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समानतावाद
द्वारा- डॉ. ममता उपाध्याय
प्रोफ
े सर, राजनीति विज्ञान
क
े . एम . कॉलेज, बादलपुर
गौतमबुद्ध नगर,उत्तर प्रदेश
‘’ प्रत्येक प्रशंसनीय राजनीतिक सिद्धांत का अंतिम आदर्श समानता है । यह सभी
समानतावादी सिद्धांत हैं । क
ु छ सिद्धांत जैसे नाजीवाद इस बात से इंकार करता है कि
हर व्यक्ति का महत्व समान है। किं तु ऐसे सिद्धांत राजनीतिक चिंतन में गंभीर स्थान
नहीं रखते। ‘’
- किमलिका
● उद्देश्य-
● लोकतंत्र क
े आदर्श क
े रूप में समानता की धारणा का विश्लेषण
● समानता की धारणा क
े बहुआयामी रूप का विश्लेषण
● समानता और न्याय क
े पारस्परिक संबंधों का विश्लेषण
● समानता से सम्बद्ध चर्चा से संबंधित विभिन्न सिद्धांतों की जानकारी
● समानता पर आधारित न्यायपूर्ण समाज की स्थापना क
े प्रति
संवेदनशीलता का विकास
● समानता की वांछनीयता क
े विषय में तार्कि क दृष्टिकोण का विकास
मुख्य शब्द- समानता, न्याय, प्रजातंत्र, अवसर, संसाधन, कल्याण,धर्म ,
आंदोलन, पर्याप्तता
समानतावाद एक व्यापक विचारधारा एवं समसामयिक राजनीतिक बहस का क
ें द्र बिंदु है,
जिसका लक्ष्य मानव मात्र की समानता से युक्त समाज का निर्माण करना है। यह क
ै सा
आदर्श है जिसे प्रजातंत्र क
े तीन आदर्शों- स्वतंत्रता समानता एवं बंधुत्व में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण माना जाता है। समानता की धारणा राजनीतिक चिंतन में सर्वाधिक लोकप्रिय
धारणा है। समानता की मांग को लेकर इतिहास में अनेक युद्ध लड़े गए, दावे प्रस्तुत
किए गए एवं सिद्धांत निर्मित किए गए। समानता की धारणा अनेक आधुनिक
सामाजिक आंदोलनों जैसे- पुनर्जागरण आंदोलन, नारीवाद, नागरिक अधिकार आंदोलन
एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की स्वीकृ ति का आधार बनी, फिर भी जैसा की
लास्की ने ‘ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स’ में लिखा कि ‘’ समानता की धारणा को परिभाषित
करना सबसे अधिक कठिन कार्य है। ‘’ जे.आर.. लुकास का भी मत है कि ‘’ समानता
आधुनिक युग का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा है। स्वतंत्रता को भुला दिया गया, बंधुत्व
कभी हमारा जुनून नहीं बन सका ,किं तु समानता ऐसा विषय है जिस पर निरंतर बहस
चलती रही है। ‘’ सोवियत संघ क
े पतन क
े बाद दुनिया में समानता पर बहस तेज हो गई
है। वास्तव में समानता का आदर्श एक बहुआयामी किं तु रहस्यमय आदर्श है। एक दृष्टि
से सभी व्यक्तियों को समान बनाए जाने पर भी अन्य दृष्टि से वे आसमान हो जाते
हैं।अतः कहा जा सकता है की समानता क
े आदर्श की प्राप्ति क
े विषय में एकमत होते हुए
भी समानता की धारणा नितांत अस्पष्ट ,असंगत एवं विरोधाभास से पूर्ण है ।
Merriam-webster डिक्शनरी क
े अनुसार, ‘’ समानतावाद सामाजिक
राजनीतिक और आर्थिक मामलों में मानवीय समानता संबंधी विश्वास है तथा एक
सामाजिक दर्शन क
े रूप में लोगों क
े मध्य असमानता को समाप्त करने की पक्षधर है। ‘’
ब्रिटानिका विश्वकोश क
े अनुसार, ‘’ समानतावादद मानवीय समानता
विशिष्ट राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक समानता संबंधी विश्वास है। ‘’
समानता की धारणा का ऐतिहासिक विकास-
समानतावाद को अक्सर समाज क
े पदसोपान ढांचे क
े विरुद्ध समझा जाता है जहां लोगों
का वर्गीकरण उनकी योग्यता, आर्थिक शक्ति, सामाजिक प्रस्थिति एवं अन्य तथ्यों क
े
आधार पर किया जाता है। यह माना जाता है कि प्रारंभिक मानवीय समाज पर्याप्त मात्रा
में समानतावादी थे। क
ु छ विद्वानों का मत है कि कृ षि क
े आविष्कार क
े कारण संपत्ति का
क
ें द्रीकरण हुआ होगा और पदसोपानीय ढांचे पर आधार समाज का विकास हुआ होगा।
समानता की धारणा को कई बार धर्म से भी जोड़ा जाता है। विशेष रुप से ईसाई धर्म में
ईश्वर की नजरों में सभी मनुष्यों की समानता का विचार प्रस्तुत किया गया। पुनर्जागरण
आंदोलन में समानता का आदर्श प्रतिबिंबित होता है, जिसक
े अंतर्गत समाज क
े सभी
सदस्यों की समानता की स्थिति को स्वीकार किया गया। आधुनिक युग की
मानवाधिकारों की धारणा न क
े वल यह प्रतिपादित करती है कि सभी मनुष्य नैतिक रूप से
समान है, बल्कि उनक
े क
ु छ निश्चित अधिकार भी हैं जिनका दावा सभी क
े द्वारा समान
रूप से किया जा सकता है। इन मानवाधिकारों में कानून क
े समक्ष समानता, प्रजाति,
नृजातीयता, लिंग, धर्म आदि क
े आधार पर भेद का अंत जैसे समानतावादी अधिकार
स्वीकार किए गए हैं।
समानता संबंधी बहस क
े आधार-
समसामयिक दौर में समानता क
