is one of the highly acclaimed graphic designers and an artist who uses graphic novel format as a medium to express his ideas. With a deep understanding of Indian mythologies as well as their regional versions and interpretations, Gaman Palem makes use of his knowledge for creating a series of works that blend the mythical characters to contemporary contexts. Gaman's first series of eight picture books, The Golden Mythology Series, won the National Award for Excellence in Printing Children's Books. Gaman Palem worked at Loyola College of Education in Chennai, Tamil Nadu, was a visiting faculty at Raffles College, a creative consultant in many publishing houses and animation studios. He became interested in comics at a very young age of two. Later, it just became a passion. He also works in 3D animation, but is more interested in creating graphic novels and comics. Gaman's artistic style is influenced by Indian iconography,
  • 15. combining the traditional illustration techniques of watercolour, pen and ink with modern digital techniques. His debut art show was in September at The United Art Fair 2012. An exhibition on Freedom to March with Ojas Gallery 2013, New Delhi, where he interpreted Mahatma Gandhi, Dandi march, in his unique graphic novel format and in Punebiennale 2015 with 'Swachh Bharath' in his own unique graphic narrative manner. Gaman Palem lives and works in Chennai. His works have been published in major graphic magazines, journals and he has exhibited widely in India.
  • 16. *) – Anik Planet (January 2017 Issue) Publisher – Comics Our Passion
  • 18. *) - Nonte Phonte Nonte Phonte is a Bengali comic-strip (and later comic book) creation of Narayan Debnath which originally was serialized for the children's monthly magazine Kishore Bharati. The stories featuring in the comic strips focusses on the trivial lives of the title characters, Nonte and Phonte, along with a school-senior, Keltuda, and their Hostel Superintendent. The comics have appeared in book form and have been recreated since 2003 in colour. A popular animation series based on the characters has also been filmed. Batul the Great
  • 19. *) – Kavya Comics (Freelance Talents) Kavya Comics (Volume 4)
  • 20. Kadr (Kavya Comics Series) Illustrator – Deepjoy Subba Colorist – Harendra Saini Writer, Poet – Mohit Sharma (Trendster) Letterer – Youdhveer Singh
  • 21. Jug Jug Maro #1 – Muawza Illustrator – Abhilash Panda Colourist – Harendra Saini, Jyoti Singh Writer – Mohit Sharma Trendser Letterer – Youdhveer Singh
  • 22. *) - स्वगीय वेद प्रकाश शमाा जी को श्रद्ाांजलि मुझे हहिंदी साहहत्य की कु छ बातें कभी समझ नहीिंआईिं। वेद प्रकाश शमाा की खामोश मृत्यु ने बहुत से प्रश्न मन में खड़े हकये। करोड़ोिं लोगोिं द्वारा पढ़े गए लेखक के न तो कोई इिंटरव्यू हकसी पत्र पहत्रका और टी वी में मुझे हदखे न ही हकसी साहहत्यत्यक सिंस्था ने उन्हें कभी सराहा। पुरुस्कार तो दू र। जब व्यावसाहयक हसनेमा के लेखकोिं हनदेशकोिं को पद्मश्री जैसे पुरुस्कार हमले तब इतने सस्ते में बेहद मनोरिंजक और मौहलक हलखने वाले लेखक को क्ोिं नहीिं। हहिंदी साहहत्य में मैंने एक अजीब झुकाव देखा हक जो भी बहुत प्रचहलत हो जो भी हकताब या रचना बहुत हबके उसे कु छ दरहकनार कर दो। हजसमें भी बेचने की प्रवृहि हो , व्यवसाय हो आम पाठकोिं तक पिंहुचने या लोकहप्रय होने की प्रवृहि हो उसे रचना को पढ़े और समझे हबना ही घहटया, बाज़ारू ,लुगदी साहहत्य जैसे नाम दे दो। मैंने प्रेमचिंद, जयशिंकर प्रसाद,शरतचिंद्र,हशवानी,अमृताप्रीतम, मन्नू भिंडारी,महादेवी वमाा, अज्ञेय, हनमाल वमाा श्रीलाल शुक्ल , वगैरह को पढ़ा तो वेद प्रकाश शमाा और सुरेंद्र मोहन पाठक को भी। कोई भी रचना, पररवेश, चररत्र ,घटनाओिं के तारतम्य ,समय काल, क्लाइमेक्स की अहनहितता, पात्रोिं की सिंवेदना से हदल को छू ती बनती है और यही तो साहहत्य है। हिर वेद प्रकाश के उपन्यासोिं में भी अच्छाई की ही जीत अिंततः होती थी। सरोकार और सन्देश तो थे ही। मनोरिंजन की प्रमुखता के बावजूद। उनके चररत्र आम जीवन के थे और चररत्र हचत्रण बेहद सुदृढ़ था। उनके वाक् मत्यस्तष्क में वीहडयो से हचत्र उके र देते थे और पात्रोिं से नायक की हर खोज़ पर गवा का अहसास देते थे मानो वो नायक हमारा अपना कोई हो। जानबूझ कर त्यक्लष्ट हलखना ही हहिंदी साहहत्य तो नहीिं? दू सरा हहिंदी में हहिंदी के प्रोिे सर और हहिंदी के हशक्षकोिं से परे अन्य व्यवसाय से हलखने वाले लोगोिं के हलए बड़ी मोटी दीवारें बना दी गईिं। जबहक अलग अलग पररवेश और व्यवसायोिं से आने लेखकोिं से रचनाओिं में हवहवधता और नए प्रयोग आने की सम्भावना बढ़ ज़ातीिंहै। सफ़लता की प्रहिया को इस क्षेत्र में जानबूझ कर बड़े त्यक्लष्ट, और दृढ हनयमोिं के द्वारा धीमा बना हदया गया। हहिंदी साहहत्य से हकसी
