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​ह ना आरंट के राजनी तक वचार
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यह साम ी वशेष प से श ण और सीखने को बढ़ाने के शै णक उ दे य ​के लए है। ​आ थक / ​वा णि यक अथवा
कसी अ य उ दे य के लए इसका उपयोग ​पूणत: ​ तबंध है। ​साम ी के उपयोगकता इसे कसी और के साथ वत रत,
सा रत या ​साझा नह ं करगे और इसका उपयोग यि तगत ान क उ न त के लए ह करगे। ​इस ई - ​कं टट म जो
जानकार क गई है वह ामा णक है और मेरे ान के अनुसार सव म है।
वारा - डॉ. ममता उपा याय
एसो . ो . , राजनी त व ान
कु . मायावती राजक य म हला नातको र महा व यालय
बदलपुर ,गौतमबु ध नगर , उ र देश
उ दे य- तुत ई - कं टट से न नां कत उ दे य क ाि त संभा वत है-
● आधु नक राजनी तक स धांत के दौर म मू य आधा रत परंपरावाद राजनी तक
दशन क जानकार
● परंपरावाद वचारक के प म ह ना आरंट के वचार क जानकार
● सवा धकारवाद यव था के संबंध म एक नई ि ट का ान
● समसाम यक राजनी तक यव था म मौजूद बुराइय एवं सम याओं को यान म
रखते हुए समाधाना मक चंतन क वृ को ो सा हत करना
● समसाम यक सम याओं का समाधान ाचीन दशन म ढूंढने क वृ को
ो सा हत करना
ह ना आरंट बीसवीं शता द क यहूद अमर क राजनी तक वचारक है, िजनके चंतन का क
बंदु मानवीय भावनाएं ह।आरंट का समकाल न राजनी तक वचारको म इस ि ट से व श ट
थान है क उनक कसी एक वचारधारा या मत से संब धता नह ं रह । उनका चंतन एक
मौ लक चंतन है। एक शरणाथ के प म अमे रका म नवास करते हुए सावज नक जीवन और
मानवीय अि त व के वषय म उनके अनुभव उनके राजनी तक वचार का आधार है। राजनी त
व ान के े म यु धोतर काल म हुई यवहारवाद ां त के समय डे वड ई टन और अ े ड
कॉबन जैसे वचारको ने परंपरावाद राजनी तक स धांत के ास क बात कह थी और यह
मत य त कया था क काल मा स के बाद ऐसा कोई राजनी तक दाश नक नह ं हुआ, िजसने
राजनी तक आदश को यान म रखते हुए वचार कया हो। कं तु ह ना आरंट जैसी वचारक
दाश नक प र े य म राजनी तक वचार का व लेषण करती हुई पारंप रक, मू यपरक
राजनी तक दशन के पुन थान क तीक है, जैसा क ईसाह ब लन एवं लयो ॉस जैसे
वचारको ने भी माना है। बीसवीं शता द म अनेक राजनी तक वचारको वारा आधु नक
वै ा नक औ यो गक युग म मनु य क अलगाव यु त, यथा यु त जीवन दशा का च ण
कया गया है। जैसे- अि त ववाद वचारक ए रक ॉम, डे वड र समैन , ए रकसन, सी . राइट
म स , े थस आ द के चंतन म मनु य क मनोदशा का गहन ववेचन कया गया है। एक
सा ह यकार के प म आरंट ने यि त के मान सक या वैयि तक प को मुखता दान क
है। उनक ि ट म दशन का संबंध एकवाचक मनु य के प म है जब क उनक रचनाएं इस त य
पर आधा रत है क मनु य एक यि त के प म नह ं, बि क इस संसार के एक अंग के प म
नवास करते ह। [Men , not man ,live on the earth and inhabit the world]समूह के
साथ यि त के अि त व को यान म रखकर ह राजनी तक वचार का नमाण कया जाना
चा हए, ऐसी आरंट क मा यता है। साथ ह एक सवा धकार वाद राजनी तक यव था म
यि त का अि त व एवं वैयि तकता कै से संकट म पड़ जाती है,आरंट ने इसका भी व लेषण
कया है।
जीवन वृ -
आरंट मूलतः एक जमन म हला वचारक है िजनका ज म 14 अ टूबर 1906 को जमनी के
लडेन नगर म हुआ था । जमनी म नाजीवाद के उदय के कारण युवाव था मे उ ह जमनी
छोड़ना पड़ा और ांस होते हुए वे संयु त रा य अमे रका पहुंची । मारबग
व व व यालय म मा टन हाइडेगर के साथ उ ह ने दशनशा का अ ययन कया।
1940 म उ ह ने जमन क व एवं मा सवाद दाश नक हेन रक लूशर के साथ ववाह
कया। 1950 म अमे रका क नाग रकता ा त करने के बाद वहां के व व व यालय म
अपना एके ड मक क योगदान देती हुई 1959 म ंसटन व व व यालय म एक
पूणका लक ोफे सर के प म नयु त होने वाल पहल म हला बनी। 1975 म 69 वष क
उ म अमे रका के यूयॉक शहर म उनका नधन हुआ।
रचनाएं-
● द ओ रिजन ऑफ टोट लटे रए न म[1951]
● द यूमन कं डीशन [1958]
● बटवीन पा ट एंड यूचर [1961]
● ऑन रवॉ यूशन [1963]
● आइकमैन इन जे सलम[1963]
● मेन इन डाक टाइ स [1968]
● ऑन वायलस [1970]
● ाइ सस ऑफ द रपि लक[1972]
● द लाइफ ऑफ द माइंड[ 1978 म का शत]
भाव - सो और न जे
अ ययन प ध त- दाश नक एवं आनुभ वक
​ह ना आरंट के राजनी तक वचार
अरट के राजनी तक वचार क ववेचना न नां कत शीषक के अंतगत क जा सकती है-
1. सवा धकारवाद के वषय म वचार -
सवा धकार बाद आधु नक युग क एक अ धनायक तं ीय वचारधारा है,जो जमन
नाजीवाद एवं इटा लयन फासीवाद म प ट प से अ भ य त
हुई।’सवा धकारवाद’ श द का योग सबसे पहले मुसो लनी के वारा कया गया
था जब उसने घो षत कया क “ सब कु छ रा य के भीतर है, रा य के बाहर कु छ
भी नह ं, रा य के व ध कु छ भी नह ं है’’। इस वचारधारा के अंतगत सारे
अ धकार शासक के माने जाते ह और आम जनता के अ धकार क उपे ा क जाती
है। सवा धकार वाद नेताओं जैसे - हटलर मुसो लनी, ले नन और टा लन ने
सवा धकार वाद क अपने तर के से या या क थी । अ े ड कोबन ने
सवा धकार वाद को रा य क सावयवी वचारधारा से जोड़ा । ेजेिजंसक जैसे
वचारक ने सवा धकार वाद क न नां कत वशेषताएं बताई थी-
● वचार वाद या एक नि चत वचारधारा म व वास
● एक नेता वारा नद शत राजनी तक दल
● आतंकवाद पु लस नयं ण
● जनसंचार मा यम पर एका धकार
● सश बल पर एका धकार
● शि तशाल क य स ा
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pid=Api&P=0&w=370&h=193
जमनी जैसे सवा धकारवाद रा य क मूल नाग रक होने के कारण ह ना आरंट ने अपने
य अनुभव के आधार पर सवा धकार वाद क दूरगामी एवं सू म या या तुत क
है। उ ह सवा धकारवाद का असवा धकारवाद या याता माना जाता है। अपने ंथ “
सवा धकारवाद क उ प ’’ मे सवा धकारवाद को उ ह ने आधु नक समाज क
अभूतपूव घटना मानते हुए इसके वैचा रक उ गम पर काश डाला तथा इसके
ऐ तहा सक, दाश नक एवं वैचा रक कारण का व लेषण कया।ह ना का यह मत है क
सवा धकार वाद आम नरंकु श शासन से भ न है । उनके अनुसार आधु नक
सवा धकारबाद म न नां कत ल ण प ट होते ह-
1. समाज के पारंप रक मू य के थान पर नई मू य यव था था पत क जाती है
िजसम नद ष यि त नंदा और घृणा का पा होता है तथा अपराधी खुले घूमते ह या
उनका स मान कया जाता है।
2. अपरा धय म सामू हक अपराध क भावना बढ़ने लगती है और उनम संगठन का भाव
आने लगता है। इस कार के सामू हक अपराध क वृ नाजी जमनी म दखाई देती है
जहां नजी और सावज नक जीवन के सारे प एक सव यापी भु व क या म वल न
हो जाते ह।
3. था पत कानून और यव था के त लोग म व वास कम होने लगता है और उनम
असहायता एवं असुर ा क भावना बढ़ जाती है। यह असुर ा का भाव इतना
अ धक बढ़ जाता है क कभी-कभी सीधे साधे लोग को भी अपनी र ा के लए अपरा धय
पर नभर होना होता है ।
4. सवा धकार बात का क बंदु एक छ म वै ा नक व व ि ट या वचारधारा होती है
जो अपने वचार के अनु प समाज को नरंतर व वंस एवं पुन नमाण के लए ववश
करती है। जैसे - इसम इ तहास को पर पर वरोधी जा तय या वग के बीच संघष के प
म देखा जाता है । इस व वास के प रणाम व प यि तय क सहज बु ध और
यावहा रक ान न ट हो जाते ह।
5.अपनी वचारधारा क पुि ट और राजनी तक वरो धय का दमन करने के लए इसम
आतंक का भरपूर योग कया जाता है। यातना श वर के अनुभव इसके य माण है
जहां लोग को एक समान वेशभूषा पहनने और सर मुंडाने के लए ववश कया जाता
है.।आरंट क मा यता है क नाजी सै नक येक यि त क को मटाने के साथ ह उन
यि तय को ह मटा देना चाहते थे, िज ह उनके इन दु कम क जानकार थी।
6. सवा धकार बाद का ल य संपूण व व का क य नयं ण करके उसे वकृ त करना
होता है। आम जन के साथ- साथ समय-समय पर यह यव था अपने नेताओं को भी
फालतू समझती है और उ ह न ट करके या उनका पांतरण करके यह स ध करती है क
‘सब कु छ संभव है’।
7. सवा धकार बाद पारंप रक नै तक मू य के वषय म तट थ रहने के साथ-साथ एक
नई और वकृ त नै तकता था पत करता है िजसम अ हंसा के थान पर हंसा का समथन
कया जाता है।
8. पुराना नरंकु श तं प रवतन वरोधी था, आधु नक सवा धकार वाद यव थाएं अपने
अि त व क र ा के लए नरंतर प रवतन पर नभर करती है तथा ववेकपूण ल य के
अभाव म शि त का व तार चाहती ह।
9. सवा धकारबाद स ाबाद से इस अथ म भ न है क स ावाद के अंतगत संपूण शि त
और उ रदा य व रा य के हाथ म क त होते ह, जब क सवा धकारबाद एक ऐसा
अ नय मत आंदोलन है िजसम सव च शि त गु त पु लस के हाथ म रहती है,
सरकार के हाथ म नह ं । ऐसी यव था म वैधता और रा य क भुस ा के स धांत
नरथक हो जाते ह।
10. ले नन वाद के अंतगत यह माना गया क स य को या के मा यम से ह समझा
जा सकता है।आरंट क मा यता है क सवा धकारवाद के अंतगत स य क खोज ह
थ गत हो जाती है। येक व तु को संभव मानने क वृ के कारण यह ऐसी नी त का
नमाण करता है िजसका उ दे य बल योग वारा येक ि थ त को उस नी त के
अनुकू ल बनाना होता है।
11. सवा धकार वाद के वकास म सा ा यवाद का बड़ा योगदान है। सा ा यवाद युग
म जब शासक ने अपने देश क सीमाओं को पार कया तो आ थक उ दे य क पू त हेतु
राजनी त म उनका ह त ेप आव यक हो गया। सा ा यवाद शासक ने शा सत क