े मुद्दे पर जो भी चर्चाएं चल रही है ,इनक
े आधार
क
ें द्रबिंदु निम्नवत है-
1. समानता क्यों, क
ै से और किस आधार पर स्थापित की जाए।
2. समानता एक स्वतंत्र मूल्य है अथवा न्याय,प्रजातंत्र तथा अन्य मूल्यों क
े साथ संबंधित
है।
3. समानता आनुपातिक हो अथवा पूर्ण रूप में।
4. प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं - धन संपदा, शक्ति, गौरव, पद, प्रतिष्ठा एवं अवसर
समान रूप से वितरित किए जाएं अथवा नहीं।
5. क्या समानता अलग से प्राप्त किया जाने वाला आदर्श है या यह अन्य किसी आदर्श को
प्राप्त करने का साधन मात्र है। क
ु छ समानता वादी यह तर्क देते हैं कि समानता इसलिए
वांछित है क्योंकि यह अन्य अच्छाइयों जैसे मानवीय कल्याण को प्रोत्साहित करती है।
क
ु छ इसे न्याय की प्राप्ति का साधन मानते हैं।
समानतावादी आंदोलन-
अमरीकी और फ्रांसीसी क्रांति में समानता का आदर्श आधुनिक युग में सर्वप्रथम दिखाई
देता है। अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में कहा गया कि सभी मनुष्य समान रूप से जन्मे
हैं , इसलिए उन्हें क
ु छ अधिकार प्राकृ तिक रूप से उपलब्ध हैं जैसे- जीवन, स्वतंत्रता एवं
प्रसन्नता का अधिकार। फ्रांसीसी क्रांति का नारा ही था ‘स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व’
अर्थात क्रांतिकारियों क
े द्वारा ऐसे समाज की स्थापना पर बल दिया गया जो स्वतंत्र और
सम्मान हो और जहां क
ु लीन तंत्र की विशेषताएं न पाई जाती हों । राजनीतिक चिंतन में
उदारवादी धारणा का यह अंतर्निहित आदर्श था कि कानून क
े समक्ष समानता सुनिश्चित
की जाए। समाजवादी राजनीतिक दल इस बात में विश्वास रखते हैं की संपत्ति का
स्वामित्व सामूहिक होना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक और राजनीतिक
शक्ति समान रूप से प्राप्त हो सक
े । कार्ल मार्क्स ने समानतावाद को पूंजीवादी व्यवस्था
में मौजूद शोषण क
े विरुद्ध प्रस्तावित किया और ऐसे समाज की कल्पना की जहां प्रत्येक
व्यक्ति अपनी योग्यता क
े अनुसार काम करेगा और आवश्यकता क
े अनुसार पारिश्रमिक
प्राप्त करेगा। नारीवाद को भी एक समानतावादी आंदोलन माना जाता है जो लैंगिक
विभेद को समाप्त कर स्त्रियों को पुरुषों क
े समान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक
अधिकार दिलाना चाहता है। वर्तमान में कभी-कभी समानतावाद को नारीवाद क
े विकल्प
क
े रूप में प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि नारीवाद को कई बार विभाजन कारी आंदोलन क
े
रूप में देखा जाता है जो समाज को स्त्रियों और पुरुषों क
े मध्य विभाजित करता है।
विशेष रूप से क्रांतिकारी नारीवाद मे यह विशेषता परिलक्षित होती है, जब वह पुरुषों क
े
समाज से पृथक स्त्रियों का एक अलग समाज बनाना चाहता है ।समानतावाद शब्द का
प्रयोग अक्सर घर क
े वयस्क लोगों क
े मध्य घरेलू कार्यों की समान वितरण हेतु भी किया
जाता है और यह माना जाता है कि बच्चों का पालन पोषण माता-पिता दोनों की
जिम्मेदारी है न कि पारंपरिक पारिवारिक ढांचे क
े अंतर्गत क
े वल माता की। क
ु छ
विद्वान यह विचार व्यक्त करते हैं कि मानवीय समाज समय क
े साथ अधिक
समानतावादी बना है। अर्थशास्त्री आर. जे . लैंपमैन का कथन है कि ‘’ समानता का
प्रश्न प्रत्येक पीढ़ी क
े लिए अलग-अलग रहा है, क्योंकि प्रत्येक पीढ़ी ने समानता क
े विषय
में अलग सीमा रेखा खींची है। ‘’
समानता संबंधी प्रमुख धारणाएं
भिन्न -भिन्न विचारकों ने समानता को अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है, अतः
समानता की कई धारणाएं सामने आती है, जिनमें से क
ु छ प्रमुख इस प्रकार है-
लुइस पूजमैन ने समानता संबंधी विभिन्न धारणाओं को समन्वित करते हुए
निम्नांकित 3 धारणाओं का प्रतिपादन किया है-
1. औपचारिक समानता की धारणा-
औपचारिक समानता कानूनी प्रक्रियाओं क
े माध्यम से समानता स्थापित करने का विचार
रखती है तथा विधि का शासन इसका प्रमुख साधन है।
2. वास्तविक समानता की धारणा-
इस धारणा क
े अंतर्गत कानूनी समानता को पर्याप्त नहीं माना जाता है और ऐसी
समानता का पक्ष लिया जाता है जो वास्तविक रूप में प्राप्त हो । संतुष्टि और संसाधनों की
समानता, अवसर की समानता ,जनकल्याण और लोगों का सामाजिक राजनीतिक और
आर्थिक अधिकारों की उपलब्धि को वास्तविक समानता की धारणा क
े अंतर्गत सम्मिलित
किया जाता है।
3. तात्विक समानता की धारणा-
यह धारणा यह प्रतिपादित करती है कि प्राकृ तिक दृष्टि से योग्यता, आकार और बुद्धि
की दृष्टि से भिन्न होने क
े बावजूद सभी मनुष्यों क
े साथ सामाजिक- राजनीतिक जीवन में
