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सामाजिक एवं राजनीतिक अनुसंधान
द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय
एसोसिएट प्रोफ
े सर, राजनीति विज्ञान
क
ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बादलपुर, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश
यह सामग्री विशेष रूप से शिक्षण और सीखने को बढ़ाने क
े शैक्षणिक उद्देश्यों क
े लिए है। आर्थिक / वाणिज्यिक अथवा
किसी अन्य उद्देश्य क
े लिए इसका उपयोग पूर्णत: प्रतिबंध है। सामग्री क
े उपयोगकर्ता इसे किसी और क
े साथ वितरित,
प्रसारित या साझा नहीं करेंगे और इसका उपयोग व्यक्तिगत ज्ञान की उन्नति क
े लिए ही करेंगे। इस ई - क
ं टेंट में जो
जानकारी की गई है वह प्रामाणिक है और मेरे ज्ञान क
े अनुसार सर्वोत्तम है।
उद्देश्य-
● सामाजिक अनुसंधान की धारणा एवं उसक
े उद्भव की जानकारी
● सामाजिक- राजनीतिक अनुसंधान क
े उद्देश्यों का ज्ञान
● सामाजिक -राजनीतिक अनुसंधान क
े प्रकारों की जानकारी
● सामाजिक- राजनीतिक शोध की प्रकृ ति एवं सीमाओं का ज्ञान
● सामाजिक विज्ञान में मात्रात्मक एवं गुणात्मक शोध की पद्धतियों का ज्ञान
● सामाजिक विज्ञान में वैज्ञानिक/ प्रयोगात्मक शोध की आवश्यकता एवं
प्रासंगिकता का ज्ञान
● सामाजिक राजनीतिक घटनाओं की समझ विकसित करना
सामाजिक अनुसंधान किसी भी अन्य अनुसंधान क
े समान मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति का परिणाम है।
मानव सभ्यता और संस्कृ ति क
े विकास क
े साथ-साथ सामाजिक संगठन को बेहतर बनाने की खोज
अनवरत रूप से जारी है और इसी खोज क
े परिणाम स्वरूप हम दुनिया क
े विभिन्न देशों में इतिहास क
े
विभिन्न कालों में सामाजिक संगठनों क
े भिन्न-भिन्न स्वरूप का परिचय प्राप्त करते हैं. अतः साधारण
शब्दों में कहा जा सकता है कि सामाजिक व्यवस्था को बेहतर बनाने, सामाजिक संबंधों और संगठनों को
समझने एवं मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति क
े लिए ज्ञान प्राप्ति हेतु किया गया व्यवस्थित प्रयत्न
सामाजिक अनुसंधान है। यद्यपि सामाजिक जीवन की प्रेरक घटनाएं बहुत जटिल होती है। भिन्न
भिन्न परिस्थितियों और समय में भिन्न-भिन्न कारण घटनाओं को अंजाम देते हैं एवं किसी समस्या क
े
समाधान हेतु अनेक विकल्प मानवीय विवेक की भिन्नता क
े अनुरूप ही मौजूद होते हैं। ऐसे में किसी
एक सर्वमान्य सिद्धांत तक पहुंचना सामाजिक शोध क
े क्षेत्र में कठिन होता है किं तु फिर भी मनुष्य
मानव जीवन की जटिलताओं को समझने क
े लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है। सामाजिक जीवन क
े क्षेत्र
में खोज क
े इसी प्रयत्न को सामाजिक अनुसंधान की संज्ञा दी जाती है। राजनीतिक व्यवस्था व्यापक
सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है, अतः सामाजिक जीवन क
े क्षेत्र में किया जाने वाला
अनुसंधान जब राजनीतिक क्षेत्र तक सीमित हो जाता है, तो उसे राजनीतिक अनुसंधान कहते हैं।
सामाजिक व्यवस्था को नियंत्रित और निर्देशित करने वाली राजनीतिक व्यवस्था क
े आदर्श स्वरूप की
प्राप्ति एवं सार्वजनिक जीवन में व्याप्त समस्याओं क
े समाधान हेतु विभिन्न स्तरों पर शोधकर्ताओं
द्वारा की जाने वाली खोज राजनीतिक अनुसंधान का स्वरूप एवं लक्ष्य स्पष्ट करती है। द्वितीय
विश्वयुद्ध उत्तर काल में अमेरिका में प्रारंभ हुए व्यवहारवादी और उत्तर व्यवहारवादी आंदोलनों क
े
परिणाम स्वरूप राजनीति जैसे विषय में वैज्ञानिक सिद्धांतों क
े निर्माण पर जोर दिया गया और इसी
क्रम में राजनीतिक शोध क
े स्वरूप को भी वैज्ञानिक प्रणालियों क
े आधार पर किए जाने पर जोर दिया
गया क्योंकि वैज्ञानिक सिद्धांतों का निर्माण वैज्ञानिक पद्धति को अपनाकर किए गए शोध पर ही निर्भर
करता है।
अनुसंधान- परिभाषाएं
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी क
े अनुसार- किसी विषय क
े ज्ञान में वृद्धि क
े लिए उसका विस्तृत और सुविचारित
अध्ययन ही अनुसंधान है। किं तु सामाजिक विज्ञान में क
े वल ज्ञान प्राप्ति क
े लिए ही अनुसंधान कार्य
नहीं किया जाता ,बल्कि ज्ञान की प्राप्ति क
े साथ-साथ विद्यमान ज्ञान में संशोधन एवं व्यावहारिक
जीवन की समस्याओं क
े समाधान हेतु भी शोध को प्रोत्साहित किया जाता है।
Merriam-webster डिक्शनरी क
े अनुसार ‘’ किसी विषय क
े बारे में सावधानीपूर्वक तथ्यों की खोज एवं
नए तथ्यों क
े संदर्भ में स्वीकृ त सिद्धांतों का पुनर परीक्षण करने की क्रिया विधि शोध कहलाती है। ‘’
डॉक्टर एम .वर्मा क
े अनुसार, ‘’ अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है जो नए ज्ञान को प्रकाश में लाती है
अथवा पुरानी त्रुटियों एवं भ्रांत धारणाओं का परिमार्जन करती है तथा व्यवस्थित रूप में वर्तमान ज्ञान
कोष में वृद्धि करती है। ‘’
एलबी रेडमैन ने ‘रोमांस ऑफ रिसर्च’ में अनुसंधान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि अनुसंधान
नवीन ज्ञान की प्राप्ति क
े लिए एक व्यवस्थित प्रयास है। ‘’
पी. एम. क
ु क क
े अनुसार, ‘’किसी समस्या क
े संदर्भ में ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमानी से तथ्यों,
उनक
े अर्थ और उपयोगिता की खोज करना ही अनुसंधान है। ‘’
सामाजिक विज्ञान ज्ञानकोश क
े अनुसार, ‘’ अनुसंधान वस्तुओं ,विचारों ,संक
े तों को क
ु शलतापूर्वक
व्यवस्थित करता है, जिसका उद्देश्य सामान्य करण द्वारा ज्ञान का विकास, परिमार्जन अथवा
सत्यापन होता है चाहे वह ज्ञान क
े व्यवहार में सहायक हो अथवा कला में। ‘’
सामाजिक या राजनीतिक अनुसंधान का उद्देश्य-
कोई भी सामाजिक या राजनीतिक अनुसंधान किसी एक या कई उद्देश्यों को एक साथ प्राप्त करने क
े
लिए किया जाता है। श्रीमती पीवी यंग क
े अनुसार,’’ सामाजिक अनुसंधान का मूल उद्देश्य, चाहे वह
तत्कालीन हो अथवा दीर्घकालीन, सामाजिक जीवन को समझना और ऐसा करक
े उस पर अधिक नियंत्रण
प्राप्त करना है। ‘’ सामाजिक अनुसंधान क
े प्रमुख उद्देश्य निम्न वत बताये जा सकते हैं-
● नवीन ज्ञान की प्राप्ति-
किसी भी सामाजिक राजनीतिक शोध का प्राथमिक उद्देश्य संबंधित विषय क
े बारे में नए ज्ञान
की खोज करना होता है। इस ज्ञान क
े आधार पर ही सार्वजनिक जीवन की घटनाओं व्यवहारों
और समस्याओं की व्याख्या की जा सकती है और सामाजिक तथा राजनीतिक संरचनाओं को
समझा जा सकता है।
● विद्यमान ज्ञान का सत्यापन-
सामाजिक अनुसंधान का एक प्रमुख सैद्धांतिक उद्देश्य किसी विषय क
े बारे में पहले से ही
चले आ रहे ज्ञान का वर्तमान परिस्थितियों क
े संदर्भ में वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर परीक्षण
करना होता है। परीक्षण क
े दौरान या तो पुराने सिद्धांतों को पुष्टि प्रदान की जाती है या उन्हें
गलत सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। कार्ल पॉपर जैसे विद्वान की मान्यता है कि जिस
ज्ञान में जितना ज्यादा विरोध की संभावना होती है, उतना ही वह वैज्ञानिक होता है। ग्लेन
फायर बाग ने ‘ अपनी पुस्तक ‘7 रूल्स फॉर सोशल रिसर्च’ में शोध कार्य में विद्यमान ज्ञान से
पृथक क
ु छ आश्चर्यजनक तथ्य को प्रकाश में लाने को आवश्यक माना है जिसे उन्होंने
सामाजिक शोध में ‘आश्चर्य की संभावना’ क
े रूप में व्याख्यायित किया है।
● सिद्धांत निर्माण-
व्यवस्थित ज्ञान की प्राप्ति की दिशा में सामाजिक शोध का उद्देश्य उस विषय क
े बारे में तथ्यों
क
े आधार पर वैज्ञानिक सिद्धांतों का निर्माण करना है। सिद्धांत किसी भी विषय को स्वायत्त
दर्जा प्रदान करने क
े लिए और उसे विज्ञान की श्रेणी में लाने क
े लिए आवश्यक होते हैं और यह
उन आधार भूत नियमों क
े रूप में कार्य करते हैं, जिनक
े आधार पर उस विषय की व्याख्या करना
और उसे समझना संभव हो पाता है। उदाहरणार्थ- राज्य की उत्पत्ति क
े संबंध में जो प्राथमिक
सिद्धांत प्रचलित थे , जैसे- देवी सिद्धांत एवं शक्ति सिद्धांत, उन्हें बाद में हुई खोज क
े अनुसार
परिवर्तित किया गया एवं सामाजिक समझौता तथा विकासवादी सिद्धांत प्रस्थापित हुए।
● समस्याओं का समाधान-
सामाजिक- राजनीतिक जीवन अत्यंत जटिल एवं परिवर्तनशील होता है, ऐसी स्थिति में समय
क
े अनुसार नित नई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सामाजिक अनुसंधान क
े माध्यम से
समस्याओं क
े कारणों को खोजने क
े साथ-साथ उनक
े संभावित समाधान भी सुझाए जाते हैं।
उदाहरणार्थ- कोविड-19 संकट क
े दौरान दुनिया क
े विभिन्न देशों में लॉकडाउन की स्थिति में
समाज क
े विभिन्न वर्गों और उनक
