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1. परिचय
पण्ड ल विधि सब्जी उत्प िन की एक उन्नत विधि है। इस विधि के अांतगगत लौकी,करेल ,
तुरई, खीर ,आदि सब्ब्जयों क उत्प िन ककय ज त हैं।
इस विधि क ननर् गण र्ुख्यतः सब्जी की फसल को बीर् ररयों तथ भूमर् के सांपकग र्ें आने
से सब्ब्जयों को खर ब होने से बच ने के मलए ककय गय है। इस विधि के र् ध्यर् से पौिे
को पय गप्त र् त्र र्ें सूयग क प्रक श प्र प्त होत है तथ उधचत ि यु सांच र होत है ब्जससे
सब्ब्जयों की फसल र्ें फू ल अधिक सांख्य र्ें लगते है ब्जससे उत्प िन अधिक प्र प्त होत हैं।
इस विधि से न के िल सब्ब्जयों क उत्प िन बढ़त है बब्कक उनकी गुणित्त र्ें भी िृद्धि
होती है ब्जससे उपज क र्ूकय अधिक प्र प्त होत है।
2. पण्डाल कै से तैयाि किें ?
i. पण्ड ल तैय र करने के मलए लोहे, सीर्ेंट, पत्थर के खम्भे क प्रयोग ककय
ज त है। इस विधि र्ें ककस न यदि च हे तो बॉस की बमल क भी प्रयोग कर
सकत है।
ii. खेत र्े खांभो को 5×5 र्ीटर की िूरी पर खांभो को जर्ीन र्ें ग ड़ ज त है।
खांभो की ऊँ च ई प्र यः 10 कफट की होती है। इसको जर्ीन र्ें लगभग 2- 2.5
कफट तक ग ड़ िेते है। खम्बो को ग ड़ने के मलए रेत, कां कर तथ सीर्ेंट क
मर्श्रण तैय र करके भरते है त कक खम्भे र्जबूती से खड़े रहे बच हुआ 8
कफट भ ग जर्ीन के ऊपर रहत है।
iii. पांड ल तैय र करने के मलए खम्भे के मसरे को लोहे के त र से ब ांि कर पांड ल
तैय र ककय ज त है ब्जससे खम्भे िग गक र आक र र्ें बांि ज ते है तथ इनके
बीच के स्थ न पर एक और लोहे के त र से ब ांि िेते है तथ बचे हुए स्थ न
पर प्ल ब्स्टक की रब्स्सय ँ य जुट को रब्स्सय (सुतली) से ब ांि िेते है। इस
प्रक र पांड ल तैय र हो ज त है।
3. सब्जी की बेलों को पंडाल पि चढ़ाना
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सब्जी की फसल को खेत र्ें लग ते सर्य यह ध्य न रखन च दहए कक उनको पूिग से पब्चचर्
दिश र्ें लग एां त कक ि यु क प्रभ ि अधिक होने पर बेलों को नुकस न नहीां पहुँचे।
पौिे को खेत र्े लग ने के ब ि उनके लम्ब ई र्ें िृद्धि के ब ि उनको प्ल ब्स्टक की रब्स्सय ां
य जुट की रब्स्सय ां (सुतली) की सह यत से उनको ऊपर चढ़ ते है। रब्स्सयों के सह रे बैल
ऊपर चढ़ती है तथ एक पांड ल तैय र करती है।
पंडाल विधि के लाभ
बेलों के फै लने ि ल स्थ न बच ज त है उस स्थ न पर िूसरी फसल ली ज सकती हैं उि हरण
र्ैथी, प लक, िननय आदि
उत्प िन अधिक प्र प्त होत है
सब्जी की गुणित्त र्ें व्रद्धि होती है।
सब्ब्जयों की बैले भूमर् के सांपकग र्ें रहने के किक सर्ब्न्ित बीर् ररय अधिक होती है इस विधि
के द्ि र इससे बच ज सकत है।
कर् क्षेत्र र्ें अधिक उत्प िन प्र प्त होत है।
लेखक �
आनांि चौिरी।
छ त्र कृ वि स्न तक तृतीय ििग
कृ वि विचिविद्य लय जोिपुर (र जस्थ न)