सहम त के स धांत क अवहेलना क और वैचा रक वतं ता तथा सामुदा यक भावना के
अभाव म मानवता को अपार त पहुंचाई है।
प ट है क आरंट ने सवा धकारवाद के व लेषण म ऐ तहा सक
घटनाओं, स धांत तथा जनता क मनोदशाओं के म य अंतः याओं को अ भ य त
कया है।
मानवा धकार क धारणा का वरोध एवं नाग रक अ धकार क
धारणा का समथन-
ह ना आरंट सावभौ मक मानवा धकार क धारणा म व वास नह ं रखती, बि क रा य
के अंतगत ा त नाग रक अ धकार को मह वपूण मानती है। मानव अ धकार क
सव यापी घोषणा 10 दसंबर 1948 को संयु त रा संघ के वारा क गई थी िजसके
अंतगत 30 अनु छेद के मा यम से संपूण धरती पर नवास करने वाले यि तय को
रा यता और भूभाग क सीमाओं से परे जीवन के लए कु छ आधारभूत प रि थ तय को
मानवा धकार क मा यता द गई थी, िजनम जीवन का अ धकार, रोजगार का अ धकार,
वतं ता का अ धकार, अवकाश का अ धकार, व ाम का अ धकार, प रवार का अ धकार,
भाषा एवं सं कृ त क सुर ा का अ धकार, शरण ा त करने का अ धकार आ द मुख
है। इस संबंध म आरंट क मा यता यह है क मानवा धकार के पीछे बा यकार
कानूनी स ा का बल न होने के कारण इनका भावी ढंग से या वयन नह ं हो पाता।
उ लेखनीय है क संयु त रा संघ क घोषणा के पीछे कोई बा यकार स ा नह ं है। य द
कोई रा इन अ धकार का उ लंघन करता है, तो उसे ऐसा करने के लए बा य नह ं
कया जा सकता। अंतररा य नयम को मानना रा के लए सौज य का वषय है,
बा यता का नह ं य क येक रा एक सं भु रा है और उसक सं भुता क धारणा
यह नि चत करने का सव च अ धकार उसे ह दान करती है क वह कसी अंतररा य
सं ध या अ भसमय को माने या न माने। वयं ह ना ने जमनी से अमे रका जाकर एक
शरणाथ के प म अपना जीवन यतीत करते हुए यह अनुभव कया था क अ धकार को
याि वत करने के लए रा य क स ा आव यक है। वतमान म दु नया भर म
शरणा थय क ि थ त मानवा धकार के अि त व पर एक न च ह है। आज दु नया
के शरणाथ समूह म सी रया, अफगा न तान, सूडान, सोमा लया एवं यामार के
शरणाथ समूह मुख है। दु नया के लगभग 80 म लयन शरणाथ यि तय म आधे से
यादा इन देश के ह। अपने देश म हंसा, गृह- यु ध और ाकृ तक आपदा के कारण यह
समूह अपना देश छोड़कर दूसरे देश म शरण लेने के लए ववश हुए ह। ह ना यह मानती
है क रा य अपनी सं भुता क दुहाई देते हुए शरणा थय के साथ दोयम दज का यवहार
करते ह, उ ह घूमने फरने तक क
आजाद नह ं होती। यहां तक क अमे रका जैसे लोकतां क देश म भी यहूद संगठन के
व ध कायवाह क जाती है, अतः मानवा धकार कोरे आदश बन कर रह जाते ह।
यवहार म उनक ाि त म अनेक बाधाएं ह। ह ना के अनुसार मानवा धकार के थान
पर नाग रक अ धकार क धारणा को अपनाया जाना चा हए, य क रा य नाग रक
अ धकार के त यादा संवेदनशील होते ह और इनका उ लंघन होने पर नाग रक
यायालय क शरण ले सकते ह।
वतं ता क धारणा-
वतं ता क पारंप रक उदारवाद धारणा से पृथक आरंट ने दाश नक ि ट से वतं ता
का व लेषण कया है। अपनी पु तक ‘ ऑन यूमन कं डीशन’म वैचा रक वतं ता क
नई या या करते हुए आरंट ने यह तपा दत कया है क मनु य क ग त व धय के
तीन तर होते ह- म, काय और कायवाह । इन ग त व धय म सबसे नचले तर क
ग त व ध म है िजसके वारा मनु य अपने जीवन क भौ तक आव यकताओं को पूरा
करने के लए आव यक सु वधाओं को जुटाने म संल न रहता है। दूसर ग त व ध “काय”
क है िजसके वारा एक श पी या कलाकार थाई मह व क व तुएं बनाकर स यता के
नमाण म योगदान देते ह। सबसे उ च तर क मानवीय ग त व ध कायवाह या या है
जो राजनी त का वषय है िजसम सभी नाग रक अपनी- अपनी तभा का प रचय देते हुए
व व के वषय म अपने भ न- भ न ि टकोण को य त करते ह। यह जीवन का
सावज नक े है िजसे आरंट ने ‘ वचार क वतं ता का े ’ कहा है। उ लेखनीय है
क यूनानी दाश नक के समान ह ना ने भी राजनी त के े को सव च मह व दया है।
ाचीन यूनान म नाग रकता का दजा ह उ ह ा त होता था जो सावज नक जीवन म
स य भागीदार नभाते थे तथा राजनी त बु धजी वय के वेश का े माना जाता
था। मानव जीवन क इन तीन ग त व धय क पृथक- पृथक या या करते हुए आरंट
ने न नां कत वचार य त कए ह-
1. म- आरंट के अनुसार म का ता पय मनु य क ऐसी ग त व ध से है िजसम उसक
चेतना का तर पशु समान होता है। अपनी दै नक और आधारभूत आव यकताओं क
पू त के लए यि त म करते ह । पशुओं के वारा भी अपनी शार रक आव यकताओं
क पू त के लए ह काय कया जाता है, इस लए आरंट ने म आधा रत ग त व ध को
पशु तु य माना है जो उस मा सवाद वचार के वपर त है िजसम शार रक म को
म हमामं डत करते हुए मजी वय को शोषण मु त करने के वचार य त कए गए ह।
2. काय- काय का ता पय ऐसी ग त व ध से है िजसके वारा मनु य अपने यास के
मा यम से जीवन क अ य ज रत को पूरा करता है। इस ग त व ध के दौरान मनु य म
आ म - चेतना आ जाती है और वह अपने आप को व तु से अलग करके देख पाता है।
आरंट मानती है क मनु य िजस व व म रह रहा है वह व तुओं का व व है, न क
मनु य का। अपने इस वचार के मा यम से ह ना उस उपभो तावाद सं कृ त पर हार
करती ह, िजसम मनु य एक के बाद दूसरे उपभोग क व तुओं को ा त करने के लए
य नशील रहता है और इस कारण वह मनु यता क सव च ि थ त म नह ं पहुंच पाता
है। मनु य के आपसी संबंध बाजार के संबंध बन कर रह जाते ह, वे मानवीय संबंध नह ं
बन पाते।
3. कायवाह या या- आरंट उपयु त दोन ग त व धय को नजी े के अंतगत
रखती है और तीसर ग त व ध अथात कायवाह को सावज नक े का वषय मानती है।
यह ग त व ध न तो चेतना वह नता क ि थ त होती है और न ह चेतना यु त बाजार क
होती है। यह पूण चेतन मानवीय ग त व ध होती है और इस ग त व ध के मा यम से
मनु य मनु य व को ा त करता है। उनके अनुसार मानव वभाव क सबसे बड़ी
वशेषता जो उसे अ य ा णय से अलग करती है, यह है क मनु य मे अमर व क
लालसा होती है। यह लालसा के वल कायवाह क ग त व ध वारा ह पूर हो सकती है।
ह ना आधु नक समाज म यि त क वतं ता पर मंडराते संकट क ओर यान
आक षत करती ह और यह मानती है क इन समाज म यि त के नजी हत क र ा के
लए इतने शि तशाल रा यापी संगठन बना दए गए ह क सावज नक सम याओं क
ओर से यान हट गया है। आ थक, वै ा नक ग त के कारण चंतन और मनन से जुड़े
हुए दशन को भार हा न उठानी पड़ी है । मनु य क कायवाह क मता कुं ठत हो गई है
और वह अब भी के वल म और कृ य के तर पर जी वत ह। अपने अि त व क र ा के
लए मनु य इतने य त ह क मानवीय संबंध पर आधा रत थाई मानव जगत के
नमाण के ल य को भूल से गए ह। उपभो तावाद समाज म सं कृ त के वल मनोरंजन
और उ योग बन कर रह गई है। वचार क वतं ता लु त हो चुक है। इस वैचा रक
वतं ता को पुनज वत करने के लए सावज नक और नजी े को एक दूसरे से अलग
करना होगा।
● आधु नकता समाज क आलोचना -
सो के चंतन से भा वत होते हुए आरंट ने आधु नक समाज क आलोचना क
है। अपनी पु तक ‘द यूमन कं डीशन’ एवं ‘ बटवीन पा ट एंड यूचर’ म संक लत
लेख के मा यम से आरंट ने आधु नकता क नकारा मक त वीर तुत क है।
उनक चंता इस बात को लेकर है क कै से आधु नकता ने परंपरा, धम और स ा का
रण कया है। उनके अनुसार आधु नकता के कारण जीवन के व भ न े म
मह वपूण संसाधन तो उपल ध हुए ह, कं तु अब भी आधु नकता को जीवन के
अथ, यि त क पहचान और जीवन मू य से संबं धत न का उ र देना शेष है।
आरंट ने न नां कत आधार पर आधु नकता क आलोचना क है-
1. आधु नकता ने सावज नक जीवन म वचार और काय क वतं ता को बा धत
कर दु नया का बहुत बड़ा नुकसान कया है। आधु नक समाज म लोग अपनी
आव यकताओं क पू त के लए, नजी आ थक हत को पूरा करने क या म
इतने यादा संल न है क सावज नक जीवन म एक राजनी तक ाणी के प म
अपनी भू मका को भूलते जा रहे ह। उ लेखनीय है क अर तू जैसे वचारक ने
मनु य को वभाव से एक राजनी तक ाणी कहा था, जो सावज नक जीवन के
त अपने दा य व को समझते हुए नी त- नमाण के काय म स य भू मका
नभाने क मता रखता है । आरंट के अनुसार आधु नकता ने मनु य क इस
भू मका को सी मत कया है और सावज नक े क अपे ा नजी े को
ो सा हत कया है। उनके श द म, zoon politikon[ राजनी तक ाणी ] पर
homo faber [साधन के मा यम से सबकु छ नयं त करने वाला ] ने वजय
ा त कर ल है ।
2. आधु नक युग ने नौकरशाह स ा और अ भजन वग को ज म दया है जो
जनमत क जोड़-तोड़ कर समाज म अपना वच व कायम रखते ह। आधु नक युग
म राजनी तक लोकतं अि त व मे आया है, कं तु इस लोकतं म लोक अथात
जनता का कोई मह व नह ं है। जनतं भी अ भजन क धारणा पर चलता है।
3. आधु नक युग म ह सवा धकारवाद सरकार जैसे- नाजीवाद एवं टा लन वाद
था पत हुई है, िजनका उ भव आतंक और हंसा के सं थानीकरण के प रणाम
व प हुआ है।
4.यह आधु नक युग ह है जहां इ तहास अपनी वाभा वक या के प म
वक सत नह ं होता, बि क घटनाओं और काय को एक खास सांचे म ढाला जाता
है। इ तहास उसी प म लखा -पढ़ा जाता है, िजस प म स ा के धारक उसे
तुत करना चाहते ह।
5. आरंट के अनुसार आधु नक युग क एक बुराई यह है क इसम बहुलता और
वतं ता के थान पर सम पता को ो सा हत कया जाता है और इसमे मानवीय
स भाव के थान पर अलगाव एवं एकाक पन देखने को मलता है।
आधु नकता ने भ न- भ न प म अलगाव को ज म दया है िजसे आरंट ‘