  • 23. प्रकाशक को अच्छी कमाई होना और लेखक के पररवार का गुज़र हो सकना असिंभव है। ऐसे में नयी प्रहतभाओिं को न तो अच्छे प्रकाशक हमलते न ही पाठकोिं को अच्छी हकताबें। नयी पीढी तो वैसे भी हहिंदी पढ़ने के नाम से मुिंह बनाती है। भारत के मुख्य लेखकोिं के नाम पूछो तो चेतन भगत, शोभा डे, अमीश हत्रपाठी जैसे अिंग्रेज़ी लेखकोिं के ही नाम लोग देखेंगे हपछले एक दशक में। मज़ेदार बात आत्म मुघ्द, हम हहिंदी वाले इन लोकहप्रय लेखकोिं को भी स्तरहीन कह कर दरहकनार कर जाते हैं। लेहकन नयी हहिंदी हकताबोिं को इस स्तर पर लोकहप्रय बनाने और माके हटिंग के कड़वे सच को स्वीकारने हम तैयार नहीिं। हबना पैसोिं के अच्छी हकताबें, अच्छा हडस्ट्रीब्यूशन असिंभव है। ऐसे में वेद प्रकाश शमाा ने जो हकया वह बेहद प्रशिंसनीय है। बेहद सस्ती ,सुलभ हकताबें ज़गह ज़गह ,स्ट्ेशन स्ट्ेशन। ऐसी कालजयी रचना का क्ा अथा जो मात्र 10 लोगोिं द्वारा पढी गयी हो। पुरुस्कृ त हो। लेहकन आलमारी में धूल िािंकते या लेखक के झोले से फ्री हगफ्ट के रूप में बिंटती हो। सुनील गावस्कर आया तो सबने कहा अब कोई न आएगा.... सहचन आ गया। सहचन था तो हम सब कहते रहे अब कोई न आएगा..... हवराट आ गया। लेहकन हहिंदी साहहत्य में रचनाओिं का लेखकोिं का सूखा क्ोिं नज़र आता है? जबहक मानव मत्यस्तष्क समय के साथ हर क्षेत्र में पररष्कृ त ही होते जाता है। हिर हहिंदी साहहत्य में क्ोिं कोई नया बड़ा नाम नहीिं हदखता। वज़ह प्रहतभा की कमी तो हो ही नहीिंसकती क्ोिंहक प्रकृ हत समयकाल में ऐसा असुिंतलन कभी नहीिंरखती। वज़ह उस पूरे अज़ीब से त्यक्लष्ट ,बिंद अँधेरे कमरे से हसस्ट्म में है हजसमें न तो पारदहशाता है न ही कोई सुलभ मिंच। उस बिंद ,सीडन भरे पुराने अँधेरे कमरे का दरवाज़ा ही नया लेखक ढूिंढ नहीिंपाता। कुिं हठत हो लौट जाता है। 90 प्रहतशत हहिंदी भाषी या भाषा को समझने वाले देश में 10 प्रहतशत अिंग्रेज़ी साहहत्य की अमीरी के और हहिंदी के हाहशये में जाने के मुख्य कारण हैं, त्यक्लष्टता, आत्ममुघ्दता, आत्म कें हद्रत, गुट बाज़ी, बेहद पुराने हनयम और एक दू सरे को आगे न बढ़ने देने, आम पाठक को सतही समझने की प्रवृिी का हशकार है हहिंदी साहहत्य की मुख्य धारा। जहाँ रचना को नहीिंरचनाकार को पढ़ा जाने लगा। हफ़र कोई रचना किं प्यूटर पर टाइप हो, मोबाइल पर या कागज़ पर रहेगी तो रचना ही। लेहकन इिंटेरनेट पर हलखने वालोिं को लुगदी साहहत्य की ही तरह सतही साहहत्य कह दरहकनार करने की प्रवृहि भी हदखती है। वे लोग रचना को नहीिं, माध्यम को और रचनाकार को महत्त्व देने लगे। जबहक आज अिंग्रेज़ी हकताबोिं का मुकाबला सही मायनोिं में ऑनलाइन उपत्यस्थहत वाले लेखक ही कु छ हद तक कर पा रहे हैं। करोड़ोिं लोगोिं को मन्त्र मुघ्द करती रचनाएँ लल्रू, वदी वाला गुिंडा बुरी कै सी हो सकती हैं। हजस तरह व्यिंग्य एक हवद्या है साहहत्य की, जासूसी लेखन को भी वह स्वीकायाता हमलनी ही चाहहए। हालाँहक मैं इस बात से सिंतुष्ट हँ हक महान वेद प्रकाश शमाा कॉिी हाउस की गुटबाहज़योिं , पुरुस्कारोिं की जोड़ तोड़, पहत्रकाओिं की लल्रो चप्पो, सेहलहिटी और राजनीहतज्ञोिं के तलवोिं के मोहताज़ कभी नहीिंरहे। बस हलखते रहे और हदलोिं में राज़ करते रहे। उनकी सफ़लता सच्चे मायनोिं में एक लेखक की सफ़लता है। उन्हें हदल से श्रद्ािंजहल। अव्यक्त अग्रवाल ================
  • 24. कहते हैं हक हररद्वार में रहने वाले गिंगा जी में नहीिंनहाते। वैसे नहाते तो होिंगे पर कहने का मतलब यहाँ कु छ और है...हक जो बात करने में बहुत आसान हो उसे हम "ये तो कभी भी हो जाएगा" कहकर टाल देते हैं। आज प्रख्यात लेखक वेद प्रकाश शमाा जी के हनधन का समाचार हमला। 2015 में Parshuram Sharma जी का साक्षात्कार हलया था, उसके बाद उनसे कभी-कभार हमलना हो जाता था। वैसे परशुराम जी से हमलना एक सिंयोग था, नहीिंतो शायद वह बात भी टालता रहता। एक-दो बार तो यूँ ही टहलते हुए हमल गए। Ved prakash sharma जी से मेरठ में हमलना हकसी ना हकसी कारण से टलता रहा। हदसम्बर 2013 में हदल्री में आयोहजत कॉहमक िे स्ट् इिंहडया इवेंट में उन्हें नमस्ते कर बस उनके हाल-चाल पूछ पाया और एक-दो बार कहीिंजाते हुए उनकी झलक हदखी। मैंने तुलसी कॉहमक्स में उनकी हलखी कु छ कॉहमक्स पढ़ी और कु छ उपन्यास पढ़े। बाद में एक हमत्र ने बताया हक मेरे पास रखे उपन्यास वेद जी की बेस्ट् सेलर कृ हतयािं नहीिंहैं। हिर वही टालने की आदत में सोचा कभी बाद में आराम से पढता हँ। अब लगता है जब मैं मेरठ में रहता था तो हकतने हदन ऐसे थे जब मैं उनके पास जा सकता था और उनका साक्षात्कार ले सकता था। जब आप हकसी कलाकार, रचनाकार के साथ तसल्री से बैठते हैं तो उनके अनुभव, मेहनत के असिंख्य क्षणोिं के हनचोड़ के कु छ कणोिं का अमृत वो हनस्वाथा आपसे बाँट लेते हैं। एक सबक मेरे और आप सबके हलए हक काम होने से पहले उसे पूरा हकया हुआ ना मान बैठें । वेद जी को नमन व श्रद्ािंजहल! भगवान उनकी आत्मा को शात्यि दे। RIP - मोहहत शमाा
  • 25. *) - Interview with Akshay Dhar (Meta Desi Comics) - ल ांदी साक्षात्कार कािी समय से कॉहमक्स जगत में सिीय लेखक-कलाकार-प्रकाशक अक्षय धर का माचा 2016 में साक्षात्कार हलया। जानकार अच्छा लगा हक भारत में कई कलाकार, लेखक इतने कम प्रोत्साहन के बाद भी लगातार बहढ़या काम कर रहें हैं। पेश है अक्षय के इिंटरव्यू के मुख्य अिंश। - मोहहत शमाा ज़हन Q - अपने बारे में कु छ बताएां ? अक्षय - मेरा नाम अक्षय धर है और मैं एक लेखक हँ। लेखन मुझे हकसी भी और चीज़ से ज़्यादा पसिंद है। मैं मेटा देसी कॉहमक्स प्रकाशन का सिंस्थापक हँ। अपने प्रकाशन के हलए कु छ कॉहमक्स का लेखन और सिंपादन का काम भी करता हँ। अपने काम में हकतना सिल हँ, यह आप लोग बेहतर बता सकते हैं।
  • 26. Q - प िे और अब आलटास्ट व िेखकोां में क्या अांतर म सूस लकया आपने? अक्षय - कॉहमक्स के मामले में ज़्यादा अिंतर नहीिं लगता मुझे, क्ोहक हवदेशो की तुलना में भारत में कभी भी उतना हवस्तृत और प्रहतस्पधाात्मक कॉहमक्स कल्चर नहीिं रहा। हाँ हपछले कु छ वषों में हवहभन्न कलाकारोिं, लेखकोिं का काम देखने को हमल रहा है। हिर भी पहले लेखकोिं की िोल्रोहविंग अहधक थी, यह त्यस्थहत धीरे-धीरे हचत्रकारोिं, कलाकारोिं के पक् ष में झुक रही है। भारत के साथ-साथ अन्य देशो के कॉहमक इवेंट्स में लेखकोिं की तुलना में कलाकारोिं अहधक आकषाण का कें द्र रहते हैं। अब कॉहमक्स की कहाहनयोिं और कला में बेहतर सिंतुलन देखने को हमल रहा है। Q - आपके पसांदीदा किाकार, िेखक और क्योां? अक्षय - मेरे पसिंदीदा लेखक और कलाकार पािात्य प्रकाशनोिं से हैं क्ोहक वहािं जैसे प्रयोग, अनुशासन और अनुभव भारत में कम देखने को हमलते हैं। लेखकोिं में