2. 2 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
चाय वाली शाम
Soulful love
3rd collection
dr neeru Jain
डॉ नी जैन
3. 3 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
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मने "चाय वाली शाम " का सं ह म चाय ेम, ेम, भावनाओं और भावपूण िवचारों को िकया
है। मेरी किवता हर श म भावपूण ेम से उक
े री गई है। ार जीवन को उ व सा बनाता है। िजंदगी
म दुआएं ब त ज री ह, लेिकन मुझे लगता है, ार उससे भी ादा मह पूण है। ेम िसफ किवता नही
इक संगीत है, ेम एक लय है, ेम ही नृ है। ेम वो िचर थायी संबंध ह िजसक
े िलए िकसी अनु ान की
आव कता नहीं है। मेरी किवता क
े मा म से, आप ेम क
े जादू और चम ार का अनुभव कर पाएं गे।
जब हम ार म होते ह तो हम एक दुिनया की क ना और सरल होते ह।
िन ाथ ेम म ड
ू बे इ ान को फ़ र े भी अपना आशीवाद देते ह, आपका हाथ पकड़ आपसे किवता
िलखवाते ह। "चाय वाली शाम" म मने चाय से ार को उक
े रा है, और चाय ेम म ड
ू ब कई किवताओं की
रचना की गई है।
ेिमयों क
े िलए ब त सी कीमती चीज उपहार म दी जाती है और मेरे िलए भी यही चाय ही बेशकीमती
तोहफा है जो मैने किवता सं ह "चाय वाली शाम" क
े मा म से चाय क
े ित भावना को िकया है। यह
पाठकों म भी चाय ेम भर जाएगा, मुझे िव ास है।
जब हम किवता िलखने या चाय बनाने की ि या म होते ह, तो हम इसक
े अ को नहीं इसकी सुगंध
महसूस करते ह। चाय अिधक आनंद देती है िफर जब वो एक शानदार उपहार हो .... तो जब आप पढ़गे
"चाय" वाली शाम" रोमांस की भावना और एक कप चाय क
े साथ, आप महसूस करगे चाय ेम की
ऊ ा। मुझे आशा है िक आपको यह सं ह पसंद आएगा।
डॉ नी जैन
4. 4 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
indeX
1. चाय वाली शाम
2. चाय बना क
े रखना….
3. चाय पे चलने की ये फरमाइश
4. चाय तो िपलाओगे ना……
5. चाय क
े झूठे कप पे,……
6. कभी चाय फीकी
7. चाय संग पीने की
8. तु ारे िलए चाय बनाये…
9. कभी मेरे संग चाय की चु यों लेते.....
10. चाय पे चले .
11. चाय और मेरा इ
12. सुबह की चाय से शाम क
े जाम तक
13. तेरी गली क
े कौने की,वो चाय की दुकान
14. तेरी चाय का कप बांटा आधा आधा
15. वो तेरी वाली चाय
16. इक घूंट चाय चुरा लूँ
17. तू चाय बनाए मेरे िलए
18. चलो ना चाय पीने……
19. चाय हमे पीला दो ना
21. चाय क
े बहाने
23. महबूब चाय
24. िफ ी चाय
5. 5 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
1. चाय वाली शाम....
सुबह हो या आधी रात की चाय
म अपने कप को,
उस कप से चीयस करती ँ,
िजसे तुम चाय पीने क
े बाद छोड़ गए...
तु ारे उस कप को मैने,
ार की िनशानी क
े प म संजो क
े रखा है,
और यह मुझे हमेशा याद िदलाता है िक
एक बार हमने, एक शाम साथ िबताई थी,
वो चाय वाली शाम....
जब भी म उस ाले को छ
ू ती ँ तो
मुझे तु ारे हाथ की गमाहट महसूस होती है..
जब भी मुझे तु ारी ब त याद आती है
और म उस ाले को ार से चूम लेती ँ ,
तु ारे अहसास को खुद म घोल लेती ं,
ोंिक मुझे पता है िक
हम िफर कभी नहीं िमल सकते.. कभी नहीं..
िफर भी ओ मेरे चाय क
े साथी
तुम याद आओगे, हर चाय क
े साथ……
6. 6 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
2. चाय बना क
े रखना….
