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आधुनिक काल (१८५० ईस्वी क
े पश्चात)
आधुनिक काल ह िंदी साह त्य पिछली दो सहदयों में पिकास क
े
अिेक िडािों से गुज़रा ै। जिसमें गद्य तथा िद्य में अलग
अलग पिचार धाराओिं का पिकास ुआ। ि ािं काव्य में
इसे छायािादी युग, प्रगनतिादी युग, प्रयोगिादी
युग और यथाथथिादी युग इि चार िामों से िािा गया, ि ीिं
गद्य में इसको, भारतेंदु युग, द्पििेदी युग, रामचिंद शुक्ल ि
प्रेमचिंद युग तथा अद्यति युग का िाम हदया गया।
अद्यति युग क
े गद्य साह त्य में अिेक ऐसी साह जत्यक
पिधाओिं का पिकास ुआ िो ि ले या तो थीिं ी ि ीिं या फिर
इतिी पिकससत ि ीिं थीिं फक उिको साह त्य की एक अलग
पिधा का िाम हदया िा सक
े । िैसे डायरी, यात्रा पििरण,
आत्मकथा, रूिक, रेडडयो िाटक, िटकथा लेखि, फ़िल्म
आलेख इत्याहद
आधुनिक काल फक पिशेष्ता
ह िंदी साह त्य का आधुनिक काल तत्कालीि राििैनतक
गनतपिधधयों से प्रभापित ुआ। इसको ह िंदी साह त्य का
सिथश्रेष्ठ युग मािा िा सकता ै, जिसमें िद्य क
े साथ-
साथ गद्य, समालोचिा, क ािी, िाटक इस काल में
राष्रीय भाििा का भी पिकास ुआ।इसक
े सलए
श्ररिंगारी ब्रिभाषा की अिेक्षा खडी बोली उियुक्त समझी
गई। समय की प्रगनत क
े साथ गद्य और िद्य दोिों रूिों
में खडी बोली का ियाथप्त पिकास ुआ। भारतेंदु बाबू
ररश्चिंद्र तथा बाबू अयोध्या प्रसाद खत्रीिे खडी बोली क
े
दोिों रूिों को सुधारिे में म ाि प्रयत्ि फकया। उन् ोंिे
अििी सिथतोन्मुखी प्रनतभा द्िारा ह िंदी साह त्य की
सम्यक सिंिधथिा की।ि ित्रकाररता का भी पिकास ुआ।
आधुनिक ह न्दी साह त्य
में पद्य का ववकास
आधुनिक काल की कपिता क
े पिकास को निम्िसलखखत
धाराओिं में बािंट सकते ैं।
१.िििागरण काल (भारतेंदु युग) - १८५० ईस्िी से १९०० ईस्िी तक
२.सुधार काल (द्पििेदी युग) - १९०० ईस्िी से १९२० ईस्िी तक
३.छायािाद- - १९२० ईस्िी से १९३६ ईस्िी तक
४.प्रगनतिाद प्रयोगिाद - १९३६ ईस्िी से १९५३ ईस्िी तक
५.िई कपिता ि समकालीि कपिता -१९५३ ईस्िी से आितक
1.िवजागरण काल (भारतेंदु युग)
इस काल की कपिता की सबसे बडी पिशेषता य ै फक य
ि ली बार िि-िीिि की समस्याओिं से सीधे िुडती ै। इसमें
भजक्त और श्रिंगार क
े साथ साथ समाि सुधार की भाििा भी
असभव्यक्त ुई। िारिंिररक पिषयों की कपिता का माध्यम
ब्रिभाषा ी र ी लेफकि ि ािं ये कपिताएिं िि िागरण क
े स्िर
की असभव्यजक्त करती ैं, ि ािं इिकी भाषा ह न्दी ो िाती ै।
कपियों में भारतेंदु ररश्चिंद्र का व्यजक्तत्ि प्रधाि र ा। उन् ें
िििागरण का अग्रदूत क ा िाता ै। प्रताि िारायण समश्र िे
ह िंदी ह िंदू ह िंदुस्ताि की िकालत की। अन्य कपियों में
उिाध्याय बदरीिारायण चौधरी 'िेमघि' क
े िाम उल्लेखिीय
ैं।
भारतेंदु ररश्चिंद्र
काव्यकृ नतयािं
•भक्तसिथस्ि,
•प्रेममासलका (१८७१),
•प्रेम माधुरी (१८७५),
•प्रेम-तरिंग (१८७७),
•उत्तराद्थध भक्तमाल(१८७६-७७),
•प्रेम-प्रलाि (१८७७),
• ोली (१८७९),
•मधुमुक
ु ल (१८८१),
•राग-सिंग्र (१८८०),
•िषाथ-पििोद (१८८०),
•पििय प्रेम िचासा (१८८१),
•ि
ू लों का गुच्छा (१८८२),
•प्रेम ि
ु लिारी (१८८३)
•कर ष्णचररत्र (१८८३)
•दािलीला
•तन्मय लीला
•िये ज़मािे की मुकरी
•सुमिािंिसल
•बन्दर सभा ( ास्य व्यिंग)
•बकरी पिलाि ( ास्य व्यिंग)
िवजागरण काल (भारतेंदु युग) क
े प्रमुख कवव और कववता
प्रताििारायण समश्र
कववता :
1प्रेमिुष्िािली,
2मि की ल र,
3ब्रैडला स्िागत,
4दिंगल खिंड,
5काििुर म ात्म्य,
6श्ररिंगारपिलास,
7लोकोजक्तशतक,
8दीिो बर मि (उदूथ)
2.सुधार काल (द्वववेदी युग)
ह िंदी कपिता को िया रिंगरूि देिे में श्रीघर िाठक का म त्ििूणथ योगदाि ै। उन् ें
प्रथम स्िच्छिंदतािादी कपि क ा िाता ै। उिकी एकािंत योगी और कश्मीर सुषमा
खडी बोली की सुप्रससद्ध रचिाएिं ैं। रामिरेश द्पििेदी िे अििे िधथक समलि और
स्िप्ि म ाकाव्यों में इस धारा का पिकास फकया। अयोध्याससिं उिाध्याय
' ररऔध' क
े पप्रय प्रिास को खडी बोली का ि ला म ाकाव्य मािा गया ै।
म ािीर प्रसाद द्पििेदी की प्रेरणा से मैधथलीशरण गुप्त िे खडी बोली में अिेक काव्यों
की रचिा की। इि काव्यों में भारत भारती, साक
े त, ियद्रथ िध ििंचिटी और
ियभारत आहद उल्लेखिीय ैं। उिकी 'भारत भारती' में स्िाधीिता आिंदोलि की
ललकार ै। राष्रीय प्रेम उिकी कपिताओिं का प्रमुख स्िर ै।
इस काल क
े अन्य कपियों में ससयाराम शरण गुप्त, सुभद्राक
ु मारी चौ ाि, िाथूराम
शिंकर शमाथ तथा गयाप्रसाद शुक्ल 'सिे ी' आहद क
े िाम उल्लेखिीय ैं।
म ावीर प्रसाद द्वववेदी
कववताएँ
आयथ-भूसम
िन्मभूसम
भारतिषथ
देशोिालम्भ
सुधार काल (द्पििेदी युग) क
े प्रमुख कवव और कववता
मैथिलीशरण गुप्त
म ाकाव्य- साक
े त
 खिंड काव्य- ियद्रथ िध,
1. भारत-भारती,
2. ििंचिटी,
3. यशोधरा,
4. द्िािर,
5. ससद्धराि,
6. ि ुष,
7. अिंिसल और अध्यथ,
8. अजित,
9. अिथि और पिसिथि
10. काबा और कबथला
11. फकसाि,
अिूहदत- मेघिाथ िध,
1. िीरािंगिा,
2. स्िप्ि िासिदत्ता,
3. रत्िािली,
4. रूबाइयात उमर खय्याम
सुभद्राक
ु मारी चौ ाि
•झािंसी की रािी
•मेरा िया बचिि
•िसलयााँिाला बाग में बसिंत
•साध
•य कदम्ब का िेड
•ठु करा दो या प्यार करो
•कोयल
•िािी और धूि
•िीरों का ो क
ै सा िसन्त
•खखलौिेिाला
•उल्लास
•खझलसमल तारे
•मधुमय प्याली
•मेरा िीिि /
•झााँसी की रािी की समाधध िर चौ ाि
•इसका रोिा
•िीम
•मुरझाया ि
ू ल
•ि
ू ल क
े प्रनत
•चलते समय
3.छायािादी युग
१९१६ क
े आसिास ह िंदी में कल्ििािूणथ, स्िच्छिंद और भािुक एक ल र
उमडी। भाषा, भाि, शैली, छिंद, अलिंकार सब दृजष्टयों से िुरािी कपिता से
