तेरा वादा ? ! –
नमस्ते / प्रणाम - श्रीमती शान्ता शमाा
प्रकृ तत-तनयम :-
हर बार आता है आमों का मौसम |
हर बार आता है अनारों का मौसम |
हर बार आता है अंगूरों का मौसम |
हर बार आता है अमरूदों का मौसम |
हर बार आता है कटहलों का मौसम |
हर बार आता है संतरों का मौसम |
हर बार आता है सब फलों का मौसम |
हर बार आता है ववववध फू लों का मौसम |
ऋतु-चक्र :-
हर साल आता है वसन्त का मौसम |
हर साल आता है ग्रीष्म का मौसम |
हर साल आता है वर्ाा का मौसम |
हर साल आता है शरद का मौसम |
हर साल आता है हेमन्त का मौसम |
हर साल आता है शशशशर का मौसम |
इनके भी –
वक्त-बेवक्त आता है मच्छरों का मौसम |
चाहे जब आता है मक्क्ियों का मौसम |
ऐसे ही आता है झींगुरों का मौसम |
सदा ही रहता है ततलचटों का मौसम |
हर समय बना रहता है तछपकशलयों का मौसम |
सभी जीवों का होता है अपना-2 मौसम |
पर कभी –
क्या आता है ईमानदारी का मौसम ?
क्या आता है मानशसक तनमालता का मौसम ?
क्या आता है सही अर्थों में सेवा का मौसम ?
क्या आता है स्वार्थाहीन आदर का मौसम ?
क्या आता है ककये काम का नाम लेने का मौसम ?
क्या आता है सच्चे शुक्रगुज़ारों की भरमार का मौसम ?
तेरा वादा –
हे कृ ष्ण कन्हैया! कहा र्था तूने, ज़रा याद कर |
जब-जब धमा लड़्िड़ाने लगता धूशमल हो कर,
तब-तब आएगा उभारने, सँभालने संसार |
अब आ गया समय, इहलोक हो गया जजार |
तेरा इंतज़ार है, आकर अन्याय शमटाकर,
जन-जीवन को कर दे शाक्न्त-संस्कार से भरपूर ||