Chadhala Dhaal -1 | छहढाला ढाल 1

Prakash Jain
Prakash JainPresident em Manakchand Trust
तुतकता –
काश और पूजा छाबडा, यंग जैन टडी ुप, इ दौर
ंथ का नाम हढाला
ंथ के रिचयता पं. दौलतराम जी
ंथ का माण ९६ छंद -१७,१५,१७,१५,१५,१७
या ह ढाल
िनिम भ जीव के क याण के िलये
हेतु (लाभ) धा मक और सांसा रक
मंगलाचरण म कसे
नम कार कया गया ह
वीतरागता और िव ानता को
ंथ ारंभ करने के पहले यान
रखने यो य छह बात
दुःखपहली
ढाल
दुःख का कारणदूसरी
ढाल
दुःख से छूटने का उपायतीसरी
से छठी
ढाल
तीन भुवन म सार, वीतराग – िव ानता ।
िशव व प - िशवकार, नम ँ ि योग स हा रक ॥१॥
मंगलाचरण
तीन
लोक
अधो
लोक
म य
लोक
उ व
लोक
वीत + राग = बीत गया है राग िजनका
िजनके मोह, राग, ेष न हो गये ह
वीतराग कसे कहते है?
मोह कसे कहते ह?
पर (दूसरे) म अपनापन
राग कसे कहते ह?
कसी को भला जानकर चाहना
ेष कसे कहते ह?
कसी को बुरा जानकर दूर करना चाहना
वीतरागी
१८ दोष
से रिहत
होते ह
१. ुधा
२.तृषा
३.जरा/वृ पना
४.आंतक/रोग
५.ज म
६.मरण
७.भय
८. मय(मद)
९.राग
१०. ेष
११.मोह
१२. चता
१३.रित
१४.िन ा
१५.िव मय(आ य)
१६.शोक
१७. वेद(पसीना)
१८.खेद( ाकुलता)
िव ानता = सव
सव + =
सभी को + जान
िव ानता कसे कहते ह?
सभी पदाथ सभी का
भूत,भिव य,
वतमान
एक साथ जान
सव मतलब
पाँच परमे ी वीतरागी और ानी ह
अ रहंत-िस पूण वीतरागी और
ानी ह
आचाय,उपा याय,साधु एकदेश
वीतरागी और ानी ह
वीतराग माग पर चलने वाले ह
िशव व प िशवकार
मो /
क याण प
मो /
क याण करने
वाले
तीन योग
मन
वचन
काय
क सावधानी पूवक
जे ि भुवन म जीव अनंत, सुख चाह दुखत भयवंत ।
तात दुखहारी सुखकार, कह सीख गु क णाधार ॥।२॥
ंथ का उ े य
लोक म जीव कतने ह अनंत
सभी या चाहते है सुख
कससे डरते ह दुःख से
इसिलये ीगु या
करते ह?
दुःख को दूर और सुख
करने वाली सीख देते
ह
इि दय सुख अतीि य सुख
सुख के कार
आकुलता प िनराकुल सुख
वा तव म दुःख स ा सुख
तािह सुनो भिव मन िथर आन, जो चाहो अपनो क यान।
मोह महामद िपयो अना द, भूल आपको भरमत वा द॥३॥
संसार दुःख का कारण
गु क सीख का
या कर
मन ि थर करके सुनो
य सुनो अपना क याण चाहते हो तो
अना द काल से
संसार मण का
कारण या ह?
मोह (िम या व) के कारण
अपने आ म व प को
भूलकर...... थ मण
हो रहा है
जीव के कार(यो यता अनुसार)
भ अभ
िजसमे मो जाने
क यो यता हो
िजसमे मो जाने क
यो यता न हो
भ के कार
िनकट भ
दूर भ
दूरा दूर भ
कैसे जाने
क हम
भ ह?
िजसने चेतन- व प आ मा
क बात स िच से सुनी
वह भ है
िनयम से अ प काल म मु
ह गे
तास मण क है ब कथा, पै कछु क ँकिह मुिन यथा ।
काल अनंत िनगोद मँझार, बी यो एके ी-तन धार॥४॥
दुःख क कथा
मण क कथा कतनी
बडी है ?
