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वह जन्मभूमम मेरी
सोहनलाल द्वववेदी
सोहनलाल द्वववेदी
(जन्म:1905 ननधन: 1988)
कवव पररचय
22 फरवरी सन् 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जजले में कानपुर के पास ब िंदकी नामक स्थान पर जन्मे
सोहनलाल द्वववेदी हहिंदी काव्य-जगत की अमूल्य ननधध हैं। आपने हहन्दी में एम.ए. तथा सिंस्कृ त का भी
अध्ययन ककया। राष्ट्रीयता से सिं जन्धत कववताएँ मलखने वालो में आपका स्थान महत्त्वपूर्ण है। महात्मा
गािंधी पर आपने कई भावपूर्ण रचनाएँ मलखी हैं, जो हहन्दी जगत में अत्यन्त लोकवप्रय हुई हैं।
सन्1938 से 1942 तक आपने दैननक राष्ट्रीय पत्र " अधधकार" का लखनऊ से सम्पादन ककया।
“गाँधी जी ने 12 माचण 1930 को अपने 76 सत्याग्रही कायणकताणओिं के साथ सा रमती आश्रम से 200 मील
दूर दािंडी माचण ककया था। उस यात्रा पर अिंग्रेजी सत्ता को ललकारते हुए सोहनलाल जी ने कहा था -”या तो
भारत होगा स्वतिंत्र, कु छ हदवस रात के प्रहरों पर या शव नकर लहरेगा शरीर, मेरा समुद्र की लहरों पर, हे
शहीद, उठने दे अपना फू लों भरा जनाज़ा।”
सोहनलाल द्वववेदी की भाषा सहज और भावपूर्ण है ,जजसमें तत्सम के शब्दों का प्रयोग ककया गया है।
आपकी रचनाएँ ओजपूर्ण एविं राष्ट्रीयता की पररचायक है। आपके द्वारा मलखीिं गई मशशुभारती, च्चों के
ापू, ब गुल, ाँसुरी और झरना, दूध ताशा जैसी दजणनों रचनाएँ च्चों को आकवषणत करती हैं।
प्रमुख रचनाएँ : भैरवी, पूजागीत सेवाग्राम, प्रभाती, युगाधार, कु र्ाल, चेतना, ाँसुरी, तथा च्चों के मलए
दूध ताशा आहद ।
कववता का के न्द्रीय भाव
सोहनलाल द्वववेदी द्वारा रधचत कववता “वह जन्मभूमम मेरी” भारतभूमम के प्राकृ नतक सौन्दयण
तथा गौरवशाली और समृद्ध प्राचीन अतीत का भव्य उद्घाटन करती है। कवव चाहते हैं कक आज
की नई पीढ़ी अपने देश की ववरासत, महानता, समृद्धध, इनतहास, सिंस्कृ नत एविं अपने पूवणजों द्वारा
ककए गए सत्कमों से अवगत हो और उनके जीवन से प्रेरर्ा प्राप्त कर उनके आदशों को अपनाने
की कोमशश करे। हहमालय के समान उच्च ववचार तथा समुद्र की तरह तरल, प्रेमपूर्ण व्यवहार का
वर्णन करना भी प्रस्तुत कववता का उद्देश्य है।
हिमालय पर्वत
हहन्द महासागर
गिंगा, यमुना और सरस्वती का बत्रवेर्ी सिंगम इलाहा ाद में
काव्यािंश
वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी
ऊँ चा खड़ा हहमालय, आकाश चूमता है,
नीचे चरर् तले पड़, ननत मसिंधु झूमता है।
गिंगा, यमुना, बत्रवेर्ी, नहदयाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा ननराली, पग-पग पर छहर रही है।
वह पुण्यभूमम मेरी, वह स्वर्णभूमम मेरी।
वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी
शब्दाथण
चरर् - पैरों के नीचे
ननत - प्रनतहदन
ननराली - अनोखी
छटा - सुिंदरता
पग पग पर - कदम कदम पर
स्वर्णभूमम - धन्य धान्य से पररपूर्ण
जन्मभूमम - जजस भूमम पर जन्म मलया
मातृभूमम - वह भूमम जो माँ के समान हो
व्याख्या