इसका कोई मेल ि था। आलोचकों िे इसे छायािाद या छायािादी कपिता का
िाम हदया। आधुनिक ह िंदी कपिता की सिथश्रेष्ठ उिलजधध इस काल की
कपिता में समलती ै। लाक्षखणकता, धचत्रमयता, िूति प्रतीक पिधाि,
व्यिंग्यात्मकता, मधुरता, सरसता आहद गुणों क
े कारण छायािादी कपिता िे
धीरे-धीरे अििा प्रशिंसक िगथ उत्िन्ि कर सलया। छायािाद शधद का सबसे
ि ले प्रयोग मुक
ु टधर िाण्डेय िे फकया।
शधद चयि और कोमलकािंत िदािली क
े कारण इनतिरत्तात्मक (म ाकाव्य और
प्रबिंध काव्य जििमें फकसी कथा का िणथि ोता ै) युग की खुरदरी खडी बोली
सौंदयथ, प्रेम और िेदिा क
े ग ि भािों को ि ि करिे योग्य बिी। ह िंदी कपिता
क
े अिंतरिंग और बह रिंग में एकदम िररितथि ो गया। िस्तु निरूिण क
े स्थाि
िर अिुभूनत निरूिण को प्रमुखता समली। प्रकर नत का प्राणमय प्रदेश कपिता में
आया।
छायावाद क
े प्रमुख कवव और कववता
म ादेिी िमाथ
१. िी ार (१९३०)
२. रजश्म (१९३२)
३. िीरिा (१९३४)
४. सािंध्यगीत (१९३६)
५. दीिसशखा (१९४२)
६. सप्तिणाथ (अिूहदत-
१९५९)
७. प्रथम आयाम (१९७४)
८. अजग्िरेखा (१९९०)
कववता सिंग्र
ियशिंकर प्रसाद
काव्य
•कािि क
ु सुम
•म ाराणा का म त्ि
•झरिा
•आिंसू
•ल र
•कामायिी
•प्रेम िधथ
सूयथकािंत त्रत्रिाठी निराला
•काव्यसिंग्र :
•अिासमका,
•िररमल,
•गीनतका,
•द्पितीयअिासम
का,
•तुलसीदास,
•क
ु क
ु रमुत्ता,
•अखणमा,
•बेला,
•िये ित्ते,
•अचथिा,
•आराधिा,
•गीतक
ुिं ि,
• सािंध्य काकली,
•अिरा।
सुसमत्राििंदि ििंत
काव्य
कर नतयााँ
ग्रजन्थ,
गुिंिि,
ग्राम्या,
युगािंत,
स्िणथफकरण,
स्िणथधूसल,
कला और
बूढा चााँद,
लोकायति,
धचदिंबरा,
सत्यकाम
4.प्रगनतवादी युग
सि १९३६ को आसिास से कपिता क
े क्षेत्र में बडा िररितथि हदखाई िडा
प्रगनतिाद िे कपिता को िीिि क
े यथाथथ से िोडा। प्रगनतिादी कपि कालथ
माक्सथ की समाििादी पिचारधारा से प्रभापित ैं।
युग की मािंग क
े अिुरूि छायािादी कपि सुसमत्राििंदि ििंत और सूयथकािंत
त्रत्रिाठी निराला िे अििी बाद की रचिाओिं में प्रगनतिाद का साथ हदया। िरेंद्र
शमाथ और हदिकर िे भी अिेक प्रगनतिादी रचिाएिं कीिं। प्रगनतिाद क
े प्रनत
समपिथत कपियों में क
े दारिाथ अग्रिाल, िागािुथि, , रामपिलास ,शमशेर
ब ादुर ससिं शमाथ, त्रत्रलोचि शास्त्री और मुजक्तबोध क
े िाम उल्लेखिीय ैं।
इस धारा में समाि क
े शोपषत िगथ -मज़दूर और फकसािों-क
े प्रनत स ािुभूनत
व्यक्त की गयी, धासमथक रूहढयों और सामाजिक पिषमता िर चोट की गयी
और ह िंदी कपिता एक बार फिर खेतों और खसल ािों से िुडी।
प्रगनतवादी युग क
े प्रमुख कवव और
कववता
क
े दारिाथ अग्रिाल
•गुलमें दी
• े मेरी तुम
•िमुि िल तुम
•िो सशलाएाँ तोडते ैं
•क ें क
े दार खरी खरी
•खुली आाँखें खुले डैिे
•क
ु की कोयल खडे िेड की दे
•मार प्यार की थािें
•ि
ू ल ि ीिं, रिंग बोलते ैं-1
•ि
ू ल ि ीिं, रिंग बोलते ैं-2
•आग का आइिा
•ििंख और ितिार
•अिूिाथ
•िीिंद क
े बादल
िागाजुुि
• अििे खेत में,
•युगधारा,
•सतरिंगे ििंखों िाली,
• तालाब की मछसलयािं,
•खखचडी पििल्ि देखा मिे,
• िार- िार बा ों िाली,
•िुरािी िूनतयों का कोरस,
तुमिे क ा था,
• आखखर ऐसा क्या क हदया
मैंिे,
•इस गुबार की छाया में,
•ओम मिंत्र,
•भूल िाओ िुरािे सििे,
•रत्िगभथ।
शमशेर ब ादुर ससिं
•"आकाशे दामामा बाजे...
•अज्ञेय से
•उषा
•लौट आ, ओ धार!
•चुका भी ूँ मैं ि ीिं
•मैं भारत गुण-गौरव गाता
•सजल स्िे का भूषण क
े वल
•वकील करो
•सौंदयु
•िरिराता र ा
•चािंद से िोडी-सी गप्पें
•एक आदमी दो प ाड़ों को क
ु निय़ों से ठेलता
•भारत की आरती
•प्रेम
•फिर भी क्य़ों
त्रिलोचि शास्िी
कववता सिंग्र -
•धरती(1945),
•गुलाब और बुलबुल(1956),
•हदगिंत(1957),
•ताप क
े ताए ुए हदि(1980),
•शब्द(1980),
•उस जिपद का कवव ूँ (1981)
•अरधाि (1984),
•तुम् ें सौंपता ूँ( 1985),
•मेरा घर,
•चैती,
•अिक िी भी,
•जीिे की कला(2004)
5.प्रयोगवाद
प्रगनतिाद क
े समािािंतर प्रयोगिाद की धारा भी प्रिाह त ुई।
अज्ञेय को इस धारा का प्रितथक स्िीकर फकया गया। सि १९४३
में अज्ञेय िे तार सप्तक का प्रकाशि फकया। इसक
े सात कपियों
में प्रगनतिादी कपि अधधक थे। रामपिलास शमाथ, प्रभाकर
माचिे, िेसमचिंद िैि, गिािि माधि मुजक्तबोध, धगररिाक
ु मार
माथुर और भारतभूषण अग्रिाल ये सभी कपि प्रगनतिादी ैं।
इि कपियों िे कथ्य और असभव्यजक्त की दृजष्ट से अिेक िए
िए प्रयोग फकये। अत: तारसप्तक को प्रयोगिाद का आधार
ग्रिंथ मािा गया। अज्ञेय द्िारा सिंिाहदत प्रतीक में इि कपियों
की अिेक रचिाएिं प्रकासशत ुयीिं।
राम पिलास शमाथ
•चािंदिी
•िररणनत
•क
े रल
•समुद्र क
े फकिारे
•तूिाि क
े समय
•कतकी
•ससल ार
•शारदीया
•हदिा-स्िप्ि
•तैर र े बादल
•िीलाभ झील िर
•अल् ड ि
ु ारें
•कपि
प्रयोगवाद क
े प्रमुख कवव और कववता
प्रभाकर माचवे
•तार सप्तक (तार-सप्तक में सिंकस
कपिताएाँ)
•अिुक्षण (कपिता सिंग्र )
•स्वप्ि भिंग (कपिता सिंग्र )
•ववश्वकमाु (कपिता सिंग्र )
•तेल की पकौडडयाँ (कपिता सिंग्र )
काव्य-सिंग्र
थगररजाक
ु मार मािुर
•मिंदार,
•मिंजीर,
•िाश और
निमाुण,
•धूप क
े धाि,
•सशलापिंख
चमकीले
काव्य-सिंग्र
6.िई कववता और समकालीि कववता
सि १९५३ ईस्िी में इला ाबाद से "िई कपिता" ित्रत्रका का प्रकाशि ुआ। इस ित्रत्रका में िई
कपिता को प्रयोगिाद से सभन्ि रूि में प्रनतजष्ठत फकया गया। दूसरा सप्तक(१९५१), तीसरा
सप्तक(१९५९) तथा चौथे सप्तक क
े कपियों को भी िए कपि क ा गया। िस्तुत: िई कपिता को
प्रयोगिाद का ी सभन्ि रूि मािा िाता ै। इसमें भी दो धराएिं िररलक्षक्षत ोती ैं।
