Gulm

Gulm
गुल्म
‘गुल्म’ का अर्थ है , संघात । प्रतान रहहत लताओ के हलए गुल्म शब्द का
प्रयोग हुआ है संहहताओंमें स्पष्ट कहा गया है हक हिस प्रकार एक मूल से
अनेक शाखायें हनकलती है उसी प्रकार एक मूल कारण वायु के द्वारा
अनेक प्रकार के गुल्म की उत्पहि होती है । सार् ही इसकी संघातमय
लताओंतर्ा वृक्षों हक तरह होती है।
आचायों ने गुल्म को चयापचयवान तर्ा “संचारी यहद वाSचल:” कहा है ।
आ. सुश्रुत गुल्म को अपाकी मानते है परंतु आ. चरक हपिि एवं रक्ति
गुल्म को मंदपाकी मानते है । रक्ति गुल्म केवल हियों में होता है एवं
इसकी हचहकत्सा 10 मास बीत िाने पर करने का हवधान है ।
कु पितापिलमूलत्वाद गूढमूलोदयादपि। गुल्मवद्धा
पवशालत्वाद इत्यापिधीयते ॥ (सु.उ.42/5)
गुड़- रक्षणे ‘वेष्टने’ धातु से गुल्म शब्द बनता है । इसका अर्थ है
संघात ।
अर्ाथत् हवगुहणत वायु होने से अर्वा गुढ मूलकं दाहद के सदृश इसकी
उत्पहि होने से या गुल्म के समान अर्वा गांठ िैसी प्रतीत होने के
कारण इस रोग को गुल्म है ।
“गुल्मस्थ िञ्चपवधं स्थािं िार्श्वहन्िापिसस्तय:। (मा.हन. 28/1)
“सस्तौ च िाभयां हृपद िार्श्वयोवा स्थािापि गुल्मस्थ िवप्त
िञ्च।(च.हच.5/8)
आचायों ने पांच गुल्म के स्र्ान माने है।
1.हृदय प्रदेश, 2.नाहि प्रदेश,
3,4.दोनो पार्श्थ 5. बहस्त
“पवट्श्लेष्मपित्तापतिरिस्त्रवाद्धा तैिेव वृद्धै: िरििीड़िाद्वा।
वैगैरूदीर्णेपववततैिधो वा साह्यपिघातैिपतिीनिैवाव॥
रूक्षा्ििािैिपतसेपवतैवाव शोके ि पमथ्याप्रपतकमवर्णा वा।
पवचेष्टतैवाव पवषमापतमात्रे: कोष्ठे प्रकोिं समुिैपत वायु:॥
आचयथ चरक के अनुसार
1.पुरीष कफ तर्ा हपि का अहधक हनकल िाना। 2. वेगधारण , शोक
3.बाह्य अहिघात । 4. रूक्षान्नपान का अहधक सेवन
5.पंचकमथ का ठीक से न होना 6. कहठन रास्तों पर चलना ।
7.शारररीक कुचेष्टओंसे 8. अहधक दबाब पड़ना एवं हकसी रोग के कारण दुबथलता।
(च.हच.5/4-5)
Gulm
कु पित वायु का उर्धवव गमि-
िार्श्व , हृदय , िापि , उदि , सपस्त में शूल उत्िपत्त
िरिपिण्नत वायु का गुल्मवत् हनोिा-
उपयुथक्त हनदानो के सेवनसे कुहपत वायु कफ एवं हपि को उिार करअपने स्र्ान से
हनकालकर एवं कफ हपि के द्वारा अपने मागों के बंद हो िाने से स्वयं अध: प्रदेश में
नहीं िाती है । अत: वह वायु हृदय , नाहि,पार्श्थ , उदर एवं बहस्त में शूल उिपन्न
करती है । यह वायु पक्वाशय ,हपिाशय एवं आमाशय में स्वतंत्र या परतंत्र रूप में