भारत की उत्तर हदशा में हहमालय पवणत जस्थत है। उसकी ऊँ चाई को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कक मानो वह आसमान को छू
रहा हो। भारत के दक्षिर् में हहन्द महासागर है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत माता के पैरों के नीचे समुद्र ननरिंतर
झूमता रहता है, मचलता रहता है। भारतभूमम में गिंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पववत्र नहदयाँ हती हैं, जजनमें मनमोहक
लहरें उठती रहती हैं। इन नहदयों का सौन्दयण अनोखा है। इनकी अथाह जल-रामश कदम-कदम पर ब खरकर स का ध्यान
आकवषणत करती है। इन नहदयों के जल से ककसान अपने खेतों को सीिंचता है। भारतभूमम को पुण्यभूमम अथाणत पववत्र धरती कहा
जाता है। यहाँ की ममट्टी हुत उपजाऊ है, जजससे भरपूर फसल उगती है। फसलें धरती का सोना होती हैं। यही कारर् है कक
भारतभूमम को स्वर्णभूमम कहा जाता है। भारतभूमम हमारी जन्मभूमम है। कवव कहते हैं कक जजस प्रकार माँ अपने च्चों का
लालन-पोषर् करती है। उसे अपना दूध वपलाती है। ठीक उसी प्रकार धरती भी अपने अन्न-जल से हमारा लालन-पालन करती
है। यही हमारी मातृभूमम भी है।
काव्यािंश
झरने अनेक झरते, जजसकी पहाड़ड़यों में,
धचड़ड़याँ चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ड़यों में,
अमराइयाँ घनी हैं, कोयल पुकारती है।
हती मलय पवन है, तन-मन सँवारती है।
वह धमणभूमम मेरी, वह कमणभूमम मेरी।
वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी।
शब्दाथण
झरने - पहाड़ड़यों से धगरने वाली धाराएँ
अमराइयाँ - आम के ाग
मलय पवन - दक्षिर् भारत के पवणतों से आने वाली हवा
कमणभूमम - कमण करने का स्थान
धमणभूमम - धाममणक भूमम
व्याख्या
कवव कहते हैं कक हहमालय की पहाड़ड़यों में अनेक झरने हते हैं जो आगे चलकर नहदयों में ममल जाते हैं। भारत में प्राकृ नतक
वनस्पनतयों की भरमार है ,जजनमें धचड़ड़यों का कलरव सुनाई पड़ता है। स्थान-स्थान पर आमों के ाग हदखाई देते हैं। ज आम
के ागों में ौर आता है, त कोयल की सुरीली आवाज़ सुनाई पड़ती है। भारत के दक्षिर् में मलय पवणत जस्थत है। मलयाचल
पवणत से हने वाली शीतल-सुगिंधधत मिंद वायु स को मिंत्रमुग्ध कर देती है और जनमानस का हृदय प्रसन्नता से भर जाता है।
कवव कहते हैं कक भारतभूमम धमणभूमम है क्योंकक यहाँ हर धमण का अजस्तत्व है जो उन्हें प्रेम और भाईचारे का पाठ पढ़ाता है तथा
धमण के मागण पर चलने के मलए प्रेररत करता है। भारत कमण-प्रधान देश है, जो कमण के महत्त्व को प्रनतपाहदत करता है और प्रत्येक
नागररक को ननरिंतर कमण करने के मलए प्रेररत करता है। कवव कहते हैं कक वह मेरी जन्मभूमम है। वह मेरी मातृभूमम है।
काव्यािंश
जन्मे जहाँ थे रघुपनत, जन्मी जहाँ थीिं सीता,
श्रीकृ ष्ट्र् ने सुनाई, विंशी पुनीत गीता।
गौतम ने जन्म लेकर, जजसका सुयश ढ़ाया,
जग को दया मसखाई, जग को हदया हदखाया।
वह युद्धभूमम मेरी, वह ुद्धभूमम मेरी।
वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी।
शब्दाथण
रघुपनत - श्री राम
पुनीत - पववत्र
गीता - पद्यात्मक उपदेश जो श्रीकृ ष्ट्र् ने अजुणन को हदया था