इक फ
ू ल गुलाब का, मंगा क
े रखना,
हम जो आए,
तो िदल का आंगन महका क
े रखना...
िजस का सु र उ भर ना उतरे,
धुन बांसुरी की, हवाओं म बजा क
े रखना..
चाय क
े तक ुफ़ म, हम थोड़ी ना ना कहगे,
तुम ना को भी हां समझ, चाय बना क
े रखना,
तुम जानते हो, आिशक़ी जो चाय से मेरी,
अपने हाथों की ल ज़त, उसम घोल क
े रखना...
ब त व हो गया, अब जाने भी दो,
जो कहे,हम जा ही ना पाए,
तुम समा ऐसा बांध क
े रखना
नशे नशे सा मन, ड
ू बा ही रहना चाहे तुझ म,
तुम, मेरी दीवानगी की नज़र , उतारते रहना,
होंगे कई , जो खास काम तेरे,
पर सब खास को भी इक िदन तक म रखना..
कहींतु ींका ना चुरा क
े ले जाऊ
ं
तुमसेअपनी सोहबत म, हम को संभाल क
े रखना..
7. 7 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
3. चाय पे चलने की ये फरमाइश ……….
जो तुम मेरे नहीं, तो िदल को तेरी ािहश ूं है
खींची चली आती तेरी ओर, तुझम ऐसी किशश ूं है
होने को सब कोई है िजंदगी म
पर तेरे िबना इतनी खिलश ूं है..
तेरे िसवा क
ु छ न सुझे मुझे
िफर िदल पे ये पहरे, ये बंिदश ूं है
हज़ारों बा रशों से भी कहां िमटती
रोई आंखों म, इतनी तिपश ूं है...
ठे लगते चांद िसतार , सब अब मुझसे
या रब इ म इतनी आजमाइश ूं है...
तेरा मेरा तो कोई र ा ही नहीं,
िफर चाय पे चलने की ये फरमाइश ूं है
8. 8 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
4. चाय तो पलाओगे ना……
ता ुक़ चाहे िबगड़ ही जाए
िफर भी िमलोगे
तो बतलाओग ना .
चाहे अपना नहीं
अजनबी ही समझ क
े
चाय तो िपलाओगे ना .
.
.
कभी जो िमल जाए राहों म
िमलने की खुशी तो जतलाओग ना
‘आप कौन' ये तो ना पूछोगे
तुम मुझ को पहचान पाओगे ना ..
9. 9 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
5. चाय क
े झूठे कप पे,……
ेम जब अद् भुत हो लेता
शट क
े बटन टाँक क
े भी खुश हो लेता.
इसपर वो धागा अपने तोड़ने की अदा
उ , महक उसकी सांसों की सांसों म भर लेता....
संग संग चलती राहों पे ,
पाव क
े कांटे िनकाल क
े , टीस म भी
पुलिकत हो लेता......
ेम जब अद् भुत हो लेता..
िज ों क
े घुलने िमलने से परे
इक दूसरे की नज़रों म तक
अनंत आ ीय हो लेता...
ेम जब अद् भुत हो लेता...
ा आ जो हाथों म हाथ नहीं
ह का गठबंधन ह से हो लेता..
ेम जब अद् भुत हो लेता..
होटों पे होठ की ये िफ देखने वाले ा जाने,
महबूब क
े चाय क
े झूठे कप पे,
जो होठ रख क
े अंतमन तक िसहर लेता..
ये ेम जब अद् भुत हो लेता
दूर कहीं मै दूर कहीं तुम
िफर भी ीत को डोर म बंध
ज ों सा नाता हो लेता
ये ेम जब अद् भुत हो लेता...
10. 10 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
6. कभी चाय फीकी
जब भी ालों म तुम आते हों
ा बताऊ
ं िक तुम
ा गजब क
े जाते हो…..
कभी चाय फीकी तो ,
कभी मीठा डबल कर जाते हो
कभी दाल म चीनी तो ,
कभी सीरे म नमक डाल जाते हो...
क
ु छ जल जाती तो क
ु छ क ी सी रोिटयां
तो कभी बैठ सोचूं करना था काम ा
होश पे मेरे तुम ही तुम छाए रहते हो....