हपण्ड रूप में होिाने के कारण स्पशथ द्वारा िानी िा सकती है ।
उदगािसाहनुल्यिुिीषसंध तृप्त्य्त््क्षमत्वांत्रपवकू जिापि।
आट्शोिमार्धमािमिंपिशपिमास्िगुल्मस्थ वदप्त
पच्म्॥
1.डकारों का अहधक आना ।
2. कोष्ठबद्धता
3. िोिन में अरुहच
4. शहक्त का ह्रास
5. आतों मे गुड़गुड़
6. पेट मे पीड़ा एवं क्षोि
7. पेट का फूलना 8. पाचन शहक्त का ह्रास
अरुपच: कृ प्ववण्मूत्र
वातताअंत्रपवकुं जिम्।आिाहनश्चोर्धवववातत्वं
सववगुल्मेषु लक्षयेते॥
िोिन मे अरुहच
मल, मूत्र तर्ा अपानवायु के हनकालने मे कहठनता
आंतो मे गुड़गुड़ाहट
आनाह
इहन खलु िञ्च गुल्म: िवंपत तद्यथा वातगुल्म: ,
पित्तगुल्म:, लेष्मगुल्म:,पिचयगुल्म: शोपर्णतगुल्म इपत॥
चिक/सुश्रुत आ. वाग्िट्ट अ.हन./ अ.स.
वाहतक अंतथ गुल्म वाति
पैहिक बाह्य गुल्म हपिि
कफि कफि
सहन्नपाति सहन्नपाति
रक्ति वात-हपिि
हपि-कफि
कफ-वाति
रक्ति
1.रुक्षान्नअहत सेवन 2.वेगधारण
3. शोक 4.उपवास
वातज गुल्म के लक्षर्ण
1.हृदय व कुहक्ष मे शूल
2. मुख व गले मे शोष
3.अन्नपाक देर से होता है
4.शीतपूवथक ज्वर
1.क्रोध 2.अहतमद्यपान
3.रक्तदुहष्ट 4.आमरस
5. कटु आहार सेवन
लक्षर्ण
1.ज्वर 2.हपपासा
3. स्वेदाहधक्य 4.उदर प्रदेश मे दाह
5.शरीर का वणथ लाल होना।
1.शीत, 2. गुरु आहार का अहतसेवन
3.हदवास्वप्न 4.अहत िोिन
लक्षर्ण
1.कास 2. अरुहच
3.शरीर गौरव 4. गुल्म के स्र्ान पर िकडाहट
वाति हपिि कफि के हनदानों का एक एक सार् सेवन
करने पर सहन्नपाहतक गुल्म की उत्पहि होती है इसे
हनचय गुल्म कहते है।
लक्षर्ण
दाह शीघ्रपाकी
दारूण मनशरीर वअहननबल का नाश
यहन गुल्म के वल स्त्री मे िाया जाता हनै
1. ऋतुकाल मे अहनयहमत िोिन 2.,िय,
3.वेगधारण 4.वमन,
5.योहन व्यापद होने से
लक्षर्ण
1.किी किी शूल होने ।
2.धीरे धीरे बढ़ना वृहद्ध की गहत अहनहित होती है।
3.किी किी स्पन्दन होता है ।
गुल्म मे दौबथल्य अरुहच ह्रल्लास कास हो तो वह असाध्य है
यहद गुल्म मे क्रमश: वृहद्ध को प्राप्त हो उसे असाध्य मानना
चाहहए ।
िो हसराओंसे िुड गया हो उसे असाध्य है
सववत्र गुल्मे प्रथमं स्िेहन स्वेदोििपदते। या पिया
पियते पसपद्धं सा यापत ि पवरुपचते॥
गुल्म मे सवथ प्रर्म स्नेहन स्वेदन करने के बाद िो िी हचहकत्सा की िाती
है वह सफल होती है हकं तु शरीर के रूक्ष होने पर िो हचहकत्सा की
िाती है वह सफल नही होती है अत: स्नेहन स्वेदन के बाद ही गुल्म
