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  1. ी शवल लामत
  2. ी शवल लामत – अ याय प हला ृ अ याय प हला ीगणेशाय नम: ॥ ी सर व यै नम: ॥ ीगु यो नम: ॥ ीसांबसदा शवाय नम: ॥ ॐ नमोजी शवा अप र मता ॥ आ द अना द मायातीता ॥ पण ू ानंदशा ता ॥ हे रंबताता जग रो ॥१॥ ु यो तमय व पा पुराणपु षा ॥ अना द स दा आनंदवन वलासा ॥ मायाच चाळका अ वनाशा ॥ अनंतवेषा जग पते ॥२॥ जय जय व पा ा पंचवदना ॥ कमा य ा शु चैत या ॥ व ंभरा कममोचकगहना ॥ मनोजदहना मनमोहन जो ॥३॥ भ व लभ तंू हमनगजामात ॥ भाललोचन नील ीव उमानाथ ॥ म तक ं वधनी वरािजत ॥ जा तसमनहारवत जी ॥४॥ ु ु प रथ य पुरांतक ॥ य प त म तापाक ॥ द मख व वंसक मगांक ॥ न कलंक तव म तक ं ॥५॥ ृ वशाळ भाळ कपूरगौर ॥ काकोलभ क नजभ र णा ॥ व ासा ी भ मलेपन ॥ भयमोचन भवहारक जो ॥६॥ जो सगि थ यंतकारण ॥ शूलपाणी शादलचमवसन ॥ कदतात सहा यवदन ॥ माया व पनदहन जो ॥७॥ ु ं ु जो सि चदानंद नमळ॥ शव शांत ानघन अचळ ॥ जो भानको टतेज अढळ ॥ सवकाळ यापक जो ॥८॥ ु सकलक लमलदहन क मषमोचन ॥ अनंत ांडनायक जगर ण ॥ प जतातमनरं जन ॥ जननमरणनाशक जो ॥९॥ कमलो व कमलावर ॥ दशशतमुख दशशतकर ॥ दशशतने सुर भूसुर ॥ अहोरा याती जया ॥१०॥ भव भवांतक भवानीवर ॥ मशानवासी गरां अगोचर ॥ जो वधनीतीर वहार ॥ व े र काशीराज जो ॥११॥ ु योमहरण यालभूषण ॥ जो गजदमन अंधकमदन ॥ ॐकारमहाबले र आनंदघन ॥ मदगवभंजन अज अिजत जो ॥१२॥ अ मतगभ नगमागमनत ॥ जो दगंबर अवयवर हत ॥ उ ज यनी महाकाळ कालातीत ॥ मरणे कृतांतभय नाशी ॥१३॥ ु द ु रतकाननवै ानर ॥ जो नजजन च चकोर चं ॥ वेणुपवरमह पापहर ॥ घु णे र सनातन जो ॥१४॥ जो उमा दयपंजक र ॥ जो नजजन दया ज मर ॥ तो सोमनाथ श शशेखर ॥ सौरा दे श वहार जो ॥१५॥ करवलोचन क णासमु ॥ ै ा भ षण ू ावतार ॥ भीम भयानक भीमाशंकर ॥ तपा पार नाह ं या या ॥१६॥ नागदमन नागभूषण ॥ नाग कडल नागचमप रधान ॥ यो त लग नागनाथ नागर ण ॥ नागाननजनक जो ॥१७॥ ंु व ृ रश ुजनकवरदायक ॥ बाणव लभ पंचबाणांतक ॥ भवरोगवै पुरहारक ॥ वैजनाथ अ य त जो ॥१८॥ ु नयन गुणातीत ॥ तापशमन वधभेदर हत ॥ यंबकराज दोषानलशांत ॥ क णाकर बलाहक जो ॥१९॥ काम संधुर वदारककठ रव ॥ जगदानंदकद कृपाणव ॥ हमनगवासी है मवतीधव ॥ हमकदार अ भनव जो ॥२०॥ ं ं े पंचमकट मायामलहरण ॥ न श दन गाती आ नाय गण ॥ नाह ं जया आ द म य अवसान ॥ मि लकाजन ु ु ु ु ीशैलवास ॥२१॥ जो श ा रजनकांतक यकर ॥ भूजासंतापहरण जोडो न कर ॥ जेथे त त अहोरा ॥ रामे र जग ु ॥२२॥ ऐ सया शवा सव मा ॥ अज अिजत ानंदधामा ॥ तुझा वणावया म हमा ॥ नगमागमां अत य ॥२३॥ ानंद हणे ीधर ॥ तव गुणाणव अगाध थोर ॥ तेथ बुि द च तक पोहणार ॥ न पावती पार त वतां ॥२४॥
  3. कनका स हत मे दनीच वजन ॥ करावया ताजवा आणंू कोठून ॥ योम सांठवे संपण ॥ ऐस सांठवण कोठून आणंू ॥२५॥ ू मे दनीवसनाच जळ आ ण सकता ॥ कोण या माप मोजूं आतां ॥ काशावया आ द या ॥ द प सरता कवीं होय ॥२६॥ े ध र ीच क न प ॥ कधर क जल जल ध मषीपा ॥ सुर म लेखणी व च ॥ क न लह त कजक या ॥२७॥ ु ु ं तेह तेथ रा हल तट थ ॥ तर आतां कवीं क ं े ंथ ॥ जर तूं मनीं ध रसी यथाथ ॥ तर काय एक न होय ॥२८॥ तीयेचा कशोर इंद ु ॥ यासी जीणदशी वाहती द नबंधु ॥ तैसे तझे गुण क णा संधु ॥ वण तस अ पमती ॥२९॥ ु स यवती दयर मराळ ॥ भेद त गेला तव गण नराळ ॥ अंत नकळे च समळ ॥ तोह तट थ रा हला ॥३०॥ ु ू तेथ मी मंदम त कं कर ॥ कवीं े मूं शक मह मांबर ॥ पर आ मसाथक करावया साचार ॥ तव गुणाणवीं मीन झाल ॥३१॥ ऐसे श द ऐकतां साचार ॥ तोषला दा ायणीवर ॥ हणे शव ललामत ृ ंथ प रकर ॥ आरं भी रस भर न मी ॥३२॥ जैसा घ न शशूचा हात ॥ अ र लहवी पं डत ॥ तैसे तव मुख मम गुण सम त ॥ सुरस अ यंत बोलवीन मी ॥ ३३॥ ोतीं हाव सावध च ॥ क पराणीं बो लला ं ु ीशुकतात ॥ अगाध शवल लामत ृ ंथ ॥ ो रखंड ज ॥३४॥ नै मषार यीं शौनका दक समती ॥ सता त ु ू क रती ॥ तंू चदाकाशींचा रो हणीप त ॥ कर ं त ृ वणचकोरां ॥३५॥ तवां बहुत पुराण सुरस ॥ ु ी व णल ला व ण या वशेष ॥ अगाध म हमा आसपास ॥ दशावतार व णले ॥३६॥ ु भारत रामायण भागवत ॥ ऐकतां वण झाले त ृ ॥ पर शवल लामत अ त ॥ ृ ु वण ार ाशन क ं ॥३७॥ यावर वेद यास श य सूत ॥ हणे ऐका आतां दे ऊ न च ॥ शवच र परमा त ॥ ु वण पातकपवत जळती ॥३८॥ आयरारो य ऐ य अपार ॥ संत त संप ु ान वचार ॥ वणमा दे णार ॥ ीशंकर नजांगे ॥३९॥ सकळ तीथ तांचे फळ ॥ महामखांचे ेय कवळ ॥ दे णार शवच र े नमळ ॥ वण क लमल नासती ॥४०॥ सकल य ामाजी जपय थोर ॥ हणाल जपावा कोणता मं ॥ तर मं राज शवषड र ॥ बीजस हत जपावा ॥४१॥ दजा मं ु शवपंचा र ॥ दोह ंचे फळ एक च साचार ॥ उतरती संसाराणवपार ॥ ा दसुरऋषी हा च जपती ॥४२॥ दा र द:ख भय शोक ॥ काम ु ोध ं पातक ॥ इतु यांसह संहारक ॥ शवतारक मं जो ॥४३॥ तु ीपु ीध ृ तकारण ॥ मु न नजरांसी हा च क याण ॥ कता मं राज संपुण ॥ अगाध म हमा न वणवे ॥४४॥ नव हांत वासरम ण थोर ॥ तैसा मं ात शवपंचा र ॥ कमलो व कमलावर ॥ अहोरा हा च जपती ॥४५॥ शा ांमाजी वेदांत ॥ तीथामाजी याग अ त ॥ महा मशान ु े ांत ॥ मं राज तैसा हा ॥४६॥ शा ांमाजी पाशुपत ॥ दे वांमाजी कलासनाथ ॥ कनकादे जैसा पवतांत ॥ मं पंचा र तेवीं हा ॥४७॥ ै कवळ परमत व च मा ॥ पर े ह च तारक मं ॥ तीथ तांचे संभार ॥ ओवाळू न टाकावे ॥४८॥ हा मं आ म ा ाची खाणी ॥ कव यमाग चा काशतरणी ॥ अ व ाकाननदाहक ै ा नी ॥ सनका दक ा न हा च जपती ॥४९॥ ी शू आ दक नी ॥ हा च जप मु य चहूं वण ॥ गह थ ृ चार आ दक नी ॥ दवसरजनीं जपावा ॥५०॥ जा ुतीं व नी येतां जातां ॥ उभ असतां न ा क रतां ॥ काया जातां बोलतां भांडता ॥ सवदाह जपावा ॥५१॥
