गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अगस्त-2019 | GURUTVA JYOTISH E-MAGAZINE AUGUST-2019
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गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अगस्त -2019 में प्रकशित लेख
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष
5. -
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इस भाससक ई-ऩत्रिका भें सॊफॊधधत जानकायीमों के ववषम भें साधक एवॊ ववद्वान ऩाठको से अनुयोध
हैं, मदद दशाामे गए भॊि, श्रोक, मॊि, साधना एवॊ उऩामों मा अन्म जानकायी के राब, प्रबाव इत्मादी के
सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भें, डडजाईन भें, टाईऩीॊग भें, वप्रॊदटॊग भें, प्रकाशन भें कोई िुदट यह गई हो,
तो उसे स्वमॊ सुधाय रें मा फकसी मोग्म ज्मोततषी, गुरु मा ववद्वान से सराह ववभशा कय रे । क्मोफक
ववद्वान ज्मोततषी, गुरुजनो एवॊ साधको के तनजी अनुबव ववसबन्न भॊि, श्रोक, मॊि, साधना, उऩाम के
प्रबावों का वणान कयने भें बेद होने ऩय काभना ससवि हेतु फक जाने वारी वारी ऩूजन ववधध एवॊ उसके
प्रबावों भें सबन्नता सॊबव हैं।
,
…
अ -अ
ध ॊतन जोशी
6. 6 अगस्त - 2019
***** भाससक ई-ऩत्रिका से सॊफॊधधत सू ना *****
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत सबी रेख गुरुत्व कामाारम के अधधकायों के साथ ही आयक्षऺत हैं।
ई-ऩत्रिका भें वर्णात रेखों को नात्स्तक/अववश्वासु व्मत्क्त भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हैं।
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख आध्मात्भ से सॊफॊधधत होने के कायण बायततम धभा शास्िों से प्रेरयत
होकय प्रस्तुत फकमा गमा हैं।
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊधधत फकसी बी ववषमो फक सत्मता अथवा प्राभार्णकता ऩय फकसी
बी प्रकाय की त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं।
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत जानकायीकी प्राभार्णकता एवॊ प्रबाव की त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की
नहीॊ हैं औय ना हीॊ प्राभार्णकता एवॊ प्रबाव की त्जन्भेदायी के फाये भें जानकायी देने हेतु कामाारम
मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हैं।
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊधधत रेखो भें ऩाठक का अऩना ववश्वास होना आवश्मक हैं। फकसी
बी व्मत्क्त ववशेष को फकसी बी प्रकाय से इन ववषमो भें ववश्वास कयने ना कयने का अॊततभ तनणाम
स्वमॊ का होगा।
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊधधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय ददए गमे हैं। हभ
फकसी बी व्मत्क्त ववशेष द्वाया प्रमोग फकमे जाने वारे धासभाक, एवॊ भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा
उऩामोकी त्जन्भेदायी नदहॊ रेते हैं। मह त्जन्भेदायी भॊि- मॊि मा अन्म उऩामोको कयने वारे व्मत्क्त
फक स्वमॊ फक होगी।
क्मोफक इन ववषमो भें नैततक भानदॊडों, साभात्जक, कानूनी तनमभों के र्खराप कोई व्मत्क्त मदद
नीजी स्वाथा ऩूतता हेतु प्रमोग कताा हैं अथवा प्रमोग के कयने भे िुदट होने ऩय प्रततकू र ऩरयणाभ
सॊबव हैं।
ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊधधत जानकायी को भाननने से प्राप्त होने वारे राब, राब की
हानी मा हानी की त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हैं।
हभाये द्वाया प्रकासशत फकमे गमे सबी रेख, जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ
ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हैं त्जस्से हभे हय प्रमोग मा कव , भॊि-मॊि मा उऩामो
द्वाया तनत्श् त सपरता प्राप्त हुई हैं।
ई-ऩत्रिका भें गुरुत्व कामाारम द्वाया प्रकासशत सबी उत्ऩादों को के वर ऩाठको की जानकायी हेतु ददमा
गमा हैं, कामाारम फकसी बी ऩाठक को इन उत्ऩादों का क्रम कयने हेतु फकसी बी प्रकाय से फाध्म
नहीॊ कयता हैं। ऩाठक इन उत्ऩादों को कहीॊ से बी क्रम कयने हेतु ऩूणात् स्वतॊि हैं।
अधधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भें सॊऩका कय सकते हैं।
(सबी वववादो के सरमे के वर बुवनेश्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
7. 7 अगस्त - 2019
नाग ऩॊ भी का धासभाक भहत्व
सॊकरन गुरुत्व कामाारम
नाग ऩॊ भी व्रत श्रावण शुक्र ऩॊ भीको फकमा
जाता है । रेफकन रोका ाय व सॊस्कृ तत- बेद के कायण
नाग ऩॊ भी व्रत को फकसी जगह कृ ष्णऩऺभें बी फकमा
जाता है । इसभे ऩयवविा मुक्त ऩॊ भी री जाती है ।
ऩौयार्णक भान्मता के अनुशाय इस ददन नाग-सऩा को
दूधसे स्िान औय ऩूजन कय दूध वऩराने से व्रती को
ऩुण्म पर की प्रात्प्त होती हैं। अऩने घय के भुख्म य
के दोनों ओय गोफयके सऩा फनाकय उनका दही, दूवाा,
कु शा, गन्ध, अऺत, ऩुष्ऩ, भोदक औय भारऩुआ
इत्माददसे ऩूजन कय ब्राह्भणोंको बोजन कयाकय
एकबुक्त व्रत कयनेसे घयभें सऩोंका बम नहीॊ होता है ।
सऩाववष दूय कयने हेतु तनम्न तनम्नसरर्खत भॊि
का जऩ कयने का ववधान हैं।
"ॐ कु रुकु ल्मे हुॊ पद स्वाहा।"
नाग ऩॊचभी की ऩौयाणणक कथा
ऩौयार्णक कथा के अनुशाय
प्रा ीन कार भें फकसी नगय के एक
सेठजी के सात ऩुि थे। सातों ऩुिों
के वववाह हो ुके थे। सफसे छोटे
ऩुि की ऩत्नी श्रेष्ठ रयि की
ववदुषी औय सुशीर थी, रेफकन
उसका कोई बाई नहीॊ था।
एक ददन फडी फहू ने घय रीऩने के
सरए ऩीरी सभट्टी राने हेतु सबी फहुओॊ को साथ रने
को कहा तो सबी फहू उस के साथ सभट्टी खोदने के
औजाय रेकय री गई औय फकसी स्थान ऩय सभट्टी
खोदने रगी, तबी वहाॊ एक सऩा तनकरा, त्जसे फडी फहू
खुयऩी से भायने रगी। मह देखकय छोटी फहू ने फडी फहू
को योकते हुए कहा "भत भायो इस सऩा को? मह
फे ाया तनयऩयाध है।"
छोटी फहू के कहने ऩय फडी फहू ने सऩा को नहीॊ
भाया औय सऩा एक ओय जाकय फैठ गमा। तफ छोटी फहू
ने सऩा से कहा "हभ अबी रौट कय आती हैं तुभ महाॊ
से कहीॊ जाना भत" इतना कहकय वह सफके साथ सभट्टी
रेकय घय री गई औय घय के काभकाज भें पॉ सकय
सऩा से जो वादा फकमा था उसे बूर गई।
उसे दूसये ददन वह फात माद आई तो सफ फहूओॊ
को साथ रेकय वहाॉ ऩहुॉ ी औय सऩा को उस स्थान ऩय
फैठा देखकय फोरी "सऩा बैमा नभस्काय!" सऩा ने कहा तू
बैमा कह ुकी है, इससरए तुझे छोड देता हूॊ, नहीॊ तो
झूठे वादे कयने के कायण तुझे अबी डस रेता। छोटी फहू
फोरी बैमा भुझसे बूर हो गई, उसकी ऺभा भाॉगती हूॊ,
तफ सऩा फोरा- अच्छा, तू आज से भेयी फदहन हुई औय
भैं तेया बाई हुआ। तुझे जो भाॊगना हो, भाॉग रे। वह
फोरी- बैमा! भेया कोई नहीॊ है, अच्छा हुआ जो तू भेया
बाई फन गमा।
कु छ ददन व्मतीत होने ऩय वह
सऩा भनुष्म का रूऩ धयकय उसके घय
आमा औय फोरा फक "भेयी फदहन को
फुरा दो, भैं उसे रेने आमा हूॉ"
सफने कहा फक इसके तो कोई बाई
नहीॊ था! तो वह फोरा- भैं दूय के
रयश्ते भें इसका बाई हूॉ, फ ऩन भें
ही फाहय रा गमा था। उसके
ववश्वास ददराने ऩय घय के रोगों ने
छोटी को उसके साथ बेज ददमा। उसने भागा
भें फतामा फक "भैं वहीॊ सऩा हूॉ, इससरए तू डयना नहीॊ
औय जहाॊ रने भें कदठनाई हो वहाॊ भेया हाथ ऩकड
रेना। उसने कहे अनुसाय ही फकमा औय इस प्रकाय वह
उसके घय ऩहुॊ गई। वहाॉ के धन-ऐश्वमा को देखकय वह
फकत हो गई।
वह सऩा ऩरयवाय अके साथ आनॊद से यहने रगी।
एक ददन सऩा की भाता ने उससे कहा "भैं एक काभ से
फाहय जा यही हूॉ, तू अऩने बाई को ठॊडा दूध वऩरा देना।
उसे मह फात ध्मान न यही औय उससे गरतत से गभा
नाग ऩॊ भी
ववशेष
8. 8 अगस्त - 2019
दूध वऩरा ददमा, त्जसभें उसका भुहॉ फुयी तयह जर गमा।
मह देखकय सऩा की भाता फहुत क्रोधधत हुई। ऩयॊतु सऩा
के सभझाने ऩय भाॉ ुऩ हो गई। तफ सऩा ने कहा फक
फदहन को अफ उसके घय बेज देना ादहए। तफ सऩा
औय उसके वऩता ने उसे बेट स्वरुऩ फहुत सा सोना,
ाॉदी, जवाहयात, वस्ि-बूषण आदद देकय उसके घय
ऩहुॉ ा ददमा।
साथ रामा ढेय साया धन देखकय फडी फहू ने ईषाा
से कहा तुम्हायाॊ बाई तो फडा धनवान है, तुझे तो उससे
औय बी धन राना ादहए। सऩा ने मह व न सुना तो
सफ वस्तुएॉ सोने की राकय दे दीॊ। मह देखकय फडी फहू