की अन्य हचहकत्सा करनी चाहहए।
रूक्षव्यायामजं गुल्मं वापतकं तीव्र वेदिम्।
सर्धदपवण््मूत्रमारुतं स्िैहनैिापदत: समुिाचिेत॥
रुक्ष आहार-हबहार से उत्पन्न वाहतक गुल्म मे तीव्र वेदन होने पर
स्नेहपान कराना चाहहए।
वाहतक गुल्म मे स्नेहन स्वेदन घृतपान वमन हवरेचन तर्ा करे
वाहतक गुल्म मे हनरुह एवं अनुवासन बहस्त से हचहकत्सा
करें।
ियासा वा सुखोष्र्णेि सपविे ि पविेचयेत॥
पक्वाशय पैहिक गुल्म मे क्षीर बहस्त देकर हपि का हनहथरण करें
अहननबल को ध्यान मे रख कर हतक्त द्रव्यो से हसद्ध घृत द्वारा
हवरेचन करायें।
हपिि गुल्म मे रक्तमोक्षण करने से गुल्म का मूल हिन्न हो िाता
है।
जयेत्कफकृ तं गुल्मं क्षािारिष्टापग्िकमवपि: ।।
अहननमांद्य,वेदना,उत्क्लेश, एवं अरुहच हो तो उसे वमन
कराना चाहहए।
वमन एवं लंघन के बाद उष्ण द्रव्यो का सेवन कराना चाहहये
कफि गुल्म को क्षार, अहननकमथ, अररष्टपान द्वारा िीतना
चाहहये ।
व्यापमश्रदोषेव्यापमश्र एव एव पियािम: ॥
सहन्नपाहतक गुल्म की हचहकत्सा वाति,हपिि, कफि गुल्म
की सहममहलत हचहकत्सा करनी चाहहए।
स िौपधि: स्त्रीिव एव गुल्मो मासे व्यतीते दशमे
पचपकत्सय:॥
ििज गुल्म की पचपकत्सा
 इसकी हचहकत्सा हपिि गुल्म की हचहकत्सा की तरह करनी चाहहए
 पलाश के क्षार के पानी से हसद्ध हकया हुआ। घृत पीने को देना
चाहहए।
 हपप्पल्याहद गण की औषहधयों के कल्क व क्वार् से हसद्ध हकया
हुये घृत की उिर बहस्त दे
 उपरोक्त हक्रयाओंसे लाि न होने पर िेदन कमथ करना चाहहए।
स्िेहनि स्वेदि
वमि
स्िेहन पविेचि
पिरुहन
अिुवासि सपस्त
रस
गुल्म कुठार रस , प्रवाल पञ्चामृत
सवेर्श्र रस , अहननकुमार रस।
वट्शी
हहंनवाहद वटी , काकयना गुहटका
चूर्णव
वचाहद चूणथ , हहंनवाहद चूणथ
लवंगाहद चूणथ नागराहद चूणथ
घृत
हपप्पल्याहद घृत वासा घृत
दशमूलाहद घृत एरण्ड घृत
क्षाि
पलाशक्षार वज्रक्षार
सज्िीक्षार कुष्ठक्षार
आसव-अरिष्ट/क्वाथ –
पंचमूल क्वार् , वरुणाहद क्वार्
कुमायाथसव , हतल क्वार् ।
आहनि पवहनाि
िथ्य
गेहुं,िौ,मांस रस,हपप्पली,अिवाइन,
हचत्रक,हहंगु,द्राक्षा,खुिर, हतलतैल, क्षार
मद्य, मिली।
स्नेहन, स्वेदन , लंघन, हवरेचन, बहस्त,
रक्तमोक्षण,॥
अिथ्य
हवरुद्धान्न, शुष्क्मांस , मूली, मधुरफल,
शाक, शमीधान्य, कं द, शाक, शीतल
िल, मटर॥
वेगधारण, राहत्रिागरण, अहतश्रम,
अहतमैर्ुन , वमन॥
Gulm
