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भारतीय विदेश नीति क
े उद्देश्य एवं सिद्धांत
द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय
एसोसिएट प्रोफ
े सर, राजनीति विज्ञान
क
ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बादलपुर, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश
उद्देश्य-
● भारतीय विदेश नीति क
े निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान
● संविधान में वर्णित विदेश नीति संबंधी आदर्शों का ज्ञान
● भारतीय विदेश नीति क
े उद्देश्यों का ज्ञान
● भारतीय विदेश नीति क
े प्रमुख सिद्धांतों का ज्ञान
● समसामयिक अंतरराष्ट्रीय राजनीति क
े संदर्भ में भारतीय विदेश नीति क
े बदलते
आयामों का ज्ञान
किसी भी अन्य देश क
े नीति निर्धारकों क
े समान भारतीय विदेश नीति क
े निर्धारकों ने भी
क
ु छ उद्देश्यों को सम्मुख रखकर नीति का निर्धारण किया। भारतीय विदेश नीति क
े
आदर्शों का उल्लेख संविधान क
े चौथे भाग में वर्णित नीति निर्देशक तत्वों क
े अंतर्गत भी
किया गया है। कोई भी सरकार इन आदर्शों को नजरअंदाज कर विदेश नीति का निर्धारण
नहीं कर सकती। वास्तव में भारतीय विदेश नीति क
े उद्देश्य नितांत मौलिक हैं और उन्हें
विभिन्न राजनीतिक दलों तथा जनसाधारण का समर्थन प्राप्त है तथा उन्हें राष्ट्रीय
नीति का आधार माना जा सकता है । संक्षेप में ,भारतीय विदेश नीति क
े उद्देश्यों को
निम्नांकित शीर्षकों क
े अंतर्गत वर्णित किया जा सकता है -
1. राष्ट्रीय हित-
सभी देशों की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना होता
है। भारतीय विदेश नीति भी इसका अपवाद नहीं है। राष्ट्र की अवधारणा अत्यंत व्यापक
है। भारत क
े राष्ट्रीय हितों में सम्मिलित है-
● सीमाओं की सुरक्षा एवं प्रादेशिक अखंडता की रक्षा
● सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला
● ऊर्जा सुरक्षा
● खाद्य सुरक्षा
● साइबर सुरक्षा
● वैश्विक स्तर की आधारभूत संरचना का निर्माण
● समानता पर आधारित एवं भेदभाव का विरोध करने वाले वैश्विक व्यापार का
विकास
● सतत एवं समावेशी विकास
● पर्यावरण संरक्षण हेतु समानता पर आधारित वैश्विक दायित्व का निर्धारण
● समसामयिक अंतरराष्ट्रीय वास्तविकता पर आधारित वैश्विक सरकार एवं
संस्थाओं में सुधार क
े प्रयास
● निशस्त्रीकरण
● क्षेत्रीय स्थायित्व
● अंतर्राष्ट्रीय शांति
वास्तव में भारत को विकास क
े पहिए को आगे बढ़ाने क
े लिए विदेशी निवेश की
आवश्यकता है। मेक इन इंडिया, कौशल भारत , स्मार्ट सिटी, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट,
डिजिटल इंडिया, स्वस्थ भारत जैसी चल रही योजनाओं क
े लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
आकर्षित करने तथा वित्तीय सहायता और तकनीकी हस्तांतरण क
े लिए विदेशी भागीदारों
की आवश्यकता है । हाल में भारतीय विदेश नीति क
े इस पक्ष पर अत्यंत जोर दिया गया
है, जिसक
े परिणाम स्वरूप राजनीतिक क
ू टनीति क
े साथ-साथ आर्थिक क
ू टनीति को
एकीकृ त करते हुए विकास की क
ू टनीति का विकास हुआ है।
दुनिया क
े विभिन्न भागों में भारतीय बड़ी संख्या में निवास कर रहे हैं। भारतीय विदेश
नीति का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य उनक
े हितों की रक्षा क
े साथ-साथ उनकी विदेशों में
उपस्थिति का देश को अधिकाधिक लाभ पहुंचाना है।
2. राष्ट्रीय एकीकरण एवं बाह्य हस्तक्षेप से मुक्ति-
यद्यपि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का विषय राष्ट्र की आंतरिक नीति का विषय है,
किं तु भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता विदेशी हस्तक्षेप से प्रभावित होती रही है,
अतः भारतीय विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य इस हस्तक्षेप को दूर कर समग्र भारतीय
भूभाग को भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं ,बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी लोगों को एकजुट
करना रहा है। भारत की स्वतंत्रता विभाजन का परिणाम थी और पाकिस्तान क
े स्थापना
ने भारतीय उपमहाद्वीप में घृणा का वातावरण उत्पन्न किया था। स्वतंत्रता से पूर्व अखंड
भारत एक आर्थिक इकाई था, जिसक
े विभाजन ने अनेक आर्थिक समस्याओं को जन्म
दिया। पाकिस्तान से जब लाखों हिंदू और सिख भारत में आए तो समस्या और गंभीर हो
गई। इन विस्थापितों का पुनर्वास करना बड़ी समस्या थी। कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा
समर्थित कबायलियो क
े आक्रमण से भारत को युद्ध का सामना करना पड़ा। वामपंथियों
द्वारा आह्वान की गई हड़तालों ने आर्थिक परिस्थिति को और गंभीर बना दिया । देश की
विशाल जनसंख्या क
े लिए भोजन, वस्त्र और आवास की पूर्ति कर पाना सरकार क
े लिए
एक बड़ी समस्या बन गई। सेना की दृष्टि से भी भारत बहुत सशक्त नहीं था। यद्यपि
इसमें संदेह नहीं कि भारत क
े पास प्राकृ तिक संसाधनों की कोई कमी नहीं थी और देश की
विशाल जनसंख्या देश को आर्थिक दृष्टि से मजबूत राष्ट्र बनाने की क्षमता रखती थी।
यही नहीं, 1947 में भारत से अंग्रेजों क
े चले जाने क
े बाद भी क
ु छ फ्रांसीसी और पुर्तगाली
बस्तियां रह गई थी। लंबे समय तक बातचीत क
े बाद फ्रांस ने पांडिचेरी और चंद्र नगर
जैसी बस्तियों को भारत को वापस कर दिया, किं तु पुर्तगाल ने गोवा आदि प्रदेशों को
स्वतंत्र करने से इंकार कर दिया, अतः 1961 में भारत को सैन्य कार्यवाही करक
े इन
बस्तियों का भारत में विलय करना पड़ा।
3. विश्व शांति की स्थापना-
विश्व शांति न क
े वल पारंपरिक रूप में भारत का आदर्श रहा है, बल्कि भारत का यह
विश्वास भी है कि विश्व शांति से भारत की सुरक्षा हो सक
े गी। पंडित नेहरू ने कहा था कि’
शांति क
े वल एक उत्सुक आशा नहीं है, यह तो एक आपातकालीन आवश्यकता भी है। ‘’
अंतरराष्ट्रीय संबंधों क
े विशेषज्ञ एम. एस. राजन ने इस संबंध में लिखा है कि ‘’ भारत जैसे
देश क
े लिए, जिसका बहुमुखी विकास एक आवश्यकता थी ,आंतरिक और विदेशी शांति
