1. आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद
श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए
हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के
पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
3. जह पुण्ण पुण्ण इं, गगह-घड़-वत्थ ददय इं दव्व इं।
तह पुप्ण्णदि जीव , पज्जत्तिदि मुणेयव्व ॥118॥
❖आथव - जजस प्रक ि घि, घट, वस्त्र आ ददक आिेति द्रव्य
पूणव आ ैि आपूणव द ेि ें प्रक ि के ह ेते हैं उसी प्रक ि पय वत
आ ैि आपय वत ि मकमव के उदय से युक्त जीव भी पूणव आ ैि
आपूणव द े प्रक ि के ह ेते हैं।
❖ज े पूणव हैं उिक े पय वत आ ैि ज े आपूणव हैं उिक े
आपय वत कहते हैं ॥118॥
4. पय वप्त वकसे कहते हैं ?
गृहीत आ ह ि आ दद वगवण आ ें क े
खि-िस आ दद रूप परिणम िे की
जीव की शलक्त की पूणवत क े
पय वप्त कहते हैं ।
5. आ ह ि-सिीरिंददय, पज्जिी आ णप ण-भ स-मण े।
िि रि पंि छप्प य, एइंददय-ववयि-सण्णीणं॥119॥
❖आथव - आ ह ि, शिीि, इप्न्द्रय, श्व स ेच्छ्वस, भ ष आ ैि मि
इस प्रक ि पय वप्त के छह भेद हैं।
❖इिमें से एके प्न्द्रय जीव ें के आ दद की ि ि पय वप्त,
❖ववकिेप्न्द्रय (द्वीप्न्द्रय, त्रीप्न्द्रय, ितुरिप्न्द्रय) आ ैि आसंज्ञी पंिेप्न्द्रय
जीव ें के आप्न्तम मि:पय वप्त क े छ ेड़कि शेष प ँि पय वप्त तथ
❖संज्ञी पंिेप्न्द्रय जीव ें के सभी छह ें पय वप्त हुआ किती हैं
॥119॥
6. पय वप्त के भेद
पय वनि
आ ह ि शिीि इप्न्द्रय श्व स ेच्छछ् व स भ ष मि
7. आ ह ि पय वप्त
आ ैद रिक, वैवक्रगयक आ ैि आ ह िक शिीि ि मकमव के उदय के प्रथम समय से िेकि
उि 3 शिीि आ ैि 6 पय वनि के परिणमिे य ेग्य पुद्गि स्कं ि ें क े
खि आ ैि िसभ ग रूप से परिणम िे की
पय वि ि मकमव के उदय की सह यत से उत्पन्न
आ त्म की शलक्त की निष्पत्ति क े आ ह ि पय वनि कहते हैं ।
8. शेष जीवि पयंत
आ ह ि वगवण क े खि आ ैि
िस भ ग में परिणलमत कििे
की शलक्त की निष्पत्ति
आ ह ि वगवण क े खि आ ैि
िस भ ग में परिणलमत किि
एकजीवकपूणवजीवि
प्र िंलभक आंतमुवहूतव
9. शिीि पय वप्त
खि आ ैि िस भ गरूप से परिणत पुद्गि स्कं ि ें में से
खि भ ग क े हड्डी आ दद स्स्थि आवयव रूप से आ ैि
िस भ ग क े िक्त आ दद द्रव आवयव रूप से
परिणम िे की शलक्त की निष्पत्ति क े शिीि पय वनि कहते
हैं |
10. इंदद्रय पय वप्त
ज नत-ि मकमव के उदय िुस ि
वववसित पुद्गि स्कं ि ें क े
स्पशवि आ दद द्रव्येंदद्रय रूप से
परिणम िे की शलक्त की निष्पत्ति क े इंदद्रय पय वनि कहते हैं ।
11. श्व स ेच्छछ् व स पय वप्त
उच्छछ् व स ि मकमव के उदय से युक्त जीव की
आ ह िवगवण के रूप में आ ये हुए पुद्गि स्कं ि ें क े
उच्छछ् व स-निश्व स रूप
परिणम िे की शलक्त की निष्पत्ति क े श्व स ेच्छछ् व स पय वनि कहते हैं ।
12. भ ष पय वप्त
स्वि ि मकमव के उदय से
भ ष -वगवण के रूप में आ ये हुए पुद्गि स्कं ि ें क े
सत्य, आसत्य, उभय आ ैि आिुभय भ ष के रूप में
परिणम िे की शलक्त की पूणवत क े भ ष पय वनि कहते हैं ।
13. मि पय वप्त
मि ेवगवण के रूप में आ ये हुए पुद्गिस्कं ि ें क े
आंग ेप ंग ि मकमव के उदय की सह यत से
द्रव्यमि ेरूप से परिणम िे के लिए तथ
उस द्रव्य मि की सह यत से ि ेइप्न्द्रय विण आ ैि वीय वन्ति य कमव के िय ेपशम ववशेष से
भ वमि रूप से परिणमि कििे की शलक्त की पूणवत क े मि:पय वनि कहते हैं ।
14. क्रं . पय वप्त वकसक े