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  • 3. ‘गुल्म’ का अर्थ है , संघात । प्रतान रहहत लताओ के हलए गुल्म शब्द का प्रयोग हुआ है संहहताओंमें स्पष्ट कहा गया है हक हिस प्रकार एक मूल से अनेक शाखायें हनकलती है उसी प्रकार एक मूल कारण वायु के द्वारा अनेक प्रकार के गुल्म की उत्पहि होती है । सार् ही इसकी संघातमय लताओंतर्ा वृक्षों हक तरह होती है। आचायों ने गुल्म को चयापचयवान तर्ा “संचारी यहद वाSचल:” कहा है । आ. सुश्रुत गुल्म को अपाकी मानते है परंतु आ. चरक हपिि एवं रक्ति गुल्म को मंदपाकी मानते है । रक्ति गुल्म केवल हियों में होता है एवं इसकी हचहकत्सा 10 मास बीत िाने पर करने का हवधान है ।
  • 4. कु पितापिलमूलत्वाद गूढमूलोदयादपि। गुल्मवद्धा पवशालत्वाद इत्यापिधीयते ॥ (सु.उ.42/5) गुड़- रक्षणे ‘वेष्टने’ धातु से गुल्म शब्द बनता है । इसका अर्थ है संघात । अर्ाथत् हवगुहणत वायु होने से अर्वा गुढ मूलकं दाहद के सदृश इसकी उत्पहि होने से या गुल्म के समान अर्वा गांठ िैसी प्रतीत होने के कारण इस रोग को गुल्म है ।
  • 5. “गुल्मस्थ िञ्चपवधं स्थािं िार्श्वहन्िापिसस्तय:। (मा.हन. 28/1) “सस्तौ च िाभयां हृपद िार्श्वयोवा स्थािापि गुल्मस्थ िवप्त िञ्च।(च.हच.5/8) आचायों ने पांच गुल्म के स्र्ान माने है। 1.हृदय प्रदेश, 2.नाहि प्रदेश, 3,4.दोनो पार्श्थ 5. बहस्त
  • 6. “पवट्श्लेष्मपित्तापतिरिस्त्रवाद्धा तैिेव वृद्धै: िरििीड़िाद्वा। वैगैरूदीर्णेपववततैिधो वा साह्यपिघातैिपतिीनिैवाव॥ रूक्षा्ििािैिपतसेपवतैवाव शोके ि पमथ्याप्रपतकमवर्णा वा। पवचेष्टतैवाव पवषमापतमात्रे: कोष्ठे प्रकोिं समुिैपत वायु:॥ आचयथ चरक के अनुसार 1.पुरीष कफ तर्ा हपि का अहधक हनकल िाना। 2. वेगधारण , शोक 3.बाह्य अहिघात । 4. रूक्षान्नपान का अहधक सेवन 5.पंचकमथ का ठीक से न होना 6. कहठन रास्तों पर चलना । 7.शारररीक कुचेष्टओंसे 8. अहधक दबाब पड़ना एवं हकसी रोग के कारण दुबथलता। (च.हच.5/4-5)
  • 8. कु पित वायु का उर्धवव गमि- िार्श्व , हृदय , िापि , उदि , सपस्त में शूल उत्िपत्त िरिपिण्नत वायु का गुल्मवत् हनोिा-
  • 9. उपयुथक्त हनदानो के सेवनसे कुहपत वायु कफ एवं हपि को उिार करअपने स्र्ान से हनकालकर एवं कफ हपि के द्वारा अपने मागों के बंद हो िाने से स्वयं अध: प्रदेश में नहीं िाती है । अत: वह वायु हृदय , नाहि,पार्श्थ , उदर एवं बहस्त में शूल उिपन्न करती है । यह वायु पक्वाशय ,हपिाशय एवं आमाशय में स्वतंत्र या परतंत्र रूप में हपण्ड रूप में होिाने के कारण स्पशथ द्वारा िानी िा सकती है ।
