1. Wednesday, 7 November 2012
पेड़ो के साथ
=============
पेड़ो के पास बैठना
िलपट जाना
रोना, सहलाना
नोचना ,खसोटना
सब िकतना आसान है पेड़ो के साथ ।
िनरापद है
पेड़ो से बातचीत करना ।
िकतना आसान है
पेड़ो से यह कहना िक
हम तुमसे नफरत करते है
कुछ भी कहना िकतना आसान है
पेड़ो के साथ ।
िकसी के िहससे का जहर कोई
यो ही नही पीता
िकतना आसान है यह मान लेना
िक पेड़ हमसे पयार करते है
कुछ भी मान लेना
िकतना आसान है, पेड़ो के साथ ।
आसान नही है
पेड़ो के साथ "घर " बसाना
हम पेड़ो के साथ सो नही सकते
और पेड़
कर नही सकते पयार िबसतर पर ।
On 24 Nov.
िफर भी जो कुछ हँ
पूणर हँ ,अपनी अपूणरता के साथ
अपने िकसी भी
कृतय -अकृतय पर शिमदा नही |==========िवजय पुषपम जी ,बहत सुनदर किवता है
सी जब तक इस ठसक के साथ जीना नही सीखेगी मुक नही हो पायेगी |
Same day:
बचे घर मे
===========
बचे
मेहमान बनकर आएँ
2. तो अचछे |
मेहमान पसर जाए
घर मे
तो रलाए |
बेिटयाँ हमेशा
मेहमान बनकर आती है
हम सभी को
सुहाती है |
बेटी भी
अगर मेहमान बनकर आए
और आपके घर मे
सपिरवार पसर जाए
तो वो
कभी न भाए |
बचे
अगर मेहमान बनकर आएँ
तो अचछे |
On 25 Nov. Evng:
सपनो मे घर
तुमने कहा -
"मै तुमसे पयार करती हँ "
यहाँ तक सब ठीक था
गलत हआ तुमहारी बात पर
िवशास कर लेना ।
तुमने मुझे
"घर " का सपना िदखाया
और मै
दो अदद बचो का
बाप बन गया ।
अब पयार करने की बात
तुम सपने मे भी नही करती
और "घर "
सपनो मे आकर
मुझे डराता है ।
On 28Nov.2012,
3. कु छ अपने बारे मे =====
===================
उमदराज़ हँ
बूढ़ी सोच से बचता हँ
नौजवानो के साथ उठता ,बैठता हँ
नौजवानो जैसा सोचता हँ
सवागत है दोसत
मेरे जेहन मे
तुमहारा सवागत है |
दोसती के िलए
मेरी िसफर एक ही शतर है
नौजवानो जैसा सोिचये
और बगैर लाठी के चिलये |
On 30Nov.2012
Avdhesh Nigam wrote:
इशक मे ---
===========
तमाम रात
जागने के बाद
इशक हो गया काफू र
चले थे जानने
इशक का पता
लापता खुद हो गये |
वक़त ने िबसरा िदया
वह, कोई अपना ही था
गुजर कर भी
जो नही गुजरता
वह एक घाव है
जो आज भी है िरसता |
December 10, 2012 at 5:58pm
4. इस उम मे
==========
िकसी अपने ने पूछा
"कया कर रहे हो "
मैने कहा --
कुछ नही
मन बहलाने की
नाकामयाब कोिशश |
इस उम मे
मै हँ और
मेरी नाकामयाब कोिशशे है
कया इतना काफी नही
अपने होने को
पमािणत करने के िलए |
मेरी नाकामयाब कोिशशे
मुझे िजनदा रखती है
मेरे अपनो के बीच |
On 13Dec.2012
Avdhesh Nigam
सपना देखने वाले
अकेले होते है
अपने अपने सपनो मे
मुझे लगता है
दो अलग अलग लोग
एक ही सपना देखे
यह मुमिकन नही
इसीिलए मै कहता हँ
पयार एक सपना है
और यह सपना
उनका अपना है |
िदलो मे आंिधयां रही होगी
आंख मे िततिलयां रही होगी
भूख मे नीद अगर आई है
खवाब मे रोिटयां रही होगी
रह तक ताज़ा हवा आई है
5. िज़सम मे िखडिकयां रही होगी
रगो मे गूंजती रही अबतक
तेरी खामोिशयां रही होगी
तेरा िनज़ाम चैन से सोया
आग मे बिसतयां रही होगी
आंख मे बूंद देखने वालो
िदल मे निदयां रवां रही होगी
आज तूफां के है इमकान बहत
िफजां मे तिलखयां रही होगी
=SameRahul Karanjiya and 48 others.