वकस रूप परिणम िे की
जीव की शलक्त की पूणवत
1 आ ह ि आ ह ि वगवण
खि (कठ ेि रूप)
िस (पतिे रूप)
2 शिीि ,, (खि-िस क े)
खि— हड्डी आ दद रूप
िस— रूधिि दद रूप
3 इप्न्द्रय आ ह ि वगवण द्रव्येप्न्द्रय आ क ि रूप
4 श्व स ेच्छछ् व स आ ह ि वगवण श्व स ेच्छछ् व स रूप
5 भ ष भ ष वगवण शब्द रूप
6 मि: मि े वगवण द्रव्यमि रूप
15. वकसकी वकतिी पय वप्त
•आ ह ि, शिीि, इप्न्द्रय, श्व स ेच्छ्वसएके प्न्द्रय की
•उपयुवक्त 4 एवं भ ष पय वनि
ववकिेप्न्द्रय आ ैि आसंज्ञी
पंिेप्न्द्रय जीव ें की
•छह ें पय वनिसंज्ञी पंिेप्न्द्रय जीव ें की
16. पज्जिीपट्ठवणं, जुगवं तु कमेण ह ेदद णणट्ठवणं।
आंत ेमुहुिक िेणहहयकम तत्तिय ि व ॥120॥
❖आथव - सम्पूणव पय वप्तय ें क आ िम्भ त े युगपत् ह ेत है
वकन्तु उिकी पूणवत क्रम से ह ेती है।
❖इिक क ि यद्यवप पूवव-पूवव की आपेि उिि ेिि क कु छ-
कु छ आधिक है, तथ वप स म न्य की आपेि सबक
आन्तमुवहूतव म त्र ही क ि है ॥120॥
17. 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
आ ह ि
शिीि
इप्न्द्रय
श्व स ेच्छछव स
भ ष
मि
पय वप्त पूणव ह ेिे क क ि
समय
65536
73728
93312
104976
118098
82944
18. पय वप्त पूणव ह ेिे क क ि – आंक संदृषधटि
❖म ि वक आ ह ि पय वप्त पूणव ह ेिे में 65536 समय िगते हैं
❖संख्य त म ि 8
❖शिीि पय वप्त पूणव ह ेिे क क ि =
❖आ ह ि पय वप्त क क ि +
आ ह ि पय वप्त क क ि
संख्य त
❖65536 +
65536
8
❖65536 + 8192
❖73728 समय
20. पय वप्त पूणव ह ेिे क क ि – आंक संदृषधटि
❖उद हिण के आिुस ि
❖व स्तववक गणणत में आ गे-आ गे की पय वप्त पूणव ह ेिे में आंतमुवहूतव
क संख्य तव भ ग आधिक-आधिक क ि िगत है |
उच्छछ् व स पय वप्त 82944 + 10368 = 93312
भ ष पय वप्त 93312 + 11664 = 104976
मि पय वप्त 104976 + 13122 = 118098
21. क्रं . पय वप्त क ि
1 आ ह ि आंतमुवहूतव
2 शिीि आंतमुवहूतव
(पूवव
से संख्य त
भ ग आधिक-
आधिक)
3 इप्न्द्रय आंतमुवहूतव
4 श्व स ेच्छछ् व स आंतमुवहूतव
5 भ ष आंतमुवहूतव
6 मि आंतमुवहूतव
22. पज्जिस्स य उदये, णणयणणयपज्जत्तिणणट्ठट्ठद े ह ेदद।
ज व सिीिमपुण्णं, णणव्वत्तियपुण्णग े त व॥121॥
❖आथव - पय वप्त ि मकमव के उदय से जीव आपिी पय वप्तय ें
से पूणव ह ेत है तथ वप जब तक उसकी शिीि पय वप्त पूणव
िहीं ह ेती तब तक उसक े पय वत िहीं कहते वकन्तु
निवृवत्त्यपय वत कहते हैं ॥121॥
❖निवृवत्त्यपय वत = निवृवत्ति + आपय वत
23. पयवतिमकमवकउदय
प्रथम समय से 73727 समय तक
निवृवत्ति-आपय वत
पय वत
73728 - शिीि पय वप्त पूणव ह ेिे क क ि
निवृवत्त्यपय वत
24. उदये दु आपुण्णस्स य, सगसगपज्जत्तियं ण णणट्ठवदद।
आंत ेमुहुिमिणं, िणद्आपज्जिग े स े दु॥122॥
❖आथव - आपय वत ि मकमव क उदय ह ेिे से ज े जीव आपिे-
आपिे य ेग्य पय वप्तय ें क े पूणव ि किके आन्तमुवहूतव क ि में
ही मिण क े प्र त ह े ज य उसक े िब्ध्यपय वतक कहते हैं
॥122॥
िब्ध्यपय वतक = िस्ब्ि + आपय वतक
25. िस्ब्ि-आपय वतक
❖यह जीव एक भी पय वप्त पूणव िहीं कि प त ।
❖श्व स क 18व भ ग म त्र इसकी आ यु ह ेती है ।
❖एेसी सबसे छ ेटी आ यु क े िुद्रभव कहते हैं ।
❖एेसे जीव नतयंि आ ैि मिुष्य गनत में ही ह ेते हैं ।
26. ❖48 Minutes में 3773 श्व स ह ेते हैं,
❖त े 1 Minute में 78.60 श्व स ह ेते हैं ।
❖ (3773 / 48) = 78.60
❖78.6 श्व स 60 सेकं ड़ में ह ेते हैं,
❖त े 1 श्व स = 0.76 seconds में ह ेत है!!