सुयश - कीनतण, ख्यानत
हदया - दीपक, दीयाजग - सिंसार
व्याख्या
प्रस्तुत काव्यािंश में कवव ने भारत के महापुरुषों और वीरों की महत्ता का वर्णन ककया है जजन्होंने अपने महान व्यजक्तत्व के
माध्यम से यहाँ के ननवामसयों का मागणदशणन ककया । यह वह देश है ,जहाँ श्रीराम ने जन्म मलया। उनका जन्म रघुकु ल में हुआ।
राम सूयणविंशी थे और मयाणदा पुरुषोत्तम कहलाते हैं। इसी भूमम पर जनक निंहदनी सीता का जन्म हुआ जजन्होंने पानतव्रत धमण का
पालन करते हुए पनत के साथ वनवास का कष्ट्ट झेला। यह वह भूमम है ,जहाँ भगवान ववष्ट्र्ु के अवतार श्रीकृ ष्ट्र् ने अजुणन को
गीता का उपदेश हदया जजसमें ननष्ट्काम कमण (कमण के फल की कामना को त्याग कर अपना कत्तणव्य करना) का प्रनतपादन ककया
गया। इसी पववत्र भारतभूमम पर गौतम ुद्ध ने जन्म मलया और सिंसार की मोह-माया का त्याग कर ज्ञान की खोज की ।
उन्होंने सम्पूर्ण मानव-जानत को अहहिंसा, दया, परोपकार, सहानुभूनत, प्रेम का उपदेश हदया, जजसके फलस्वरूप भारतभूमम की
प्रमसद्धध पूरी दुननया में फै ल गई। उन्होंने वास्तववक ज्ञान का दीपक जलाया जजसकी वजह से सम्पूर्ण मानवता शोकरहहत हो
सकी।
कवव कहते हैं कक भारत युद्धभूमम है। इस धरती ने सदैव अन्याय, अत्याचार और शोषर् के ववरुद्ध सिंघषण ककया है और मानव
के हहतों की रिा की है। इसमलए कवव को वह सिंघषण के मलए प्रेररत करता है। भारत ुद्ध की भूमम है। ज पूरी दुननया में
अज्ञानता रूपी अँधेरा छाया हुआ था त ुद्ध ने ज्ञान का प्रकाश फै लाया। अत: यह भूमम कवव की जन्मभूमम है, मातृभूमम है।

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  • 3. कवव पररचय 22 फरवरी सन् 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जजले में कानपुर के पास ब िंदकी नामक स्थान पर जन्मे सोहनलाल द्वववेदी हहिंदी काव्य-जगत की अमूल्य ननधध हैं। आपने हहन्दी में एम.ए. तथा सिंस्कृ त का भी अध्ययन ककया। राष्ट्रीयता से सिं जन्धत कववताएँ मलखने वालो में आपका स्थान महत्त्वपूर्ण है। महात्मा गािंधी पर आपने कई भावपूर्ण रचनाएँ मलखी हैं, जो हहन्दी जगत में अत्यन्त लोकवप्रय हुई हैं। सन्1938 से 1942 तक आपने दैननक राष्ट्रीय पत्र " अधधकार" का लखनऊ से सम्पादन ककया। “गाँधी जी ने 12 माचण 1930 को अपने 76 सत्याग्रही कायणकताणओिं के साथ सा रमती आश्रम से 200 मील दूर दािंडी माचण ककया था। उस यात्रा पर अिंग्रेजी सत्ता को ललकारते हुए सोहनलाल जी ने कहा था -”या तो भारत होगा स्वतिंत्र, कु छ हदवस रात के प्रहरों पर या शव नकर लहरेगा शरीर, मेरा समुद्र की लहरों पर, हे शहीद, उठने दे अपना फू लों भरा जनाज़ा।” सोहनलाल द्वववेदी की भाषा सहज और भावपूर्ण है ,जजसमें तत्सम के शब्दों का प्रयोग ककया गया है। आपकी रचनाएँ ओजपूर्ण एविं राष्ट्रीयता की पररचायक है। आपके द्वारा मलखीिं गई मशशुभारती, च्चों के ापू, ब गुल, ाँसुरी और झरना, दूध ताशा जैसी दजणनों रचनाएँ च्चों को आकवषणत करती हैं। प्रमुख रचनाएँ : भैरवी, पूजागीत सेवाग्राम, प्रभाती, युगाधार, कु र्ाल, चेतना, ाँसुरी, तथा च्चों के मलए दूध ताशा आहद ।