वैि वक अलगाव [ world alienation] एवं ‘पृ वी के अलगाव’ [earth
alienation] के प म प रभा षत कया । वैि वक अलगाव से ता पय उस ि थ त
से है िजसम मनु य जीवन के अनुभव एवं या मकता पर आधा रत आपसी
संबंध से वरत होकर अलग-थलग पड़ गया है। पृ वी का अलगाव वै ा नक और
तकनीक ग त का प रणाम है वै ा नक- तकनीक आ व कार के प रणाम
व प मनु य पृ वी से परे अ य ह पर जीवन तलाश रहा है, कृ त द जीवन
म व तार कर रहा है, योगशालाओं म जीवन क रचना करने का यास कर रहा
है और इस कार पृ वी और कृ त पर वजय ा त करने का यास कर रहा है।
इससे पृ वी पर रहने वाले जीव - जंतुओं और वन प तय क वाभा वकत
भा वत हुई है एवं तकनीक का वच व था पत हुआ है, िजसका दु प रणाम
पयावरणीय संकट के प म हमारे सामने है। प ट है क आरंट क आधु नकता
के वषय म धारणा गांधीवाद धारणाओं से सा यता रखती है। हालां क गांधी क
ि ट म व ान और तकनीक ज नत मशीनी वकास ने शार रक म और
मजीवी को दु भा वत कया है,जब क आर ट यह मानती ह क आधु नक युग
म मनु य क सार ग त व धयां म क त ह, िजनका उ दे य जीवन के लए
अ धका धक संसाधन एक त करना मा है, न क जीवन के मू य को समझते हुए
अपनी पहचान को ा त करना। यहां आरंट अि त ववा दय के कर ब भी दखाई
देती है,जो मनु य के वा त वक अि त व क तलाश मे ह ।
6. सामािजक पूंजी का व तार आधु नकता का एक अ य प रणाम है, िजसके
अंतगत कृ त का येक यि त एवं व तु उ पादन और उपभोग, ाि त और
व नमय का वषय बन गए ह। आरंट के अनुसार उ पादन और उपभोग आधा रत
समाज ने सावज नक जीवन पर वजय ा त कर ल है और सावज नक जीवन को
भी यि तगत जीवन क आव यकताओं के साथ जोड़कर नजी और सावज नक
जीवन क जो सीमा रेखा थी, उसे समा त कर दया है। उनके श द म,” हमारा
समाज मजी वय और नौकर पेशा लोग का समाज बनकर रह गया है जो कसी
काय या या मे अंत न हत मू य को कोई मह व दान नह ं करते।”
7. आरंट ने आधु नक युग म बढ़ते अलगाव के कई कारण का उ लेख कया है।
जैसे- अमे रका क खोज, पुनजागरण, मनु य क ान य को चुनौती देते हुए
टे ल कोप क खोज ,बाजार अथ यव था का व तार,आधु नक व ान का उदय
इसके साथ-साथ ऐसे दशन का उदय िजसके अंतगत मनु य को कृ त और
इ तहास का मुख अंग बताया गया और कृ त पर वा म व को उसके अ धकार
के प म व ले षत कया गया।
8. आरंट ने आधु नकता के 2 चरण क या या क है। थम, 16वीं से 18 वीं
शता द तक का काल, िजसम वैि वक अलगाव बढ़ा और दूसरा 18 वीं शता द से
बीसवीं शता द तक िजसम पृ वी के अलगाव को देखा जा सकता है।
प ट है क आरंट ने सो क तुलना म अ य धक व तार के साथ आधु नक नाग रक
समाज क आलोचना क है एवं नव वामपं थय के समान मनु य के अलगाव क चचा
क है, हालां क वे वयं को वामपंथी मानने से इनकार करती ह।
अलगाव को दूर करने हेतु सुझाव-
​आरंट के चंतन क वशेषता यह है क वे न के वल आधु नकता क आलोचक है, बि क
आधु नक युग म जो क मयां दखाई देती ह, उ ह दूर करने का सुझाव भी देती ह। इस
संबंध म उ ह ने दो सुझाव दए ह िज ह वे दो रणनी तयां कहती ह िजनका योग
आधु नकता ज नत सम याओं का समाधान करने म कया जा सकता है। थम, ह ना
मानती ह क आधु नक समाज को अतीत के साथ अपने संबंध को फर से जोड़ना होगा
और इस संबंध म वह वखंडन यु त इ तहास लेखन एवं पाठन को उपयोगी मानती ह।
इ तहास म वखंडन और व थापन क घटनाएं अतीत क खोई हुई संभावनाओं को
तलाशने म मददगार ह गी और उनके सहयोग से वतमान क वकृ तय को भी दूर कया
जा सकता है, ऐसी आर ट क मा यता है। अपने इन वचार के लए ह ना वा टर
बजा मन क ऋणी है। दूसर रणनी त के प म वे ाचीन पि चमी दशन के पाठन पर
जोर देती ह िजसम मानव जीवन के वा त वक अथ को ढूंढने एवं मनु य को मु त बनाने
क राह दखाई गई है। नसंदेह ह ना अतीत क सभी खोई हुई परंपराओं को पुनज वत
करने क बात नह ं करती, बि क उ ह ं परंपराओं को मह व दए जाने क बात करती ह,
जो वतमान समाज के लए ासं गक एवं उपयोगी हो सकती है तथा भ व य के लए
ेरणा ोत बन सकती ह। ह ना इ ह ‘अतीत का कोष’ कहती ह।
आलोचना- ​बन ट न, हबीब एवं पा रत जैसे वचारक ने अ ना के आधु नकता संबंधी
वचार क आलोचना क है ।
● ह ना के वचार म सावज नक े मह वपूण है और वे इसे अथ यव था के
वकास के साथ जोड़ती ह जो मनु य क भौ तक आव यकताओं क पू त तक
सी मत है । ऐसा करके वह सावज नक े के दायरे को बहुत सी मत कर देती है।
● आलोचक क ि ट म ह ना आधु नक पूंजीवाद अथ यव था के व प को
समझने म असमथ रह है, िजसम पूंजी का अ यंत असमान वतरण होता है एवं
एक अलग तरह क शि त संरचना न मत होती है।आ थक शि त राजनी तक
स ा का ोत बन जाती है। पूंजीवाद अथ यव था म न हत शोषण के न को वे
नजरअंदाज करती तीत होती है।
● नजी और सावज नक, सामािजक और राजनी तक जीवन म पृथ करण पर जोर
देते हुए वे भूल जाती ह यह सभी े एक दूसरे से संबं ध है। आज बहुत सारे
नजी मु दे सावज नक मह व का वषय बन गए ह तथा याय और समान
अ धकार के लए संघष का व तार व भ न े तक हुआ है, उनका दायरा के वल
सावज नक े तक ह सी मत नह ं है।
● आधु नकता क आलोचना करते समय उ ह ने आधु नक युग क मु य
उपलि धय को भी नजरअंदाज कया है। च क सा व ान, अंत र व ान एवं
सूचना ौ यो गक के े म हुए तकनीक आ व कार का उ दे य कसी न कसी
प म मनु य के अि त व और उसके जीवन क गुणव ा को बढ़ाने का बहुमू य
यास है।
● राजनी तक यव था एवं नाग रकता संबंधी वचार-
रा य और राजनी त का व प कै सा हो, यह सभी राजनी तक चंतक के वशेषकर
परंपरावाद राजनी तक दाश नक के चंतन का क य वषय रहा है। लेटो और
अर तू जैसे यूनानी दाश नक से लेकर डे वड ई टन और लसवेल जैसे
यवहारवाद चंतक ने अपने -अपने ि टकोण से वचार कया है। लेटो और
अर तू ने रा य को नै तक जीवन क उपलि ध का एक मह वपूण साधन बताया,
तो ई टन जैसे वचारको ने मू य के आ धका रक आवंटन के प म राजनी तक
यव था को प रभा षत कया। आधु नक युग म राजनी त को संघष समायोजन
क एक कला के प म भी देखा गया। इस संबंध म ह ना के वचार इन पारंप रक
वचार से भ न है।उनके अनुसार राजनी त न तो शुभ जीवन क ाि त का साधन
मा है और न ह यह संघष समायोजन क कला है, बि क यह तो स य
नाग रकता का े है। सं ेप म राजनी त और नाग रकता के वषय म आरंट के
वचार को न नां कत बंदुओं म प ट कया जा सकता है -
● आरंट शासन के थान पर राजनी त श द के योग को उपयु त मानती है,
य क शासन का अथ उनक ि ट म समुदाय का वभाजन है िजसम लोग शासक
और शा सत के बीच वभािजत हो जाते ह । शासक आदेश देता है जब क शा सत
उसक आ ा का पालन करता है। पारंप रक प म राजनी त को शासन के संदभ
म ह प रभा षत कया जाता है। आर ट इसे राजनी त नह ं, बि क राजनी त से
पलायन मानती ह और यह तपा दत करती ह क राजनी त कायवाह से जुड़ी
ग त व ध है अथात मनु य को मनु य व दान करने वाल याओं से इसका
संबंध है।
● राजनी त सावज नक े से संबं धत है, िजसके उ दे य क ाि त स य
नाग रकता से ह संभव है। यूनानी दाश नक के समान आरंट भी सभी समान
नाग रक क नणय नमाण और उसके या वयन क या म भागीदार
चाहती ह। स य नाग रकता से उनका ता पय सावज नक मु द पर सामू हक
वचार- वमश और सामू हक कायवाह से है। इस तरह क राजनी तक यव था म
येक यि त दूसरे से आशा करते ह क वे उसका सहयोग करगे।
● आरंट स य नाग रकता पर आधा रत राजनी त को त न ध शासन म संभव
नह ं मानती ह और इस लए त न ध मूलक लोकतं क आलोचना भी करती ह
य क ऐसी यव था म वचार अ भ यि त क वतं ता तो अव य मल जाती है,
कं तु इस वतं ता का अथपूण वकास नह ं हो पाता। लोकतं म यि त को ा त
वतं ता नकारा मक है, य क यह सफ यि त को सरकार के अ याचार से
बचाने के लए है। त न ध सं थाएं ,राजनी तक दल और दबाव समूह सभी के
हत क बात करते ह, जब क हत यि तगत े से संबं धत है। इससे स य क
धारणा का नमाण नह ं होता है य क स य का नमाण खुले वचार- वमश से
यु त एक ऐसे समाज म ह संभव है जहां मनु य सावज नक े म नवास करते
ह।
● राजनी तक यव था क ि ट से यूनानी नगर रा य को आरंट आदश मानती ह
य क वहां राजनी तक जीवन क धानता थी, आधु नक युग म यह वशेषता
लु त हो गई है। उनक ि ट म नगर रा य क सफलता का रह य यह था क वहां
स ा सहभा गता यु त लोकतां क सं थाओं म न हत थी और पा रवा रक एवं
आ थक मामल को नजी े का वषय समझते हुए उ ह
सावज नक े से अलग रखा जाता था। आधु नक समाज म राजनी तक और
पा रवा रक -आ थक े के बीच क सीमा- रेखा मट गई है और राजनी तक
कायवाह आ थक शासन मे बदल गई है।
● ह ना ने िजस कार के राजनी तक समाज का सपना देखा उसे वे ‘प रषद रा य’
कहती ह जो संघीय आधार पर ग ठत होता है और िजसका व प गणतं ा मक
होता है। आरंट इसे ‘ पीपु स यूटो पया’ भी कहती है। इस यव था म यि त
प रषद के अंतगत संग ठत होकर वाय ता पूवक कम करते ह। आधु नक रा य
म गैर सरकार संगठन का उदय प रषद य रा य क थापना क तरफ बढ़ाया
गया एक कदम माना जा सकता है।
● प रषद य रा य का नमाण के वल ां तकार तर के से ह हो सकता है, ऐसा आरंट
मानती है। ां त से नवीनता और वतं ता का आगमन होता है। ां त आदश
यव था के लए नीव का काय करती है। उनके वचारानुसार हंसक ां त संसार
को प रव तत कर देती है, कं तु उसे साथक तभी माना जा सकता है जब उसके