इसलिए समान व्यवहार होना चाहिए क्योंकि सभी मनुष्य, मनुष्य हैं । अमेरिकी
स्वतंत्रता की घोषणा 1776 में ऐसी ही समानता की अभिव्यक्ति हुई है।
4. जटिल समानता की धारणा-
माइकल वूलजेर ने इसका प्रतिपादन किया है। इस धारणा क
े अनुसार मानव कल्याण
की धारणा विभिन्न संस्कृ तियों और समाजों में भिन्न-भिन्न है जिसक
े कारण समानता
की सार्वभौमिक धारणा बनाना असंभव है।
5. अवसर की समानता-
इस धारणा क
े अंतर्गत माना जाता है कि सभी को अपने व्यक्तित्व को विकसित करने का
समान अवसर मिलना चाहिए तथा समान कार्य क
े लिए समान उपलब्धि मिलनी चाहिए।
अवसर की समानता क
े दो रूप हैं- 1. प्रतिस्पर्धी अवसर की समानता 2. गैर प्रतिस्पर्धी
अवसर की समानता। प्रतिस्पर्धी अवसर की समानता की धारणा सभी को कानूनी रूप से
समान अवसर देने क
े बाद लोगों क
े मध्य खुली प्रतियोगिता की छ
ू ट देती है जिसमें प्रत्येक
व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार प्राप्त कर सक
े गा। इसे ‘मेरीटोक्र
े सी’ भी कहते हैं। किं तु
प्रोफ
े सर अमर्त्य सेन, जॉन रॉल्स, एलिजाबेथ एंडरसन आदि ने प्रतिस्पर्धी अवसर की
समानता को क्र
ू र मानते हुए यह विचार व्यक्त किया कि क
ु छ प्राथमिक सामाजिक
वस्तुओं को प्राप्त करने क
े अवसर सभी को समान रूप से दिए जाने चाहिए और जो लोग
जाति, प्रजाति, वर्ग ,लिंग , वातावरण जैसी सामाजिक परिस्थितियों क
े कारण अवसर का
लाभ नहीं उठा पा रहे हैं, उनक
े लिए अवसर तक पहुंच संभव बनाने क
े लिए राज्य को
सकारात्मक कार्यवाही करनी चाहिए।
6. कल्याण की समानता-
क
ु छ विचारक समानता की प्राप्ति क
े लिए सभी का समान रूप से कल्याण किए जाने का
विचार रखते हैं। लोक कल्याणकारी विचारधारा और उपयोगितावाद क
े समर्थक ऐसे
विचार व्यक्त करते हैं। किं तु इस धारणा क
े साथ समस्या यह है कि लोक कल्याण का
विचार एक व्यक्तिनिष्ठ विचार है। प्रत्येक व्यक्ति समाज और स्थान क
े लिए कल्याण
का तात्पर्य भिन्न हो सकता है, अतः इस धारणा को व्यावहारिक रूप से लागू करना कठिन
है। क
ु छ विचारक कल्याण को सफलता का पर्याय मानते हैं तो क
ु छ संतुष्टि का।
6. संसाधनों की समानता-
रोनाल्ड डवोरकीं जैसे विचारक समानता की स्थापना हेतु सभी लोगों क
े मध्य आर्थिक
संसाधनों का समान वितरण आवश्यक मानते हैं और यह प्रतिपादित करते हैं कि ये
संसाधन सभी को आजीवन प्राप्त होते रहने चाहिए। इसक
े लिए उन्होंने इंश्योरेंस
व्यवस्था का समर्थन किया, जिसमें व्यक्ति क
े साथ जीवन में कोई आकस्मिकता हो जाने
पर संसाधनों की आपूर्ति होती रहती है।
7. क्षमताओं की समानता-
अमर्त्य सेन एवं नैसबॉम का मत हैकि क
े वल अवसरों या संसाधनों की समानता उपलब्ध
करा देने से ही समानता स्थापित नहीं हो जाएगी बल्कि व्यक्ति मे उन अवसरों और
संसाधनों का लाभ उठाने की क्षमता भी होनी चाहिए। बहुत से ऐसे कारक है जो आय और
संसाधनों की समानता को बेईमानी कर देते हैं। यह हैं -
[ अ ] व्यक्तिगत भिन्नतायें -
जैसे- अपंगता, बीमारी, वृद्धावस्था आदि मे आवश्यकताओं में अंतर होने क
े कारण
अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
[ ब ] पर्यावरणीय भिन्नता-
जैसे अत्यधिक गर्म या ठंडी जलवायु आय की समानता क
े परिणाम को असमान बना
देती है, क्योंकि तापमान कम करने हेतु वातानुक
ू लन की व्यवस्था में ज्यादा धन खर्च
करना पड़ता है ।
[ स ] सामाजिक पर्यावरण और परंपराएं-
शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं तथा सामाजिक परंपराएं भी यह तय करती है कि
व्यक्ति संसाधनों और अवसरों का कितना उपयोग कर सक
े गा। अतः समानता क
े लिए
लोगों में अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता विकसित करना आवश्यक है।
8. प्राथमिकता की धारणा-
डेरेक परफिट द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धांत में प्राकृ तिक क्षमताओं- प्रतिभा
योग्यता ,सामर्थ्य की असमानता को स्वीकार करते हुए जानबूझकर किए जाने वाले
असमान व्यवहार का विरोध किया गया है क्योंकि ऐसी असमानता अन्याय को जन्म देती
है। साथ ही यह सभी क
े मध्य संसाधनों क
े समान वितरण क
े स्थान पर प्राथमिकता क
े
आधार पर पहले उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने की समर्थक है जो गरीब है और जिनक
े पास
जीवन की आवश्यकताएं उपलब्ध नहीं है। यदि विषमता अर्थात अमीर गरीब की खाई
ज्यादा हो जाती है तो ऐसी स्थिति में अमीरों की संपत्ति गरीबों क
े कल्याण में लगाकर क
ु छ
हद तक यह खाई कम की जा सकती है। परफिट इसे ‘ Levelling down’ कहते हैं.