की रार फढ़ गई उसने फपय कहा "इन्हें झाडने की
झाडू बी सोने की होनी ादहए" तफ सऩा ने झाडू बी
सोने की राकय यख दी।
सऩा ने अऩने फदहन को हीया-भर्णमों का एक
अद्भुत हाय ददमा था। उसकी प्रशॊसा उस देश की यानी ने
बी सुनी औय वह याजा से फोरी फक "सेठ की छोटी फहू
का हाय महाॉ आना ादहए।" याजा ने भॊिी को हुक्भ
ददमा फक उससे वह हाय रेकय शीघ्र उऩत्स्थत हो भॊिी ने
सेठजी से जाकय कहा फक "भहायानीजी ने छोटी फहू का
हाय भॊगवामा हैं, तो वह हाय अऩनी फहू से रेकय भुझे दे
दो"। सेठजी ने डय के कायण छोटी फहू से हाय भॊगाकय
दे ददमा।
छोटी फहू को मह फात फहुत फुयी रगी, उसने
अऩने सऩा बाई को माद फकमा औय आने ऩय प्राथाना
की- बैमा ! यानी ने भेया हाय छीन सरमा है, तुभ कु छ
ऐसा कयो फक जफ वह हाय उसके गरे भें यहे, तफ तक
के सरए सऩा फन जाए औय जफ वह भुझे रौटा दे तफ
वह ऩुन् हीयों औय भर्णमों का हो जाए। सऩा ने ठीक
वैसा ही फकमा। जैसे ही यानी ने हाय ऩहना, वैसे ही वह
सऩा फन गमा। मह देखकय यानी ीख ऩडी औय योने
रगी।
मह देख कय याजा ने सेठ के ऩास खफय बेजी
फक छोटी फहू को तुयॊत बेजो। सेठजी डय गए फक याजा
न जाने क्मा कयेगा? वे स्वमॊ छोटी फहू को साथ रेकय
उऩत्स्थत हुए। याजा ने छोटी फहू से ऩूछा "तुने क्मा
जादू फकमा है, भैं तुझे दण्ड दूॊगा।" छोटी फहू फोरी
"याजन ! धृष्टता ऺभा कीत्जए" मह हाय ही ऐसा है फक
भेये गरे भें हीयों औय भर्णमों का यहता है औय दूसये के
गरे भें सऩा फन जाता है। मह सुनकय याजा ने वह सऩा
फना हाय उसे देकय कहा- अबी ऩहनकय ददखाओ। छोटी
फहू ने जैसे ही उसे ऩहना वैसे ही हीयों-भर्णमों का हो
गमा।
मह देखकय याजा को उसकी फात का ववश्वास हो
गमा औय उसने प्रसन्न होकय उसे बेट भें फहुत सी
भुद्राएॊ बी ऩुयस्काय भें दीॊ। छोटी वह अऩने हाय औय बेट
सदहत घय रौट आई। उसके धन को देखकय फडी फहू ने
ईषाा के कायण उसके ऩतत को ससखामा फक छोटी फहू के
ऩास कहीॊ से धन आमा है। मह सुनकय उसके ऩतत ने
अऩनी ऩत्नी को फुराकय कहा स -स फताना फक मह
"धन तुझे कौन देता है?" तफ वह सऩा को माद कयने
रगी। तफ उसी सभम सऩा ने प्रकट होकय कहा मदद
भेयी धभा फदहन के आ यण ऩय सॊदेह प्रकट कयेगा तो
भैं उसे डॊस रूॉगा। मह सुनकय छोटी फहू का ऩतत फहुत
प्रसन्न हुआ औय उसने सऩा देवता का फडा सत्काय
फकमा। भान्मता हैं की उसी ददन से नागऩॊ भी का
त्मोहाय भनामा जाता है औय त्स्िमाॉ सऩा को बाई
भानकय उसकी ऩूजा कयती हैं।
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9. 9 अगस्त - 2019
भॊि ससि दुराब साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन वृवि हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊगी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग के शय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
स्पदटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपे द ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यक्त (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above ववधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदूय- Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फडे आकाय के कायण हैं।
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भॊि ससि स्पदटक श्री मॊि
"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्क्तशारी मॊि है। "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त
शुब फ़रदमी मॊि है। जो न के वर दूसये मन्िो से अधधक से अधधक राब देने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय
व्मत्क्त के सरए पामदेभॊद सात्रफत होता है। ऩूणा प्राण-प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुक्त "श्री मॊि" त्जस व्मत्क्त
के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससि होता है उसके दशान भाि से अन-धगनत राब
एवॊ सुख की प्रात्प्त होतत है। "श्री मॊि" भे सभाई अदद्रततम एवॊ अद्रश्म शत्क्त भनुष्म की सभस्त शुब इच्छाओॊ
को ऩूया कयने भे सभथा होतत है। त्जस्से उसका जीवन से हताशा औय तनयाशा दूय होकय वह भनुष्म असफ़रता
से सफ़रता फक औय तनयन्तय गतत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौततक सुखो फक प्रात्प्त होतत
है। "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भें उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दूय कय सकायत्भक
उजाा का तनभााण कयने भे सभथा है। "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थावऩत कयने से
वास्तु दोष म वास्तु से सम्फत्न्धत ऩयेशातन भे न्मुनता आतत है व सुख-सभृवि, शाॊतत एवॊ ऐश्वमा फक प्रत्प्त
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गुरुत्व कामाारम भे ववसबन्न आकाय के "श्री मॊि" उप्रब्ध है
भूल्म:- प्रतत ग्राभ Rs. 28.00 से Rs.100.00
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10. 10 अगस्त - 2019
सवा कामा ससवि कव
त्जस व्मत्क्त को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के
फादबी उसे भनोवाॊतछत सपरतामे एवॊ फकमे गमे कामा भें
ससवि (राब) प्राप्त नहीॊ होती, उस व्मत्क्त को सवा कामा
ससवि कव अवश्म धायण कयना ादहमे।
कवच के प्रभुख राब: सवा कामा ससवि कव के द्वारा
सुख सभृवि औय नव ग्रहों के नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय
धायण कयता व्मत्क्त के जीवन से सवा प्रकाय के दु:ख-दारयद्र
का नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नतत प्रात्प्त होकय
जीवन भे ससब प्रकाय के शुब कामा ससि होते हैं। त्जसे धायण
कयने से व्मत्क्त मदद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे वृवि
होतत हैं औय मदद नौकयी कयता होतो उसभे उन्नतत होती हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें सवाजन वशीकयण कव
के सभरे होने की वजह से धायण कताा की फात का दूसये
व्मत्क्तओ ऩय प्रबाव फना यहता हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें अष्ट रक्ष्भी कव के
सभरे होने की वजह से व्मत्क्त ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी
की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हैं। त्जस्से भाॊ रक्ष्भी
के अष्ट रुऩ (१)-आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-
ववजम रक्ष्भी, (७)-ववद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राप्त होता हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें तॊत्र यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दूय होती हैं,
साथ ही नकायात्भक शत्क्तमो का कोइ कु प्रबाव धायण कताा व्मत्क्त ऩय नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव
से इषाा-द्वेष यखने वारे व्मत्क्तओ द्वारा होने वारे दुष्ट प्रबावो से यऺा होती हैं।
सवा कामा ससवि कव के साथ भें शत्रु ववजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊधधत सभस्त
ऩयेशातनओ से स्वत् ही छु टकाया सभर जाता हैं। कव के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्क्त का ाहकय
कु छ नही त्रफगाड सकते।
अन्म कव के फाये भे अधधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये:
फकसी व्मत्क्त ववशेष को सवा कामा ससवि कव देने नही देना का अॊततभ तनणाम हभाये ऩास सुयक्षऺत हैं।
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11. 11 अगस्त - 2019
सॊकरन गुरुत्व कामाारम
:
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अ -
स्नान कयाता है, उसके कु र
भें वे नागगण अबम दान देते हैं। क्मोंफक अऩनी भाता
के या शाऩ प्राप्त कय त्जस सभम नागगण अत्मन्त
ऩीडडत हो यहे थे, उस सभम उसी ऩच् भी के ददन गाम
के दुग्ध या स्नान कयाने ऩय नागगण की ऩीडा शान्त
हो गई थी, इसीसरए नागगण को ऩच् भी ततधथ
अत्मन्त वप्रम है।
मुधधत्ष्ठय ने कहा: जनादान ! नागों को भाता या शाऩ
क्मों सभरा ?, उसका उद्देश्म एवॊ कायण क्मा है ? औय
उस शाऩ का शभन कै से हुआ, फताने की कृ ऩा कीत्जमे?