एक प्राथमिक उद्देश्य बन गया था। इसी कारण भारत ने विश्व शांति को अपनी नीति का
प्रथम उद्देश्य माना। ‘’
उल्लेखनीय है कि शांति का अर्थ क
े वल युद्ध न करना ही नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य
पारस्परिक तनाव को कम करना और उस समय चल रहे शीत युद्ध को समाप्त करना
था।
4. सहयोग एवं समानता पर आधारित विश्व व्यवस्था का निर्माण-
सहयोग पर आधारित व्यवस्था क
े निर्माण क
े उद्देश्य से प्रेरित होकर भारत ने संयुक्त
राष्ट्र संघ जैसी वैश्विक संस्था क
े सदस्यता प्राप्त की और सामूहिक सुरक्षा एवं विश्व शांति
क
े उसक
े उद्देश्य में आस्था व्यक्त की। किं तु भारत समय बीतने क
े साथ-साथ इस
संस्था क
े स्वरूप को लोकतांत्रिक बनाए जाने क
े लिए कृ तसंकल्प है। यही कारण है कि वह
संयुक्त राष्ट्र संघ क
े पुनर्गठन पर जोर देता रहा है, क्योंकि परिस्थितियों क
े बदलने क
े
बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ पर पारंपरिक रूप में दुनिया क
े बड़े राष्ट्रों का वर्चस्व बना हुआ
है एवं जनसंख्या तथा आर्थिक दृष्टि से सशक्त होने क
े बावजूद भारत, ब्राजील, जर्मनी
जैसे देशों को सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता प्राप्त नहीं हो सकी है। अंतरराष्ट्रीय
संस्था में इन महत्वपूर्ण विकासशील राष्ट्रों को समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सक
े ,
भारतीय विदेश नीति इस उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में क्रियाशील है। सहयोग एवं
समानता पर आधारित विश्व व्यवस्था क
े निर्माण क
े उद्देश्य से ही भारत ने स्वेच्छा से
ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहना स्वीकार किया है। राष्ट्रमंडल में शामिल देश पहले
ब्रिटिश उपनिवेश थे । भारत ने स्वयं को गणतंत्र घोषित करने क
े बाद भी राष्ट्रमंडल में बने
रहने का निर्णय किया। इसका उद्देश्य वैश्विक सहयोग क
े वातावरण को प्रोत्साहित
करना है।
5. निरस्त्रीकरण-
यह पारंपरिक धारणा रही है कि अस्त्र-शस्त्र युद्ध को जन्म देते हैं एवं युद्ध से विश्व
शांति भंग होती है। अतः यदि युद्ध को समाप्त करना है तो अस्त्र-शस्त्र को समाप्त
करना होगा। द्वितीय विश्वयुद्ध क
े बाद परमाण्विक शस्त्रों क
े विकास ने स्थिति को
और गंभीर बना दिया है, जिसका संज्ञान लेते हुए भारत ने पारंपरिक और परमाणु अस्त्रों
क
े विनाश को अपनी विदेश नीति का लक्ष्य घोषित किया है। हालांकि इस क्षेत्र में भी
भारत समानता का पक्षधर है और यही कारण है कि 1968 में हुई परमाणु अप्रसार संधि
पर हस्ताक्षर करने से भारत मना करता रहा है, क्योंकि वह इस संधि को भेदभाव पूर्ण
मानता है। इस संधि क
े अनुसार परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र परमाणु शक्ति क
े विकास
की तकनीक की जानकारी अन्य राष्ट्रों को नहीं देंगे। भारत की मांग है कि परमाणु
तकनीक विकासशील राष्ट्रों क
े विकास हेतु हस्तांतरित की जाए, किं तु यह सुनिश्चित
किया जाए कि वे इसका प्रयोग परमाणु शस्त्रों क
े विकास में न कर सक
े । साथ ही परमाणु
शक्ति संपन्न राष्ट्रों को अपने परमाणु हथियारों को नष्ट करक
े दुनिया क
े सामने उदाहरण
प्रस्तुत करना होगा, तभी वास्तविक निशस्त्रीकरण संभव हो सक
े गा।
6. सैन्य गठबंधन से दूरी एवं क्षेत्रीय सहयोग -संबंधों का विकास -
विश्व शांति एवं निरस्त्रीकरण क
े उद्देश्य को प्राप्त करने क
े लिए भारत ने सैन्य
गठबंधनों से दूर रहना अपनी विदेश नीति का उद्देश्य निर्धारित किया। दुनिया क
े
विभिन्न राष्ट्रों क
े साथ महत्वपूर्ण संबंधों का विकास उसकी विदेश नीति का लक्ष्य है। इस
उद्देश्य की प्राप्ति क
े निमित्त ही उसने ‘गुटनिरपेक्षता’ एवं ‘पंचशील’ क
े सिद्धांतों को
स्वीकार किया। यद्यपि चीन और पाकिस्तान ने भारत को युद्ध क
े लिए विवश किया,
फिर भी भारत सभी देशों क
े साथ महत्वपूर्ण संबंधों क
े विकास क
े प्रति प्रतिबद्ध रहा है।
‘आसियान’ एवं ‘सार्क ’ जैसे संगठनों क
े साथ भारत क
े संबंध इसी उद्देश्य क
े निमित्त
विकसित किए गए हैं ।
संक्षेप में भारतीय विदेश नीति, जैसा कि भूतपूर्व राजदूत अजय मल्होत्रा ने बताया, क
े 4
मुख्य उद्देश्य बताये जा सकते हैं-
1. पारंपरिक और गैर पारंपरिक सुरक्षा धमकियों से भारत की रक्षा करना।
2 . एक ऐसा ही परिवेश निर्मित करना जो भारत में समावेशी विकास क
े अनुक
ू ल हो
ताकि विकास का लाभ निर्धनतम व्यक्तियों को भी मिल सक
े ।
3. यह सुनिश्चित करना कि भारत की आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सुनी जा सक
े और
भारत विश्व जनमत को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों जैसे- आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन,
निरस्त्रीकरण, संयुक्त राष्ट्र क
े पुनर्गठन पर दुनिया क
े राष्ट्रों को प्रभावित कर सक
े ।
4. भारतीय प्रवासियों क
े हितों की रक्षा एवं राष्ट्रहित में उनका प्रयोग।
भारतीय विदेश नीति क
े सिद्धांत
यद्यपि गतिशील विश्व में भारत की विदेश नीति लचीली एवं व्यावहारिक है, जो बदलती
परिस्थितियों क
े अनुसार सामंजस्य करने की क्षमता रखती है, किं तु विदेश नीति क
े क
ु छ
आधारभूत सिद्धांत ऐसे हैं जिनक
े साथ समझौता नहीं किया जा सकता। ये सिद्धांत
निम्नवत है-
1. पंचशील-
पंचशील अर्थात 5 गुणों वाली नीति को पहली बार भारत ने चीन क
े तिब्बत क्षेत्र क
े साथ
व्यापारिक समझौते क
े अंतर्गत अपनाया था, जो 29 अप्रैल 1954 को हुआ था। बाद में
यह नीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों क
े संचालन का आधार बनी। पंचशील क
े पांच सिद्धांत है-
● पारस्परिक संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान
● अनाक्रमण
● अहस्तक्षेप
● समानता एवं पारस्परिक लाभ
● शांतिपूर्ण सह अस्तित्व
‘ वसुधैव क
ु टुम्बकम’ की धारणा भारत क
े पारंपरिक मूल्यों का अंग रही है और शांतिपूर्ण
सह अस्तित्व का भाव भी इसी धारणा से प्रेरित है, जिसक