प रणाम व प कसी देश के सभी नाग रक वतं राजनी तक ग त व धय म
भाग ले सक तथा राजनी त को नजी सुख का साधन न समझ कर सावज नक
क याण के साधन के प म देखने क वृ वक सत कर सके ।
​ ां त संबंधी वचार
ह ना आरंट ाचीन यूनानी और रोमन आदश एवं मू य पर आधा रत राजनी तक
समाज क थापना के लए ां त को आव यक मानती ह।अपनी पु तक’’ ‘ ऑन
रवॉ यूशन’ म उ ह ने ां त के वषय म वचार दए ह, कं तु ां त के वषय म भी
उनके वचार पारंप रक वचार से भ न है, िज ह न नां कत बंदुओं म व ले षत कया
जा सकता है-
● ां त क अवधारणा आधु नक व व म उ प न होती है और इससे नवीनता एवं
वतं ता का आगमन होता है। ां त सामािजक यव था म मौ लक प रवतन का
उ दे य रखती है। ां तकार परंपरा से यव था ज म लेती है और यि त “
प रषद रा य” क थापना क ओर अ सर होते ह। प रषद रा य आरंट क
क पना का आदश रा य है िजसम यि त व भ न प रषद म वयं को संग ठत
कर वतं ता एवं वाय ता पूवक काय करते ह ।
● ां त क साथकता इस बात म है क लोग अपने साथ रहने वाले समाज के
सद य के साथ वतं कायवाह म भाग लेते हुए ‘सावज नक स नता’ को
बढ़ावा दे सके । हालां क ऐसा बहुत कम दखाई देता है। आरंट क ां त क
प रभाषा के अनुसार दु नया म हुई व भ न ां तय का व लेषण करने पर यह
पता चलता है क बहुत कम ां तय म स नता को बढ़ावा देने क वशेषता
न हत थी ।
● आरंट ने अमे रक और ांसीसी ां तय क तुलना करते हुए अमे रक ां त को
अ धक सफल बताया है य क उसके प रणाम व प वहां एक वतं सं वधान
था पत कया गया और उदारवाद मू य के अनुसार रा का नमाण कया
गया, जब क ांसीसी ां त हंसा और अ याचार म बदल गई िजसका मुख
कारण यह था क ांस म यापक नधनता क सम या के कारण वतं कायवाह
को पृ ठभू म म डाल दया एवं ां तकार नधन वग के त दया क भावना से
े रत होकर आतंक क राह पर चल पड़े । हालां क अमे रक ां त को भी पूण
सफल नह ं कहा जा सकता य क वहां के अ धकांश नाग रक राजनी त के े से
बाहर ह रहे। ां तका रय के मन म जनसेवा क भावना लु त हो गई और उ ह ने
राजनी त को नजी सुख के साधन के प म देखना शु कर दया।
● ां त के साथ सामा यतः हंसा जुड़ी हुई होती है, कं तु हंसा के त ह ना का
ि टकोण प ट नह ं है। कभी तो वह उसे वीकार करती दखाई देती है, क तु
अंततः यह मानती है क य य प हंसा से संसार प रव तत होता है, परंतु वह
दु नया को अ धक हंसक बना कर छोड़ भी देती है।
​ न कष -
आरंट के उपयु त वचार के आधार पर न नां कत न कष तक पहुंचा जा सकता है-
● आरंट बीसवीं शता द क यहूद अमे रक राजनी तक वचारक है, िज ह कसी
व श ट वचारधारा से संबंध नह ं कया जा सकता।
● उनके इनकार करने के बावजूद उनके वचार पर सो, न जे, मा स आ द
वचारक का भाव प रल त होता है।
● उनके वचार नाजीवाद जमनी के होलोका ट क प रि थ तय अनुभव पर
आधा रत है।
● सवा धकार वाद शासन के वषय म आरंट ने नतांत नए ि टकोण से वचार
कया है। उनके अनुसार आतंक और भय के साए म सवा धकारवाद शासन
एक पता पर आधा रत नई मू य यव था को थोपने का यास करता है।
● मानवा धकार क धारणा के थान पर ह ना नाग रक अ धकार क धारणा म
व वास य त करती है, य क मानवा धकार के पीछे कानूनी बल नह ं होता ।
● राजनी त और वतं ता जैसी धारणाओं पर भं न वचार रखते हुए उ ह ने
राजनी त को स य नाग रकता का े बताया, िजसम येक यि त मानवीय
मू य क दशा म काय करते हुए वा त वक वतं ता को ा त कर सकता है।
इस संदभ म उ ह ने म, काय और कायवाह क धारणा द िजसम कायवाह
सावज नक े म मनु य वारा क जाने वाल ग त व ध है, जब क म एवं काय
का संबंध नजी े से है।
● पूंजीवाद और त न ध मूलक लोकतं पर आधा रत आधु नक समाज क ह ना
आलोचक ह, य क वै ा नक और तकनीक ग त के आधार पर मनु य ने अपने
जीवन क सु वधाओं को तो बढ़ा लया है, क तु कृ त क वाभा वकता समा त
हो गई है और मानवीय मू य का रण हुआ है।
● व यमान समाज क बुराइय को वखंडनयु त इ तहास के अ ययन एवं ाचीन
यूनानी दशन अ ययन को ो सा हत कर दूर कया जा सकता है।
● स य नाग रकता पर आधा रत राजनी तक यव था क थापना ां त के
मा यम से संभव है। ां त का प रणाम सावज नक स नता एवं वतं ता म
वृ ध करने वाला होना चा हए, अ यथा वह नरथक है।
मू यांकन-
​ह ना अरट बीसवीं शता द क एक भावशाल राजनी तक वचारक ह, कं तु आलोचक
ने उनके चंतन म न नां कत क मय को उजागर कया है। उनके आलोचक म शे डन
वॉल न , भखू पारेख, कर ल एवं ए . के . शरण मुख है।
● आरंट ने आधु नक युग म मानवीय दशा का जो च ण कया है य य प वह त य
के नकट है और कह ं कह ं वह मानवीय सम याओं के समाधान क तरफ अ सर
दखाई देती है कं तु कई थान पर वे अपने मौ लक वचार से दूर चल जाती है।
कर ल इसे त यावाद वृ कह कर आलोचना करते ह।
● आधु नक युग क क मय को उजागर करते समय ह ना ने पूंजीवाद समाज के
शोषणकार व प क उपे ा क है, िजसे शे डन वो लन ने अतकसंगत कहा है ।
● आरंट ाचीन यूनान और रोम के राज दशन और उनम न हत सं थाओं क
प धर है। वे जेफरसन क वाड णाल , कु ल न तं क वशेषता से यु त लघु प
समुदाय तथा खुल वचार- वमश क प ध त क समथक है ,जो उ ह पुरातनवाद
बना देता है।
● कु छ बंदुओं पर ह ना के वचार प ट नह ं है। जैसे-कौन सी ग त व धय से
उपयोगी सावज नक वचार- वमश संभव होगा और इस वचार- वमश को सुगम
एवं भावी बनाने के लए कौन सी राजनी तक सं थाएं उपयोगी ह गी, इस वषय
म उनके वचार प ट नह ं है।
● मानवीय ग त व धय को म, काय और कायवाह जैसे तीन भाग म बांटने के
वचार को भखू पारेख ने वे छाचार माना है । बहुलता यु त मानवीय जीवन म
यह बहुत संभव है यह तीन ग त व धयां आपस म संब ध हो जाए। मानवीय
ग त व धय के संबंध म ऐसे कसी सावभौ मक स धांत को लागू नह ं कया जा
सकता।
● आधु नक युग के जन पुंज [mass society] समाज क वकृ तय को दूर करने
के लए उनके वारा सुझाए गए उपाय भी बहुत यावहा रक नह ं है। के वल
वखं डत इ तहास, ाचीन दशन क परंपरा को समझ कर ह सम याओं का
समाधान नह ं कया जा सकता। इसके लए तो यापक व व ि ट क
आव यकता होती है।
इन आलोचनाओं के बावजूद आधु नक राजनी तक चंतन के इ तहास म ह ना का थान
कम नह ं होता। वे 20 वी शता द क एक ऐसी साहसी और नभ क राजनी तक वचारक
ह िज ह ने समसाम यक दु नया का गहनता और सू मता के साथ व लेषण कया। नव
उदारवाद परा आधु नक युग म बेतहाशा समृ ध क लालसा ने िजस कार सामािजक
संबंध को दु भा वत कया है एवं पयावरणीय संकट को ज म दया है,उसके ि टगत
ह ना के वचार सवथा ासं गक तीत होते ह।
​REFERENCES AND SUGGESTED READINGS
● The world's Biggest Refugee Crises,mercy corps.org
● www.britannica.com
● Stanford Encyclopaedia Of Philosophy,plato.stanford.edu
● www.loc.gov
● www.jewishvirtuallibrary.org
● Hanna Arendt, Eichmann In Jerusalam,​www.newyorker.com
● Hanna Arendt,The Origin Of Totalitarionism
न-
नबंधा मक न-
1. ां त एवं वतं ता के वषय म ह ना आरंट के वचार का मू यांकन क िजए।
2. सवा धकारवाद के वषय म ह ना आरंट के वचार क ववेचना क िजए।
नरंकु श शासन से यह कस अथ म भ न है।
3. ह ना आरंट ने आधु नक समाज क आलोचना कन आधार पर क है।
4. ह ना आरंट एक परंपरावाद राजनी तक वचारक ह,इस कथन के संदभ मे
आदश रा य यव था के वषय मे ह ना आरंट के वचार का मू यांकन क िजए।
व तु न ठ न-
1. ह ना आरंट मूलतः कस देश क वचारक ह।
[ अ ] अमे रका [ ब ] जमनी [ स ] इजराइल [ द ] टेन
2. आरंट क वचारधारा पर कस वचारक का भाव दखाई देता है।
[ अ ] सो [ ब ] मा स [स ] हेगेल [ द ] हॉ स
3. आरंट ने मानवीय वतं ता क या या कन वचार के संदभ म क है।
[ अ ] वचार,काय और भावना [ ब ] म, काय और या [ स ] काय , या और
वचार [ द ] या , म और भावना
4. ह ना ने कै से रा य क क पना क है ।
[ अ ] प रषद य [ ब ] नगर रा य [ स ] वैि वक रा य [ द ] रा रा य
5. ह ना ने ‘जून पॉ ल टक ’ का योग कसके लए कया है ।
[ अ ] उपभो तावाद मनु य के लए [ ब ] राजनी तक े मे स य सहभा गता
नभाने वाले मनु य के लए [ स ] अलगाव से त मनु य के लए
[ द ] उपरो त सभी के लए
6. ह ना क ि ट मे ां त कब साथक क जा सकती है ।
[ अ ] य द उसके प रणाम सावज नक स नता मे वृ ध करने वाले हो
[ ब ] सावज नक जीवन मे मनु य क स य सहभा गता मे वृ ध करते ह
[ स ] उपरो त दोन
[ द ] उपरो त मे से कोई नह ं
7. सवा धकारवाद संबंधी वचार ह ना क कस पु तक मे मलते ह ।
[ अ ] ओ रिजन ऑफ टोट लटे रया न म [ ब] द यूमन कॉ डीशन [ स ]
बट वनं पा ट एंड यूचर [ द ] मेन इन डाक टाइ स
8. ह ना ने आधु नक समाज मे मनु य के कस तरह के अलगाव क बात क है ।
[ अ ] पृ वी का अलगाव [ ब ] वैि वक अलगाव [ स ] उपरो त दोन तरह के
[ द ]सां कृ तक अलगाव
9. ह ना ने आ थक ग त व धय को कस े मे रखा है ।
[ अ ] सावज नक [ ब ] नजी [स ] दोन मे [ द ] कसी मे नह ं
10. ह ना ने मानवीय ग त व ध के कस भाग को उ कृ ट बताया है ।
[ अ ] म [ ब ] काय [ स ] या [ द ] उपरो त सभी को
उ र -1. ब 2. अ 3. ब 4. अ 5.ब 6. स 7. अ 8. स 9. ब 10. स

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Hanna arant ke rajneetik vichar