िैयजक्तकता को सुरक्षक्षत रखिे का प्रयत्ि करिे िाली धारा जिसमें अज्ञेय, धमथिीर भारती,
क
ुिं िर िारायण, श्रीकािंत िमाथ,िगदीश गुप्त प्रमुख ैं तथा प्रगनतशील धारा जिसमें गिािि
माधि मुजक्तबोध, रामपिलास शमाथ, िागािुथि, शमशेर ब ादुर ससिं , त्रत्रलोचि शास्त्री, रघुिीर
स ाय, क
े दारिाथ ससिं तथा सुदामा िािंडेय धूसमल आहद उल्लेखिीय ैं। सिेश्िर दयाल
सक्सेिा में इि दोिों धराओिं का मेल हदखाई िडता ै। इि दोिो ी धाराओिं में अिुभि की
प्रामाखणकता, लघुमािि की प्रनतष्ठा तथा बौधधकता का आग्र आहद प्रमुख प्रिरपत्तयािं ैं।
साधारण बोलचाल की शधदािली में असाधारण अथथ भर देिा इिकी भाषा की पिशेषता ै।
समकालीि कपिता मे गीत ििगीत और गज़ल की ओर रूझाि बढा ै। आि ह िंदी की निरिंतर
गनतशील और व्यािक ोती ुई काव्यधारा में सिंिूणथ भारत क
े सभी प्रदेशों क
े साथ ी साथ
सिंिूणथ पिश्ि में लोफकपप्रय ो र ी ै। इसमें आि देश पिदेश में र िे िाले अिेक िागररकताओिं
क
े असिंख्य पिद्िािों और प्रिासी भारतीयों का योगदाि निरिंतर िारी ै।
आधुनिक ह न्दी साह त्य में
गद्य का पिकास
आधुनिक ह न्दी गद्य का पिकास क
े िल ह न्दी भाषी क्षेत्रों तक ी सीसमत
ि ीिं र ा। िूरे देश में और र प्रदेश में ह न्दी की लोकपप्रयता ि
ै ली और अिेक
अन्य भाषी लेखकों िे ह न्दी में साह त्य रचिा करक
े इसक
े पिकास में
म त्त्ििूणथ योगदाि फकया।
ह न्दी गद्य क
े पिकास को पिसभन्ि सोिािों में पिभक्त फकया िा सकता ै।
१.भारतेंदु िूिथ युग १८०० ईस्िी से १८५० ईस्िी तक
२.भारतेंदु युग १८५० ईस्िी से १९०० ईस्िी तक
३.द्पििेदी युग १९०० ईस्िी से १९२० ईस्िी तक
४.रामचिंद्र शुक्ल ि प्रेमचिंद युग १९२० ईस्िी से १९३६ ईस्िी तक
५.अद्यति युग १९३६ ईस्िी से आितक
1.भारतेंदु िूिथ युग
ह न्दी में गद्य का पिकास १९िीिं शताधदी क
े आसिास ुआ। इस पिकास में
कलकत्ता क
े िोटथ पिसलयम कॉलेि की म त्त्ििूणथ भूसमका र ी। इस कॉलेि क
े
दो पिद्िािों लल्लूलाल िी तथा सदल समश्र िे धगलक्राइस्ट क
े निदेशि में
क्रमश: प्रेमसागर तथा िाससक
े तोिाख्याि िामक िुस्तक
ें तैयार कीिं। इसी
समय सदासुखलाल िे सुखसागर तथा मुिंशी इिंशा अल्ला खािं िे रािी क
े तकी
की क ािी की रचिा की इि सभी ग्रिंथों की भाषा में उस समय प्रयोग में
आिेिाली खडी बोली को स्थाि समला।
आधुनिक खडी बोली क
े गद्य क
े पिकास में पिसभन्ि धमों की िररचयात्मक
िुस्तकों का खूब स योग र ा जिसमें ईसाई धमथ का भी योगदाि र ा। बिंगाल
क
े रािा राम मो ि राय िे १८१५ ईस्िी में िेदािंतसूत्र का ह न्दी अिुिाद
प्रकासशत करिाया। इसक
े बाद उन् ोंिे १८२९ में बिंगदूत िामक ित्र ह न्दी में
निकाला। इसक
े ि ले ी १८२६ में काििुर क
े ििं िुगल फकशोर िे ह न्दी का
ि ला समाचार ित्र उदिंतमातंड कलकत्ता से निकाला। इसी समय गुिराती
भाषी आयथसमाि सिंस्थािक स्िामी दयाििंद िे अििा प्रससद्ध ग्रिंथ सत्याथथ
प्रकाश ह न्दी में सलखा।
2.भारतेंदु युग
भारतेंदु ररश्चिंद्र (१८५५-१८८५) को ह न्दी-साह त्य क
े आधुनिक युग का प्रनतनिथध मािा जाता ै। उन् ़ोंिे कवववचि
सुधा, ररश्चन्द्र मैगजीि और ररश्चिंद्र पत्रिका निकाली। साि ी अिेक िाटक़ों की रचिा की। उिक
े प्रससद्ध िाटक ैं
- चिंद्रावली, भारत दुदुशा, अिंधेर िगरी। ये िाटक रिंगमिंच पर भी ब ुत लोकवप्रय ुए। इस काल में निबिंध िाटक
उपन्यास तिा क ानिय़ों की रचिा ुई। इस काल क
े लेखक़ों में बालकृ ष्ण भट्ट, प्रताप िारायण समश्र, राधा चरण
गोस्वामी, उपाध्याय बदरीिाि चौधरी 'प्रेमघि', लाला श्रीनिवास दास, बाबू देवकी ििंदि खिी, और फकशोरी लाल
गोस्वामी आहद उल्लेखिीय ैं। इिमें से अथधकािंश लेखक ोिे क
े साि साि पिकार भी िे।
श्रीनिवासदास क
े उपन्यास परीक्षागुरू को ह न्दी का प ला उपन्यास क ा जाता ै। क
ु छ ववद्वाि श्रद्धाराम ि
ु ल्लौरी क
े
उपन्यास भाग्यवती को ह न्दी का प ला उपन्यास मािते ैं। बाबू देवकीििंदि खिी का चिंद्रकािंता तिा चिंद्रकािंता सिंतनत
आहद इस युग क
े प्रमुख उपन्यास ैं। ये उपन्यास इतिे लोकवप्रय ुए फक इिको पढ़िे क
े सलये ब ुत से अह िंदी भावषय़ों
िे ह िंदी सीखी। इस युग की क ानिय़ों में 'सशवप्रसाद ससतारे ह न्द' की राजा भोज का सपिा म त्त्वपूणु ै।भारतेंदु युग
भारतेंदु ररश्चिंद्र (१८५५-१८८५) को ह न्दी-साह त्य क
े आधुनिक युग का प्रनतनिथध मािा जाता ै। उन् ़ोंिे कवववचि
सुधा, ररश्चन्द्र मैगजीि और ररश्चिंद्र पत्रिका निकाली। साि ी अिेक िाटक़ों की रचिा की। उिक
े प्रससद्ध िाटक ैं
- चिंद्रावली, भारत दुदुशा, अिंधेर िगरी। ये िाटक रिंगमिंच पर भी ब ुत लोकवप्रय ुए। इस काल में निबिंध िाटक
उपन्यास तिा क ानिय़ों की रचिा ुई। इस काल क
े लेखक़ों में बालकृ ष्ण भट्ट, प्रताप िारायण समश्र, राधा चरण
गोस्वामी, उपाध्याय बदरीिाि चौधरी 'प्रेमघि', लाला श्रीनिवास दास, बाबू देवकी ििंदि खिी, और फकशोरी लाल
गोस्वामी आहद उल्लेखिीय ैं। इिमें से अथधकािंश लेखक ोिे क
े साि साि पिकार भी िे।
श्रीनिवासदास क
े उपन्यास परीक्षागुरू को ह न्दी का प ला उपन्यास क ा जाता ै। क
ु छ ववद्वाि श्रद्धाराम ि
ु ल्लौरी क
े
उपन्यास भाग्यवती को ह न्दी का प ला उपन्यास मािते ैं। बाबू देवकीििंदि खिी का चिंद्रकािंता तिा चिंद्रकािंता सिंतनत
आहद इस युग क
े प्रमुख उपन्यास ैं। ये उपन्यास इतिे लोकवप्रय ुए फक इिको पढ़िे क
े सलये ब ुत से अह िंदी भावषय़ों
िे ह िंदी सीखी। इस युग की क ानिय़ों में 'सशवप्रसाद ससतारे ह न्द' की राजा भोज का सपिा म त्त्वपूणु ै।
3.द्वववेदी युग