किं तु टेमकिन व फिरले जैसे विचारक इसकी सीमाएं निर्धारित करते हैं। उनक
े अनुसार
यदि वंचितों को जीवन की आवश्यकताएं उपलब्ध कराने में ही सारे संसाधन खर्च कर दिए
जाएंगे तो सभ्यता क
े विकास क
े लिए वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कार संभव नहीं होंगे।
9. पर्याप्तता सिद्धांत-
फ्र
ैं कफर्ट द्वारा प्रतिपादित यह समानता का एक नैतिक दृष्टिकोण है जिसक
े अनुसार
समानतावाद का मुख्य मुद्दा समानता नहीं, बल्कि संसाधनों की पर्याप्तता होना चाहिए।
अर्थात सबको जीवन क
े लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी
चाहिए। फ्र
ैं कफर्ट क
े अनुसार आर्थिक समानता क
े साथ मुख्य आपत्तिजनक बात यह है कि
यह स्वतंत्रता क
े विरुद्ध है और आर्थिक समानता स्थापित करने क
े लिए राज्य को
बाध्यकारी साधन अपनाना होता है, जो उचित नहीं है। यह लोगों में अलगाव और विद्वेष
की भावना पैदा करता है तथा चूंकि योग्य एवं क
ु शल लोग श्रम करने से बचने लगते हैं
क्योंकि उन्हें यह अनुभव होता है कि वे चाहे जितना भी श्रम कर ले, उन्हें मिलेगा सब क
े
बराबर ही। व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से उचित नहीं है। दूसरे, आर्थिक समानता पर
अत्यधिक बल देने से लोगों का जीवन क
े प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है। भौतिक
सुख-सुविधाओं पर अत्यधिक ध्यान देने से उपभोक्तावाद का विकास होता है और नैतिक
विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। फ्र
ैं कफर्ट से ‘shallowness of our
time’कहते हैं। अतः सब क
े पास जीवन क
े पर्याप्त साधन होने चाहिए जिससे वे संतुष्टि
का अनुभव कर सक
ें ।
किं तु पर्याप्त संसाधन समय, देश और व्यक्ति क
े
अनुसार भिन्न भिन्न होते हैं, अतः इस सिद्धांत में भी वस्तुनिष्ठता का अभाव दिखाई
देता है।
10. भाग्यवादी समानता का सिद्धांत-
रोनाल्डो डवोरकीं ,एलिजाबेथ एंडरसन, कोहेन एवं रिचर्ड ओर्नेसन द्वारा इस सिद्धांत
का प्रतिपादन किया गया। यह सिद्धांत व्यक्ति क
े दो तरह क
े भाग्य की बात करता है-
1. प्राकृ तिक भाग्य 2. वैकल्पिक भाग्य। प्राकृ तिक भाग्य जन्मजात होता है और इसे
बदला नहीं जा सकता। जैसे जन्मांध होना प्राकृ तिक भाग्य है जिसे स्वीकार करना
व्यक्ति की विवशता बन जाती है। किं तु वैकल्पिक भाग्य वह है जिसे व्यक्ति स्वयं
चुनता है। जैसे सभी क
े पास समान अवसर मौजूद होने पर भी यदि कोई अवसरों का
लाभ नहीं उठाना चाहता या उसक
े लिए प्रयास नहीं करता तो यह उसक
े द्वारा चुना गया
भाग्य है। इस सिद्धांत की मान्यता है कि प्राकृ तिक दुर्भाग्य से पीड़ित व्यक्तियों की
राज्य और समाज द्वारा आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराकर सहायता की जानी चाहिए,
किं तु जिन्होंने जानबूझकर दुर्भाग्य का वरण किया है उसकी सहायता न करना ही न्याय
पूर्ण है।
11. समानता एक नैतिक सामाजिक और राजनीतिक आदर्श क
े रूप में-
जफर जैसे विद्वान ने इस धारणा का प्रतिपादन किया है। एक नैतिक धारणा क
े रूप
में समानता का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य चूंकि मनुष्य है इसलिए सामाजिक
जीवन में उसक
े साथ मानवोचित व्यवहार होना चाहिए। एक सामाजिक आदर्श क
े रूप में
यह सामाजिक सहयोग की अपेक्षा करती है और एक राजनीतिक आदर्श क
े रूप में राज्य
द्वारा सभी नागरिकों को जीवन की आवश्यक दशाएं अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने का
विचार रखती है।
आलोचना-
Murray Rothbard ने अपनी पुस्तक ‘ Egalitarianism As a Revolt Against
Nature and Other Essays’ में समानतावाद की धारणा की आलोचना करते हुए कहा
है कि यह धारणा हमेशा राजकीय नियंत्रण आधारित राजनीति को प्रोत्साहित करती है।
रदवार्ड का मत है कि व्यक्ति प्राकृ तिक रूप से अपनी योग्यता, प्रतिभा और अन्य
विशेषताओं की दृष्टि से आसमान है और यह समानता न क
े वल प्राकृ तिक है, बल्कि
समाज क
े संचालन क
े लिए आवश्यक भी है। लोगों की अनूठी योग्यताएं और विशेषताएं
उन्हें भिन्न-भिन्न तरीकों से समाज में योगदान क
े लिए प्रेरित करती हैं । समानतावाद
कृ त्रिम रूप से समाज पर समानता थोपने का विचार रखता है, जिसक
े कारण समाज में
विखंडन बढ़ता है । राजकीय कानूनों एवं नीतियों क
े माध्यम से जबरदस्ती समानता
आरोपित करने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित होती है और लोग अपने हित एवं इच्छा
क
े अनुरूप कार्य करने में सक्षम नहीं हो पाते। समानतावाद की अवधारणा समाज क
े
प्रतिभाशाली और सफल लोगों की उपेक्षा क
े भाव पर आधारित है जो मध्यम दर्जे क
े लोगों
की संस्कृ ति एवं सभ्यता क
े विकास को प्रोत्साहित करती है एवं उत्कृ ष्टता क
े विचार को
हतोत्साहित करती है।
References & suggested Readings
1. Arnesan Richard,2013, ‘’Egalitarianism’’,The Stanford
Encyclopaedia of Philosophy
2. Encyclopaedia Britannica
3. Merriam Webster Dictionary
4.Vinod, M.J.&Deshpandey, Meena,2016,ContemporaryPolitical
Theory
प्रश्न- निबंधात्मक
1. न्यायपूर्ण समाज की स्थापना क
े लिए समानता वांछनीय है, इस कथन क
े संदर्भ में
समानता की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
2. समानता संबंधी प्रमुख धारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
3. आधुनिक युग क
े प्रमुख समानता वादी आंदोलनों पर एक निबंध लिखें।
वस्तुनिष्ठ-
1. ‘Egalitarianism As A Revolt Against Nature And Other Essays’ य ह
किसकी रचना है ?
[ अ ] मुरे रदबार्ड [ ब ] रिचर्ड अर्नेसन [ स ] कोहेन [ द ] एलिजाबेथ एंडरसन
2. संसाधनों की समानता की धारणा किसक
े द्वारा दी गई?
[ अ ] रोनाल्ड डवोरकीं [ ब ] एलिजाबेथ एंडरसन [ स ] कोहेन [ अमर्त्य सेन
3. उदारवादी विचारधारा क
े अंतर्गत समानता का सिद्धांत किस रूप में पाया जाता है?
[ अ ] स्वतंत्रता की धारणा [ ब ] कानून क
े समक्ष समानता [ स ] संपत्ति का सामान
वितरण [ द ] संपत्ति का सामूहिक स्वामित्व
4. कार्ल मार्क्स क
े अनुसार समतापूर्ण समाज का अंतिम आदर्श क्या है?