न जाने वो कौन तेरा हबीब होगा
तेरे हाथो मे िजसका नसीब होगा
कोई तुमहे चाहे ये कोई बड़ी बात नही
िजसको तुम चाहो वो खुश नसीब होगा
शुभ राित …
6. On 14Dec.2012
सपना
===========
िजदगी
एक सपना है
और सपना
हमारा अपना है |
अपने सपनो मे
हम
अके ले होते है--एकाकी |
Same day: Fiyanshu Choudhary and 46 others.
चटाई नमर गदा तौिलया चदर समझते है ॥
जो नीद आ जाये पतथर को पलंग िबसतर समझते है ॥
खुशी मे बोलते है बेिहचक बगुले को भी हम हंस ,
रहे बरहम तो रेशम को भी िफर खदर समझते है ॥
-डॉ. हीरालाल पजापित
Avdhesh Nigam
दािमनी की मौत ने यह सािबत कर िदया िक हमारी दुआओ मे अब कोई असर बाकी
नही रहा और हमारी पाथरनाएं अब नही सुनी जाती | दािमनी की आतमा
की शािनत के िलए कु छ देर का मौन मौन ====मौन मौन ========
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7. Avdhesh Nigam
इस बार ????
===========
गुससे को पालना है
बनाना है ताकतवर
ढालना है तलवार
तािक इस बार
खाली मत जाए पहार
हम सो न सके
चैन से कभी
हमारी आतमाओ को
कभी न िमले शांित
इस बार
गुससे को पालना है
ढालना है तलवार
करना है पलटवार |
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नववषर की
पूवर संधया पर
शराब िपयेगे
चीखेगे ,िचललायेगे
और भूल जायेगे सब कुछ
( दािमनी का बलातकार भी )
आिखर नए वषर
के सवागत की
िजममेदारी भी तो
हमे ही िनभानी है |
िसगापुर।। 23 साल की बेटी घर
की आिखरी उममीद थी। साधारण पाइवेट
नौकरी करने वाले िपता ने अपनी अब-तक
की पूरी कमाई बेटी कीपढ़ाई मे लगा दी थी।
दोनोछोटे भाइयो से वह वादा करके के िदलली आई
थी िक उनकी पढ़ाई का खचर वह उठाएगी। इस
बेटी की न केवल दिरदगी से हतया कर दी गई
बिलक उस घर के कचे सपने भी कतल कर िदए गए।
इसके बावजूद बुरी तरह से आहत उस माता-
िपता की महानता कािबल-ए-तारीफ है। माता-
िपता ने लोगो से अपीलकी है
िक मेरी बेटी तो नही रही लेिकन
औरो की बेिटयां अब कम-से-कम सुरिकत रहे।
8. िपता ने कहा िक मेरी बेटी की मौत की कीमत पर
भी यिद िदलली और देश की बेिटयो के भिवषय
बेहतर होते है तो मेरा दुख कम होगा।
i am totally speechless
hats off to her parents
िदसमबर 2012 मे इंसान भले ही ख़तम नही हआ, पर इंसािनयत जरर ख़तम हो गई।
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Avdhesh Nigam
कोई कृ षण
नही आएगा तुमहे बचाने
उठाओ मशाल
पहचानो उस आदमी का चेहरा
िजसने बाँध रकखा है तुमहे
अपने आँगन मे
गाय की तरह
उम भर दुहने के िलए |
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Avdhesh Nigam
दािमनी के बहाने
============
आिखर कब तक ?