आचायथ म ािीरप्रसाद द्पििेदी क
े िाम िर ी इस युग का िाम 'द्पििेदी युग' रखा
गया। सि १९०३ ईस्िी में द्पििेदी िी िे सरस्िती ित्रत्रका क
े सिंिादि का भार
सिंभाला। उन् ोंिे खडी बोली गद्य क
े स्िरूि को जस्थर फकया और ित्रत्रका क
े माध्यम
से रचिाकारों क
े एक बडे समुदाय को खडी बोली में सलखिे को प्रेररत फकया। इस काल
में निबिंध, उिन्यास, क ािी, िाटक एििं समालोचिा का अच्छा पिकास ुआ।
इस युग क
े निबिंधकारों में ििं म ािीर प्रसाद द्पििेदी, माधि प्रसाद समश्र, श्याम
सुिंदर दास, चिंद्रधर शमाथ गुलेरी, बाल मुक
िं द गुप्त और अध्यािक िूणथ ससिं आहद
उल्लेखिीय ैं। इिक
े निबिंध गिंभीर, लसलत एििं पिचारात्मक ैं, फकशोरीलाल गोस्िामी
और बाबू गोिाल राम ग मरी क
े उिन्यासों में मिोरिंिि और घटिाओिं की रोचकता
ै। ह िंदी क ािी का िास्तपिक पिकास 'द्पििेदी युग' से ी शुरू ुआ। फकशोरी लाल
गोस्िामी की इिंदुमती क ािी को क
ु छ पिद्िाि ह िंदी की ि ली क ािी मािते ैं। अन्य
क ानियों में बिंग मह ला की दुलाई िाली, शुक्ल िी की ग्यार िषथ का समय, प्रसाद
िी की ग्राम और चिंद्रधर शमाथ गुलेरी की उसिे क ा था म त्त्ििूणथ ैं। समालोचिा क
े
क्षेत्र में िद्मससिं शमाथ उल्लेखिीय ैं। " ररऔध", सशिििंदि स ाय तथा राय
देिीप्रसाद िूणथ द्िारा क
ु छ िाटक सलखे गए।
4.रामचिंद्र शुक्ल एविं प्रेमचिंद युग
गद्य क
े पिकास में इस युग का पिशेष म त्त्ि ै। ििं रामचिंद्र शुक्ल (१८८४-१९४१) िे निबिंध, ह न्दी साह त्य क
े इनत ास
और समालोचिा क
े क्षेत्र में गिंभीर लेखि फकया। उन् ोंिे मिोपिकारों िर ह िंदी में ि ली बार निबिंध लेखि फकया।
साह त्य समीक्षा से सिंबिंधधत निबिंधों की भी रचिा की। उिक
े निबिंधों में भाि और पिचार अथाथत्बुद्धध और हृदय दोिों
का समन्िय ै। ह िंदी शधदसागर की भूसमका क
े रूि में सलखा गया उिका इनत ास आि भी अििी साथथकता बिाए ुए
ै। िायसी, तुलसीदास और सूरदास िर सलखी गयी उिकी आलोचिाओिं िे भािी आलोचकों का मागथदशथि फकया। इस
काल क
े अन्य निबिंधकारों में िैिेन्द्र क
ु मार िैि, ससयारामशरण गुप्त, िदुमलाल िुन्िालाल बख्शी और ियशिंकर
प्रसाद आहद उल्लेखिीय ैं।
कथा साह त्य क
े क्षेत्र में प्रेमचिंद िे क्रािंनत ी कर डाली। अब कथा साह त्य क
े िल मिोरिंिि, कौतू ल और िीनत का
पिषय ी ि ीिं र ा बजल्क सीधे िीिि की समस्याओिं से िुड गया। उन् ोंिे सेिा सदि, रिंगभूसम, निमथला, गबि एििं
गोदाि आहद उिन्यासों की रचिा की। उिकी तीि सौ से अधधक क ानियािं मािसरोिर क
े आठ भागों में तथा गुप्तधि
क
े दो भागों में सिंग्रह त ैं। िूस की रात, क़िि, शतरिंि क
े खखलाडी, ििंच िरमेश्िर, िमक का दरोगा तथा ईदगा आहद
उिकी क ानियािं खूब लोकपप्रय ुयीिं। इसकाल क
े अन्य कथाकारों में पिश्ििंभर शमाथ 'कौसशक", िरिंदाििलाल िमाथ, रा ुल
सािंकर त्यायि, िािंडेय बेचि शमाथ 'उग्र', उिेन्द्रिाथ अश्क, ियशिंकर प्रसाद, भगितीचरण िमाथ आहद क
े िाम उल्लेखिीय
ैं।
िाटक क
े क्षेत्र में ियशिंकर प्रसाद का पिशेष स्थाि ै। इिक
े चिंद्रगुप्त, स्क
िं दगुप्त, ध्रुिस्िासमिी िैसे ऐनत ाससक िाटकों
में इनत ास और कल्ििा तथा भारतीय और िाश्चात्य िाट्य िद्यनतयों का समन्िय ुआ ै। लक्ष्मीिारायण समश्र,
ररकर ष्ण प्रेमी, िगदीशचिंद्र माथुर आहद इस काल क
े उल्लेखिीय िाटककार ैं।िाटक क
े क्षेत्र में ियशिंकर प्रसाद का
पिशेष स्थाि ै। इिक
े चिंद्रगुप्त, स्क
िं दगुप्त, ध्रुिस्िासमिी िैसे ऐनत ाससक िाटकों में इनत ास और कल्ििा तथा
भारतीय और िाश्चात्य िाट्य िद्यनतयों का समन्िय ुआ ै। लक्ष्मीिारायण समश्र, ररकर ष्ण प्रेमी, िगदीशचिंद्र माथुर
आहद इस काल क
े उल्लेखिीय िाटककार ैं।
5.अद्यति काल
इस काल में गद्य का च ुिंमुखी पिकास ुआ। ििं िारी प्रसाद द्पििेदी,
िैिेन्द्र, अज्ञेय, यशिाल, ििंददुलारे िाििेयी, िगेंद्र, रामिरक्ष बेिीिुरी तथा डा
रामपिलास शमाथ आहद िे पिचारात्मक निबिंधों की रचिा की ै। िारी प्रसाद
द्पििेदी, पिद्यानििास समश्र, कन् ैयालाल समश्र प्रभाकर, पििेकी राय, और क
ु बेरिाथ
राय िे लसलत निबिंधों की रचिा की ै। ररशिंकर िरसािंई,शरद िोशी, श्रीलाल शुक्ल,
रिीिंन्द्रिाथ त्यागी, तथा क
े िी सक्सेिा, क
े व्यिंग्य आि क
े िीिि की पिद्रूिताओिं क
े
उद्घाटि में सिल ुए ैं।
िैिेन्द्र, अज्ञेय, यशिाल, इलाचिंद्र िोशी, अमरतलाल िागर, रािंगेय राघि और भगिती
चरण िमाथ िे उल्लेखिीय उिन्यासों की रचिा की। िागािुथि, िणीश्िर िाथ रेणु,
अमरतराय, तथा रा ी मासूम रज़ा िे लोकपप्रय आिंचसलक उिन्यास सलखे ैं।मो ि
राक
े श, रािेन्द्र यादि, मन्िू भिंडारी, कमलेश्िर, भीष्म सा िी, भैरि प्रसाद गुप्त, आहद
िे आधुनिक भाि बोध िाले अिेक उिन्यासों और क ानियों की रचिा की ै।
अमरकािंत, निमथल िमाथ तथा ज्ञािरिंिि आहद भी िए कथा साह त्य क
े म त्ििूणथ
स्तिंभ ैं।
प्रसादोत्तर िाटकों क
े क्षेत्र में लक्ष्मीिारायण लाल, लक्ष्मीकािंत
िमाथ, तथा मो ि राक
े श क
े िाम उल्लेखिीय ैं। कन् ैयालाल
समश्र प्रभाकर, रामिरक्ष बेिीिुरी तथा बिारसीदास चतुिेदी आहद
िे सिंस्मरण रेखाधचत्र ि िीििी आहद की रचिा की ै। शुक्ल
िी क
े बाद ििं ज़ारी प्रसाद द्पििेदी, ििंद दुलारे िाििेयी,
िगेन्द्र, रामपिलास शमाथ तथा िामिर ससिं िे ह िंदी समालोचिा
को समरद्ध फकया।
आि गद्य की अिेक ियी पिधाओिं िैसे यात्रा िरत्तािंत, ररिोताथि,
रेडडयो रूिक, आलेख आहद में पििुल साह त्य की रचिा ो र ी
ै और गद्य की पिधाएिं एक दूसरे से समल र ी ैं।

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  • 1.