❖ (60 / 78.60) = 0.76
0.76 seconds में 18 ब ि
जीवि-मिण ह े ज त है!!
श्व स
27. जीव
आपय विक
निवृवत्ति-आपय विक
िस्ब्ि-आपय विक
पय विक
सवव पय वप्तय ें क े
पूणव कििे की
शलक्त से संपन्न
ह ेते हैं
सवव पय वप्तय ें क े
पूणव कििे की
शलक्त से संपन्न
िहीं ह ेते हैं
28. पय वत, निवृवत्त्यपय वतक आ ैि िब्ध्यपय वतक में आंति
पय वत निवृवत्त्यपय वतक िब्ध्यपय वतक
स्वरूप
शिीि पय वप्त पूणव ह े गई
है
शिीि पय वप्त पूणव िहीं
हुई है, िेवकि नियम से
पूणव ह ेगी
एक भी पय वप्त ि पूणव
हुई है, ि ह ेगी
वकतिे समय के
लिए
शिीि पय वप्त पूणव ह ेिे के
ब द आ यु पयंत
शिीि पय वप्त पूणव ह ेिे
के पहिे तक
आ युप्रम ण आंतमुवहूतव
पयंत
वकस ि म कमव क
उदय
पय वत पय वत आपय वत
गुणस्थ ि सभी 14 1, 2, 4, 6 आ ैि 13 ससर्व पहि
29. एक जीव के आंतमुवहूतव में
िब्ध्यपय वत आवस्थ के
िग त ि आधिक से
आधिक भव (िुद्रभव)
वकतिे ह ेते हैं?
30. नतप्ण्णसय छिीस , छवट्ठट्ठसहस्सग णण मिण णण।
आंत ेमुहुिक िे, त वददय िेव खुद्दभव ॥123॥
❖आथव - एक आन्तमुवहूतव में एक िब्ध्यपय वतक जीव णछय सठ
हज ि तीि स ै छिीस ब ि (66336) मिण आ ैि उतिे ही
भव ें - जन्म ें क े भी ि िण कि सकत है। इि भव ें क े
िुद्रभव शब्द से कह गय है ॥123॥
31. सीदी सट्ठी त िं, ववयिे िउवीस ह ेंनत पंिक्खे।
छ वट्ठट्ठं ि सहस्स , सयं ि बिीसमेयक्खे॥124॥
❖आथव - ववकिेप्न्द्रय ें में द्वीप्न्द्रय िब्ध्यपय वतक के 80 भव,
❖त्रीप्न्द्रय िब्ध्यपय वतक के 60,
❖ितुरिप्न्द्रय िब्ध्यपय वतक के 40 आ ैि
❖पंिेप्न्द्रय िब्ध्यपय वतक के 24 तथ
❖एके प्न्द्रय ें के 66132 भव ें क े ि िण कि सकत है,
आधिक क े िहीं ॥124॥
32. पुढववदग गणणम रुद, स ह िणथूिसुहमपिेय ।
एदेसु आपुण्णेसु य, एक्के क्के ब ि खं छक्कं ॥125॥
❖आथव - स्थूि आ ैि सूक्ष्म द ेि ें ही प्रक ि के ज े पृथ्वी,
जि, आगि, व यु आ ैि स ि िण एवं प्रत्येक विस्पनत, इस
प्रक ि सम्पूणव ग्य िह प्रक ि के िब्ध्यपय वतक ें में से प्रत्येक
(हिएक) के 6012 निितंि िुद्रभव ह ेते हैं ॥125॥
33. जीव प्रत्येक के भव कु ि भव
एके प्न्द्रय दद के कु ि
भव
सूक्ष्म पृथ्वी, जि, आप्ग्ि, व यु, स ि िण विस्पनत 6012
5 6012
= 30060
66132
ब दि पृथ्वी, जि, आप्ग्ि, व यु, स ि िण विस्पनत 6012
5 6012
= 30060
ब दि प्रत्येक विस्पनत 6012
एके प्न्द्रय
द्वीप्न्द्रय 80 80
त्रीप्न्द्रय 60 60
ितुरिप्न्द्रय 40 40
आसैिी पंिेप्न्द्रय नतयंि 8
सैिी पंिेप्न्द्रय नतयंि 8
मिुष्य 8
पंिेप्न्द्रय 24
कु ि िुद्रभव 66336
34. 66336 िुद्रभव वकतिे क ि में ह ेते हैं?