मैं Mark Waid, Greg Rucka, Jim Zum, Jeff Parker, Grant Morrison, Garth Ennis, Gail Simone and Warren Ellis का काम बड़े चाव से पढता हँ। कलाकारोिं में Geof Darrow and J.H.Williams. हालािंहक, Adam Hughes, Stjepan Sejic and Darick Robertson जैसे आहटास्ट््स का काम मुझे अच्छा लगता है। Q - अपने देश में कॉलमक्स का क्या भलवष्य देखते ैं? अक्षय - भारत में बहुत सम्भावनाएिं है। कला, कहाहनयोिं-हकवदिंहतयोिं-हकस्ोिं के रूप में हमारे पास अथाह धरोहर है। हमारे इहतहास में इन कलाओिं के कई उदाहरण है। इतनी सिंभावनाओिं के होने के बाद भी आम देशवासी का नजररया कॉहमक्स के प्रहत बड़ा नकारात्मक और हनराश करने वाला है। अगर लोग कॉहमक्स को बच्चोिं की तरह बड़ो के हलए भी माने और उनको साहहत्य में जगह दें। कॉहमक्स को नकारने के बजाये एक कहानी, हशक्षा को बताने का साहहत्यत्यक तरीका मानें, तो भारतीय कॉहमक्स बहुत जल्द बड़े स्तर पर आ जाएिं गी। Q - इांलडपेंडेंट कॉलमक्स प्रकालशत करना इतना मुश्किि काम क्योां ै? अक्षय - भारत में इिंहडपेंडेंट कॉहमक्स बनाना और प्रकाहशत करना बहुत मुत्यिल हैं, क्ोहक - 1. "बचकानी चीज़" कॉहमक्स की जो छहव बनी है देश के लोगो के हदमाग में वो सबसे बड़ी बाधा है। लोगो को थोड़ा लचीला होना चाहहए।
  • 27. 2. दुभााग्यवश, पहले से ही कम कॉहमक पाठकोिं में अहधकतर भारतीय कॉहमक िैं स कु छ हकरदारोिं या 2-3 प्रकाशनोिं के अलावा हकसी नयी कॉहमक को पढ़ना पसिंद नहीिं करते। बैटमैन, नागराज, चाचा चौधरी पहढ़ए पर नए प्रकाशनोिं को भी ज़रूर मौका दीहजये। Q - अब तक का अपना सबसे चुनौतीपूर्ा और सवाश्रेष्ठ काम लकसे मानते ैं और क्योां? क्षय - ग्राउिंड जीरो ऍिं थोलॉजी के अिंहतम 2 कॉहमक्स के बारे में सोचकर गवा महसूस करता हँ। यह काम दजान भर से अहधक उन लोगो की ऐसी टीम के साथ हकया हजन्हे कॉहमक्स के बारे में कोई अनुभव नहीिं था। मुझे प्रकाशन का अनुभव नहीिं था हिर भी हजस स्तर की ये कॉहमक्स बनी है देख कर अच्छा लगता है। साथ ही पाठको को हर कॉहमक्स के साथ हमारे लेखन, कला में सुधार लगेगा। रैटर ोग्रेड के हलए मन में एक सॉफ्टस्पॉट हमेशा रहेगा। हदल्री में आयोहजत, भारत के पहले कॉहमक कॉन में पॉप कल्चर द्वारा प्रकाहशत मेरी यह कॉहमक पाठकोिं द्वारा कािी सराही गयी थी। यह एक बड़ी कहानी है, हजसे मैं आगे जारी करना चाहता हँ, हजसपर हवचार चल रहा है। अभी तक इवेंट्स में लोग हमारे स्ट्ाल पर रूककर इस कॉहमक, कहानी के बारे में पूछते हैं। Q - मेटा देसी कॉलमक्स के अब तक के सफर के बारे मे बताएां । अक्षय - मेटा देसी कॉहमक्स की शुरुआत मैंने उन प्रहतभाओिं को मौका देने के हलए की थी, हजनसे मैं अपने देश भर में कॉहमक इवेंट्स के दौरान हमला था। अपनी तरि से कु छ कलाकारोिं, लेखकोिं की मदद के हलए यह कदम उठाया था। धीरे-धीरे इसका इतना हवस्तार हुआ हक अब मेटा देसी की अच्छी- खासी िॉलोइिंग है। ग्राउिंड जीरो सीरीज में 3 कॉहमक्स आने के बाद अब हमनें पाठको की मािंग पर अहभजीत हकनी द्वारा बनाए गए होली हेल को अलग कॉहमक दी है। जातक माँगा के रूप में हमारी वेबसाइट पर वेबकॉहमक चल रही है। हजसमे हम हबना शब्ोिं का प्रयोग कर माँगा स्ट्ाइल में जातक कथाएिं बना रहें हैं। हाल ही में चेररयट कॉहमक्स के साथ हमलकर एक नयी लाइन आईसीबीएम कॉहमक्स की शुरुआत की है, हजसमे पाठको को अलग अिंदाज़ में कु छ कॉहमक्स हमलेंगी। ऐसा करने से प्रकाशन में हमारा खचा भी साझा हुआ है।
  • 28. Ground Zero (Vol. 1) Q - कॉलमक कॉन जैसे इवेंट्स में क्या सुधार ोने चाल ए? अक्षय - कॉहमक कॉन में दोनोिं तरह की बातें है। एक तरि इतने बड़े इवेंट के रूप में कई इिंहडपेंडेंट पत्यिशर, रचनाकारोिं को एक प्लेटिामा हमलता है, वहीिं दू सरी और उनपर मकें डाइज, हगफ्ट आहद किं पहनयोिं को अहधक स्ट्ाल देकर कॉहमक इवेंट को डाइल्यूट करने की बात कही जाती है। मेरे मत में अगर प्रकाशनोिं से उन्हें पयााप्त सेल नहीिं हमल रही तो अपना व्यापार बनाए रखने के हलए और आगे के इवेंट्स करने के हलए उन्हें अन्य किं पहनयोिं की ज़रुरत पड़ती है। यह कम करने के हलए हमे इवेंट्स पर और कॉहमक्स िैं स की ज़रुरत है। जो हमारी कॉहमक्स खरीदें और हमे बताये हक हम क्ा सही कर रहें है, कहाँ हम गलत हैं, हकस हकरदार या रचनाकार में क्ा सम्भावनाएिं है। Q - भलवष्य में कॉलमक्स से जुडी योजनाओां के बारे में जानकारी साझा कीलजये। अक्षय - अभी कु छ प्रोजेक्ट्स शुरुआती चरण में है हजनके बारे में बताना सिंभव नहीिं। वैसे इस साल चेररयट कॉहमक् स के साथ हमलकर 3 कॉहमक्स प्रकाहशत करने की योजना है। हजनमे से एक होली हल का तीसरा अिंक होगा। Q - कई पाठक कम प्रचलित या नए प्रकाशन की कॉलमक्स, नोवेल्स और लकताबे खरीदने से डरते ै। उनके लिए आपका क्या सांदेश ै? अक्षय - मेरा यही सिंदेश है हक हम लालची नहीिं है, कला-कॉहमक्स और अिंतहीन काल्पहनक जगत के प्रहत अपने जनून के हलए कर रहें है। जैसा लोग कहते हैं हसिा जनून से पेट नहीिं भरते इसहलए हमे आपके सहयोग और मागादशान की आवश्यकता है। यह हबल्कु ल ज़रूरी नहीिं हक हजस चीज़ से आप अिंजान होिं वह अच्छी नहीिं होगी। नयी प्रहतभाओिं को मौका दीहजये, कु छ नया मनोरिंजन आज़मा कर देत्यखये.....हो सकता है आपके सहयोग से कई कलाकारोिं का जीवन सिल हो जाए। बहुत-बहुत धन्यवाद! ==========
  • 29. *) - Green Humour Webcomic
  • 30. *) - मेरा कालमक सांग्र - सांजय लसां 2011 Comic Con India 8 साल हो गए है हहिंदी काहमक्सो से सिंबिंहधत हवहभन्न आनलाईन ग्रुप्स, िारम, कम्यूहनहटस, इत्याहद मे एक सहिय काहमक िै न के तौर पर हवचार-हवमशा, पररचचाा, इत्याहद करते हुए। हहिंदी काहमक्सोिं से जुडे हुए कई सारे पहलओ पर अपने हवचारो का रखा है। हिर चाहे वो राज काहमक्स की कायाशैली की समीक्षा हो या आजकल चल रही काहमक्सोिं की कालाबाजारी की हनिंदा। अगस्त 2008 मे जब मैंने राज