  • 1. ​ह ना आरंट के राजनी तक वचार source-https://s3.amazonaws.com यह साम ी वशेष प से श ण और सीखने को बढ़ाने के शै णक उ दे य ​के लए है। ​आ थक / ​वा णि यक अथवा कसी अ य उ दे य के लए इसका उपयोग ​पूणत: ​ तबंध है। ​साम ी के उपयोगकता इसे कसी और के साथ वत रत, सा रत या ​साझा नह ं करगे और इसका उपयोग यि तगत ान क उ न त के लए ह करगे। ​इस ई - ​कं टट म जो जानकार क गई है वह ामा णक है और मेरे ान के अनुसार सव म है। वारा - डॉ. ममता उपा याय एसो . ो . , राजनी त व ान कु . मायावती राजक य म हला नातको र महा व यालय बदलपुर ,गौतमबु ध नगर , उ र देश
  • 2. उ दे य- तुत ई - कं टट से न नां कत उ दे य क ाि त संभा वत है- ● आधु नक राजनी तक स धांत के दौर म मू य आधा रत परंपरावाद राजनी तक दशन क जानकार ● परंपरावाद वचारक के प म ह ना आरंट के वचार क जानकार ● सवा धकारवाद यव था के संबंध म एक नई ि ट का ान ● समसाम यक राजनी तक यव था म मौजूद बुराइय एवं सम याओं को यान म रखते हुए समाधाना मक चंतन क वृ को ो सा हत करना ● समसाम यक सम याओं का समाधान ाचीन दशन म ढूंढने क वृ को ो सा हत करना ह ना आरंट बीसवीं शता द क यहूद अमर क राजनी तक वचारक है, िजनके चंतन का क बंदु मानवीय भावनाएं ह।आरंट का समकाल न राजनी तक वचारको म इस ि ट से व श ट थान है क उनक कसी एक वचारधारा या मत से संब धता नह ं रह । उनका चंतन एक मौ लक चंतन है। एक शरणाथ के प म अमे रका म नवास करते हुए सावज नक जीवन और मानवीय अि त व के वषय म उनके अनुभव उनके राजनी तक वचार का आधार है। राजनी त व ान के े म यु धोतर काल म हुई यवहारवाद ां त के समय डे वड ई टन और अ े ड कॉबन जैसे वचारको ने परंपरावाद राजनी तक स धांत के ास क बात कह थी और यह मत य त कया था क काल मा स के बाद ऐसा कोई राजनी तक दाश नक नह ं हुआ, िजसने राजनी तक आदश को यान म रखते हुए वचार कया हो। कं तु ह ना आरंट जैसी वचारक दाश नक प र े य म राजनी तक वचार का व लेषण करती हुई पारंप रक, मू यपरक राजनी तक दशन के पुन थान क तीक है, जैसा क ईसाह ब लन एवं लयो ॉस जैसे वचारको ने भी माना है। बीसवीं शता द म अनेक राजनी तक वचारको वारा आधु नक वै ा नक औ यो गक युग म मनु य क अलगाव यु त, यथा यु त जीवन दशा का च ण कया गया है। जैसे- अि त ववाद वचारक ए रक ॉम, डे वड र समैन , ए रकसन, सी . राइट म स , े थस आ द के चंतन म मनु य क मनोदशा का गहन ववेचन कया गया है। एक सा ह यकार के प म आरंट ने यि त के मान सक या वैयि तक प को मुखता दान क है। उनक ि ट म दशन का संबंध एकवाचक मनु य के प म है जब क उनक रचनाएं इस त य पर आधा रत है क मनु य एक यि त के प म नह ं, बि क इस संसार के एक अंग के प म
  • 3. नवास करते ह। [Men , not man ,live on the earth and inhabit the world]समूह के साथ यि त के अि त व को यान म रखकर ह राजनी तक वचार का नमाण कया जाना चा हए, ऐसी आरंट क मा यता है। साथ ह एक सवा धकार वाद राजनी तक यव था म यि त का अि त व एवं वैयि तकता कै से संकट म पड़ जाती है,आरंट ने इसका भी व लेषण कया है। जीवन वृ - आरंट मूलतः एक जमन म हला वचारक है िजनका ज म 14 अ टूबर 1906 को जमनी के लडेन नगर म हुआ था । जमनी म नाजीवाद के उदय के कारण युवाव था मे उ ह जमनी छोड़ना पड़ा और ांस होते हुए वे संयु त रा य अमे रका पहुंची । मारबग व व व यालय म मा टन हाइडेगर के साथ उ ह ने दशनशा का अ ययन कया। 1940 म उ ह ने जमन क व एवं मा सवाद दाश नक हेन रक लूशर के साथ ववाह कया। 1950 म अमे रका क नाग रकता ा त करने के बाद वहां के व व व यालय म अपना एके ड मक क योगदान देती हुई 1959 म ंसटन व व व यालय म एक पूणका लक ोफे सर के प म नयु त होने वाल पहल म हला बनी। 1975 म 69 वष क उ म अमे रका के यूयॉक शहर म उनका नधन हुआ। रचनाएं- ● द ओ रिजन ऑफ टोट लटे रए न म[1951] ● द यूमन कं डीशन [1958] ● बटवीन पा ट एंड यूचर [1961] ● ऑन रवॉ यूशन [1963]
  • 4. ● आइकमैन इन जे सलम[1963] ● मेन इन डाक टाइ स [1968] ● ऑन वायलस [1970] ● ाइ सस ऑफ द रपि लक[1972] ● द लाइफ ऑफ द माइंड[ 1978 म का शत] भाव - सो और न जे अ ययन प ध त- दाश नक एवं आनुभ वक ​ह ना आरंट के राजनी तक वचार अरट के राजनी तक वचार क ववेचना न नां कत शीषक के अंतगत क जा सकती है- 1. सवा धकारवाद के वषय म वचार - सवा धकार बाद आधु नक युग क एक अ धनायक तं ीय वचारधारा है,जो जमन नाजीवाद एवं इटा लयन फासीवाद म प ट प से अ भ य त हुई।’सवा धकारवाद’ श द का योग सबसे पहले मुसो लनी के वारा कया गया था जब उसने घो षत कया क “ सब कु छ रा य के भीतर है, रा य के बाहर कु छ भी नह ं, रा य के व ध कु छ भी नह ं है’’। इस वचारधारा के अंतगत सारे अ धकार शासक के माने जाते ह और आम जनता के अ धकार क उपे ा क जाती है। सवा धकार वाद नेताओं जैसे - हटलर मुसो लनी, ले नन और टा लन ने सवा धकार वाद क अपने तर के से या या क थी । अ े ड कोबन ने सवा धकार वाद को रा य क सावयवी वचारधारा से जोड़ा । ेजेिजंसक जैसे वचारक ने सवा धकार वाद क न नां कत वशेषताएं बताई थी- ● वचार वाद या एक नि चत वचारधारा म व वास ● एक नेता वारा नद शत राजनी तक दल ● आतंकवाद पु लस नयं ण
  • 5. ● जनसंचार मा यम पर एका धकार ● सश बल पर एका धकार ● शि तशाल क य स ा https://tse2.mm.bing.net/th?id=OIP.sYeE6cDe-foEaWA67jncswHaD2& pid=Api&P=0&w=370&h=193 जमनी जैसे सवा धकारवाद रा य क मूल नाग रक होने के कारण ह ना आरंट ने अपने य अनुभव के आधार पर सवा धकार वाद क दूरगामी एवं सू म या या तुत क है। उ ह सवा धकारवाद का असवा धकारवाद या याता माना जाता है। अपने ंथ “ सवा धकारवाद क उ प ’’ मे सवा धकारवाद को उ ह ने आधु नक समाज क अभूतपूव घटना मानते हुए इसके वैचा रक उ गम पर काश डाला तथा इसके ऐ तहा सक, दाश नक एवं वैचा रक कारण का व लेषण कया।ह ना का यह मत है क सवा धकार वाद आम नरंकु श शासन से भ न है । उनके अनुसार आधु नक सवा धकारबाद म न नां कत ल ण प ट होते ह- 1. समाज के पारंप रक मू य के थान पर नई मू य यव था था पत क जाती है िजसम नद ष यि त नंदा और घृणा का पा होता है तथा अपराधी खुले घूमते ह या उनका स मान कया जाता है। 2. अपरा धय म सामू हक अपराध क भावना बढ़ने लगती है और उनम संगठन का भाव आने लगता है। इस कार के सामू हक अपराध क वृ नाजी जमनी म दखाई देती है जहां नजी और सावज नक जीवन के सारे प एक सव यापी भु व क या म वल न हो जाते ह।
  • 6. 3. था पत कानून और यव था के त लोग म व वास कम होने लगता है और उनम असहायता एवं असुर ा क भावना बढ़ जाती है। यह असुर ा का भाव इतना अ धक बढ़ जाता है क कभी-कभी सीधे साधे लोग को भी अपनी र ा के लए अपरा धय पर नभर होना होता है । 4. सवा धकार बात का क बंदु एक छ म वै ा नक व व ि ट या वचारधारा होती है जो अपने वचार के अनु प समाज को नरंतर व वंस एवं पुन नमाण के लए ववश करती है। जैसे - इसम इ तहास को पर पर वरोधी जा तय या वग के बीच संघष के प म देखा जाता है । इस व वास के प रणाम व प यि तय क सहज बु ध और यावहा रक ान न ट हो जाते ह। 5.अपनी वचारधारा क पुि ट और राजनी तक वरो धय का दमन करने के लए इसम आतंक का भरपूर योग कया जाता है। यातना श वर के अनुभव इसके य माण है जहां लोग को एक समान वेशभूषा पहनने और सर मुंडाने के लए ववश कया जाता है.।आरंट क मा यता है क नाजी सै नक येक यि त क को मटाने के साथ ह उन यि तय को ह मटा देना चाहते थे, िज ह उनके इन दु कम क जानकार थी। 6. सवा धकार बाद का ल य संपूण व व का क य नयं ण करके उसे वकृ त करना होता है। आम जन के साथ- साथ समय-समय पर यह यव था अपने नेताओं को भी फालतू समझती है और उ ह न ट करके या उनका पांतरण करके यह स ध करती है क ‘सब कु छ संभव है’। 7. सवा धकार बाद पारंप रक नै तक मू य के वषय म तट थ रहने के साथ-साथ एक नई और वकृ त नै तकता था पत करता है िजसम अ हंसा के थान पर हंसा का समथन कया जाता है। 8. पुराना नरंकु श तं प रवतन वरोधी था, आधु नक सवा धकार वाद यव थाएं अपने अि त व क र ा के लए नरंतर प रवतन पर नभर करती है तथा ववेकपूण ल य के अभाव म शि त का व तार चाहती ह।
  • 7. 9. सवा धकारबाद स ाबाद से इस अथ म भ न है क स ावाद के अंतगत संपूण शि त और उ रदा य व रा य के हाथ म क त होते ह, जब क सवा धकारबाद एक ऐसा अ नय मत आंदोलन है िजसम सव च शि त गु त पु लस के हाथ म रहती है, सरकार के हाथ म नह ं । ऐसी यव था म वैधता और रा य क भुस ा के स धांत नरथक हो जाते ह। 10. ले नन वाद के अंतगत यह माना गया क स य को या के मा यम से ह समझा जा सकता है।आरंट क मा यता है क सवा धकारवाद के अंतगत स य क खोज ह थ गत हो जाती है। येक व तु को संभव मानने क वृ के कारण यह ऐसी नी त का नमाण करता है िजसका उ दे य बल योग वारा येक ि थ त को उस नी त के अनुकू ल बनाना होता है। 11. सवा धकार वाद के वकास म सा ा यवाद का बड़ा योगदान है। सा ा यवाद युग म जब शासक ने अपने देश क सीमाओं को पार कया तो आ थक उ दे य क पू त हेतु राजनी त म उनका ह त ेप आव यक हो गया। सा ा यवाद शासक ने शा सत क सहम त के स धांत क अवहेलना क और वैचा रक वतं ता तथा सामुदा यक भावना के अभाव म मानवता को अपार त पहुंचाई है। प ट है क आरंट ने सवा धकारवाद के व लेषण म ऐ तहा सक घटनाओं, स धांत तथा जनता क मनोदशाओं के म य अंतः याओं को अ भ य त कया है।
