2. अत्थादाो अत्थंिि-मुवलंभं िं भणंति सुदणाणं।
अाभभणणबाोहियपुव्वं, णणयमोणणि सद्दजं पमुिं॥315॥
•अथथ - मतिज्ञान को ववषयभूि पदाथथ सो भभन्न
पदाथथ को ज्ञान काो श्रुिज्ञान कििो िं।
•यि ज्ञान तनयम सो मतिज्ञानपूवथक िाोिा ि।
•इस श्रुिज्ञान को अक्षिात्मक अाि अनक्षिात्मक
अथवा शब्दजन्य अाि भलंगजन्य इस ििि सो दाो
भोद िं, वकन्िु इनमों शब्दजन्य श्रुिज्ञान मुख्य ि
॥315॥
3. श्रुिज्ञान
मतिज्ञान को द्वािा तनश्चिि वकए पदाथथ का
अवलंबन किको
उस पदाथथ सो संबंधिि
अन्य वकसी पदाथथ काो जाो जानिा ि,
उसो श्रुिज्ञान कििो िं ।
आम
आम
पाक
आमरस
4. यि श्रुिज्ञान मतिज्ञानपूवथक िाोिा ि ।
श्रुिज्ञानाविण अाि वीयाथन्ििाय कमथ का क्षयाोपशम सो श्रुिज्ञान
उत्पन्न िाोिा ि ।
श्रुिज्ञान
6. अनक्षिात्मक
एको न्द्न्िय सो पंिोन्द्न्िय िक
इससो कु छ व्यविाि प्रवृत्ति निीं,
इसभलए प्रमुख निीं
शीिल पवन को स्पशथ सो शीिल पवन
का जानना - मतिज्ञान
यो वायु की प्रवृत्ति वालो काो हििकािी
निीं - श्रुिज्ञान
अक्षिात्मक
ससर्थ पंिोन्द्न्िय
सवथ व्यविाि (लोन-दोन, शास्र
पठनादद) का मूल इसभलए प्रमुख
''जीव अन्द्स्ि'' ‒ एोसा शब्द सुना -
मतिज्ञान
जीव पदाथथ का ज्ञान हुअा - श्रुिज्ञान
स्वामी
प्रमुखिा
उदाििण
7. लाोगाणमसंखभमदा, अणक्खिप्पो िवंति छट्ठाणा।
वोरूवछट्ठवग्गपमाणं रूउणमक्खिगं॥316॥
•अथथ - षटस्थानपतिि वृणि की अपोक्षा सो पयाथय एवं
पयाथयसमासरूप अनक्षिात्मक श्रुिज्ञान को सबसो
जघन्य स्थान सो लोकि उत्कृ ष्ट स्थान पयथन्ि
असंख्याि लाोकप्रमाण भोद िाोिो िं।
•हद्वरूपवगथिािा मों छट्ठो वगथ का जजिना प्रमाण ि
(एकट्ठी) उसमों एक कम किनो सो जजिना प्रमाण
बाकी ििो उिना िी अक्षिात्मक श्रुिज्ञान का प्रमाण ि
॥316॥
8. श्रुिज्ञान को भोद
अनक्षिात्मक श्रुिज्ञान अक्षिात्मक श्रुिज्ञान
भोद
नाम
पयाथय, पयाथयसमास
अक्षि, अक्षिसमास सो
लोकि पूवथसमास िक
संख्या
असंख्याि लाोकप्रमाण
भोदसहिि असंख्याि
लाोकप्रमाण षटस्थान
एक कम एकट्ठी प्रमाण
𝟐 𝟔𝟒
‒ 1
11. णवरि ववसोसं जाणो, सुहुमजिण्णं िु पज्जयं णाणं ।
पज्जायाविणं पुण, िदणंििणाणभोदन्द्हि॥319॥
•अथथ - सूक्ष्म तनगाोददया लब््यपयाथप्िक को जाो
सबसो जघन्य ज्ञान िाोिा ि उसकाो पयाथय ज्ञान
कििो िं। इसमों ववशोषिा को वल यिी ि वक इसको
अाविण किनोवालो कमथ को उदय का र्ल इसमों
(पयाथय ज्ञान मों) निीं िाोिा, वकन्िु इसको अनन्िि
ज्ञान (पयाथयसमास) को प्रथम भोद मों िी िाोिा
ि॥319॥
12. पयाथय ज्ञान
पयाथय श्रुिज्ञानाविण
को सवथघाति स्पिथकाों
का उदयाभावी क्षय,
इन्िीं का सद-
अवस्थारूप उपशम
पयाथय
श्रुिज्ञानाविण को
दोशघाति स्पिथकाों
का अनुदय िाोनो
पि
जाो सबसो जघन्य श्रुिज्ञान ि, वि पयाथय ज्ञान ि ।
जाो ज्ञान िाोिा ि, उसो पयाथय श्रुिज्ञान कििो िं ।
13. पयाथय श्रुिज्ञान का क्षयाोपशम सवथ जीवाों को पाया जािा ि ।
अथाथि इस पयाथय श्रुिज्ञानाविण को सवथघाति स्पिथकाों का
उदय कभी अािा िी निीं ।
यदद अा जावो िाो जीव को ज्ञान का िी अभाव िाोवो ।
ज्ञान को अभाव मों जीव का भी अभाव िाोगा ।
14. सुिमणणगाोदअपज्जियस्स जादस्स पढमसमयन्द्हि।
िवदद हु सव्वजिण्णं, णणच्चुग्घाड़ं णणिाविणं॥320॥
•अथथ - सूक्ष्म तनगाोददया लब््यपयाथप्िक जीव को
उत्पन्न िाोनो को प्रथम समय मों सबसो जघन्य
ज्ञान िाोिा ि। इसी काो पयाथय ज्ञान कििो िं।
•इिना ज्ञान िमोशा तनिाविण िथा प्रकाशमान
िििा ि॥320॥
15. कसा ि पयाथय ज्ञान ?