  • 31. काहमक िारम को ज्वाईन हकया था तब मेरा मकसद था काहमक्सोिं से जुडी हुई अपनी यादोिं को ताजा करना। लेहकन उसी साल अक्टू बर मे कु छ ऐसा हुआ हक काहमक्सोिं से जुडी हुई यादोिं को ताजा करने का एक और तरीका हमल गया। ये था पहला “नागराज जन्मोत्स”। और वो तरीका था काहमक्से सिंग्रह करने का। 2008 नागराज जन्मोत्सव मेरे हलए कई मायनोिं से यादगार और खास रहा। एक खास वजह तो ये ही थी हक मैं पहली बार अपने हप्रय हचत्रकारोिं और लेखकोिं से हमल रहा था। लेहकन एक दू सरी वजह भी थी हजसने मेरे काहमक के जुनून को उस हदन कई गुणा बढा हदया। मैं पहली बार ऐसे काहमक िै न्स से हमला हजनमे मेरी ही तरह काहमक के हलए बेइतिंहा दीवानापन था। यहािं मैं रहव यादव का नाम लेना चाहँगा जो उस भाग्यवादी हदन मुझे वहािं हमला था। काहमक्सोिं के प्रहत लोगो का प्यार देखकर मुझ मे और मेरे दोस्त आकाश मे एक नए जोश का सिंचार हुआ और इस कायािम से प्रेररत और उत्साहहत हो कर हम दोनो ने अपने काहमक सिंग्रह को बढाने का हनिय हकया। इससे पहले मेरे पास मुत्यिल से 50 या उससे भी कम काहमक्से थी और वो भी हसिा ध्रुव की काहमक्से। इस वक्त मे एक बहुत कम वेतन वाली नौकरी कर रहा था। (हजसे मैंने नवम्बर 2008 मे छोड भी हदया था और उसके बाद 2 साल तक बेरोजगार रहा) और काहमक्से भी हगनी-चुनी लेता था। ध्रुव, नागराज की आिंतकहताा और नागायाण सीररज। हालािंहक उस वक्त और भी अच्छी सीररजे आ रही थी दू सरे हीरोज की लेहकन पैसे की कमी के चलते उन्हे प्राथहमकता देने मेरे बस की बात नही थी। तो अब ये तो सोच हलया था हक काहमक्से खरीदनी है लेहकन नई काहमक्सें खरीदना अभी हैहसयत से बाहर था। तो ये हनिय हकया हक हिलहाल उन काहमक्सोिं को खरीदा जाए हजनको बचपन मे पढा था और हजनकी वजह से आज हम काहमक्सोिं पर इतनी चचाा करने लायक बने। पुरानी काहमक/हकताबोिं के बारे मे सोचते ही ध्यान आया दररयागिंज की सिंडे बुक माके ट का। मैं साल 2007 मे एक बार इस बुक माके ट मे आया था और तब देखा था हक काहमक्से भी हमल रही थी। उस वक्त इनकी कीमत भी बहुत साधारण हुआ करती थी। अकसर आधे दाम पर हमल जाती थी। हबना हकसी मोल-भाव के । तो मैंने और आकाश ने ये िै सला हकया हक हम हर रहववार को माके ट जाएिं गे काहमक खरीदने। और इसका श्री गणेश भी साल 2008 के अिंत से पहले हो भी गया। शुरु मैं हमारी प्राथहमकता हसिा राज काहमक ही थी। क्ोिंहक उस वक्त काहमक खरीदने की मुख्य वजह उन्हे हसिा पढना ही था। यहािं मैं एक बात बताना चाहँगा हक मेरा काहमक सिंग्रहकताा बनने का कोई इरादा नही था। मुझे तो उस वक्त ये मालूम भी नही था हक लोग काहमक्सोिं का भी सिंग्रह करते है। मुझे 1-2 साल बाद इस बात का पता चला। शुरुआत मे काहमक्सोिं की खरीदारी कािी धीमी रही। उसके एक वजह तो पैसे की कमी थी। मैं अपनी नौकरी छोड चुका था। और आगे भी दो साल तक बेरोजगार रहा। दू सरी वजह ये थी हक उस वक्त हम काहमक्से लेने मे बहुत ही नुख्ता-चीनी करते थे। मतलब हक हसिा वही काहमक्से ले रहे थे हजन्हे हम पसिंद करते थे। याहन हक हसिा अपने हप्रय हकरदारोिं की ही काहमक्से ले रहे थे हजनमे राज काहमक्स मे नागराज, ध्रुव आहद की काहमक्से ही मुख्य तौर पर शाहमल थी। उस वक्त मनोज, तुलसी, राधा इत्याहद प्रकाशकोिं की काहमक्से भी हमलती थी लेहकन हमने उस वक्त उन पर कभी ज्यादा ध्यान नही हदया। कभी मन हकया या कोई काहमक अच्छी लगी तभी उसे खरीदा वनाा उन्हे छोड ही हदया। ये सब साल 2008-2009 के बीच हुआ। उस वक्त काहमक्से हम कम ढूिंढ पाते थे लेहकन बाकी चीजो की खरीदारी पर ज्यादा पैसे खचा कर रहे थे। दररयागिंज मे जब ज्यादा सिलता नही हमली तो मैंने अपने घर के आसपास काहमक्सोिं को तलाशना शुरु हकया। हकसी जमाने मे नािंगलोई मे काहमक्सोिं की कािी दुकानें हुआ करती थी। और लगभग हर एक बुक हडपो वाले ने कभी ना कभी तो काहमक्से रखी ही थी अपने पास। लेहकन वक्त और तकनीक के साथ काहमक्से अपनी लय बरकरार नही रख पाई और धीरे-धीरे वहाँ काहमक्से हदखनी बिंद हो गई। हिर भी मुझे कु छ दुकानोिं पर उनके हमलने की उम्मीद अभी भी थी। यही सोचकर एक दुकान पर
  • 32. पहुिंचा। और वहािं तो जैसे मुझे खजाना ही हमल गया। ज्यादातर राज काहमक थी और उन मे से मुझे मेरे हप्रय सुपर हीरो सुपर कमािंडो ध्रुव की भी कु छ ऐसी काहमक्से हमल गई जो मैं ढूिंढ रहा था। शाम को िोन करके मैंने आकाश को सारी बात बताई और अगले हदन वो भी मेरे घर आ गया काहमक्से लेने। उसने भी कािी सारी काहमक्से उस दुकान से ली। हिर मैंने कु छ और दुकानोिं पर भी भाग्य को आजमाया और सिलता भी हमली लेहकन बहुत थोडी सी। अब हिर से दररयागिंज की तरि रूख करना पडा। लेहकन अब वहािं हमे अपने मतलब की काहमक्से बहुत कम ही हमल पा रही थी। इसहलए अब काहमक्सोिं को लेकर कु छ ज्यादा उत्साह नही रह गया था दररयागिंज मे। ज्यादातर तिरी ही हो रही थी। सुबह पहुिंच जाते वहाँ, और हर तरह की दुकान देखकर दोपहर तक वाहपस भी आ जाते। और ऐसा साल 2010 के मध्य तक जारी रहा। लेहकन मैंने और आकाश ने दररयागिंज जाना बिंद नही हकया। चाहे गमी हो, बाररश हो या सदी हो। या हिर 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे बडे अवसरोिं पर सुरक्षा के तहत बाजार ही क्ोिं ना बिंद हो। हम जाते जरूर थे। बीच मे हमारा दोस्त रहव भी 1-2 बार हमारा साथ देने आया। अब साल 2010 शुरु हो गया था और हम अपने नए घर मे चले गए थे। अब दररयागिंज और भी दू र हो गया था। अब बाजार मे पहुिंचने के हलए साईकल, रेल और पैदल यात्रा तीनोिं माध्यमोिं का इस्तेमाल हो रहा था। ये समय मेरे हलए कािी मुत्यिल भरा था। क्ोिंहक इतनी मेहनत करने के बाद भी बाजार पहुिंचने पर मुझे कु छ नही हमलता था। ऊपर से अब बेरोजगार हुए डेढ साल से ज्यादा हो गए थे और सेहविंग भी खत्म होने लगी थी। इन्ही सब के बीच मे 2010 के शुरु के चार 4-5 महीने हनकल गए। पैसे खत्म हो रहे थे, जोश दम तोड रहा था, और उम्मीद ना-उम्मीद मे तबदील हो रही थी। मई का महीना चल रहा था और ऐसे ही खाली हनकला जा रहा था। एक रहववार को मैंने आकाश से कहा हक यहद आज भी कोई काहमक बाजार मे नही हमली तो मैं अगले 3-4 रहववार बाजार नही आऊिं गा। उसने भी मेरी बात का समथान हकया। लेहकन जैसे उस हदन भगवान हमे हपछले डेढ साल