श्रीकृ ष्ण फोरे: एक सभम सभुद्र भॊथन भें अभृत के साथ
उत्ऩन्न श्वेत वणा के अश्वयाज उच् ैश्रवा को देखकय
नागों की नागों की भाता कद्रू (कदु मा कटू) ने अऩनी
फहन ववनता से कहा, इस अश्व यत्न को देखो, उसके
सूक्ष्भ कारे फार तुम्हें ददखामी दे यहे हैं मा सभस्त अॊग
भें श्वेत ही फार देख यही हो।
ववनता ने कहा: मह सवाश्रेष्ठ अश्व सवाांग श्वेत है, औय
मे नाहीॊ कृ ष्णवणा मा नाहीॊ यक्तवणा हैं, तुभ उसे कृ ष्ण
वणा कै से देख यही हो। इस प्रकाय ववनता के कहने ऩय।
कद्रू फोरी ववनता ! भेया एक ही नेि है रेफकन भैं उसके
कारे फार को देख यही हैं, औय तुम्हाये दो नेि हैं, तू
नहीॊ देख यही है ? अच्छा तो प्रततऻा कय !
: अ
अ
अ
अ अ
नागों ने उसकी कऩट फुवि जानकय कहा: ऐसा कयना
धभा के ववरुि एक अधभा कामा है, अत् तुम्हायी इस
आऻा को हभ रोग नहीॊ स्वीकाय कयेंगे !
इसे सुनकय कद्रू ने उन्हें शाऩ ददमा फक ऩावक तुम्हें
बस्भसात ् कय दे।
कु छ ददनों के फाद ऩाण्डव जनभेजम "सऩासि नाभक
मऻ" का अनुष्ठान आयम्ब कयेंगे जो इस बूरोक भें
अन्म रोगों के सरए अत्मन्त दुराब है। उसी मऻ भें
प्र ण्ड ऩावक तुम्हें जरामेगा। इस प्रकाय शाऩ देकय कय
कद्रू ने आगे कु छ नहीॊ कहा।
भाता के शाऩ देने ऩय वासुकी नाग कत्ताव्म ऩयामण
होते हुए अत्मन्त दु्ख सॊतप्त होने के कायण भूतछात
होकय बूसभ ऩय धगय ऩडे। ब्रह्भा ने वासुकी को दु्खी
देखकय उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा: वासुके ! इस
प्रकाय ध त्न्तत न हो, औय ध्मान ऩूवाक भेयी फात सुनो
! मामावय देश-देशान्तय भें भ्रभण कयने वारे के कु र भें
भहातेजस्वी एवॊ तऩोतनधध जयत्कारु नाभक ज उत्ऩन्न
होंगे। उस सभम तुभ जयत्कारु नाभक अऩनी जयत्कारु
उन्हें अवऩात कय देना, त्जससे उनके आस्तीक नाभक
ऩुि उत्ऩन्न होगा। त्जस सभम नागों का बमदामक वह
"सऩा मऻ" प्रायम्ब होगा, वह आस्तीक ऩुि वाणी या
याजा को प्रसन्न कयते हुए उस मऻ को स्थधगत कय
देगा। इससरए जयत्कारू नाभक मह तुम्हायी बधगनी के
जो रूऩ एवॊ उदाय गुण बूवषत हैं, जयत्कारु नाभक द्वद्वज
को सभवऩात कयने भें फकसी प्रकाय के वव ाय कयने की
आवश्मकता न यहेगी । उस अयण्म भें जयत्कारु द्वद्वज के
12. 12 अगस्त - 2019
सभरने ऩय अऩने आत्भकल्माणाथा तुम्हें उसकी सबी
आऻाओॊ का ऩारन कयना होगा । ब्रह्भा जी की ऐसी
फातें सुनकय नागवासुकी ने ववनम-ववनम्र होकय सहषा
उसकी स्वीकृ तत प्रदान की औय उसी सभम से उसके
सरए प्रमत्न बी कयना आयम्ब कय ददमा। इसे सुनकय
सबी श्रेष्ठ नागों के नेि अत्मन्त हषााततयेक या
ववकससत कभर की बाॉतत र्खर उठे। उस ददन
नागरोगों ने अऩने को ऩुन् जन्भ ग्रहण कयने के
सभान सभझा।
सबी रोगों के फी भें मह ाा होने रगी फक उस घोय
एवॊ अगाध मऻ-अत्ग्नसागय के प्रस्तुत होने ऩय उससे
ऩाय होने के सरए के वर आस्तीक ही, अबमप्रद नौका
होंगे तथा आस्तीक बी इसे सुनकय नागों के सम्भोहनाथा
आयम्ब मऻ को स्थधगत कयने के सरए अत्ग्न, याजा,
औय ऋत्त्वजों को क्रभश् ववनमववनम्रऩूवाक उससे
तनवृत्त कयने की ेष्टा कयेंगे।
ब्रह्भा ने नागों को फतामा है फक मह सफ ऩच् भी के
ददन होगा। इसीसरए भहायाज ! मह ऩच् भी ततधथ नागों
को अत्मन्त वप्रम है त्जस हषाजननी को ऩहरे ब्रह्भा ने
नागों को प्रदान फकमा था। अत् उस ददन ब्राह्भणों को
मथेच्छ बोजनों से सॊतृप्त कयके नागगण भुझ ऩय
प्रसन्न यहें ऐसा कहकय कु छ रोग इस बूतर भें उनके
ववसजान कयते हैं । नयाधधऩ ! दहभारम, अन्तरयऺ, स्वगा
नदी, सयोवय, फावरी, एवॊ तडाग आदद भें तनवास कयने
वारे उन भहानागों को भैं फाय-फाय नभस्काय कयता हूॉ ।
इस प्रकाय नागों औय ब्राह्भणों को प्रसन्नता ऩूवाक
ववसजान कयके ऩश् ात ् ऩरयजनों सभेत बोजन कयना
ादहए । सवाप्रथभ भधुय बोजन ऩश् ात ् मथेच्छ बोजन
कयने आदद सबी तनमभों के सुसम्ऩन्न कयने वारे को
त्जस पर की प्रात्प्त होती है, भैं फता यहा हूॉ, सुनो !