•सदाकाल प्रकाशमानतनत्य - उदघाट
•इिनो ज्ञान का कभी अाच्छादन निीं िाोिातनिाविण
•सूक्ष्म तनगाोददया लब््यपयाथप्िक जीवस्वामी
16. सुिमणणगाोदअपज्जिगोसु सगसंभवोसु भभमऊण।
िरिमापुण्णतिवक्का-णाददमवक्कट्ट्ठयोव िवो॥321॥
•अथथ - सूक्ष्मतनगाोददया लब््यपयाथप्िक जीव को
अपनो जजिनो भव (छि िजाि बािि) संभव िं
उनमों भ्रमण किको अन्ि को अपयाथप्ि शिीि काो
िीन माोड़ाअाों को द्वािा ग्रिण किनो वालो जीव को
प्रथम माोड़ा को समय मों यि सवथ जघन्य ज्ञान
िाोिा ि ॥321॥
17. पयाथय ज्ञान का स्वामी (ववशोष)
सूक्ष्म-तनगाोद को अपयाथप्ि अवस्था को 6012 भव िािण किको
अंि को 6012 वों भव मों
3 माोड़ो सो जन्म लोकि
जन्म को प्रथम समय (अथाथि प्रथम माोड़ मों स्स्थि)
सूक्ष्म तनगाोददया लब््यपयाथप्िक जीव काो पयाथय ज्ञान िाोिा ि ।
30. उव्वंकं िउिंकं , पणछस्सिंक अट्ठअंकं ि।
छव्वड्ढीणं सण्णा, कमसाो संददट्ट्ठकिणट्ठं॥325॥
•अथथ - लघुरूप संदृधष्ट को भलयो क्रम सो छि
वृणियाों की यो छि संज्ञाएाँ िं — अनंिभागवृणि
की उवंक, असंख्यािभागवृणि की ििुिंक,
संख्यािभागवृणि की पंिांक, संख्यािगुणवृणि की
षड़ंक, असंख्यािगुणवृणि की सप्ांक,
अनंिगुणवृणि की अष्टांक ॥325॥
31. छि प्रकाि की वृणियाों की संज्ञा अाि संको िभिह्न
वृणि नाम संज्ञा संको ि
अनंि भागवृणि उवंक उ
असंख्याि भागवृणि ििुिंक ४
संख्याि भागवृणि पंिांक ५
संख्याि गुणवृणि षड़ंक ६
असंख्याि गुणवृणि सप्िांक ७
अनंि गुणवृणि अषटांक ८
32. अंगुलअसंखभागो, पुव्वगवड्ढीगदो दु पिवड्ढी।
एक्कं वािं िाोदद हु, पुणाो पुणाो िरिमउहड्ढिी॥326॥
• अथथ - सूच्यंगुल को असंख्यािवों भागप्रमाण पूवथवृणि िाो जानो पि एक
बाि उिि वृणि िाोिी ि। यि तनयम अंि की वृणि पयथन्ि समझना
िाहियो।
• अथाथि सूच्यंगुल को असंख्यािवों भाग बाि अनंि-भागवृणि िाो जानो पि
एक बाि असंख्याि-भागवृणि िाोिी ि।
• इसी क्रम सो असंख्याि-भागवृणि भी जब सूच्यंगुल को असंख्यािवों
भागप्रमाण िाो जाए िब सूच्यंगुल को असंख्यािवों भागप्रमाण अनंि-
भागवृणि िाोनो पि एक बाि संख्याि-भागवृणि िाोिी ि। इस िी ििि अंि
की वृणि पयथन्ि जानना ॥326॥
33. वृणि को क्रम काो समझनो को भलयो संको िाों का षटस्थान यं्र
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ७
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ७
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ६
उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ५ उ उ ४ उ उ ४ उ उ ८
34. • एक बाि ४ को भलए = का. बाि उ
• का.बाि ४ किनो को भलए = का. x का.= का 𝟐
बाि उ
• एक बाि ५ तनकालनो को भलए = का. बाि ४
• का. बाि ५ किनो को भलए = का x का = का 𝟐
बाि ४
• 1 बाि ५ लानो को भलए = का2 + का
• का. बाि ५ किनो को भलए = (का2 + का) x का = का3 +
का2 बाि उ
35. • एक बाि ६ किनो को भलए= का.बाि ५
• एक बाि ६ किनो को भलए= का 𝟐
+ का. बाि ४
• एक बाि ६ किनो को भलए= = (
सू.
𝜕
𝟑
+ का 𝟐
) + (का 𝟐
+का.)
बाि उ उ =
सू.
𝜕
𝟑
+ 2 x का 𝟐
+का.
36. िीसिी लाइन
• का. बाि ६ लानो को भलयो = (का)२ बाि ५
• का. बाि ६ लानो को भलयो = (का)३+ (का)२ बाि ४
• का. बाि ६ लानो को भलयो = (का)४+ २(का)३ + (का)२ बाि उ
• एक बाि ७ लानो को भलयो = का. बाि ६
• एक बाि ७ लानो को भलयो = (का)२ + का ५
• एक बाि ७ लानो को भलयो = (का)३+ २(का)२ + का. बाि ४
• एक बाि ७ लानो को भलयो = (का)४+३ (का)३ +३(का)२ + का.
बाि उ
37. छठवी लाइन
• का. बाि ७ लानो को भलयो = (का)२ बाि ६
• का. बाि ७ लानो को भलयो = (का)३+ (का)२ बाि ५
• का. बाि ७ लानो को भलयो = (का)४+ २(का)३ + (का)२ बाि ४
• का. बाि ७ लानो को भलयो = (का)५+३ (का)४ +३(का)३+ का२ बाि
उ
38. अष्टांक
• एक बाि ८ लानो को भलयो =का बाि ७
एक बाि ८ लानो को भलयो = (का)२ + का बाि ६
• एक बाि ८ लानो को भलयो = (का)३ +२(का)२ + का ५
• एक बाि ८ लानो को भलयो = (का)४+३ (का)३+३(का)२ + का.
बाि ४
• एक बाि ८ लानो को भलयो = (का)५ +४(का)४+५ (का)३ +३
(का)२ + का. बाि उ
39. प्रथम पंभति - प्रथम 3 काोठो
• कांड़क =
सूच्यंगुल
असंख्याि
• कांड़क बाि अनंि भागवृणि िाोनो पि एक बाि असंख्याि भागवृणि िाोिी
ि ।
• पुनः कांड़क बाि अनंि भागवृणि िाोनो पि एक बाि असंख्याि भागवृणि
िाोिी ि ।
• एोसो कांड़क बाि असंख्याि भागवृणि िाोनो को पिाि
• कांड़क बाि अनंि भागवृणि िाोिी ि,
• वर्ि एक बाि संख्याि भागवृणि िाोिी ि ।
40. प्रथम पंभति - म्य को 3 काोठो
• पुनः अनंि भागवृणि-पूवथक कांड़क बाि असंख्याि भागवृणि