अब और नही |
औरत ने
अगर इनकार कर िदया
अपनी कोख मे
तुमहे पालने से
तब कहाँ होगा
तुमहारा वंश
कै से झेलोगे यह दंश |
यही मौका है
खाप पंचायतो के
औरत के िखलाफ
उनके वहिशयाना रख पर
9. लगा दो िवराम
दािमनी तुमहे सलाम
तुमहे सलाम
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Avdhesh Nigam
"िजतना भी हो जाये उसे ही पयारप समिझये" की मानिसकता ने हमे कही का नही
छोड़ा है = और पाखंडी धमर गुरओ के पैरो मे रेगने वाले कीड़े बदलने वाले
नही है वे वसत है बरसती हई कृ पा को पाने मे =सब कु छ योही लसटम
पसटम चलता रहेगा =न जाने अभी और िकतनी दािमिनयो को कु बारनी
देनी होगी =और हम सािहतय रच रहे है के दंभ मे फू ले नही समाते है |
चिलए नए वषर के आगमन पर शुभकामनाएं देने की औपचािरकता एक
बार िफर िनभाते है ,दुिनयाँ को जगाने का सवांग करते है और खुद सो जाते
है |
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आओ नव वषर
महीनो की कंकपाती ठंढ के बाद
जैसे लौटती है गरम धूप
बरसात के बाद मुंडेर पर पकी
लंबे पवास के बाद िपयजन
थकी-हारी आंखो मे
जैसे मुलायम सपने
दुशमन भीड़ मे जैसे
दोसत की आवाज
गहन उदासी के बाद
जैसे लौट आती है होठो पर मुसकान !
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On MONDAY Jan2013
Avdhesh Nigam
१९८७ मे पकािशत मेरी किवता =============
बगावत अधूरी है
------------------
अकेले
10. एकांत मे पड़े पड़े
कभी कभी मै
टुची सहानुभूित
चाहने लगता हँ |
मेरे भीतर से
एक आदमी िनकलकर
मूंछो को ऐठता हआ
िलग को रगड़ता हआ
हसतमैथुन मे
वसत हो जाता है |
कनिखयो से
चारो ओर देखता
आशसत मै
उस आदमी को
जलदी से
िनगल जाता हँ
मछिलयां खाने के बाद
सनयासी की मुदा मे
खड़ा हो जाता हँ |
मै नंगा होना चाहता हँ
लेिकन मेरे िलग की
पूजा हो
यह िनिशत हो |
मै भूिमगत
बागी होना चाहता हँ
बाहर आधुिनक और
11. घर के भीतर
परमपरा को
कै द रखना चाहता हँ |
देहरी से बाहर
पाँव िनकालने पर
परमपरा को
टाँग तोड़ने की धमकी
यह हमारे
आधुिनक होने की सीमा है
इसीिलए
बगावत का सवर धीमा है |
ON
िकससा बिचयाँ का
============
यह िकससा नही है
परदेश का
नही जानता
कया होगा इस देश का ?
हमे अभयास है
मोमबितयां जलाकर
कु छ देर आंसू बहाने का
िफर सदा के िलए
सब कु छ भूल जाने का |
हम सोचते है
िक हम इस तरह
12. अपनी बिचयो को बचा लेगे ?
गभर मे
बिचयो का चेहरा पहचान कर
मार देने वालो
और बिचयो के साथ
बलातकार करने वालो
मत करो दुवरवहार
करो आदर
देखना कही गभारशय
बगावत पर न उतर आए
और तुमहे
संतान के िलए तरसाए |
On 14 Jan
कु मभ सान
==========
कु मभ शुर
आइये
पथम सान मे
डु बकी लगाये तािक
आज तक िकये
सभी पाप धुल जाएँ
पापो को धोना
बहत जररी है
नही तो दुिनयाँ मे
पाप बहत बढ़ जायेगे
कयोिक कहते है न िक
यिद पाप बहत बढ़ जायेगे
तो पभु
अवतार लेकर चले आयेगे
और पभु
अगर अवतार लेकर आयेगे
तो होगी बहत मुिशकल |
आओ कु मभ सान करे
पभु को अवतार लेने की
किठनाइयो से बचाएं |
On Same Day
शबद
िजनके आसरे थे
13. वे आसमान पर चढ़े
शबद िगर पड़े
On 26 Jan.2013:
Avdhesh Nigam
`गणतंत िदवस पर बधाई देने का मेरा कोई इरादा नही है ,िपछले ६४ वषो से इस
औपचािरकता को िनभाते िनभाते एक पूरी पीढ़ी जमीदोज हो गयी | इन
चौसठ वषो मे "गण" लगातार कमजोर होता चला गया और "तंत"
मूलयहीन होकर भषाचार के कीचड़ मे धसता चला गया | आईये गणतंत
िदवस के इस मौके पर पाथरना करे िक "गण" मजबूत और शिकशाली बने
तथा वतरमान "तंत" का समूल नाश हो तथा नए कोपल "तंत" का उदय |
सिवधान िनमारताओ को नमन
देश मे चारो ओर हो अमन
On 12 Feb.2013
Avdhesh Nigam
काश !