  • 8. मानवा धकार क धारणा का वरोध एवं नाग रक अ धकार क धारणा का समथन-
  • 9. ह ना आरंट सावभौ मक मानवा धकार क धारणा म व वास नह ं रखती, बि क रा य के अंतगत ा त नाग रक अ धकार को मह वपूण मानती है। मानव अ धकार क सव यापी घोषणा 10 दसंबर 1948 को संयु त रा संघ के वारा क गई थी िजसके अंतगत 30 अनु छेद के मा यम से संपूण धरती पर नवास करने वाले यि तय को रा यता और भूभाग क सीमाओं से परे जीवन के लए कु छ आधारभूत प रि थ तय को मानवा धकार क मा यता द गई थी, िजनम जीवन का अ धकार, रोजगार का अ धकार, वतं ता का अ धकार, अवकाश का अ धकार, व ाम का अ धकार, प रवार का अ धकार, भाषा एवं सं कृ त क सुर ा का अ धकार, शरण ा त करने का अ धकार आ द मुख है। इस संबंध म आरंट क मा यता यह है क मानवा धकार के पीछे बा यकार कानूनी स ा का बल न होने के कारण इनका भावी ढंग से या वयन नह ं हो पाता। उ लेखनीय है क संयु त रा संघ क घोषणा के पीछे कोई बा यकार स ा नह ं है। य द कोई रा इन अ धकार का उ लंघन करता है, तो उसे ऐसा करने के लए बा य नह ं कया जा सकता। अंतररा य नयम को मानना रा के लए सौज य का वषय है, बा यता का नह ं य क येक रा एक सं भु रा है और उसक सं भुता क धारणा यह नि चत करने का सव च अ धकार उसे ह दान करती है क वह कसी अंतररा य सं ध या अ भसमय को माने या न माने। वयं ह ना ने जमनी से अमे रका जाकर एक शरणाथ के प म अपना जीवन यतीत करते हुए यह अनुभव कया था क अ धकार को याि वत करने के लए रा य क स ा आव यक है। वतमान म दु नया भर म शरणा थय क ि थ त मानवा धकार के अि त व पर एक न च ह है। आज दु नया के शरणाथ समूह म सी रया, अफगा न तान, सूडान, सोमा लया एवं यामार के शरणाथ समूह मुख है। दु नया के लगभग 80 म लयन शरणाथ यि तय म आधे से यादा इन देश के ह। अपने देश म हंसा, गृह- यु ध और ाकृ तक आपदा के कारण यह समूह अपना देश छोड़कर दूसरे देश म शरण लेने के लए ववश हुए ह। ह ना यह मानती है क रा य अपनी सं भुता क दुहाई देते हुए शरणा थय के साथ दोयम दज का यवहार करते ह, उ ह घूमने फरने तक क
  • 10. आजाद नह ं होती। यहां तक क अमे रका जैसे लोकतां क देश म भी यहूद संगठन के व ध कायवाह क जाती है, अतः मानवा धकार कोरे आदश बन कर रह जाते ह। यवहार म उनक ाि त म अनेक बाधाएं ह। ह ना के अनुसार मानवा धकार के थान पर नाग रक अ धकार क धारणा को अपनाया जाना चा हए, य क रा य नाग रक अ धकार के त यादा संवेदनशील होते ह और इनका उ लंघन होने पर नाग रक यायालय क शरण ले सकते ह। वतं ता क धारणा- वतं ता क पारंप रक उदारवाद धारणा से पृथक आरंट ने दाश नक ि ट से वतं ता का व लेषण कया है। अपनी पु तक ‘ ऑन यूमन कं डीशन’म वैचा रक वतं ता क नई या या करते हुए आरंट ने यह तपा दत कया है क मनु य क ग त व धय के तीन तर होते ह- म, काय और कायवाह । इन ग त व धय म सबसे नचले तर क ग त व ध म है िजसके वारा मनु य अपने जीवन क भौ तक आव यकताओं को पूरा करने के लए आव यक सु वधाओं को जुटाने म संल न रहता है। दूसर ग त व ध “काय” क है िजसके वारा एक श पी या कलाकार थाई मह व क व तुएं बनाकर स यता के नमाण म योगदान देते ह। सबसे उ च तर क मानवीय ग त व ध कायवाह या या है जो राजनी त का वषय है िजसम सभी नाग रक अपनी- अपनी तभा का प रचय देते हुए व व के वषय म अपने भ न- भ न ि टकोण को य त करते ह। यह जीवन का सावज नक े है िजसे आरंट ने ‘ वचार क वतं ता का े ’ कहा है। उ लेखनीय है क यूनानी दाश नक के समान ह ना ने भी राजनी त के े को सव च मह व दया है। ाचीन यूनान म नाग रकता का दजा ह उ ह ा त होता था जो सावज नक जीवन म स य भागीदार नभाते थे तथा राजनी त बु धजी वय के वेश का े माना जाता था। मानव जीवन क इन तीन ग त व धय क पृथक- पृथक या या करते हुए आरंट ने न नां कत वचार य त कए ह-
  • 11. 1. म- आरंट के अनुसार म का ता पय मनु य क ऐसी ग त व ध से है िजसम उसक चेतना का तर पशु समान होता है। अपनी दै नक और आधारभूत आव यकताओं क पू त के लए यि त म करते ह । पशुओं के वारा भी अपनी शार रक आव यकताओं क पू त के लए ह काय कया जाता है, इस लए आरंट ने म आधा रत ग त व ध को पशु तु य माना है जो उस मा सवाद वचार के वपर त है िजसम शार रक म को म हमामं डत करते हुए मजी वय को शोषण मु त करने के वचार य त कए गए ह। 2. काय- काय का ता पय ऐसी ग त व ध से है िजसके वारा मनु य अपने यास के मा यम से जीवन क अ य ज रत को पूरा करता है। इस ग त व ध के दौरान मनु य म आ म - चेतना आ जाती है और वह अपने आप को व तु से अलग करके देख पाता है। आरंट मानती है क मनु य िजस व व म रह रहा है वह व तुओं का व व है, न क मनु य का। अपने इस वचार के मा यम से ह ना उस उपभो तावाद सं कृ त पर हार करती ह, िजसम मनु य एक के बाद दूसरे उपभोग क व तुओं को ा त करने के लए य नशील रहता है और इस कारण वह मनु यता क सव च ि थ त म नह ं पहुंच पाता है। मनु य के आपसी संबंध बाजार के संबंध बन कर रह जाते ह, वे मानवीय संबंध नह ं बन पाते। 3. कायवाह या या- आरंट उपयु त दोन ग त व धय को नजी े के अंतगत रखती है और तीसर ग त व ध अथात कायवाह को सावज नक े का वषय मानती है। यह ग त व ध न तो चेतना वह नता क ि थ त होती है और न ह चेतना यु त बाजार क होती है। यह पूण चेतन मानवीय ग त व ध होती है और इस ग त व ध के मा यम से मनु य मनु य व को ा त करता है। उनके अनुसार मानव वभाव क सबसे बड़ी वशेषता जो उसे अ य ा णय से अलग करती है, यह है क मनु य मे अमर व क लालसा होती है। यह लालसा के वल कायवाह क ग त व ध वारा ह पूर हो सकती है। ह ना आधु नक समाज म यि त क वतं ता पर मंडराते संकट क ओर यान आक षत करती ह और यह मानती है क इन समाज म यि त के नजी हत क र ा के
  • 12. लए इतने शि तशाल रा यापी संगठन बना दए गए ह क सावज नक सम याओं क ओर से यान हट गया है। आ थक, वै ा नक ग त के कारण चंतन और मनन से जुड़े हुए दशन को भार हा न उठानी पड़ी है । मनु य क कायवाह क मता कुं ठत हो गई है और वह अब भी के वल म और कृ य के तर पर जी वत ह। अपने अि त व क र ा के लए मनु य इतने य त ह क मानवीय संबंध पर आधा रत थाई मानव जगत के नमाण के ल य को भूल से गए ह। उपभो तावाद समाज म सं कृ त के वल मनोरंजन और उ योग बन कर रह गई है। वचार क वतं ता लु त हो चुक है। इस वैचा रक वतं ता को पुनज वत करने के लए सावज नक और नजी े को एक दूसरे से अलग करना होगा। ● आधु नकता समाज क आलोचना - सो के चंतन से भा वत होते हुए आरंट ने आधु नक समाज क आलोचना क है। अपनी पु तक ‘द यूमन कं डीशन’ एवं ‘ बटवीन पा ट एंड यूचर’ म संक लत लेख के मा यम से आरंट ने आधु नकता क नकारा मक त वीर तुत क है। उनक चंता इस बात को लेकर है क कै से आधु नकता ने परंपरा, धम और स ा का रण कया है। उनके अनुसार आधु नकता के कारण जीवन के व भ न े म मह वपूण संसाधन तो उपल ध हुए ह, कं तु अब भी आधु नकता को जीवन के अथ, यि त क पहचान और जीवन मू य से संबं धत न का उ र देना शेष है। आरंट ने न नां कत आधार पर आधु नकता क आलोचना क है- 1. आधु नकता ने सावज नक जीवन म वचार और काय क वतं ता को बा धत कर दु नया का बहुत बड़ा नुकसान कया है। आधु नक समाज म लोग अपनी आव यकताओं क पू त के लए, नजी आ थक हत को पूरा करने क या म
  • 13. इतने यादा संल न है क सावज नक जीवन म एक राजनी तक ाणी के प म अपनी भू मका को भूलते जा रहे ह। उ लेखनीय है क अर तू जैसे वचारक ने मनु य को वभाव से एक राजनी तक ाणी कहा था, जो सावज नक जीवन के त अपने दा य व को समझते हुए नी त- नमाण के काय म स य भू मका नभाने क मता रखता है । आरंट के अनुसार आधु नकता ने मनु य क इस भू मका को सी मत कया है और सावज नक े क अपे ा नजी े को ो सा हत कया है। उनके श द म, zoon politikon[ राजनी तक ाणी ] पर homo faber [साधन के मा यम से सबकु छ नयं त करने वाला ] ने वजय ा त कर ल है । 2. आधु नक युग ने नौकरशाह स ा और अ भजन वग को ज म दया है जो जनमत क जोड़-तोड़ कर समाज म अपना वच व कायम रखते ह। आधु नक युग म राजनी तक लोकतं अि त व मे आया है, कं तु इस लोकतं म लोक अथात जनता का कोई मह व नह ं है। जनतं भी अ भजन क धारणा पर चलता है। 3. आधु नक युग म ह सवा धकारवाद सरकार जैसे- नाजीवाद एवं टा लन वाद था पत हुई है, िजनका उ भव आतंक और हंसा के सं थानीकरण के प रणाम व प हुआ है। 4.यह आधु नक युग ह है जहां इ तहास अपनी वाभा वक या के प म वक सत नह ं होता, बि क घटनाओं और काय को एक खास सांचे म ढाला जाता है। इ तहास उसी प म लखा -पढ़ा जाता है, िजस प म स ा के धारक उसे तुत करना चाहते ह। 5. आरंट के अनुसार आधु नक युग क एक बुराई यह है क इसम बहुलता और वतं ता के थान पर सम पता को ो सा हत कया जाता है और इसमे मानवीय स भाव के थान पर अलगाव एवं एकाक पन देखने को मलता है। आधु नकता ने भ न- भ न प म अलगाव को ज म दया है िजसे आरंट ‘ वैि वक अलगाव [ world alienation] एवं ‘पृ वी के अलगाव’ [earth