िाोिी ि,
• वर्ि कांड़क बाि अनंि भागवृणि िाोिी ि, िब पुनः एक
बाि संख्याि भागवृणि िाोिी ि ।
• पुनः पूवथ क्रम सो अनंि भागवृणि, असंख्याि भागवृणि िाोनो
पि एक बाि संख्याि भागवृणि िाोिी ि ।
• एोसो कांड़क बाि संख्याि भागवृणि िाोिी ि ।
41. प्रथम पंभति - अंतिम 3 काोठो
• पुनः कांड़क बाि असंख्याि भागवृणि िाोिी ि,
• वर्ि कांड़क बाि अनंि भागवृणि िाोिी ि,
• िब एक बाि संख्याि गुणवृणि िाोिी ि ।
हद्विीय पंभति
• जसो एक बाि संख्याि गुणवृणि हुई ि, वसो कांड़क बाि
संख्याि गुणवृणि िाोिी िं ।
45. उ उ उ ४ उ उ उ ४ ४उ उ उ उ उ उ ५
उ उ उ ४ उ उ उ ४ ४उ उ उ उ उ उ ५
उ उ उ ४ उ उ उ ४ ४उ उ उ उ उ उ ५
उ उ उ ४ उ उ उ ४ ४उ उ उ उ उ उ ६
सू / असं बाि
सू / असं बाि सू / असं बाि
प्रथम पंभतिमाना वक
सू
असं
= 3
46. अाददमछट्ठाणन्द्हि य, पंि य वड्ढी िवंति सोसोसु।
छव्वड्ढीअाो िाोंति हु, सरिसा सव्वत्थ पदसंखा॥327॥
•अथथ - असंख्याि लाोकप्रमाण षटस्थानाों मों सो प्रथम
षटस्थान मों पााँि िी वृणि िाोिी ि, अष्टांक वृणि निीं
िाोिी।
•शोष सहपूणथ षटस्थानाों मों अष्टांक सहिि छिाों वृणियााँ िाोिी
िं।
•सूच्यंगुल का असंख्यािवााँ भाग अवस्स्थि ि, इसभलयो पदाों
की संख्या सब जगि सदृश िी समझनी िाहियो ॥327॥
47. षटस्थान वृणियााँ
प्रथम षटस्थान मों
5 वृणियााँ ।
(अनंि गुणवृणि निीं ि)
शोष सवथ षटस्थानाों मों सवथ वृणियााँ
सािो षटस्थानाों मों स्थानाों का प्रमाण सदृश िी ि ।
मा्र प्रथम षटस्थान मों एक स्थान कम ि ।
48. छट्ठाणाणं अादी, अट्ठंकं िाोदद िरिममुव्वंकं ।
जहिा जिण्णणाणं, अट्ठंकं िाोदद जजणददट्ठं॥328॥
•अथथ - सहपूणथ षटस्थानाों मों अादद को स्थान काो
अष्टांक अाि अन्ि को स्थान काो उवंक कििो िं,
काोंवक जघन्य पयाथयज्ञान भी अगुरुलघु गुण को
अववभाग प्रतिच्छोदाों की अपोक्षा अष्टांक प्रमाण
िाोिा ि, एोसा जजनोन्िदोव नो प्रत्यक्ष दोखा ि
॥328॥
49. षटस्थान का
अाददस्थान अषटांक
अंतिम स्थान उवंक
अथाथि यं्र मों जब अंि मों ८ ददया ि, विााँ पि सो हद्विीय षटस्थान प्रािंभ िाो जािा
ि ।
प्रत्योक षटस्थान मों अादद ८ सो िाोिा ि ।
एवं उस ८ सो अनंििपूवथ का स्थान उ का ि ।
अि: अंतिम स्थान उवंक-रूप िििा ि ।
50. िूंवक पयाथय ज्ञान सो सबसो जघन्य पयाथयसमास ज्ञान
मों जाो वृणि ि,
वि अनंिभागवृणि रूप ि, अनंिगुणवृणिरूप निीं ि ।
अि: प्रथम षटस्थान मों अष्टांक संभव निीं ि।
प्रथम षटस्थान मों अष्टांक
क्याों निीं ि ?
51. •पयाथयज्ञान काो यदद प्रथम स्थान पि िख दों । िाो यि
पयाथय ज्ञान ८ रूप बन जाएगा।
•प्रथम स्थान - अगुरुलघुगुण को अववभागप्रतिच्छोद सो
अनंिगुणा पयाथय ज्ञान,
•वर्ि उ वृणिरूप पयाथयसमास ज्ञान ।
•इस अपोक्षा प्रथम षटस्थान मों भी ८ बन सको गा ।
८ पयाथयज्ञान
उ उ उ ४ उ उ उ ४ ४उ उ उ उ उ उ ५
52. एक्कं खलु अट्ठंकं , सिंकं कं ड़यं िदाो िोट्ठा।
रूवहियकं ड़एण य, गुणणदकमा जावमुव्वंकं ॥329॥
• अथथ - एक षटस्थान मों एक अष्टांक िाोिा ि अाि सप्ांक
अथाथि असंख्यािगुणवृणि, काण्ड़क-सूच्यंगुल को असंख्यािवों
भागप्रमाण हुअा कििी ि। इसको नीिो षड़ंक अथाथि
संख्यािगुणवृणि अाि पंिांक अथाथि संख्यािभागवृणि िथा
ििुिंक-असंख्यािभागवृणि एवं उवंक-अनंिभागवृणि यो िाि
वृणियााँ उििाोिि क्रम सो एक अधिक सूच्यंगुल को असंख्यािवों
भाग सो गुणणि िं ॥329॥
57. उक्कस्ससंखमोिं, ित्तििउत्थोक्कदालछप्पण्णं।
सिदसमं ि भागं, गंिूणय लणिअक्खिं दुगुणं॥331॥
• अथथ - उत्कृ ष्ट संख्यािमा्र संख्यािभागवृणियाों को िाो जानो पि जघन्य ज्ञान मों
प्रक्षोपक वृणि को िाोनो सो लब््यक्षि का प्रमाण साधिक दूना िाो जािा ि।
• उत्कृ ष्ट संख्यािमा्र पूवाोथति संख्यािभागवृणि को स्थानाों मों सो िीन-िाथाई भागप्रमाण
स्थानाों को िाो जानो पि प्रक्षोपक अाि प्रक्षोपक-प्रक्षोपक इन दाो वृणियाों को जघन्य ज्ञान
को ऊपि िाो जानो सो लब््यक्षि का प्रमाण साधिक दूना िाो जािा ि।
• पूवाोथति संख्यािभागवृणियुति उत्कृ ष्ट संख्यािमा्र स्थानाों को छप्पन भागाों मों सो
इकिालीस भागाों को बीि जानो पि प्रक्षोपक अाि प्रक्षोपक-प्रक्षोपक की वृणि िाोनो सो
साधिक (कु छ अधिक) जघन्य का दूना प्रमाण िाो जािा ि। अथवा
• संख्यािभागवृणि को उत्कृ ष्ट संख्यािमा्र स्थानाों मों सो दशभाग मों सािभाग प्रमाण
स्थानाों को अनन्िि प्रक्षोपक, प्रक्षोपक-प्रक्षोपक को िथा वपशुली इन िीन वृणियाों काो
साधिक जघन्य को ऊपि किनो सो साधिक जघन्य का प्रमाण दूना िाोिा ि ॥331॥
58. जघन्य ज्ञान सो दुगुणा ज्ञान कब िाोिा ि ?