[ अ ] योग्यता क
े अनुसार कार्य और कार्य क
े अनुसार पारिश्रमिक
[ ब ] योग्यता क
े अनुसार कार्य और आवश्यकता क
े अनुसार पारिश्रमिक
[ स ] राज्य द्वारा संपत्ति का समान वितरण
[ द ] संपत्ति का व्यक्तिगत स्वामित्व किं तु सामूहिक उपभोग
5. एक न्याय पूर्ण समाज की स्थापना क
े लिए अवसर की समानता से पहले सभी क
े लिए
आधारभूत स्वतंत्रताएँ आवश्यक है, यह विचार निम्नांकित में से किसका है?
[ अ ] अमर्त्य सेन [ ब ] जॉन रॉल्स [ स ] परफिट [ द ] डवोरकीं
उत्तर- 1. अ 2. अ 3. ब 4. ब 5. ब

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  • 1. समानतावाद द्वारा- डॉ. ममता उपाध्याय प्रोफ े सर, राजनीति विज्ञान क े . एम . कॉलेज, बादलपुर गौतमबुद्ध नगर,उत्तर प्रदेश ‘’ प्रत्येक प्रशंसनीय राजनीतिक सिद्धांत का अंतिम आदर्श समानता है । यह सभी समानतावादी सिद्धांत हैं । क ु छ सिद्धांत जैसे नाजीवाद इस बात से इंकार करता है कि हर व्यक्ति का महत्व समान है। किं तु ऐसे सिद्धांत राजनीतिक चिंतन में गंभीर स्थान नहीं रखते। ‘’ - किमलिका
  • 2. ● उद्देश्य- ● लोकतंत्र क े आदर्श क े रूप में समानता की धारणा का विश्लेषण ● समानता की धारणा क े बहुआयामी रूप का विश्लेषण ● समानता और न्याय क े पारस्परिक संबंधों का विश्लेषण ● समानता से सम्बद्ध चर्चा से संबंधित विभिन्न सिद्धांतों की जानकारी ● समानता पर आधारित न्यायपूर्ण समाज की स्थापना क े प्रति संवेदनशीलता का विकास ● समानता की वांछनीयता क े विषय में तार्कि क दृष्टिकोण का विकास मुख्य शब्द- समानता, न्याय, प्रजातंत्र, अवसर, संसाधन, कल्याण,धर्म , आंदोलन, पर्याप्तता समानतावाद एक व्यापक विचारधारा एवं समसामयिक राजनीतिक बहस का क ें द्र बिंदु है, जिसका लक्ष्य मानव मात्र की समानता से युक्त समाज का निर्माण करना है। यह क ै सा आदर्श है जिसे प्रजातंत्र क े तीन आदर्शों- स्वतंत्रता समानता एवं बंधुत्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। समानता की धारणा राजनीतिक चिंतन में सर्वाधिक लोकप्रिय धारणा है। समानता की मांग को लेकर इतिहास में अनेक युद्ध लड़े गए, दावे प्रस्तुत किए गए एवं सिद्धांत निर्मित किए गए। समानता की धारणा अनेक आधुनिक सामाजिक आंदोलनों जैसे- पुनर्जागरण आंदोलन, नारीवाद, नागरिक अधिकार आंदोलन एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की स्वीकृ ति का आधार बनी, फिर भी जैसा की लास्की ने ‘ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स’ में लिखा कि ‘’ समानता की धारणा को परिभाषित करना सबसे अधिक कठिन कार्य है। ‘’ जे.आर.. लुकास का भी मत है कि ‘’ समानता आधुनिक युग का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा है। स्वतंत्रता को भुला दिया गया, बंधुत्व कभी हमारा जुनून नहीं बन सका ,किं तु समानता ऐसा विषय है जिस पर निरंतर बहस चलती रही है। ‘’ सोवियत संघ क े पतन क े बाद दुनिया में समानता पर बहस तेज हो गई है। वास्तव में समानता का आदर्श एक बहुआयामी किं तु रहस्यमय आदर्श है। एक दृष्टि से सभी व्यक्तियों को समान बनाए जाने पर भी अन्य दृष्टि से वे आसमान हो जाते हैं।अतः कहा जा सकता है की समानता क े आदर्श की प्राप्ति क े विषय में एकमत होते हुए भी समानता की धारणा नितांत अस्पष्ट ,असंगत एवं विरोधाभास से पूर्ण है । Merriam-webster डिक्शनरी क े अनुसार, ‘’ समानतावाद सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक मामलों में मानवीय समानता संबंधी विश्वास है तथा एक सामाजिक दर्शन क े रूप में लोगों क े मध्य असमानता को समाप्त करने की पक्षधर है। ‘’ ब्रिटानिका विश्वकोश क े अनुसार, ‘’ समानतावादद मानवीय समानता विशिष्ट राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक समानता संबंधी विश्वास है। ‘’
  • 3. समानता की धारणा का ऐतिहासिक विकास- समानतावाद को अक्सर समाज क े पदसोपान ढांचे क े विरुद्ध समझा जाता है जहां लोगों का वर्गीकरण उनकी योग्यता, आर्थिक शक्ति, सामाजिक प्रस्थिति एवं अन्य तथ्यों क े आधार पर किया जाता है। यह माना जाता है कि प्रारंभिक मानवीय समाज पर्याप्त मात्रा में समानतावादी थे। क ु छ विद्वानों का मत है कि कृ षि क े आविष्कार क े कारण संपत्ति का क ें द्रीकरण हुआ होगा और पदसोपानीय ढांचे पर आधार समाज का विकास हुआ होगा। समानता की धारणा को कई बार धर्म से भी जोड़ा जाता है। विशेष रुप से ईसाई धर्म में ईश्वर की नजरों में सभी मनुष्यों की समानता का विचार प्रस्तुत किया गया। पुनर्जागरण आंदोलन में समानता का आदर्श प्रतिबिंबित होता है, जिसक े अंतर्गत समाज क े सभी सदस्यों की समानता की स्थिति को स्वीकार किया गया। आधुनिक युग की मानवाधिकारों की धारणा न क े वल यह प्रतिपादित करती है कि सभी मनुष्य नैतिक रूप से समान है, बल्कि उनक े क ु छ निश्चित अधिकार भी हैं जिनका दावा सभी क े द्वारा समान रूप से किया जा सकता है। इन मानवाधिकारों में कानून क े समक्ष समानता, प्रजाति, नृजातीयता, लिंग, धर्म आदि क े आधार पर भेद का अंत जैसे समानतावादी अधिकार स्वीकार किए गए हैं। समानता संबंधी बहस क े आधार- समसामयिक दौर में समानता क े मुद्दे पर जो भी चर्चाएं चल रही है ,इनक े आधार क ें द्रबिंदु निम्नवत है- 1. समानता क्यों, क ै से और किस आधार पर स्थापित की जाए। 2. समानता एक स्वतंत्र मूल्य है अथवा न्याय,प्रजातंत्र तथा अन्य मूल्यों क े साथ संबंधित है। 3. समानता आनुपातिक हो अथवा पूर्ण रूप में। 4. प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं - धन संपदा, शक्ति, गौरव, पद, प्रतिष्ठा एवं अवसर समान रूप से वितरित किए जाएं अथवा नहीं। 5. क्या समानता अलग से प्राप्त किया जाने वाला आदर्श है या यह अन्य किसी आदर्श को प्राप्त करने का साधन मात्र है। क ु छ समानता वादी यह तर्क देते हैं कि समानता इसलिए वांछित है क्योंकि यह अन्य अच्छाइयों जैसे मानवीय कल्याण को प्रोत्साहित करती है। क ु छ इसे न्याय की प्राप्ति का साधन मानते हैं।