देहावसान होने ऩय मह ऩयभोत्तभ ववभान ऩय सुखासीन
एवॊ अप्सयाओॊ या सुसेववत होकय नागरोक की प्रात्प्त
कय मथेच्छ सभम तक सुखोऩबोग कयने के अनन्तय
इस भत्मारोक भें जन्भ ग्रहण कय सवाश्रेष्ठ याजा होता
है, जो सभस्त यत्नों से सुस्भृि एवॊ अनेक प्रकाय के
वाहनों से सदैव सुसत्ज्जत होता है । ऩाॉ जन्भ तक
प्रत्मेक ऩय मुग भें सवाभान्म याजा होता है, जो आधध
व्माधध योगों से भुक्त होकय ऩत्नी ऩुि सभेत सदैव,
आनन्दोऩबोग कयता है। इससरए घी, ऺीय आदद से
सदैव नागों की अ ाना कयनी ादहए ।
मुधधत्ष्ठय ने कहा: हे कृ ष्ण ! क्रु ि होकय नाग त्जसे काट
रेता है, उसकी क्मा गतत होती है, ववस्ताय ऩूवाक फताने
की कृ ऩा कीत्जमे।
श्रीकृ ष्ण फोरे - याजन ् ! नाग के काटने ऩय भृत्मु या
वह प्राणी अधोगतत (ऩातार) ऩहुॉ कय ववषहीन सऩा
होता है । मुधधत्ष्ठय ने कहा - हे बगवन ् ! नाग के काट
रेने ऩय उस प्राणी के प्रतत उसके वऩता, भाता, सभि,
ऩुि, फहन, ऩुिी, औय स्िी का क्मा कताव्म होता है ?
गोववन्द, मदुशादूारा ! उस प्राणी के भोऺाथा इस प्रकाय
कोई दान व्रत अथवा उऩवास आदद फताने की कृ ऩा
कीत्जमे, त्जसे सुसम्ऩन्न कयने ऩय उसे स्वगा की प्रात्प्त
हो जामे। श्रीकृ ष्ण फोरे - याजन ् ! उस प्राणी के भोऺाथा
इसी ऩॊ भी ववधध का सववधान उऩावस कयना ादहए,
जो नागों के सरए अत्मन्त ऩुष्ट विानी है ।
याजेन्द्र भैं उसके ववधान को फता यहा हूॉ, जो एक वषा
तक तनयन्तय सुसम्ऩन्न फकमा जाता है, तुभ ध्मान
ऩूवाक इसे सुनो ! भहीऩते ! बाद्रऩद की शुक्र ऩच् भी
अत्मन्त ऩुण्मतभा होने के नाते प्रार्णमों की सद् गतत
की काभना के सरए अत्मन्त उत्कृ ष्ट फतामी गमी है ।
बयतषाब (बयतवॊशभें श्रेष्ठ - अजुान) ! फायह वषा तक
तनयन्तय उसके सुसम्ऩन्न कयने के उऩयाॊत उसके
व्रतोद्याऩन के तनसभत्त तुथॉ भें एक बक्त नक्त
बोजन कयके ऩच् भी के ददन नाग की उस सौन्दमा ऩूणा
प्रततभा की, जो सुवणा, यजत ( ाॉदी) काष्ठ अथवा
भृत्त्तका या प्रमत्न ऩूवाक तनसभात यहती है, औय ऩाॉ
परों से सुसत्ज्जत कनेय, कभर, भेरी एवॊ अन्म
सुगत्न्धत ऩुष्ऩ, औय नैवेद्य या अ ाना कयके घृत
सभेत ऩामस एवॊ भोदक के बोजन से ब्राह्भण को
अत्मन्त सॊतृप्त कयें । ऩश् ात ् उस सऩादष्ट प्राणी के
भोऺाथा नायामण फसर बी कयनी ादहए । नृऩ ! दान
औय वऩण्ड दान के सभम ब्राह्भणों को बरी बाॉतत
सॊतप्त कय वषा के अन्त भें उसके सरए वृषोत्सगा नाभक
13. 13 अगस्त - 2019
द्वादश महा यंत्र
मॊि को अतत प्राध न एवॊ दुराब मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्वारा फनामा गमा हैं।
ऩयभ दुराब वशीकयण मॊि,
बाग्मोदम मॊि
भनोवाॊतछत कामा ससवि मॊि
याज्म फाधा तनवृत्त्त मॊि
गृहस्थ सुख मॊि
शीघ्र वववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि
सहस्िाऺी रक्ष्भी आफि मॊि
आकत्स्भक धन प्रात्प्त मॊि
ऩूणा ऩौरुष प्रात्प्त काभदेव मॊि
योग तनवृत्त्त मॊि
साधना ससवि मॊि
शिु दभन मॊि
उऩयोक्त सबी मॊिो को द्वादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्िोक्त ववधध-ववधान से भॊि ससि ऩूणा प्राणप्रततत्ष्ठत एवॊ ैतन्म मुक्त
फकमे जाते हैं। त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अ ाना-ववधध ववधान ववशेष राब प्राप्त कय सकते हैं।
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मऻ बी कयना ादहए । स्नान कयके उदक दान कयते
सभम कृ ष्ण प्रसन्न हों कहकय ऩुन: प्रत्मेक भास भें
अत्मन्त अनन्त वासुकी, शेष, ऩद्म, कम्फर, तऺक,
अवश्वतय, धृतयाष्र, शॊखऩार, कासरम, तऺक, वऩॊगर
आदद भहानागों के नाभोच् ायण ऩूवाक ऩूजनोऩयाॊत वषा
के अन्त भें भहाब्राह्भण को बोजनादद से तृप्त कय
ऩायण कयना ादहए । प्रा ीन कथा वेत्ता ब्राह्भण को
फुराकय नाग की सुवणा प्रततभा, जो सवत्सा गौ, औय
काॉसे की दोहनी दान से सुसत्ज्जत यहती है, सप्रेभ
अवऩात कयनी ादहए। ऩाथा ! उसके ऩायण के तनसभत्त
वव नों ने मही ववधान फतामा है ।
फन्धुओॊ या इस प्रकाय इसे सुसम्ऩन्न कयने ऩय उस
प्राणी की अवश्म सकृ तत होती है । सऩों के काट रेने
ऩय अधोगतत प्राप्त उस प्राणी के तनसभत्त जो एक वषा
तक इस उत्तभ व्रत को सुसम्ऩन्न कयेंगे, उससे उस
प्राणी की शुबस्थान की प्रात्प्त ऩूवाक अवश्म भुत्क्त
होगी। इस प्रकाय बत्क्त श्रिा ऩूवाक जो ईसे श्रवण
अथवा अध्ममन कयेंगे, उनके ऩरयवाय भें नागों का बम
कबी नहीॊ होगा । श्रीकृ ष्ण फोरे- बाद्रऩद भास की
ऩच् भी के ददन श्रिा बत्क्त ऩूवाक जो कृ ष्णादद वणा
(यॊग) या नागों की प्रततभा सुतनसभत कय गन्ध, ऩुष्ऩ,
घृत, गुग्गुर, औय खीय या उसकी अ ाना कयता है,
उस ऩय तऺक आदद नाग गण अत्मन्त प्रसन्न यहते हैं
औय उसके सात ऩीढ़ी तक के वॊशजों को नाग बम नहीॊ
होता है ।
कु रुनन्दन ! अत् नागों की ऩूजा के सरए सदैव
प्रमत्नशीर यहना ादहए । उसी प्रकाय आत्श्वन भास की
ऩञ् भी के ददन नागों की कु श की प्रततभा फना कय
इन्द्राणी के साथ उन्हें स्थावऩत कय घृत, उदक औय ऺीय
के क्रभश् स्नान ऩूवाक गेहूॉ के ूणा (आॊटा) औय घृत के
अनेक बाॉतत के व्मजनों के सभऩाण कयते हुए उन्हें श्रिा
बत्क्त सभेत अत्मन्त प्रसन्न कयता है, उससे कु र भें
शेष आदद नागगण अत्मन्त प्रसन्न होकय सदैव शाॊतत
प्रदान कयते है तथा देहावसान के सभम शाॊतत रोक
प्राप्त कय अनेक वषों तक सुखोऩबोग कयता है । वीय!