िकताबों क
े प ों बस यूं ही पलटू
पढ़ने म भी मन क
ै से लगाऊ
ं
हर प े पे तुम नज़र आते हो...
उ ी सीधी सी बात ई मेरी
समझ ना रा ों की ोरी
जाना कहां था, कहीं ओर ले जाते हो..
बात िकसी की भी, सुनाई ना आए
ले र सबक
े , सर से िनकल जाए
हां को ना, ना को हां कर जाते हो
ा बताऊ
ं िक तुम
ा गजब क
े जाते हो.
11. 11 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
7. चाय संग पीने की ……
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे
कब, कहां, क
ै से, ूं िमले थे
िज ए पहली मुलाकात करे...
तेरी बात, तेरी हंसी, या शरारती आख
सोचते है कहां से शु वात करे..
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे
जाने िकतने िकए थे वाद,
िकतने तोड़े, िकतने िनभाने
कभी तेरे बहाने, तो मेरे उलहाने
क
ु छ तुम याद करो, क
ु छ हम याद करे..
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे..
कभी िमलने िमलाने की बड़ी सी िज ,
वो चाय संग पीने की टू टी सी उ ीद,
िदल करता िफर वो
महकते बहकते िफर ज बात करे
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे
क
ु छ बात आधी अधूरी तेरी
कभी तेरी मनुहार, कभी मनमज़
िफर से तुम जवाब न देना ,
हम िफर भी सवालात करे
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे..
12. 12 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
8. तु हारे िलए चाय बनाये…….
आओ हम तु हारे िलए चाय बनाये!.
कभी चीनी बनकर घुल जाए तुम म
कभी प ी बनकर रंग बखराये तुम पे
कभी इलायची क महक भर जाए तुम म
कभी कप बन होट से लग जाए
आओ हम तु हारे िलए चाय बनाये!.
13. 13 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
9. कभी मेरे संग चाय क चु कय लेते.....
हर जगह नजर आते हो तुम
क यूं घुलते जाते हो मुझ म
कभी मेर क वता क र यां भरते हुए……
कभी मेरे गीत क प यां बनते हुए
अब हर जगह नजर आते हो तुम....
कभी मेरे संग चाय क चु कय लेते हुए
कभी मेरे क
ं धे पे सर रख सो जाते हुए…..
कभी कहते हो इक मुसीबत मुझे, तो
कभी मेर उलझन म मसवरा बन जाते हुए……
अब हर जगह नजर आते हो तुम....
कभी मेर उदासी म वाब भर जाते हुए
कभी बना बात मु क
ु राने का सबब बन जाते हुए
तु हारे इन अहसास म िनखर िनखर सी रहती
क मेरे आइने क
े हर अ स म नजर आते हुए
अब हर जगह नजर आते हो तुम...
14. 14 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
10. "चाय पे चले",……
जब भी देखूं चाय,
तेर यूं आवाज आती है
"चाय पे चले", कह क
े
दल क
े तार छेड़ जाती है
11. चाय क महक….
अब तो सारे इ फ क
े लगते
चाय क महक क
े आगे...
वो जनाब
बात - बात म
चाय इतनी बार बोल गए है ...
12. चाय और मेरा इ
म, चाय और मेरा इ
तीनों ही महक
े बहक
े से है..
15. 15 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
13. सुबह क चाय से शाम क
े जाम तक
कभी तु हार मां से लाड यार क
े सारे हक लेती हुई
कभी तेरे मन क
े हर कोने म बसी हुई...
अब म तु हे , हर जगह िमलूंगी……
कभी तु हारे बगीचे क
े फ
ू ल म महकती हुई
कभी तेरे दर क रंगोली क
े रंग संवरती हुई..
अब म तु हे , हर जगह िमलूंगी..
सुबह सुबह जब अ साई आंख खोलोगे
सामने नजर हम ह आयगे
तो कभी शाम म संग संग बैठ, क वताएं िलखते हुए,
तेर सार उदिसय म रंग म ह भ ं गी ...
अब म तु हे , हर जगह िमलूंगी
तेरे हर सफ़र क पास वाली सीट पर
तो कभी सुबह क चाय से शाम क
े जाम तक
इक कमी बन खलूंगी..
अब म तु हे, हर जगह िमलूंगी…….