  • 4. समानतावादी आंदोलन- अमरीकी और फ्रांसीसी क्रांति में समानता का आदर्श आधुनिक युग में सर्वप्रथम दिखाई देता है। अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में कहा गया कि सभी मनुष्य समान रूप से जन्मे हैं , इसलिए उन्हें क ु छ अधिकार प्राकृ तिक रूप से उपलब्ध हैं जैसे- जीवन, स्वतंत्रता एवं प्रसन्नता का अधिकार। फ्रांसीसी क्रांति का नारा ही था ‘स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व’ अर्थात क्रांतिकारियों क े द्वारा ऐसे समाज की स्थापना पर बल दिया गया जो स्वतंत्र और सम्मान हो और जहां क ु लीन तंत्र की विशेषताएं न पाई जाती हों । राजनीतिक चिंतन में उदारवादी धारणा का यह अंतर्निहित आदर्श था कि कानून क े समक्ष समानता सुनिश्चित की जाए। समाजवादी राजनीतिक दल इस बात में विश्वास रखते हैं की संपत्ति का स्वामित्व सामूहिक होना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक और राजनीतिक शक्ति समान रूप से प्राप्त हो सक े । कार्ल मार्क्स ने समानतावाद को पूंजीवादी व्यवस्था में मौजूद शोषण क े विरुद्ध प्रस्तावित किया और ऐसे समाज की कल्पना की जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता क े अनुसार काम करेगा और आवश्यकता क े अनुसार पारिश्रमिक प्राप्त करेगा। नारीवाद को भी एक समानतावादी आंदोलन माना जाता है जो लैंगिक विभेद को समाप्त कर स्त्रियों को पुरुषों क े समान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार दिलाना चाहता है। वर्तमान में कभी-कभी समानतावाद को नारीवाद क े विकल्प क े रूप में प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि नारीवाद को कई बार विभाजन कारी आंदोलन क े रूप में देखा जाता है जो समाज को स्त्रियों और पुरुषों क े मध्य विभाजित करता है। विशेष रूप से क्रांतिकारी नारीवाद मे यह विशेषता परिलक्षित होती है, जब वह पुरुषों क े समाज से पृथक स्त्रियों का एक अलग समाज बनाना चाहता है ।समानतावाद शब्द का प्रयोग अक्सर घर क े वयस्क लोगों क े मध्य घरेलू कार्यों की समान वितरण हेतु भी किया जाता है और यह माना जाता है कि बच्चों का पालन पोषण माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी है न कि पारंपरिक पारिवारिक ढांचे क े अंतर्गत क े वल माता की। क ु छ विद्वान यह विचार व्यक्त करते हैं कि मानवीय समाज समय क े साथ अधिक समानतावादी बना है। अर्थशास्त्री आर. जे . लैंपमैन का कथन है कि ‘’ समानता का प्रश्न प्रत्येक पीढ़ी क े लिए अलग-अलग रहा है, क्योंकि प्रत्येक पीढ़ी ने समानता क े विषय में अलग सीमा रेखा खींची है। ‘’ समानता संबंधी प्रमुख धारणाएं
  • 5. भिन्न -भिन्न विचारकों ने समानता को अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है, अतः समानता की कई धारणाएं सामने आती है, जिनमें से क ु छ प्रमुख इस प्रकार है- लुइस पूजमैन ने समानता संबंधी विभिन्न धारणाओं को समन्वित करते हुए निम्नांकित 3 धारणाओं का प्रतिपादन किया है- 1. औपचारिक समानता की धारणा- औपचारिक समानता कानूनी प्रक्रियाओं क े माध्यम से समानता स्थापित करने का विचार रखती है तथा विधि का शासन इसका प्रमुख साधन है। 2. वास्तविक समानता की धारणा- इस धारणा क े अंतर्गत कानूनी समानता को पर्याप्त नहीं माना जाता है और ऐसी समानता का पक्ष लिया जाता है जो वास्तविक रूप में प्राप्त हो । संतुष्टि और संसाधनों की समानता, अवसर की समानता ,जनकल्याण और लोगों का सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की उपलब्धि को वास्तविक समानता की धारणा क े अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। 3. तात्विक समानता की धारणा- यह धारणा यह प्रतिपादित करती है कि प्राकृ तिक दृष्टि से योग्यता, आकार और बुद्धि की दृष्टि से भिन्न होने क े बावजूद सभी मनुष्यों क े साथ सामाजिक- राजनीतिक जीवन में इसलिए समान व्यवहार होना चाहिए क्योंकि सभी मनुष्य, मनुष्य हैं । अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा 1776 में ऐसी ही समानता की अभिव्यक्ति हुई है। 4. जटिल समानता की धारणा- माइकल वूलजेर ने इसका प्रतिपादन किया है। इस धारणा क े अनुसार मानव कल्याण की धारणा विभिन्न संस्कृ तियों और समाजों में भिन्न-भिन्न है जिसक े कारण समानता की सार्वभौमिक धारणा बनाना असंभव है। 5. अवसर की समानता- इस धारणा क े अंतर्गत माना जाता है कि सभी को अपने व्यक्तित्व को विकसित करने का समान अवसर मिलना चाहिए तथा समान कार्य क े लिए समान उपलब्धि मिलनी चाहिए। अवसर की समानता क े दो रूप हैं- 1. प्रतिस्पर्धी अवसर की समानता 2. गैर प्रतिस्पर्धी अवसर की समानता। प्रतिस्पर्धी अवसर की समानता की धारणा सभी को कानूनी रूप से