इस प्रकाय भैंने इस ऩयभोत्तभ ऩच् भी व्रत की व्माख्मा
सुना दी त्जसभें सभस्त दोष के तनवृत्मथा मह “ॐ
कु रुकु ल्रे हुॊ पट् स्वाहा” (अन्म वव न के भत से “ॐ
वा कु ल्रे हुॊ पट् स्वाहा”) भॊि फतामा गमा है । बत्क्त
बावना सभेत जो रोग रगबग एक सौ ऩच् भी व्रत एवॊ
उस दहभ ऩुष्ऩ आदद उऩहायों या नागों की अ ाना
कयते हैं उनके गृह भें सदैव अबम औय तनयन्तय सौख्म
प्रदान नागगण फकमा कयते हैं । (श्री बववष्म भहाऩुयाण
के उत्तयऩवा भें श्रीकृ ष्ण मुधधत्ष्ठय सम्वाद भें नाग
ऩच् भी व्रत वणान नाभक अध्माम 36 )
***
14. 14 अगस्त - 2019
सॊतान प्रात्प्त
ववशेष
ऩुिदा एकादशी व्रत 11-अगस्त-2019 ( )
सॊकरन गुरुत्व कामाारम
ऩौयार्णक कारसे ही दहॊदू धभा भें एकादशी व्रत
का ववशेष धासभाक भहत्व यहा है। श्रावण भास के शुक्र
ऩऺ की एकादशी को ऩुिदा एकादशी अथवा ऩवविा
एकादशी बी कहते हैं। एकादशी के ददन बगवान ववष्णु
के ददन काभना ऩूतता के सरए व्रत-ऩूजन फकमा जाता है।
इस वषा ऩुिदा एकादशी 11-अगस्त-2019 के
ददन है, ऩूजन हेतु श्रेष्ठ भाना जाता हैं औय इस
वषा ऩुिदा एकादशी औय गुरुवाय का सॊमोग एक साथ हो
यहा हैं, जो वव नों के भतानुशाय अतत उत्तभ हैं।
ज्मोततष गणना के अनुशाय इस वषा 11-
अगस्त-2019 सूमोदम के सभम कका
रग्न होगा,
( )
( )
उसी के साथ ही इस ददन
फकमा गमा धासभाक ऩूजन-व्रत इत्मादद
आध्मात्त्भक कामा शुब ग्रहों के प्रबाव से शीघ्र
एवॊ ववशेष पर प्रदान कयने वारा ससि होगा क्मोफक
( ) ,
( ) ( )
सूमा के
साथ फुध का फुधाददत्म मोग बी ववशेष शुबदाम भाना
गमा हैं।
अ ,
,
अ
सॊतान प्रात्प्त की इच्छा यखने वारे दॊऩत्त्तमों को
ऩुिदा एकादशी व्रत का तनमभ ऩारन दशभी ततधथ (10
अगस्त 2019, ) की यात्रि से ही शुरु कयें
शुि ध त्त से ब्रह्भ मा का ऩारन कयें।
गुरुवाय के ददन सुफह जल्दी उठकय
तनत्मकभा से तनवृत्त होकय स्वच्छ
वस्ि धायण कय बगवान ववष्णु की
प्रततभा के साभने फैठकय व्रत का
सॊकल्ऩ कयें। व्रत हेतु उऩवास यखें
अन्न ग्रहण नहीॊ कयें, एक मा दो
सभम पराहाय कय सकते हैं।
तत्ऩश् मात बगवान ववष्णु का
ऩूजन ऩूणा ववधध-ववधान से कयें। (मदद स्वमॊ
ऩूजन कयने भें असभथा हों तो फकसी मोग्म वव न
ब्राह्भण से बी ऩूजन कयवा सकते हैं।) बगवान ववष्णु
को शुि जर से स्नान कयाए। फपय ऩॊ ाभृत से स्नान
कयाएॊ स्नान के फाद के वर ऩॊ ाभृत के यणाभृत को
व्रती (व्रत कयने वारा) अऩने औय ऩरयवाय के सबी
सॊतान गोऩार मॊि
उत्तभ सॊतान प्रात्प्त हेतु शास्िोक्त ववधध-ववधान से असबभॊत्रित सॊतान गोऩार मॊि का
ऩूजन एवॊ अनुष्ठान ववशेष राबप्रद भाना गमा हैं।
सॊतान प्रात्प्त मॊि एवॊ कव से सॊफॊधधत अधधक जानकायी हेतु गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका
कय सकते हैं। Ask Now
15. 15 अगस्त - 2019
सदस्मों के अॊगों ऩय तछडके औय उस यणाभृत को
ऩीए। तत ऩश् मात ऩुन् शुि जर से स्नान कयाकय
प्रततभाक स्वच्छ कऩडे से ऩोछरें। इसके फाद बगवान
को गॊध, ऩुष्ऩ, धूऩ, दीऩ, नैवेद्य आदद ऩूजन साभग्री
अवऩात कयें।
ववष्णु सहस्िनाभ का जऩ कयें एवॊ ऩुिदा
एकादशी व्रत की कथा सुनें। यात को बगवान ववष्णु की
भूतता के सभीऩ शमन कयें औय दूसये ददन अथाात दशी
11-अगस्त-2019, के ददन वव न ब्राह्भणों को
बोजन कयाकय व सप्रेभ दान-दक्षऺणा इत्मादद देकय
उनका आशीवााद प्राप्त कयें। इस प्रकाय ऩवविा एकादशी
व्रत कयने से मोग्म सॊतान की प्रात्प्त होती है।
ववशेष सूचना: ऩुि प्रात्प्त का तात्ऩमा के वर
उत्तभ सॊतान की प्रात्प्त सभझे। क्मोफक, उऩयोक्त
वर्णात ऩुि प्रात्प्त एकादशी से सॊफॊधधत सबी जानकायी
शास्िोक्त वर्णात हैं, अत् व्रत से के वर ऩुि सॊतान की
प्रात्प्त हो ऐसा नहीॊ हैं इस व्रत से उत्तभ सॊतान की
प्रात्प्त होती हैं, ाहे वह सॊतान ऩुि हो मा कन्मा। आज
के आधुतनक मुग भें ऩुि सॊतान व कन्मा सॊतान भें कोई
ववशेष पका नहीॊ यहा हैं। कन्मा मा भदहराएॊ बी ऩुि मा
ऩुरुष के सभान ही सफर एवॊ शत्क्तशारी हैं। अत्
के वर ऩुि सॊतान की काभना कयना व्मथा हैं। अत्
के वर उत्तभ सॊतान की काभना से व्रत कये। जानकाय
एवॊ वव नों के अनुबव के अनुशाय ऩीछरे कु छ वषो भें
उन्हें अऩने अनुशॊधान से मह तथ्म सभरे हैं की के वर
ऩुि काभना से की गई अधधकतय साधानाएॊ, व्रत-उऩवास
इत्मादद उऩामों से दॊऩत्त्त को ऩुि की जगह उत्तभ
कन्म सॊतान की प्रात्प्त हुवी हैं, औय वह कन्मा सॊतान
ऩुि सॊतान से कई अधधक फुविभान एवॊ भाता-वऩता का
नाभ सभाज भें योशन कयने वारी यही हैं। सॊबवत इस
मुग भें नायीमों की कभ होती जनसॊख्मा के कायण
इश्वयने बी अऩने तनमभ फदर सरमे होंगे इस सरए ऩुि
काभना के परस्वरुऩ उत्तभ कन्मा सॊतान की प्रात्प्त हो
यही होगी।
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16. 16 अगस्त - 2019
ऩुिदा (ऩवविा) एकादशी व्रत की ऩौयार्णक कथा
सॊकरन गुरुत्व कामाारम
श्रावण : शुक्र ऩऺ
एक फाय मुधधत्ष्ठय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हैं,
हे बगवान! श्रावण शुक्र एकादशी का क्मा नाभ है?