-----------
काश,कु छ ऐसा
किरशमा हो जाए
िदल और िदमाग को
लकवा मार जाए
मै
न खुश हो सकूँ
न उदास
बस हो सकूँ |
Avdhesh Nigam
जो िदखता है वह सच नही होता | जो नही िदखता है वही सच होता है| लेखक/किव
जो नही िदखता है उसे ही देखने/िलखने की कोिशश यािन सच को देखने
/िलखने की कोिशश करता है, कौन इसमे िकतना कामयाब होता है यह
िलखने वाले की काबिलयत पर िनभरर करता है | भाई मुझमे तो नही
है,कया आपमे है यह काबिलयत ?
Avdhesh Nigam
िजदगी का सफ़र
============
14. हम हो
िकसी भी उम के
रमािनयत लुभाती तो है |
दूर से ही सही
आज भी वो
मुझे बुलाती तो है |
िजदगी का यह सफ़र
खतम होने को है
आज भी मेरी आवाज
उन तक जाती तो है |
रेल की पटिरयो सा ही सही
आज भी
मेरा कोई साथी तो है |
On FriDay @22Feb.2013
Avdhesh Nigam
मेरी एक बहत बहत पुरानी किवता
पैरो के िवरद
===========
बचा खेलता रहा
िखलौनो से
तुम सपनो से |
तुमहे मालूम न था
टूट जाते है और
िफर खरीदे नही जाते
सपने िखलौने नही होते |
तुमहे भी िखलौनो से खेलना था
टूटते, खरीद लाते
इस तरह तुम टूटने से बच जाते |
घुटनो के बल
चलते हए
जब जब तुमने
अपने पैरो पर चलने की बात सोची
हर बार तुमहारी आँखो मे
एक सपना ठूं स िदया गया
सपना एक सािजश है
15. वयसक होने की संभावनाओ और
पैरो के िवरद |
On MonDay 25Feb.
Avdhesh Nigam
सी -पुरष िवमशर
++++++++++++
पुरष कभी नही थकता
सी कभी नही थकती
"सी-पुरष" युगम थकता है
थकना तो एक बहाना है
कयोिक "घर"
रासते मे आता है |
On ThursDay, 28Feb.2013...