  • 6. समान अवसर देने क े बाद लोगों क े मध्य खुली प्रतियोगिता की छ ू ट देती है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार प्राप्त कर सक े गा। इसे ‘मेरीटोक्र े सी’ भी कहते हैं। किं तु प्रोफ े सर अमर्त्य सेन, जॉन रॉल्स, एलिजाबेथ एंडरसन आदि ने प्रतिस्पर्धी अवसर की समानता को क्र ू र मानते हुए यह विचार व्यक्त किया कि क ु छ प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं को प्राप्त करने क े अवसर सभी को समान रूप से दिए जाने चाहिए और जो लोग जाति, प्रजाति, वर्ग ,लिंग , वातावरण जैसी सामाजिक परिस्थितियों क े कारण अवसर का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं, उनक े लिए अवसर तक पहुंच संभव बनाने क े लिए राज्य को सकारात्मक कार्यवाही करनी चाहिए। 6. कल्याण की समानता- क ु छ विचारक समानता की प्राप्ति क े लिए सभी का समान रूप से कल्याण किए जाने का विचार रखते हैं। लोक कल्याणकारी विचारधारा और उपयोगितावाद क े समर्थक ऐसे विचार व्यक्त करते हैं। किं तु इस धारणा क े साथ समस्या यह है कि लोक कल्याण का विचार एक व्यक्तिनिष्ठ विचार है। प्रत्येक व्यक्ति समाज और स्थान क े लिए कल्याण का तात्पर्य भिन्न हो सकता है, अतः इस धारणा को व्यावहारिक रूप से लागू करना कठिन है। क ु छ विचारक कल्याण को सफलता का पर्याय मानते हैं तो क ु छ संतुष्टि का। 6. संसाधनों की समानता- रोनाल्ड डवोरकीं जैसे विचारक समानता की स्थापना हेतु सभी लोगों क े मध्य आर्थिक संसाधनों का समान वितरण आवश्यक मानते हैं और यह प्रतिपादित करते हैं कि ये संसाधन सभी को आजीवन प्राप्त होते रहने चाहिए। इसक े लिए उन्होंने इंश्योरेंस व्यवस्था का समर्थन किया, जिसमें व्यक्ति क े साथ जीवन में कोई आकस्मिकता हो जाने पर संसाधनों की आपूर्ति होती रहती है। 7. क्षमताओं की समानता- अमर्त्य सेन एवं नैसबॉम का मत हैकि क े वल अवसरों या संसाधनों की समानता उपलब्ध करा देने से ही समानता स्थापित नहीं हो जाएगी बल्कि व्यक्ति मे उन अवसरों और संसाधनों का लाभ उठाने की क्षमता भी होनी चाहिए। बहुत से ऐसे कारक है जो आय और संसाधनों की समानता को बेईमानी कर देते हैं। यह हैं - [ अ ] व्यक्तिगत भिन्नतायें - जैसे- अपंगता, बीमारी, वृद्धावस्था आदि मे आवश्यकताओं में अंतर होने क े कारण अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • 7. [ ब ] पर्यावरणीय भिन्नता- जैसे अत्यधिक गर्म या ठंडी जलवायु आय की समानता क े परिणाम को असमान बना देती है, क्योंकि तापमान कम करने हेतु वातानुक ू लन की व्यवस्था में ज्यादा धन खर्च करना पड़ता है । [ स ] सामाजिक पर्यावरण और परंपराएं- शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं तथा सामाजिक परंपराएं भी यह तय करती है कि व्यक्ति संसाधनों और अवसरों का कितना उपयोग कर सक े गा। अतः समानता क े लिए लोगों में अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता विकसित करना आवश्यक है। 8. प्राथमिकता की धारणा- डेरेक परफिट द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धांत में प्राकृ तिक क्षमताओं- प्रतिभा योग्यता ,सामर्थ्य की असमानता को स्वीकार करते हुए जानबूझकर किए जाने वाले असमान व्यवहार का विरोध किया गया है क्योंकि ऐसी असमानता अन्याय को जन्म देती है। साथ ही यह सभी क े मध्य संसाधनों क े समान वितरण क े स्थान पर प्राथमिकता क े आधार पर पहले उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने की समर्थक है जो गरीब है और जिनक े पास जीवन की आवश्यकताएं उपलब्ध नहीं है। यदि विषमता अर्थात अमीर गरीब की खाई ज्यादा हो जाती है तो ऐसी स्थिति में अमीरों की संपत्ति गरीबों क े कल्याण में लगाकर क ु छ हद तक यह खाई कम की जा सकती है। परफिट इसे ‘ Levelling down’ कहते हैं. किं तु टेमकिन व फिरले जैसे विचारक इसकी सीमाएं निर्धारित करते हैं। उनक े अनुसार यदि वंचितों को जीवन की आवश्यकताएं उपलब्ध कराने में ही सारे संसाधन खर्च कर दिए जाएंगे तो सभ्यता क े विकास क े लिए वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कार संभव नहीं होंगे। 9. पर्याप्तता सिद्धांत- फ्र ैं कफर्ट द्वारा प्रतिपादित यह समानता का एक नैतिक दृष्टिकोण है जिसक े अनुसार समानतावाद का मुख्य मुद्दा समानता नहीं, बल्कि संसाधनों की पर्याप्तता होना चाहिए। अर्थात सबको जीवन क े लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिए। फ्र ैं कफर्ट क े अनुसार आर्थिक समानता क े साथ मुख्य आपत्तिजनक बात यह है कि यह स्वतंत्रता क े विरुद्ध है और आर्थिक समानता स्थापित करने क े लिए राज्य को बाध्यकारी साधन अपनाना होता है, जो उचित नहीं है। यह लोगों में अलगाव और विद्वेष की भावना पैदा करता है तथा चूंकि योग्य एवं क ु शल लोग श्रम करने से बचने लगते हैं क्योंकि उन्हें यह अनुभव होता है कि वे चाहे जितना भी श्रम कर ले, उन्हें मिलेगा सब क े बराबर ही। व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से उचित नहीं है। दूसरे, आर्थिक समानता पर अत्यधिक बल देने से लोगों का जीवन क े प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है। भौतिक सुख-सुविधाओं पर अत्यधिक ध्यान देने से उपभोक्तावाद का विकास होता है और नैतिक