े आपसी संबंधों को प्रभावित करने वाले अनेक सामाजिक,
राजनीतिक ,आर्थिक कारकों को अनुसंधान क
े माध्यम से ढूंढा गया और संकटपूर्ण स्थिति में भी
सामाजिक- राजनीतिक जीवन क
ै से सुचारू ढंग से संचालित हो सक
े , इस विषय में अनुसंधान क
े
माध्यम से समाधान भी प्रस्तुत किए गए। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा हाल ही में किए गए एक
अध्ययन में बताया गया लॉक डाउन की स्थितियों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव मजदूरों एवं महिलाओं
पर देखा गया है।
● प्रशासन एवं योजनाओं क
े निर्माण में सहायक-
विकासशील देशों क
े प्रशासन की एक बड़ी समस्या सामाजिक जीवन की समस्याओं को
वास्तविक धरातल पर समझ कर जनहितकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने की है, किं तु
प्रशासन की औपनिवेशिक मानसिकता क
े कारण इन देशों में प्रशासनिक अधिकारी सामान्य जन
दूर ही रहते हैं, ऐसी स्थिति में कल्याणकारी योजनाओं की सफलता संदिग्ध रहती है।
सामाजिक अनुसंधान इस दिशा में सहायक सिद्ध हो सकता है। विभिन्न सामाजिक घटनाओं,
क्षेत्रों ,वर्गो एवं कार्यों क
े विषय में शोधकर्ताओं क
े समूह क
े द्वारा व्यापक स्तर पर किए गए शोध
कार्य और उन क
े माध्यम से निकाले गए निष्कर्ष प्रशासन का पथ- प्रदर्शन करते हैं। वे शोध
कार्य में दिए गए सुझावों क
े अनुसार योजनाओं का निर्माण कर वास्तविक धरातल पर उनका
क्रियान्वयन करने में सफल हो सकते हैं। यही कारण है कि आजकल राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर
पर किसी भी नीति को क्रियान्वित करने क
े लिए उस दिशा में शोध कार्य को प्रोत्साहित किया जा
रहा है। उदाहरणार्थ- संयुक्त राष्ट्र संघ क
े द्वारा दुनिया में शांति स्थापना की कार्यवाही में आने
वाली कठिनाइयों क
े निवारण हेतु विभिन्न देशों की सामाजिक आर्थिक राजनीतिक परिस्थिति
को ध्यान में रखते हुए शोध कार्य को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सामाजिक अनुसंधान क
े प्रकार
सामाजिक- राजनीतिक अनुसंधान का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जाता है। इनमें से
क
ु छ प्रमुख आधार इस प्रकार हैं।
● विषय की प्रकृ ति और उसकी विषय वस्तु क
े आधार पर
इस आधार पर सामाजिक राजनीतिक शोध क
े तीन प्रकार बताए जा सकते हैं-
1. मौलिक अनुसंधान [Fundamental Research]
मौलिक अनुसंधान को विशुद्ध अनुसंधान या आधारभूत अनुसंधान भी कहते हैं। यह अनुसंधान विशुद्ध
ज्ञान प्राप्ति क
े उद्देश्य से किया जाता है। सामाजिक समस्याओं का समाधान या आवश्यकताओं की
पूर्ति ऐसे अनुसंधान का लक्ष्य नहीं होता है, बल्कि नए ज्ञान की खोज क
े माध्यम से ज्ञान भंडार में वृद्धि
करना इसका उद्देश्य होता है। साथ ही यह पुराने ज्ञान को नवीन तथ्यों क
े संदर्भ में परिमार्जित करता है
और तथ्यों क
े विश्लेषण क
े आधार पर नए मौलिक सिद्धांतों एवं नियमों का निर्माण इस प्रकार क
े
अनुसंधान क
े परिणाम स्वरूप किया जाता है। पी.वी. यंग ने इस संबंध में कहा है कि ‘’विशुद्ध अथवा
मौलिक अनुसंधान अनुसंधान वह है जिसमें ज्ञान का संचय क
े वल ज्ञान प्राप्ति क
े लिए ही हो। ‘’
राजनीति विज्ञान क
े क्षेत्र में डेविड ईस्टन एवं आलमंड जैसे सिद्धांत कारों क
े द्वारा राजनीतिक
व्यवस्था विश्लेषण एवं संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम का विकास या लोक प्रशासन क
े क्षेत्र में हर्बर्ट
साइमन जैसे विद्वान क
े द्वारा निर्णय निर्माण सिद्धांत का निर्माण मौलिक अनुसंधान क
े आधार पर ही
किया गया।
2. व्यावहारिक अनुसंधान-[Applied Research]
व्यावहारिक अनुसंधान का संबंध सामाजिक जीवन क
े व्यावहारिक पक्ष से होता है जिसका उद्देश्य
सामाजिक समस्याओं को उनक
े वास्तविक स्वरूप में समझना और उनक
े समाधान क
े निमित्त नियोजन
को प्रोत्साहित करना होता है। इस प्रकार का अनुसंधान समाज कल्याण, जन स्वास्थ्य की रक्षा ,समाज
सुधार, शिक्षा आदि क
े क्षेत्र में किया जाता है। समसामयिक विश्व में दुनिया की विभिन्न राष्ट्रों में चल
रहे गृह युद्ध, सांप्रदायिक संघर्ष, प्रजातीय विभेद, आतंकवाद एवं माओवादी हिंसा क
े संदर्भ में इस प्रकार
क
े शोध की उपयोगिता बढ़ गई है। इस प्रकार क
े शोध में भी वैज्ञानिक प्रविधियों का प्रयोग करते हुए
तथ्यों का कारण सहित विश्लेषण किया जाता है। वास्तव में मौलिक अनुसंधान एवं व्यावहारिक
अनुसंधान में बहुत बड़ा अंतर नहीं है जैसा कि पी.वी .यंग ने लिखा है कि ‘’ विशुद्ध तथा व्यावहारिक
अनुसंधान क
े बीच विभाजन की कोई निश्चित रेखा नहीं खींची जा सकती । अनुसंधान क
े ये दोनों स्वरूप
सिद्धांत क
े विकास और उनक
े सत्यापन क
े लिए एक दूसरे पर निर्भर है। ‘’
3. क्रियात्मक अनुसंधान- [ Action Research]
क्रियात्मक शोध का उद्देश्य सामाजिक संबंधों एवं समाज व्यवस्था क
े स्वरूप को अच्छा बनाना होता है।
ऐसे शोध का प्रारंभ 1933 में प्रोफ
े सर कोलियर ने अमेरिका में किया। रेबिर ने क्रियात्मक अनुसंधान
को परिभाषित करते हुए लिखा कि ‘’क्रियात्मक अनुसंधान वह अनुसंधान है जो इस उद्देश्य से किया
जाता है कि घटनाओं की समीक्षा की जाए जिससे वास्तविक विश्व समस्याओं का व्यावहारिक उपयोग
एवं समाधान हो सक
े । ‘’ किसी सामाजिक स्थिति अवस्था को बदलने यह समस्या क
े समाधान करने,
सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने क
े लिए क्रियात्मक शोध का प्रयोग किया जाता है । महिलाओं एवं
बच्चों क
े विरुद्ध बढ़ती हुई हिंसा को रोकने, पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करने एवं समाज का
चतुर्दिक विकास करने क
े उद्देश्य से क्रियात्मक शोध का आयोजन किया जाता है। ऐसे शोध क
े लिए
शोधकर्ता की विषय में वास्तविक रूचि और सक्रियता का होना आवश्यक होता है।
क्रियात्मक अनुसंधान क
े गुण-
वर्तमान में क्रियात्मक अनुसंधान ज्यादा लोकप्रिय हैं क्योंकि ऐसे अनुसंधान में निम्नांकित गुण पाए
जाते हैं-
1. ऐसा अनुसंधान रोजमर्रा की समस्याओं क
े समाधान क
े लिए किया जाता है अतः ऐसे अनुसंधान क
े
माध्यम से जन सहभागिता आसानी से प्राप्त की जा सकती है।
2. ऐसे शोध का आधार वास्तविक तथ्य होते हैं जो समाज क
े लिए लाभप्रद होते हैं।
3. इनसे व्यावहारिक समस्याओं क
े समाधान में सहायता मिलती है।
4. इस प्रकार क
े इस शोध का छोटे स्तर पर आयोजन करक
े उससे प्राप्त निष्कर्षों को बड़े समूह पर लागू
कर समस्याओं का समाधान किया जा सकता है ।
5. इस प्रकार की शोध में लचीलापन पाया जाता है क्योंकि आवश्यकतानुसार समस्याओं की व्याख्या
और उनक
े समाधान हेतु सुझावों क
े निमित्त आवश्यकतानुसार शोध की विधियों में परिवर्तन किया जा
सकता है।
दोष-
1. ऐसा अनुसंधान वैज्ञानिक दृष्टि से खरा नहीं होता । इसमें संपूर्ण शुद्धता का अभाव पाया जाता है।
2. इस प्रकार क
े अनुसंधान क
े माध्यम से प्राप्त परिणामों को दूसरे संगठन या समाज पर लागू नहीं
किया जा सकता है।
3. शोधकर्ता क
े लिए अध्ययन की स्थितियां नियंत्रण में नहीं होती हैं, ऐसे में निष्कर्षों की शुद्धता पर
प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है।
4. अत्यधिक लचीलापन क
े कारण अनुसंधानकर्ता क
े पक्षपातपूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है।
5. ऐसे अनुसंधान करने वालों क
े पास अनुसंधान विधि का विशेष प्रशिक्षण नहीं होता है ऐसी स्थिति में
शोध कार्य क
े संचालन में कठिनाई उत्पन्न होती है।
6। वैज्ञानिकता क
े अभाव क
े कारण ऐसे अनुसंधान क
े निष्कर्ष सार्वभौमिक और भविष्यवाणी योग्य नहीं
हो सकते हैं।
● अध्ययन सामग्री क
े स्रोतों क
े आधार पर अनुसंधान क
े प्रकार
इस आधार पर शोध क
े दो प्रकार पाए जाते हैं-
1. ऐतिहासिक पद्धति पर आधारित अनुसंधान-
इस प्रकार क
े शोध में वर्तमान सामाजिक राजनीतिक जीवन को स्पष्ट करने क
े लिए ऐतिहासिक स्रोतों
का प्रयोग किया जाता है। कार्ल मार्क्स, वेस्टरमार्क और ओपन हाय मर जैसे विद्वानों क
े द्वारा
ऐतिहासिक पद्धति को अपनाकर सामाजिक राजनीतिक सिद्धांतों का निर्माण किया गया एवं
सामाजिक राजनीतिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया गया। रेडक्लिफ ब्राउन क
े अनुसार, ‘’
ऐतिहासिक पद्धति व विधि है जिसमें कि वर्तमान काल में घटित होने वाली घटनाओं को भूतकाल में
घटित हुई घटनाओं क
े धारा प्रवाह व क्रमिक विकास को एक कड़ी क
े रूप में मानकर अध्ययन किया
जाता है।
सीमाएं- ऐतिहासिक पद्धति को अपनाकर अनुसंधान कार्य करने की अपनी क
ु छ सीमाएं हैं जैसे 1.