इसभें फकस देवता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत
कयने से क्मा पर सभरता है ?" व्रत कयने की ववधध
तथा इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कदहए। बगवान
श्रीकृ ष्ण कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ ऩुत्रदा
एकादशी है। अफ आऩ शाॊततऩूवाक इस व्रतकी कथा
सुतनए। इसके सुनने भाि से ही वाजऩेमी मऻ / अनन्त
मऻ का पर सभरता है।
ऩय मुग के आयॊब भें भदहष्भतत नाभ की एक
नगयी थी, त्जसभें भदहष्भती नाभ का याजा याज्म कयता
था, रेफकन ऩुिहीन होने के कायण याजा को याज्म
सुखदामक नहीॊ रगता था। उसका भानना था फक
त्जसके सॊतान न हो, उसके सरए मह रोक औय ऩयरोक
दोनों ही दु:खदामक होते हैं। ऩुि सुख की प्रात्प्त के सरए
याजा ने अनेक उऩाम फकए ऩयॊतु याजा को ऩुि की प्रात्प्त
नहीॊ हुई।
वृिावस्था आती देखकय याजा ने प्रजा के
प्रतततनधधमों को फुरामा औय कहा- हे प्रजाजनों! भेये
खजाने भें अन्माम से उऩाजान फकमा हुआ धन नहीॊ है।
न भैंने कबी देवताओॊ तथा ब्राह्भणों का धन छीना है।
फकसी दूसये की धयोहय बी भैंने नहीॊ री, प्रजा को ऩुि
के सभान ऩारता यहा। भैं अऩयाधधमों को ऩुि तथा
फाॉधवों की तयह दॊड देता यहा। कबी फकसी से घृणा नहीॊ
की। सफको सभान भाना है। सज्जनों की सदा ऩूजा
कयता हूॉ। इस प्रकाय धभामुक्त याज्म कयते हुए बी भेये
ऩुि नहीॊ है। सो भैं अत्मॊत दु:ख ऩा यहा हूॉ, इसका क्मा
कायण है?
याजा भदहष्भती की इस फात को वव ायने के
सरए भॊिी तथा प्रजा के प्रतततनधध वन को गए। वहाॉ
फडे-फडे ऋवष-भुतनमों के दशान फकए। याजा की उत्तभ
काभना की ऩूतता के सरए फकसी श्रेष्ठ तऩस्वी भुतन को
खोजते-फपयते यहे। एक आश्रभ भें उन्होंने एक अत्मॊत
वमोवृि धभा के ऻाता, फडे तऩस्वी, ऩयभात्भा भें भन
रगाए हुए तनयाहाय, त्जतेंद्रीम, त्जतात्भा, त्जतक्रोध,
सनातन धभा के गूढ़ तत्वों को जानने वारे, सभस्त
शास्िों के ऻाता भहात्भा रोभश भुतन को देखा, त्जनका
कल्ऩ के व्मतीत होने ऩय एक योभ धगयता था।
सफने जाकय ऋवष को प्रणाभ फकमा। उन रोगों
को देखकय भुतन ने ऩूछा फक आऩ रोग फकस कायण से
आए हैं? तन:सॊदेह भैं आऩ रोगों का दहत करूॉ गा। भेया
जन्भ के वर दूसयों के उऩकाय के सरए हुआ है, इसभें
सॊदेह भत कयो।
रोभश ऋवष के ऐसे व न सुनकय सफ रोग
फोरे- हे भहषे! आऩ हभायी फात जानने भें ब्रह्भा से बी
अधधक सभथा हैं। अत: आऩ हभाये इस सॊदेह को दूय
कीत्जए। भदहष्भतत ऩुयी का धभाात्भा याजा भदहष्भती
प्रजा का ऩुि के सभान ऩारन कयता है। फपय बी वह
ऩुिहीन होने के कायण दु:खी है।
उन रोगों ने आगे कहा फक हभ रोग उसकी
प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हभ बी दु:खी हैं। आऩके
दशान से हभें ऩूणा ववश्वास है फक हभाया मह सॊकट
अवश्म दूय हो जाएगा क्मोंफक भहान ऩुरुषों के दशान
भाि से अनेक कष्ट दूय हो जाते हैं। अफ आऩ कृ ऩा
कयके याजा के ऩुि होने का उऩाम फतराएॉ।
मह वाताा सुनकय ऐसी करुण प्राथाना सुनकय
रोभश ऋवष नेि फन्द कयके याजा के ऩूवा जन्भों ऩय
वव ाय कयने रगे औय याजा के ऩूवा जन्भ का वृत्ताॊत
जानकय कहने रगे फक मह याजा ऩूवा जन्भ भें एक
तनधान वैश्म था। तनधान होने के कायण इसने कई फुये
कभा फकए। मह एक गाॉव से दूसये गाॉव व्माऩाय कयने
जामा कयता था।
ज्मेष्ठ भास के शुक्र ऩऺ की एकादशी के ददन
वह दो ददन से बूखा-प्मासा था भध्माह्न के सभम, एक
जराशम ऩय जर ऩीने गमा। उसी स्थान ऩय एक
17. 17 अगस्त - 2019
तत्कार की प्रसूता हुई प्मासी गौ जर ऩी यही थी।
याजा ने उस प्मासी गाम को जराशम से जर
ऩीते हुए हटा ददमा औय स्वमॊ जर ऩीने रगा, इसीसरए
याजा को मह दु:ख सहना ऩडा। एकादशी के ददन बूखा
यहने से वह याजा हुआ औय प्मासी गौ को जर ऩीते हुए
हटाने के कायण ऩुि ववमोग का दु:ख सहना ऩड यहा है।
ऐसा सुनकय सफ रोग कहने रगे फक हे ऋवष! शास्िों भें
ऩाऩों का प्रामत्श् त बी सरखा है। अत: त्जस प्रकाय याजा
का मह ऩाऩ नष्ट हो जाए, आऩ ऐसा उऩाम फताइए।
रोभश भुतन कहने रगे फक श्रावण शुक्र ऩऺ
की एकादशी को त्जसे ऩुिदा एकादशी बी कहते हैं, तुभ
सफ रोग व्रत कयो औय यात्रि को जागयण कयो तो इससे
याजा का मह ऩूवा जन्भ का ऩाऩ नष्ट हो जाएगा, साथ
ही याजा को ऩुि की अवश्म प्रात्प्त होगी। याजा के
सभस्त दु्ख नष्ट हो जामेंगे। "रोभश ऋवष के ऐसे
व न सुनकय भॊत्रिमों सदहत सायी प्रजा नगय को वाऩस
रौट आई औय जफ श्रावण शुक्र एकादशी आई तो ऋवष
की आऻानुसाय सफने ऩुिदा एकादशी का व्रत औय
जागयण फकमा।
इसके ऩश् ात दशी के ददन इसके ऩुण्म का
पर याजा को सभर गमा। उस ऩुण्म के प्रबाव से यानी
ने गबा धायण फकमा औय नौ भहीने के ऩश् ात ् ही उसके
एक अत्मन्त तेजस्वी ऩुियत्न ऩैदा हुआ ।
इससरए हे याजन! इस श्रावण शुक्र एकादशी का
नाभ ऩुिदा ऩडा। अत: सॊतान सुख की इच्छा यखने वारे
भनुष्म को ादहए के वे ववधधऩूवाक श्रावण भास के
शुक्र ऩऺ की एकादशी का व्रत कयें। इसके भाहात्म्म
को सुनने से भनुष्म सफ ऩाऩों से भुक्त हो जाता है औय
इस रोक भें सॊतान सुख बोगकय ऩयरोक भें स्वगा को
प्राप्त होता है।
कथा का उद्देश्म : ऩाऩ कयते सभम हभ मह नहीॊ सो ते
फक हभ क्मा कय यहे है, रेफकन शास्िों से ववददत होता
है फक हभाये या फकमा गमे गमे छोटे मा फडे ऩाऩ से
हभें कष्ट बोगना ऩडता है, अत् हभें ऩाऩ से फ ना
ादहए। क्मोंफक ऩाऩ के कायण ऩीछरे जन्भ भें फकमा
गमा कभा का पर दूसये जन्भ भें बी बोगना ऩड सकता
हैं। इस सरए हभें ादहए फक सत्मव्रत का ऩारन कय
ईश्वयभें ऩूणा आस्था एवॊ तनष्ठा यखे औय मह फात सदैव
ध्मान यखे फक फकसी की बी आत्भा को गल्ती से बी
कष्ट ना हो।
***
भॊि ससि स्पदटक श्री मॊि
"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्क्तशारी मॊि है। "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त शुब फ़रदमी मॊि है। जो
न के वर दूसये मन्िो से अधधक से अधधक राब देने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मत्क्त के सरए पामदेभॊद सात्रफत होता है। ऩूणा प्राण-
प्रततत्ष्ठत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुक्त "श्री मॊि" त्जस व्मत्क्त के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससि होता है उसके