Avdhesh Nigam काश मै अपनी कीमत गलत आँक पाता
मुझे खोकर वो खो देगा बहत कुछ
यह भरम मै पाल पाता |
यह अहंकार भी न जाने िकतने रपो मे
हमारे सामने आता है और
हरबार इसका रंगरप हमे बहत सुहाता है |
Avdhesh Nigam
आईने मे
========
झूठ से
मत करो आहत
सच की मार से
लहलुहान होना चाहती हँ |
मै औरत हँ
आईने मे
अपने अकश से भी डरती हँ
लेिकन तुमहारे िलए
उसी आईने के सामने
िजदगी भर संवरती हँ |
मै औरत हँ
आईने मे
अपने अकश से भी डरती हँ
पकड़ा है तुमहारा झूठ
कई बार
16. इसीिलए हर कदम
फूँ क फूँ क कर रखती हँ |
सच की मार से
लहलुहान होना चाहती हँ |
On 26Feb.2013
लोग कया कहते है मत सोचो
अपने भीतर देखो
अंतरातमा झूठ नही बोलती
सबके भीतर एक आईना है
उसमे अपनी तसवीर साफ़ िदखती है |
On 28 Feb.2013
Avdhesh Nigam
आईने मे
========
झूठ से
मत करो आहत
सच की मार से
लहलुहान होना चाहती हँ |
मै औरत हँ
आईने मे
अपने अकश से भी डरती हँ
लेिकन तुमहारे िलए
उसी आईने के सामने
िजदगी भर संवरती हँ |
मै औरत हँ
आईने मे
अपने अकश से भी डरती हँ
पकड़ा है तुमहारा झूठ
कई बार
इसीिलए हर कदम
फूँ क फूँ क कर रखती हँ |
सच की मार से
लहलुहान होना चाहती हँ |
Avdhesh Nigam
वह भाग रहा है
भीड़ से
17. चाहता है एकानत
अकेलापन
एकाकी होना चाहता है |...See MoreHe is running like a one-way street from the crowd
wants to be solitary solitude | Like the entire crowd admakhor relationship are Lille
survival | He once again entering a dream wants to wants to lead a solitary |(Translated by
Bing)
Avdhesh Nigam
िजदगी
एक सपना है
और सपना
हमारा अपना है |
अपने सपनो मे
हम
होते है अकेले --एकाकी |
ON 5th
March.2010
आग पर चढ़ेगी जरर इस बार कढ़ाही काठ की
देखना है पकड़ता कौन है नबज़ वोटरो के हाठ की
On 11Mar.2010
Avdhesh Nigam
कछु ए और खरगोश की कहानी
==================
कछु ए की तरह
िनरंतर चलते रहना
और दौड़ जीत जाना
...
On 22March2013
मीठे पानी की नदी
=============
अभी अभी
जो आदमी यहाँ खड़ा
चला गया के चुल छोड़कर |
काितलो की पूरी कौम
हो गयी है साधू
रामनामी दुशाला ओढ़कर |
काितलो की पहचान
हो गयी मुिशकल
सोचता हँ =
18. मीठे पानी की नदी
िनकलेगी कब पतथर तोड़कर ?
अब नही
मुझको है कोई मोह
िछपने के िलए मैने
खोज ली है खोह
डर नही है इसका िक
कोई खोज लेगा
सुकू न मे हँ यह सोचकर
हवाओ का रख
कोई तो मोड़ देगा |
On24.03.2013
वे कमीने
सरे राह लूट लेगे
िहनदू और मुसलमान
दोनो मरेगे
अगर साथ न चलेगे |
आपकी राय बेहद जररी
मत समिझये इसे खानापूरी
See Translation
On25.03.2013
Anita Nigam िकसी किवता मे अवधेश िनगम ने िलखा है ==
ईशर की आड़ मे िछप जाते है
मलाई खुद खाते है
और जूठन छोड़ जाते है
अपने ईशर के िलए |
On 26April, 2013
Avdhesh Nigam
सुबह सवेरे नहाने के बाद आईने के सामने खुद को िनहार रहा था अचानक आईना
चीख कर बोला==="रँगा िसयार" | िमतो , आईने के सामने आने पर
आपको देखकर आईना चीखा तो कया बोला ? आईना झूठ नही बोल
सकता, कया यह ख़याल आपके जेहन मे आया ? कृ पया सच बोिलयेगा िमत
|
On 6th
April,2013
19. आज तो आज है
बीता हआ कल िकसको याद है ?
आनेवाला कल परदे के उस पार है
िजदगी आज िसफर आज है
बीता हआ हो या आनेवाला
कल तो बकवास है |
On 7th
april, Sunday2013
नही जानता कया िलखा है ? जो िलखा है ,िमतो आपको परोस िदया |
===================================================
===
खड़े तो होइये आईने के सामने हजूर !
अकस मे आप िकसी अजनबी को पायेगे !!
कयो भागे भागे से िफरते है आईने से आप !
इसी आईने मे अपनी असली सूरत ढूंढ पायेगे !!
मैने तो अपनी हद मे हर आईने को तोड़ िदया है !
आईना जब होगा हर तरफ तो आप मुसकरा न पायेगे !!
On 8th
April2013
एक बहत पुरानी डरी-डरी सहमी सी पंिकयाँ=न जाने कयो किवता कहने से लगता
है डर?