अतीत में घट चुकी घटनाओं क
े विषय में सामग्री को एकत्रित करना आसान नहीं है। जो क
ु छ ऐतिहासिक
प्रलेख उपलब्ध हैं, उनमें लेखकों की अपने विचार धाराएं पूर्वाग्रह एवं दृष्टिकोण समाहित है जो वैज्ञानिक
अनुसंधान की दृष्टि से उपयोगी नहीं है।
2. सभी समस्याओं का ऐतिहासिक विश्लेषण करना सरल कार्य नहीं है।
3. सामाजिक- राजनीतिक संबंध अत्यंत जटिल होते हैं अतः वर्तमान राजनीतिक सामाजिक संबंधों को
ऐतिहासिक आधार पर विश्लेषण करना अत्यंत कठिन होता है। उनका वर्गीकरण भी आसान नहीं होता।
4.ऐतिहासिक विवरण क
े वल यह बताता है कि भूतकाल में समस्याओं का स्वरूप क्या था, इससे इस बात
का पता नहीं चल सकता कि समस्या का वर्तमान या भावी स्वरूप क्या होगा।
2. आनुभविक शोध-
आनुभविक शोध समाज की वास्तविक स्थिति को दर्शाने वाले तथ्यों पर आधारित होता है। इस प्रकार
क
े शोध में शोधकर्ता प्राथमिक स्रोतों क
े आधार पर तथ्यों का संकलन करता है। विषय क
े संबंध में पहली
बार क्षेत्र में जाकर उसी क
े द्वारा तथ्य एकत्रित किए जाते हैं और उन्हीं तथ्यों क
े विश्लेषण क
े आधार पर
वह किन्ही निष्कर्ष तक पहुंचता है। इस प्रकार क
े शोध में स्वयं शोधकर्ता द्वारा एकत्रित किए जाते हैं,
इसलिए यह अधिक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक होता है।
● शोध संरचना क
े आधार पर अनुसंधान क
े प्रकार-
शोध कार्य को व्यवस्थित ढंग से संचालित करने हेतु प्रत्येक शोधकर्ता शोध प्रारूप या संरचना का निर्माण
करता है। इस शोध प्रारूप को बनाते समय जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है, उनक
े आधार पर शोध
की निम्नांकित प्रकार पाए जाते हैं-
1. अन्वेषणात्मक अनुसंधान [Exploratory or Formulative ]
शोध संबंधी समस्या या विषय क
े चुनाव क
े लिए इस प्रकार का अनुसंधान किया जाता है । शोधकर्ता शोध
प्रारूप बनाने से पहले किसी विषय क
े संबंध में जानकारी प्राप्त करता है और धारणाओं को स्पष्ट करता है
,वास्तविक परिस्थितियों क
े संबंध में अनुसंधान की व्यावहारिक समस्याओं का पता लगाने क
े लिए इस
प्रकार का अनुसंधान करता है ताकि विषय क
े संबंध में उपकल्पनाओं का निर्माण किया जा सक
े ।
2. वर्णनात्मक अनुसंधान-
वर्णनात्मक अनुसंधान किसी विषय क
े संबंध में व्यापक तथ्यों को एकत्रित कर उसका व्यापक वर्णन
प्रस्तुत करता है । विश्वसनीय तथ्यों को एकत्रित करने क
े लिए अवलोकन, साक्षात्कार ,अनुसूची
,प्रश्नावली, सहभागी अवलोकन आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। शोध कार्य में वस्तुनिष्ठ
दृष्टिकोण को बनाए रखना होता है ताकि पक्षपात, मिथ्या झुकाव एवं पूर्वधारणा आदि से बचा जा सक
े ।
वर्णनात्मक अनुसंधान अत्यंत विस्तृत होता है, अतः इसमें समयबद्धता एवं मितव्ययिता का विशेष
ध्यान रखना होता है।
3. प्रयोगात्मक या परीक्षणात्मक अनुसंधान-
प्रयोगशाला पद्धति का प्रयोग करते हुए इस प्रकार क
े अनुसंधान में दो सामाजिक समूहों को चुनकर
किसी एक समूह को नियंत्रित अवस्था में रखकर उस पर नई सामाजिक परिस्थितियों क
े प्रभाव का
अध्ययन किया जाता है और दूसरे समूह को उसकी स्वाभाविक अवस्था में छोड़ दिया जाता है। यह पता
लगाने का प्रयत्न किया जाता है कि नियंत्रित समूह पर किसी सामाजिक घटना, कारक, परिवर्तन या
परिस्थिति का कितना और क
ै सा प्रभाव पड़ा। उदाहरणार्थ- विद्यार्थियों पर ऑनलाइन शिक्षा क
े प्रभाव
का पता करने क
े लिए प्रयोगात्मक पद्धति क
े आधार पर विद्यार्थियों क
े समूह को चुन लिया जाएगा और
उसे ऑनलाइन माध्यमों से शिक्षित किया जाएगा। दूसरे समूह को पारंपरिक शिक्षा प्राप्त करने हेतु छोड़
दिया जाएगा। क
ु छ समय बाद यह पता लगाया जाएगा कि ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने वाले
विद्यार्थियों एवं पारंपरिक विधि से शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों क
े ज्ञान स्तर में क्या और
कितना परिवर्तन हुआ है।
● शोधकर्ता द्वारा अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण क
े आधार पर-
अध्ययन कर्ता किसी मौलिक या क्रियात्मक शोध को करते समय किस तरह क
े दृष्टिकोण या
विधियों को अपनाता है, इस आधार पर शोध दो प्रकार क
े बताए जाते हैं-
1. मात्रात्मक शोध [quantitative]
मात्रात्मक शोध क
े अंतर्गत किसी वस्तु या घटना का विश्लेषण संख्यात्मक आधार पर किया
जाता है या उस घटना क
े परिमाण क
े आधार पर उसका मापन कर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस प्रकार
क
े शोध का निष्कर्ष संख्यात्मक होता है। जैसे- किसी चुनाव विशेष में मतदाताओं की संख्या या वर्ग को
ज्ञात करने क
े लिए जो शोध किया जाएगा, वह मात्रात्मक शोध होगा। ब्रिटिश राजनीतिक विचारक बेंथम
ने राजनीतिक कार्यों मैं निहित सुख-दुख क
े मापन हेतु एक गणना आत्मक पद्धति दी थी, जिसे
‘Felicific calculus’ की संज्ञा दी।
मात्रात्मक शोध की विशेषताएं -
● मात्रात्मक शोध गणनात्मक होता है और यह संख्याओं क
े रूप में होता है। इसमें वर्णन का अभाव
पाया जाता है और गणित तथा सांख्यिकी का प्रयोग किया जाता है।
● शोध क
े निष्कर्ष अक्सर सारणी एवं ग्राफ क
े रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं।
● मात्रात्मक शोध न क
े वल भौतिक विज्ञानों में किए जाते हैं, बल्कि अर्थशास्त्र, समाज विज्ञानो
एवं जीव विज्ञान में भी किए जाते हैं।
● इस प्रकार क
े शोध का आरंभ परिकल्पना पर आधारित तथ्यों क
े संकलन क
े आधार पर किया
जाता है।
● संख्यात्मक आंकड़ों पर आधारित होने क
े कारण परिमाणात्मक शोध में शोधकर्ता क
े पक्षपात
एवं पूर्वाग्रह क
े प्रभाव की संभावना बहुत कम होती है और यह अपनी प्रकृ ति से वस्तुनिष्ठ होता
है।
● मात्रात्मक शोध क
े अंतर्गत तथ्य संकलन हेतु सर्वेक्षण, नियोजित साक्षात्कार, अवलोकन,
रिकॉर्ड एवं समीक्षा जैसी विधियों का प्रयोग किया जाता है।
● इसक
े अंतर्गत मुख्य रूप से आगमनात्मक पद्धतिका प्रयोग किया जाता है। आंकड़ों को क
ै से
चार्ट क
े माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है इसका एक उदाहरण निम्न वत है-
Indian politics.
View Full Image
2. गुणात्मक शोध [ qualitative]
गुणात्मक अनुसंधान को अक्सर मात्रात्मक अनुसंधान क
े विपरीत बताया जाता है, क्योंकि इसमें
विषय क
े संख्यात्मक प्रस्तुतीकरण क
े स्थान पर किसी सामाजिक राजनीतिक घटना, स्थिति,
कारक , व्यवहार या व्यक्ति की विशेषताओं या गुणों को स्पष्ट किया जाता है। समाज विज्ञान
में गुणात्मक शोध होते रहे हैं क्योंकि सामाजिक विज्ञानों की विषय वस्तु मनुष्य, उसका स्वभाव
और व्यवहार है, जो अत्यंत जटिल और परिवर्तनशील होने क
े कारण संख्यात्मक विवेचना क
े
योग्य नहीं होता है, ऐसे में सामाजिक विज्ञानों क
े शोधार्थी गुणात्मक अनुसंधान करते हैं।
हालांकि अब बहुत सी सामाजिक- राजनीतिक घटनाओं का संख्यात्मक विश्लेषण भी किया जाने
लगा है, किं तु उसकी अपनी सीमाएं हैं। वस्तुतः सामाजिक विज्ञान का कोई भी शोध न तो पूरी
पूरी तरह मात्रात्मक हो सकता है और न ही गुणात्मक। सामाजिक शोध में यह दोनों प्रवृत्तियां
साथ- साथ चलती है। हां यह अवश्य है कि उनमें मात्रा का भेद हो सकता है, अर्थात कोई शोध
अधिकांश रूप में मात्रात्मक हो सकता है या अधिकांशत; गुणात्मक हो सकता है। यदि हम
मतदाताओं क
े मतदान आचरण का अध्ययन करने क
े लिए कोई शोध करते हैं, तो ऐसा शोध
गुणात्मक श्रेणी में आएगा क्योंकि इसक
े अंतर्गत हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि कोई
मतदाता या मतदाताओं का कोई विशेष वर्ग अपने मताधिकार का प्रयोग किन तत्वों से प्रभावित
होकर करता है। जाति ,धर्म ,सांस्कृ तिक विशेषता, प्रजाति, क्षेत्र ,मन; स्थिति, उम्मीदवार की
योग्यता, राजनीतिक दल का घोषणा पत्र, कर्तव्य भाव एवं जागरूकता आदि कोई भी तत्व उसक
े
मतदान को प्रभावित और प्रेरित कर सकता है। यह ऐसे तत्व हैं जिनका संख्यात्मक विवेचन
संभव नहीं है।
विशेषताएं-
● गुणात्मक शोध गैर संख्यात्मक होता है। इसमें विषय का वर्णन तार्कि क ढंग से किया
जाता है।
● इस प्रकार क
े शोध का उद्देश्य विषय या स्थिति क
े अर्थ एवं भाव को वर्णित करना
होता है।
● गुणात्मक तथ्यों को ग्राफ क
े रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
● यह किसी वस्तु या घटना क
े पीछे ‘क्यों’ और ‘क
ै से’ का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
● शोध क
े इस तरीक
े का प्रयोग संख्यात्मक आंकड़ों को अर्थ पूर्ण बनाते हुए उनका वर्णन
प्रस्तुत करने क
े लिए किया जाता है। जैसे- यदि हम किसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदान
प्रतिशत को पुरुष और महिला की श्रेणी में वर्गीकृ त कर प्रस्तुत करते हैं, तो सिर्फ ऐसे
प्रस्तुतीकरण से किसी निष्कर्ष पर तब तक नहीं पहुंचा जा सकता जब तक उसकी
गुणात्मक व्याख्या करते हुए यह न विश्लेषित किया जाए, कि मतदान प्रतिशत पिछले
चुनाव क
े मुकाबले कम है या अधिक है अथवा महिला मतदाताओं की संख्या में पुरुष
मतदाताओं की तुलना में कमी आई है या वृद्धि हुई है।
● गुणात्मक शोध ज्यादातर व्यक्ति निष्ठ होता है क्योंकि किसी व्यवहार या घटना का
अध्ययन करते समय शोधकर्ता अपने दृष्टिकोण एवं मूल्यों को समाहित कर देता है या
दूसरे शब्दों में उससे बचना उसक
े लिए संभव नहीं हो पाता है।
● गुणात्मक शोध का प्रयोग अक्सर सिद्धांतों और परिकल्पना ओं क
े निर्माण क
े लिए
किया जाता है।
● गुणात्मक शोध में निगमनात्मक पद्धति का प्रयोग किया जाता है।
● गुणात्मक शोध क
े निष्कर्ष वैज्ञानिक रूप में प्राप्त करने क
े लिए शोधकर्ता की ईमानदारी
और परिश्रम अत्यंत आवश्यक है।
गुणात्मक अनुसंधान क
े तरीक
े
गुणात्मक अनुसंधान का संचालन करते समय शोधकर्ता विषय से संबंधित तथ्यों क
े
संकलन हेतु कई तरीकों का प्रयोग करता है, जिनमें से क
ु छ प्रमुख प्रभावी तरीक
े निम्न
वत है-
1. वैयक्तिक अध्ययन -[ case study]
इस पद्धति क
े अंतर्गत शोधकर्ता एक विशेष क
े स को लेकर उसका गण अध्ययन एवं
अन्वेषण करता है. यह क
े स एक व्यक्ति व्यक्ति समूह जैसे परिवार या वर्ग [ शिक्षक,
मजदूर], समुदाय या कोई सांस्कृ तिक इकाई जैसे फ
ै शन या कोई संस्था हो सकती है।
2. सहभागी अवलोकन- क्योंकि गुणात्मक शोध क
े अंतर्गत किसी वस्तु घटना या
व्यवहार की विशेषता जानने का प्रयास किया जाता है और इस उद्देश्य की पूर्ति क
े लिए
शोधकर्ता को सहभागी अवलोकन की विधि अपनानी पड़ती है, क्योंकि जिस समूह की
विशेषताओं का पता करना होता है, शोधकर्ता उस समूह का अंग बनकर स्वाभाविक रूप
से उसकी आंतरिक विशेषताओं तक की जानकारी प्राप्त कर पाता है, जो बाह्य
अवलोकन से संभव नहीं हो पाता क्योंकि मानव समुदाय में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि
वह किसी अजनबी क
े सामने अपने स्वाभाविक रूप में स्वयं को प्रस्तुत नहीं करना
चाहता। ऐसे में शोध क
े निष्कर्ष प्रभावित हो सकते हैं।
3. सामूहिक साक्षात्कार-
किसी घटना या व्यवहार क
े गुणात्मक विश्लेषण हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि उस
घटना या व्यवहार क
े प्रत्यक्षदर्शी या सहभागी लोगों से जानकारी प्राप्त की जाए और
ऐसा सामूहिक साक्षात्कार क
े माध्यम से किया जाता है। एक एक व्यक्ति का पृथक