  • 10. उदगािसाहनुल्यिुिीषसंध तृप्त्य्त््क्षमत्वांत्रपवकू जिापि। आट्शोिमार्धमािमिंपिशपिमास्िगुल्मस्थ वदप्त पच्म्॥ 1.डकारों का अहधक आना । 2. कोष्ठबद्धता 3. िोिन में अरुहच 4. शहक्त का ह्रास 5. आतों मे गुड़गुड़ 6. पेट मे पीड़ा एवं क्षोि 7. पेट का फूलना 8. पाचन शहक्त का ह्रास
  • 11. अरुपच: कृ प्ववण्मूत्र वातताअंत्रपवकुं जिम्।आिाहनश्चोर्धवववातत्वं सववगुल्मेषु लक्षयेते॥ िोिन मे अरुहच मल, मूत्र तर्ा अपानवायु के हनकालने मे कहठनता आंतो मे गुड़गुड़ाहट आनाह
  • 12. इहन खलु िञ्च गुल्म: िवंपत तद्यथा वातगुल्म: , पित्तगुल्म:, लेष्मगुल्म:,पिचयगुल्म: शोपर्णतगुल्म इपत॥ चिक/सुश्रुत आ. वाग्िट्ट अ.हन./ अ.स. वाहतक अंतथ गुल्म वाति पैहिक बाह्य गुल्म हपिि कफि कफि सहन्नपाति सहन्नपाति रक्ति वात-हपिि हपि-कफि कफ-वाति रक्ति
  • 13. 1.रुक्षान्नअहत सेवन 2.वेगधारण 3. शोक 4.उपवास वातज गुल्म के लक्षर्ण 1.हृदय व कुहक्ष मे शूल 2. मुख व गले मे शोष 3.अन्नपाक देर से होता है 4.शीतपूवथक ज्वर
  • 14. 1.क्रोध 2.अहतमद्यपान 3.रक्तदुहष्ट 4.आमरस 5. कटु आहार सेवन लक्षर्ण 1.ज्वर 2.हपपासा 3. स्वेदाहधक्य 4.उदर प्रदेश मे दाह 5.शरीर का वणथ लाल होना।
  • 15. 1.शीत, 2. गुरु आहार का अहतसेवन 3.हदवास्वप्न 4.अहत िोिन लक्षर्ण 1.कास 2. अरुहच 3.शरीर गौरव 4. गुल्म के स्र्ान पर िकडाहट
  • 16. वाति हपिि कफि के हनदानों का एक एक सार् सेवन करने पर सहन्नपाहतक गुल्म की उत्पहि होती है इसे हनचय गुल्म कहते है। लक्षर्ण दाह शीघ्रपाकी दारूण मनशरीर वअहननबल का नाश
  • 17. यहन गुल्म के वल स्त्री मे िाया जाता हनै 1. ऋतुकाल मे अहनयहमत िोिन 2.,िय, 3.वेगधारण 4.वमन, 5.योहन व्यापद होने से लक्षर्ण 1.किी किी शूल होने । 2.धीरे धीरे बढ़ना वृहद्ध की गहत अहनहित होती है। 3.किी किी स्पन्दन होता है ।
  • 18. गुल्म मे दौबथल्य अरुहच ह्रल्लास कास हो तो वह असाध्य है यहद गुल्म मे क्रमश: वृहद्ध को प्राप्त हो उसे असाध्य मानना चाहहए । िो हसराओंसे िुड गया हो उसे असाध्य है
  • 19. सववत्र गुल्मे प्रथमं स्िेहन स्वेदोििपदते। या पिया पियते पसपद्धं सा यापत ि पवरुपचते॥ गुल्म मे सवथ प्रर्म स्नेहन स्वेदन करने के बाद िो िी हचहकत्सा की िाती है वह सफल होती है हकं तु शरीर के रूक्ष होने पर िो हचहकत्सा की िाती है वह सफल नही होती है अत: स्नेहन स्वेदन के बाद ही गुल्म की अन्य हचहकत्सा करनी चाहहए।