  4. शवमं व नपंचानन ॥ कण आक णतां दोषावारण ॥ उभे च सांडती ाण ॥ न लागतां ण भ म होती ॥५२॥ यास मातका व ध आसन ॥ न लागे जपावा ीतीक न ॥ शव शव उ चा रतां पूण ॥ शंकर येऊ न पुढ उभा ॥५३॥ ृ अखंड जपती जे हा मं ॥ यांसी नजांगे र ी ने ॥ आपु या अंगाची साउल कर पंचच ॥ अहोरा र ी तयां ॥५४॥ मं जपकांलागनी ॥ शव हणे मी तमचा ऋणी ॥ पर तो मं गु मुखक नी ॥ घेइंजे आधीं वधीने ॥५५॥ ु ु गु करावा मु यवण ॥ भ वैरा य द य ान ॥ सव उदार दयाळू पूण ॥ या च हे क न मं डत जो ॥५६॥ मतभाषणी शांत दांत ॥ अंगी अमा न व अदं भ व ॥ अ हंसक अ त व र ॥ तो च गु करावा ॥५७॥ वणानां ा णो गु : ॥ ह ं वेदवचन नधा ॥ हा यापासो न मं ो चा ॥ क न यावा ीतीन ॥५८॥ जर आपणासी ठाउका मं ॥ तर गु मुख यावा नधार ॥ उगा च जपे तो अ वचार ॥ तर न फळ जा णजे ॥५९॥ काम ोधमदयु ॥ जे कां ाणी गु वर हत ॥ यानी ान क थल बहुत ॥ पर यांचे मुख न पहाव ॥६०॥ वेदशा ं शोधन ॥ जर झाल अपरो ू ान ॥ कर संतांशीं चचा पूण ॥ तर गु वण तरे ना ॥६१॥ एक हणती व नी आ हांते ॥ मं सां गतला भगवंत ॥ आदर सांगे लोकांते ॥ पर तो गु वण तरे ना ॥६२॥ य येऊ नयां दे व सां गतला जर गु भाव ॥ तर तो न तरे च वयमेव ॥ गु सी शरण न रघतां ॥६३॥ मौजीबंधना वण गाय ीमं ॥ जपे तो अप व ॥ वरा वण वहाडी सम ॥ काय यथ मळोनी ॥६४॥ तो वाचक झाला बहुवस ॥ पर याचे न चकती गभवास ॥ हणो न सां दाययु ु गु स ॥ शरण जाव नधारे ॥६५॥ जर गु कला भलता एक ॥ पर पूवसं दाय नसे ठाऊक ॥ जैसे गभाधासी स यम ॥ वण य े व प न कळे च ॥६६॥ असो या मं ाचे पर रण ॥ उ म ु े ी कराव पण ॥ काशी क ू ु े नै मषार य ॥ गोकण े आ दक न ॥६७॥ शव व णु े सगम ॥ प व ु थळीं जपावा स ेम ॥ तर ये च वषयीं पुरातन उ म ॥ कथा सांगेन ते ऐका ॥६८॥ वणी पठणीं नज यास ॥ आदर धरावा दवस दवस ॥ आनमोदन दे ता कथेस ॥ सव पापास ु य होय ॥६९॥ वण मनन नज यास ॥ ध रतां सा ा कार होय सरस ॥ न माग न तामस ॥ पावन सव होती ॥७०॥ तर मथरानाम नगर ॥ यादवंशी परमप व ॥ दाशाहनाम राज ॥ अ त उदार सुल णी ॥७१॥ ु सव राजे दे ती करभार ॥ कर जोडो न न मती वारं वार ॥ यां या मगटर ा करण साचार ॥ पद याचीं उजळल ं ॥७२॥ ु ु मगुटघषणक नी ॥ करण पडल ं दसती चरणीं ॥ जेण स ावसन पस नी ॥ पाला णल क भनी हे ॥७३॥ ु ंु उभा रला यशो वज ॥ जेवीं शर काळींचा जराज ॥ सकल जा आ ण ज ॥ चं तती क याण जयाच ॥७४॥ जैसा शु द तीयेचा हमांश ॥ तेवीं ऐ य चढे वशेष ॥ जो दबुि द दासीस ॥ पश न कर काल यीं ॥७५॥ ु स दि दधमप ीसीं रत ॥ व पाशीं तु ळजे रमानाथ ॥ दानश ु सम त ॥ याचकांचे दा र य नव टल ॥७६॥ भभजांवर जामद य ॥ समरांगणी जेवीं ळया न ॥ ठाण न चळे रणींहून ॥ कठारघाय भू ह जैसा ॥७७॥ ृ ु ु चतदश व ा चौस ी कळा ॥ आकळी जेवीं करतळींचा आंवळा ॥ जेण दानमेघ नव टला ॥ दा र धुरोळा याचकांचा ॥७८॥ ु
  5. बोलण अ त मधर ॥ मेघ गज जेवीं गंभीर ॥ जाजनांचे च मयर ॥ नृ य क रती वानंदे ॥७९॥ ु ू याचा सेमा संधु दे खो न अ ुत ॥ जल संधु होय भयभीत ॥ न ळ अंबार ंचा ुव स य ॥ वचन तेवीं न चळे च ॥८०॥ याची कांता पवती सती ॥ काशीराजकमार नाम कलावती ॥ िजच व प वण सर वती ॥ व वदनक नयां ॥८१॥ ु जे लाव यसागर ंची लहर ॥ खंजना ी बंबाधर ॥ मदभा षणी पक वर ॥ हं सगमना ह रम या ॥८२॥ ृ ु श शवदना भुजंगवेणी ॥ अलंकारां शोभा िजची तनु आणी ॥ दशन झळकती जेवीं हरे खाणी ॥ बोलतां सदनी काश पड ॥८३॥ सकलकला नपण ॥ यालागी कलावती नाम पण ॥ ज सौदयवैरागर ंचे र ु ू ॥ जे नधान चातयभमीच ॥८४॥ ु ू आंगीचा सुवास न माये सदनांत ॥ िजच मुखा ज दे खतां नपनाथ ॥ ने म लंद ं जी घाल त ॥ धणी पाहतां न पुरे च ॥८५॥ ृ नतन आ णल पणन ॥ मन सज आक षले रायाच मन ॥ बोलावूं पाठ वल ीतीक न ॥ पर ते न ये च ा थतां ॥८६॥ ू ू व प ंुगारजाळ पस न ॥ आक षला नुपमानसमीन ॥ यालागीं दशाहराजा उठोन ॥ आपण च गेला तजपाशीं ॥८७॥ हणे ुंगारव ल शुभांगी ॥ मम तनुव ृ ासी आ लंगीं ॥ उ म पु फळ सवसी जगीं ॥ अ यानंदे सवादे खतां ॥८८॥ तंव ते ंगारसरोवरमराळीं ॥बोले सहा यवदना वे हाळी ॥ हणे यां उपा सला श शमौळी ॥ सवकाळ त थ अस ॥८९॥ ु ु जे ी रो ग अ यंत ॥ ग भणी कं वा ऋतु नात ॥ अभु अथवा त थ ॥ व ृ द अश न भोगावी ॥९०॥ ीपु ष हषयु ं ॥ असावीं त ण पवंत ॥ अ भोगक न यु ॥ चंता त नसावीं ॥९१॥ पवकाळ त दन नरसन ॥ उ मकाळी ष स अ न भ ून ॥ मग ललना भोगावी ीतीक न ॥ राजल ण स य हे ॥