पृथक साक्षात्कार लेना समय और श्रम साध्य हो सकता है, ऐसी स्थिति में सामूहिक
साक्षात्कार ज्यादा उपयोगी होता है। साथ ही सामूहिक साक्षात्कार में एक दूसरे की क्रिया
प्रतिक्रिया का अवलोकन और विश्लेषण करना भी स्वाभाविक रूप से शोधकर्ता क
े लिए
संभव हो पाता है जो उसक
े अध्ययन क
े लिए महत्वपूर्ण तथ्य बन जाता है। विषय से
संबंधित विभिन्न पक्षों की जानकारी की दृष्टि से लक्षित समूह का साक्षात्कार बहुत
उपयोगी माना जाता है क्योंकि इससे दिन प्रतिदिन क
े जीवन एवं अपनाए जाने वाले
तरीकों क
े विषय में लोगों की समझ शोधकर्ता क
े समक्ष साझा होती है और यह पता
चलता है कि किसी खास परिस्थिति में व्यक्ति एवं व्यक्ति समूह किन तत्वों से प्रभावित
होते हैं। साथ ही विषय क
े बारे में नई अंतर्दृष्टि एवं प्रश्न उपस्थित होते हैं क्योंकि
विभिन्न परिस्थितियों में व्यवहार करने वाले व्यक्तियों से संपर्क एवं अंतः क्रिया होती
है। व्यवहार मैं इस पद्धति को अपनाने में कठिनाई यह है कि विषय पर व्यक्तिगत
विचार और समूह क
े विचार क
े मध्य भेद करना कई बार कठिन हो जाता है। इस
पद्धति से लाभ उठाने क
े लिए शोधकर्ता में उच्च कोटि का नेतृत्व गुण होना चाहिए
जिससे वह समूह को निर्देशित करने में सक्षम हो सक
े ।
4. दृश्य और पाठ्य सामग्री का विश्लेषण [ content analysis]
मनुष्य अपने भावों ज्ञान दृष्टिकोण विचार और मूल्यों को भाषा क
े माध्यम से
अभिव्यक्त करता है. समाचार पत्र, टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा आदि माध्यमों से भी
विचारों विश्वासों और मूल्यों का आदान-प्रदान होता है। गुणात्मक शोध क
े अंतर्गत
शोधकर्ता को दृश्य श्रव्य साधनों या अन्य किसी माध्यम से जो विचारात्मक एवं
भावात्मक तथ्य प्राप्त होते हैं, वह अपने तर्क क्षमता, ज्ञान और अनुभव क
े आधार पर
उसका विश्लेषण करता है और विषय क
े संबंध में स्पष्ट वर्णन प्रस्तुत करता है।
उदाहरणार्थ- मतदाताओं क
े मतदान आचरण को ज्ञात करने क
े लिए चुनाव क
े समय
टेलीविजन पर चुनाव विशेषज्ञों क
े द्वारा जो चर्चा- परिचर्चा आयोजित की जाती है,
शोधकर्ता उनक
े तुलनात्मक विश्लेषण को अपने अध्ययन का आधार बनाकर किसी
निष्कर्ष तक पहुंच सकता है।
5. कहानियां एवं किं बदंती-
पारंपरिक रूप में प्रत्येक समाज में किन्हीं घटनाओं एवं परिस्थितियों को लेकर सामान्य
जन एवं बुद्धिजीवियों क
े द्वारा क
ु छ कहानियां, कथाएं या किं बदंती प्रस्तुत की जाती है,
जो भाषण, लेखन, गीत, फिल्म, टेलीविजन, वीडियो गेम्स, फोटोग्राफी या रंगमंच क
े
माध्यम से अभिव्यक्त होती है। यह कहानियां कई बार सामाजिक अन्वेषण क
े लिए एवं
सिद्धांतों तथा नीतियों क
े निर्माण की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी एवं रुचिकर होती है।
महत्वपूर्ण सामाजिक शोधकर्ताओं ने इस बात पर बल दिया है कि यह कहानियां वर्तमान
सामाजिक विज्ञान क
े सिद्धांतों की तुलना में नीति निर्माण का बेहतर विकल्प हो सकती
हैं। गुणात्मक शोध की दृष्टि से इस पद्धति की उपयोगिता समसामयिक समय में बढ़ी
है। संगठनात्मक अध्ययन, समाजशास्त्री एवं शैक्षिक अध्ययनों तथा सिद्धांतों क
े
निर्माण की दृष्टि से इस पद्धति का उपयोग एक साधन क
े रूप में किया जा रहा है।
कहानियां व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होती हैं और इन क
े माध्यम से कठिन विषय
को समझने योग्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
5. सामाजिक सर्वेक्षण-
सामाजिक राजनीतिक शोध की दृष्टि से सर्वेक्षण एक बहुत लोकप्रिय तकनीक है।
सर्वेक्षण शोध व्यक्ति या समूह क
े विषय में व्यवस्थित ढंग से सूचनाओं को संग्रहित
करने का तरीका है जिसका उद्देश्य विषय का वर्णन और विश्लेषण प्रस्तुत करना होता
है। व्यापक स्तर पर सामाजिक सर्वेक्षण का इतिहास पुराना है। राष्ट्रीय जनगणना
सामाजिक सर्वेक्षण का व्यापक स्वरूप है जिसमें देश की संपूर्ण जनसंख्या, उनकी
आर्थिक दशा , जन्म, मृत्यु आदि क
े विषय में विस्तृत तथ्य एकत्रित किए जाते हैं।
सीमाएं- यद्यपि व्यापक सामाजिक समस्याओं क
े संदर्भ में सामाजिक सर्वेक्षण का
आयोजन किया जाता है किं तु इस तरह क
े सर्वेक्षण की क
ु छ अपनी सीमाएं होती हैं। जैसे-
1। सर्वेक्षण हेतु जिस निदर्शन का चयन किया जाता है, वह कई बार संपूर्ण समूह की
विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं होता, इसलिए सर्वेक्षण कार्य में निदर्शन
का चयन बहुत सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
2. लोगों क
े दृष्टिकोण, योग्यताओं ,गुणों एवं व्यवहारों को मापने क
े लिए जिन
पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है, कई बार उनक
े द्वारा प्रस्तुत निष्कर्ष वास्तविकता
से मेल नहीं खाते। सामाजिक विज्ञान में मापन की पद्धति क
े प्रयोग की यह एक बड़ी
सीमा है क्योंकि सामाजिक तथ्य अमूर्त एवं जटिल होते हैं, जिनका वस्तुओं क
े समान
मापन संभव नहीं होता है।
3. सर्वेक्षण अध्ययन क
े लिए चयनित जनसमूह को ध्यान में रखकर किया जाता है और
उस जनसमूह क
े अध्ययन पर प्राप्त निष्कर्षों को व्यापक रूप में संपूर्ण जनसंख्या पर
लागू किया जाता है, किं तु जनसंख्या गुणों की दृष्टि से स्थान- स्थान में भिन्न होती है
ऐसी स्थिति में एक स्थान से प्राप्त निष्कर्ष को संपूर्ण जनसंख्या पर लागू करने का
दुष्परिणाम या होगा कि अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष वैज्ञानिक नहीं होंगे और उन्हें
सार्वभौमिक रूप में लागू करना संभव नहीं होगा। राजनीति विज्ञान क
े क्षेत्र में यूरोपीय
देशों में निर्मित सिद्धांतों में यह त्रुटि अक्सर देखने को मिलती है कि वे विकासशील
देशों की परिस्थितियों क
े अनुरूप वहां की राजनीतिक व्यवस्था की व्याख्या करने में
सक्षम नहीं है।
4. सर्वेक्षण कार्य करते समय जिस प्रश्नावली विधि का प्रयोग किया जाता है उसकी भी
अपनी एक सीमा है, क्योंकि प्रश्नों का चयन इतनी संख्या में और इस ढंग से किया जाना
चाहिए जो संपूर्ण विषय को आच्छादित कर सक
े । यह शोधकर्ता की योग्यता पर निर्भर
करता है कि वह ऐसी प्रश्नावली का निर्माण कर सक
े जिसक
े माध्यम से उससे विषय क
े
बारे में संपूर्ण एवं प्रामाणिक सूचनाएं प्राप्त हो सक
े ।
निष्कर्ष-
● सामाजिक विज्ञान क
े क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान का प्रारंभ द्वितीय विश्व युद्ध
क
े बाद हुए व्यवहारवादी एवं उत्तर व्यवहारवादी आंदोलनों क
े साथ हुआ।
● सामाजिक राजनीतिक शोध का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त क
े साथ-साथ विषय से
संबंधित सिद्धांत निर्माण, सामाजिक राजनीतिक समस्याओं का समाधान एवं
समाज तथा राजनीतिक व्यवस्था क
े आदर्श स्वरूप को प्राप्त करना है।
● सामाजिक- राजनीतिक अनुसंधान प्रयोग में लाई जाने वाली अध्ययन
पद्धतियों, शोधकर्ता क
े दृष्टिकोण क
े आधार पर कई रूपों में वर्गीकृ त किए जाते
हैं।
● वैज्ञानिक पद्धति को अपनाते हुए शोध कार्य से वैज्ञानिक निष्कर्षों की प्राप्ति
तभी संभव है, जब शोध वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण क
े आधार पर किया जाए और
किसी तरह क
े पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत मूल्यों को शोध कार्य से दूर रखा जाए।
● सामाजिक राजनीतिक शोध क
े प्रत्येक रूप की अपनी विशेषताएं एवं सीमाएं हैं,
जिन को ध्यान में रखकर शोध कार्य संपन्न किए जाते हैं।
● समसामयिक दौर में सामाजिक राजनीतिक घटनाओं का संख्यात्मक विवेचन
प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति दिखाई देती है, जिसे मात्रात्मक शोध की संज्ञा दी जाती
है।
● सामाजिक विज्ञानों की एक प्रमुख प्रवृत्ति गुणात्मक शोध की रही है, जिसमें
घटनाओं ,परिस्थितियों या व्यवहारों का अध्ययन उनकी कारण सहित व्याख्या
एवं विशेषताओं क
े स्पष्टीकरण क
े साथ किया जाता है।
● गुणात्मक शोध हेतु वैयक्तिक अध्ययन, सामाजिक सर्वेक्षण, सहभागी
अवलोकन, सामूहिक साक्षात्कार, कहानियों एवं किं बदंती का प्रयोग आदि
साधनों का प्रयोग किया जाता है।
REFERENCES AND SUGGESTED READINGS
● Prabhat Kumar Pani ,Research Methodology; Principles
And Practices
● Social Research Introduction, University Of
Mumbai,http//archive.mu.ac.in
● Usable Theory;Analytic Tools For Social And Political
Research,www.jstor.org
● Social Political influences on
Research,www.cambridge.org
●
प्रश्न-
निबंधात्मक-
1. सामाजिक -राजनीतिक शोध का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसक
े उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
2. सामाजिक राजनीतिक शोध को परिभाषित करते हुए उसक
े प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
3. ऐतिहासिक अनुसंधान से आप क्या समझते हैं, इस पद्धति की सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
4. मात्रात्मक शोध सामाजिक राजनीतिक घटनाओं एवं व्यवहारों का संख्यात्मक विवेचन है, विवेचना
कीजिए।
5. गुणात्मक शोध से आ14 सालप क्या समझते हैं। इस प्रकार क
े शोध कार्य हेतु किन पद्धतियों का
प्रयोग किया जाता है।
व राधास्तुनिष्ठ-
1. राजनीति विज्ञान क
े क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध का प्रारंभ कब हुआ
[ अ ] द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व [ ब ] द्वितीय विश्व युद्ध क
े मध्य [ स ] द्वितीय विश्वयुद्ध क
े
बाद प्रारंभ हुए व्यवहारवादी आंदोलन क
े साथ [ द ] राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक शोध प्रारंभ होना अभी
शेष है।
2. सामाजिक राजनीतिक शोध का उद्देश्य निम्नांकित में से क्या होता है?
[ अ ] विषय से संबंधित ज्ञान की प्राप्ति [ ब ] पूर्व में विद्यमान ज्ञान का सत्यापन [ स ] सामाजिक
समस्याओं का समाधान [ द ] उपर्युक्त सभी
3. महिलाओं एवं बच्चों क
े विरुद्ध हिंसा को समाप्त करने क
े उद्देश्य से किया गया शोध कार्य किस
श्रेणी में रखा जाएगा।
[ अ ] मौलिक अनुसंधान [ ब ] व्यावहारिक अनुसंधान [ स ] क्रियात्मक अनुसंधान [ द ] उपर्युक्त में
से कोई नहीं।
4. क्रियात्मक अनुसंधान में निम्नलिखित में से कौन सी कमी पाई जाती है।
[ अ ] यह ज्ञान वृद्धि में सहायक नहीं होता है। [ ब ] शोधकर्ता का समुचित प्रशिक्षण ना होने क
े कारण
वैज्ञानिक ढंग से शोध कार्य का संचालन संभव नहीं होता। [ स ] इसक
े माध्यम से किसी समस्या का
समाधान प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। [ द ]उपर्युक्त सभी सत्य हैं।
5. मौलिक अनुसंधान किस उद्देश्य से प्रेरित होकर किया जाता है।
[ अ ] विशुद्ध ज्ञान की प्राप्ति [ ब ] ज्ञान का सत्यापन [ स ] उपर्युक्त दोनों [ द ] समस्या का
समाधान
6. ऐतिहासिक पद्धति क
े विश्व में निम्नांकित में से क्या सत्य है?
[ अ ] ऐतिहासिक तथ्यों क
े आधार पर वर्तमान की व्याख्या की जाती है।
[ ब ] यह वर्णनात्मक होती है।
[ स ] विषय की तार्कि क प्रस्तुति की जाती है।
[ द ] उपर्युक्त सभी सत्य है।
7. सांख्यिकी पद्धति एवं ग्राफ का प्रयोग किस तरह क
े अनुसंधान में किया जाता है।
[ अ ] मात्रात्मक अनुसंधान [ ब ] गुणात्मक अनुसंधान [ स ] दोनों में [ द ] क
े वल व्यावहारिक
अनुसंधान में।
8. सामाजिक विज्ञान क
े क्षेत्र में गुणात्मक अनुसंधान किए जाने का कारण क्या है?