दशान भाि से अन-धगनत राब एवॊ सुख की प्रात्प्त होतत है। "श्री मॊि" भे सभाई अद्ववतीम एवॊ अद्रश्म शत्क्त भनुष्म की सभस्त शुब
इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होतत है। त्जस्से उसका जीवन से हताशा औय तनयाशा दूय होकय वह भनुष्म असफ़रता से सफ़रता
फक औय तनयन्तय गतत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौततक सुखो फक प्रात्प्त होतत है। "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भें उत्ऩन्न
होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दूय कय सकायत्भक उजाा का तनभााण कयने भे सभथा है। "श्री मॊि" की स्थाऩन से
घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थावऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फत्न्धत ऩयेशातन भे न्मुनता आतत है व सुख-सभृवि, शाॊतत
एवॊ ऐश्वमा फक प्रत्प्त होती है।
गुरुत्व कामाारम भे "श्री मॊि" 12 ग्राभ से 2250 Gram (2.25Kg) तक फक साइज भे उप्रब्ध है
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18. 18 अगस्त - 2019
अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयार्णक कथा
सॊकरन गुरुत्व कामाारम
बाद्रऩद भास कृ ष्णऩऺ की एकादशी
एक फाय मुधधत्ष्ठय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हैं, हे बगवान! बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी का क्मा नाभ है? इसभें
फकस देवता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने से क्मा पर सभरता है? " व्रत कयने की ववधध तथा इसका
भाहात्म्म कृ ऩा कयके कदहए। बगवान श्रीकृ ष्ण कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ अजा एकादशी है। अफ आऩ
शाॊततऩूवाक इस व्रतकी कथा सुतनए। अजा एकादशी व्रत सभस्त प्रकाय के ऩाऩों का नाश कयने वारी हैं। जो भनुष्म
इस ददन बगवान ऋवषके श की ऩूजा कयता है उसको वैकुॊ ठ की प्रात्प्त अवश्म होती है। अफ आऩ इसकी कथा सुतनए।
प्रा ीनकार भें आमोध्मा नगयी भें हरयश ॊद्र नाभक एक क्रवतॉ याजा याज्म कयता था। हरयश ॊद्र अत्मन्त
वीय, प्रताऩी तथा सत्मवादी था। एक फाय दैवमोग से उसने अऩना याज्म स्वप्न भें फकसी ऋवष को दान कय ददमा
औय ऩरयत्स्थततवश के वशीबूत होकय अऩना साया याज्म व धन त्माग ददमा, साथ ही अऩनी स्िी, ऩुि तथा स्वमॊ को
बी फे ददमा।
उसने उस ाण्डार के महाॊ भृतकों के वस्ि रेने का काभ फकमा । भगय फकसी प्रकाय से सत्म से वव सरत
नहीॊ हुआ। जफ इसी प्रकाय उसे कई वषा फीत गमे तो उसे अऩने इस कभा ऩय फडा दु्ख हुआ औय वह इससे भुक्त
होने का उऩाम खोजने रगा । कई फाय याजा ध ॊता भें डूफकय अऩने भन भें वव ाय कयने रगता फक भैं कहाॉ जाऊॉ ,
क्मा करूॉ , त्जससे भेया उिाय हो।
इस प्रकाय याजा को कई वषा फीत गए। एक ददन याजा इसी ध ॊता भें फैठा हुआ था फक फहाॉ गौतभ ऋवष आ
गए। याजा ने उन्हें देखकय प्रणाभ फकमा औय अऩनी सायी दु:खबयी कहानी कह सुनाई। मह फात सुनकय गौतभ ऋवष
कहने रगे फक याजन तुम्हाये बाग्म से आज से सात ददन फाद बाद्रऩद कृ ष्ण ऩऺ की अजा नाभ की एकादशी
आएगी, तुभ ववधधऩूवाक व्रत कयो तथा यात्रि को जागयण कयो।
गौतभ ऋवष ने कहा फक इस व्रत के ऩुण्म प्रबाव से तुम्हाये सभस्त ऩाऩ नष्ट हो जाएॉगे। इस प्रकाय याजा से
कहकय गौतभ ऋवष उसी सभम अॊतध्माान हो गए। याजा ने उनके कथनानुसाय एकादशी आने ऩय ववधधऩूवाक व्रत व
जागयण फकमा। उस व्रत के प्रबाव से याजा के सभस्त ऩाऩ नष्ट हो गए। स्वगा से फाजे-नगाडे फजने रगे औय ऩुष्ऩों
की वषाा होने रगी। उसने अऩने साभने ब्रह्भा, ववष्णु, भहादेवजी तथा इन्द्र आदद देवताओॊ को खडा ऩामा । उसने
अऩने भृतक ऩुि को जीववत औय अऩनी स्िी को वस्ि तथा आबूषणों से मुक्त देखा। वास्तव भें एक ऋवष ने याजा
की ऩयीऺा रेने के सरए मह सफ कौतुक फकमा था । फकन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रबाव से साया षडमॊि सभाप्त
हो गमा औय व्रत के प्रबाव से याजा को ऩुन: याज्म सभर गमा। अॊत भें वह अऩने ऩरयवाय सदहत स्वगा को गमा।
हे याजन! मह सफ अजा एकादशी के प्रबाव से ही हुआ। अत: जो भनुष्म मत्न के साथ ववधधऩूवाक इस व्रत
को कयते हुए यात्रि जागयण कयते हैं, उनके सभस्त ऩाऩ नष्ट होकय अॊत भें वे स्वगारोक को प्राप्त होते हैं। इस
एकादशी की कथा के श्रवणभाि से अश्वभेध मऻ का पर प्राप्त होता है।
कथा का उद्देश्म : हभें को ईश्वय के प्रतत ऩूणा आस्था एवॊ तनष्ठा यखनी ादहए । ववऩरयत ऩरयत्स्थततमों भें बी हभें
सत्म का भागा नहीॊ छोडना ादहए।
19. 19 अगस्त - 2019
बायतीम सॊस्कृ तत भें याखी ऩूर्णाभा का भहत्व
सॊकरन गुरुत्व कामाारम
यऺाफॊधन- यऺाफॊधन अथाात ् प्रेभ का फॊधन।
यऺाफॊधन के ददन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती
हैं। यऺाफॊधन के साथ दह बाई को अऩने तन्स्वाथा प्रेभ
से फाॉधती है।
बायतीम सॊस्कृ तत भें आज के बौततकतावादी
सभाज भें बोग औय स्वाथा भें सरप्त ववश्व भें बी प्राम्
सबी सॊफॊधों भें तन्स्वाथा औय ऩववि होता हैं।
बायतीम सॊस्कृ तत सभग्र भानव जीवन को
भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ तत हैं। बायतीम
सॊस्कृ तत भें स्िी को के वर भाि बोगदासी न सभझकय
उसका ऩूजन कयने वारी भहान
सॊस्कृ तत हैं।
फकन्तु आजका ऩढा
सरखा आधुतनक व्मत्क्त
अऩने आऩको सुधया हुवा
भानने वारे तथा ऩाश् ात्म
सॊस्कृ तत का अॊधा अनुकयण
कयके , स्िी को सभानता
ददराने वारी खोखरी बाषा
फोरने वारों को ऩेहर बायत की
ऩायॊऩरयक सॊस्कृ तत को ऩूणा सभझ रेना ादह
की ऩाश् ात्म सॊस्कृ तत से तो के वर सभानता ददराई हो
ऩयॊतु बायतीम सॊस्कृ तत ने तो स्िी का ऩूजन फकमा हैं।
एसे हह नह ॊ कहाजाता हैं।
'मत्र नामास्तु ऩूज्मन्ते यभन्ते तत्र देवता्।
बावाथा: जहाॉ स्िी ऩूजी जाती है, उसका सम्भान होता है,
वहाॉ देव यभते हैं- वहाॉ देवों का तनवास होता है।' ऐसा
बगवान भनु का व न है।
बायतीम सॊस्कृ तत स्िी की ओय बोग की दृत्ष्ट से
न देखकय ऩववि दृत्ष्ट से, भाॉ की बावना से देखने का
आदेश देने वारी सवा श्रेष्ठ बायतीम सॊस्कृ तत ही हैं।
हजायो वषा ऩूवा हभाये ऩूवाजो नें बायतीम सॊस्कृ तत
भें यऺाफॊधन का उत्सव शामद इस सरमे शासभर फकमा
क्मोफक यऺाफॊधन के तौहाय को दृत्ष्ट ऩरयवतान के उद्देश्म
से फनामा गमा हो?