  • 8. विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। फ्र ैं कफर्ट से ‘shallowness of our time’कहते हैं। अतः सब क े पास जीवन क े पर्याप्त साधन होने चाहिए जिससे वे संतुष्टि का अनुभव कर सक ें । किं तु पर्याप्त संसाधन समय, देश और व्यक्ति क े अनुसार भिन्न भिन्न होते हैं, अतः इस सिद्धांत में भी वस्तुनिष्ठता का अभाव दिखाई देता है। 10. भाग्यवादी समानता का सिद्धांत- रोनाल्डो डवोरकीं ,एलिजाबेथ एंडरसन, कोहेन एवं रिचर्ड ओर्नेसन द्वारा इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया। यह सिद्धांत व्यक्ति क े दो तरह क े भाग्य की बात करता है- 1. प्राकृ तिक भाग्य 2. वैकल्पिक भाग्य। प्राकृ तिक भाग्य जन्मजात होता है और इसे बदला नहीं जा सकता। जैसे जन्मांध होना प्राकृ तिक भाग्य है जिसे स्वीकार करना व्यक्ति की विवशता बन जाती है। किं तु वैकल्पिक भाग्य वह है जिसे व्यक्ति स्वयं चुनता है। जैसे सभी क े पास समान अवसर मौजूद होने पर भी यदि कोई अवसरों का लाभ नहीं उठाना चाहता या उसक े लिए प्रयास नहीं करता तो यह उसक े द्वारा चुना गया भाग्य है। इस सिद्धांत की मान्यता है कि प्राकृ तिक दुर्भाग्य से पीड़ित व्यक्तियों की राज्य और समाज द्वारा आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराकर सहायता की जानी चाहिए, किं तु जिन्होंने जानबूझकर दुर्भाग्य का वरण किया है उसकी सहायता न करना ही न्याय पूर्ण है। 11. समानता एक नैतिक सामाजिक और राजनीतिक आदर्श क े रूप में- जफर जैसे विद्वान ने इस धारणा का प्रतिपादन किया है। एक नैतिक धारणा क े रूप में समानता का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य चूंकि मनुष्य है इसलिए सामाजिक जीवन में उसक े साथ मानवोचित व्यवहार होना चाहिए। एक सामाजिक आदर्श क े रूप में यह सामाजिक सहयोग की अपेक्षा करती है और एक राजनीतिक आदर्श क े रूप में राज्य द्वारा सभी नागरिकों को जीवन की आवश्यक दशाएं अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने का विचार रखती है। आलोचना- Murray Rothbard ने अपनी पुस्तक ‘ Egalitarianism As a Revolt Against Nature and Other Essays’ में समानतावाद की धारणा की आलोचना करते हुए कहा है कि यह धारणा हमेशा राजकीय नियंत्रण आधारित राजनीति को प्रोत्साहित करती है। रदवार्ड का मत है कि व्यक्ति प्राकृ तिक रूप से अपनी योग्यता, प्रतिभा और अन्य विशेषताओं की दृष्टि से आसमान है और यह समानता न क े वल प्राकृ तिक है, बल्कि
  • 9. समाज क े संचालन क े लिए आवश्यक भी है। लोगों की अनूठी योग्यताएं और विशेषताएं उन्हें भिन्न-भिन्न तरीकों से समाज में योगदान क े लिए प्रेरित करती हैं । समानतावाद कृ त्रिम रूप से समाज पर समानता थोपने का विचार रखता है, जिसक े कारण समाज में विखंडन बढ़ता है । राजकीय कानूनों एवं नीतियों क े माध्यम से जबरदस्ती समानता आरोपित करने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित होती है और लोग अपने हित एवं इच्छा क े अनुरूप कार्य करने में सक्षम नहीं हो पाते। समानतावाद की अवधारणा समाज क े प्रतिभाशाली और सफल लोगों की उपेक्षा क े भाव पर आधारित है जो मध्यम दर्जे क े लोगों की संस्कृ ति एवं सभ्यता क े विकास को प्रोत्साहित करती है एवं उत्कृ ष्टता क े विचार को हतोत्साहित करती है। References & suggested Readings 1. Arnesan Richard,2013, ‘’Egalitarianism’’,The Stanford Encyclopaedia of Philosophy 2. Encyclopaedia Britannica 3. Merriam Webster Dictionary 4.Vinod, M.J.&Deshpandey, Meena,2016,ContemporaryPolitical Theory प्रश्न- निबंधात्मक 1. न्यायपूर्ण समाज की स्थापना क े लिए समानता वांछनीय है, इस कथन क े संदर्भ में समानता की अवधारणा की विवेचना कीजिए। 2. समानता संबंधी प्रमुख धारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। 3. आधुनिक युग क े प्रमुख समानता वादी आंदोलनों पर एक निबंध लिखें। वस्तुनिष्ठ- 1. ‘Egalitarianism As A Revolt Against Nature And Other Essays’ य ह किसकी रचना है ? [ अ ] मुरे रदबार्ड [ ब ] रिचर्ड अर्नेसन [ स ] कोहेन [ द ] एलिजाबेथ एंडरसन 2. संसाधनों की समानता की धारणा किसक े द्वारा दी गई? [ अ ] रोनाल्ड डवोरकीं [ ब ] एलिजाबेथ एंडरसन [ स ] कोहेन [ अमर्त्य सेन
  • 10. 3. उदारवादी विचारधारा क े अंतर्गत समानता का सिद्धांत किस रूप में पाया जाता है? [ अ ] स्वतंत्रता की धारणा [ ब ] कानून क े समक्ष समानता [ स ] संपत्ति का सामान वितरण [ द ] संपत्ति का सामूहिक स्वामित्व 4. कार्ल मार्क्स क े अनुसार समतापूर्ण समाज का अंतिम आदर्श क्या है? [ अ ] योग्यता क े अनुसार कार्य और कार्य क े अनुसार पारिश्रमिक [ ब ] योग्यता क े अनुसार कार्य और आवश्यकता क े अनुसार पारिश्रमिक [ स ] राज्य द्वारा संपत्ति का समान वितरण [ द ] संपत्ति का व्यक्तिगत स्वामित्व किं तु सामूहिक उपभोग 5. एक न्याय पूर्ण समाज की स्थापना क े लिए अवसर की समानता से पहले सभी क े लिए आधारभूत स्वतंत्रताएँ आवश्यक है, यह विचार निम्नांकित में से किसका है? [ अ ] अमर्त्य सेन [ ब ] जॉन रॉल्स [ स ] परफिट [ द ] डवोरकीं उत्तर- 1. अ 2. अ 3. ब 4. ब 5. ब