  • 2. आधुनिक काल (१८५० ईस्वी क े पश्चात) आधुनिक काल ह िंदी साह त्य पिछली दो सहदयों में पिकास क े अिेक िडािों से गुज़रा ै। जिसमें गद्य तथा िद्य में अलग अलग पिचार धाराओिं का पिकास ुआ। ि ािं काव्य में इसे छायािादी युग, प्रगनतिादी युग, प्रयोगिादी युग और यथाथथिादी युग इि चार िामों से िािा गया, ि ीिं गद्य में इसको, भारतेंदु युग, द्पििेदी युग, रामचिंद शुक्ल ि प्रेमचिंद युग तथा अद्यति युग का िाम हदया गया। अद्यति युग क े गद्य साह त्य में अिेक ऐसी साह जत्यक पिधाओिं का पिकास ुआ िो ि ले या तो थीिं ी ि ीिं या फिर इतिी पिकससत ि ीिं थीिं फक उिको साह त्य की एक अलग पिधा का िाम हदया िा सक े । िैसे डायरी, यात्रा पििरण, आत्मकथा, रूिक, रेडडयो िाटक, िटकथा लेखि, फ़िल्म आलेख इत्याहद
  • 3. आधुनिक काल फक पिशेष्ता ह िंदी साह त्य का आधुनिक काल तत्कालीि राििैनतक गनतपिधधयों से प्रभापित ुआ। इसको ह िंदी साह त्य का सिथश्रेष्ठ युग मािा िा सकता ै, जिसमें िद्य क े साथ- साथ गद्य, समालोचिा, क ािी, िाटक इस काल में राष्रीय भाििा का भी पिकास ुआ।इसक े सलए श्ररिंगारी ब्रिभाषा की अिेक्षा खडी बोली उियुक्त समझी गई। समय की प्रगनत क े साथ गद्य और िद्य दोिों रूिों में खडी बोली का ियाथप्त पिकास ुआ। भारतेंदु बाबू ररश्चिंद्र तथा बाबू अयोध्या प्रसाद खत्रीिे खडी बोली क े दोिों रूिों को सुधारिे में म ाि प्रयत्ि फकया। उन् ोंिे अििी सिथतोन्मुखी प्रनतभा द्िारा ह िंदी साह त्य की सम्यक सिंिधथिा की।ि ित्रकाररता का भी पिकास ुआ।
  • 4. आधुनिक ह न्दी साह त्य में पद्य का ववकास
  • 5. आधुनिक काल की कपिता क े पिकास को निम्िसलखखत धाराओिं में बािंट सकते ैं। १.िििागरण काल (भारतेंदु युग) - १८५० ईस्िी से १९०० ईस्िी तक २.सुधार काल (द्पििेदी युग) - १९०० ईस्िी से १९२० ईस्िी तक ३.छायािाद- - १९२० ईस्िी से १९३६ ईस्िी तक ४.प्रगनतिाद प्रयोगिाद - १९३६ ईस्िी से १९५३ ईस्िी तक ५.िई कपिता ि समकालीि कपिता -१९५३ ईस्िी से आितक
  • 6. 1.िवजागरण काल (भारतेंदु युग) इस काल की कपिता की सबसे बडी पिशेषता य ै फक य ि ली बार िि-िीिि की समस्याओिं से सीधे िुडती ै। इसमें भजक्त और श्रिंगार क े साथ साथ समाि सुधार की भाििा भी असभव्यक्त ुई। िारिंिररक पिषयों की कपिता का माध्यम ब्रिभाषा ी र ी लेफकि ि ािं ये कपिताएिं िि िागरण क े स्िर की असभव्यजक्त करती ैं, ि ािं इिकी भाषा ह न्दी ो िाती ै। कपियों में भारतेंदु ररश्चिंद्र का व्यजक्तत्ि प्रधाि र ा। उन् ें िििागरण का अग्रदूत क ा िाता ै। प्रताि िारायण समश्र िे ह िंदी ह िंदू ह िंदुस्ताि की िकालत की। अन्य कपियों में उिाध्याय बदरीिारायण चौधरी 'िेमघि' क े िाम उल्लेखिीय ैं।
  • 7. भारतेंदु ररश्चिंद्र काव्यकृ नतयािं •भक्तसिथस्ि, •प्रेममासलका (१८७१), •प्रेम माधुरी (१८७५), •प्रेम-तरिंग (१८७७), •उत्तराद्थध भक्तमाल(१८७६-७७), •प्रेम-प्रलाि (१८७७), • ोली (१८७९), •मधुमुक ु ल (१८८१), •राग-सिंग्र (१८८०), •िषाथ-पििोद (१८८०), •पििय प्रेम िचासा (१८८१), •ि ू लों का गुच्छा (१८८२), •प्रेम ि ु लिारी (१८८३) •कर ष्णचररत्र (१८८३) •दािलीला •तन्मय लीला •िये ज़मािे की मुकरी •सुमिािंिसल •बन्दर सभा ( ास्य व्यिंग) •बकरी पिलाि ( ास्य व्यिंग) िवजागरण काल (भारतेंदु युग) क े प्रमुख कवव और कववता
  • 8. प्रताििारायण समश्र कववता : 1प्रेमिुष्िािली, 2मि की ल र, 3ब्रैडला स्िागत, 4दिंगल खिंड, 5काििुर म ात्म्य, 6श्ररिंगारपिलास, 7लोकोजक्तशतक, 8दीिो बर मि (उदूथ)
  • 9. 2.सुधार काल (द्वववेदी युग) ह िंदी कपिता को िया रिंगरूि देिे में श्रीघर िाठक का म त्ििूणथ योगदाि ै। उन् ें प्रथम स्िच्छिंदतािादी कपि क ा िाता ै। उिकी एकािंत योगी और कश्मीर सुषमा खडी बोली की सुप्रससद्ध रचिाएिं ैं। रामिरेश द्पििेदी िे अििे िधथक समलि और स्िप्ि म ाकाव्यों में इस धारा का पिकास फकया। अयोध्याससिं उिाध्याय ' ररऔध' क े पप्रय प्रिास को खडी बोली का ि ला म ाकाव्य मािा गया ै। म ािीर प्रसाद द्पििेदी की प्रेरणा से मैधथलीशरण गुप्त िे खडी बोली में अिेक काव्यों की रचिा की। इि काव्यों में भारत भारती, साक े त, ियद्रथ िध ििंचिटी और ियभारत आहद उल्लेखिीय ैं। उिकी 'भारत भारती' में स्िाधीिता आिंदोलि की ललकार ै। राष्रीय प्रेम उिकी कपिताओिं का प्रमुख स्िर ै। इस काल क े अन्य कपियों में ससयाराम शरण गुप्त, सुभद्राक ु मारी चौ ाि, िाथूराम शिंकर शमाथ तथा गयाप्रसाद शुक्ल 'सिे ी' आहद क े िाम उल्लेखिीय ैं।
  • 10. म ावीर प्रसाद द्वववेदी कववताएँ आयथ-भूसम िन्मभूसम भारतिषथ देशोिालम्भ सुधार काल (द्पििेदी युग) क े प्रमुख कवव और कववता
  • 11. मैथिलीशरण गुप्त म ाकाव्य- साक े त  खिंड काव्य- ियद्रथ िध, 1. भारत-भारती, 2. ििंचिटी, 3. यशोधरा, 4. द्िािर, 5. ससद्धराि, 6. ि ुष, 7. अिंिसल और अध्यथ, 8. अजित, 9. अिथि और पिसिथि 10. काबा और कबथला 11. फकसाि, अिूहदत- मेघिाथ िध, 1. िीरािंगिा, 2. स्िप्ि िासिदत्ता, 3. रत्िािली, 4. रूबाइयात उमर खय्याम
  • 12. सुभद्राक ु मारी चौ ाि •झािंसी की रािी •मेरा िया बचिि •िसलयााँिाला बाग में बसिंत •साध •य कदम्ब का िेड •ठु करा दो या प्यार करो •कोयल •िािी और धूि •िीरों का ो क ै सा िसन्त •खखलौिेिाला •उल्लास •खझलसमल तारे •मधुमय प्याली •मेरा िीिि / •झााँसी की रािी की समाधध िर चौ ाि •इसका रोिा •िीम •मुरझाया ि ू ल •ि ू ल क े प्रनत •चलते समय