[ अ ] सामाजिक राजनीतिक घटनाओं एवं विषयों का जटिल, अमूर्त एवं परिवर्तनशील होना
[ ब ] किसी विषय का वर्णनात्मक प्रस्तुतीकरण आसान होना
[ स ] सामाजिक शोध में गणना आत्मक पद्धति का प्रयोग संभव न होना
[ द ] उपर्युक्त सभी
9. शिक्षकों या मजदूरों क
े समूह की विशेषताओं को स्पष्ट करने हेतु किया जाने वाला गुणात्मक शोध
किस पद्धति क
े आधार पर किया जाएगा।
[ अ ] वैयक्तिक अध्ययन [ब ] ऐतिहासिक अध्ययन [ स ] मात्रात्मक अध्ययन [ द ] उपर्युक्त सभी
उत्तर- 1. स 2. द 3.स 4. ब 5. अ 6. द 7. अ 8. अ 9. अ

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सामाजिक एवं राजनीतिक अनुसंधान

  • 1. सामाजिक एवं राजनीतिक अनुसंधान द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय एसोसिएट प्रोफ े सर, राजनीति विज्ञान क ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय बादलपुर, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश यह सामग्री विशेष रूप से शिक्षण और सीखने को बढ़ाने क े शैक्षणिक उद्देश्यों क े लिए है। आर्थिक / वाणिज्यिक अथवा किसी अन्य उद्देश्य क े लिए इसका उपयोग पूर्णत: प्रतिबंध है। सामग्री क े उपयोगकर्ता इसे किसी और क े साथ वितरित, प्रसारित या साझा नहीं करेंगे और इसका उपयोग व्यक्तिगत ज्ञान की उन्नति क े लिए ही करेंगे। इस ई - क ं टेंट में जो जानकारी की गई है वह प्रामाणिक है और मेरे ज्ञान क े अनुसार सर्वोत्तम है। उद्देश्य- ● सामाजिक अनुसंधान की धारणा एवं उसक े उद्भव की जानकारी ● सामाजिक- राजनीतिक अनुसंधान क े उद्देश्यों का ज्ञान ● सामाजिक -राजनीतिक अनुसंधान क े प्रकारों की जानकारी ● सामाजिक- राजनीतिक शोध की प्रकृ ति एवं सीमाओं का ज्ञान ● सामाजिक विज्ञान में मात्रात्मक एवं गुणात्मक शोध की पद्धतियों का ज्ञान ● सामाजिक विज्ञान में वैज्ञानिक/ प्रयोगात्मक शोध की आवश्यकता एवं प्रासंगिकता का ज्ञान ● सामाजिक राजनीतिक घटनाओं की समझ विकसित करना सामाजिक अनुसंधान किसी भी अन्य अनुसंधान क े समान मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति का परिणाम है। मानव सभ्यता और संस्कृ ति क े विकास क े साथ-साथ सामाजिक संगठन को बेहतर बनाने की खोज अनवरत रूप से जारी है और इसी खोज क े परिणाम स्वरूप हम दुनिया क े विभिन्न देशों में इतिहास क े विभिन्न कालों में सामाजिक संगठनों क े भिन्न-भिन्न स्वरूप का परिचय प्राप्त करते हैं. अतः साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि सामाजिक व्यवस्था को बेहतर बनाने, सामाजिक संबंधों और संगठनों को समझने एवं मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति क े लिए ज्ञान प्राप्ति हेतु किया गया व्यवस्थित प्रयत्न सामाजिक अनुसंधान है। यद्यपि सामाजिक जीवन की प्रेरक घटनाएं बहुत जटिल होती है। भिन्न भिन्न परिस्थितियों और समय में भिन्न-भिन्न कारण घटनाओं को अंजाम देते हैं एवं किसी समस्या क े
  • 2. समाधान हेतु अनेक विकल्प मानवीय विवेक की भिन्नता क े अनुरूप ही मौजूद होते हैं। ऐसे में किसी एक सर्वमान्य सिद्धांत तक पहुंचना सामाजिक शोध क े क्षेत्र में कठिन होता है किं तु फिर भी मनुष्य मानव जीवन की जटिलताओं को समझने क े लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है। सामाजिक जीवन क े क्षेत्र में खोज क े इसी प्रयत्न को सामाजिक अनुसंधान की संज्ञा दी जाती है। राजनीतिक व्यवस्था व्यापक सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है, अतः सामाजिक जीवन क े क्षेत्र में किया जाने वाला अनुसंधान जब राजनीतिक क्षेत्र तक सीमित हो जाता है, तो उसे राजनीतिक अनुसंधान कहते हैं। सामाजिक व्यवस्था को नियंत्रित और निर्देशित करने वाली राजनीतिक व्यवस्था क े आदर्श स्वरूप की प्राप्ति एवं सार्वजनिक जीवन में व्याप्त समस्याओं क े समाधान हेतु विभिन्न स्तरों पर शोधकर्ताओं द्वारा की जाने वाली खोज राजनीतिक अनुसंधान का स्वरूप एवं लक्ष्य स्पष्ट करती है। द्वितीय विश्वयुद्ध उत्तर काल में अमेरिका में प्रारंभ हुए व्यवहारवादी और उत्तर व्यवहारवादी आंदोलनों क े परिणाम स्वरूप राजनीति जैसे विषय में वैज्ञानिक सिद्धांतों क े निर्माण पर जोर दिया गया और इसी क्रम में राजनीतिक शोध क े स्वरूप को भी वैज्ञानिक प्रणालियों क े आधार पर किए जाने पर जोर दिया गया क्योंकि वैज्ञानिक सिद्धांतों का निर्माण वैज्ञानिक पद्धति को अपनाकर किए गए शोध पर ही निर्भर करता है। अनुसंधान- परिभाषाएं ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी क े अनुसार- किसी विषय क े ज्ञान में वृद्धि क े लिए उसका विस्तृत और सुविचारित अध्ययन ही अनुसंधान है। किं तु सामाजिक विज्ञान में क े वल ज्ञान प्राप्ति क े लिए ही अनुसंधान कार्य नहीं किया जाता ,बल्कि ज्ञान की प्राप्ति क े साथ-साथ विद्यमान ज्ञान में संशोधन एवं व्यावहारिक जीवन की समस्याओं क े समाधान हेतु भी शोध को प्रोत्साहित किया जाता है। Merriam-webster डिक्शनरी क े अनुसार ‘’ किसी विषय क े बारे में सावधानीपूर्वक तथ्यों की खोज एवं नए तथ्यों क े संदर्भ में स्वीकृ त सिद्धांतों का पुनर परीक्षण करने की क्रिया विधि शोध कहलाती है। ‘’ डॉक्टर एम .वर्मा क े अनुसार, ‘’ अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है जो नए ज्ञान को प्रकाश में लाती है अथवा पुरानी त्रुटियों एवं भ्रांत धारणाओं का परिमार्जन करती है तथा व्यवस्थित रूप में वर्तमान ज्ञान कोष में वृद्धि करती है। ‘’ एलबी रेडमैन ने ‘रोमांस ऑफ रिसर्च’ में अनुसंधान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि अनुसंधान नवीन ज्ञान की प्राप्ति क े लिए एक व्यवस्थित प्रयास है। ‘’
  • 3. पी. एम. क ु क क े अनुसार, ‘’किसी समस्या क े संदर्भ में ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमानी से तथ्यों, उनक े अर्थ और उपयोगिता की खोज करना ही अनुसंधान है। ‘’ सामाजिक विज्ञान ज्ञानकोश क े अनुसार, ‘’ अनुसंधान वस्तुओं ,विचारों ,संक े तों को क ु शलतापूर्वक व्यवस्थित करता है, जिसका उद्देश्य सामान्य करण द्वारा ज्ञान का विकास, परिमार्जन अथवा सत्यापन होता है चाहे वह ज्ञान क े व्यवहार में सहायक हो अथवा कला में। ‘’ सामाजिक या राजनीतिक अनुसंधान का उद्देश्य- कोई भी सामाजिक या राजनीतिक अनुसंधान किसी एक या कई उद्देश्यों को एक साथ प्राप्त करने क े लिए किया जाता है। श्रीमती पीवी यंग क े अनुसार,’’ सामाजिक अनुसंधान का मूल उद्देश्य, चाहे वह तत्कालीन हो अथवा दीर्घकालीन, सामाजिक जीवन को समझना और ऐसा करक े उस पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करना है। ‘’ सामाजिक अनुसंधान क े प्रमुख उद्देश्य निम्न वत बताये जा सकते हैं- ● नवीन ज्ञान की प्राप्ति- किसी भी सामाजिक राजनीतिक शोध का प्राथमिक उद्देश्य संबंधित विषय क े बारे में नए ज्ञान की खोज करना होता है। इस ज्ञान क े आधार पर ही सार्वजनिक जीवन की घटनाओं व्यवहारों और समस्याओं की व्याख्या की जा सकती है और सामाजिक तथा राजनीतिक संरचनाओं को समझा जा सकता है। ● विद्यमान ज्ञान का सत्यापन- सामाजिक अनुसंधान का एक प्रमुख सैद्धांतिक उद्देश्य किसी विषय क े बारे में पहले से ही चले आ रहे ज्ञान का वर्तमान परिस्थितियों क े संदर्भ में वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर परीक्षण करना होता है। परीक्षण क े दौरान या तो पुराने सिद्धांतों को पुष्टि प्रदान की जाती है या उन्हें गलत सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। कार्ल पॉपर जैसे विद्वान की मान्यता है कि जिस ज्ञान में जितना ज्यादा विरोध की संभावना होती है, उतना ही वह वैज्ञानिक होता है। ग्लेन फायर बाग ने ‘ अपनी पुस्तक ‘7 रूल्स फॉर सोशल रिसर्च’ में शोध कार्य में विद्यमान ज्ञान से पृथक क ु छ आश्चर्यजनक तथ्य को प्रकाश में लाने को आवश्यक माना है जिसे उन्होंने सामाजिक शोध में ‘आश्चर्य की संभावना’ क े रूप में व्याख्यायित किया है। ● सिद्धांत निर्माण- व्यवस्थित ज्ञान की प्राप्ति की दिशा में सामाजिक शोध का उद्देश्य उस विषय क े बारे में तथ्यों क े आधार पर वैज्ञानिक सिद्धांतों का निर्माण करना है। सिद्धांत किसी भी विषय को स्वायत्त दर्जा प्रदान करने क े लिए और उसे विज्ञान की श्रेणी में लाने क े लिए आवश्यक होते हैं और यह उन आधार भूत नियमों क े रूप में कार्य करते हैं, जिनक े आधार पर उस विषय की व्याख्या करना और उसे समझना संभव हो पाता है। उदाहरणार्थ- राज्य की उत्पत्ति क े संबंध में जो प्राथमिक
  • 4. सिद्धांत प्रचलित थे , जैसे- देवी सिद्धांत एवं शक्ति सिद्धांत, उन्हें बाद में हुई खोज क े अनुसार परिवर्तित किया गया एवं सामाजिक समझौता तथा विकासवादी सिद्धांत प्रस्थापित हुए। ● समस्याओं का समाधान- सामाजिक- राजनीतिक जीवन अत्यंत जटिल एवं परिवर्तनशील होता है, ऐसी स्थिति में समय क े अनुसार नित नई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सामाजिक अनुसंधान क े माध्यम से समस्याओं क े कारणों को खोजने क े साथ-साथ उनक े संभावित समाधान भी सुझाए जाते हैं। उदाहरणार्थ- कोविड-19 संकट क े दौरान दुनिया क े विभिन्न देशों में लॉकडाउन की स्थिति में समाज क े विभिन्न वर्गों और उनक े आपसी संबंधों को प्रभावित करने वाले अनेक सामाजिक, राजनीतिक ,आर्थिक कारकों को अनुसंधान क े माध्यम से ढूंढा गया और संकटपूर्ण स्थिति में भी सामाजिक- राजनीतिक जीवन क ै से सुचारू ढंग से संचालित हो सक े , इस विषय में अनुसंधान क े माध्यम से समाधान भी प्रस्तुत किए गए। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में बताया गया लॉक डाउन की स्थितियों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव मजदूरों एवं महिलाओं पर देखा गया है। ● प्रशासन एवं योजनाओं क े निर्माण में सहायक- विकासशील देशों क े प्रशासन की एक बड़ी समस्या सामाजिक जीवन की समस्याओं को वास्तविक धरातल पर समझ कर जनहितकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने की है, किं तु प्रशासन की औपनिवेशिक मानसिकता क े कारण इन देशों में प्रशासनिक अधिकारी सामान्य जन दूर ही रहते हैं, ऐसी स्थिति में कल्याणकारी योजनाओं की सफलता संदिग्ध रहती है। सामाजिक अनुसंधान इस दिशा में सहायक सिद्ध हो सकता है। विभिन्न सामाजिक घटनाओं, क्षेत्रों ,वर्गो एवं कार्यों क े विषय में शोधकर्ताओं क े समूह क े द्वारा व्यापक स्तर पर किए गए शोध कार्य और उन क े माध्यम से निकाले गए निष्कर्ष प्रशासन का पथ- प्रदर्शन करते हैं। वे शोध कार्य में दिए गए सुझावों क े अनुसार योजनाओं का निर्माण कर वास्तविक धरातल पर उनका क्रियान्वयन करने में सफल हो सकते हैं। यही कारण है कि आजकल राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी नीति को क्रियान्वित करने क े लिए उस दिशा में शोध कार्य को प्रोत्साहित किया जा रहा है। उदाहरणार्थ- संयुक्त राष्ट्र संघ क े द्वारा दुनिया में शांति स्थापना की कार्यवाही में आने वाली कठिनाइयों क े निवारण हेतु विभिन्न देशों की सामाजिक आर्थिक राजनीतिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए शोध कार्य को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सामाजिक अनुसंधान क े प्रकार