  • 33. की कडी मेहनत का िल देने वाला था। बाजार मे थोडा घूमने पर हमे एक जगह बहुत सारी काहमक्से नजर आई। वो भी हमिंट किं हडशन मे। राज काहमक्स की बहुत सारी पुरानी काहमक्से हजसमे ध्रुव, नागराज, डोगा, जनरल, आहद सभी तरह की काहमक्से शाहमल थी। हमारी तो खुशी का हठकाना ही नही रहा। कीमत भी बहुत ही साधारण। मात्र 5-10 रु। उस हदन मेरे पास हजतने पैसे थे वो सारे काहमक खरीदने मे ही खचा हो गए। लेहकन हमे ये मालूम नही था हक ये तो हसिा शुरुआत है और अगले 1-2 महीने तक हमे इतनी काहमक्से हमलने वाली है हक हमे पैसो की भारी कमी का सामना करना पडेगा। अगले हफ्ते जब हम हिर बाजार पहुिंचे तो हिर से वही दुकानदार ढेर सारी काहमक्से लाया था। इस बार उनमे राज के अलावा मनोज, राधा, तुलसी, गोयल इत्याहद दू सरे प्रकाशकोिं की काहमक्से भी सब एकदम नयी किं हडशन मे। और सोने पर सुहागा ये हक उन काहमक्सोिं मे से कु छ के अिंदर स्ट्ीकसा भी थे। मेरे पास हजतने भी तुलसी काहमक्से के स्ट्ीकसा है वो सारे यही से ली गई काहमक्सोिं से है। अब तो जैसे एक नया जुनून सा सवार हो गया बाजार मे आने का। आने वाले 3-4 हफ्ते तक वो बिंदा ढेरोिं काहमक्से लाता रहा और हम भी अपने बजट और जरूरत के हहसाब से काहमक्से खरीदते रहे। इसी बीच मैंने अपने दोस्त हवशाल उिा बिंटी को भी इस बारे मे बता हदया और वो और हमारा एक और दोस्त राहुल भी 1-2 बार काहमक्से लेने के हलए बाजार आए। बिंटी को मैं अपने साथ कु छ और दुकानोिं पर भी लेकर गया और वहािं से भी हमने बहुत सारी काहमक्से खरीदी। इसके साथ ही मेरी और आकाश की मुलाकात कु छ और भी काहमक्स प्रेहमयोिं से हुई। आशीष त्यागी, प्रदीप शेहरावत और शाहहद अिंसारी। (उस वक्त शाहहद अिंसारी हमारे हलए िै न ही थे) इन लोगो के साथ हमलकर भी खूब सारी काहमक्से खरीदी। शाहहद अिंसारी हमे एक दुकान पर भी लेकर गए हजसके पास बहुत सारी काहमक्से थी। वहािं से मैंने अपने एक िारम के दोस्त अजय हढल्ल्न के हलए भी बहुत सारी काहमक्से खरीदी। सब 5-10 रुपये मे। इसी बीच मेरे एक्जाम शुरु हो गए। एक्जाम के हदनोिं मे ही रहव, आकाश और बिंटी उस दुकानदार के घर पर भी गए जो रहववार को बाजार मे काहमक्से लाता था और उसके घर से भी उन्होिंने कािी काहमक्से खरीदी। बाद मैं िारम का एक और दोस्त (सुप्रतीम) जब अपनी छु ट्टी मे हदल्री आया तो मैंने और आकाश ने उसको बहुत सारी काहमक्से हदलवाई। कु छ तो रहववार बाजार से ही और कािी सारी उस दुकान से हजस पर शाहहद हमे लेकर गया था। इसके अलावा मैंने एक दुकान और ढूिंढ ली थी हजस पर हमे कािी काहमक्से हमली। यहािं से काहमक्से खरीदने वालो मे मेरे, आकाश और प्रदीप जी के अलावा शाहहद अिंसारी भी थे। इस तरह मई से लेकर जुलाई- अगस्त तक काहमक्सोिं की कािी खरीदारी हुई। लेहकन अब समस्या ये आ गई हक मेरे पास सेहविंग लगभग खत्म हो चुकी थी। नागराज जन्मोत्सव 2010 के बाद त्यस्थहत ये आ गई थी हक अब नौकरी करना जरुरी हो गया था। अब दो साल होने वाले थे हबना हकसी रोजगार के । नवम्बर 2010 मे एक नौकरी हमल गई और पैसोिं की हचिंता कु छ हद तक खत्म हुई। साल 2011 की शुरुआत हपछले साल से भी बेहतर रही। इस साल माचा मे एक दुकानदार के कािी सारी काहमक्से आई थी। लेहकन उनमे से ज्यादातर शाहहद अिंसारी ने ही ले ली थी। मुझे थोडी बहुत ही अपनी पसिंद की काहमक्से हमली। लेहकन उस दुकानदार ने मुझे बताया हक उसके पास घर पर अभी और भी काहमक्से रखी हुई है। मैंने उसका पता और िोन नम्बर ले हलया और शहनवार को उसके घर गाहजयाबाद जा पहुिंचा। वहािं से मैंने अपनी हजिंदगी की अब तक की सबसे ज्यादा काहमक्से एक साथ खरीदी। और वो भी आधे दामोिं मे। उसके पास ज्यादातर राज काहमक्से ही थी। लेहकन उससे मुझे महारावण सीररज की कािी सारी काहमक्से एक साथ हमल गई। और इसके साथ ही मुझे कनकपुरी की राजकु मारी भी हमली। साथ ही और भी बहुत सारी नई-पुरानी काहमक्से हमली। वो हदन एक यादगार हदन रहा मेरी हजिंदगी का। पहली बार हदल्री से बाहर जाकर काहमक्से खरीदना वाकई मेरे हलए एक बेहद खास अनुभव रहा। हिर आगे भी उस दुकानदार से बाजार मे ही काहमक्से लेते रहे जब तक हक उसके पास काहमक्से खत्म ना हो गई हो। इसके बाद शायद अगस्त-हसतम्बर के बाद एक बार हिर से बहुत सारी काहमक्से बाजार आई। शुरु मे तो वो काहमक्सें हमे जायद दामोिं (5-10 रुपए) मे हमल गई। लेहकन जब अगले सप्ताह हम उन्ही दुकानदारोिं पर दुबारा पहुिंचे तो सबने कीमत बढा कर बताई कु छ
  • 34. तो हप्रिंट पर ही दे रहे थे। हमारे हलए ये पहला ऐसा मौका था जब हम काहमक्से महिंगे दामोिं पर हमल रही थी। हम पुरानी काहमक्से हमेशा 5-10 रुपए मे ही लेते आए थे। अत:एव हमने वो काहमक्से नही खरीदी और उन्हे छोड हदया। बाद मे काहमक्सोिं के हविे ताओिं ने वो काहमक्से खरीदी। इसके बाद 2011 मे कु छ खास नही हुआ। 2012 मे तो याद भी नही हक कु छ खास हुआ था या नही। हसिा काहमक कान याद है। इसके अलावा महिू ज भाई से मुलाकात हुई और उन्हे कोबी और भेहडया काहमक दी। साथ ही ध्रुव के कु छ हवशेषािंक भी महिू ज को हदए थे। बदले मे महिू ज ने भी मुझे काहमक्से दी। अब सिंडे माहका ट जाने का भी मन नही करता था। आकाश ने अब माहका ट आना बहुत कम कर हदया था। और मैं ही अके ला आता था। ऐसे ही एक बार 15-20 रुपए मे इिंद्रजाल काहमक्से हमल गई थी। तकरीबन 25-35 काहमक्से थी और ज्यादातर अिंग्रेजी मे ही थी। एक बार 40 के करीब हटिंकल भी हमली थी। पुरानी हटिंकल हहिंदी और अिंग्रेजी मे। 