क्र. जघन्य ज्ञान सो वकिना अागो जानो पि? का जाोड़ना
1 उत्कृ षट संख्याि बाि संख्याि भागवृणि िाोनो पि प्रक्षोपक
2 उत्कृ षट संख्याि को
𝟑
𝟒
स्थान बाि संख्याि भागवृणि
िाोनो पि
प्रक्षोपक, प्रक्षोपक-
प्रक्षोपक
3 उत्कृ षट संख्याि को
𝟒𝟏
𝟓𝟔
स्थान बाि संख्याि भागवृणि
िाोनो पि
प्रक्षोपक, प्रक्षोपक-
प्रक्षोपक
4 उत्कृ षट संख्याि को
𝟕
𝟏𝟎
स्थान बाि संख्याि भागवृणि
िाोनो पि
प्रक्षोपक, प्रक्षोपक-
प्रक्षोपक, वपशुभल
59. उदाििण
• माना वक जघन्य ज्ञान = 50000 । संख्याि भागवृणि का भागिाि =
उत्कृ ष्ट संख्याि = 10
• प्रथम बाि संख्याि भागवृणि िाोनो पि
50000
10
= 5000 की वृणि
हुई ।
• दूसिी बाि संख्याि भागवृणि िाोनो पि
50000
10
= 5000 की वृणि
हुई ।
• एोसो 10 बाि संख्याि भागवृणि िाोनो पि 5000 +5000 + 5000
+ ...... = 50000 की वृणि हुई ।
60. • इस स्थान पि जघन्य सो दुगुनी वृणि िाो गई । (50000 +
50000 = 100000)
• इसभलए यि किा ि वक उत्कृ ष्ट संख्याि बाि संख्याि
भागवृणि िाोनो पि जघन्य ज्ञान दुगुना िाो जािा ि ।
• यि दुगुनी वृणि भी बीि की अनंि भागवृणि, असंख्याि
भागवृणि िथा वृणियाों की वृणि छाोड़कि बिाई ि । वृणियाों की
वृणि भमलानो पि जघन्य सो दुगुना अाि भी पिलो िाो जाएगा ।
61. एवं असंखलाोगा, अणक्खिप्पो िवंति छट्ठाणा।
िो पज्जायसमासा, अक्खिगं उवरि वाोच्छाभम॥332॥
•अथथ - इसप्रकाि अनक्षिात्मक श्रुिज्ञान मों
असंख्याि लाोकप्रमाण षटस्थान िाोिो िं। यो
सब िी पयाथयसमास ज्ञान को भोद िं। अब
इसको अागो अक्षिात्मक श्रुिज्ञान का वणथन
किोंगो ॥332॥
63. िरिमुव्वंको णवहिद-अत्थक्खिगुणणदिरिममुव्वंकं ।
अत्थक्खिं िु णाणं, िाोदद त्ति जजणोहिं णणदद्दट्ठं॥333॥
•अथथ - अन्ि को उवंक का अथाथक्षिसमूि मों
भाग दोनो सो जाो लब्ि अावो उसकाो अन्ि को
उवंक सो गुणा किनो पि अथाथक्षि ज्ञान का
प्रमाण िाोिा ि एोसा जजनोन्िदोव नो किा ि
॥333॥
64. सवाोथत्कृ षट पयाथयसमास ज्ञान × अनंि
अंतिम षटस्थान का अंतिम उवंक × अनंि
= अथाथक्षि ज्ञान
नाोट - यिााँ अनंि गुणवृणि को भलए अनंि का प्रमाण
जीविाशश निीं ि । यथायाोग्य अनंि ि ।
65. गुणकाि का प्रमाण - उदाििण
• जसो अंतिम पयाथयसमास ज्ञान = 4096
• अक्षि श्रुिज्ञान = 131072
• िाो अक्षि श्रुिज्ञान तनकालनो िोिु गुणकाि =
अथाथक्षि
अंतिम उवंक
•
131072
4096
= 32
• इस 32 गुणकाि काो अंतिम पयाथयसमास ज्ञान मों गुणा किनो पि अक्षि
श्रुिज्ञान िाोिा ि । 4096 × 32 = 131072
• इसी प्रकाि वास्िववक गणणि मों गुणकाि अनंिरूप जानना । इस अनंि काो
अंतिम उवंक सो गुणा किनो पि अथाथक्षि ज्ञान का प्रमाण अािा ि ।
66. अथाथक्षि ज्ञान
1) अक्षर से उत्पन्न हुआ अर्थ को विषय करने िाला ज्ञान
अर्ाथक्षर ज्ञान है |
2) श्रुतके िलज्ञान के संख्यातिे भाग से जिसका वनश्चय वकया
िाता है, उसे अर्थ कहते हैं| अविनाशी होने से ऐसा अर्थ ही
अक्षर है | उसका ज्ञान अर्ाथक्षर ज्ञान है |
68. लस्ब्ि अक्षि
लस्ब्ि = पयाथयज्ञानाविण सो लोकि पूवथसमासज्ञानाविण को
क्षयाोपशम सो उत्पन्न पदाथाों काो जाननो की शभति ।
अक्षि = अववनाश ।
जाो अववनाशी लस्ब्ि ि, वि लस्ब्ि-अक्षि ि ।
69. •िालु, कं ठ अादद को प्रयत्न द्वािा
उत्पन्न िाोनो वाला अकािादद स्वि,
व्यंजन, संयाोगी अक्षि तनवृथत्ति-अक्षि
ि ।
तनवृथत्ति
अक्षि
•अकािादद का अाकाि भलखना
स्थापना अक्षि ि ।
स्थापना
अक्षि
70. पण्णवणणज्जा भावा, अणंिभागाो दु अणभभलप्पाणं।
पण्णवणणज्जाणं पुण, अणंिभागाो सुदणणबिाो॥334॥
•अथथ - अनभभलप्य पदाथाों को अनंिवों भाग
प्रमाण प्रज्ञापनीय पदाथथ िाोिो िं अाि
प्रज्ञापनीय पदाथाों को अनंिवों भाग प्रमाण
श्रुि मों तनबि िं ॥334॥
72. एयक्खिादु उवरिं, एगोगोणक्खिोण वड्ढंिाो।
संखोज्जो खलु उड्ढो, पदणामं िाोदद सुदणाणं॥335॥
•अथथ - अक्षिज्ञान को ऊपि क्रम सो एक-एक अक्षि
की वृणि िाोिो-िाोिो जब संख्याि अक्षिाों की वृणि
िाो जाय िब पदनामक श्रुिज्ञान िाोिा ि।
•अक्षिज्ञान को ऊपि अाि पदज्ञान को पूवथ िक
जजिनो ज्ञान को ववकल्प िं वो सब अक्षिसमास
ज्ञान को भोद िं ॥335॥
73. अक्षिसमास ज्ञान = अक्षिज्ञान + एक अक्षि
अक्षरज्ञान
पदज्ञान
अक्षरसमास ज्ञान
+ 1 अक्षर
एक अक्षि का ज्ञान अक्षि ज्ञान
2 अक्षि का ज्ञान
अक्षि-समास
ज्ञान
3 अक्षि का ज्ञान
4 अक्षि का ज्ञान
..........