  • 20. रूक्षव्यायामजं गुल्मं वापतकं तीव्र वेदिम्। सर्धदपवण््मूत्रमारुतं स्िैहनैिापदत: समुिाचिेत॥ रुक्ष आहार-हबहार से उत्पन्न वाहतक गुल्म मे तीव्र वेदन होने पर स्नेहपान कराना चाहहए। वाहतक गुल्म मे स्नेहन स्वेदन घृतपान वमन हवरेचन तर्ा करे वाहतक गुल्म मे हनरुह एवं अनुवासन बहस्त से हचहकत्सा करें।
  • 21. ियासा वा सुखोष्र्णेि सपविे ि पविेचयेत॥ पक्वाशय पैहिक गुल्म मे क्षीर बहस्त देकर हपि का हनहथरण करें अहननबल को ध्यान मे रख कर हतक्त द्रव्यो से हसद्ध घृत द्वारा हवरेचन करायें। हपिि गुल्म मे रक्तमोक्षण करने से गुल्म का मूल हिन्न हो िाता है।
  • 22. जयेत्कफकृ तं गुल्मं क्षािारिष्टापग्िकमवपि: ।। अहननमांद्य,वेदना,उत्क्लेश, एवं अरुहच हो तो उसे वमन कराना चाहहए। वमन एवं लंघन के बाद उष्ण द्रव्यो का सेवन कराना चाहहये कफि गुल्म को क्षार, अहननकमथ, अररष्टपान द्वारा िीतना चाहहये ।
  • 23. व्यापमश्रदोषेव्यापमश्र एव एव पियािम: ॥ सहन्नपाहतक गुल्म की हचहकत्सा वाति,हपिि, कफि गुल्म की सहममहलत हचहकत्सा करनी चाहहए। स िौपधि: स्त्रीिव एव गुल्मो मासे व्यतीते दशमे पचपकत्सय:॥ ििज गुल्म की पचपकत्सा
  • 24.  इसकी हचहकत्सा हपिि गुल्म की हचहकत्सा की तरह करनी चाहहए  पलाश के क्षार के पानी से हसद्ध हकया हुआ। घृत पीने को देना चाहहए।  हपप्पल्याहद गण की औषहधयों के कल्क व क्वार् से हसद्ध हकया हुये घृत की उिर बहस्त दे  उपरोक्त हक्रयाओंसे लाि न होने पर िेदन कमथ करना चाहहए।
  • 26. रस गुल्म कुठार रस , प्रवाल पञ्चामृत सवेर्श्र रस , अहननकुमार रस। वट्शी हहंनवाहद वटी , काकयना गुहटका चूर्णव वचाहद चूणथ , हहंनवाहद चूणथ लवंगाहद चूणथ नागराहद चूणथ
  • 27. घृत हपप्पल्याहद घृत वासा घृत दशमूलाहद घृत एरण्ड घृत क्षाि पलाशक्षार वज्रक्षार सज्िीक्षार कुष्ठक्षार आसव-अरिष्ट/क्वाथ – पंचमूल क्वार् , वरुणाहद क्वार् कुमायाथसव , हतल क्वार् ।
  • 28. आहनि पवहनाि िथ्य गेहुं,िौ,मांस रस,हपप्पली,अिवाइन, हचत्रक,हहंगु,द्राक्षा,खुिर, हतलतैल, क्षार मद्य, मिली। स्नेहन, स्वेदन , लंघन, हवरेचन, बहस्त, रक्तमोक्षण,॥ अिथ्य हवरुद्धान्न, शुष्क्मांस , मूली, मधुरफल, शाक, शमीधान्य, कं द, शाक, शीतल िल, मटर॥ वेगधारण, राहत्रिागरण, अहतश्रम, अहतमैर्ुन , वमन॥