  • 13. 3.छायािादी युग १९१६ क े आसिास ह िंदी में कल्ििािूणथ, स्िच्छिंद और भािुक एक ल र उमडी। भाषा, भाि, शैली, छिंद, अलिंकार सब दृजष्टयों से िुरािी कपिता से इसका कोई मेल ि था। आलोचकों िे इसे छायािाद या छायािादी कपिता का िाम हदया। आधुनिक ह िंदी कपिता की सिथश्रेष्ठ उिलजधध इस काल की कपिता में समलती ै। लाक्षखणकता, धचत्रमयता, िूति प्रतीक पिधाि, व्यिंग्यात्मकता, मधुरता, सरसता आहद गुणों क े कारण छायािादी कपिता िे धीरे-धीरे अििा प्रशिंसक िगथ उत्िन्ि कर सलया। छायािाद शधद का सबसे ि ले प्रयोग मुक ु टधर िाण्डेय िे फकया। शधद चयि और कोमलकािंत िदािली क े कारण इनतिरत्तात्मक (म ाकाव्य और प्रबिंध काव्य जििमें फकसी कथा का िणथि ोता ै) युग की खुरदरी खडी बोली सौंदयथ, प्रेम और िेदिा क े ग ि भािों को ि ि करिे योग्य बिी। ह िंदी कपिता क े अिंतरिंग और बह रिंग में एकदम िररितथि ो गया। िस्तु निरूिण क े स्थाि िर अिुभूनत निरूिण को प्रमुखता समली। प्रकर नत का प्राणमय प्रदेश कपिता में आया।
  • 14. छायावाद क े प्रमुख कवव और कववता म ादेिी िमाथ १. िी ार (१९३०) २. रजश्म (१९३२) ३. िीरिा (१९३४) ४. सािंध्यगीत (१९३६) ५. दीिसशखा (१९४२) ६. सप्तिणाथ (अिूहदत- १९५९) ७. प्रथम आयाम (१९७४) ८. अजग्िरेखा (१९९०) कववता सिंग्र
  • 15. ियशिंकर प्रसाद काव्य •कािि क ु सुम •म ाराणा का म त्ि •झरिा •आिंसू •ल र •कामायिी •प्रेम िधथ
  • 16. सूयथकािंत त्रत्रिाठी निराला •काव्यसिंग्र : •अिासमका, •िररमल, •गीनतका, •द्पितीयअिासम का, •तुलसीदास, •क ु क ु रमुत्ता, •अखणमा, •बेला, •िये ित्ते, •अचथिा, •आराधिा, •गीतक ुिं ि, • सािंध्य काकली, •अिरा।
  • 18. 4.प्रगनतवादी युग सि १९३६ को आसिास से कपिता क े क्षेत्र में बडा िररितथि हदखाई िडा प्रगनतिाद िे कपिता को िीिि क े यथाथथ से िोडा। प्रगनतिादी कपि कालथ माक्सथ की समाििादी पिचारधारा से प्रभापित ैं। युग की मािंग क े अिुरूि छायािादी कपि सुसमत्राििंदि ििंत और सूयथकािंत त्रत्रिाठी निराला िे अििी बाद की रचिाओिं में प्रगनतिाद का साथ हदया। िरेंद्र शमाथ और हदिकर िे भी अिेक प्रगनतिादी रचिाएिं कीिं। प्रगनतिाद क े प्रनत समपिथत कपियों में क े दारिाथ अग्रिाल, िागािुथि, , रामपिलास ,शमशेर ब ादुर ससिं शमाथ, त्रत्रलोचि शास्त्री और मुजक्तबोध क े िाम उल्लेखिीय ैं। इस धारा में समाि क े शोपषत िगथ -मज़दूर और फकसािों-क े प्रनत स ािुभूनत व्यक्त की गयी, धासमथक रूहढयों और सामाजिक पिषमता िर चोट की गयी और ह िंदी कपिता एक बार फिर खेतों और खसल ािों से िुडी।
  • 19. प्रगनतवादी युग क े प्रमुख कवव और कववता क े दारिाथ अग्रिाल •गुलमें दी • े मेरी तुम •िमुि िल तुम •िो सशलाएाँ तोडते ैं •क ें क े दार खरी खरी •खुली आाँखें खुले डैिे •क ु की कोयल खडे िेड की दे •मार प्यार की थािें •ि ू ल ि ीिं, रिंग बोलते ैं-1 •ि ू ल ि ीिं, रिंग बोलते ैं-2 •आग का आइिा •ििंख और ितिार •अिूिाथ •िीिंद क े बादल
  • 20. िागाजुुि • अििे खेत में, •युगधारा, •सतरिंगे ििंखों िाली, • तालाब की मछसलयािं, •खखचडी पििल्ि देखा मिे, • िार- िार बा ों िाली, •िुरािी िूनतयों का कोरस, तुमिे क ा था, • आखखर ऐसा क्या क हदया मैंिे, •इस गुबार की छाया में, •ओम मिंत्र, •भूल िाओ िुरािे सििे, •रत्िगभथ।
  • 21. शमशेर ब ादुर ससिं •"आकाशे दामामा बाजे... •अज्ञेय से •उषा •लौट आ, ओ धार! •चुका भी ूँ मैं ि ीिं •मैं भारत गुण-गौरव गाता •सजल स्िे का भूषण क े वल •वकील करो •सौंदयु •िरिराता र ा •चािंद से िोडी-सी गप्पें •एक आदमी दो प ाड़ों को क ु निय़ों से ठेलता •भारत की आरती •प्रेम •फिर भी क्य़ों
  • 22. त्रिलोचि शास्िी कववता सिंग्र - •धरती(1945), •गुलाब और बुलबुल(1956), •हदगिंत(1957), •ताप क े ताए ुए हदि(1980), •शब्द(1980), •उस जिपद का कवव ूँ (1981) •अरधाि (1984), •तुम् ें सौंपता ूँ( 1985), •मेरा घर, •चैती, •अिक िी भी, •जीिे की कला(2004)
  • 23. 5.प्रयोगवाद प्रगनतिाद क े समािािंतर प्रयोगिाद की धारा भी प्रिाह त ुई। अज्ञेय को इस धारा का प्रितथक स्िीकर फकया गया। सि १९४३ में अज्ञेय िे तार सप्तक का प्रकाशि फकया। इसक े सात कपियों में प्रगनतिादी कपि अधधक थे। रामपिलास शमाथ, प्रभाकर माचिे, िेसमचिंद िैि, गिािि माधि मुजक्तबोध, धगररिाक ु मार माथुर और भारतभूषण अग्रिाल ये सभी कपि प्रगनतिादी ैं। इि कपियों िे कथ्य और असभव्यजक्त की दृजष्ट से अिेक िए िए प्रयोग फकये। अत: तारसप्तक को प्रयोगिाद का आधार ग्रिंथ मािा गया। अज्ञेय द्िारा सिंिाहदत प्रतीक में इि कपियों की अिेक रचिाएिं प्रकासशत ुयीिं।
  • 24. राम पिलास शमाथ •चािंदिी •िररणनत •क े रल •समुद्र क े फकिारे •तूिाि क े समय •कतकी •ससल ार •शारदीया •हदिा-स्िप्ि •तैर र े बादल •िीलाभ झील िर •अल् ड ि ु ारें •कपि प्रयोगवाद क े प्रमुख कवव और कववता
  • 25. प्रभाकर माचवे •तार सप्तक (तार-सप्तक में सिंकस कपिताएाँ) •अिुक्षण (कपिता सिंग्र ) •स्वप्ि भिंग (कपिता सिंग्र ) •ववश्वकमाु (कपिता सिंग्र ) •तेल की पकौडडयाँ (कपिता सिंग्र ) काव्य-सिंग्र
  • 26. थगररजाक ु मार मािुर •मिंदार, •मिंजीर, •िाश और निमाुण, •धूप क े धाि, •सशलापिंख चमकीले काव्य-सिंग्र