1634,83,07,887
अक्षिाों का ज्ञान
एक पद का ज्ञान पद ज्ञान
74. अक्षिसमास ज्ञान
दाो, िीन अादद अक्षिाों का समुदाय
सुननो को द्वािा उत्पन्न िाो,
वि अक्षिसमास ज्ञान ि ।
नाोट: एक अक्षि सो दूसिो अक्षि की ज्ञानवृणि षटस्थानवृणि को वबना िाोिी ि ।
75. साोलससयिउिीसा, काोड़ी तियसीददलक्खयं िोव।
सिसिस्साट्ठसया, अट्ठासीदी य पदवण्णा॥336॥
•अथथ - साोलि सा िांिीस काोहट
तििासी लाख साि िजाि अाठ सा
अठासी (1634,8307888) एक पद
मों अक्षि िाोिो िं ॥336॥
76. पद ज्ञान
उत्कृ ष्ट अक्षरसमास ज्ञान म
एक अक्षर बढ़ने से
उत्पन्न हुआ श्रुतज्ञान
पद नामक श्रुतज्ञान है ।
पद का प्रमाण = 1634,83,07,888
अपुनरुक्ि अक्षिाों का समुदाय
77. Note
• यिााँ शब्द का नाम भी अक्षि िी ि । यानो अ, अा, क, ख
अादद िाो अक्षि िं िी, पिन्िु 'जीव, उत्पाद, ध्रुव, जजन' अादद
शब्द भी संयाोगी अक्षि िी किलािो िं ।
• एोसो अपुनरुक्ि अक्षिाों का समुदाय पद ज्ञान ि ।
• अपुनरुक्ि अथाथि जाो जजन वणाों का समूि पूवथ मों निीं अाया
ि, वबल्कु ल नवीन ि, Non-repeated िं, वि अपुनरुक्ि ि
। जसो वीि, दृष्टा, याोग अादद अक्षि अपुनरुक्ि िं । मिावीि,
व्यय, अात्मा अादद अक्षि पुनरुक्ि िं ।
79. अथथपद
• जजन अक्षिाों को समूि द्वािा वववसक्षि अथथ जानिो िं,
वि अथथपद ि ।
• जसो 'काोऽसा जीव:' - यिााँ क:, असा, जीव: यो 3
पद हुए ।
प्रमाण पद
• एक तनश्चिि संख्या वालो अक्षिाों का समूि ।
• जसो अनुषटुप छंद को 4 पद िं जजसमों प्रत्योक पद को
8 अक्षि िाोिो िं ।
• 'नम: श्रीविथमानाय'
म्यम पद • 1634,83,07,888 अपुनरुक्ि अक्षिाों का समूि
म्यमपद ि ।
80. एयपदादाो उवरिं, एगोगोणक्खिोण वड्ढंिाो।
संखोज्जपदो, उड्ढो संघादणाम सुदं॥337॥
• अथथ - एक पद को अागो भी क्रम सो एक-एक अक्षि की
वृणि िाोिो-िाोिो संख्याि पदाों की वृणि िाो जाय उसकाो
संघािनामक श्रुिज्ञान कििो िं।
• एक पद को ऊपि अाि संघािनामक ज्ञान को पूवथ िक
जजिनो ज्ञान को भोद िं वो सब पदसमास को भोद िं।
• यि संघाि नामक श्रुिज्ञान िाि गति मों सो एक गति को
स्वरूप का तनरूपण किनोवालो अपुनरुति म्यम पदाों को
समूि सो उत्पन्न अथथज्ञानरूप ि ॥337॥
81. पदसमास ज्ञान
एक पद सो ऊपि
एक-एक अक्षि की वृणि िाोनो पि
िाोनो वाला ज्ञान पदसमास ज्ञान ि ।
82. संघात श्रुतज्ञान
पद ज्ञान
पदसमास ज्ञान
एोसो 2 अक्षि, 3 अक्षि, - - -, 1 पद, -
- -, 2 पद - - - - - संख्याि िजाि पदाों
को बढनो िक पदसमास ज्ञान िाोिा ि ।
इसको पश्िाि संख्याि िजाि पदाों को
समूि का नाम संघाि श्रुिज्ञान ि ।
संघाि श्रुिज्ञान
83. एक्कदिगददणणरूवय-संघादसुदादु उवरि पुव्वं वा ।
वण्णो संखोज्जो संघादो उड़ढन्द्हम पदड़विी ॥338 ॥
• अथथ - िाि गति मों सो एक गति का तनरूपण किनो वालो
संघाि श्रुिज्ञान को ऊपि पूवथ की ििि क्रम सो एक-एक
अक्षि की िथा पदाों अाि संघािाों की वृणि िाोिो-िाोिो जब
संख्याि संघाि की वृणि िाो जाय िब एक प्रतिपत्तिक
नामक श्रुिज्ञान िाोिा ि। यि ज्ञान निकादद िाि गतियाों का
ववस्िृि स्वरूप जाननो वाला ि। संघाि अाि प्रतिपत्तिक
श्रुिज्ञान को म्य मों जजिनो ज्ञान को ववकल्प िं उिनो िी
संघािसमास को भोद िं॥338॥
84. संघाि श्रुिज्ञान
जाो िाि गतियाों मों सो एक गति का स्वरूप तनरूवपि कििा ि ।
संघाि + 1 अक्षि
संघािसमास
संघाि + 2 अक्षि
........
+ 1 पद का ज्ञान
+ 2 पद का ज्ञान
.......
+ संघाि + ....... दुगुणा संघाि
+ संघाि िीगुणा संघाि
एोसो संख्याि संघाि िाोनो पि
प्रतिपत्तिक श्रुिज्ञान िाोिा ि ।
अंतिम संघािसमास मों एक अक्षि
की वृणि िाोनो पि प्रतिपत्तिक
श्रुिज्ञान िाोिा ि ।
85. िउगइसरूवरूवय-पदड़विीदाो दु उवरि पुव्वं वा।
वण्णो संखोज्जो पदड़विीउड्ढन्द्हि अणणयाोगं॥339॥
• अथथ - िािाों गतियाों को स्वरूप का तनरूपण किनोवालो
प्रतिपत्तिक ज्ञान को ऊपि क्रम सो पूवथ की ििि एक-एक
अक्षि की वृणि िाोिो-िाोिो जब संख्याि प्रतिपत्तिक की वृणि
िाो जाय िब एक अनुयाोग श्रुिज्ञान िाोिा ि। इसको पिलो
अाि प्रतिपत्तिक ज्ञान को ऊपि सहपूणथ प्रतिपत्तिकसमास
ज्ञान को भोद िं। अन्द्न्िम प्रतिपत्तिकसमास ज्ञान को भोद मों
एक अक्षि की वृणि िाोनो सो अनुयाोग श्रुिज्ञान िाोिा ि। इस
ज्ञान को द्वािा िादि मागथणाअाों का ववस्िृि स्वरूप जाना
जािा ि ॥339॥
86. प्रतिपत्तिक श्रुिज्ञान
प्रतिपत्तिक + 1 अक्षि
፧
प्रतिपत्तिक + 1 पद
፧
प्रतिपत्तिक + 1 संघाि
፧