े अंतर्गत यह विश्वास किया
जाता है कि संपूर्ण दुनिया एक परिवार क
े समान है और दुनिया क
े विभिन्न राष्ट्र इस
व्यापक परिवार क
े अंग क
े रूप में शांति और सद्भावना क
े साथ रहने क
े अधिकारी हैं।
भारतीय विदेश नीति क
े निर्धारक एवं संचालक पारस्परिक लाभ पर आधारित साथ-साथ
कार्य करने और विकास करने की नीति में विश्वास रखते हैं।
2. विचारधारा क
े प्रसार का विरोध-
यद्यपि भारत स्वयं लोकतंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा में विश्वास रखता है,
किं तु वह किसी विचारधारा को किसी अन्य राष्ट्र क
े लोगों पर थोपने का विरोधी है। जैसा
कि शीत युद्ध क
े दौर में अमेरिका द्वारा इराक ,लीबिया, सीरिया में एवं सोवियत संघ क
े
द्वारा जॉर्जिया एवं यूक्र
े न में हस्तक्षेप करक
े किया गया। भारत सभी तरह की
विचारधाराओं पर आधारित सरकारों क
े साथ संबंध स्थापित करने में सक्षम है, चाहे वे
जनतांत्रिक हो ,राष्ट्रीय हो या सैनिक तानाशाही से युक्त हो। भारत का विश्वास है कि
किसी देश की सरकार को चुनने और उसे हटाने का अधिकार वहां क
े लोगों को होना चाहिए
और यही कारण है कि भारत ने किसी दूसरे राष्ट् पर भारत जैसी विचारधारा को अपनाने
क
े लिए दबाव नहीं डाला। हालांकि इसक
े साथ- साथ भारत ने निसंकोच उन देशों में
प्रजातंत्र को प्रोत्साहित किया जहां इसकी संभाव्यता दिखाई दी एवं उन देशों में
जनतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाने और क्षमता- निर्माण क
े लिए वहां की सरकार की
सहमति से आगे बढ़कर सहायता भी प्रदान की। अफगानिस्तान इसका सबसे अच्छा
उदाहरण है।
3. संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति स्थापना की कार्यवाही में सहयोग-
भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का मौलिक सदस्य रहा है और किसी राष्ट्र क
े विरुद्ध एक तरफा
प्रतिबंध या सैनिक कार्यवाही क
े विरुद्ध होने क
े बावजूद अंतर्राष्ट्रीय शांति क
े पक्ष में
संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति स्थापना की कार्यवाहियों मे उसने सदैव से सहयोग दिया है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की अंतरराष्ट्रीय सहमति पर आधारित शांति स्थापना की
कार्यवाही में अब तक किसी राष्ट्र द्वारा दिया जाने वाला सबसे बड़ा सैनिक सहयोग
195000 सैनिकों क
े साथ दिया है, 49 से अधिक कार्यवाहियों में भाग लिया है एवं 168
भारतीय शांति स्थापक संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में शहादत दे चुक
े हैं।
4. हस्तक्षेप [Interference] क
े स्थान पर अतिक्रमण [ Intervention] की नीति का
अनुसरण-
भारत किसी राष्ट्र क
े अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने की नीति में विश्वास नहीं रखता,
किं तु यदि किसी राष्ट्र द्वारा जानबूझकर या अनजाने में किया गया कृ त्य राष्ट्रीय हितों
को प्रभावित करता है, तो भारत त्वरित एवं समय बद्ध अतिक्रमण से पीछे नहीं हटा है ।
अतिक्रमण, हस्तक्षेप से इस दृष्टि से भिन्न है कि यह किसी राष्ट्र की सरकार की प्रार्थना
पर किया जाता है, जबकि हस्तक्षेप कोई राष्ट्र स्वेच्छा से बिना संबंधित राष्ट्र की सरकार
की अनुमति क
े करता है। भारत ने 1971 में बांग्लादेश में, 1987 -90 श्रीलंका में और
1988 में मालदीव में राष्ट्रीय हितों की रक्षा क
े निमित्त अतिक्रमण किया।
5. उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का विरोध-
भारत स्वयं लंबे समय तक उपनिवेशवाद का शिकार रहा है। स्वतंत्रता क
े बाद उसने
उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद क
े प्रत्येक रूप का विरोध करने का निर्णय लिया।
भारतीय विदेश नीति निर्माताओं ने एशिया और अफ्रीका क
े पराधीन प्रदेशों क
े स्वतंत्रता
संग्राम में उनका पूरा समर्थन किया। इंडोनेशिया नीदरलैंड का उपनिवेश था जिस पर
द्वितीय विश्व युद्ध क
े दौरान जापान ने कब्जा कर लिया था। जापान की पराजय क
े बाद
नीदरलैंड ने पुनः उस पर अपनी सत्ता स्थापित करना चाहा जिसका भारत ने कड़ा विरोध
किया और संयुक्त राष्ट्र संघ क
े मंच पर भी उसकी स्वतंत्रता क
े लिए अपील की। हिंद
चीन, मलाया,लीबिया , अल्जीरिया,ट्यूनीशिया, घाना आदि देशों क
े स्वतंत्रता संग्राम का
भारत ने नैतिक समर्थन किया।
वर्तमान में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद अपने पारंपरिक रूप में समाप्त हो चुक
े हैं,
किन्तु बड़े राष्ट्रों द्वारा विकासशील राष्ट्रों का आर्थिक शोषण उपनिवेशवाद का नया
चेहरा है, जिसे नव उपनिवेशवाद कहा जाता है। भारत हर प्रकार क
े उपनिवेशवाद का
विरोध करता है और उसका यह विश्वास है कि आर्थिक दासता से मुक्ति उतनी ही
आवश्यक है, जितनी राजनीतिक दासता से।
6. आक्रामकता क
े स्थान पर रचनात्मकता में संलग्नता -
भारत आक्रमण क
े स्थान पर रचनात्मक रूप से संलग्न होने की नीति का पक्षधर है,
उसका विश्वास है कि आक्रामकता एवं भिड़ंत की नीति मामलों को उलझाती है। किसी
भी युद्ध क
े बाद अंत में युद्ध रत राष्ट्र शांति वार्ता क
े लिए राजी होते हैं, किं तु तब तक
बहुत ज्यादा नुकसान हो चुका होता है। भारत-पाकिस्तान संबंधों को दृष्टिगत रखते हुए
यह नीति कारगर साबित हो सकती है।भारत क
े संविधान निर्माता भी इस बात क
े लिए
उत्सुक थे कि भविष्य मे देश की सभी सरकारों क
े द्वारा विवादों क
े शांतिपूर्ण समाधान
की चेष्टा की जाए और इसीलिए अनुच्छेद 51 में यह निर्देश दिया गया कि सरकार
अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रयास करेगी। स्वयं नेहरू ने भी
कहा था कि दुनिया आज जिस स्थिति में पहुंच गई है, उसमें चाहे एक पक्ष दूसरे से काफी
कमजोर ही क्यों न हो , प्रभाव दोनों पर लगभग एक जैसा ही होगा। इसका कारण यह है
कि विनाश क
े अस्त्र अत्यधिक भयंकर हो गए हैं कि वे छोटे और बड़े सभी देशों को एक
जैसे संकट में डाल सकते हैं। किं तु रचनात्मक संलग्नता की नीति को भारत की
कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। कई अवसरों पर भारत क
े धैर्य की परीक्षा ली गई है।
फरवरी 2019 में बालाकोट क
े आतंकवादी कैं प पर हवाई हमला करक
े भारत ने पुलवामा
आतंकी हमले का सशस्त्र विरोध कर यह संदेश दिया कि भारत की शान्तिप्रियता उसकी
कमजोरी नहीं है ।
7. वैश्विक मुद्दों पर वैश्विक सहमति में विश्वास-
भारत की विदेश नीति संपूर्ण विश्व से संबंधित मुद्दों एवं समस्याओं का समाधान
व्यापक विचार विमर्श एवं दुनिया क
े सभी राष्ट्रों की सहमति क
े आधार पर किए जाने की
नीति पर आधारित है। वर्तमान में महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दे हैं- वैश्विक व्यापार, जलवायु
परिवर्तन, आतंकवाद , बौद्धिक संपदा अधिकार एवं वैश्विक सरकार। इन सभी मुद्दों पर
कोई एक तरफा समाधान ना निकाला जाए, बल्कि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आपसी
विचार विमर्श क
े द्वारा राष्ट्रों की सहमति क
े आधार पर संभावित समाधान ढूंढे जाने
चाहिए, भारत ऐसा विश्वास रखता है। यही कारण है कि भारत वैश्विक व्यापार या
संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे मंचों पर बड़े राष्ट्रों क
े वर्चस्व का विरोधी रहा है और सतत विकास
हेतु न्याय पूर्ण आर्थिक एवं तकनीकी हस्तांतरण पर जोर देता रहा है।
8. गुजराल सिद्धांत-
देवगौड़ा सरकार में विदेश मंत्री रहे श्री इंद्र क
ु मार गुजराल ने इस सिद्धांत का आरंभ
किया था। 1996 में प्रतिपादित इस सिद्धांत का सारांश यह है कि दक्षिण एशिया में
सबसे बड़ा देश भारत उपमहाद्वीप क
े पड़ोसी देशों को अपनी इच्छा से क
ु छ रियायतें दे
और भारत अन्य देशों क
े लोगों क
े मध्य संबंध स्थापित किए जाए। भारत और
पाकिस्तान की जनता में सीधे संबंध स्थापित होने पर एक ऐसा वातावरण बनेगा जिसमें
आपसी मतभेदों को आसानी से सुलझाया जा सक
े गा। इसी सिद्धांत क
े अंतर्गत 1996 क
े
अंत में भारत ने बांग्लादेश क
े साथ गंगा जल क
े बंटवारे क
े प्रश्न पर महत्वपूर्ण समझौता
किया जिसक
े अनुसार अब बांग्लादेश पानी की कमी वाले मौसम में 1977 क
े समझौते की
तुलना में अधिक पानी ले सक
े गा। इस समय भारत और चीन क
े मध्य हुआ भी एक
समझौता हुआ जिसका उद्देश्य दोनों देशों क
े द्वारा पारस्परिक विश्वास की स्थापना क
े
उपाय करना था।
मुख्य शब्द-
विदेश नीति, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद, शीत युद्ध, पंचशील, गुजराल सिद्धांत
REFERENCES AND SUGGESTED READINGS
1. Achal Malhotra, India’s Foreign
Policy;2014-2019,Landmarks,Achievements and Challenges
ahead,distinguished lecture, Central University of
Rajasthan,July 22,2019,mea.gov.in
2. India”s Foreign Policy;2014-19;Landmarks,Ministry of External
Affairs,http;//www.mea.gov.in
3. Five Principles/Indian History/
Britannica,http//www.britannica.com
4. Mischa Hansel-Raph,http//www.routledge.com
5. S. Jaishankar,The India Way;Strategies for an UncertainWorld
Ebook,2020
6. Shivshankar Menon,Choices;Incide the Making of India’s
Foreign Policy,2016
प्रश्न-
निबंधात्मक-
1. किन उद्देश्यों की प्राप्ति क
े लिए भारतीय विदेश नीति का निर्माण किया गया,
विवेचना कीजिए।
2. भारतीय विदेश नीति क
े प्रमुख सिद्धांतों की विवेचना कीजिए।
वस्तुनिष्ठ_
1. प्राथमिकता क
े आधार पर भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय हित क्या है?
[ अ ] पड़ोसी देशों से मधुर संबंध
[ ब ] सतत विकास
[ स ] अंतर्राष्ट्रीय शांति
[ द ] सीमाओं की सुरक्षा एवं प्रादेशिक अखंडता
2. पड़ोसी राज्यों क
े साथ संबंधों क
े विषय में भारतीय विदेश नीति का कौन सा सिद्धांत
प्रतिपादित किया गया?
[ अ ] वाजपेयी सिद्धांत [अभिलाष ब ] नेहरू सिद्धांत [ स ] गुजराल सिद्धांत [ द ]
देवगौड़ा सिद्धांत
3. निम्नांकित में से क्या ‘पंचशील’ का अंग नहीं है?
[ अ ] अनाक्रमण [ ब ] अहस्तक्षेप [ स ] राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान [ द ]
निरस्त्रीकरण
4. भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत क्यों
बनाया?
[ अ ] राष्ट्रीय विकास हेतु दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने क
े उद्देश्य से
[ ब ] विश्व शांति क
े आदर्श में विश्वास रखने क
े कारण
[ स ] विकासशील राष्ट्रों का नेतृत्व प्राप्त करने क
े लिए
[ द ] क्षेत्रीय विकास को ध्यान में रखकर
5. भारत की विदेश नीति वैश्विक समस्याओं को किस आधार पर सुलझाने की पक्षधर
रही है?
[ अ ] महाशक्तियों की पहल
[ ब ] संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता
[ स ] वैश्विक सहमति
[ द ] दक्षिण क
े राष्ट्रों की पहल
6 अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने संबंधी निर्देश संविधान क
े किस
अनुच्छेद में दिए गए हैं-
[अ ] अनुच्छेद 52 [ ब ] अनुच्छेद 51 [ स ] अनुच्छेद 31 [ द ] अनुच्छेद 30
7. समसामयिक दौर में भारतीय विदेश नीति क
े प्रमुख उद्देश्यों में क्या सम्मिलित नहीं
है?
[ अ ] प्रवासियों क
े हितों की रक्षा [ ब ] सतत विकास क
े अनुक
ू ल अंतर्राष्ट्रीय वातावरण
का निर्माण [ स ] यह सुनिश्चित करना कि भारत की आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सुनी
जा सक
े [ द ] परमाणु शक्ति का विस्तार
8. हस्तक्षेप की नीति का विरोधी होने क
े बावजूद भारत ने किन देशों में वहां की सरकारों
क
े आग्रह पर हस्तक्षेप[ Intervene] किया है?
[ अ ] श्रीलंका [ ब ] बांग्लादेश [ स ] मालदीव [ द ] उपर्युक्त सभी
9. गुटनिरपेक्षता की नीति का समर्थक होने क
े बावजूद भारत की विदेश नीति का झुकाव
अतीत में किसकी तरफ रहा है?
[ अ ] अमेरिकी गुट [ ब ] सोवियत गुट [स ] चीनीगुट [ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं
10. पड़ोसी राष्ट्रों में से कौन सा देश हालिया वर्षों में भारत क
े सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी क
े रूप
में उभरा है ?