5 रुपए प्रहत काहमक। काहमक्से अब कम हमल रही थी लेहकन उनकी कीमते हिर भी कािी हनयिंत्रण मे थी। साल 2013 के शुरुआत मे ही मैंने ये मन बना हलया था हक अब ये आत्यखरी साल है काहमक्से कलैक्ट करने का। शुरुआत ठीक-ठाक रही। अप्रैल मे महिू ज भाई का हनमिंत्रण हमला हक उनके शहर सहारनपुर मे कािी काहमक्से है मेरे लायक। वहािं जाकर तकरीबन 1000 रु की काहमक्से खरीदी। सब हप्रिंट रेट पर ली। बहुत ही बेहतरीन अनुभव रहा दू सरे शहर मे जाकर काहमक्से खरीदने का। बाद मे इसी महीने सागर राणा जी से भी मुलाकात हुई। वो हदल्री आए हुए थे। उन्होिंने मुझे जम्बू की पहली काहमक सुपर कम्पयूटर का बाप दी। महिू ज भी उसी हदन हदल्री आया और उसने भी उनसे मुलाकात करी। मैंने महिू ज को कोहराम काहमक दी और बदले मे उसने मुझे बुत्यद्पासा दी। वो हदन भी बहुत खास रहा। आकाश भी उस हदन सागर राणा जी से हमलने बाजार आ गया था। अप्रैल के बाद जुलाई मे मुझे गाहजयाबाद वाले बिंदे से बहुत सारी तुलसी काहमक्से हमली। सब आधे दाम मे। 250 रुपए मे 59 काहमक्से। जुलाई मे ही मेरी मुलाकात िारम मैम्बर स्पाकी रहव से हुई। उसी हदन मैं अयाज अहमद से भी हमला। हिर उसके अगले ही महीने मे मुझे बहुत सारी मनोज काहमक्से हमली। ज्यादातर हवशेषािंक ही थे। राम-रहीम, हवलदार बहादुर, िु कबािंड, कािंगा और दू सरे मनोज काहमक्स के हकरदारोिं की तकरीबन 90 के करीब काहमक्से मैंने खरीदी। लेहकन ये खरीदारी अब तक की सबसे महिंगी खरीदारी साहबत हुई। क्ोिंहक मैंने हर काहमक के दुगने दाम हदए। याहन हक इस बार और पहली बार मैंने हप्रिंट रेट से भी ज्यादा कीमत अदा करी। 10-20 रूपए। और जब मैंने ये िे सबुक पर पोस्ट् हकया तो एक दोस्त (मोहहत शमाा) को बहुत हैरानी हुई हक पुरानी काहमक्से इतनी महिंगी कै से हो गई? खैर वो काहमक्से खरीदकर मैं आकाश के पास गया और उसने उन मे कु छ काहमक्से ले ली। उस दुकानदार के पास अभी और भी बहुत काहमक्से बच गई थी। तो अगले सप्ताह मैं, आकाश और मोहनीश हिर वहािं पहुिंचे और आकाश और मोहनीश को अपनी पसिंद की काहमक्से हमल गई। मोहनीश उस हदन बहुत खुश था क्ोिंहक उसकी महारावण सीररज पूरी हो गई थी। इसके अगले रहववार भी हमने वहािं से कु छ काहमक्से और खरीदी। इसके बाद सिंडे माहका ट से कु छ नही हमला। हिर नवम्बर-हदसम्बर मे राज काहमक्से ने काहमक िे स्ट् इिंहडया का आयोजन हकया। इस इवेंट मे राज काहमक्स ने पुरानी काहमक्सोिं का स्ट्ाल लगा रहा था जहािं पर 30 रुपए प्रहत काहमक की दर से काहमक बेची जा रही थी। मैं ज्यादा काहमक्से नही खरीद सका और जो खरीदी भी उन मे से ज्यादातर उसी दाम पर बाद मे बेच भी दी। काहमक िे स्ट् के बाद ही दोस्त की शादी मे नागपुर जाना पडा और वहािं से भी थोडी बहुत काहमक्से खरीदी। अब साल का आत्यखरी महीना चल रहा था और आत्यखरी महीने के आत्यखरी रहववार मैं पूरा हदन वही माहका ट मे ही घूमता रहा। जैसे उस जगह से जुडी हुई सारी पुरानी यादोिं को इकट्ठा कर रहा था। साल 2014 मे मैं दररयागिंज कािी कम गया। अगर गया भी तो काहमक्स खरीदने के इरादे से नही और ज्यादातर शाम के वक्त ही गया। साल 2008 से 2013 तक मैंने कािी काहमक्से खरीदी और अब तो
  • 35. ऐसा लगता है हक हमने कािी अच्छे समय मे काहमक्सोिं का सग्रिंह बनाया। आज के दौर मे तो मेरे हलए ये हबल्कु ल ही नामुमहकन होता। हिलहाल मेरे सिंग्रह मे 2400 से ज्यादा काहमक्से है। हहिंदी, अिंग्रेजी, नई, पुरानी, ओररहजनल, ररहप्रिंट्स सब तरह की हमलाकर। सबसे ज्यादा काहमक्से राज काहमक्स की ही है। इसके अलावा स्ट्ीकसा, टरेहडिंग काडास, पोस्ट्र और दू सरे तरह की काहमक्सोिं से जुडी हुई चीजो का भी अच्छा खासा क्लैक्शन है। कािी खुशी होती है अपना काहमक सिंग्रह देखकर। उसकी दो खास वजह है। पहली तो ये हक मैंने अपना काहमक क्लैक्शन बहुत ही मेहनत, ईमानदारी और हकिायती कीमत पर बनाया है। इसमे हजन दोस्तो ने मदद करी उनका नाम मैं इस लेख मे हलख चुका हँ। कोई रह गया है तो उसके हलए मािी चाहँगा। काहमक सिंग्रह करते समय कभी भी कालाबाजारी को बढावा नही हदया। कभी ऊिं चे दाम पर काहमक्से नही खरीदी। दू सरी वजह यह है हक मैं बचपन से ये चाहता था हक मेरे आस-पास ढेर सारी काहमक्से हो। अब जब अपनी अलमारी या अपन हदवान खोलकर देखता हिं तो पाता हिं हक हजतना मैंने बचपन मैं सोचा था अब उससे कही गुना ज्यादा काहमक्से मेरे पास है। ये एक सपने को जीने के जैसा ही है। मेरे काहमक सिंग्रह की एक और हवशेषता ये भी है हक मेरे पास सबसे ज्यादा काहमक्से राज काहमक्स ही है लेहकन मेरे पास उनके हकसी भी बडे हकरदार की सारी काहमक्से नही है। यहािं तक हक मेरे हप्रय पात्र सुपर कमािंडो ध्रुव की भी मेरे पास सारी काहमक्से नही है। जबहक मनोज के 3-4 हकरदारोिं की सारी काहमक्से मेरे पास है। 2008 से शुरु हुई मेरी काहमक की इस जुनूनी यात्रा के दौरान मुझे भारतीय काहमक जगत और काहमक क्लचर के बारे मे बहुत सी बाते जानने को हमली। बहुत से हचत्रकारोिं और लेखकोिं से भेट हुई। कािी सारे कायािमोिं का हहस्ा बना। खासतौर से नागराज जन्मोत्सव और बुक िे यर। जहािं तक मुझे याद है 2009 के बाद से ये पहला अवसर था जब इस साल मे अगस्त-हसतम्बर बुक िे यर नही गया। कािी दोस्त बने और सब के साथ बहुत ही अदभुत अनुभव सािंझा हकए। तो ये थी मेरे काहमक सिंग्रह की कहानी। कै से शुरु हुआ, कहािं से शुरुआत हुई, कै से प्रगहतशील हुआ और कै से अिंत हुआ। काहमक क्लैक्ट करने का सिर तो साल 2013 मे खत्म हो गया। लेहकन काहमक पढने का शौक अभी भी जारी है। अब काहमक्सोिं पर ज्यादा चचाा नही कर पाता लेहकन राज काहमक्स के नए सैट और नए प्रकाशकोिं की काहमक्से खरीदना और पढना अभी भी जारी है। और उम्मीद करता हिं हक जैसे हपछले 21 सालोिं से काहमक्से पढता आया हँ वैसे ही आगे भी पढता रहिंगा। जुनून। ====
  • 36. Cartoonist Neerad (Neelkamal Verma) बहुत कम ही लोग जानते होिंगे हक काटूाहनस्ट् नीरद का पूरा नाम नीलकमल वमाा 'नीरद' है। भारतीय कॉहमक जगत के सिल और लोकहप्रय काटूाहनस्ट् नीरद जी का जन्म १५ अगस्त १९६७ को हुआ। १०- ११ साल की उम्र से ही इन्होिंने काटूाहनिंग की शुरुआत कर दी थी और तब से अब तक देश भर की शीषा पत्र-पहत्रकाओिं के हलए कॉहमक त्यस्ट्रप और काटूान्स तो बनाये ही, साथ ही डायमिंड कॉहमक्स के तमाम लोकहप्रय चररत्रोिं (जैसे ताऊ जी, चाचा-भतीजा, लम्बू मोटू , राजन इऺबाल आहद) के ढेरोिं कॉहमक बुक् स के हलए रेखािंकन भी हकया। अब नीरद जी के काटूान्स लोकहप्रय पहत्रका नन्हे सम्राट के साथ-साथ हवहभन्न स्थानीय समाचार पत्रोिं, पहत्रकाओिं में प्रकाहशत होते है। ======