९२॥ ू राव काममद म चंड ॥ र तभर पसरो न दोदड ॥ अ लंगन दे तां बळ चंड ॥ शर र याचे पोळले ॥९३॥ लोहागला त अ यंत ॥ तैसी कलावतीची तनू पोळत ॥ नप वेगळा होऊ न पसत ॥ कसा व ृ ांत सांग हा ॥९४॥ ृ ु ै ंगरसदना वला सनी ॥ मम दयानंदव धनी ॥ सकळ संशय टाकनी ॥ मुळींहूनी गो ी सांग ॥९५॥ ृ ु हणे हे राजच मुकटावतंस ॥ ु ोध भर नेद ं मानस ॥ माझा गु वामी दवास ॥ अनसुया मज महाराज ॥९६॥ ु या गु ने परम प व ॥ मज द धला शवपंचा र मं ॥ तो जपतां अहोरा ॥ परमपावन पनीत मी ॥९७॥ ु ममांग शीतळ अ यंत ॥ तव कलेवर पापसंयु ॥ अग यागमन कल वचारर हत ॥ अभ य ततुक भ े ल ॥९८॥ मज ीगु दयक न ॥ राज ा आह काळ ान ॥ तज जप तप शवाचन ॥ घडल नाह ं सवथा ॥९९॥ ु घडल नाह ं गु सेवन ॥ पुढ रा यांतीं नरक दा ण ॥ ऐकतां राव अनतापक न ॥ स दत जाहला ॥१००॥ ु हणे कलावती गुणगंभीरे ॥ तो शवमं मज दे ई आदर ॥ याचे न जप सव ं ॥ मह पाप भ म होती ॥१॥ ती हणे हे भभुज ॥ मज सांगावया नाह ं अ धकार ॥ मी व लभा तंू ाणे र ॥ गु ृ नधार तूं माझा ॥२॥ तर यादवकळीं गु व स ॥ गगमु न महाजाज ु े ॥ जो ा नयांमाजी द यमुकट ॥ व ा व र तयाची ॥३॥ ु जैसे व र वामदे व ानी ॥ तैसाच महाराज गगमनी ॥ यासी नप े ा शरण जाऊनी ॥ शवद ु ृ ा घेइंजे ॥४॥ मग कलावतीस हत भूपाळ ॥ गगा मीं पातला त काळ ॥ सा ांग नमू न करकमळ ॥ जोडू न उभा ठाकला ॥५॥
  6. अ भाव दाटू न दयीं ॥ हणे शवद ा मज दे ई ॥ हणू न पढती लागे पायीं ॥ मती नाह भावाथा ॥६॥ ु यावर तो गगमनी ॥ कृतांतभ गनीतीरा येऊनी ॥ पु यव ृ ातळी बैसोनी ॥ नान करवी यमनेच ॥७॥ ु ु उभयतांनी क न नान ॥ यथासांग कल शवपूजन ॥ यावर द य र े आणून ॥ अ भषेक कला गु सी ॥८॥ े द याभरण द य व ॥ गु पुिजला नपे आदर ॥ गु द ृ णेसी भांडारे ॥ दाशाहराय सम पल ॥९॥ तनमनधनसी उदार ॥ गगचरणीं लागे नपवर ॥ असो न गु सी वं चती जे पामर ॥ ते दा ण नरय भो गती ॥११०॥ ु ृ ीगु चे घर ं आपदा ॥ आपण भोगी सव संपदा ॥ कच ै ान या म तमंदा ॥ गु ानंदा न भजे जो ॥११॥ एक हणती तनमनधन ॥ ना शवंत गु सी काय अपन ॥ परम चांडाळ याच शठ ान ॥ कदा वदन न पाहाव ॥१२॥ ु ू धक् व ा धक् ान ॥ धक् वैरा यसाधन ॥ चतवद शा ु आला पढून ॥ धक् पठण तयाच ॥१३॥ जैसा खरप ृ ईवर चंदन ॥ ष सीं दव यथ फ न ॥ जेवीं माप तंदल मोजन ॥ इकडून तकडे तकडे टा कती ॥१४॥ ु ू घाणा इ ुरस गाळी ॥ इतर से वती रसन हाळी ॥ क ं पा ांत शकरा सांठ वल ॥ पर गोडी न कळे तया ॥१५॥ असो ते अभा वक खळ ॥ तैसा न हे तो दाशाहनपाळ ॥ षोडशोपचार नमळ ॥ पूजन कल गु च ॥१६॥ ृ े उभा ठाकला कर जोडून ॥ मग तो गग दयी ध न ॥ म तक ं ह त ठे वन ॥ शवषड र मं सांगे ॥१७॥ ू दयाआकाशभुवनीं ॥ उगवला नजबोधतरणी ॥ अ ानतम तेच णी ॥ नरसू न नवल जाहल ॥१८॥ अ त मं ाच म हमान ॥ राया चया शर रामधन ॥ को यव ध काक नघोन ॥ पळते झाले तेधवां ॥१९॥ ु ू कती एकांचे प जळाले ॥ चरफ डत च बाहे र आले ॥ अवघे च भ म होऊ न गेले ॥ सं या नाह ं तयांते ॥१२०॥ जैसा कं चत ् पडतां कृशान ॥ द ध होय कटकवन ॥ तैसे काक गेले जळोन ॥ दे खो न राव नवल कर ॥२१॥ ं गु सी नमू न पुसे नप ॥ काक कचे नघाले अमूप ॥ माझ झाल द य ृ प ॥ नजराहू न आगळं ॥२२॥ गु हणे ऐक सा ेप ॥ अनंत ज मींची महापापे ॥ बाहे र नघाल ं काका प ॥ शवमं तापे भ म झाल ॥२३॥ न पाप झाला नपवर ॥ गु ृ तवन कर वारं वार ॥ ध य पंचा र मं ॥ तंू ध य गु पंचा र ॥२४॥ पंचभुतांची झाडणी क न ॥ सावध कल मजलागन ॥ चार दे ह नरसन ॥ कले पावन गु राया ॥२५॥ े ू ू े पंचवीस त वांचा मेळ ॥ यांत सांपडल बहुत काळ ॥ ोध म हषासर सबळ ॥ कामवेताळ धसधसी ॥२६॥ ु ु ु आशा मनशा त ृ णा क पना ॥ ां त भुल इ छा वासना ॥ या ज खणी य णी नाना ॥ वटं बीत मज हो या ॥२७॥ ऐसा हा अवघा मायामेळ ॥ तवां नरसला ता काळ ॥ ध य पंचा र मं ु नमळ ॥ गु दयाळ ध य तंू ॥२८॥ सह ज मपयत ॥ मज ान झाल सम त ॥ पाप जळाल असं यात ॥ काक पे दे खल ं यां ॥२९॥ सुवण तेय अभ यभ क ॥ सुरापान गु त पक ॥ परदारागमन गु नंदक ॥ ऐसीं नाना मह पाप ॥१३०॥ गोह या ह या धमलोपक ॥ ीह या गु ह या छळक ॥ पर नंदा पशु हंसक ॥ व ृ हारक अग य ीगमन ॥३१॥ म ोह गु ोह ॥ व दोह वेद ोह ॥ ासादभेद लंगभेद पाह ं ॥ पं भेद ह रहरभेद ॥३२॥
  7. ानचोर पु तकचोर प घातक ॥ पाखांडम त म यावादक ॥ भेदबि द ु माग थापक ॥ ीलंपटदराचार ॥३३॥ ु कृत न पर यापहारक ॥ कम तीथम हमाउ छे दक ॥ बक यानी गु छळक ॥ मातहतक पतह या ॥३४॥ ृ ृ दबलघातुक कममाग न ॥ द नह यार पाहती पैशू य ॥ तणदाहक पी डती स जन ॥ गो वध भ गनीवध ॥३५॥ ु ृ क या व य गो व य ॥ हय व य रस व य ॥ ामदाहक आ मह या पाह ॥ णह य महापाप ॥३६॥ ू ह ं महापाप सां गतल ं ु पाप नाह ं ग णल ं ॥ इतक ं काक प नघाल ं ॥ भ म झाल ं ु य ॥३७॥ कांह गांठ पु य होत परम ॥ हणो न नरदे ह पावल उ म ॥ गु ताप तरल न:सीम ॥ काय म हमा बोलू आतां ॥३८॥ गु तवन क न अपार ॥ ामासी आला दाशाह नपवर ॥ सव कलावती परमचतुर ॥ कला उ दार रायाचा ॥३९॥ ृ े जपतां शवमं नमळ ॥ रा य वधमान झाल सकळ ॥ अवषणदोष द ु काळ ॥ दे शांतू न पळाले ॥१४०॥ वैध य आ ण रोग मृ य ॥ नाह ंच कोठ दे शांत ॥ अ लं गतां कलावतीसी नपनाथ ॥ शशीऐसी शीतल वाटे ॥४१॥ ृ शव भजनीं ला वले सकळ जन ॥ घरोघर ं होत शवक तन ॥ ा भषेक शवपूजन ॥ ा णभोजन यथा व ध ॥४२॥ दाशाहरायाच आ यान ॥ जे ल हती ऐकती क रती पठण ॥ ीतीक न ंथर ण ॥ अनमोदन दे ती जे ॥४३॥ ु सुफळ यांचा संसार ॥ यांसी नजांगे र ी ीशंकर ॥ ध य ध य ते च नर ॥ शवम हमा व णती जे ॥४४॥ पुढ कथा सुरस सार ॥ अमअताहू न र सक फार ॥ ऐकोत पं डत चतर ॥ गु भ ृ ु े मळ ानी जे ॥४५॥ पूण ानंद शूळपाणी ॥ ीधरमुख न म क नी ॥ तो च बोलवीत वचारोनी ॥ पहाव मनीं नधार ॥४६॥ ीधरवरद पांडुरं ग ॥ तेण शर ध रल शव लंग ॥ पूण ानंद अभंग ॥ न हे वरं ग काल यी ॥४७॥ शवल लामत ृ ंथ चंड ॥ कदपराण ं ु ो रखंड ॥ प रसोत स जन अखंड ॥ थमो याय गोड हा ॥१४८॥ इ त ी थमो याय: समा : ॥ ॥ ीसांबसदा शवापणम तु ॥
  8. ी शवल लामत – अ याय दसरा ृ ु अ याय दसरा ु ीगणेशाय नमः॥ जेथ सवदा शव मरण ॥ तेथ भु मु सवक याण ॥ नाना संकट व न दा ण ॥ न बाधती काल यी ॥१॥ संकत अथवा हा यक न ॥ भल या मस घडो शव मरण ॥ न कळतां प रसासी लोह जाण ॥ संघटतां सुवण कर क ं ॥२॥ े न कळतां ा शल अमत ॥ पर अमर कर क ं यथाथ ॥ औषधी नेणतां भ ृ त ॥ पर रोग स य हर क ं ॥३॥ शु कतणपवत अ ुत ॥ नेणतां बाळक अक मात ॥ अि न फ लंग टाक त ॥ पर भ म यथाथ कर क ं ॥४॥ ृ ु तैसे न कळतां घडे शव मरण ॥ पर सकळ दोषां होय दहन ॥ अथवा वनोदक न ॥ शव मरण घडो कां ॥५॥ हे कां यथ हांका फो डती ॥ शव शव नाम आरडती ॥ अरे कां हे उगे न राहती ॥ हरहर गजती वेळोवेळां ॥६॥ शवनामाचा क रती को हाळ ॥ माझ उठ वल कपाळ ॥ शव शव हणतां वेळोवेळ ॥ काय येत यां या हाता ॥७॥ ऐसी हे ळणा कर ण णीं ॥ पर उमाव लभनाम ये वदनीं ॥ पु क यानामक नी ॥ शव मरण घडो कां ॥८॥ महा ीतीन क रतां शव मरण ॥ आदर क रतां शव यान ॥ शव व प माननी ा ण ॥ संतपण कर सदां ॥९॥ ू ऐसी शवीं आवडी धर ॥ याह माजी आल शवरा ी ॥ उपवास जागरण कर ॥ होय बोहर मह पापा ॥१०॥ ते दवशीं ब वदळ घेऊन ॥ यथासांग घडल शवाचन ॥ तर सह ज मींचे पाप संपण ॥ भ म होऊन जाईल ॥११॥ ू न य ब वदळ शवासी वाहत ॥ याएवढा नाह ं पु यवंत ॥ तो तरे ल ह नवल न हे स य ॥ या या दशन बहुत तरती ॥१२॥ ातःकाळी घेतां शवदशन ॥ या मनीच पाप जाय जळोन ॥ पूवज मींच दोष गहन ॥ मा या ह ं दशन घेतां नरती ॥१३॥ ु सायंकाळीं शव पाहतां स ेम ॥ स ज मींच पाप होय भ म ॥ शवरा ीचा म हमा परम ॥ शेषह वणू शकना ॥१४॥ े क पलाष ी अध दय सं मण ॥ महोदय गज छाया हण ॥ इतुकह पवकाळ ओंवाळून ॥ शवरा ीव न टाकाव ॥१५॥ े शवरा ी आधीं च पु य दवस ॥ याह वर पूजन जागरण वशेष ॥ काळपूजा आ ण घोष ॥ या या पु यासी पार नाह ं ॥१६॥ वस व ा म ा द मनी र ॥ सुरगण गंधव क नर ॥ स चारण व ाधर ॥ शवरा ु त क रताती ॥१७॥ यदथ सरस कथा बहुत ॥ शौनका दकां सांगे सत ॥ ती ोतीं ऐकावी साव च ॥ अ यादरक नयां ॥१८॥ ु ू तर मासांमाजी माघमास ॥ याचा यास म हमा वण वशेष ॥ याह माजी कृ णचतदशीस ॥ मु य शवरा ु जा णजे ॥१९॥ वं या वासी एक याध ॥ मगप ृ घातक परम न ष द ॥ महा नदय हंसक नषाद ॥ कले अपराध बहु तेण ॥२०॥ े धनु यबाण घेऊ न कर ं ॥ पारधीसी चा लला दराचार ॥ पाश वागरा क ेसी धर ॥ कवच लेत ह रतवण ॥२१॥ ु ु कर ं गोधांगु ल ाण ॥ आ णकह हातीं श सामु ी घेऊन ॥ काननीं जातां शव थान ॥ शोभायमान दे खल ॥२२॥ तंव तो शवरा ीचा दन ॥ या ा आल चहुंकडून ॥ शवमं दर ुंगा न ॥ शोभा आ णल कलासींची ॥२३॥ ै
  9. शु रजततगटवण ॥ दे वालय झळक शोभायमान ॥ गगनचंु बत वज पण ॥ र ज डत कळस तळपताती ॥२४॥ े ू म य म णमय शव लंग ॥ भ पूजा क रती सांग ॥ अ भषेकधारा अभंग ॥ व ध रती घोष ॥२५॥ एक टाळ मदंग घेऊन ॥ स ेम क रती शवक तन ॥ ोते करटाळी वाजवन ॥ हरहरश द घोष क रती ॥२६॥ ृ ू नाना प रमळ यसवास ॥ तेण दश दशा दमद ु म या वशेष ॥ ल ु ु द पांचे काश ॥ जलजघोष घंटारव ॥२७॥ श शमुखा गजती भेर ॥ यांचा नाद न माये अंबर ॥ एवं चतु वध वा नानापर ॥ भ वाज वती आनंदे ॥२८॥ तो तेथ याध पातला ॥ समोर वलोक सव सोहळा ॥ एक महूत उभा ठाकला ॥ हांसत बो लला वनोदे ॥२९॥ ु हे मख अवघे जन ॥ येथ ू य काय यथ नासोन ॥ आंत दगड बाहे र पाषाण ॥ दे वपण येथ कच ॥३०॥ ै उ म अ न सांडून ॥ यथ कां क रती उपोषण ॥ ऐ सया चे ा कर त तेथून ॥ कानना ती जातसे ॥३१॥ लोक नाम गजती वारं वार ॥ आपण ह वनोद हणे शव हर हर ॥ सहज स य घालू न शवमं दर ॥ घोर कांतार वेशला ॥३२॥ वाचेसी लागला तो च वेध ॥ वनोद बोले शव शव श द ॥ नाम ताप दोष अगाध ॥ झडत सव चा लले ॥३३॥ घोरांदर से वतां वन ॥ नाढळतीच जीव लघुदा ण ॥ त व ण द वधच सदन ॥ वासरम ण वेशला ॥३४॥ ू नशा वतल सबळ ॥ क ं ांडकरं डा भरल काजळ ॥ क ं वशाळ कृ णकबळ ॥ मंडप काय उभा रला ॥३५॥ ं वगतधवा जेवीं का मनी ॥ तेवीं न शोभे कदा या मनी ॥ जर मं डत दसे उडुगणीं ॥ पर प तह न रजनी ते ॥३६॥ जैसा पं डत गे लया सभतन ॥ मख ज पती पाखंड ान ॥ जेवीं अ ता जातां सह ू ू करण ॥ उडुगण माग झळकती ॥३७॥ असो ऐसी नशा दाटल सुब ॥ अवघा वेळ उपवासी नषाद ॥ त एक सरोवर अगाध ॥ ीं दे खल शो धतां ॥३८॥ अनेक संप ी सभा यसदनीं ॥ तेवीं सरोवर शोभती कमु दनी ॥ तट ं ब वव ृ गगनीं ॥ शोभायमान पसरला ॥३९॥ ु योग कमभमीसी पावती जनन ॥ तेवीं ब वडहा ळया गगनींहून ॥ भमीस लाग या येऊन ॥ माजी र वश श करण न दसे ॥४०॥ ू ू यांत तम दाटल दा ण ॥ माजी बैस या याध जाऊन ॥ शरासनीं शर लावन ॥ कानाडी ओढोन सावज ल ी ॥४१॥ ू ीं ब वदळ दाटल ं बहुत ॥ तीं द णह त खडो न टाक त ॥ तो तेथ प जह त था पत ॥ शव लंग द य होत ॥४२॥ ु यावर ब वदळ पडत ॥ तेण संतोषला अपणानाथ ॥ याधासी उपवास जागरण घडत ॥ सायास न क रतां अनायास ॥४३॥ वाचेसी शवनामाचा चाळा ॥ हर हर हणे वेळोवेळां ॥ पाप य होत चा लला ॥ पूजन मरण सव घडल ॥४४॥ एक याम झा लया रजनी ॥ त जलपानालागीं एक ह रणी ॥ आल तेथ ते ग भणी ॥ परम सकमार तेज वी ॥४५॥ ु ु याध तण ल ला द ु न ॥ कृतांतवत परम दा ण ॥ आकण ओ ढला बाण ॥ दे खो न ह रणी बोलतसे ॥४६॥ हणे महापु षा अ याया वण ॥ कां मजवर ला वला बाण ॥ मी तव ह रणी आहे ग भण ॥ वध तुवां न करावा ॥४७॥ उदरांत गभ सू म अ ान ॥ व धतां दोष तज दा ण ॥ एक रथभर जीव व धतां सान ॥ तर एक ब त व धयेला ॥४८॥ ु शत ब त व धतां एक ॥ वषभह येच पातक ॥ शत वषभ त गोह या दे ख ॥ घडल शा ृ ृ वदतसे ॥४९॥
  10. शत गोह येच पातक पण ॥ एक व घतां होय ा ण ॥ शत ू ह येच पातक जाण ॥ एक ी व ध लया ॥५०॥ शत ि यांहू न अ धक ॥ एक गु ह येच पातक ॥ याहू न शतगणी दे ख ॥ एक ग भणी व ध लया ॥५१॥ ु तर अ याय नसतां ये अवसर ं ॥ मज मा रसी कां वनांतर ॥ याध हणे कटुंब घर ॥ उपवासी वाट पहात ॥५२॥ ु मीह आिज नराहार ॥ अ न नाह ंच अणमा ॥ पर मगी होऊ न संदर ॥ गो ी व सी शा ीं या ॥५३॥ ु ृ ु मज आ य वाटत पोट ं ॥ नराऐशा सांगसी गो ी ॥ तुज दे खो नयां ीं ॥ दया दयीं उपजतसे ॥५४॥ पूव तंु होतीस कोण ॥ तुज एवढ ान कोठून ॥ तूं वशाळने ी प लाव य ॥ सव वतमान मज सांगे ॥५५॥ मगी हणे ते अवसर ं ॥ पव मंथन क रतां ृ ू ीरसागर ं ॥ चतदश र े का ढल ं सरासर ं ॥ महा य क नयां ॥५६॥ ु ु ु यांमाजी मी रं भा चतुर ॥ मज दे खो न भुलती सुरवर ॥ नाना तप आचरो न अपार ॥ तप वी पावती आ हांत ॥५७॥ यां नयनकटा जाळ पस न ॥ बां धले नजरांच मनमीन ॥ मा झया अंगसवासा वेधन ॥ मु न मर धांवती ॥५८॥ ु ू माझे गायन ऐकावया सरंग ॥ सधापानीं धांवती करं ग ॥ मी भोगीं वग चे द य भोग ॥ व प न मानी कोणासी ॥५९॥ ु ु ु मद अंगी चढला बहुत ॥ शवभजन टा कल सम त ॥ शवरा ी सोमवार दोष त ॥ शवाचन सां डल यां ॥६०॥ सोडो नयां सधापान ॥ क ं लागल म ु ाशन ॥ हर यनामा दै य दा ण ॥ सुर सोडो न रतले यांसी ॥६१॥ ऐसा लोटला काळ अपार ॥ मगयेसी गेला तो असर ॥ या द ु ासंगे अपणावर ॥ भजनपूजन वसरल ॥६२॥ ृ ु मनासी ऐस वाटल पूण ॥ असुर गेला मगयेलागन ॥ इतु यांत याव शवदशन ॥ हणो न गेल कलासा ॥६३॥ ृ ू ै मज दे खतां हमनगजामात ॥ परम ोभो न शाप दे त ॥ तूं परम पा पणी यथाथ ॥ मगी होई मृ यलोक ं ॥६४॥ ृ ु तु या स या दोघीजणी॥ या होतील तजसवं ह रणी ॥ हर य असर मा झये भजनीं ॥ असावध सवदा ॥६५॥ ु ु तोह मग होऊ न स य ॥ तु हांसीं च होईल रत ॥ ऐक याधा साव च ॥ मग यां शव ा थला ॥६६॥ ृ हे पंचवदना व पा ा ॥ सि चदानंदा कमाध ां॥ द मखदळणा सवासा ा ॥ उ:शाप दे आ हांत ॥६७॥ भोळा च वत दयाळ ॥ उःशाप वदला पयःफनधवल ॥ ादश वष भरतां ता काळ ॥ पावाल मा झया पदात ॥६८॥ े मग आ ह ं मगयोनी ॥ ज मल ये कमअवनीं ॥ मी ग भणी आह ह रणी ॥ सूतकाळ समीप असे ॥६९॥ ृ तर मी आपु या व थळा जाऊन ॥ स वर येत गभ ठे वन ॥ मग तूं सुख घेई ाण ॥ स य वचन ह माझ ॥७०॥ ू ऐसी मगी बो लल साव च ॥ यावर तो याध काय बोलत ॥ तूं गोड बोलसी यथाथ ॥ पर व ास मज न वाटे ॥७१॥ ृ नानापर अस य बोलोन ॥ कराव शर राच संर ण ॥ ह ाणीमा ासी आहे ान ॥ तर तंू शपथ वद आतां ॥७२॥ मह पाप उ चा न ॥ शपथ वद यथाथ पूण ॥ यावर ते ह रणी द नवदन ॥ वाहत आण ऐका ते ॥७३॥ ा णकळीं उपजोन ॥ जो न कर वेदशा ु ययन ॥ स यशौचविजत सं याह न ॥ माझे शर ं पातक त ॥७४॥ एक वेद व य कर ती पूण ॥ कृत न परपीडक नावडे भजन ॥ एक दानासी क रती व न ॥ गु नंदा वण एक क रती ॥७५॥
  11. रमावराउमावरांची नंदा ॥ या पापाची मज होय आपदा ॥ दान दधल ज वंदा ॥ हरोनी घेती माघार ॥७६॥ ृ एक य त नंदा क रती ॥ एक शा पहाती ै त न मती ॥ नाना माग आचरती ॥ वधम आपुला सांडो नयां ॥७७॥ दे वायला माजी जाऊनी ॥ ह रकथापुराण वणीं ॥ जे बैसती वडा घेउनी ॥ ते कोडी होती पा पये ॥७८॥ जे दे वळांत क रती ीसंभोग ॥ क ं ी तारांसी क रती वयोग ॥ ते नपंसक होऊ न अभा य ॥ उपजती या ज मीं ॥७९॥ ु वमकम नंदा कर त ॥ तो जगपुर षभ क काग होत ॥ श यांसी व ा असो न न सांगत ॥ तो पंगळा होत नधार ॥८०॥ अनु चत त ह ा ण घेती ॥ या न म गंडमाळा होती ॥ पर े ीं या गाई वळू न आ णती ॥ ते अ पायषी होती या ज मीं ॥८१॥ ु जो राजा कर जापीडण ॥ तो या ज मीं या कां सप होय दा ण ॥ वथा कर साधुछळण ॥ नवश पण होय याचा ॥८२॥ ृ ू ि या तनेम कर त ॥ तारासी अ हे र त ॥ धनधा य असो न वं चत ॥ या वाघुळा होती या ज मीं ॥८३॥ पु ष क प हणो नयां या गती ॥ या या ज मीं बाल वधवा होती ॥ तेथह जारकम क रती ॥ मग या होती वारांगना ॥८४॥ ु या तारासी नभि सती ॥ या दासी कं वा कलटा होती ॥ सेवक वामीचा ोह क रती ॥ ते ज मा येती ु ाना या ॥८५॥ सेवकापासू न सेवा घेऊन ॥ याच न दे जो वेतन ॥ तो अ यंत भकार होऊन ॥ दारोदार हंडतसे ॥८६॥ ीपु ष गुज बोलतां ॥ जो जाऊ न ऐक त वतां ॥ याची े ी दरावे हंडतां ॥ अ न न मळे तयात ॥८७॥ ु जे जारणमारण क रती ॥ ते भत ेत पशाच होती ॥ यती उपवास पी डती ॥ यांते द ु काळ ज मवर ॥८८॥ ू ी रज वला होऊनी ॥ गह ं वावर जे पा पणी ॥ पूवज ृ धर ं पडती पतनीं ॥ या गह दे व पतगण न येती ॥८९॥ ृ ृ जे दे वा या द पांच तोत नेती ॥ ते या ज मीं नपु क होती ॥ या रां धतां अ न चोरोनी भ ती ॥ या माजार होती या ज मीं ॥९०॥ ा णांसी कद न घालन ॥ आपण भ ू ती ष सप वान ॥ यांचे गभ पडती गळोन ॥ आपु लया कमवश ॥९१॥ जो माता प यांसी शणवीत ॥ तो ये ज मी मकट होत ॥ सासु शुरा नुषा गांिजत ॥ तर बाळक न वांचे तयेच ॥९२॥ मगी हणे याधालागन ॥ जर मी न ये परतोन ॥ तर ह ं मह पाप संपूण ॥ मा या माथां बैसोत ॥९३॥ ृ ू हे म या गो होय साचार ॥ तर घडो शवपजेचा अपहार ॥ ऐसी शपथ ऐकतां नधार ॥ याध शंकला मानसी ॥९४॥ ू हणे प त ते जाई आतां ॥ स वर येई नशा सरतां ॥ ह रणी हणे शवपदासी त वतां ॥ पु यवंता जाशील ॥९५॥ उदकपान क न वेगीं ॥ नजा मा गेल करं गी ॥ इकडे या द ु णभाग ॥ टाक ब वदळे खडू नयां ॥९६॥ ु दोन हर झाल या मनी ॥ तीय पजा शव माननी ॥ अधपाप जळाल मळींहुनी ॥ स ज मींच तेधवां ॥९७॥ ू ु ु नामीं आवड जडल पूण ॥ याध कर शव मरण ॥ मगीमुख ऐ कल न पण ॥ सहज जागरण घडल तया ॥९८॥ ृ त दसर ह रणी अक मात ॥ पातल तेथ तषा ांत ॥ याधे बाण ओढ तां व रत ॥ क णा भाक ह रणी ते ॥९९॥ ु ृ हणे याधा ऐक ये समयी ॥ मज कामानळ पीडील पाह ं ॥ पतीसी भोग दे ऊ न लवलाह ॥ परतो न येत स वर ॥१००॥ याध आ य कर मनांत ॥ हणे शपथ बोलो न जाई व रत ॥ ध य तमचे जी व व ॥ सव शा ाथ ठाउका ॥१॥ ु
  12. चापी तडाग सरोवर ॥ जो प तत मोडी दे वागार ॥ गु नंदक म पानी दराचार ॥ तीं पाप सम म तक ं मा या ॥२॥ ु महा य आपण हण वत ॥ समरांगणी माग पळत ॥ व ृ हर सीमा लो टत ॥ ंथ नं दत महापु षांचे ॥३॥ वेदशा ांची नंदा कर ॥ संतभ ांसी े ष धर ॥ ह रहर च र अ हे र ॥ माझे शर ं तीं पाप ॥४॥ धनधा य असो न पाह ं ॥ पतीलागीं शणवी हणे नाह ं ॥ प त सांडो न नजे परगह ॥ तीं पापे मा झया माथां ॥५॥ ृ पु नषा स माग वतता ॥ यांसी यथची गािजती जे नं पाहं तां ॥ ते क प होती त वतां ॥ हंडता भ ा न मळे च ॥६॥ ु ु बंधुबंधु जे वैर क रती ॥ ते या ज मीं म य होती ॥ गु च उण जे पाहती ॥ यांची संप द ध होय ॥७॥ जे माग थांचीं व े ह रती ॥ ते अ तशू ेतव पांघरती ॥ आ ह तप वी हणो नया अनाचार क रती ॥ ते घले होती मोकाट ॥८॥ ु दासी वामीची सेवा न कर ॥ ती ये ज मी होय मगर ॥ जो क या व य कर ॥ हंसक योनी नपजे तो ॥९॥ ी ताराची सेवा कर त ॥ तीस जो यथ च गांिजत ॥ याचा गहभंग होत ॥ ज मज मांतर न सटे ॥११०॥ ृ ु ा ण कर रस व य ॥ घेतां दे तां म पी होय ॥ जो वंदा अपमा नताहे ॥ तो होय ृ रा स ॥११॥ एक उपकार कला ॥ जो न नाठवी याला ॥ तो कृत न जंत झाला ॥ पूवकम जा णजे ॥१२॥ े व ा द ं जेवनी ॥ ु ीभोग कर ते दनीं ॥ तो ानसुकरयोनीं ॥ उपजेल न:संशये ॥१३॥ यवहार दहांत बैसोन ॥ खोट सा दे ई गज न ॥ पवज नरक ं पावती पतन ॥ अस य सा ू दे तां च ॥१४॥ दोघी ि या क न ॥ एक चच राखी जो मन ॥ तो गो चड होय जाण ॥ सारमेय शर र ॥१५॥ पूवज मीं क डी उदक ॥ याचा मळमू नरोध दे ख ॥ क रतां साधु नंदा आव यक ॥ स वर दं त भ न होती ॥१६॥ दे वालयीं कर भोजन ॥ तर ये ज मी होय ीण ॥ प ृ वीपंतीची नंदा क रतां जाण ॥ उदर ं मंदाि न होय प ॥१७॥ हणसमयीं कर भोजन ॥ यासी प रोग हो दा ण ॥ परबाळ वक परदे श नेऊन ॥ तर सवागीं क भरे ॥१८॥ ु जी ी कर गभपातन ॥ तीउपजे वं या होऊन ॥ दे वालय टाक पाडोन ॥ तर अंगभंग होय याचा ॥१९॥ अपराधा वण ीसी गांिजताहे ॥ याच ये ज मीं एक अंग जाये ॥ ा णाच अ न ह रती पा पये ॥ यांचा वंश न वाढे कधीं ॥१२०॥ गु संत माता पता ॥ यांसी होय जो नभि सता ॥ तर वाचा जाय त वतां ॥ अडखळे बोलतां णा णां ॥२१॥ जो ा णांसी दं ड भार ॥ यासी या ध तडका लागती शर र ं ॥ जो संतासीं वाद ववाद कर ॥ द घ दं त होती याचे ॥२२॥ दे व ार ंचे त वर ॥ अ था द व ृ साचार ॥ तो डतां पांगळ होय नधार ॥ भ ा न मळे हंडातां ॥२३॥ ु जो सूतका न भ त ॥ याचे उदर ं नाना रोग होत ॥ आपण च प रमळ य भोगी सम त ॥ तर दगधी स य सवागी ॥२४॥ ु ा णाच ऋण न दे तां ॥ तर बाळपणीं मृ यु पावे पता ॥ जलव ृ ा छाया मो डतां ॥ तर एकह थळ न मळे यात ॥२५॥ ा णासी आशा लावन ॥ चाळवी नेद कदा दान ॥ तो ये ज मीं अ न अ न ॥ कर त हंडे घरोघर ं ॥२६॥ ू जो पु ष कर त ॥ आ ण द र याच ल न मो डत ॥ तर ीसी सल राहे पोटांत ॥ वं या नि त संसार ॥२७॥