[ अ ] पाकिस्तान [ ब ] चीन [ स ] बांग्लादेश [ द ] अफगानिस्तान
11. निरस्त्रीकरण की नीति का समर्थक होने क
े बावजूद भारत ने किस संधि पर हस्ताक्षर
नहीं किए हैं?
[ अ ] परमाणु परीक्षण संधि [ ब ] परमाणु प्रसार निषेध संधि [ स ] परमाणु तकनीक
हस्तांतरण संधि [ द ] उपर्युक्त सभी
उत्तर- 1. द 2. स 3. द 4.अ 5.स 6. ब 7. द 8. द 9. ब 10. ब 11. ब

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भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य एवं सिद्धांत

  • 1. भारतीय विदेश नीति क े उद्देश्य एवं सिद्धांत द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय एसोसिएट प्रोफ े सर, राजनीति विज्ञान क ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय बादलपुर, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश उद्देश्य- ● भारतीय विदेश नीति क े निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान ● संविधान में वर्णित विदेश नीति संबंधी आदर्शों का ज्ञान ● भारतीय विदेश नीति क े उद्देश्यों का ज्ञान ● भारतीय विदेश नीति क े प्रमुख सिद्धांतों का ज्ञान ● समसामयिक अंतरराष्ट्रीय राजनीति क े संदर्भ में भारतीय विदेश नीति क े बदलते आयामों का ज्ञान किसी भी अन्य देश क े नीति निर्धारकों क े समान भारतीय विदेश नीति क े निर्धारकों ने भी क ु छ उद्देश्यों को सम्मुख रखकर नीति का निर्धारण किया। भारतीय विदेश नीति क े आदर्शों का उल्लेख संविधान क े चौथे भाग में वर्णित नीति निर्देशक तत्वों क े अंतर्गत भी किया गया है। कोई भी सरकार इन आदर्शों को नजरअंदाज कर विदेश नीति का निर्धारण नहीं कर सकती। वास्तव में भारतीय विदेश नीति क े उद्देश्य नितांत मौलिक हैं और उन्हें विभिन्न राजनीतिक दलों तथा जनसाधारण का समर्थन प्राप्त है तथा उन्हें राष्ट्रीय नीति का आधार माना जा सकता है । संक्षेप में ,भारतीय विदेश नीति क े उद्देश्यों को निम्नांकित शीर्षकों क े अंतर्गत वर्णित किया जा सकता है - 1. राष्ट्रीय हित- सभी देशों की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना होता है। भारतीय विदेश नीति भी इसका अपवाद नहीं है। राष्ट्र की अवधारणा अत्यंत व्यापक है। भारत क े राष्ट्रीय हितों में सम्मिलित है- ● सीमाओं की सुरक्षा एवं प्रादेशिक अखंडता की रक्षा
  • 2. ● सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला ● ऊर्जा सुरक्षा ● खाद्य सुरक्षा ● साइबर सुरक्षा ● वैश्विक स्तर की आधारभूत संरचना का निर्माण ● समानता पर आधारित एवं भेदभाव का विरोध करने वाले वैश्विक व्यापार का विकास ● सतत एवं समावेशी विकास ● पर्यावरण संरक्षण हेतु समानता पर आधारित वैश्विक दायित्व का निर्धारण ● समसामयिक अंतरराष्ट्रीय वास्तविकता पर आधारित वैश्विक सरकार एवं संस्थाओं में सुधार क े प्रयास ● निशस्त्रीकरण ● क्षेत्रीय स्थायित्व ● अंतर्राष्ट्रीय शांति वास्तव में भारत को विकास क े पहिए को आगे बढ़ाने क े लिए विदेशी निवेश की आवश्यकता है। मेक इन इंडिया, कौशल भारत , स्मार्ट सिटी, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, डिजिटल इंडिया, स्वस्थ भारत जैसी चल रही योजनाओं क े लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने तथा वित्तीय सहायता और तकनीकी हस्तांतरण क े लिए विदेशी भागीदारों की आवश्यकता है । हाल में भारतीय विदेश नीति क े इस पक्ष पर अत्यंत जोर दिया गया है, जिसक े परिणाम स्वरूप राजनीतिक क ू टनीति क े साथ-साथ आर्थिक क ू टनीति को एकीकृ त करते हुए विकास की क ू टनीति का विकास हुआ है। दुनिया क े विभिन्न भागों में भारतीय बड़ी संख्या में निवास कर रहे हैं। भारतीय विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य उनक े हितों की रक्षा क े साथ-साथ उनकी विदेशों में उपस्थिति का देश को अधिकाधिक लाभ पहुंचाना है। 2. राष्ट्रीय एकीकरण एवं बाह्य हस्तक्षेप से मुक्ति-
  • 3. यद्यपि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का विषय राष्ट्र की आंतरिक नीति का विषय है, किं तु भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता विदेशी हस्तक्षेप से प्रभावित होती रही है, अतः भारतीय विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य इस हस्तक्षेप को दूर कर समग्र भारतीय भूभाग को भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं ,बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी लोगों को एकजुट करना रहा है। भारत की स्वतंत्रता विभाजन का परिणाम थी और पाकिस्तान क े स्थापना ने भारतीय उपमहाद्वीप में घृणा का वातावरण उत्पन्न किया था। स्वतंत्रता से पूर्व अखंड भारत एक आर्थिक इकाई था, जिसक े विभाजन ने अनेक आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया। पाकिस्तान से जब लाखों हिंदू और सिख भारत में आए तो समस्या और गंभीर हो गई। इन विस्थापितों का पुनर्वास करना बड़ी समस्या थी। कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा समर्थित कबायलियो क े आक्रमण से भारत को युद्ध का सामना करना पड़ा। वामपंथियों द्वारा आह्वान की गई हड़तालों ने आर्थिक परिस्थिति को और गंभीर बना दिया । देश की विशाल जनसंख्या क े लिए भोजन, वस्त्र और आवास की पूर्ति कर पाना सरकार क े लिए एक बड़ी समस्या बन गई। सेना की दृष्टि से भी भारत बहुत सशक्त नहीं था। यद्यपि इसमें संदेह नहीं कि भारत क े पास प्राकृ तिक संसाधनों की कोई कमी नहीं थी और देश की विशाल जनसंख्या देश को आर्थिक दृष्टि से मजबूत राष्ट्र बनाने की क्षमता रखती थी। यही नहीं, 1947 में भारत से अंग्रेजों क े चले जाने क े बाद भी क ु छ फ्रांसीसी और पुर्तगाली बस्तियां रह गई थी। लंबे समय तक बातचीत क े बाद फ्रांस ने पांडिचेरी और चंद्र नगर जैसी बस्तियों को भारत को वापस कर दिया, किं तु पुर्तगाल ने गोवा आदि प्रदेशों को स्वतंत्र करने से इंकार कर दिया, अतः 1961 में भारत को सैन्य कार्यवाही करक े इन बस्तियों का भारत में विलय करना पड़ा। 3. विश्व शांति की स्थापना- विश्व शांति न क े वल पारंपरिक रूप में भारत का आदर्श रहा है, बल्कि भारत का यह विश्वास भी है कि विश्व शांति से भारत की सुरक्षा हो सक े गी। पंडित नेहरू ने कहा था कि’ शांति क े वल एक उत्सुक आशा नहीं है, यह तो एक आपातकालीन आवश्यकता भी है। ‘’ अंतरराष्ट्रीय संबंधों क े विशेषज्ञ एम. एस. राजन ने इस संबंध में लिखा है कि ‘’ भारत जैसे देश क े लिए, जिसका बहुमुखी विकास एक आवश्यकता थी ,आंतरिक और विदेशी शांति