प्रतिपत्तिक + प्रतिपत्तिक
፧
2 प्रतिपत्तिक + प्रतिपत्तिक
प्रतिपत्तिक समास
दुगुणा प्रतिपत्तिक
िीगुणा प्रतिपत्तिक
4 गतियाों
को स्वरूप
का
तनरूपण
किनो वाला
87. अनुयाोग श्रुिज्ञान
एोसो संख्यािाों प्रतिपत्तिक की वृणि िाोनो पि अनुयाोग श्रुिज्ञान िाोिा ि ।
अंतिम प्रतिपत्तिक समास मों एक अक्षि की वृणि किनो पि अनुयाोग
श्रुिज्ञान िाोिा ि ।
14 मागथणाअाों को स्वरूप का तनरूपण किनो वाला अनुयाोग श्रुिज्ञान ि ।
88. िाोद्दसमग्गणसंजुद-अणणयाोगादुवरि वहड्ढदो वण्णो।
िउिादीअणणयाोगो, दुगवािं पाहुड़ं िाोदद॥340॥
•अथथ - िादि मागथणाअाों का तनरूपण किनोवालो
अनुयाोग ज्ञान को ऊपि पूवाोथति क्रम को अनुसाि
एक एक अक्षि की वृणि िाोिो-िाोिो जब ििुिादद
अनुयाोगाों की वृणि िाो जाय िब प्राभृिप्राभृि
श्रुिज्ञान िाोिा ि। इसको पिलो अाि अनुयाोग
ज्ञान को ऊपि जजिनो ज्ञान को ववकल्प िं वो सब
अनुयाोगसमास को भोद जानना ॥340॥
89. अनुयाोगसमास श्रुिज्ञान
अनुयाोग + 1 अक्षि
፧
+ 1 पद
፧
+ 1 संघाि
፧
+ 1 प्रतिपत्तिक
፧
+ 1 अनुयाोग
अनुयाोग समास
दुगुणा अनुयाोग
अनुयाोग को ऊपि क्रम सो
1-1 अक्षि की वृणि सो पद,
संघाि, प्रतिपत्तिक वृणिपूवथक
अनुयाोग वृणि िाोनो पि दुगुणा
अनुयाोग िाोिा ि ।
90. प्राभृि-प्राभृि ज्ञान
एोसो िाि अादद अनुयाोगाों को पूवथ िक अनुयाोग
समास ज्ञान ि ।
अंतिम अनुयाोगसमास मों एक अक्षि की वृणि िाोनो पि
प्राभृि-प्राभृि ज्ञान िाोिा ि ।
91. अहियािाो पाहुड़यं, एयट्ठाो पाहुड़स्स अहियािाो।
पाहुड़पाहुड़णामं, िाोदद त्ति जजणोहिं णणदद्दट्ठं॥341॥
•अथथ - प्राभृि अाि अधिकाि यो दाोनाों शब्द
एक िी अथथ को वािक िं। अिएव प्राभृि को
अधिकाि काो प्राभृिप्राभृि कििो िं, एोसा
जजनोन्िदोव नो किा िं ॥341॥
93. दुगवािपाहुड़ादाो, उवरिं वण्णो कमोण िउवीसो।
दुगवािपाहुड़ो संउड्ढो खलु िाोदद पाहुड़यं॥342॥
• अथथ - प्राभृिप्राभृि ज्ञान को ऊपि पूवाोथति क्रम सो एक-एक
अक्षि की वृणि िाोिो-िाोिो जब िाबीस प्राभृिप्राभृि की वृणि
िाो जाय िब एक प्राभृि श्रुिज्ञान िाोिा ि।
• प्राभृि को पिलो अाि प्राभृिप्राभृि को ऊपि जजिनो ज्ञान को
ववकल्प िं वो सब िी प्राभृिप्राभृिसमास को भोद जानना।
• उत्कृ ष्ट प्राभृिप्राभृि समास को भोद मों एक अक्षि की वृणि
िाोनो सो प्राभृि ज्ञान िाोिा ि ॥342॥
95. वीसं वीसं पाहुड़-अहियािो एक्कवत्थुअहियािाो।
एक्को क्कवण्णउड्ढी, कमोण सव्वत्थ णायव्वा॥343॥
•अथथ - पूवाोथति क्रमानुसाि प्राभृि ज्ञान को ऊपि एक-एक
अक्षि की वृणि िाोिो िाोिो जब क्रम सो बीस प्राभृि की
वृणि िाो जाय िब एक वस्िु नामक अधिकाि पूणथ िाोिा
ि।
•वस्िु ज्ञान को पिलो अाि प्राभृि ज्ञान को ऊपि जजिनो
ववकल्प िं वो सब प्राभृिसमास ज्ञान को भोद िं।
•उत्कृ ष्ट प्राभृिसमास मों एक अक्षि की वृणि िाोनो सो वस्िु
नामक श्रुिज्ञान पूणथ िाोिा ि ॥343॥
103. इसी प्रकाि अाग्रायणीय पूवथ को ऊपि
क्रम सो 1-1 अक्षि की वृणि िाोनो पि,
जब िक वीयथप्रवाद निीं िाोिा,
िब िक अाग्रायणीय पूवथसमास ज्ञान ि ।
इसी प्रकाि सबमों जानना िाहिए ।
त्रलाोकवबंदुसाि पूवथसमास निीं पाया जािा । यि अंतिम श्रुिज्ञान का भोद ि ।
104. पण णउददसया वत्थू, पाहुड़या तियसिस्सणवयसया।
एदोसु िाोद्दसोसु वव, पुव्वोसु िवंति भमभलदाणण॥347॥
•अथथ - इन िादि पूवाों को सहपूणथ वस्िुअाों का जाोड़
एक सा पंिानवो (195) िाोिा ि अाि एक-एक वस्िु
मों बीस-बीस प्राभृि िाोिो िं, इसभलयो सहपूणथ प्राभृिाों
का प्रमाण िीन िजाि ना सा (3900) िाोिा ि
॥347॥
14 पूवथ वस्िु = 195 प्राभृि = 195×20 = 3900
105. अत्थक्खिं ि पदसंघािं पदड़वत्तियाणणजाोगं ि।
दुगवािपाहुड़ं ि य, पाहुड़यं वत्थु पुव्वं ि॥348॥
कमवण्णुििवहड्ढय, िाण समासा य अक्खिगदाणण।
णाणववयप्पो वीसं, गंथो बािस य िाोद्दसयं॥349॥
• अथथ - अथाथक्षि, पद, संघाि, प्रतिपत्तिक, अनुयाोग, प्राभृिप्राभृि,
प्राभृि, वस्िु, पूवथ - यो नव िथा क्रम सो एक-एक अक्षि की वृणि
को द्वािा उत्पन्न िाोनोवालो अक्षिसमास अादद नव इस ििि अठािि
भोद िव्यश्रुि को िाोिो िं। पयाथय अाि पयाथयसमास को भमलानो सो
बीस भोद ज्ञानरूप श्रुि को िाोिो िं। यदद ग्रन्थरूप श्रुि की वववक्षा
की जाय िाो अािािांग अादद बािि अाि उत्पादपूवथ अादद िादि
िथा िकाि सो सामाययकादद िादि प्रकीणथक स्वरूप भोद िाोिो िं
॥348-349॥
108. बारुििसयकाोड़ी, िोसीदी िि य िाोंति लक्खाणं।