  • 5. सामाजिक- राजनीतिक अनुसंधान का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जाता है। इनमें से क ु छ प्रमुख आधार इस प्रकार हैं। ● विषय की प्रकृ ति और उसकी विषय वस्तु क े आधार पर इस आधार पर सामाजिक राजनीतिक शोध क े तीन प्रकार बताए जा सकते हैं- 1. मौलिक अनुसंधान [Fundamental Research] मौलिक अनुसंधान को विशुद्ध अनुसंधान या आधारभूत अनुसंधान भी कहते हैं। यह अनुसंधान विशुद्ध ज्ञान प्राप्ति क े उद्देश्य से किया जाता है। सामाजिक समस्याओं का समाधान या आवश्यकताओं की पूर्ति ऐसे अनुसंधान का लक्ष्य नहीं होता है, बल्कि नए ज्ञान की खोज क े माध्यम से ज्ञान भंडार में वृद्धि करना इसका उद्देश्य होता है। साथ ही यह पुराने ज्ञान को नवीन तथ्यों क े संदर्भ में परिमार्जित करता है और तथ्यों क े विश्लेषण क े आधार पर नए मौलिक सिद्धांतों एवं नियमों का निर्माण इस प्रकार क े अनुसंधान क े परिणाम स्वरूप किया जाता है। पी.वी. यंग ने इस संबंध में कहा है कि ‘’विशुद्ध अथवा मौलिक अनुसंधान अनुसंधान वह है जिसमें ज्ञान का संचय क े वल ज्ञान प्राप्ति क े लिए ही हो। ‘’ राजनीति विज्ञान क े क्षेत्र में डेविड ईस्टन एवं आलमंड जैसे सिद्धांत कारों क े द्वारा राजनीतिक व्यवस्था विश्लेषण एवं संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम का विकास या लोक प्रशासन क े क्षेत्र में हर्बर्ट साइमन जैसे विद्वान क े द्वारा निर्णय निर्माण सिद्धांत का निर्माण मौलिक अनुसंधान क े आधार पर ही किया गया। 2. व्यावहारिक अनुसंधान-[Applied Research] व्यावहारिक अनुसंधान का संबंध सामाजिक जीवन क े व्यावहारिक पक्ष से होता है जिसका उद्देश्य सामाजिक समस्याओं को उनक े वास्तविक स्वरूप में समझना और उनक े समाधान क े निमित्त नियोजन को प्रोत्साहित करना होता है। इस प्रकार का अनुसंधान समाज कल्याण, जन स्वास्थ्य की रक्षा ,समाज सुधार, शिक्षा आदि क े क्षेत्र में किया जाता है। समसामयिक विश्व में दुनिया की विभिन्न राष्ट्रों में चल रहे गृह युद्ध, सांप्रदायिक संघर्ष, प्रजातीय विभेद, आतंकवाद एवं माओवादी हिंसा क े संदर्भ में इस प्रकार क े शोध की उपयोगिता बढ़ गई है। इस प्रकार क े शोध में भी वैज्ञानिक प्रविधियों का प्रयोग करते हुए तथ्यों का कारण सहित विश्लेषण किया जाता है। वास्तव में मौलिक अनुसंधान एवं व्यावहारिक अनुसंधान में बहुत बड़ा अंतर नहीं है जैसा कि पी.वी .यंग ने लिखा है कि ‘’ विशुद्ध तथा व्यावहारिक अनुसंधान क े बीच विभाजन की कोई निश्चित रेखा नहीं खींची जा सकती । अनुसंधान क े ये दोनों स्वरूप सिद्धांत क े विकास और उनक े सत्यापन क े लिए एक दूसरे पर निर्भर है। ‘’ 3. क्रियात्मक अनुसंधान- [ Action Research]
  • 6. क्रियात्मक शोध का उद्देश्य सामाजिक संबंधों एवं समाज व्यवस्था क े स्वरूप को अच्छा बनाना होता है। ऐसे शोध का प्रारंभ 1933 में प्रोफ े सर कोलियर ने अमेरिका में किया। रेबिर ने क्रियात्मक अनुसंधान को परिभाषित करते हुए लिखा कि ‘’क्रियात्मक अनुसंधान वह अनुसंधान है जो इस उद्देश्य से किया जाता है कि घटनाओं की समीक्षा की जाए जिससे वास्तविक विश्व समस्याओं का व्यावहारिक उपयोग एवं समाधान हो सक े । ‘’ किसी सामाजिक स्थिति अवस्था को बदलने यह समस्या क े समाधान करने, सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने क े लिए क्रियात्मक शोध का प्रयोग किया जाता है । महिलाओं एवं बच्चों क े विरुद्ध बढ़ती हुई हिंसा को रोकने, पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करने एवं समाज का चतुर्दिक विकास करने क े उद्देश्य से क्रियात्मक शोध का आयोजन किया जाता है। ऐसे शोध क े लिए शोधकर्ता की विषय में वास्तविक रूचि और सक्रियता का होना आवश्यक होता है। क्रियात्मक अनुसंधान क े गुण- वर्तमान में क्रियात्मक अनुसंधान ज्यादा लोकप्रिय हैं क्योंकि ऐसे अनुसंधान में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं- 1. ऐसा अनुसंधान रोजमर्रा की समस्याओं क े समाधान क े लिए किया जाता है अतः ऐसे अनुसंधान क े माध्यम से जन सहभागिता आसानी से प्राप्त की जा सकती है। 2. ऐसे शोध का आधार वास्तविक तथ्य होते हैं जो समाज क े लिए लाभप्रद होते हैं। 3. इनसे व्यावहारिक समस्याओं क े समाधान में सहायता मिलती है। 4. इस प्रकार क े इस शोध का छोटे स्तर पर आयोजन करक े उससे प्राप्त निष्कर्षों को बड़े समूह पर लागू कर समस्याओं का समाधान किया जा सकता है । 5. इस प्रकार की शोध में लचीलापन पाया जाता है क्योंकि आवश्यकतानुसार समस्याओं की व्याख्या और उनक े समाधान हेतु सुझावों क े निमित्त आवश्यकतानुसार शोध की विधियों में परिवर्तन किया जा सकता है। दोष- 1. ऐसा अनुसंधान वैज्ञानिक दृष्टि से खरा नहीं होता । इसमें संपूर्ण शुद्धता का अभाव पाया जाता है। 2. इस प्रकार क े अनुसंधान क े माध्यम से प्राप्त परिणामों को दूसरे संगठन या समाज पर लागू नहीं किया जा सकता है। 3. शोधकर्ता क े लिए अध्ययन की स्थितियां नियंत्रण में नहीं होती हैं, ऐसे में निष्कर्षों की शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है। 4. अत्यधिक लचीलापन क े कारण अनुसंधानकर्ता क े पक्षपातपूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है। 5. ऐसे अनुसंधान करने वालों क े पास अनुसंधान विधि का विशेष प्रशिक्षण नहीं होता है ऐसी स्थिति में शोध कार्य क े संचालन में कठिनाई उत्पन्न होती है।
  • 7. 6। वैज्ञानिकता क े अभाव क े कारण ऐसे अनुसंधान क े निष्कर्ष सार्वभौमिक और भविष्यवाणी योग्य नहीं हो सकते हैं। ● अध्ययन सामग्री क े स्रोतों क े आधार पर अनुसंधान क े प्रकार इस आधार पर शोध क े दो प्रकार पाए जाते हैं- 1. ऐतिहासिक पद्धति पर आधारित अनुसंधान- इस प्रकार क े शोध में वर्तमान सामाजिक राजनीतिक जीवन को स्पष्ट करने क े लिए ऐतिहासिक स्रोतों का प्रयोग किया जाता है। कार्ल मार्क्स, वेस्टरमार्क और ओपन हाय मर जैसे विद्वानों क े द्वारा ऐतिहासिक पद्धति को अपनाकर सामाजिक राजनीतिक सिद्धांतों का निर्माण किया गया एवं सामाजिक राजनीतिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया गया। रेडक्लिफ ब्राउन क े अनुसार, ‘’ ऐतिहासिक पद्धति व विधि है जिसमें कि वर्तमान काल में घटित होने वाली घटनाओं को भूतकाल में घटित हुई घटनाओं क े धारा प्रवाह व क्रमिक विकास को एक कड़ी क े रूप में मानकर अध्ययन किया जाता है। सीमाएं- ऐतिहासिक पद्धति को अपनाकर अनुसंधान कार्य करने की अपनी क ु छ सीमाएं हैं जैसे 1. अतीत में घट चुकी घटनाओं क े विषय में सामग्री को एकत्रित करना आसान नहीं है। जो क ु छ ऐतिहासिक प्रलेख उपलब्ध हैं, उनमें लेखकों की अपने विचार धाराएं पूर्वाग्रह एवं दृष्टिकोण समाहित है जो वैज्ञानिक अनुसंधान की दृष्टि से उपयोगी नहीं है। 2. सभी समस्याओं का ऐतिहासिक विश्लेषण करना सरल कार्य नहीं है। 3. सामाजिक- राजनीतिक संबंध अत्यंत जटिल होते हैं अतः वर्तमान राजनीतिक सामाजिक संबंधों को ऐतिहासिक आधार पर विश्लेषण करना अत्यंत कठिन होता है। उनका वर्गीकरण भी आसान नहीं होता। 4.ऐतिहासिक विवरण क े वल यह बताता है कि भूतकाल में समस्याओं का स्वरूप क्या था, इससे इस बात का पता नहीं चल सकता कि समस्या का वर्तमान या भावी स्वरूप क्या होगा। 2. आनुभविक शोध- आनुभविक शोध समाज की वास्तविक स्थिति को दर्शाने वाले तथ्यों पर आधारित होता है। इस प्रकार क े शोध में शोधकर्ता प्राथमिक स्रोतों क े आधार पर तथ्यों का संकलन करता है। विषय क े संबंध में पहली बार क्षेत्र में जाकर उसी क े द्वारा तथ्य एकत्रित किए जाते हैं और उन्हीं तथ्यों क े विश्लेषण क े आधार पर वह किन्ही निष्कर्ष तक पहुंचता है। इस प्रकार क े शोध में स्वयं शोधकर्ता द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इसलिए यह अधिक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक होता है। ● शोध संरचना क े आधार पर अनुसंधान क े प्रकार-