ब त - अनंत काल क
पं. जी कतनी बतायगे कुछ - ब त थोडी
अना द काल तक जीव कहाँ
रहा
िनगोद म
ितयच गित
का वणन
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vlSuhvlSuhvlSuhvlSuh lSuhlSuhlSuhlSuh
ितयच के कारितयच के कारितयच के कारितयच के कार
i`Fohi`Fohi`Fohi`Foh tytytyty vfXuvfXuvfXuvfXu ok;qok;qok;qok;q ouLifrouLifrouLifrouLifr
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जीव इि याँ उदाहरण
एकेि य १- पशन पृ वी आ द
ीि य २- पशन,रसना लट, शंख, सीप, कचुआ, ज क
आ द
ीि य ३- पशन,रसना, ाण च टी, जू, ल ख, खटमल,
िब छू आ द
चतु रि य ४- पशन, रसना,
ाण, च ु
म छर, भ रा, म खी,
िततली, डांस, पतंगा आ द
पंचेि य ५- पशन, रसना,
ाण, च ु, कण
मनु य, देव, नारक , पशु
प ी
कस जीव के कतनीकस जीव के कतनीकस जीव के कतनीकस जीव के कतनी इि याँइि याँइि याँइि याँ होती हहोती हहोती हहोती ह????
वन पित के भेद
व प उदाहरण
साधारण
/िनगोद
एक शरीर और
अनंत वामी
आलु, याज, लहसन,
गाजर, मूली,
अदरक, गराडू, आ द
सव जमीकंद
येक एक शरीर और
एक वामी
हरी वन पित
एक ास म अठदस बार, ज यो मर यो भर यो दुखभार ।
िनकिस भूिम जल पावक भयो, पवन येक वन पित थयो ॥५॥
एकेि दय पयाय के दुःख
अपया िनगोद - ास के १८व भाग म
ज म - मरण होता है
अनंत जीवो का एक शरीर, एक आहार,
एक ास होता है
इ छा अनंत, ान ब त कम( पशन
इि य संबंधी ही),इसिलये इ छापू त न
होने से महादुःखी
िनगोद के दुःख
एकेि दय पयाय के दुःख
िनगोद से िनकलकर
जीव कहाँ गया ?
पृ वी
जल
अि
वायु
वन पित
- थावर पयाय म
थावर- स
थावर एकेि य जीव
स ीि या द जीव
दुलभ लिह य िच तामिण, य पयाय लही सतणी।
लट िपपील अिल आ द शरीर, धर धर मर यो सही ब पीर॥६॥
स पयाय क दुलभता व दुःख
स पयाय क ाि कसके
समान है ?
चता मिण र न
स पयाय म दुःख
बार-बार ज म-मरण का
दुःख
सतणी ?
दीि य, ीि य,
चतु रि य
स पयाय क दुलभता व दुःख
कब ँ पंचेि य पशु भयो, मन िबन िनपट अ ानी थयो।
सहा दक सैनी वै ूर, िनबल पशु हित खाये भूर ॥७॥
पंचेि य पयाय के दुःख
असैनी पंचेि य पशु का
दुःख
मन िबना अ ान का दुःख
सैनी पंचेि य ूर ितयच
का दुःख
सं लेशता के कारण दूसरे
को मारता
सैनी-असैनी
सैनी/ सं ी मन सिहत जीव
असैनी/असं ी मन रिहत जीव
िजससे िहत – अिहत
का िवचार कया जा
सके
जो िश ा उपदेश हण
करने म सहायक हो
मन
या
?
कब ँ आप भयो बलहीन, सबलिन क र खायो अितदीन।
छेदन भेदन भूख िपयास, भार-वहन,िहम, आतप ास॥८॥
बध बंधन आ दक दुख घने, को ट जीभ त जात न भने ।
पंचेि य पयाय के दुःख
सैनी पंचेि य िनबल
ितयच का दुःख
ताकत न होने से दूसर के
ारा मारा गया, खाया
गया
• कान, नाक,ओ आ द अंग को छेदनाछेदन -छेदन -
• अंगो को भेदनाभेदन-भेदन-
सं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच के दुःखदुःखदुःखदुःख
• खाना पीने से रोकना, कम देनाभूख- यास -भूख- यास -
• पशु पर अ यिधक बोझ लादनाभार-वहन -भार-वहन -
• ठ डी- गम का दुखशीत-उ णताशीत-उ णता
सं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच के दुःखदुःखदुःखदुःख
• वध कर देनावध-वध-
• बांधना, बं दगृह, पजर म डालना, मजबूत बंधन से बांधनाबंधन-बंधन-
• लात,घूमका, लाठी, चाबुक आ द से मारनापीड़न-पीड़न-
सं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच के दुःखदुःखदुःखदुःख
असैनी - मन के िबना ब त अ ान होने
का दुःख
सैनी ूर पशु - िनबल पशु को मारकर
खाने पर सं लेिशत प रणाम का दुःख
सैनी िनबल पशु - बलवान के ारा खाया
गया, छेदन, भेदन, भूख, यास, भार - वहन,
गम , सद , वध, बंधन आ द करोड दुःख
पंचेि य ितयच के दुःख
१.