  • 37. *) - वायरस का वायरस लेखक - ऋषभ कु मी स्थान -हसटीमाल एररया, डी डी पुरम, राजनगर। समय-01:00 A.M. अभी कु छ देर पहले ही हसटीमाल के starworld हसनेमा में 'अ फ्लाइिंग जट्ट' का आत्यखरी शो खत्म हुआ था। Mr Mehta - क्ा बकवास शो था! ये भी कोई देखने लायक मूवी थी! Mrs Mehta- मूवी के बारे में जो बोला सो बोला ,अगर टाइगर श्रॉि के बारे में कु छ बोला तो मुझसे बुरा कोई नहीिं होगा। Mr. Mehta - हुँह! इतनी बकवास एत्यक्टिंग! उसको तो एत्यक्टिंग का A भी नहीिं आता। पता नहीिं कहा से ये बच्चे एत्यक्टिंग करने चले आते है! Mrs. Mehta- आत्यखरी वाहनिंग है प्राणनाथ! इसके आगे कु छ कहा तो आपके प्राणोिं पर भी बन सकती है। गुरार! और क्ा एत्यक्टिंग-एत्यक्टिंग लगा रखा है। खुद को क्ा बहुत बड़ी तोप समझते हैं! पजामे में रहना सीख लीहजये, ज्यादा िै लेंगे तो िट जाएगा । हीहीही! Mr. Mehta-(गुस्े से) में क्ा डरता हँ तुमसे,जो धौिंस हदखा रही हो! Mrs. Mehta-हिर से बोहलये तो सही!!!अब चूहे भी दहाड़ेंगे क्ा? (तभी पीछे से दो लोग आते हैं)
  • 38. Pehla-(जोर से Mr Mehta के चमाट रसीद करके ) ये का बवाल मचा रहे हो बे! दिा हो जाओ! वनाा पैर तोड़कर हाथ में दे देंगे। Mrs. Mehta- तुम लोगो की इतनी जुरात! मेरे चूहे! मेरा मतलब, मेरे पहत पर हाथ उठाया! छोडूिंगी नहीिं मैं तुम्हे....(बक.... बक....बक....) Dusra-यही reason है, मैं शादी नहीिं करने का decide हकया हँ! देखो कै सा जुबान चल रहा है! कै से रहते हो ई नरकवा में, भाईसाहब! Pehla-अरे! ये तो कु छ बोल ही नहीिं रहे हैं! लगता है हाथ कु छ ज्यादा ही भारी पड़ गया बे! अभी तक असर है। हीहीही। Mr. Mehta- ये सब क्ा हो रहा है? हम यहाँ कै से आ गये माहलनी? कौन हो आप दोनोिं? Mrs. Mehta- गहजनी में तो देखा था, हतौड़ा मारा तो आहमर खान की याददाश्त गयी थी, यहाँ तो एक ही हाथ में चली गयी। Pehla- ह्म्म। Mrs. Mehta- मैं इस हिल्म की पूरी cast पर case करूँ गी ....हदखाते कु छ है और होता कु छ है...consumer कोटा में घसीटूँगी इनको मैं.....ये तो कु छ वैसा ही हुआ जैसे अनार कहकर अचार पकड़ा हदया जाये! गुरार! Dusra- सही कह रहीिं हैं मैडम! ये तो ससुर गहजनी वाला case हो गया। कम्पलीट याददाश्त गया। Mrs. Mehta- लेहकन मुझको तो पहचान रहे हैं मेरे प्राणनाथ! शायद थोड़ी याददाश्त गयी है। हीहीही! (अचानक) ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है कमीनो!...मैं तम्हारा खून पी जाऊिं गी! ..मैंने घर जा कर इनको बेलन और हचमटे से धरने का प्लान बनाया था ...लेहकन तुम लोगो ने पहले ही उनके गाल पर धर हदया! गुरार! Pehla- ये क्ा मैडम ! ...कॉमेडी नाइट्स हवद कहपल से सीधा WWF! ये तो चीहटिंग है! Dusra- रे भैंस की पूँछ! ये तो 'लेडी धमेंद्र ' है रे...खून पीयेगी! भागो! हीहीही! Pehla- और वैसे भी मैडम! आपका हस्बैंड तो साबुत ही है न ...आराम से घर जाकर वापस धरना ससुर को! P K तो देखी ही होगी!...टक्कर लगने से याददाश्त जावे है तो दू सरी टक्कर से आ भी जावे है! हीहीही! Mr. Mehta - बहुत हुई तुम सब की बकवास... अब ज्यादा.... (इतने में वहाँ एक स्पेशल बाइक की आवाज़ आती है और हिर आता है राजनगर का रक्षक सुपर
  • 39. कमािंडो ध्रुव! और साथ ही आते है पीटर और रेनू।) (ध्रुव अपने बेल्ट से एक अजीब सा हडवाइस हनकालकर उसको एत्यक्टवेट करता है।हडवाइस हवा में 200 फ़ीट ऊपर जाकर िट जाता है और उससे एक लाल गैस हनकलती है हजससे झगड़ रहे चारो लोग बेहोश हो जाते हैं।) Dhruv- पीटर इन लोगो को हॉत्यस्पटल पिंहुचा दो...जब ये होश में आयेंगे तो इनका अपने मत्यततष्क पर वापस हनयिंत्रण होगा। लेहकन इस एिं टीडोट की वजह से कु छ घिंटोिं के हलए कमजोरी महसूस होगी। Peter- ठीक है कै प्टेन! Dhruv-रेनू! तुम श्वेता और डा० हप्रशा से कहकर ढेर सारी एिं टीडोट बनवाओ ताहक पूरे राजनगर पर एक साथ उसका प्रयोग कर सकें ।अभी रात का वक़्त है लेहकन असली समस्या तो आज सुबह को होगी जब लाखो लोग सो कर उठें गे और अपने मत्यततष्क पर से हनयिंत्रण खो बैठें गे। ऐसी त्यस्थहत में प्रशासन भी लाचार हो जायेगा। Renu- मैंने करीम को कॉल करके बोल हदया है कै प्टेन! मगर ये मानहसक हनयिंत्रण खो बैठना, और इतना जल्दी उसका एिं टीडोट तैयार होना!ये सब क्ा है कै प्टेन ? Dhruv- ये सिंयोग की बात है। राजनगर की बायोलॉजी लैब की हेड साइिंहटस्ट् डॉ०हप्रशा और श्वेता की चार महीने पहले मुलाकात हुई थी, और इस मुलाकात में एक प्रोजेक्ट पर साथ काम करने की सहमहत बनी। Renu- कै सा प्रोजेक्ट कै प्टेन? Dhruv- डॉ० हप्रशा मानहसक रूप से हवहक्षप्त लोगो को ठीक करने के हलए एक ररसचा कर रही थीिं.....और श्वेता भी एक जीहनयस साइिंहटस्ट् है...और इसीहलए डा० हप्रशा इस प्रोजेक्ट में श्वेता को लेना चाहती थीिं। तीन महीने बाद इस प्रोजेक्ट को एक बड़ी सिलता हमली...जब ये पता चला की िेन को कमािंड करने के हलए कु छ ऻास प्रकार के िेन सेल्स होते हैं और मानहसक रूप से हवहक्षप्त लोगो के िेन में ये सेल्स पूणा क्षमता से काया नहीिं कर रहे थे,हजसकी वजह से नवा सेल्स से इनका पूणा सामिंजस्य नहीिं हो पाता था। इसकी वजह से हनणाय लेने और सोचने-हवचारने की क्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता था। Renu- हिहलयिंट! श्वेता ने एक बार हिर खुद को साहबत कर हदया! Dhruv- डा० हप्रशा को मत भूलो!...ये उनका ही आईहडया था और इस प्रोजेक्ट में उनका और उनकी टीम का बहुत बड़ा योगदान है। Renu- हम्म। आगे बताओ कै प्टेन।