  • 14. alienation] के प म प रभा षत कया । वैि वक अलगाव से ता पय उस ि थ त से है िजसम मनु य जीवन के अनुभव एवं या मकता पर आधा रत आपसी संबंध से वरत होकर अलग-थलग पड़ गया है। पृ वी का अलगाव वै ा नक और तकनीक ग त का प रणाम है वै ा नक- तकनीक आ व कार के प रणाम व प मनु य पृ वी से परे अ य ह पर जीवन तलाश रहा है, कृ त द जीवन म व तार कर रहा है, योगशालाओं म जीवन क रचना करने का यास कर रहा है और इस कार पृ वी और कृ त पर वजय ा त करने का यास कर रहा है। इससे पृ वी पर रहने वाले जीव - जंतुओं और वन प तय क वाभा वकत भा वत हुई है एवं तकनीक का वच व था पत हुआ है, िजसका दु प रणाम पयावरणीय संकट के प म हमारे सामने है। प ट है क आरंट क आधु नकता के वषय म धारणा गांधीवाद धारणाओं से सा यता रखती है। हालां क गांधी क ि ट म व ान और तकनीक ज नत मशीनी वकास ने शार रक म और मजीवी को दु भा वत कया है,जब क आर ट यह मानती ह क आधु नक युग म मनु य क सार ग त व धयां म क त ह, िजनका उ दे य जीवन के लए अ धका धक संसाधन एक त करना मा है, न क जीवन के मू य को समझते हुए अपनी पहचान को ा त करना। यहां आरंट अि त ववा दय के कर ब भी दखाई देती है,जो मनु य के वा त वक अि त व क तलाश मे ह । 6. सामािजक पूंजी का व तार आधु नकता का एक अ य प रणाम है, िजसके अंतगत कृ त का येक यि त एवं व तु उ पादन और उपभोग, ाि त और व नमय का वषय बन गए ह। आरंट के अनुसार उ पादन और उपभोग आधा रत समाज ने सावज नक जीवन पर वजय ा त कर ल है और सावज नक जीवन को भी यि तगत जीवन क आव यकताओं के साथ जोड़कर नजी और सावज नक जीवन क जो सीमा रेखा थी, उसे समा त कर दया है। उनके श द म,” हमारा समाज मजी वय और नौकर पेशा लोग का समाज बनकर रह गया है जो कसी काय या या मे अंत न हत मू य को कोई मह व दान नह ं करते।” 7. आरंट ने आधु नक युग म बढ़ते अलगाव के कई कारण का उ लेख कया है। जैसे- अमे रका क खोज, पुनजागरण, मनु य क ान य को चुनौती देते हुए
  • 15. टे ल कोप क खोज ,बाजार अथ यव था का व तार,आधु नक व ान का उदय इसके साथ-साथ ऐसे दशन का उदय िजसके अंतगत मनु य को कृ त और इ तहास का मुख अंग बताया गया और कृ त पर वा म व को उसके अ धकार के प म व ले षत कया गया। 8. आरंट ने आधु नकता के 2 चरण क या या क है। थम, 16वीं से 18 वीं शता द तक का काल, िजसम वैि वक अलगाव बढ़ा और दूसरा 18 वीं शता द से बीसवीं शता द तक िजसम पृ वी के अलगाव को देखा जा सकता है। प ट है क आरंट ने सो क तुलना म अ य धक व तार के साथ आधु नक नाग रक समाज क आलोचना क है एवं नव वामपं थय के समान मनु य के अलगाव क चचा क है, हालां क वे वयं को वामपंथी मानने से इनकार करती ह। अलगाव को दूर करने हेतु सुझाव- ​आरंट के चंतन क वशेषता यह है क वे न के वल आधु नकता क आलोचक है, बि क आधु नक युग म जो क मयां दखाई देती ह, उ ह दूर करने का सुझाव भी देती ह। इस संबंध म उ ह ने दो सुझाव दए ह िज ह वे दो रणनी तयां कहती ह िजनका योग आधु नकता ज नत सम याओं का समाधान करने म कया जा सकता है। थम, ह ना मानती ह क आधु नक समाज को अतीत के साथ अपने संबंध को फर से जोड़ना होगा और इस संबंध म वह वखंडन यु त इ तहास लेखन एवं पाठन को उपयोगी मानती ह। इ तहास म वखंडन और व थापन क घटनाएं अतीत क खोई हुई संभावनाओं को तलाशने म मददगार ह गी और उनके सहयोग से वतमान क वकृ तय को भी दूर कया जा सकता है, ऐसी आर ट क मा यता है। अपने इन वचार के लए ह ना वा टर बजा मन क ऋणी है। दूसर रणनी त के प म वे ाचीन पि चमी दशन के पाठन पर जोर देती ह िजसम मानव जीवन के वा त वक अथ को ढूंढने एवं मनु य को मु त बनाने क राह दखाई गई है। नसंदेह ह ना अतीत क सभी खोई हुई परंपराओं को पुनज वत करने क बात नह ं करती, बि क उ ह ं परंपराओं को मह व दए जाने क बात करती ह,
  • 16. जो वतमान समाज के लए ासं गक एवं उपयोगी हो सकती है तथा भ व य के लए ेरणा ोत बन सकती ह। ह ना इ ह ‘अतीत का कोष’ कहती ह। आलोचना- ​बन ट न, हबीब एवं पा रत जैसे वचारक ने अ ना के आधु नकता संबंधी वचार क आलोचना क है । ● ह ना के वचार म सावज नक े मह वपूण है और वे इसे अथ यव था के वकास के साथ जोड़ती ह जो मनु य क भौ तक आव यकताओं क पू त तक सी मत है । ऐसा करके वह सावज नक े के दायरे को बहुत सी मत कर देती है। ● आलोचक क ि ट म ह ना आधु नक पूंजीवाद अथ यव था के व प को समझने म असमथ रह है, िजसम पूंजी का अ यंत असमान वतरण होता है एवं एक अलग तरह क शि त संरचना न मत होती है।आ थक शि त राजनी तक स ा का ोत बन जाती है। पूंजीवाद अथ यव था म न हत शोषण के न को वे नजरअंदाज करती तीत होती है। ● नजी और सावज नक, सामािजक और राजनी तक जीवन म पृथ करण पर जोर देते हुए वे भूल जाती ह यह सभी े एक दूसरे से संबं ध है। आज बहुत सारे नजी मु दे सावज नक मह व का वषय बन गए ह तथा याय और समान अ धकार के लए संघष का व तार व भ न े तक हुआ है, उनका दायरा के वल सावज नक े तक ह सी मत नह ं है। ● आधु नकता क आलोचना करते समय उ ह ने आधु नक युग क मु य उपलि धय को भी नजरअंदाज कया है। च क सा व ान, अंत र व ान एवं सूचना ौ यो गक के े म हुए तकनीक आ व कार का उ दे य कसी न कसी प म मनु य के अि त व और उसके जीवन क गुणव ा को बढ़ाने का बहुमू य यास है।
  • 17. ● राजनी तक यव था एवं नाग रकता संबंधी वचार- रा य और राजनी त का व प कै सा हो, यह सभी राजनी तक चंतक के वशेषकर परंपरावाद राजनी तक दाश नक के चंतन का क य वषय रहा है। लेटो और अर तू जैसे यूनानी दाश नक से लेकर डे वड ई टन और लसवेल जैसे यवहारवाद चंतक ने अपने -अपने ि टकोण से वचार कया है। लेटो और अर तू ने रा य को नै तक जीवन क उपलि ध का एक मह वपूण साधन बताया, तो ई टन जैसे वचारको ने मू य के आ धका रक आवंटन के प म राजनी तक यव था को प रभा षत कया। आधु नक युग म राजनी त को संघष समायोजन क एक कला के प म भी देखा गया। इस संबंध म ह ना के वचार इन पारंप रक वचार से भ न है।उनके अनुसार राजनी त न तो शुभ जीवन क ाि त का साधन मा है और न ह यह संघष समायोजन क कला है, बि क यह तो स य नाग रकता का े है। सं ेप म राजनी त और नाग रकता के वषय म आरंट के वचार को न नां कत बंदुओं म प ट कया जा सकता है - ● आरंट शासन के थान पर राजनी त श द के योग को उपयु त मानती है, य क शासन का अथ उनक ि ट म समुदाय का वभाजन है िजसम लोग शासक और शा सत के बीच वभािजत हो जाते ह । शासक आदेश देता है जब क शा सत उसक आ ा का पालन करता है। पारंप रक प म राजनी त को शासन के संदभ म ह प रभा षत कया जाता है। आर ट इसे राजनी त नह ं, बि क राजनी त से पलायन मानती ह और यह तपा दत करती ह क राजनी त कायवाह से जुड़ी ग त व ध है अथात मनु य को मनु य व दान करने वाल याओं से इसका संबंध है। ● राजनी त सावज नक े से संबं धत है, िजसके उ दे य क ाि त स य नाग रकता से ह संभव है। यूनानी दाश नक के समान आरंट भी सभी समान नाग रक क नणय नमाण और उसके या वयन क या म भागीदार चाहती ह। स य नाग रकता से उनका ता पय सावज नक मु द पर सामू हक
  • 18. वचार- वमश और सामू हक कायवाह से है। इस तरह क राजनी तक यव था म येक यि त दूसरे से आशा करते ह क वे उसका सहयोग करगे। ● आरंट स य नाग रकता पर आधा रत राजनी त को त न ध शासन म संभव नह ं मानती ह और इस लए त न ध मूलक लोकतं क आलोचना भी करती ह य क ऐसी यव था म वचार अ भ यि त क वतं ता तो अव य मल जाती है, कं तु इस वतं ता का अथपूण वकास नह ं हो पाता। लोकतं म यि त को ा त वतं ता नकारा मक है, य क यह सफ यि त को सरकार के अ याचार से बचाने के लए है। त न ध सं थाएं ,राजनी तक दल और दबाव समूह सभी के हत क बात करते ह, जब क हत यि तगत े से संबं धत है। इससे स य क धारणा का नमाण नह ं होता है य क स य का नमाण खुले वचार- वमश से यु त एक ऐसे समाज म ह संभव है जहां मनु य सावज नक े म नवास करते ह। ● राजनी तक यव था क ि ट से यूनानी नगर रा य को आरंट आदश मानती ह य क वहां राजनी तक जीवन क धानता थी, आधु नक युग म यह वशेषता लु त हो गई है। उनक ि ट म नगर रा य क सफलता का रह य यह था क वहां स ा सहभा गता यु त लोकतां क सं थाओं म न हत थी और पा रवा रक एवं आ थक मामल को नजी े का वषय समझते हुए उ ह सावज नक े से अलग रखा जाता था। आधु नक समाज म राजनी तक और पा रवा रक -आ थक े के बीच क सीमा- रेखा मट गई है और राजनी तक कायवाह आ थक शासन मे बदल गई है। ● ह ना ने िजस कार के राजनी तक समाज का सपना देखा उसे वे ‘प रषद रा य’ कहती ह जो संघीय आधार पर ग ठत होता है और िजसका व प गणतं ा मक होता है। आरंट इसे ‘ पीपु स यूटो पया’ भी कहती है। इस यव था म यि त प रषद के अंतगत संग ठत होकर वाय ता पूवक कम करते ह। आधु नक रा य म गैर सरकार संगठन का उदय प रषद य रा य क थापना क तरफ बढ़ाया गया एक कदम माना जा सकता है।
