1. जो कलम सरीखे टूट गए
पर झुके नहीीं,
उनके आगे दुननया
शीश झुकाती है।
जो कलम ककसी कीमत पर
बेची नही गई,
वह तो मशाल की तरह
उठाई जाती है।
2. पत्रकाररता का क्षेत्र सेवा का
क्षेत्र है, इसमें पहले सेवा
और बाद में मेवा की
अभिलाषा रखनी चाहहए।
- बाबूराव ववष्णु पराड़कर
सींपादक, दैननक सत्ता, 1920
3. हम स्वतींत्रता के हामी हैं, मुक्तत
के उपासक हैं। दासता से हमारा
मतिेद रहेगा, चाहे वह शरीर
की हो या मन की, व्यक्ततयों
की हो या पररक्स्िनतयों की।
- माखनलाल चतुवेदी
4. पत्रकाररता कोई पेशा नहीीं है, यह
जनसेवा का माध्यम है, लोकताींत्रत्रक
परींपराओीं की रक्षा करने शाींनत और
िाईचारे की िावना बढाने में इसकी
िूभमका है।
- डॉ. शींकरदयाल शमाा
पूवा राष्रपनत
5. मेरे शब्द कलम-स्याही से
नहीीं आत्मा की आग-पानी
से भलखे जाते हैं।
- श्रीराम आचाया
सींस्िापक सींपादक, अखण्ड ज्योनत
6. मैं पत्रकाररता को देश सेवा का प्रमुख साधना
मानता रहा हूीं और क्जतनी दूर तक में दृक्ष्टपात
कर सका तो मैंने देखा कक देश के प्राय: सिी
महान नेता ककसी न ककसी पत्र के साि सींबींधधत
िे। ऐसे ही महापुरुष सवाश्री लोकमान्य नतलक,
स्वामी श्रृद्धानन्द, महामना मालवीय, सुरेन्रनाि
बनजी, एनी बेसेंट और गणेश शींकर ववद्यािी के
पत्रकार जीवन से मुझे ववशेष प्रेरणा भमली िी।
- सत्यदेव ववद्यालींकार
7. पत्रकारों को चाहहए को वह महवषा
नारद को अपना आहद गुरु मानें।
नारद प्रखर प्रचारक िे। शौया, धैया
और आत्मत्याग की खबर वे हदगींत
तक फै लाते रहे। सद्गुणों की कीनता
फै लाने तिा ववप
वत्त और फू ट के नाश की इच्छा से
बढकर और दूसरा कौन सा आदशा
हो सकता है।
- डॉ. सम्पूणाानींद
8. आींतररक शक्तत पर
आधाररत कोई िी
सींघषा अखबार के
त्रबना नहीीं चलाया जा
सकता है।
- महात्मा गाींधी
9. एक िाषा के त्रबना
सच्चा देशाभिमान
पैदा नहीीं हो
सकता।
- आचाया महावीर प्रसाद द्ववदी
10. हृदय को महान और स्वतींत्र
बनाकर ही हम सामाक्जक
और राजनीनतक दृक्ष्ट से
महान और स्वाधीन हो
सकते हैं।
- श्री अरववींद