कभी तेर आंख ने अ क को पीती हुई
कभी तेर गोद म सर रख सोती हुई
छाव तो या, तेरे संग धूप म भी चलूंगी...
अब म तु हे, हर जगह िमलूंगी…
कभी तेरे संग हर साजदे म सर झुकाए हुए
तो कभी तेर आरती का, दया बन जलूंगी
कभी म नत का धागा बन, तेरे हाथ म बंधूगी ...
अब म तु हे , हर जगह िमलूंगी....
तेरे आइने क
े हर अ स म,तेर हर उलझन का म वरे म
तो कभी तेर बेचैनी का सक
ू न बन
तेर हर सांस सांस म घुलूंगी..
अब म तु हे , हर जगह िमलूंगी....
तुम दल से याद करोगे जब भी मुझे
मै बस वह ं पे आ िमलूंगी….
16. 16 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
14. तेरी गली क
े कौने की, वो चाय की दुकान
*हम भी थोड़ी सी आवारगी कर लेते,
ए काश जो मेरी गली म तेरा घर होता...
** छु प छु प देखगे तुझे,
गली चोबारे से,
तू घर ले ले, मेरी जान
मेरे घर क
े आजू बाजू म..
तेरी गली क
े कौने की
वो चाय की दुकान
डेरा डाल लगे वहीं,
तुझे पटने पटाने म...
कोई फ
ू ल दे देगा
कोई खत पकड़ा देगा
तेरे मुह े क
े ब े भी
करगे म कत, हम िमलाने म..
वो रात तेरी खड़की की
जो लाइट जलती देख
कोई जतन काम ना आएं गे
िफर हमे सुलाने म..
वो आते जाते ितरछी नज़रों से
बस देख लेना तुम
हम जान लूटा दगे
तेरे इक मु ु राने पे..
सोचते है गर जो ना माने तुम, िफर भी
वो नर कहां से लाऊ
ं , जो काम आए
प र सा िजगर िपघलाने म......
तू घर ले ले, मेरी जान
मेरे घर क
े आजू बाजू म....
17. 17 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
15. तेरी चाय का कप बांटा आधा आधा
जाने क
ै सा जादू चलाया तूने
िक म बेसुध सी रहती ं,
तेरे आगे पीछे ही म डोलती रहती ं…..
तुम करवट वहां बदलते
म उठ क
े यहां बैठ लेती ं..
कभी िदल चाहता ाब बन आऊ
ं तेरी आंखों म
तो कभी तेरी यादों का हर ल ा
िदल म संवार लेती ं.....
हर सुबह यूं लगता,
तेरी चाय का कप बांटा आधा आधा
तो कभी देर से उठने पर तु े डांट लेती ं ....
ार ब त आता तु े काम म ड
ू बा देख
बलाए िफर तेरी हज़ार लेती ं......
जाने क
ै सी डोर से बंधा है यारा
िनत नए ाब बुनती रहती ं..
तेरे आगे पीछे ही म डोलती रहती ं
18. 18 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
16.वो तेरी वाली चाय
इ म िमठास घोल जाती
वो तेरी वाली चाय,
िफर कब िमलोगे,
बोल जाती वो तेरी वाली चाय...
यूं तो उ गुजरी हम ने
चाय क
े इ म,
तुझ से है इ , कह िदया, तो
जल जाती, वो तेरी वाली चाय...
सारे इ हैरत म, ये कौन है हमसे आगे,
जब तेरे हाथों की ल त घोल लाती
वो तेरी वाली चाय...
19. 19 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
17. इक घूंट चाय चुरालूँ
जी करता तेरे कप से, बस इक घूंट चाय चुरालूँ,
इ की बा रश से अबकी, म भी इक फ
ु आर चुरालूँ.....
भीग लूं इन बूंदों म, थाम क
े तेरा हाथ
तेरे से ल ों से, इक सुहानी शाम चुरालूँ....
इक त ीर बनाऊ
ं , तुम, म और चाय वाली शाम,
याद अपनी सारी दे दू तु े, और म तेरे सब अंदाज चुरालूँ....
अपनी सांसों को घोल दूं, तेरी सांसों क
े दरिमया,
खामोिशयां सुन लूं, आजभर को तेरे अ ाज चुरालूँ.....