फहन या याखी हाथ ऩय फॊधते ही बाई की
दृत्ष्ट फदर जाए। याखी फाॉधने वारी फहन की ओय वह
ववकृ त दृत्ष्ट न देखे, एवॊ अऩनी फहन का यऺण बी वह
स्वमॊ कये। त्जस्से फहन सभाज भें तनबाम होकय घूभ
सके । ववकृ त दृत्ष्ट एवॊ भानससकता वारे रोग उसका
भजाक उडाकय नी वृत्त्त वारे रोगो को दॊड देकय
सफक ससखा सके हैं।
बाई को याखी फाॉधने से ऩहरे फहन उसके भत्स्तष्क ऩय
ततरक कयती हैं। उस सभम फहन बाई
के भत्स्तष्क की ऩूजा नहीॊ अवऩतु
बाई के शुि वव ाय औय फुवि
को तनभार कयने हेतु फकमा
जाता हैं, ततरक रगाने से
दृत्ष्ट ऩरयवतान की अद्भुत
प्रफक्रमा सभाई हुई होती हैं।
बाई के हाथ ऩय याखी
फाॉधकय फहन उससे के वर अऩना
यऺण ही नहीॊ ाहती, अऩने साथ-साथ
सभस्त स्िी जातत के यऺण की काभना यखती हैं, इस के
साथ दहॊ अऩना बाई फाह्म शिुओॊ औय अॊतववाकायों ऩय
ववजम प्राप्त कये औय सबी सॊकटो से उससे सुयक्षऺत यहे, मह
बावना बी उसभें तछऩी होती हैं। वेदों भें उल्रेख है फक देव
औय असुय सॊग्राभ भें देवों की ववजम प्रात्प्त फक काभना के
तनसभत्त देवव इॊद्राणी ने दहम्भत हाये हुए इॊद्र के हाथ भें
दहम्भत फॊधाने हेतु याखी फाॉधी थी। एवॊ देवताओॊ की ववजम
से यऺाफॊधन का त्मोहाय शुरू हुआ। असबभन्मु की यऺा के
तनसभत्त कुॊ ताभाता ने उसे याखी फाॉधी थी।
इसी सॊफॊध भें एक औय फकॊ वदॊती प्रससि है फक
देवताओॊ औय असुयों के मुि भें देवताओॊ की ववजम को रेकय
कु छ सॊदेह होने रगा। तफ देवयाज इॊद्र ने इस मुि भें
प्रभुखता से बाग सरमा था। देवयाज इॊद्र की ऩत्नी इॊद्राणी
20. 20 अगस्त - 2019
श्रावण ऩूर्णाभा के ददन गुरु फृहस्ऩतत के ऩास गई थी तफ
उन्होंने ववजम के सरए यऺाफॊधन फाॉधने का सुझाव ददमा
था। जफ देवयाज इॊद्र याऺसों से मुि कयने रे तफ उनकी
ऩत्नी इॊद्राणी ने इॊद्र के हाथ भें यऺाफॊधन फाॉधा था, त्जससे
इॊद्र ववजमी हुए थे।
अनेक ऩुयाणों भें श्रावणी ऩूर्णाभा को ऩुयोदहतों या
फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता है। मे
ब्राह्भणों या मजभान के दादहने हाथ भें फाॉधा जाता है।
ऩुयाणों भें ऐसी बी भान्मता है फक भहवषा दुवाासा ने
ग्रहों के प्रकोऩ से फ ने हेतु यऺाफॊधन की व्मवस्था दी थी।
भहाबायत मुग भें बगवान श्रीकृ ष्ण ने बी ऋवषमों को ऩूज्म
भानकय उनसे यऺा-सूि फॉधवाने को आवश्मक भाना था
ताफक ऋवषमों के तऩ फर से बक्तों की यऺा की जा सके ।
ऐततहाससक कायणों से भध्ममुगीन बायत भें
यऺाफॊधन का ऩवा भनामा जाता था। शामद हभरावयों की
वजह से भदहराओॊ के शीर की यऺा हेतु इस ऩवा की भहत्ता
भें इजापा हुआ हो। तबी भदहराएॉ सगे बाइमों मा भुॉहफोरे
बाइमों को यऺासूि फाॉधने रगीॊ। मह एक धभा-फॊधन था।
यऺाफॊधन ऩवा ऩुयोदहतों या फकमा जाने वारा
आशीवााद कभा बी भाना जाता है। मे ब्राह्भणों या
मजभान के दादहने हाथ भें फाॉधा जाता है।
यऺाफॊधन का एक भॊत्र बी है, जो ऩॊडडत यऺा-सूत्र
फाॉधते सभम ऩढ़ते हैं :
मेन फद्धो फर याजा दानवेन्द्रो भहाफर्।
तेन त्वाॊ प्रततफध्नामभ यऺे भाचर भाचर्॥
बववष्मोत्तय ऩुयाण भें याजा फसर (श्रीयाभ रयत भानस के
फासर नहीॊ) त्जस यऺाफॊधन भें फाॉधे गए थे, उसकी कथा
अक्सय उिृत की जाती है। फसर के सॊफॊध भें ववष्णु के ऩाॉ वें
अवताय (ऩहरा अवताय भानवों भें याभ थे) वाभन की कथा है
फक फसर से सॊकल्ऩ रेकय उन्होंने तीन कदभों भें तीनों रोकों
भें सफकु छ नाऩ सरमा था। वस्तुत् दो ही कदभों भें वाभन
रूऩी ववष्णु ने सफकु छ नाऩ सरमा था औय फपय तीसये
कदभ,जो फसर के ससय ऩय यखा था, उससे उसे ऩातार रोक
ऩहुॉ ा ददमा था। रगता है यऺाफॊधन की ऩयॊऩया तफ से फकसी
न फकसी रूऩ भें ववद्यभान थी।
कनकधाया मॊि
आज के बौततक मुग भें हय व्मत्क्त अततशीघ्र सभृि फनना ाहता हैं। कनकधाया
मॊि फक ऩूजा अ ाना कयने से व्मत्क्त के जन्भों जन्भ के ऋण औय दरयद्रता से शीघ्र
भुत्क्त सभरती हैं। मॊि के प्रबाव से व्माऩाय भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को
योजगाय प्रात्प्त होती हैं। कनकधाया मॊि अत्मॊत दुराब मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे
भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हेतु अ ूक प्रबावा शारी भाना गमा हैं। कनकधाया मॊि को
ववद्वानो ने स्वमॊससि तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं।
आज के मुग भें हय व्मत्क्त अततशीघ्र सभृि फनना ाहता हैं। धन प्रात्प्त हेतु प्राण-प्रततत्ष्ठत कनकधाया मॊि के
साभने फैठकय कनकधाया स्तोि का ऩाठ कयने से ववशेष राब प्राप्त होता हैं। इस कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ ाना
कयने से ऋण औय दरयद्रता से शीघ्र भुत्क्त सभरती हैं। व्माऩाय भें उन्नतत होती हैं, फेयोजगाय को योजगाय प्रात्प्त
होती हैं। जैसे श्री आदद शॊकया ामा द्वारा कनकधाया स्तोि फक य ना कु छ इस प्रकाय की गई हैं, फक त्जसके श्रवण
एवॊ ऩठन कयने से आस-ऩास के वामुभॊडर भें ववशेष अरौफकक ददव्म उजाा उत्ऩन्न होती हैं। दठक उसी प्रकाय से
कनकधाया मॊि अत्मॊत दुराब मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रात्प्त हेतु अ ूक प्रबावा शारी भाना गमा
हैं। कनकधाया मॊि को ववद्वानो ने स्वमॊससि तथा सबी प्रकाय के ऐश्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं। जगद्गुरु
शॊकया ामा ने दरयद्र ब्राह्भण के घय कनकधाया स्तोि के ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ शॊकय ददत्ग्वजम
भें सभरता हैं। कनकधाया भॊि:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्ीॊ-श्रीॊ क्रीॊ कनक धायमै स्वाहा'