अट्ठावण्णसिस्सा, पंिोव पदाणण अंगाणं॥350॥
•अथथ - द्वादशांग को समस्ि पद एक सा
बािि किाोड़ त्र्यासी लाख अट्ठावन
िजाि पााँि (112,8358005) िाोिो
िं। ॥350॥
109. = 112,83,58,005
द्वादशांग को पदाों
की संख्या
= 1634,83,07,888 अक्षि
1 पद का
प्रमाण
म्यम पदाों को द्वािा जाो दोखा जािा ि, वि अंग
किलािा ि ।
110. अड़काोदड़एयलक्खा, अट्ठसिस्सा य एयसददगं ि।
पण्णिरि वण्णाअाो, पइण्णयाणं पमाणं िु॥351॥
•अथथ - अाठ किाोड़ एक लाख अाठ िजाि एक सा
पिििि (80108175) प्रकीणथक (अंगबाह्य) अक्षिाों
का प्रमाण ि ॥351॥
अंगबाह्य को अक्षिाों की संख्या -
8,01,08,175
120. वकसी एक स्थान मों एकसंयाोगी अादद तनकालनो को सू्र
गच्छ = N = स्थान । जजिनोवां स्थान ि, उसो गच्छ कििो िं।
एक संयाोगी अक्षि = 1
दाो संयाोगी अक्षि = N – 1
जसो ग को हद्व-संयाोगी अक्षि तनकालना ि, िाो ग का गच्छ 3 ि ।
िाो हद्व-संयाोगी भंग = N – 1 = 3 – 1 = 2 िाोंगो । यथा गख, गक
121. िीन संयाोगी अक्षि = (गच्छ – 2) का एक बाि संकलन िन ।
संकलन िन =
y × (y + 1)
1 × 2
जसो घ को िीनसंयाोगी अक्षि तनकालना ि, िाो घ का गच्छ = 4 ि ।
िीनसंयाोगी अक्षि = (गच्छ – 2) का एक बाि संकलन िन = (4 – 2) = 2
का एक बाि संकलन िन
2 का एक बाि संकलन िन =
2 × (2 + 1)
1 × 2
=
2 × 3
1 × 2
= 3
घ को िीनसंयाोगी अक्षि 3 िं । यथा घगख, घगक, घखक
122. िािसंयाोगी अक्षि = (गच्छ – 3) का दाो बाि संकलन िन
दाो बाि संकलन िन =
y × (y + 1) × (y + 2)
1 × 2 × 3
जसो ङ को िािसंयाोगी अक्षि = (गच्छ – 3) का दाो बाि संकलन िन
गच्छ = 5, िाो (5 – 3) का दाो बाि संकलन िन = 2 का दाो बाि संकलन
िन
2 का दाो बाि संकलन िन =
2 × (2 + 1) × (2 + 2)
1 × 2 × 3
=
2 × 3 × 4
1 × 2 × 3
= 4
ङ को िािसंयाोगी अक्षि 4 िं । यथा ङघगख, ङघगक, ङघखक, ङगखक
123. पााँचसंयोगी अक्षर = (गच्छ – 4) का तीन बार संकलन धन
तीन बार संकलन धन =
y × y + 1 × y + 2 × (y + 3)
1 × 2 × 3 × 4
छःसंयाोगी अक्षि = (गच्छ – 5) का िाि बाि संकलन िन
िाि बाि संकलन िन =
y × y + 1 × y + 2 × (y + 3) × (y + 4)
1 × 2 × 3 × 4× 5
एोसो िी 64 संयाोगी िक किना िाहिए ।
124. ➢ वकसी एक वववसक्षि स्थान को सवथ भंग = 2N – 1
➢ जसो ग को सािो भंग = 23 – 1 = 22 = 4
➢ ग को प्रत्योक भंग = 1, हद्वसंयाोगी भंग = 2, िीनसंयाोगी भंग =
1 ।
➢ इस प्रकाि कु ल िाि भंग हुए जाो सू्र द्वािा बिायो थो ।
➢ एोसो िी सवथ्र तनकालना िाहिए ।
64वो स्थान को भंग = 2N – 1 = 264 – 1 = 263
सािो भंगाों काो जाोड़नो का सू्र
(अंििन × 2 ) – अादद = (263 × 2) – 1 = 264 – 1
यानो एक कम एकट्ठी प्रमाण अक्षि अपुनरुति िं ।
125. मन्द्ज्झमपदक्खिवहिद-वण्णा िो अंगपुव्वगपदाणण।
सोसक्खिसंखा अाो, पइण्णयाणं पमाणं िु॥355॥
•अथथ - म्यमपद को अक्षिाों का जाो प्रमाण ि
उसका समस्ि अक्षिाों को प्रमाण मों भाग दोनो
सो जाो लब्ि अावो उिनो अंग अाि पूवथगि
म्यम पद िाोिो िं। शोष जजिनो अक्षि ििों
उिना अंगबाह्य अक्षिाों का प्रमाण ि
॥355॥
126. अंग प्रववषट को पद व अंगबाह्य को अक्षि तनकालनो की ववधि
- दृषटान्ि द्वािा
वकिनो पद बनोंगो?
1006
10
= 100 पद
अंगप्रववषट
शोष बिो अक्षि = 6 अक्षि
अंगबाह्य
माना वक ― सहपूणथ अक्षि = 1006 ; म्यम पद को अक्षि = 10
127. अंगप्रववषट को पद व अंगबाह्य को अक्षि तनकालनो
की ववधि
कु ल अक्षि
𝟏 म्यम पद को अक्षि
=
𝟐 𝟔𝟒 ‒𝟏
𝟏𝟔𝟑𝟒,𝟖𝟑𝟎𝟕𝟖𝟖𝟖
= 112,8358005 पद
अंग प्रववषट
= 8,01,08,175 अक्षि
अंग बाह्य
128. अायािो सुद्दयड़ो, ठाणो समवायणामगो अंगो।
ििाो वविाएपण्णिीए णािस्स िहमकिा॥356॥
िाोवासयअज्झयणो, अंियड़ो णुििाोववाददसो।
पण्िाणं वायिणो, वववायसुिो य पदसंखा॥357॥
• अथथ - अािािांग, सू्रकृ िांग, स्थानांग, समवायांग,
व्याख्याप्रज्ञन्द्प्ि, नाथिमथकथांग, उपासक्ययनांग,
अन्ि:कृ द्दशांग, अनुििापपाददकदशांग, प्रश्नव्याकिण अाि
ववपाकसू्र इन ग्यािि अंगाों को पदाों की संख्या क्रम सो
तनहनभलन्द्खि ि ॥356-357॥
129. अािािांग
“कसो िभलयो ? कसो
बदठयो” अादद गणिि दोव
को प्रश्न को अनुसाि
“यिन सो िभलयो, बदठयो”
अादद उिि विन भलयो
मुतनश्विाों को समस्ि
अाििण का वणथन
सू्रकृ िांग
ज्ञानववनय, प्रज्ञापना,
कल्पाकल्प,
छोदाोपस्थापना,
व्यविाििमथवक्रया व
स्वसमय-पिसमय का
सू्राों द्वािा वणथन
स्थानांग
एक सो लोकि उििाोिि
एक-एक बढिो स्थानाों
का वणथन, जसो -
संग्रिनय सो अात्मा एक
ि । व्यविािनय सो