जी करता तेरे कप से, बस इक घूंट चाय चुरालूँ...
20. 20 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
18. तू चाय बनाए मेरे िलए
िदल चाहे, जब भी सुबह पलक खोलूं
चेहरा बस तेरा नज़र आए
मंगला दशन जो करने जाऊ
ं ,
मंिदर की दर पे हाथ थामे तुझे ही संग संग पाए..
मुरलीधर की मूरत जब भी देखूं
राधा का हाथ थामे, मेरे संग तू सामने नज़र आए
पूरे िदन की भगा दौड़ी, जो शाम थकी सी
तू चाय बनाए मेरे िलए,
ये अहसास मुझे तरो ताज़ा कर जाए..
काश !तेरी गोद म सर रख, रो िलए जो जी भर
गमों का बोझ शायद, क
ु छ ह ा जो जाए...
लोग हज़ार तोहमत लगाए, ार िफर भी तुझ पे उमड़ आए,
ये इ है मेरी जान. पर तुझे कहां समझ आए.
21. 21 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
19. चलो ना चाय पीने ……
जो अधूर रह
वो बात पूर करते है
चलो ना वीटहाट,
फर से चाय पीने चलते है
सारे जहां क बात कर,
फर घर को लौट चलते है,
ओह चाय due रह गई, कह क
े
इक और मुलाक़ात क उ मीद रखते है...
चलो ना वीटहाट,
फर से चाय पीने चलते है..
22. 22 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
20.चाय हमे पी ला दो ना
थका िदया इस भाग दौड़ ने
सर मेरा दबा दो न,
अपने हाथो की ल त घोल
चाय हमे पी ला दो ना….
अपने सीने से लगा क
े मुझ को
सक
ूं थोड़ा बरसा दो ना,
उदास शाम होने लगी
अपनी हंसी का नगमा गा दो ना….
तुम िबन क
ै से जीयूं , मेरी जां
मेरे ाबों की स ा कर दो ना…….
23. 23 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
21. चाय क
े बहाने
जायका चाय का िकसे याद रखना है
तू िमल तो सही इक बार, चाय क
े बहाने
बस तेरे गले लग रोना है,
माना तेरी जुदाई का दद
मुझे ता उ सहना है,
पर िबछड़ जाने से पहले
पहली बार सा िमल लेना है...
22. महबूब चाय
तुम हो ही इतने ब त
िक तु हर कोई चाहे,
तु अपना कहना तो
खुदगज कहलाए
24. 24 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
23. िफ ी चाय
चाय पे तेरा बुलाना आ,
गर जो मेरा चले आना आ
इक कप से ही आधी - आधी
चाय पी लगे ,
क
ु छ िफ ी ल े
संग संग जी लगे...
चाय पे तेरा बुलाना आ
गर दो कप चाय जो मंगाई तुम ने
बातों म लगा क
े तुझ को,
तेरे झूठे कप की अदला बदली कर लगे,
और तुम देख क
े भी अनदेखा
क
ु छ िफ ी ल े
संग संग जी लगे...
25. 25 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी जैन
डॉ . नी जैन थाईलड से ैलरी िडजाइिनंग सीखने क
े बाद iiS यूिनविसटी , ( icG ) जयपुर
म एसोिसएट ोफ
े सर क
े पद पर कायरत ह । इ सन् 2013 iiS यूिनविसटी , ( icG ) जयपुर क
े
दू ारा पीएचडी की उपािध से स ािनत िकया गया । डॉ . नी जैन उ गुणव ा वाले शैि क
और अनुसंधान काय मोंम सहयोग करती है । इनका जुनून छा ोंको िशि त करना और गहने
की दुिनया क
े िलए शानदार करीयर को बढ़ावा देना है । इनकी िच शोध आलेख और किवता
लेखन म ब त पहले से रही है । िविभ देश एवम् िवदेश की पि काओं म इनक
े 40-50 शोध
आलेख भी कािशत ह । तेरा चेहरा जब नज़र आए और इक धागा ेम का इनक
े का सं ह
है, अपनी किवताओं क
े मा म से ार , बात और भावपूण िवचारोंको िकया है , क
ृ ित
और जीवन से जुड़ी असल स ाई को बड़ी ही खूबसूरती से हमारे सामने पेश िकया है।