  • 4. कववता का के न्द्रीय भाव सोहनलाल द्वववेदी द्वारा रधचत कववता “वह जन्मभूमम मेरी” भारतभूमम के प्राकृ नतक सौन्दयण तथा गौरवशाली और समृद्ध प्राचीन अतीत का भव्य उद्घाटन करती है। कवव चाहते हैं कक आज की नई पीढ़ी अपने देश की ववरासत, महानता, समृद्धध, इनतहास, सिंस्कृ नत एविं अपने पूवणजों द्वारा ककए गए सत्कमों से अवगत हो और उनके जीवन से प्रेरर्ा प्राप्त कर उनके आदशों को अपनाने की कोमशश करे। हहमालय के समान उच्च ववचार तथा समुद्र की तरह तरल, प्रेमपूर्ण व्यवहार का वर्णन करना भी प्रस्तुत कववता का उद्देश्य है।
  • 7. गिंगा, यमुना और सरस्वती का बत्रवेर्ी सिंगम इलाहा ाद में
  • 8. काव्यािंश वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी ऊँ चा खड़ा हहमालय, आकाश चूमता है, नीचे चरर् तले पड़, ननत मसिंधु झूमता है। गिंगा, यमुना, बत्रवेर्ी, नहदयाँ लहर रही हैं, जगमग छटा ननराली, पग-पग पर छहर रही है। वह पुण्यभूमम मेरी, वह स्वर्णभूमम मेरी। वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी
  • 9. शब्दाथण चरर् - पैरों के नीचे ननत - प्रनतहदन ननराली - अनोखी छटा - सुिंदरता पग पग पर - कदम कदम पर स्वर्णभूमम - धन्य धान्य से पररपूर्ण जन्मभूमम - जजस भूमम पर जन्म मलया मातृभूमम - वह भूमम जो माँ के समान हो
  • 10. व्याख्या भारत की उत्तर हदशा में हहमालय पवणत जस्थत है। उसकी ऊँ चाई को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कक मानो वह आसमान को छू रहा हो। भारत के दक्षिर् में हहन्द महासागर है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत माता के पैरों के नीचे समुद्र ननरिंतर झूमता रहता है, मचलता रहता है। भारतभूमम में गिंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पववत्र नहदयाँ हती हैं, जजनमें मनमोहक लहरें उठती रहती हैं। इन नहदयों का सौन्दयण अनोखा है। इनकी अथाह जल-रामश कदम-कदम पर ब खरकर स का ध्यान आकवषणत करती है। इन नहदयों के जल से ककसान अपने खेतों को सीिंचता है। भारतभूमम को पुण्यभूमम अथाणत पववत्र धरती कहा जाता है। यहाँ की ममट्टी हुत उपजाऊ है, जजससे भरपूर फसल उगती है। फसलें धरती का सोना होती हैं। यही कारर् है कक भारतभूमम को स्वर्णभूमम कहा जाता है। भारतभूमम हमारी जन्मभूमम है। कवव कहते हैं कक जजस प्रकार माँ अपने च्चों का लालन-पोषर् करती है। उसे अपना दूध वपलाती है। ठीक उसी प्रकार धरती भी अपने अन्न-जल से हमारा लालन-पालन करती है। यही हमारी मातृभूमम भी है।
  • 11. काव्यािंश झरने अनेक झरते, जजसकी पहाड़ड़यों में, धचड़ड़याँ चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ड़यों में, अमराइयाँ घनी हैं, कोयल पुकारती है। हती मलय पवन है, तन-मन सँवारती है। वह धमणभूमम मेरी, वह कमणभूमम मेरी। वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी।
  • 12. शब्दाथण झरने - पहाड़ड़यों से धगरने वाली धाराएँ अमराइयाँ - आम के ाग मलय पवन - दक्षिर् भारत के पवणतों से आने वाली हवा कमणभूमम - कमण करने का स्थान धमणभूमम - धाममणक भूमम