  • 8. शोध कार्य को व्यवस्थित ढंग से संचालित करने हेतु प्रत्येक शोधकर्ता शोध प्रारूप या संरचना का निर्माण करता है। इस शोध प्रारूप को बनाते समय जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है, उनक े आधार पर शोध की निम्नांकित प्रकार पाए जाते हैं- 1. अन्वेषणात्मक अनुसंधान [Exploratory or Formulative ] शोध संबंधी समस्या या विषय क े चुनाव क े लिए इस प्रकार का अनुसंधान किया जाता है । शोधकर्ता शोध प्रारूप बनाने से पहले किसी विषय क े संबंध में जानकारी प्राप्त करता है और धारणाओं को स्पष्ट करता है ,वास्तविक परिस्थितियों क े संबंध में अनुसंधान की व्यावहारिक समस्याओं का पता लगाने क े लिए इस प्रकार का अनुसंधान करता है ताकि विषय क े संबंध में उपकल्पनाओं का निर्माण किया जा सक े । 2. वर्णनात्मक अनुसंधान- वर्णनात्मक अनुसंधान किसी विषय क े संबंध में व्यापक तथ्यों को एकत्रित कर उसका व्यापक वर्णन प्रस्तुत करता है । विश्वसनीय तथ्यों को एकत्रित करने क े लिए अवलोकन, साक्षात्कार ,अनुसूची ,प्रश्नावली, सहभागी अवलोकन आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। शोध कार्य में वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण को बनाए रखना होता है ताकि पक्षपात, मिथ्या झुकाव एवं पूर्वधारणा आदि से बचा जा सक े । वर्णनात्मक अनुसंधान अत्यंत विस्तृत होता है, अतः इसमें समयबद्धता एवं मितव्ययिता का विशेष ध्यान रखना होता है। 3. प्रयोगात्मक या परीक्षणात्मक अनुसंधान- प्रयोगशाला पद्धति का प्रयोग करते हुए इस प्रकार क े अनुसंधान में दो सामाजिक समूहों को चुनकर किसी एक समूह को नियंत्रित अवस्था में रखकर उस पर नई सामाजिक परिस्थितियों क े प्रभाव का अध्ययन किया जाता है और दूसरे समूह को उसकी स्वाभाविक अवस्था में छोड़ दिया जाता है। यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है कि नियंत्रित समूह पर किसी सामाजिक घटना, कारक, परिवर्तन या परिस्थिति का कितना और क ै सा प्रभाव पड़ा। उदाहरणार्थ- विद्यार्थियों पर ऑनलाइन शिक्षा क े प्रभाव का पता करने क े लिए प्रयोगात्मक पद्धति क े आधार पर विद्यार्थियों क े समूह को चुन लिया जाएगा और उसे ऑनलाइन माध्यमों से शिक्षित किया जाएगा। दूसरे समूह को पारंपरिक शिक्षा प्राप्त करने हेतु छोड़ दिया जाएगा। क ु छ समय बाद यह पता लगाया जाएगा कि ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों एवं पारंपरिक विधि से शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों क े ज्ञान स्तर में क्या और कितना परिवर्तन हुआ है। ● शोधकर्ता द्वारा अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण क े आधार पर- अध्ययन कर्ता किसी मौलिक या क्रियात्मक शोध को करते समय किस तरह क े दृष्टिकोण या विधियों को अपनाता है, इस आधार पर शोध दो प्रकार क े बताए जाते हैं-
  • 9. 1. मात्रात्मक शोध [quantitative] मात्रात्मक शोध क े अंतर्गत किसी वस्तु या घटना का विश्लेषण संख्यात्मक आधार पर किया जाता है या उस घटना क े परिमाण क े आधार पर उसका मापन कर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस प्रकार क े शोध का निष्कर्ष संख्यात्मक होता है। जैसे- किसी चुनाव विशेष में मतदाताओं की संख्या या वर्ग को ज्ञात करने क े लिए जो शोध किया जाएगा, वह मात्रात्मक शोध होगा। ब्रिटिश राजनीतिक विचारक बेंथम ने राजनीतिक कार्यों मैं निहित सुख-दुख क े मापन हेतु एक गणना आत्मक पद्धति दी थी, जिसे ‘Felicific calculus’ की संज्ञा दी। मात्रात्मक शोध की विशेषताएं - ● मात्रात्मक शोध गणनात्मक होता है और यह संख्याओं क े रूप में होता है। इसमें वर्णन का अभाव पाया जाता है और गणित तथा सांख्यिकी का प्रयोग किया जाता है। ● शोध क े निष्कर्ष अक्सर सारणी एवं ग्राफ क े रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। ● मात्रात्मक शोध न क े वल भौतिक विज्ञानों में किए जाते हैं, बल्कि अर्थशास्त्र, समाज विज्ञानो एवं जीव विज्ञान में भी किए जाते हैं। ● इस प्रकार क े शोध का आरंभ परिकल्पना पर आधारित तथ्यों क े संकलन क े आधार पर किया जाता है। ● संख्यात्मक आंकड़ों पर आधारित होने क े कारण परिमाणात्मक शोध में शोधकर्ता क े पक्षपात एवं पूर्वाग्रह क े प्रभाव की संभावना बहुत कम होती है और यह अपनी प्रकृ ति से वस्तुनिष्ठ होता है। ● मात्रात्मक शोध क े अंतर्गत तथ्य संकलन हेतु सर्वेक्षण, नियोजित साक्षात्कार, अवलोकन, रिकॉर्ड एवं समीक्षा जैसी विधियों का प्रयोग किया जाता है। ● इसक े अंतर्गत मुख्य रूप से आगमनात्मक पद्धतिका प्रयोग किया जाता है। आंकड़ों को क ै से चार्ट क े माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है इसका एक उदाहरण निम्न वत है- Indian politics.
  • 11. 2. गुणात्मक शोध [ qualitative] गुणात्मक अनुसंधान को अक्सर मात्रात्मक अनुसंधान क े विपरीत बताया जाता है, क्योंकि इसमें विषय क े संख्यात्मक प्रस्तुतीकरण क े स्थान पर किसी सामाजिक राजनीतिक घटना, स्थिति, कारक , व्यवहार या व्यक्ति की विशेषताओं या गुणों को स्पष्ट किया जाता है। समाज विज्ञान में गुणात्मक शोध होते रहे हैं क्योंकि सामाजिक विज्ञानों की विषय वस्तु मनुष्य, उसका स्वभाव और व्यवहार है, जो अत्यंत जटिल और परिवर्तनशील होने क े कारण संख्यात्मक विवेचना क े योग्य नहीं होता है, ऐसे में सामाजिक विज्ञानों क े शोधार्थी गुणात्मक अनुसंधान करते हैं। हालांकि अब बहुत सी सामाजिक- राजनीतिक घटनाओं का संख्यात्मक विश्लेषण भी किया जाने लगा है, किं तु उसकी अपनी सीमाएं हैं। वस्तुतः सामाजिक विज्ञान का कोई भी शोध न तो पूरी पूरी तरह मात्रात्मक हो सकता है और न ही गुणात्मक। सामाजिक शोध में यह दोनों प्रवृत्तियां साथ- साथ चलती है। हां यह अवश्य है कि उनमें मात्रा का भेद हो सकता है, अर्थात कोई शोध अधिकांश रूप में मात्रात्मक हो सकता है या अधिकांशत; गुणात्मक हो सकता है। यदि हम मतदाताओं क े मतदान आचरण का अध्ययन करने क े लिए कोई शोध करते हैं, तो ऐसा शोध गुणात्मक श्रेणी में आएगा क्योंकि इसक े अंतर्गत हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि कोई मतदाता या मतदाताओं का कोई विशेष वर्ग अपने मताधिकार का प्रयोग किन तत्वों से प्रभावित होकर करता है। जाति ,धर्म ,सांस्कृ तिक विशेषता, प्रजाति, क्षेत्र ,मन; स्थिति, उम्मीदवार की योग्यता, राजनीतिक दल का घोषणा पत्र, कर्तव्य भाव एवं जागरूकता आदि कोई भी तत्व उसक े मतदान को प्रभावित और प्रेरित कर सकता है। यह ऐसे तत्व हैं जिनका संख्यात्मक विवेचन संभव नहीं है। विशेषताएं- ● गुणात्मक शोध गैर संख्यात्मक होता है। इसमें विषय का वर्णन तार्कि क ढंग से किया जाता है। ● इस प्रकार क े शोध का उद्देश्य विषय या स्थिति क े अर्थ एवं भाव को वर्णित करना होता है। ● गुणात्मक तथ्यों को ग्राफ क े रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। ● यह किसी वस्तु या घटना क े पीछे ‘क्यों’ और ‘क ै से’ का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। ● शोध क े इस तरीक े का प्रयोग संख्यात्मक आंकड़ों को अर्थ पूर्ण बनाते हुए उनका वर्णन प्रस्तुत करने क े लिए किया जाता है। जैसे- यदि हम किसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदान प्रतिशत को पुरुष और महिला की श्रेणी में वर्गीकृ त कर प्रस्तुत करते हैं, तो सिर्फ ऐसे प्रस्तुतीकरण से किसी निष्कर्ष पर तब तक नहीं पहुंचा जा सकता जब तक उसकी गुणात्मक व्याख्या करते हुए यह न विश्लेषित किया जाए, कि मतदान प्रतिशत पिछले
  • 12. चुनाव क े मुकाबले कम है या अधिक है अथवा महिला मतदाताओं की संख्या में पुरुष मतदाताओं की तुलना में कमी आई है या वृद्धि हुई है। ● गुणात्मक शोध ज्यादातर व्यक्ति निष्ठ होता है क्योंकि किसी व्यवहार या घटना का अध्ययन करते समय शोधकर्ता अपने दृष्टिकोण एवं मूल्यों को समाहित कर देता है या दूसरे शब्दों में उससे बचना उसक े लिए संभव नहीं हो पाता है। ● गुणात्मक शोध का प्रयोग अक्सर सिद्धांतों और परिकल्पना ओं क े निर्माण क े लिए किया जाता है। ● गुणात्मक शोध में निगमनात्मक पद्धति का प्रयोग किया जाता है। ● गुणात्मक शोध क े निष्कर्ष वैज्ञानिक रूप में प्राप्त करने क े लिए शोधकर्ता की ईमानदारी और परिश्रम अत्यंत आवश्यक है। गुणात्मक अनुसंधान क े तरीक े गुणात्मक अनुसंधान का संचालन करते समय शोधकर्ता विषय से संबंधित तथ्यों क े संकलन हेतु कई तरीकों का प्रयोग करता है, जिनमें से क ु छ प्रमुख प्रभावी तरीक े निम्न वत है- 1. वैयक्तिक अध्ययन -[ case study] इस पद्धति क े अंतर्गत शोधकर्ता एक विशेष क े स को लेकर उसका गण अध्ययन एवं अन्वेषण करता है. यह क े स एक व्यक्ति व्यक्ति समूह जैसे परिवार या वर्ग [ शिक्षक, मजदूर], समुदाय या कोई सांस्कृ तिक इकाई जैसे फ ै शन या कोई संस्था हो सकती है। 2. सहभागी अवलोकन- क्योंकि गुणात्मक शोध क े अंतर्गत किसी वस्तु घटना या व्यवहार की विशेषता जानने का प्रयास किया जाता है और इस उद्देश्य की पूर्ति क े लिए शोधकर्ता को सहभागी अवलोकन की विधि अपनानी पड़ती है, क्योंकि जिस समूह की विशेषताओं का पता करना होता है, शोधकर्ता उस समूह का अंग बनकर स्वाभाविक रूप से उसकी आंतरिक विशेषताओं तक की जानकारी प्राप्त कर पाता है, जो बाह्य अवलोकन से संभव नहीं हो पाता क्योंकि मानव समुदाय में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि वह किसी अजनबी क े सामने अपने स्वाभाविक रूप में स्वयं को प्रस्तुत नहीं करना चाहता। ऐसे में शोध क े निष्कर्ष प्रभावित हो सकते हैं। 3. सामूहिक साक्षात्कार- किसी घटना या व्यवहार क े गुणात्मक विश्लेषण हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि उस घटना या व्यवहार क े प्रत्यक्षदर्शी या सहभागी लोगों से जानकारी प्राप्त की जाए और
  • 13. ऐसा सामूहिक साक्षात्कार क े माध्यम से किया जाता है। एक एक व्यक्ति का पृथक पृथक साक्षात्कार लेना समय और श्रम साध्य हो सकता है, ऐसी स्थिति में सामूहिक साक्षात्कार ज्यादा उपयोगी होता है। साथ ही सामूहिक साक्षात्कार में एक दूसरे की क्रिया प्रतिक्रिया का अवलोकन और विश्लेषण करना भी स्वाभाविक रूप से शोधकर्ता क े लिए संभव हो पाता है जो उसक े अध्ययन क े लिए महत्वपूर्ण तथ्य बन जाता है। विषय से संबंधित विभिन्न पक्षों की जानकारी की दृष्टि से लक्षित समूह का साक्षात्कार बहुत उपयोगी माना जाता है क्योंकि इससे दिन प्रतिदिन क े जीवन एवं अपनाए जाने वाले तरीकों क े विषय में लोगों की समझ शोधकर्ता क े समक्ष साझा होती है और यह पता चलता है कि किसी खास परिस्थिति में व्यक्ति एवं व्यक्ति समूह किन तत्वों से प्रभावित होते हैं। साथ ही विषय क े बारे में नई अंतर्दृष्टि एवं प्रश्न उपस्थित होते हैं क्योंकि विभिन्न परिस्थितियों में व्यवहार करने वाले व्यक्तियों से संपर्क एवं अंतः क्रिया होती है। व्यवहार मैं इस पद्धति को अपनाने में कठिनाई यह है कि विषय पर व्यक्तिगत विचार और समूह क े विचार क े मध्य भेद करना कई बार कठिन हो जाता है। इस पद्धति से लाभ उठाने क े लिए शोधकर्ता में उच्च कोटि का नेतृत्व गुण होना चाहिए जिससे वह समूह को निर्देशित करने में सक्षम हो सक े । 4. दृश्य और पाठ्य सामग्री का विश्लेषण [ content analysis] मनुष्य अपने भावों ज्ञान दृष्टिकोण विचार और मूल्यों को भाषा क े माध्यम से अभिव्यक्त करता है. समाचार पत्र, टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा आदि माध्यमों से भी विचारों विश्वासों और मूल्यों का आदान-प्रदान होता है। गुणात्मक शोध क े अंतर्गत शोधकर्ता को दृश्य श्रव्य साधनों या अन्य किसी माध्यम से जो विचारात्मक एवं भावात्मक तथ्य प्राप्त होते हैं, वह अपने तर्क क्षमता, ज्ञान और अनुभव क े आधार पर उसका विश्लेषण करता है और विषय क े संबंध में स्पष्ट वर्णन प्रस्तुत करता है। उदाहरणार्थ- मतदाताओं क े मतदान आचरण को ज्ञात करने क े लिए चुनाव क े समय टेलीविजन पर चुनाव विशेषज्ञों क े द्वारा जो चर्चा- परिचर्चा आयोजित की जाती है, शोधकर्ता उनक े तुलनात्मक विश्लेषण को अपने अध्ययन का आधार बनाकर किसी निष्कर्ष तक पहुंच सकता है। 5. कहानियां एवं किं बदंती- पारंपरिक रूप में प्रत्येक समाज में किन्हीं घटनाओं एवं परिस्थितियों को लेकर सामान्य जन एवं बुद्धिजीवियों क े द्वारा क ु छ कहानियां, कथाएं या किं बदंती प्रस्तुत की जाती है, जो भाषण, लेखन, गीत, फिल्म, टेलीविजन, वीडियो गेम्स, फोटोग्राफी या रंगमंच क े माध्यम से अभिव्यक्त होती है। यह कहानियां कई बार सामाजिक अन्वेषण क े लिए एवं