  • 27. 6.िई कववता और समकालीि कववता सि १९५३ ईस्िी में इला ाबाद से "िई कपिता" ित्रत्रका का प्रकाशि ुआ। इस ित्रत्रका में िई कपिता को प्रयोगिाद से सभन्ि रूि में प्रनतजष्ठत फकया गया। दूसरा सप्तक(१९५१), तीसरा सप्तक(१९५९) तथा चौथे सप्तक क े कपियों को भी िए कपि क ा गया। िस्तुत: िई कपिता को प्रयोगिाद का ी सभन्ि रूि मािा िाता ै। इसमें भी दो धराएिं िररलक्षक्षत ोती ैं। िैयजक्तकता को सुरक्षक्षत रखिे का प्रयत्ि करिे िाली धारा जिसमें अज्ञेय, धमथिीर भारती, क ुिं िर िारायण, श्रीकािंत िमाथ,िगदीश गुप्त प्रमुख ैं तथा प्रगनतशील धारा जिसमें गिािि माधि मुजक्तबोध, रामपिलास शमाथ, िागािुथि, शमशेर ब ादुर ससिं , त्रत्रलोचि शास्त्री, रघुिीर स ाय, क े दारिाथ ससिं तथा सुदामा िािंडेय धूसमल आहद उल्लेखिीय ैं। सिेश्िर दयाल सक्सेिा में इि दोिों धराओिं का मेल हदखाई िडता ै। इि दोिो ी धाराओिं में अिुभि की प्रामाखणकता, लघुमािि की प्रनतष्ठा तथा बौधधकता का आग्र आहद प्रमुख प्रिरपत्तयािं ैं। साधारण बोलचाल की शधदािली में असाधारण अथथ भर देिा इिकी भाषा की पिशेषता ै। समकालीि कपिता मे गीत ििगीत और गज़ल की ओर रूझाि बढा ै। आि ह िंदी की निरिंतर गनतशील और व्यािक ोती ुई काव्यधारा में सिंिूणथ भारत क े सभी प्रदेशों क े साथ ी साथ सिंिूणथ पिश्ि में लोफकपप्रय ो र ी ै। इसमें आि देश पिदेश में र िे िाले अिेक िागररकताओिं क े असिंख्य पिद्िािों और प्रिासी भारतीयों का योगदाि निरिंतर िारी ै।
  • 28. आधुनिक ह न्दी साह त्य में गद्य का पिकास
  • 29. आधुनिक ह न्दी गद्य का पिकास क े िल ह न्दी भाषी क्षेत्रों तक ी सीसमत ि ीिं र ा। िूरे देश में और र प्रदेश में ह न्दी की लोकपप्रयता ि ै ली और अिेक अन्य भाषी लेखकों िे ह न्दी में साह त्य रचिा करक े इसक े पिकास में म त्त्ििूणथ योगदाि फकया। ह न्दी गद्य क े पिकास को पिसभन्ि सोिािों में पिभक्त फकया िा सकता ै। १.भारतेंदु िूिथ युग १८०० ईस्िी से १८५० ईस्िी तक २.भारतेंदु युग १८५० ईस्िी से १९०० ईस्िी तक ३.द्पििेदी युग १९०० ईस्िी से १९२० ईस्िी तक ४.रामचिंद्र शुक्ल ि प्रेमचिंद युग १९२० ईस्िी से १९३६ ईस्िी तक ५.अद्यति युग १९३६ ईस्िी से आितक
  • 30. 1.भारतेंदु िूिथ युग ह न्दी में गद्य का पिकास १९िीिं शताधदी क े आसिास ुआ। इस पिकास में कलकत्ता क े िोटथ पिसलयम कॉलेि की म त्त्ििूणथ भूसमका र ी। इस कॉलेि क े दो पिद्िािों लल्लूलाल िी तथा सदल समश्र िे धगलक्राइस्ट क े निदेशि में क्रमश: प्रेमसागर तथा िाससक े तोिाख्याि िामक िुस्तक ें तैयार कीिं। इसी समय सदासुखलाल िे सुखसागर तथा मुिंशी इिंशा अल्ला खािं िे रािी क े तकी की क ािी की रचिा की इि सभी ग्रिंथों की भाषा में उस समय प्रयोग में आिेिाली खडी बोली को स्थाि समला। आधुनिक खडी बोली क े गद्य क े पिकास में पिसभन्ि धमों की िररचयात्मक िुस्तकों का खूब स योग र ा जिसमें ईसाई धमथ का भी योगदाि र ा। बिंगाल क े रािा राम मो ि राय िे १८१५ ईस्िी में िेदािंतसूत्र का ह न्दी अिुिाद प्रकासशत करिाया। इसक े बाद उन् ोंिे १८२९ में बिंगदूत िामक ित्र ह न्दी में निकाला। इसक े ि ले ी १८२६ में काििुर क े ििं िुगल फकशोर िे ह न्दी का ि ला समाचार ित्र उदिंतमातंड कलकत्ता से निकाला। इसी समय गुिराती भाषी आयथसमाि सिंस्थािक स्िामी दयाििंद िे अििा प्रससद्ध ग्रिंथ सत्याथथ प्रकाश ह न्दी में सलखा।
  • 31. 2.भारतेंदु युग भारतेंदु ररश्चिंद्र (१८५५-१८८५) को ह न्दी-साह त्य क े आधुनिक युग का प्रनतनिथध मािा जाता ै। उन् ़ोंिे कवववचि सुधा, ररश्चन्द्र मैगजीि और ररश्चिंद्र पत्रिका निकाली। साि ी अिेक िाटक़ों की रचिा की। उिक े प्रससद्ध िाटक ैं - चिंद्रावली, भारत दुदुशा, अिंधेर िगरी। ये िाटक रिंगमिंच पर भी ब ुत लोकवप्रय ुए। इस काल में निबिंध िाटक उपन्यास तिा क ानिय़ों की रचिा ुई। इस काल क े लेखक़ों में बालकृ ष्ण भट्ट, प्रताप िारायण समश्र, राधा चरण गोस्वामी, उपाध्याय बदरीिाि चौधरी 'प्रेमघि', लाला श्रीनिवास दास, बाबू देवकी ििंदि खिी, और फकशोरी लाल गोस्वामी आहद उल्लेखिीय ैं। इिमें से अथधकािंश लेखक ोिे क े साि साि पिकार भी िे। श्रीनिवासदास क े उपन्यास परीक्षागुरू को ह न्दी का प ला उपन्यास क ा जाता ै। क ु छ ववद्वाि श्रद्धाराम ि ु ल्लौरी क े उपन्यास भाग्यवती को ह न्दी का प ला उपन्यास मािते ैं। बाबू देवकीििंदि खिी का चिंद्रकािंता तिा चिंद्रकािंता सिंतनत आहद इस युग क े प्रमुख उपन्यास ैं। ये उपन्यास इतिे लोकवप्रय ुए फक इिको पढ़िे क े सलये ब ुत से अह िंदी भावषय़ों िे ह िंदी सीखी। इस युग की क ानिय़ों में 'सशवप्रसाद ससतारे ह न्द' की राजा भोज का सपिा म त्त्वपूणु ै।भारतेंदु युग भारतेंदु ररश्चिंद्र (१८५५-१८८५) को ह न्दी-साह त्य क े आधुनिक युग का प्रनतनिथध मािा जाता ै। उन् ़ोंिे कवववचि सुधा, ररश्चन्द्र मैगजीि और ररश्चिंद्र पत्रिका निकाली। साि ी अिेक िाटक़ों की रचिा की। उिक े प्रससद्ध िाटक ैं - चिंद्रावली, भारत दुदुशा, अिंधेर िगरी। ये िाटक रिंगमिंच पर भी ब ुत लोकवप्रय ुए। इस काल में निबिंध िाटक उपन्यास तिा क ानिय़ों की रचिा ुई। इस काल क े लेखक़ों में बालकृ ष्ण भट्ट, प्रताप िारायण समश्र, राधा चरण गोस्वामी, उपाध्याय बदरीिाि चौधरी 'प्रेमघि', लाला श्रीनिवास दास, बाबू देवकी ििंदि खिी, और फकशोरी लाल गोस्वामी आहद उल्लेखिीय ैं। इिमें से अथधकािंश लेखक ोिे क े साि साि पिकार भी िे। श्रीनिवासदास क े उपन्यास परीक्षागुरू को ह न्दी का प ला उपन्यास क ा जाता ै। क ु छ ववद्वाि श्रद्धाराम ि ु ल्लौरी क े उपन्यास भाग्यवती को ह न्दी का प ला उपन्यास मािते ैं। बाबू देवकीििंदि खिी का चिंद्रकािंता तिा चिंद्रकािंता सिंतनत आहद इस युग क े प्रमुख उपन्यास ैं। ये उपन्यास इतिे लोकवप्रय ुए फक इिको पढ़िे क े सलये ब ुत से अह िंदी भावषय़ों िे ह िंदी सीखी। इस युग की क ानिय़ों में 'सशवप्रसाद ससतारे ह न्द' की राजा भोज का सपिा म त्त्वपूणु ै।