===================================================
==========
मेरी समसत आशाओ ने
शरीर छोड़ िदया है
और अब
उनकी अतृप आतमाएं
िकसी और शरीर मे
पवेश करते भय खाती है |
On 10th
April,2013
मेरी ग़ज़ल को िमत मिनका मोिहनी ने सुधार कर उसमे वज़न पैदा कर िदया है मै
उस ग़ज़ल को उनके मैसेज के साथ पुनः पोसट कर रहा हँ इसके िलए मै
उनका आभारी हँ ,मिनका मोहनी जी आपके कमेट मुझे ऐसे ही िमलते
20. रहेगे यह मेरा िवशास है ,धनयवाद
Avdhesh bhaai, jo aapne aaine wali gazal likhi hai, bura na maane to
kahun ki uski lines me vazan sahi nahi baithh raha islie rhythm sahi
nahi aa raha. Maine sirf vazan thheek karne ki koshish ki hai,
bataaen ki kaisi lagi? Bura laga ho to kshama chahti hoon.
खड़े तो होइये, आईने के सामने हजूर !
आईने मे आप िकसी अजनबी को पायेगे !!
भागे-भागे िफर रहे है आईने से आप कयो !
आईने मे अपनी असिलयत को ढूंढ पायेगे !!
मैने तो अपने हर आईने को तोड़ िदया है !
हर तरफ हो आईना तो मुसकरा न पायेगे !!
On 11th
April,2013(NavRaatra Praarambh)
नवराित का पहला िदन ,तमाम से ढकोसले शुर ===
१) एक नवयुवक कु छ िदन पहले िमला उसे िकसी से पयार हो गया था
परेशान था,मैने कहा िक कया िदकत है अपने पयार का इज़हार कर दो तो
उसने कहा िक नही अंकल अभी िदन ठीक नही चल रहे है सोचता हँ की
नवराित के िदनो मे अपने पयार का इज़हार करँ |
२) िपछले एक हफते से मेरी पती बचो को िचलला िचलला कर कह रही थी
िक रोज िचकन और मटन खा लो िफर नौ िदन घर मे कु छ नही बनेगा |
३) पित पती नौ िदन का वत रखते है और इन िदनो उनहे एक िबसतर पर
लेटने की मनाही होती है यािन िक कोई पयार नही होगा |
४) कु छ लोग जो िनजरल वत रखते है उनमे अहंकार अपने चरम पर होता है
,शीमती दुगार के वाहन शेर पर सवार होकर ऐसा लगता है िक िवश िवजय
करके ही वापस आयेगे |
कहने को तो अभी बहत कु छ है लेिकन इतना यह सािबत करने के िलए
पयारप है िक "हम िकसी से कम नही "
पिरदा
======
पिरदा
आदमी से बेहतर है
वह कभी मंिदर पर
और कभी मिसजद पर
(बैगैर िकसी पूवारगह के )
मल तयाग करता है |
पिरदे की यह शरारत
21. आजतक िकसी
दंगे का कारण कयो नही बनी ?
कयोिक
पिरदे का कोई धमर नही होता |
गाय माता/ माता
============
गाय जब तक दूध दे रही
गाय को माता कहना होगा
महापयाण के वक तुमहे
गऊ दान भी करना होगा
गाय देना दूध बंद कर दे
कसाई के हाथो देना होगा
गाय माता या हो माता
कौन माता कै सी माता
सभी माताओ को नमन
मै गलत तो नही हँ शीमन | इितशी गऊ माता पुराण
On 20Apr.2013
बलातकार उसके साथ कयो ?
===================
भूखा भेिड़या
सिदयो तक नही होगा तृप
इसका मतलब
बेिटयाँ बलातकार के िलए है अिभशप
इसबार यह सब उसके साथ हआ
जो नही जानती
आदमी और औरत का फकर
वह नही जानती
असमत के लुट जाने का अथर
वह जानती है िसफर ददर
अपने िपता से
वह टांगो के बीच
ददर होने की बात कहती है
और चीख चीख कर रोती है |
िपता बची से
आँख नही िमला पाता है
आईने मे देखता है जब खुद को
सामने एक मदर खड़ा पाता है |
सोचो कया होगा
जब एक बेटी की माँ
बेटी के िपता को
22. शक की िनगाह से देखेगी
और िपता से
दूर रहने की िहदायत बेटी को देगी |
मै
====
एक साथ
ढेरो सवाल िकये
उतर नही िमले
मै सवालो पर ही
पश िचनह लगाने मे
आज भी हँ वसत ?