  • 4. एक प्राथमिक उद्देश्य बन गया था। इसी कारण भारत ने विश्व शांति को अपनी नीति का प्रथम उद्देश्य माना। ‘’ उल्लेखनीय है कि शांति का अर्थ क े वल युद्ध न करना ही नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य पारस्परिक तनाव को कम करना और उस समय चल रहे शीत युद्ध को समाप्त करना था। 4. सहयोग एवं समानता पर आधारित विश्व व्यवस्था का निर्माण- सहयोग पर आधारित व्यवस्था क े निर्माण क े उद्देश्य से प्रेरित होकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी वैश्विक संस्था क े सदस्यता प्राप्त की और सामूहिक सुरक्षा एवं विश्व शांति क े उसक े उद्देश्य में आस्था व्यक्त की। किं तु भारत समय बीतने क े साथ-साथ इस संस्था क े स्वरूप को लोकतांत्रिक बनाए जाने क े लिए कृ तसंकल्प है। यही कारण है कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ क े पुनर्गठन पर जोर देता रहा है, क्योंकि परिस्थितियों क े बदलने क े बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ पर पारंपरिक रूप में दुनिया क े बड़े राष्ट्रों का वर्चस्व बना हुआ है एवं जनसंख्या तथा आर्थिक दृष्टि से सशक्त होने क े बावजूद भारत, ब्राजील, जर्मनी जैसे देशों को सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता प्राप्त नहीं हो सकी है। अंतरराष्ट्रीय संस्था में इन महत्वपूर्ण विकासशील राष्ट्रों को समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सक े , भारतीय विदेश नीति इस उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में क्रियाशील है। सहयोग एवं समानता पर आधारित विश्व व्यवस्था क े निर्माण क े उद्देश्य से ही भारत ने स्वेच्छा से ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहना स्वीकार किया है। राष्ट्रमंडल में शामिल देश पहले ब्रिटिश उपनिवेश थे । भारत ने स्वयं को गणतंत्र घोषित करने क े बाद भी राष्ट्रमंडल में बने रहने का निर्णय किया। इसका उद्देश्य वैश्विक सहयोग क े वातावरण को प्रोत्साहित करना है। 5. निरस्त्रीकरण- यह पारंपरिक धारणा रही है कि अस्त्र-शस्त्र युद्ध को जन्म देते हैं एवं युद्ध से विश्व शांति भंग होती है। अतः यदि युद्ध को समाप्त करना है तो अस्त्र-शस्त्र को समाप्त करना होगा। द्वितीय विश्वयुद्ध क े बाद परमाण्विक शस्त्रों क े विकास ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है, जिसका संज्ञान लेते हुए भारत ने पारंपरिक और परमाणु अस्त्रों क े विनाश को अपनी विदेश नीति का लक्ष्य घोषित किया है। हालांकि इस क्षेत्र में भी
  • 5. भारत समानता का पक्षधर है और यही कारण है कि 1968 में हुई परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से भारत मना करता रहा है, क्योंकि वह इस संधि को भेदभाव पूर्ण मानता है। इस संधि क े अनुसार परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र परमाणु शक्ति क े विकास की तकनीक की जानकारी अन्य राष्ट्रों को नहीं देंगे। भारत की मांग है कि परमाणु तकनीक विकासशील राष्ट्रों क े विकास हेतु हस्तांतरित की जाए, किं तु यह सुनिश्चित किया जाए कि वे इसका प्रयोग परमाणु शस्त्रों क े विकास में न कर सक े । साथ ही परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों को अपने परमाणु हथियारों को नष्ट करक े दुनिया क े सामने उदाहरण प्रस्तुत करना होगा, तभी वास्तविक निशस्त्रीकरण संभव हो सक े गा। 6. सैन्य गठबंधन से दूरी एवं क्षेत्रीय सहयोग -संबंधों का विकास - विश्व शांति एवं निरस्त्रीकरण क े उद्देश्य को प्राप्त करने क े लिए भारत ने सैन्य गठबंधनों से दूर रहना अपनी विदेश नीति का उद्देश्य निर्धारित किया। दुनिया क े विभिन्न राष्ट्रों क े साथ महत्वपूर्ण संबंधों का विकास उसकी विदेश नीति का लक्ष्य है। इस उद्देश्य की प्राप्ति क े निमित्त ही उसने ‘गुटनिरपेक्षता’ एवं ‘पंचशील’ क े सिद्धांतों को स्वीकार किया। यद्यपि चीन और पाकिस्तान ने भारत को युद्ध क े लिए विवश किया, फिर भी भारत सभी देशों क े साथ महत्वपूर्ण संबंधों क े विकास क े प्रति प्रतिबद्ध रहा है। ‘आसियान’ एवं ‘सार्क ’ जैसे संगठनों क े साथ भारत क े संबंध इसी उद्देश्य क े निमित्त विकसित किए गए हैं । संक्षेप में भारतीय विदेश नीति, जैसा कि भूतपूर्व राजदूत अजय मल्होत्रा ने बताया, क े 4 मुख्य उद्देश्य बताये जा सकते हैं- 1. पारंपरिक और गैर पारंपरिक सुरक्षा धमकियों से भारत की रक्षा करना। 2 . एक ऐसा ही परिवेश निर्मित करना जो भारत में समावेशी विकास क े अनुक ू ल हो ताकि विकास का लाभ निर्धनतम व्यक्तियों को भी मिल सक े । 3. यह सुनिश्चित करना कि भारत की आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सुनी जा सक े और भारत विश्व जनमत को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों जैसे- आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, निरस्त्रीकरण, संयुक्त राष्ट्र क े पुनर्गठन पर दुनिया क े राष्ट्रों को प्रभावित कर सक े । 4. भारतीय प्रवासियों क े हितों की रक्षा एवं राष्ट्रहित में उनका प्रयोग।
  • 6. भारतीय विदेश नीति क े सिद्धांत यद्यपि गतिशील विश्व में भारत की विदेश नीति लचीली एवं व्यावहारिक है, जो बदलती परिस्थितियों क े अनुसार सामंजस्य करने की क्षमता रखती है, किं तु विदेश नीति क े क ु छ आधारभूत सिद्धांत ऐसे हैं जिनक े साथ समझौता नहीं किया जा सकता। ये सिद्धांत निम्नवत है- 1. पंचशील- पंचशील अर्थात 5 गुणों वाली नीति को पहली बार भारत ने चीन क े तिब्बत क्षेत्र क े साथ व्यापारिक समझौते क े अंतर्गत अपनाया था, जो 29 अप्रैल 1954 को हुआ था। बाद में यह नीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों क े संचालन का आधार बनी। पंचशील क े पांच सिद्धांत है- ● पारस्परिक संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान ● अनाक्रमण ● अहस्तक्षेप ● समानता एवं पारस्परिक लाभ ● शांतिपूर्ण सह अस्तित्व ‘ वसुधैव क ु टुम्बकम’ की धारणा भारत क े पारंपरिक मूल्यों का अंग रही है और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का भाव भी इसी धारणा से प्रेरित है, जिसक े अंतर्गत यह विश्वास किया जाता है कि संपूर्ण दुनिया एक परिवार क े समान है और दुनिया क े विभिन्न राष्ट्र इस व्यापक परिवार क े अंग क े रूप में शांति और सद्भावना क े साथ रहने क े अधिकारी हैं। भारतीय विदेश नीति क े निर्धारक एवं संचालक पारस्परिक लाभ पर आधारित साथ-साथ कार्य करने और विकास करने की नीति में विश्वास रखते हैं। 2. विचारधारा क े प्रसार का विरोध-