* प्रत्येक िुद्रभव की आ यु =
उच्छछ᳭ व स
18
* 66336 भव क समय = 66336
उच्छछ᳭ व स
18
= 3685 3
1 उच्छछ᳭ व स
* 1 मुहूतव (48 लमिट) में 3773 उच्छछ᳭ व स ह ेते हैं ।
* आतः 66336 िग त ि भव एक मुहूतव से भी कम क ि में पूिे ह े
ज ते हैं ।
35. पज्जिसिीिस्स य, पज्जिुदयस्स क यज ेगस्स।
ज ेगगस्स आपुण्णिं, आपुण्णज ेग े त्ति णणदद्दट्ठं॥126॥
❖आथव - जजस सय ेग-के विी क शिीि पूणव है आ ैि उसके
पय वप्त ि मकमव क उदय भी म ैजूद है तथ क यय ेग भी
है, उसके आपय वतत वकस प्रक ि ह े सकती है ?
❖त े इसक क िण समुद्घ त आवस्थ में सय ेगके विी के य ेग
क पूणव ि ह ेि ही बत य है ॥126॥
36. िणद्आपुण्णं लमच्छछे, तत्थ वव ववददये िउत्थ-छट्ठे य।
णणव्वत्तिआपज्जिी, तत्थ वव सेसेसु पज्जिी॥127॥
❖आथव - िब्ध्यपय वतक लमथ्य त्व गुणस्थ ि में ही ह ेते हैं।
❖निवृवत्त्यपय वतक प्रथम, हद्वतीय, ितुथव, आ ैि छठे गुणस्थ ि
में ह ेते हैं। आ ैि
❖पय वतक उक्त ि ि ें आ ैि शेष सभी गुणस्थ ि ें में प ये ज ते
हैं ॥127॥
37. हेट्ठट्ठमछपुढवीणं, ज ेइससवणभवणसव्वइत्थीणं।
पुप्ण्णदिे ण हह सम्म े, ण स सण े ण िय पुण्णे॥128॥
❖आथव - हद्वतीय ददक छह ििक आ ैि जय ेनतषी, व्यन्ति,
भविव सी ये तीि प्रक ि के देव तथ सम्पूणव स्त्रस्त्रय ँ
इिक े आपय वत आवस्थ में सम्यक्त्व िहीं ह ेत है।
आ ैि
❖ि िवकय ें के निवृवत्त्यपय वत आवस्थ में स स दि
गुणस्थ ि िहीं ह ेत ॥128॥
38. निवृवत्त्यपय वत आवस्थ दूसिे व ि ैथे गुणस्थ ि में
कह िहीं ह ेती है ?
स स दि
गुणस्थ ि
आववित-सम्यक्त्व गुणस्थ ि
स त ें ििक
* प्रथम ििक वबि छह ििक
* जय ेनतषी, व्यंति, भविव सी देव
* सवव स्री — देव ंगि , मिुष्यिी,
नतयंििी
39. आतीत-पय वप्त
छह पय वनिय ें के आभ व क े आतीत-पय वनि
कहते हैं ।
ससद् भगव ि् आतीत-पय वनि हैं ।
40. ➢Reference : ग ेम्मटस ि जीवक ण्ड़, सम्यग्ज्ञ ि िंदद्रक ,
ग ेम्मटस ि जीवक ंड़ - िेख लित्र एवं त लिक आ ें में
Presentation developed by
Smt. Sarika Vikas Chhabra
➢For updates / feedback / suggestions, please
contact
➢Sarika Jain, sarikam.j@gmail.com
➢www.jainkosh.org
➢: 0731-2410880 , 94066-82889