  • 40. Dhruv-इसके बाद उन सेल्स पर कई एक्सपेररमेंट हकये गये। लेहकन सिलता स्ट्ेम सेल्स के साथ हमली। जब स्ट्ेम सेल्स को ऻास किं टेनसा में ऐसी पररत्यस्थहतयोिं में रखा गया जैसी हक स्त्री के गभा में होती हैं तो स्ट्ेम सेल्स से कई नए सेल्स उत्पन्न हुए। उनमे ये िेन सेल्स भी थे। ये सेल्स िेन की, बॉडी पर कमािंड को हनदेहशत करते हैं, consciousness बढ़ाते हैं। इन सेल्स से सटीक हनणाय लेने में मदद हमलती है। जो लोग मानहसक रूप से मजबूत होतेहैं,उनके ये सेल्स बहुत एत्यक्टव होते हैं। Renu- तुम इतने यकीन से कै से कह सकते हो? Dhruv-जब शुरू शुरू मे इन सेल्स के बारे में मालूम पड़ा तो इनका अध्ययन हकया गया।नतीजे चौकाने वाले थे.....इन सेल्स में अपना खुद का हदमाग था।तभी मैंने सोचा इन सेल्स को महामानव के सेल्स से compare करते हैं। धनिंजय की मदद से महामानव का सैंपल हमारे हाथ लग गया। Renu- अब ये महामानव बीच में कहा से आ गया? Dhruv- सोच कर देखो रेनू,महामानव एक अहतहवकहसत मत्यस्तष्क वाला प्राणी है... लेहकन ऐसा क्ा है जो उसका हदमाग इतना हवकहसत है? इसका जवाब आसान नहीिं था और एक सिंभावना मेरे सामने थी। मैंने इसकी जािंच करने का हनणाय ले हलया। और देखो ...इस बार जवाब हमें हमल गया। वो ये सेल्स ही हैं, हजन्होिंने महामानव को महामानव बनाया। बस महामानव के सेल्स हवकहसत थे और ये सेल्स अभी भ्रूण हैं। इस प्रकार हमें इन सेल्स का महत्त्व समझ में आया। Renu- interesting! और इसी बीच आज रात को ये हदमाग वाली बीमारी शुरू हुई, और तुमको ये सेल्स का इस्तेमाल करने का आईहडया सूझा। Dhruv- हा ये इिेिाक की बात है हक हमारे पास इलाज पहले से था....और इसीहलए एिं टीडोट समय से तैयार हो गया...वनाा कल की तस्वीर बहुत भयानक हो सकती थी। Renu- लेहकन तुमको इस ररसचा की इतनी हडटेल्स कै से मालूम है captain! क्ा िाइम िाइहटिंग छोड़कर साइिंहटस्ट् बनने वाले हो! Dhruv- हा! हा! हा! मैंने श्वेता की थीहसस पढ़ी थी इसीहलए मुझे ये सब मालूम है। लेहकन,इस बीमारी के पीछे हकसका हाथ है, ये पता लगाना बहुत जरुरी है। ये प्राकृ हतक तो नहीिं है। Renu- ये जरूर हकसी microbiologist का काम होगा कै प्टेन! िेन सेल्स को डैमेज पहुचाना हकसी आम साइिंहटस्ट् की बस की बात नहीिं। और डा० वायरस अभी हपछले महीने ही जेल से ररहा हुआ है। Dhruv- हम्म! वह इतने समय से तो खामोश है।मुझे कन्फमा करना होगा। तुम श्वेता के पास जाओ और जैसे ही एिं टीडोट तैयार हो , उसे राजनगर के atmosphere में िै ला देना। मै डा० वायरस की छान बीन करता हँ।
  • 41. Renu-ओके कै प्टेन! गुड लक! (ध्रुव अपने हमत्र पशु पहक्षयोिं को वायरस को ढूँढने के काम पर लगा कर हटता ही है, तभी उसके टरािंसमीटर पर एक अिंजान फ्रीक्वें सी से कॉल आती है।) हपिंग हपिंग Dhruv- ध्रुव हीयर! Ajnabi- हेल्रो ध्रुव! Dhruv- कौन हो तुम? और मेरे टरािंसमीटर पर कनेक्ट कै से कर हलया? ये तो कोडेड है। Ajnabi-ऐसे बचकाने सवाल पूछकर अपनी समझदारी पर सवाल खड़े मत करो ध्रुव! Dhruv-में तुम्हारी तरह िु सात में नही हँ। पहेहलया मत बुझाओ! मुझे हकसहलए कॉल हकया? Ajnabi- अब तुमने अक्लमिंदी भरा सवाल पूछा!....तो सुनो,.....तुम्हारा डा० वायरस पर शक सही है। इन घटनाओिं के पीछे उसका ही हाथ है। Dhruv- तुम्हे कै से मालूम मुझे हकस पर और क्ोिं शक है? कौन हो तुम? और मुझे ये सब क्ोिं बता रहे हो? Ajnabi- इतने सारे सवाल! हाहाहा! लेहकन जवाब एक ही हमलेगा कमािंडो! आम खाओ, पेड़ मत हगनो। Dhruv- तुम कु छ ज्यादा ही रहस्यमयी बन रहे हो! मैं तुम्हारा यकीन कै से करूँ ? Ajnabi-यकीन करना है या नहीिं, ये हनणाय तुम्हारे हाथ में है। हवदा ध्रुव! जल्द ही मुलाकात होगी। (कॉल कट जाती है।) Dhruv- ( कौन था ये रहस्यमयी शख्स? इसकी बातोिं से एक चीज स्पष्ट है,..मामला ऊपर से जैसा नजर आता है, असल में उससे कहीिं गहरा और उलझा हुआ है। इसका बोलने का लहजा भी कु छ अलग था....ये मुझे हकसी की याद हदलाता है...लेहकन हकसकी? ऐसा क्ोिं लगता है जैसे में इसको पहले से जानता हँ? मुझे कु छ बुरा होने का आभास हो रहा है।और जल्द मुलाकात होने का क्ा मतलब है? हमलना ही है तो खुद को इतना गुप्त क्ोिं रख रहा था...पररचय क्ोिं नहीिं हदया? कु छ तो गड़बड़ है। सतका रहना होगा।) (ध्रुव करीम से सिंपका करता है।) Kareem- यस कै प्टेन! करीम हीयर! Dhruv- राजनगर के सभी cctv िु टेज चेक करो। देखो डा० वायरस राजनगर में कहाँ है।मुझे ऐसी सभी जगहोिं की हलस्ट् चाहहए जहाँ कहीिं भी वह जेल से ररहा होने के बाद गया है। और कै डेट्स को वहाँ भेजकर वायरस की गहतहवहधयोिं की जानकारी इकठ्ठा करो। Kareem- मैं समझ गया कै प्टेन।
  • 42. ( ध्रुव हडसकनेक्ट कर देता है। तभी कु छ पक्षी उसको वायरस के हठकाने का पता देते हैं।) Dhruv- (इस बार कु छ अजीब हो रहा है, मुझे खास तैयारी करनी होगी। तब तक करीम भी लोके शन कन्फमा कर देगा।) Same time, unknown place- Ajnabee- अभी तक सब कु छ उसी प्रकार हो रहा है कु शाग्र , जैसी हमने कल्पना की थी। kushagr- आप महान हैं श्रेष्ठ! आपका उद्देश्य महान है, आपकी योजना जरूर सिल होगी। Ajnabi- तुम भूल रहे हो, ध्रुव आज तक हकसी से नहीिं हारा।और वह समय नजदीक है , जब उसे अपने अत्यस्तत्व का भान होगा,अपनी ताकत का पूणा ज्ञान होगा। ऐसी त्यस्थहत में हम सोचने को मजबूर हैं, क्ा हमने वायरस को चुनकर सही िै सला हलया है? Kushagr- ताकत से ध्रुव को नहीिं जीता जा सकता श्रेष्ठ! वह कोई न कोई युत्यक्त खोजकर, उसका अपने प्रहतहद्वन्दी पर ही इस्तेमाल कर लेता है।उसको हराने के हलए उसके हदमाग पर वार करना होगा। आप हनहििंत रहहये, मैंने वायरस को सारी योजना समझ दी है। Ajnabi- हमें तुम पर पूणा हवश्वास है कु शाग्र, ध्रुव पर कतई नहीिं है। Kushagr- आप बस देखते जाइये श्रेष्ठ! आज सूया बुझ सकता है,पृथ्वी अपनी गहत करना छोड़ सकती है, इस सृहष्ट के समस्त हिया-कलाप रुक सकते हैं...सब कु छ बदल सकता है, नहीिं बदलेगी, तो बस एक चीज....सुपर कमािंडो ध्रुव की हार! हाँ आज हारेगा ध्रुव और आज़ाद करेगा उसको, ऻत्म करेगा उसका इिंतजार....हजसके हलए ध्रुव ने ली थी - "प्रेम प्रहतज्ञा!" (भाग एक समाप्त।) कौन हैं अजनबी और कु शाग्र? ध्रुव के हलए वायरस ने क्ा तैयारी कर रखी है जो कु शाग्र इतना आश्वस्त है? कौन है वह जो कर रहा है ध्रुव का इिंतजार, हकसके हलए ध्रुव ने ली है प्रेम प्रहतज्ञा? इन सब सवालो का जवाब हमलेगा अगले भाग - 'प्रेम प्रहतज्ञा' में। =====