  • 7. यद्यपि भारत स्वयं लोकतंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा में विश्वास रखता है, किं तु वह किसी विचारधारा को किसी अन्य राष्ट्र क े लोगों पर थोपने का विरोधी है। जैसा कि शीत युद्ध क े दौर में अमेरिका द्वारा इराक ,लीबिया, सीरिया में एवं सोवियत संघ क े द्वारा जॉर्जिया एवं यूक्र े न में हस्तक्षेप करक े किया गया। भारत सभी तरह की विचारधाराओं पर आधारित सरकारों क े साथ संबंध स्थापित करने में सक्षम है, चाहे वे जनतांत्रिक हो ,राष्ट्रीय हो या सैनिक तानाशाही से युक्त हो। भारत का विश्वास है कि किसी देश की सरकार को चुनने और उसे हटाने का अधिकार वहां क े लोगों को होना चाहिए और यही कारण है कि भारत ने किसी दूसरे राष्ट् पर भारत जैसी विचारधारा को अपनाने क े लिए दबाव नहीं डाला। हालांकि इसक े साथ- साथ भारत ने निसंकोच उन देशों में प्रजातंत्र को प्रोत्साहित किया जहां इसकी संभाव्यता दिखाई दी एवं उन देशों में जनतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाने और क्षमता- निर्माण क े लिए वहां की सरकार की सहमति से आगे बढ़कर सहायता भी प्रदान की। अफगानिस्तान इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। 3. संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति स्थापना की कार्यवाही में सहयोग- भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का मौलिक सदस्य रहा है और किसी राष्ट्र क े विरुद्ध एक तरफा प्रतिबंध या सैनिक कार्यवाही क े विरुद्ध होने क े बावजूद अंतर्राष्ट्रीय शांति क े पक्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति स्थापना की कार्यवाहियों मे उसने सदैव से सहयोग दिया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की अंतरराष्ट्रीय सहमति पर आधारित शांति स्थापना की कार्यवाही में अब तक किसी राष्ट्र द्वारा दिया जाने वाला सबसे बड़ा सैनिक सहयोग 195000 सैनिकों क े साथ दिया है, 49 से अधिक कार्यवाहियों में भाग लिया है एवं 168 भारतीय शांति स्थापक संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में शहादत दे चुक े हैं। 4. हस्तक्षेप [Interference] क े स्थान पर अतिक्रमण [ Intervention] की नीति का अनुसरण-
  • 8. भारत किसी राष्ट्र क े अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने की नीति में विश्वास नहीं रखता, किं तु यदि किसी राष्ट्र द्वारा जानबूझकर या अनजाने में किया गया कृ त्य राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करता है, तो भारत त्वरित एवं समय बद्ध अतिक्रमण से पीछे नहीं हटा है । अतिक्रमण, हस्तक्षेप से इस दृष्टि से भिन्न है कि यह किसी राष्ट्र की सरकार की प्रार्थना पर किया जाता है, जबकि हस्तक्षेप कोई राष्ट्र स्वेच्छा से बिना संबंधित राष्ट्र की सरकार की अनुमति क े करता है। भारत ने 1971 में बांग्लादेश में, 1987 -90 श्रीलंका में और 1988 में मालदीव में राष्ट्रीय हितों की रक्षा क े निमित्त अतिक्रमण किया। 5. उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का विरोध- भारत स्वयं लंबे समय तक उपनिवेशवाद का शिकार रहा है। स्वतंत्रता क े बाद उसने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद क े प्रत्येक रूप का विरोध करने का निर्णय लिया। भारतीय विदेश नीति निर्माताओं ने एशिया और अफ्रीका क े पराधीन प्रदेशों क े स्वतंत्रता संग्राम में उनका पूरा समर्थन किया। इंडोनेशिया नीदरलैंड का उपनिवेश था जिस पर द्वितीय विश्व युद्ध क े दौरान जापान ने कब्जा कर लिया था। जापान की पराजय क े बाद नीदरलैंड ने पुनः उस पर अपनी सत्ता स्थापित करना चाहा जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया और संयुक्त राष्ट्र संघ क े मंच पर भी उसकी स्वतंत्रता क े लिए अपील की। हिंद चीन, मलाया,लीबिया , अल्जीरिया,ट्यूनीशिया, घाना आदि देशों क े स्वतंत्रता संग्राम का भारत ने नैतिक समर्थन किया। वर्तमान में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद अपने पारंपरिक रूप में समाप्त हो चुक े हैं, किन्तु बड़े राष्ट्रों द्वारा विकासशील राष्ट्रों का आर्थिक शोषण उपनिवेशवाद का नया चेहरा है, जिसे नव उपनिवेशवाद कहा जाता है। भारत हर प्रकार क े उपनिवेशवाद का विरोध करता है और उसका यह विश्वास है कि आर्थिक दासता से मुक्ति उतनी ही आवश्यक है, जितनी राजनीतिक दासता से। 6. आक्रामकता क े स्थान पर रचनात्मकता में संलग्नता - भारत आक्रमण क े स्थान पर रचनात्मक रूप से संलग्न होने की नीति का पक्षधर है, उसका विश्वास है कि आक्रामकता एवं भिड़ंत की नीति मामलों को उलझाती है। किसी
  • 9. भी युद्ध क े बाद अंत में युद्ध रत राष्ट्र शांति वार्ता क े लिए राजी होते हैं, किं तु तब तक बहुत ज्यादा नुकसान हो चुका होता है। भारत-पाकिस्तान संबंधों को दृष्टिगत रखते हुए यह नीति कारगर साबित हो सकती है।भारत क े संविधान निर्माता भी इस बात क े लिए उत्सुक थे कि भविष्य मे देश की सभी सरकारों क े द्वारा विवादों क े शांतिपूर्ण समाधान की चेष्टा की जाए और इसीलिए अनुच्छेद 51 में यह निर्देश दिया गया कि सरकार अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रयास करेगी। स्वयं नेहरू ने भी कहा था कि दुनिया आज जिस स्थिति में पहुंच गई है, उसमें चाहे एक पक्ष दूसरे से काफी कमजोर ही क्यों न हो , प्रभाव दोनों पर लगभग एक जैसा ही होगा। इसका कारण यह है कि विनाश क े अस्त्र अत्यधिक भयंकर हो गए हैं कि वे छोटे और बड़े सभी देशों को एक जैसे संकट में डाल सकते हैं। किं तु रचनात्मक संलग्नता की नीति को भारत की कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। कई अवसरों पर भारत क े धैर्य की परीक्षा ली गई है। फरवरी 2019 में बालाकोट क े आतंकवादी कैं प पर हवाई हमला करक े भारत ने पुलवामा आतंकी हमले का सशस्त्र विरोध कर यह संदेश दिया कि भारत की शान्तिप्रियता उसकी कमजोरी नहीं है । 