On 27May2013, At 1517hrs. Evng
Avdhesh Nigam
िफतरती
========
आदमी की िफतरत है
जो करने को कहोगे
नही करेगा
जो करने को मना करोगे
वही करेगा
बंद रासतो पर
जानबूझ कर चलेगा |
ThursDay On 30th
May, @1945hrs.
Avdhesh Nigam
पुरानी डायरी के पनो से कु छ उबड़ खाबड़ सा
===============================
जब तुम
मेरे पास थी
तब मेरे अहं ने
तुमहारे अिसततव को झुठलाया |
और
अधूरेपन का अहसास भी
अधूरा था
इसीिलए तो
अपने और तुमहारे
बीच की दूरी भी
आधा ही तय कर पाया |
23. दूिरयां कम हो सकती है
तय नही की जा सकती
यह सच
मुझे अब समझ मे आया |
On 27Jun.2013 :
बरगद
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तुम िजसे
िपता मानते रहे
वह बरगद
आशीवारद की मुदा मे
तुमहारे अिसततव को
बौना करता रहा
िवभािजत करता रहा
आकाश को
तुमहे सूरज से काटता रहा
बांटता रहा अनधेरा
अनधेरा
तुमहारी िनयित नही
बरगद की कू टनीित है |
same Friday
िचिड़या नही जानती
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बचे जब
उड़ना सीख लेते है
घोसला छोड़ देते है
घोसला वीरान,िचिड़या अके ली
तलाशती है िचरौटा
बार बार अपना पेट भरती है
सोचती है -
अब इस बार
बचो को उड़ना नही िसखाएगी
घोसले के बाहर का आकाश
उनहे नही िदखायेगी |
िचिड़या नही जानती िक
बचे खुद ब खुद
उड़ना सीख लेते है
पेट के िलए
घोसला छोड़ देते है |
24. On 10th
July,2013
रथ को गित
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रका हआ रथ
अनथर
रथ को गित दे दो |
मै नही समझा
आप समझे इसका अथर ?
कदमताल करना
चलना नही होता |
वे खोजेगे
किवता का अथर
जो सरे राह
किवता को नंगा करते है
और िफर उसके
अंगो को टटोल टटोल कर
किवता की वाखया करते है |
किवता अंधो का हाथी है |
On 12July, 2013,
माँ कहती है ---
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मेरे पैदा होने की तारीख
माँ नही जानती
माँ कहती है
बस इतना याद है िक
तू िपतरपक मे
पैदा हआ था
तेरे िपता ने पुरखो को
िसफर एक िदन पानी िदया था
िफर उनहे
पानी नही िदया गया |
अँधेरे मे उस पार खड़ा
मेरा िपता
भूखा और उदास है
मेरी पयास
मेरे पुरखो िक पयास है |
25. इस ननहे पौधे को
इसी पयास ने रोपा था
माँ इसे पौधा नही समझती
कहती है
तूने पुरखो को जना है
तू अपने िपतरो का िपता है |
११/०९/१९८२
On7th august2013, @1855PM ;
सचा बनाम लुचा
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रोको मत
सपनो को आने दो
बसने दो आँखो मे बेख़ौफ़ |
वे लौट कर नही आयेगे
िगर गए आँख से जो आंसूं
खामोश |
जो है सता के नशे मे मदहोश
वे नही सुनेगे
तुमहारी िकसी भी बात को
उनहे जगाने के िलए
तुमहे पैदा करना होगा
अपने भीतर सचा आकोश |
वह आकोश
जो बुझ जाता है
मोमबितयां बुझ जाने के साथ
मुिक पाना है तुमहे
उस लुचे आकोश से |
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चवनी के बराबर
रपया हो गया
मूलय मे ही नही
आकार मे भी