  13. जेणे ा ण बां धले न हून ॥ यासी सांडस तोडी सयनंदन ॥ जो नायक कथा ंथ पावन ॥ ब धर होय ज मोज मी ॥२८॥ ु े जो पीडी माता पतयांस ॥ याचा सवदा होई कायनाश ॥ एकासी भजे नंद सव दे वांस ॥ तर एक च पु होय यासी ॥२९॥ जो चांडाळ गोवध कर ॥ यासी मळे ककश नार ॥ वषभ व धतां नधार ं ॥ शतमूख पु होय यासी ॥१३०॥ ृ उदकतण वण पशु मार त ॥ तर मु या च जा होती सम त ॥ जो प त तेसी भोगंू इि छत ॥ तर क प नार ककशा मळे ॥३१॥ ृ ु जो पारधी बहु जीव संहार ॥ तो फपरा होय संसार ॥ गु चा याग जो चांडाळ कर ॥ तो उपजतां च मृ यु पावे ॥३२॥ न य अथवा र ववर ं मुते रवीसमोर ॥ याचे बाळपणीं दं त भ न कश शु ॥ जे मत बाळासाठ ं दती नधार॥ यांस हांसता नपु क होय े ृ ॥३३॥ ह रणी हणे याधालागन ॥ मी स वर येत पतीसी भोग दे ऊन ॥ न य तर ह ं पाप संपण ॥ मा या माथां बैसोत प ॥३४॥ ू ू याध मनांत शंकोन ॥ हणे ध य ध य तमच ु ान ॥ स वर येई गहासी जाऊन ॥ स य संपूण सांभाळी ॥३५॥ ृ जलपान क न वेगीं ॥ आ म गेल ते करं गी ॥ त मगराज ते च संगीं ॥ जलपानाथ पातला ॥३६॥ ु ृ याध ओ ढला बाण ॥ त मग बोले द नवदन ॥ हणे मा या ि या प त ता सगण ॥ यांसी पसोन येत मी ॥३७॥ ृ ु ु शपथ ऐक व रत ॥ क तन क रती ेमळ भ ॥ तो कथारं ग मो डतां नवश होत ॥ त पाप स य मम माथां ॥३८॥ कम वेदो ॥ शु नजांगे आचरत ॥ तो अधम नरक ं पडत ॥ परधम आचरतां ॥३९॥ तीथया ेसी व न कर ॥ वाटपाडी व य हर ॥ तर सवागी ण अघोर ं ॥ नरक ं पडे क पपयत ॥१४०॥ शा कोशीं नाह ं माण ॥ कटक वता कर ू ु ल ून ॥ ह रती ा णांचा मान ॥ तर संतान तयांचे न वाढे ॥४१॥ ह र दनीं शव दनी उपोषण ॥ व धयु न कर ादशी पूण ॥ तर ह त पाद ीण ॥ होती याचे नधार ॥४२॥ एक शवहर तमा फो डती ॥ एक भगव ां व न क रती ॥ एक शवम हमा उ छे दती ॥ नरसीं होती क टक ते ॥४३॥ मात ृ ोह यासी याधी भरे ॥ पत ृ ोह पशाच वचरे ॥ गु ोह ता काळ मरे ॥ भत ेतगणीं वचरे तो ॥४४॥ ू व आहार बहुत जे वती ॥ यांसी जो हांसे दमती ॥ याचे मुखीं अहोच रोग नि ु ती॥ न सोडती ज मवर ॥४५॥ एक गो व य क रती ॥ एक क या व य अिजती ॥ ते नर माजार म त होती ॥ बाळ भ ती आपल ं ॥४६॥ ु जो क या भ गनी अ भलाषी ॥ काम ीं याहाळी प त तेसी ॥ मेहरोग होय यासी ॥ क ं खडा गु ांत दाटत ॥४७॥ ासादभंग लंगभंग कर ॥ दे वांचीं उपकरण अलंकार चोर ॥ दे व त ा अ हे र ॥ पंडुरोग होय ॥४८॥ एक म ोह व ासघात क रती ॥ मात ृ पतह या गु सी संकट पा डती ॥ ृ वध गोवध न वा रती ॥ अंगी साम य असो नयां ॥४९॥ ा ण बैसवो न बाहे र ॥ उ मा न जे वती गहांतर ॥ सोययाची ाथना कर ॥ सं हणी पोटशूळ होती तयां ॥१५०॥ ृ एक कम पंचय न क रती ॥ एक ा णांची सदन जा ळती ॥ एक द नासी माग नाग वती ॥ एक संतांचा क रती अपमान ॥५१॥ एक क रती गु छळाण ॥ एक हणती पाह याच ल ण ॥ नाना दोष आरो पती अ ान ॥ यांचे संतान न वाढे ॥५२॥ जो सदा पतदोष कर ॥ जो ृ वंदासी अ हे र ॥ शवक तन ऐकतां ासे अंतर ॥ तर पतवीय न हे तो ॥५३॥ ृ ृ
  14. शवक तनीं न हे सादर ॥ तर कणमळरोग नधार ॥ नस या च गो ी ज पे अपार ॥ जो ददर होय नधार ॥५४॥ ू ु शवक तन कं वा पुराण वण ॥ तेथ शयन कर तां सप होय दा ण ॥ एक अ ववादक छळक जाण ॥ ते पशाचयोनी पावती ॥५५॥ एकां दे वाचनीं वीट येत ॥ ा ण पूजावया कटाळत ॥ तीथ साद अ हे र त ॥ यां या आंखुडती अंग शरा ॥५६॥ ं मग हणे ऐसीं पाप अपार ॥ मम म तक ं होईल परम भार ॥ मग पारधई हणे स वर ॥ जाई व थाना मगवया ॥५७॥ ृ ृ याध शवनाम गज ते णीं ॥ कठ स दत अ ु नयनीं ॥ मागती ब वदळ खडोनी ॥ शवावर टाक तसे ॥५८॥ ं ु ु च हरां या पूजा चार ॥ संपूण झा या शवजागर ं ॥ स ज मींचीं पाप नधार ं ॥ मुळींहूनी भ म झाल ं ॥५९॥ त पव दशा मख ू ु ा ळत ॥ सपणा ज उदय पावत ॥ आर वण शोभा दसत ॥ त च ककम ाचीच ॥१६०॥ ु ंु ु त तसर मगी आल अक मात ॥ याध दे खला कृतांतवत ॥ हणे मा ं नको मज यथाथ ॥ बाळासी तन दे ऊ न येत मी ॥६१॥ ृ याध अ यंत हषभ रत ॥ हणे ह काय बोलेल शा ाथ ॥ तो ऐकावया हणत ॥ शपथ क न जाय तूं ॥६२॥ यावर मगी हणे याधा ऐक ॥ जो तणदाहक ामदाहक ॥ गो ा णांच क डी उदक ॥ ृ ृ यरोग यासी न सोडी ॥६३॥ ा णांची सदन ह रती दे ख ॥ यांचे पूवज रौरवीं पडती न:शंक ॥ मातपु ां बघडती एक ॥ ृ ीपु षां वघड पा डती ॥६४॥ दे व ा ण दे खोन ॥ खालती न क रती कदा मान ॥ नंद ती बोलती कठोर वचन ॥ यम कर चरण छे द तयांचे ॥६५॥ परव तु चोरावया दे ख ॥ अखंड ला वला अस र ख ॥ साधस मान मानी दःख ॥ यासी ने रोग तडका न सो डती ॥६६॥ ु ु पु तकचोर ते मुक होती ॥ र चोरांचे ने जाती ॥ अ यंत गव ते म हष होती ॥ पारधी नि ती येनप ी ॥६७॥ े भ ांची जो नंदा कर त ॥ याचे मुखीं दगधी घा णत ॥ जो माता पतयांसी ता डत ॥ लुला होत यालागीं ॥६८॥ ु जो अ यंत कृपण ॥ धन न वची अणु माण ॥ तो महाभजंग होऊन ॥ धसधसीत बैसे तेथ ॥६९॥ ु ु ु भ ेसी यती र आला ॥ तो जेण रता दव डला ॥ शव यावर जाण कोपला ॥ संतती संप ी द ध होय ॥१७०॥ ा ण बैसला पा ावर ॥ उठवू न घातला बाहे र ॥ याहू नयां दराचार ॥ दसरा कोणी नसे च ॥७१॥ ु ु ऐसा धमाधम ऐकोन ॥ पारधी स द बोले वचन ॥ व थळा जाई जलपान क नयां ॥ बाळांसी तन दे ऊन येई ॥७२॥ ऐस ऐको न मगी लवला ा ॥ गेल जल ाशन क नयां ॥ बाळ तनी लावू नयां ॥ त ृ कल ं तयेन ॥७३॥ ृ े वडील झाल सूत ॥ दसर पतीची कामना पुरवीत ॥ मगराज हणे आतां व रत ॥ जाऊ चला याधापासी ॥७४॥ ु ृ ं मग पाडसांस हत सवह ॥ याधापासीं आल ं लवलाह ं ॥ मग हणे ते समयी ॥ आधीं मज वधीं पार धया ॥७५॥ ृ ृ मगी हणे हा न हे वधी ॥ आ ह ं जाऊ पती या आधी ॥ पाडसे हणती ृ ं शु द ॥ आ हांसी वधीं पार धया ॥७६॥ यांची वचन ऐकतां ते णी ॥ याध स द झाला मनीं ॥ अ ुधारा लोट या नयनीं ॥ लागे चरणीं तयां या ॥७७॥ हणे ध य िजण माझ झाल ॥ तमचे न मुख न पण ऐ कल ॥ बहुतां ज मींज पाप जळाल ॥ पावन कल शर र ॥७८॥ ु े माता पता गु दे व ॥ तु ह च आतां माझे सव ॥ कचा संसार म या वाव ॥ पु कल सव लटक ॥७९॥ ै याध बोले ेमेक न ॥ आतां कधीं मी शवपद पावेन ॥ त अक मात आल वमान ॥ शवगण बैसले यावर ॥१८०॥
  15. पंचवदन दशभज ॥ या ांबर नेसले महाराज ॥ अ त तयांचे तेज ॥ द च ामाजी न समाये ॥८१॥ ु ु द य वा वाज वती क नर ॥ आलाप क रती व ाधर ॥ द य समनांचे संभार ॥ सुरगण वय वषती ॥८२॥ ु मगे पावल ं द य शर र ॥ याध कर सा ांग नम कार ॥ मुख हणे जयजय शव हर हर ॥ त शर रभाव पालटला ॥८३॥ ृ प रसीं झगडतां लोह होय सुवण ॥ तैस याध झाला दशभुज पंचवदन ॥ शवगणीं बहुत ाथन ॥ द य वमानीं बैस वला ॥८४॥ ू मग पावल ं द य शर र ॥ तींह वमानी आ ढल ं सम ॥ याधाची तु त वारं वार ॥ क रती सरगण सवह ॥८५॥ ृ ु याध नेला शवपदा ती ॥ तारामंडळी मगे राहती ॥ अ ा प गगनीं झळकती ॥ जन पाहती सव डोळां ॥८६॥ ृ स यवती दयर खाणी ॥ रसभ रत बो लला लंगपुराणीं ॥ त स जन ऐकोत दनरजनीं ॥ ानंदेक नयां ॥८७॥ ध य त शवरा त ॥ वण पातक द ध होत ॥ जे ह पठण क रती साव च ॥ ध य पु यवंत नर ते च ॥८८॥ स जन ोते नजर स य ॥ ाशन करोत शवल लामत ॥ नंदक असुर कत क बहुत ॥ यांसी ा कच ह ॥८९॥ ृ ु ै कलासनाथ ै ानंद ॥ तयांचे पदक हार सगंध ॥ तेथ ीधर अभंग ष पद ॥ ं जी घाल त शवनाम ॥१९०॥ ु शवल लामत ंथ चंड ॥ कदपुराण ृ ं ो रखंड प रसोत स जन अखंड ॥ तीया याय गोड हा ॥१९१॥ ॥ ीसांबसदा शवापणम तु ॥
  16. ी शवल लामत – अ याय तसरा ृ अ याय तसरा ीगणेशाय नमः ॥ जय जय शव मंगलधामा ॥ नजजन दयआरामा ॥ चराचरफलां कत मा ॥ नामाअनामातीत तूं ॥१॥ ु इं दरावरभ गनीमनरं जना ॥ षडा यजनका शफर वजदहना ॥ ानंदा भाललोचना ॥ भवभंजना परांतका ॥२॥ ु हे शव स ोजात वामघोरा ॥ त पु षा ईशान ई रा ॥ अधनार नटे रा ॥ ग रजारं गा गर शा ॥३॥ गंगाधरा भो गभषणा ॥ सव यापका अंधकमदना ॥ परमातीता नरं जना ॥ गुण य वर हत तूं ॥४॥ ू हे पय:फनधवल जग जीवना ॥ े तीया यायीं कृपा क न ॥ अगाध सरस आ यान ॥ शवरा म हमा वण वला ॥५॥ ु यावर कसा कथेची रचना ॥ वदवीं पंचमुकट पंचानना ॥ शौनका दकां मु नजनां ॥ सूत सांगे नै मषार यीं ॥६॥ ै ु इ वाकवंशीं महाराज ॥ म सहनाम भभुज ॥ वेदशा संप न सतेज ॥ दसरा बडौजा प ृ वीवर ॥७॥ ु ू ु पतनावसनक न ॥ घातल उव सी पालाण ॥ तापसय उगवला पण ॥ श भगण मावळल ं ॥८॥ ृ ू ू ु तो एकदां मगया याजक न ॥ नघाला धुरंधर चमू घेऊन ॥ घोरांदर वेशला व पन ॥ त सावज चहूंकडून ऊठल ं ॥९॥ ृ या वक र स वनकसर ॥ मग मगी वनगौ वानर वानर ॥ शशकजबुंकां या हार ॥ संहार त नपवर ॥१०॥ ृ े ृ ृ ृ चातक मयूर बदक ॥ क तर करं ग जवा द बडालक ॥ नकल राजहं स च वाक ॥ प ी ू ु ु ापद धांवती ॥११॥ नपे मा रले जीव बहुवस ॥ यांत एक मा रला रा स ॥ महाभयानक तामस ॥ गत ाण होऊ न प डयेला ॥१२॥ ृ याचा बंधु परम दा ण ॥ तो ल ता झाला दरोन ॥ मनीं काप य क पन ॥ हणे सड घेईन बंधूचा ॥१३॥ ु ू ू म सह पातला वनगरास ॥ असुर ध रला मानववेष ॥ कृ णवसनवे त वशेष ॥ दव कधीं घेऊ नयां ॥१४॥ ं नपासी भेटला येऊन ॥ हणे मी सूपशा ीं परम नपुण ॥ अ न शाका सुवास कर न ॥ दे खोन सुरनर भूलती ॥१५॥ ृ राय ठे वला पाकसदनीं ॥ यावर पत ृ तथी ल ुनी ॥ गु व स घरालागनी ॥ नप े आ णला ॥१६॥ ु ृ भोजना आला अ जजनंदन ॥ तो रा स काप य म न ॥ शाकांत नरमांस शजवन ॥ ऋषीस आणून वा ढल ॥१७॥ ू काल ानी व स मनी ॥ सकळ ऋषींमाजी शरोमणी ॥ काप य सकळ जाणनी ॥ म सह शा पला ॥१८॥ ु ु हणे तूं वनीं होई रा स ॥ जेथ आहार न मळे न:शेष ॥ मी ा ण मज नरमांस ॥ वा ढल कस पा पया ॥१९॥ ै राव हणे मी नेण सवथा ॥ बोलावा सूपशा ीं जाणता ॥ तंव तो पळाला ण न लगतां ॥ गु प वना आपु या ॥२०॥ राव कोपला दा ण ॥ हणे मज शा पले काय कारण ॥ मीह तज शापीन हणोय ॥ उदक कर ं घेतल ॥२१॥ ु तंव रायाची प राणी ॥ मदयंती नाम पु यखाणी ॥ प कवळ लाव यह रणी ॥ चातुय उपमे जेवीं शारदा ॥२२॥ े मदयंती हणे राया ॥ दर ू ीं पाह वचा नयां ॥ श य गु सी शापावया ॥ अ धकार नाह ं सवथा ॥२३॥ गु सी शाप दे तां नधार ं ॥ आपण नरक भोगावे क पवर ॥ राव हणे चतुर सुंदर ॥ बोलल स साच त ॥२४॥
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