7. वैश्विक मुद्दों पर वैश्विक सहमति में विश्वास- भारत की विदेश नीति संपूर्ण विश्व से संबंधित मुद्दों एवं समस्याओं का समाधान व्यापक विचार विमर्श एवं दुनिया क े सभी राष्ट्रों की सहमति क े आधार पर किए जाने की नीति पर आधारित है। वर्तमान में महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दे हैं- वैश्विक व्यापार, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद , बौद्धिक संपदा अधिकार एवं वैश्विक सरकार। इन सभी मुद्दों पर कोई एक तरफा समाधान ना निकाला जाए, बल्कि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आपसी विचार विमर्श क े द्वारा राष्ट्रों की सहमति क े आधार पर संभावित समाधान ढूंढे जाने चाहिए, भारत ऐसा विश्वास रखता है। यही कारण है कि भारत वैश्विक व्यापार या संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे मंचों पर बड़े राष्ट्रों क े वर्चस्व का विरोधी रहा है और सतत विकास हेतु न्याय पूर्ण आर्थिक एवं तकनीकी हस्तांतरण पर जोर देता रहा है। 8. गुजराल सिद्धांत-
  • 10. देवगौड़ा सरकार में विदेश मंत्री रहे श्री इंद्र क ु मार गुजराल ने इस सिद्धांत का आरंभ किया था। 1996 में प्रतिपादित इस सिद्धांत का सारांश यह है कि दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश भारत उपमहाद्वीप क े पड़ोसी देशों को अपनी इच्छा से क ु छ रियायतें दे और भारत अन्य देशों क े लोगों क े मध्य संबंध स्थापित किए जाए। भारत और पाकिस्तान की जनता में सीधे संबंध स्थापित होने पर एक ऐसा वातावरण बनेगा जिसमें आपसी मतभेदों को आसानी से सुलझाया जा सक े गा। इसी सिद्धांत क े अंतर्गत 1996 क े अंत में भारत ने बांग्लादेश क े साथ गंगा जल क े बंटवारे क े प्रश्न पर महत्वपूर्ण समझौता किया जिसक े अनुसार अब बांग्लादेश पानी की कमी वाले मौसम में 1977 क े समझौते की तुलना में अधिक पानी ले सक े गा। इस समय भारत और चीन क े मध्य हुआ भी एक समझौता हुआ जिसका उद्देश्य दोनों देशों क े द्वारा पारस्परिक विश्वास की स्थापना क े उपाय करना था। मुख्य शब्द- विदेश नीति, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद, शीत युद्ध, पंचशील, गुजराल सिद्धांत REFERENCES AND SUGGESTED READINGS 1. Achal Malhotra, India’s Foreign Policy;2014-2019,Landmarks,Achievements and Challenges ahead,distinguished lecture, Central University of Rajasthan,July 22,2019,mea.gov.in 2. India”s Foreign Policy;2014-19;Landmarks,Ministry of External Affairs,http;//www.mea.gov.in 3. Five Principles/Indian History/ Britannica,http//www.britannica.com 4. Mischa Hansel-Raph,http//www.routledge.com
  • 11. 5. S. Jaishankar,The India Way;Strategies for an UncertainWorld Ebook,2020 6. Shivshankar Menon,Choices;Incide the Making of India’s Foreign Policy,2016 प्रश्न- निबंधात्मक- 1. किन उद्देश्यों की प्राप्ति क े लिए भारतीय विदेश नीति का निर्माण किया गया, विवेचना कीजिए। 2. भारतीय विदेश नीति क े प्रमुख सिद्धांतों की विवेचना कीजिए। वस्तुनिष्ठ_ 1. प्राथमिकता क े आधार पर भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय हित क्या है? [ अ ] पड़ोसी देशों से मधुर संबंध [ ब ] सतत विकास [ स ] अंतर्राष्ट्रीय शांति [ द ] सीमाओं की सुरक्षा एवं प्रादेशिक अखंडता 2. पड़ोसी राज्यों क े साथ संबंधों क े विषय में भारतीय विदेश नीति का कौन सा सिद्धांत प्रतिपादित किया गया? [ अ ] वाजपेयी सिद्धांत [अभिलाष ब ] नेहरू सिद्धांत [ स ] गुजराल सिद्धांत [ द ] देवगौड़ा सिद्धांत 3. निम्नांकित में से क्या ‘पंचशील’ का अंग नहीं है? [ अ ] अनाक्रमण [ ब ] अहस्तक्षेप [ स ] राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान [ द ] निरस्त्रीकरण 4. भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत क्यों बनाया?
  • 12. [ अ ] राष्ट्रीय विकास हेतु दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने क े उद्देश्य से [ ब ] विश्व शांति क े आदर्श में विश्वास रखने क े कारण [ स ] विकासशील राष्ट्रों का नेतृत्व प्राप्त करने क े लिए [ द ] क्षेत्रीय विकास को ध्यान में रखकर 5. भारत की विदेश नीति वैश्विक समस्याओं को किस आधार पर सुलझाने की पक्षधर रही है? [ अ ] महाशक्तियों की पहल [ ब ] संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता [ स ] वैश्विक सहमति [ द ] दक्षिण क े राष्ट्रों की पहल 6 अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने संबंधी निर्देश संविधान क े किस अनुच्छेद में दिए गए हैं- [अ ] अनुच्छेद 52 [ ब ] अनुच्छेद 51 [ स ] अनुच्छेद 31 [ द ] अनुच्छेद 30 7. समसामयिक दौर में भारतीय विदेश नीति क े प्रमुख उद्देश्यों में क्या सम्मिलित नहीं है? [ अ ] प्रवासियों क े हितों की रक्षा [ ब ] सतत विकास क े अनुक ू ल अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का निर्माण [ स ] यह सुनिश्चित करना कि भारत की आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सुनी जा सक े [ द ] परमाणु शक्ति का विस्तार 8. हस्तक्षेप की नीति का विरोधी होने क े बावजूद भारत ने किन देशों में वहां की सरकारों क े आग्रह पर हस्तक्षेप[ Intervene] किया है? [ अ ] श्रीलंका [ ब ] बांग्लादेश [ स ] मालदीव [ द ] उपर्युक्त सभी 9. गुटनिरपेक्षता की नीति का समर्थक होने क े बावजूद भारत की विदेश नीति का झुकाव अतीत में किसकी तरफ रहा है? [ अ ] अमेरिकी गुट [ ब ] सोवियत गुट [स ] चीनीगुट [ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं 10. पड़ोसी राष्ट्रों में से कौन सा देश हालिया वर्षों में भारत क े सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी क े रूप में उभरा है ? [ अ ] पाकिस्तान [ ब ] चीन [ स ] बांग्लादेश [ द ] अफगानिस्तान
  • 13. 11. निरस्त्रीकरण की नीति का समर्थक होने क े बावजूद भारत ने किस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं? [ अ ] परमाणु परीक्षण संधि [ ब ] परमाणु प्रसार निषेध संधि [ स ] परमाणु तकनीक हस्तांतरण संधि [ द ] उपर्युक्त सभी उत्तर- 1. द 2. स 3. द 4.अ 5.स 6. ब 7. द 8. द 9. ब 10. ब 11. ब