  • 32. 3.द्वववेदी युग आचायथ म ािीरप्रसाद द्पििेदी क े िाम िर ी इस युग का िाम 'द्पििेदी युग' रखा गया। सि १९०३ ईस्िी में द्पििेदी िी िे सरस्िती ित्रत्रका क े सिंिादि का भार सिंभाला। उन् ोंिे खडी बोली गद्य क े स्िरूि को जस्थर फकया और ित्रत्रका क े माध्यम से रचिाकारों क े एक बडे समुदाय को खडी बोली में सलखिे को प्रेररत फकया। इस काल में निबिंध, उिन्यास, क ािी, िाटक एििं समालोचिा का अच्छा पिकास ुआ। इस युग क े निबिंधकारों में ििं म ािीर प्रसाद द्पििेदी, माधि प्रसाद समश्र, श्याम सुिंदर दास, चिंद्रधर शमाथ गुलेरी, बाल मुक िं द गुप्त और अध्यािक िूणथ ससिं आहद उल्लेखिीय ैं। इिक े निबिंध गिंभीर, लसलत एििं पिचारात्मक ैं, फकशोरीलाल गोस्िामी और बाबू गोिाल राम ग मरी क े उिन्यासों में मिोरिंिि और घटिाओिं की रोचकता ै। ह िंदी क ािी का िास्तपिक पिकास 'द्पििेदी युग' से ी शुरू ुआ। फकशोरी लाल गोस्िामी की इिंदुमती क ािी को क ु छ पिद्िाि ह िंदी की ि ली क ािी मािते ैं। अन्य क ानियों में बिंग मह ला की दुलाई िाली, शुक्ल िी की ग्यार िषथ का समय, प्रसाद िी की ग्राम और चिंद्रधर शमाथ गुलेरी की उसिे क ा था म त्त्ििूणथ ैं। समालोचिा क े क्षेत्र में िद्मससिं शमाथ उल्लेखिीय ैं। " ररऔध", सशिििंदि स ाय तथा राय देिीप्रसाद िूणथ द्िारा क ु छ िाटक सलखे गए।
  • 33. 4.रामचिंद्र शुक्ल एविं प्रेमचिंद युग गद्य क े पिकास में इस युग का पिशेष म त्त्ि ै। ििं रामचिंद्र शुक्ल (१८८४-१९४१) िे निबिंध, ह न्दी साह त्य क े इनत ास और समालोचिा क े क्षेत्र में गिंभीर लेखि फकया। उन् ोंिे मिोपिकारों िर ह िंदी में ि ली बार निबिंध लेखि फकया। साह त्य समीक्षा से सिंबिंधधत निबिंधों की भी रचिा की। उिक े निबिंधों में भाि और पिचार अथाथत्बुद्धध और हृदय दोिों का समन्िय ै। ह िंदी शधदसागर की भूसमका क े रूि में सलखा गया उिका इनत ास आि भी अििी साथथकता बिाए ुए ै। िायसी, तुलसीदास और सूरदास िर सलखी गयी उिकी आलोचिाओिं िे भािी आलोचकों का मागथदशथि फकया। इस काल क े अन्य निबिंधकारों में िैिेन्द्र क ु मार िैि, ससयारामशरण गुप्त, िदुमलाल िुन्िालाल बख्शी और ियशिंकर प्रसाद आहद उल्लेखिीय ैं। कथा साह त्य क े क्षेत्र में प्रेमचिंद िे क्रािंनत ी कर डाली। अब कथा साह त्य क े िल मिोरिंिि, कौतू ल और िीनत का पिषय ी ि ीिं र ा बजल्क सीधे िीिि की समस्याओिं से िुड गया। उन् ोंिे सेिा सदि, रिंगभूसम, निमथला, गबि एििं गोदाि आहद उिन्यासों की रचिा की। उिकी तीि सौ से अधधक क ानियािं मािसरोिर क े आठ भागों में तथा गुप्तधि क े दो भागों में सिंग्रह त ैं। िूस की रात, क़िि, शतरिंि क े खखलाडी, ििंच िरमेश्िर, िमक का दरोगा तथा ईदगा आहद उिकी क ानियािं खूब लोकपप्रय ुयीिं। इसकाल क े अन्य कथाकारों में पिश्ििंभर शमाथ 'कौसशक", िरिंदाििलाल िमाथ, रा ुल सािंकर त्यायि, िािंडेय बेचि शमाथ 'उग्र', उिेन्द्रिाथ अश्क, ियशिंकर प्रसाद, भगितीचरण िमाथ आहद क े िाम उल्लेखिीय ैं। िाटक क े क्षेत्र में ियशिंकर प्रसाद का पिशेष स्थाि ै। इिक े चिंद्रगुप्त, स्क िं दगुप्त, ध्रुिस्िासमिी िैसे ऐनत ाससक िाटकों में इनत ास और कल्ििा तथा भारतीय और िाश्चात्य िाट्य िद्यनतयों का समन्िय ुआ ै। लक्ष्मीिारायण समश्र, ररकर ष्ण प्रेमी, िगदीशचिंद्र माथुर आहद इस काल क े उल्लेखिीय िाटककार ैं।िाटक क े क्षेत्र में ियशिंकर प्रसाद का पिशेष स्थाि ै। इिक े चिंद्रगुप्त, स्क िं दगुप्त, ध्रुिस्िासमिी िैसे ऐनत ाससक िाटकों में इनत ास और कल्ििा तथा भारतीय और िाश्चात्य िाट्य िद्यनतयों का समन्िय ुआ ै। लक्ष्मीिारायण समश्र, ररकर ष्ण प्रेमी, िगदीशचिंद्र माथुर आहद इस काल क े उल्लेखिीय िाटककार ैं।
  • 34. 5.अद्यति काल इस काल में गद्य का च ुिंमुखी पिकास ुआ। ििं िारी प्रसाद द्पििेदी, िैिेन्द्र, अज्ञेय, यशिाल, ििंददुलारे िाििेयी, िगेंद्र, रामिरक्ष बेिीिुरी तथा डा रामपिलास शमाथ आहद िे पिचारात्मक निबिंधों की रचिा की ै। िारी प्रसाद द्पििेदी, पिद्यानििास समश्र, कन् ैयालाल समश्र प्रभाकर, पििेकी राय, और क ु बेरिाथ राय िे लसलत निबिंधों की रचिा की ै। ररशिंकर िरसािंई,शरद िोशी, श्रीलाल शुक्ल, रिीिंन्द्रिाथ त्यागी, तथा क े िी सक्सेिा, क े व्यिंग्य आि क े िीिि की पिद्रूिताओिं क े उद्घाटि में सिल ुए ैं। िैिेन्द्र, अज्ञेय, यशिाल, इलाचिंद्र िोशी, अमरतलाल िागर, रािंगेय राघि और भगिती चरण िमाथ िे उल्लेखिीय उिन्यासों की रचिा की। िागािुथि, िणीश्िर िाथ रेणु, अमरतराय, तथा रा ी मासूम रज़ा िे लोकपप्रय आिंचसलक उिन्यास सलखे ैं।मो ि राक े श, रािेन्द्र यादि, मन्िू भिंडारी, कमलेश्िर, भीष्म सा िी, भैरि प्रसाद गुप्त, आहद िे आधुनिक भाि बोध िाले अिेक उिन्यासों और क ानियों की रचिा की ै। अमरकािंत, निमथल िमाथ तथा ज्ञािरिंिि आहद भी िए कथा साह त्य क े म त्ििूणथ स्तिंभ ैं।
  • 35. प्रसादोत्तर िाटकों क े क्षेत्र में लक्ष्मीिारायण लाल, लक्ष्मीकािंत िमाथ, तथा मो ि राक े श क े िाम उल्लेखिीय ैं। कन् ैयालाल समश्र प्रभाकर, रामिरक्ष बेिीिुरी तथा बिारसीदास चतुिेदी आहद िे सिंस्मरण रेखाधचत्र ि िीििी आहद की रचिा की ै। शुक्ल िी क े बाद ििं ज़ारी प्रसाद द्पििेदी, ििंद दुलारे िाििेयी, िगेन्द्र, रामपिलास शमाथ तथा िामिर ससिं िे ह िंदी समालोचिा को समरद्ध फकया। आि गद्य की अिेक ियी पिधाओिं िैसे यात्रा िरत्तािंत, ररिोताथि, रेडडयो रूिक, आलेख आहद में पििुल साह त्य की रचिा ो र ी ै और गद्य की पिधाएिं एक दूसरे से समल र ी ैं।