  • 13. व्याख्या कवव कहते हैं कक हहमालय की पहाड़ड़यों में अनेक झरने हते हैं जो आगे चलकर नहदयों में ममल जाते हैं। भारत में प्राकृ नतक वनस्पनतयों की भरमार है ,जजनमें धचड़ड़यों का कलरव सुनाई पड़ता है। स्थान-स्थान पर आमों के ाग हदखाई देते हैं। ज आम के ागों में ौर आता है, त कोयल की सुरीली आवाज़ सुनाई पड़ती है। भारत के दक्षिर् में मलय पवणत जस्थत है। मलयाचल पवणत से हने वाली शीतल-सुगिंधधत मिंद वायु स को मिंत्रमुग्ध कर देती है और जनमानस का हृदय प्रसन्नता से भर जाता है। कवव कहते हैं कक भारतभूमम धमणभूमम है क्योंकक यहाँ हर धमण का अजस्तत्व है जो उन्हें प्रेम और भाईचारे का पाठ पढ़ाता है तथा धमण के मागण पर चलने के मलए प्रेररत करता है। भारत कमण-प्रधान देश है, जो कमण के महत्त्व को प्रनतपाहदत करता है और प्रत्येक नागररक को ननरिंतर कमण करने के मलए प्रेररत करता है। कवव कहते हैं कक वह मेरी जन्मभूमम है। वह मेरी मातृभूमम है।
  • 14. काव्यािंश जन्मे जहाँ थे रघुपनत, जन्मी जहाँ थीिं सीता, श्रीकृ ष्ट्र् ने सुनाई, विंशी पुनीत गीता। गौतम ने जन्म लेकर, जजसका सुयश ढ़ाया, जग को दया मसखाई, जग को हदया हदखाया। वह युद्धभूमम मेरी, वह ुद्धभूमम मेरी। वह जन्मभूमम मेरी, वह मातृभूमम मेरी।
  • 15. शब्दाथण रघुपनत - श्री राम पुनीत - पववत्र गीता - पद्यात्मक उपदेश जो श्रीकृ ष्ट्र् ने अजुणन को हदया था सुयश - कीनतण, ख्यानत हदया - दीपक, दीयाजग - सिंसार
  • 16. व्याख्या प्रस्तुत काव्यािंश में कवव ने भारत के महापुरुषों और वीरों की महत्ता का वर्णन ककया है जजन्होंने अपने महान व्यजक्तत्व के माध्यम से यहाँ के ननवामसयों का मागणदशणन ककया । यह वह देश है ,जहाँ श्रीराम ने जन्म मलया। उनका जन्म रघुकु ल में हुआ। राम सूयणविंशी थे और मयाणदा पुरुषोत्तम कहलाते हैं। इसी भूमम पर जनक निंहदनी सीता का जन्म हुआ जजन्होंने पानतव्रत धमण का पालन करते हुए पनत के साथ वनवास का कष्ट्ट झेला। यह वह भूमम है ,जहाँ भगवान ववष्ट्र्ु के अवतार श्रीकृ ष्ट्र् ने अजुणन को गीता का उपदेश हदया जजसमें ननष्ट्काम कमण (कमण के फल की कामना को त्याग कर अपना कत्तणव्य करना) का प्रनतपादन ककया गया। इसी पववत्र भारतभूमम पर गौतम ुद्ध ने जन्म मलया और सिंसार की मोह-माया का त्याग कर ज्ञान की खोज की । उन्होंने सम्पूर्ण मानव-जानत को अहहिंसा, दया, परोपकार, सहानुभूनत, प्रेम का उपदेश हदया, जजसके फलस्वरूप भारतभूमम की प्रमसद्धध पूरी दुननया में फै ल गई। उन्होंने वास्तववक ज्ञान का दीपक जलाया जजसकी वजह से सम्पूर्ण मानवता शोकरहहत हो सकी। कवव कहते हैं कक भारत युद्धभूमम है। इस धरती ने सदैव अन्याय, अत्याचार और शोषर् के ववरुद्ध सिंघषण ककया है और मानव के हहतों की रिा की है। इसमलए कवव को वह सिंघषण के मलए प्रेररत करता है। भारत ुद्ध की भूमम है। ज पूरी दुननया में अज्ञानता रूपी अँधेरा छाया हुआ था त ुद्ध ने ज्ञान का प्रकाश फै लाया। अत: यह भूमम कवव की जन्मभूमम है, मातृभूमम है।