संसािी, मुति दाो प्रकाि
िं ।
130. समवायांग
सहपूणथ पदाथाों को समवाय
का अथाथि सादृश्यसामान्य
सो िव्य, क्षो्र, काल अाि
भाव की अपोक्षा जीवादद
पदाथाों का वणथन । जसो क्षो्र
समवाय-सािवों निक का
इन्िक वबल, जहबूद्वीप एवं
सवाथथथससणि ववमान क्षो्र सो
समान ि
व्याख्याप्रज्ञतप्
''जीव तनत्य ि वक
अतनत्य ि'' अादद
गणिि दोव द्वािा
िीथंकि को तनकट
वकयो 60 िजाि
प्रश्नाों का वणथन
नाथिमथकथांग /
ज्ञािृिमथकथांग
िीथंकि को िमथ की कथा
का अथवा जीवादद
पदाथाों को स्वभाव का
अथवा ''अन्द्स्ि-नान्द्स्ि''
अादद गणिि दोव द्वािा
वकयो गयो प्रश्नाों को
उििाों का वणथन
131. उपासका्ययनांग
श्रावक की 11
प्रतिमा एवं व्रि,
शील, अािाि,
वक्रया, मं्राददक
का वणथन
अन्ि:कृ िदशांग
प्रत्योक िीथथ मों
उपसगथ सिनकि
तनवाथण प्राप्ि किनो
वालो 10-10
अंि:कृ ि को वली
का वणथन
अनुििापपाददक
दशांग
प्रत्योक िीथथ मों
उपसगथ सिनकि
5 अनुिि ववमानाों
मों गए 10-10
जीवाों का वणथन
132. प्रश्नव्याकिणांग
अाक्षोपणी, ववक्षोपणी, संवोजनी
अाि तनवोथजनी नाम की 4
कथाअाों का िथा िीन काल
संबंिी िन-िान्य, लाभ-
अलाभ, जीववि-मिण, जय-
पिाजय संबंिी प्रश्नाों को
पूछनो पि उनको उपाय का
वणथन
ववपाकसू्रांग
पुण्य अाि
पापरूप कमाों
को र्लाों का
वणथन
दृधष्टवादांग
363
कु वाददयाों को
मिाों एवं उनको
तनिाकिण का
वणथन
133. अट्ठािस छिीसं, बादालं अड़कड़ी अड़ वव छप्पण्णं।
सिरि अट्ठावीसं, िउदालं साोलससिस्सा॥358॥
इयगदुगपंिोयािं, तिवीसदुतिणउददलक्ख िुरियादी।
िुलसीददलक्खमोया, काोड़ी य वववागसुिन्द्हि॥359।।
• अथथ - अठािि िजाि, छिीस िजाि, वबयालीस िजाि,
एक लाख िांसठ िजाि, दाो लाख अट्ठाईस िजाि, पााँि
लाख छप्पन िजाि, ग्यािि लाख सिि िजाि, िोईस लाख
अट्ठाईस िजाि, बानवो लाख िवालीस िजाि, तििानवो
लाख साोलि िजाि एवं एक किाोड़ िािासी लाख ॥358-
359॥
134. क्र. अंग का नाम पद प्रमाण
1 अािािांग 18 िजाि
2 सू्रकृ िांग 36 िजाि
3 स्थानांग 42 िजाि
4 समवायांग 1 लाख 64 िजाि
5 व्याख्याप्रज्ञतप् 2 लाख 28 िजाि
6 नाथिमथकथांग / ज्ञािृिमथकथांग 5 लाख 56 िजाि
7 उपासका्ययनांग 11 लाख 70 िजाि
8 अन्ि:कृ िदशांग 23 लाख 28 िजाि
9 अनुििापपाददक दशांग 92 लाख 44 िजाि
10 प्रश्नव्याकिणांग 93 लाख 16 िजाि
11 ववपाकसू्रांग 1 किाोड़ 84 लाख
कु ल जाोड़ 4 किाोड़ 15 लाख 2 िजाि
12 दृधष्टवादांग 1,08,68,56,005
द्वादशांग को सहपूणथ पदाों का जाोड़ 1,12,83,58,005
135. वापणनिनाोनानं, एयािंगो जुदी हु वादन्द्हि।
कनजिजमिाननमं, जनकनजयसीम बाहििो वण्णा॥360॥
•अथथ - पूवाोथति ग्यािि अंगाों को पदाों का जाोड़ िाि
किाोड़ पन्िि लाख दाो िजाि (41502000) िाोिा
ि। बाििवों दृधष्टवाद अंग मों सहपूणथ पद एक अिब
अाठ किाोड़ अड़सठ लाख छप्पन िजाि पांि
(1086856005) िाोिो िं। अंगबाह्य अक्षिाों का
प्रमाण अाठ किाोड़ एक लाख अाठ िजाि एक सा
पिििि (80108175) ि ॥360॥
136. अक्षिाों सो संख्या तनकालनो की ववधि
क—1 ट—1 प—1 य—1
ख—2 ठ—2 फ—2 र—2
ग—3 ड—3 ब—3 ल—3
घ—4 ढ—4 भ—4 ि—4
ङ—5 ण—5 म—5 श—5
च—6 त—6 ष—6
छ—7 र्—7 स—7
ि—8 द—8 ह—8
झ—9 ध—9
सारे स्िर = 0; न, ञ = 0; मात्राओं का कोई अंक नहीं
137. = 4,15,02,000
11 अंगाों को पदाों
का जाोड़
= 108,68,56,005
12वो दृधष्टवाद का
पदाों का प्रमाण
= 8,01,08,175अंगबाह्य को अक्षि
138. िंदिववजंबुदीवय-दीवसमुद्दयववयािपण्णिी।
परियहमं पंिवविं, सुिं पढमाणणजाोगमदाो॥361॥
• अथथ - बाििवों दृधष्टवाद अंग को पााँि भोद िं - परिकमथ, सू्र,
प्रथमानुयाोग, पूवथगि, िूभलका।
• इसमों परिकमथ को पााँि भोद िं - िन्िप्रज्ञन्द्प्ि, सूयथप्रज्ञन्द्प्ि, जहबूद्वीपप्रज्ञन्द्प्ि,
द्वीप-सागिप्रज्ञन्द्प्ि, व्याख्याप्रज्ञन्द्प्ि।
• सू्र का अथथ सूभिि किनो वाला ि, इस भोद मों ‘जीव अबंिक िी ि,
अकिाथ िी ि,’ इत्यादद वक्रयावाद, अवक्रयावाद, अज्ञान, ववनयरूप 363
भमथ्यामिाों काो पूवथपक्ष मों िखकि ददखाया गया ि।
• प्रथमानुयाोग का अथथ ि वक प्रथम अथाथि भमथ्यादृधष्ट या अव्रतिक
अव्युत्पन्न श्राोिा काो लक्ष्य किको जाो प्रवृि िाो। ॥361 ॥
139. पुव्वं जलथलमाया, अागासयरूवगयभममा पंि।
भोदा हु िूभलयाए, िोसु पमाणं इणं कमसाो॥362॥
•अथथ - पूवथगि को िादि भोद िं ।
•िूभलका को पााँि भोद िं - जलगिा,
स्थलगिा, मायागिा, अाकाशगिा, रूपगिा
•अब इन िन्िप्रज्ञन्द्प्ि अादद मों क्रम सो पदाों को
प्रमाण काो कििो िं ॥362॥