  • 14. सिद्धांतों तथा नीतियों क े निर्माण की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी एवं रुचिकर होती है। महत्वपूर्ण सामाजिक शोधकर्ताओं ने इस बात पर बल दिया है कि यह कहानियां वर्तमान सामाजिक विज्ञान क े सिद्धांतों की तुलना में नीति निर्माण का बेहतर विकल्प हो सकती हैं। गुणात्मक शोध की दृष्टि से इस पद्धति की उपयोगिता समसामयिक समय में बढ़ी है। संगठनात्मक अध्ययन, समाजशास्त्री एवं शैक्षिक अध्ययनों तथा सिद्धांतों क े निर्माण की दृष्टि से इस पद्धति का उपयोग एक साधन क े रूप में किया जा रहा है। कहानियां व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होती हैं और इन क े माध्यम से कठिन विषय को समझने योग्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है। 5. सामाजिक सर्वेक्षण- सामाजिक राजनीतिक शोध की दृष्टि से सर्वेक्षण एक बहुत लोकप्रिय तकनीक है। सर्वेक्षण शोध व्यक्ति या समूह क े विषय में व्यवस्थित ढंग से सूचनाओं को संग्रहित करने का तरीका है जिसका उद्देश्य विषय का वर्णन और विश्लेषण प्रस्तुत करना होता है। व्यापक स्तर पर सामाजिक सर्वेक्षण का इतिहास पुराना है। राष्ट्रीय जनगणना सामाजिक सर्वेक्षण का व्यापक स्वरूप है जिसमें देश की संपूर्ण जनसंख्या, उनकी आर्थिक दशा , जन्म, मृत्यु आदि क े विषय में विस्तृत तथ्य एकत्रित किए जाते हैं। सीमाएं- यद्यपि व्यापक सामाजिक समस्याओं क े संदर्भ में सामाजिक सर्वेक्षण का आयोजन किया जाता है किं तु इस तरह क े सर्वेक्षण की क ु छ अपनी सीमाएं होती हैं। जैसे- 1। सर्वेक्षण हेतु जिस निदर्शन का चयन किया जाता है, वह कई बार संपूर्ण समूह की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं होता, इसलिए सर्वेक्षण कार्य में निदर्शन का चयन बहुत सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। 2. लोगों क े दृष्टिकोण, योग्यताओं ,गुणों एवं व्यवहारों को मापने क े लिए जिन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है, कई बार उनक े द्वारा प्रस्तुत निष्कर्ष वास्तविकता से मेल नहीं खाते। सामाजिक विज्ञान में मापन की पद्धति क े प्रयोग की यह एक बड़ी सीमा है क्योंकि सामाजिक तथ्य अमूर्त एवं जटिल होते हैं, जिनका वस्तुओं क े समान मापन संभव नहीं होता है। 3. सर्वेक्षण अध्ययन क े लिए चयनित जनसमूह को ध्यान में रखकर किया जाता है और उस जनसमूह क े अध्ययन पर प्राप्त निष्कर्षों को व्यापक रूप में संपूर्ण जनसंख्या पर लागू किया जाता है, किं तु जनसंख्या गुणों की दृष्टि से स्थान- स्थान में भिन्न होती है ऐसी स्थिति में एक स्थान से प्राप्त निष्कर्ष को संपूर्ण जनसंख्या पर लागू करने का दुष्परिणाम या होगा कि अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष वैज्ञानिक नहीं होंगे और उन्हें सार्वभौमिक रूप में लागू करना संभव नहीं होगा। राजनीति विज्ञान क े क्षेत्र में यूरोपीय
  • 15. देशों में निर्मित सिद्धांतों में यह त्रुटि अक्सर देखने को मिलती है कि वे विकासशील देशों की परिस्थितियों क े अनुरूप वहां की राजनीतिक व्यवस्था की व्याख्या करने में सक्षम नहीं है। 4. सर्वेक्षण कार्य करते समय जिस प्रश्नावली विधि का प्रयोग किया जाता है उसकी भी अपनी एक सीमा है, क्योंकि प्रश्नों का चयन इतनी संख्या में और इस ढंग से किया जाना चाहिए जो संपूर्ण विषय को आच्छादित कर सक े । यह शोधकर्ता की योग्यता पर निर्भर करता है कि वह ऐसी प्रश्नावली का निर्माण कर सक े जिसक े माध्यम से उससे विषय क े बारे में संपूर्ण एवं प्रामाणिक सूचनाएं प्राप्त हो सक े । निष्कर्ष- ● सामाजिक विज्ञान क े क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान का प्रारंभ द्वितीय विश्व युद्ध क े बाद हुए व्यवहारवादी एवं उत्तर व्यवहारवादी आंदोलनों क े साथ हुआ। ● सामाजिक राजनीतिक शोध का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त क े साथ-साथ विषय से संबंधित सिद्धांत निर्माण, सामाजिक राजनीतिक समस्याओं का समाधान एवं समाज तथा राजनीतिक व्यवस्था क े आदर्श स्वरूप को प्राप्त करना है। ● सामाजिक- राजनीतिक अनुसंधान प्रयोग में लाई जाने वाली अध्ययन पद्धतियों, शोधकर्ता क े दृष्टिकोण क े आधार पर कई रूपों में वर्गीकृ त किए जाते हैं। ● वैज्ञानिक पद्धति को अपनाते हुए शोध कार्य से वैज्ञानिक निष्कर्षों की प्राप्ति तभी संभव है, जब शोध वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण क े आधार पर किया जाए और किसी तरह क े पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत मूल्यों को शोध कार्य से दूर रखा जाए। ● सामाजिक राजनीतिक शोध क े प्रत्येक रूप की अपनी विशेषताएं एवं सीमाएं हैं, जिन को ध्यान में रखकर शोध कार्य संपन्न किए जाते हैं। ● समसामयिक दौर में सामाजिक राजनीतिक घटनाओं का संख्यात्मक विवेचन प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति दिखाई देती है, जिसे मात्रात्मक शोध की संज्ञा दी जाती है। ● सामाजिक विज्ञानों की एक प्रमुख प्रवृत्ति गुणात्मक शोध की रही है, जिसमें घटनाओं ,परिस्थितियों या व्यवहारों का अध्ययन उनकी कारण सहित व्याख्या एवं विशेषताओं क े स्पष्टीकरण क े साथ किया जाता है। ● गुणात्मक शोध हेतु वैयक्तिक अध्ययन, सामाजिक सर्वेक्षण, सहभागी अवलोकन, सामूहिक साक्षात्कार, कहानियों एवं किं बदंती का प्रयोग आदि साधनों का प्रयोग किया जाता है।
  • 16. REFERENCES AND SUGGESTED READINGS ● Prabhat Kumar Pani ,Research Methodology; Principles And Practices ● Social Research Introduction, University Of Mumbai,http//archive.mu.ac.in ● Usable Theory;Analytic Tools For Social And Political Research,www.jstor.org ● Social Political influences on Research,www.cambridge.org ● प्रश्न- निबंधात्मक- 1. सामाजिक -राजनीतिक शोध का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसक े उद्देश्यों की विवेचना कीजिए। 2. सामाजिक राजनीतिक शोध को परिभाषित करते हुए उसक े प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए। 3. ऐतिहासिक अनुसंधान से आप क्या समझते हैं, इस पद्धति की सीमाओं का उल्लेख कीजिए। 4. मात्रात्मक शोध सामाजिक राजनीतिक घटनाओं एवं व्यवहारों का संख्यात्मक विवेचन है, विवेचना कीजिए। 5. गुणात्मक शोध से आ14 सालप क्या समझते हैं। इस प्रकार क े शोध कार्य हेतु किन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। व राधास्तुनिष्ठ-
  • 17. 1. राजनीति विज्ञान क े क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध का प्रारंभ कब हुआ [ अ ] द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व [ ब ] द्वितीय विश्व युद्ध क े मध्य [ स ] द्वितीय विश्वयुद्ध क े बाद प्रारंभ हुए व्यवहारवादी आंदोलन क े साथ [ द ] राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक शोध प्रारंभ होना अभी शेष है। 2. सामाजिक राजनीतिक शोध का उद्देश्य निम्नांकित में से क्या होता है? [ अ ] विषय से संबंधित ज्ञान की प्राप्ति [ ब ] पूर्व में विद्यमान ज्ञान का सत्यापन [ स ] सामाजिक समस्याओं का समाधान [ द ] उपर्युक्त सभी 3. महिलाओं एवं बच्चों क े विरुद्ध हिंसा को समाप्त करने क े उद्देश्य से किया गया शोध कार्य किस श्रेणी में रखा जाएगा। [ अ ] मौलिक अनुसंधान [ ब ] व्यावहारिक अनुसंधान [ स ] क्रियात्मक अनुसंधान [ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं। 4. क्रियात्मक अनुसंधान में निम्नलिखित में से कौन सी कमी पाई जाती है। [ अ ] यह ज्ञान वृद्धि में सहायक नहीं होता है। [ ब ] शोधकर्ता का समुचित प्रशिक्षण ना होने क े कारण वैज्ञानिक ढंग से शोध कार्य का संचालन संभव नहीं होता। [ स ] इसक े माध्यम से किसी समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। [ द ]उपर्युक्त सभी सत्य हैं। 5. मौलिक अनुसंधान किस उद्देश्य से प्रेरित होकर किया जाता है। [ अ ] विशुद्ध ज्ञान की प्राप्ति [ ब ] ज्ञान का सत्यापन [ स ] उपर्युक्त दोनों [ द ] समस्या का समाधान 6. ऐतिहासिक पद्धति क े विश्व में निम्नांकित में से क्या सत्य है? [ अ ] ऐतिहासिक तथ्यों क े आधार पर वर्तमान की व्याख्या की जाती है। [ ब ] यह वर्णनात्मक होती है। [ स ] विषय की तार्कि क प्रस्तुति की जाती है। [ द ] उपर्युक्त सभी सत्य है। 7. सांख्यिकी पद्धति एवं ग्राफ का प्रयोग किस तरह क े अनुसंधान में किया जाता है। [ अ ] मात्रात्मक अनुसंधान [ ब ] गुणात्मक अनुसंधान [ स ] दोनों में [ द ] क े वल व्यावहारिक अनुसंधान में। 8. सामाजिक विज्ञान क े क्षेत्र में गुणात्मक अनुसंधान किए जाने का कारण क्या है? [ अ ] सामाजिक राजनीतिक घटनाओं एवं विषयों का जटिल, अमूर्त एवं परिवर्तनशील होना [ ब ] किसी विषय का वर्णनात्मक प्रस्तुतीकरण आसान होना [ स ] सामाजिक शोध में गणना आत्मक पद्धति का प्रयोग संभव न होना [ द ] उपर्युक्त सभी
  • 18. 9. शिक्षकों या मजदूरों क े समूह की विशेषताओं को स्पष्ट करने हेतु किया जाने वाला गुणात्मक शोध किस पद्धति क े आधार पर किया जाएगा। [ अ ] वैयक्तिक अध्ययन [ब ] ऐतिहासिक अध्ययन [ स ] मात्रात्मक अध्ययन [ द ] उपर्युक्त सभी उत्तर- 1. स 2. द 3.स 4. ब 5. अ 6. द 7. अ 8. अ 9. अ