जीवन की सार्थकता
सुझाया दे उदाहरण `एक बूँद का‘,
अयोध्या ससिंह जी उपाध्याय हररऔध ने |
जो सनकल चली अचानक बादलोिं की गोद से,
सचिंताओिं से भरे भारी मन सलये योिं,
उसे ले सगराया इक झोिंके ने बहाकर पवन के ,
खुले मुूँह में सीपी के सिंयोग से
अहा ! बन बहुमल्य मोती उस बूँद ने,
पाया खास स्थान नवरत्ोिं में एक हो |
सोचा मैंने कल्पना है कोरी, कसव समय है |
पर ………….
देखती हूँ आजकल दरदर्शन - चैनलोिं में
करते योगासन, देते आध्यात्मिक सर्क्षा
बाबाजी रामदेव को,
क्या गृह त्याग हुआ उनका बेकार?
सकया पररश्रम अथक उन्ोिंने,
सकया अध्ययन पतिंजसल का असत गहन ,
बनाया लक्ष्य स्वजीवन का मात्र लोकसहत,
बनवाते चीजें अनेक स्वास्थ्यवधशक,
करते सचिंता सदा स्वदेर्-उन्नसत की |
होते हररऔधजी आज तो क्या न गाते
रामदेव की उपलत्मियोिं की सत्य-गाथा?
योगसषश (योग+ऋसष) कहलाते वे आज महान,
बार बार कर सकते उन्ें प्रणाम |
करना हमारा कतशव्य है उनके ,
जीवन की अत्यन्त साथशकता की प्रर्िंसा !
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