  • 19. ● प रषद य रा य का नमाण के वल ां तकार तर के से ह हो सकता है, ऐसा आरंट मानती है। ां त से नवीनता और वतं ता का आगमन होता है। ां त आदश यव था के लए नीव का काय करती है। उनके वचारानुसार हंसक ां त संसार को प रव तत कर देती है, कं तु उसे साथक तभी माना जा सकता है जब उसके प रणाम व प कसी देश के सभी नाग रक वतं राजनी तक ग त व धय म भाग ले सक तथा राजनी त को नजी सुख का साधन न समझ कर सावज नक क याण के साधन के प म देखने क वृ वक सत कर सके । ​ ां त संबंधी वचार ह ना आरंट ाचीन यूनानी और रोमन आदश एवं मू य पर आधा रत राजनी तक समाज क थापना के लए ां त को आव यक मानती ह।अपनी पु तक’’ ‘ ऑन रवॉ यूशन’ म उ ह ने ां त के वषय म वचार दए ह, कं तु ां त के वषय म भी उनके वचार पारंप रक वचार से भ न है, िज ह न नां कत बंदुओं म व ले षत कया जा सकता है- ● ां त क अवधारणा आधु नक व व म उ प न होती है और इससे नवीनता एवं वतं ता का आगमन होता है। ां त सामािजक यव था म मौ लक प रवतन का उ दे य रखती है। ां तकार परंपरा से यव था ज म लेती है और यि त “ प रषद रा य” क थापना क ओर अ सर होते ह। प रषद रा य आरंट क क पना का आदश रा य है िजसम यि त व भ न प रषद म वयं को संग ठत कर वतं ता एवं वाय ता पूवक काय करते ह । ● ां त क साथकता इस बात म है क लोग अपने साथ रहने वाले समाज के सद य के साथ वतं कायवाह म भाग लेते हुए ‘सावज नक स नता’ को बढ़ावा दे सके । हालां क ऐसा बहुत कम दखाई देता है। आरंट क ां त क प रभाषा के अनुसार दु नया म हुई व भ न ां तय का व लेषण करने पर यह
  • 20. पता चलता है क बहुत कम ां तय म स नता को बढ़ावा देने क वशेषता न हत थी । ● आरंट ने अमे रक और ांसीसी ां तय क तुलना करते हुए अमे रक ां त को अ धक सफल बताया है य क उसके प रणाम व प वहां एक वतं सं वधान था पत कया गया और उदारवाद मू य के अनुसार रा का नमाण कया गया, जब क ांसीसी ां त हंसा और अ याचार म बदल गई िजसका मुख कारण यह था क ांस म यापक नधनता क सम या के कारण वतं कायवाह को पृ ठभू म म डाल दया एवं ां तकार नधन वग के त दया क भावना से े रत होकर आतंक क राह पर चल पड़े । हालां क अमे रक ां त को भी पूण सफल नह ं कहा जा सकता य क वहां के अ धकांश नाग रक राजनी त के े से बाहर ह रहे। ां तका रय के मन म जनसेवा क भावना लु त हो गई और उ ह ने राजनी त को नजी सुख के साधन के प म देखना शु कर दया। ● ां त के साथ सामा यतः हंसा जुड़ी हुई होती है, कं तु हंसा के त ह ना का ि टकोण प ट नह ं है। कभी तो वह उसे वीकार करती दखाई देती है, क तु अंततः यह मानती है क य य प हंसा से संसार प रव तत होता है, परंतु वह दु नया को अ धक हंसक बना कर छोड़ भी देती है। ​ न कष - आरंट के उपयु त वचार के आधार पर न नां कत न कष तक पहुंचा जा सकता है- ● आरंट बीसवीं शता द क यहूद अमे रक राजनी तक वचारक है, िज ह कसी व श ट वचारधारा से संबंध नह ं कया जा सकता। ● उनके इनकार करने के बावजूद उनके वचार पर सो, न जे, मा स आ द वचारक का भाव प रल त होता है। ● उनके वचार नाजीवाद जमनी के होलोका ट क प रि थ तय अनुभव पर आधा रत है।
  • 21. ● सवा धकार वाद शासन के वषय म आरंट ने नतांत नए ि टकोण से वचार कया है। उनके अनुसार आतंक और भय के साए म सवा धकारवाद शासन एक पता पर आधा रत नई मू य यव था को थोपने का यास करता है। ● मानवा धकार क धारणा के थान पर ह ना नाग रक अ धकार क धारणा म व वास य त करती है, य क मानवा धकार के पीछे कानूनी बल नह ं होता । ● राजनी त और वतं ता जैसी धारणाओं पर भं न वचार रखते हुए उ ह ने राजनी त को स य नाग रकता का े बताया, िजसम येक यि त मानवीय मू य क दशा म काय करते हुए वा त वक वतं ता को ा त कर सकता है। इस संदभ म उ ह ने म, काय और कायवाह क धारणा द िजसम कायवाह सावज नक े म मनु य वारा क जाने वाल ग त व ध है, जब क म एवं काय का संबंध नजी े से है। ● पूंजीवाद और त न ध मूलक लोकतं पर आधा रत आधु नक समाज क ह ना आलोचक ह, य क वै ा नक और तकनीक ग त के आधार पर मनु य ने अपने जीवन क सु वधाओं को तो बढ़ा लया है, क तु कृ त क वाभा वकता समा त हो गई है और मानवीय मू य का रण हुआ है। ● व यमान समाज क बुराइय को वखंडनयु त इ तहास के अ ययन एवं ाचीन यूनानी दशन अ ययन को ो सा हत कर दूर कया जा सकता है। ● स य नाग रकता पर आधा रत राजनी तक यव था क थापना ां त के मा यम से संभव है। ां त का प रणाम सावज नक स नता एवं वतं ता म वृ ध करने वाला होना चा हए, अ यथा वह नरथक है। मू यांकन- ​ह ना अरट बीसवीं शता द क एक भावशाल राजनी तक वचारक ह, कं तु आलोचक ने उनके चंतन म न नां कत क मय को उजागर कया है। उनके आलोचक म शे डन वॉल न , भखू पारेख, कर ल एवं ए . के . शरण मुख है। ● आरंट ने आधु नक युग म मानवीय दशा का जो च ण कया है य य प वह त य के नकट है और कह ं कह ं वह मानवीय सम याओं के समाधान क तरफ अ सर
  • 22. दखाई देती है कं तु कई थान पर वे अपने मौ लक वचार से दूर चल जाती है। कर ल इसे त यावाद वृ कह कर आलोचना करते ह। ● आधु नक युग क क मय को उजागर करते समय ह ना ने पूंजीवाद समाज के शोषणकार व प क उपे ा क है, िजसे शे डन वो लन ने अतकसंगत कहा है । ● आरंट ाचीन यूनान और रोम के राज दशन और उनम न हत सं थाओं क प धर है। वे जेफरसन क वाड णाल , कु ल न तं क वशेषता से यु त लघु प समुदाय तथा खुल वचार- वमश क प ध त क समथक है ,जो उ ह पुरातनवाद बना देता है। ● कु छ बंदुओं पर ह ना के वचार प ट नह ं है। जैसे-कौन सी ग त व धय से उपयोगी सावज नक वचार- वमश संभव होगा और इस वचार- वमश को सुगम एवं भावी बनाने के लए कौन सी राजनी तक सं थाएं उपयोगी ह गी, इस वषय म उनके वचार प ट नह ं है। ● मानवीय ग त व धय को म, काय और कायवाह जैसे तीन भाग म बांटने के वचार को भखू पारेख ने वे छाचार माना है । बहुलता यु त मानवीय जीवन म यह बहुत संभव है यह तीन ग त व धयां आपस म संब ध हो जाए। मानवीय ग त व धय के संबंध म ऐसे कसी सावभौ मक स धांत को लागू नह ं कया जा सकता। ● आधु नक युग के जन पुंज [mass society] समाज क वकृ तय को दूर करने के लए उनके वारा सुझाए गए उपाय भी बहुत यावहा रक नह ं है। के वल वखं डत इ तहास, ाचीन दशन क परंपरा को समझ कर ह सम याओं का समाधान नह ं कया जा सकता। इसके लए तो यापक व व ि ट क आव यकता होती है। इन आलोचनाओं के बावजूद आधु नक राजनी तक चंतन के इ तहास म ह ना का थान कम नह ं होता। वे 20 वी शता द क एक ऐसी साहसी और नभ क राजनी तक वचारक ह िज ह ने समसाम यक दु नया का गहनता और सू मता के साथ व लेषण कया। नव उदारवाद परा आधु नक युग म बेतहाशा समृ ध क लालसा ने िजस कार सामािजक
  • 23. संबंध को दु भा वत कया है एवं पयावरणीय संकट को ज म दया है,उसके ि टगत ह ना के वचार सवथा ासं गक तीत होते ह। ​REFERENCES AND SUGGESTED READINGS ● The world's Biggest Refugee Crises,mercy corps.org ● www.britannica.com ● Stanford Encyclopaedia Of Philosophy,plato.stanford.edu ● www.loc.gov ● www.jewishvirtuallibrary.org ● Hanna Arendt, Eichmann In Jerusalam,​www.newyorker.com ● Hanna Arendt,The Origin Of Totalitarionism न- नबंधा मक न- 1. ां त एवं वतं ता के वषय म ह ना आरंट के वचार का मू यांकन क िजए। 2. सवा धकारवाद के वषय म ह ना आरंट के वचार क ववेचना क िजए। नरंकु श शासन से यह कस अथ म भ न है। 3. ह ना आरंट ने आधु नक समाज क आलोचना कन आधार पर क है। 4. ह ना आरंट एक परंपरावाद राजनी तक वचारक ह,इस कथन के संदभ मे आदश रा य यव था के वषय मे ह ना आरंट के वचार का मू यांकन क िजए। व तु न ठ न- 1. ह ना आरंट मूलतः कस देश क वचारक ह। [ अ ] अमे रका [ ब ] जमनी [ स ] इजराइल [ द ] टेन 2. आरंट क वचारधारा पर कस वचारक का भाव दखाई देता है।
  • 24. [ अ ] सो [ ब ] मा स [स ] हेगेल [ द ] हॉ स 3. आरंट ने मानवीय वतं ता क या या कन वचार के संदभ म क है। [ अ ] वचार,काय और भावना [ ब ] म, काय और या [ स ] काय , या और वचार [ द ] या , म और भावना 4. ह ना ने कै से रा य क क पना क है । [ अ ] प रषद य [ ब ] नगर रा य [ स ] वैि वक रा य [ द ] रा रा य 5. ह ना ने ‘जून पॉ ल टक ’ का योग कसके लए कया है । [ अ ] उपभो तावाद मनु य के लए [ ब ] राजनी तक े मे स य सहभा गता नभाने वाले मनु य के लए [ स ] अलगाव से त मनु य के लए [ द ] उपरो त सभी के लए 6. ह ना क ि ट मे ां त कब साथक क जा सकती है । [ अ ] य द उसके प रणाम सावज नक स नता मे वृ ध करने वाले हो [ ब ] सावज नक जीवन मे मनु य क स य सहभा गता मे वृ ध करते ह [ स ] उपरो त दोन [ द ] उपरो त मे से कोई नह ं 7. सवा धकारवाद संबंधी वचार ह ना क कस पु तक मे मलते ह । [ अ ] ओ रिजन ऑफ टोट लटे रया न म [ ब] द यूमन कॉ डीशन [ स ] बट वनं पा ट एंड यूचर [ द ] मेन इन डाक टाइ स 8. ह ना ने आधु नक समाज मे मनु य के कस तरह के अलगाव क बात क है । [ अ ] पृ वी का अलगाव [ ब ] वैि वक अलगाव [ स ] उपरो त दोन तरह के [ द ]सां कृ तक अलगाव 9. ह ना ने आ थक ग त व धय को कस े मे रखा है । [ अ ] सावज नक [ ब ] नजी [स ] दोन मे [ द ] कसी मे नह ं 10. ह ना ने मानवीय ग त व ध के कस भाग को उ कृ ट बताया है । [ अ ] म [ ब ] काय [ स ] या [ द ] उपरो त सभी को उ र -1. ब 2. अ 3. ब 4. अ 5.ब 6. स 7. अ 8. स 9. ब 10. स