िनगोद
२.
पृ वी
आ द
थावर
३.
िवकल य
( ीि य,
ीि य,
चतुरि य)
= स णी
४.
असैनी -
सैनी
पंचेि य
नरक गित
का वणन
अित सं लेश भावत मर यो, घोर सागर म पर यो ॥९॥
नरक जाने का कारण
ितयच पयाय के अंत म
या आ?
अित सं लेश भाव से
मरकर
नरक जा प ँचा
नरक गित के दुःख के कार
१. े
ज य
२.
शारी रक
३. पर पर
दये जाने
वाले
४.आग तुक
५.
कषाय
ज य
ना + रत = वयं से तथा पर पर ीित
को ा न हो
जैसे ान को जाितगत िवरोध होता है
नारक कसे
कहते ह?
ज म के दुःख
Chadhala Dhaal -1 | छहढाला ढाल 1
तहाँ भूिम परसत दुख इसो, िब छू सहस डसे न ह ितसो ।
तहाँ राध- ोिणतवािहनी,कृिम-कुल-किलत,देह-दािहनी ॥१०॥
नरक क भूिम व नदी
हजार
िब छू एक
साथ
काटने से
भी अिधक
पीडा
भूिम का पश
खून, पीप, मवाद से भरी
छोटे - छोटे क ड से भरी
(नारक ही िव या से प
बनाते ह)
शरीर म दाह उ प करती है
वैतरणी नदी
सेमर त दलजुत अिसप , अिस य देह िवदार त ।
मे समान लोह गिल जाय, ऐसी शीत उ णता थाय॥११॥
वृ व सद - गम
तलवार क
धार के समान
प े वाले वृ
सेमर वृ
मे के बराबर लोहे
का गोला ण मा
म...
... टुकडे- टुकडे हो
जाये
५व के १/४ भाग व
६, ७ नरक म
सद
मे के बराबर
लोहे का गोला
ण मा म...
... िपघल जाये
शु के ४ व ५व
के ३/४ भाग तक
गम
हजार चूहे, िब ली, सुअर, कु े आ द
जानवर के मृतक शरीर एक साथ कई
दन तक सडने पर िजतनी गंध आये उससे
भी यादा
थम नरक क िम ी का १ कण यहाँ आ
जाये तो १ कोस तक के जीव मर जाय
नीचे नीचे क िम ी क दुगध से दूने-दूने
े तक के जीव मर जाय
दुगिधत िम ी
पश :- भूिम का पश म बताया गया
रस :- हलाहल िवषवत्
गंध :- दुगिधत िम ी म बताया गया
वण :- अंधकार, नीचे-नीचे अिधक
अिधक
श द :- अित कोलाहल पूण, मारो -
काटो के श द
नरक के पशा द
ितल-ितल कर देह के ख ड, असुर िभड़ाव दु च ड ।
िस धुनीर त यास न जाय,तो पण एक न बूँद लहाय॥१२॥
पर पर दए जाने वाले,
देव ारा दये जाने वाले
व यास का दुःख
३. पर पर
दये जाने
वाले दुःख
Chadhala Dhaal -1 | छहढाला ढाल 1
1. ªátë váèÒtu Ëy ãqváÃáá,
2. ¡ãªÃáÜþq váv mÄm váèÒè कè
hÉsáèß yè ¡áãvߪáÃá कËáÃáá,
3. कæºÿ - ÏááÍtãv wçÖá कè
¤þqË jñ½ÿáÃáá - £máËÃáá,
4. váèÒtu iÃááèß yè qäºÿÃáá,
5. wyævè yè ²ÿävÃáá,
6. jtñ¼ÿä £máËÃáá,
7.ªátë mèv yè ÃáÒváÃáá,
8.váèÒè कèþ ªátë कñ¼ÿáÒáèß tèß
qकáÃáá,
9.sáñ¼ÿ tèß yèßकÃáá,
10.iáÃáä tèß qèvÃáá,
11.Ïáævä qË jñ½ÿáÃáá,
12.sávè yè räAoÃáá,
13.कËáèßm yè jäËÃáá,
14.¡ßªááËáèß qË ãvºÿáÃáá,
15.ªátë Ëèm qË jváÃáá,
16.wém˾áä tèß ÑÃááÃá कËáÃáá,
17.mvwáË kéyè qÚááèß कèþ wÃá tèß ZáwèÏá कËáÃáá,
18.Îuáiî, Ëä²ÿ, ãyßÒ, ÏwáÃá, ãyuáË, ãyuáËÃáä, ãrváw,
Ãáèwvá, yqë, कáéwá, ªáäo, jtªááÁñ¼ÿ, £ÍvC, rák, ¡áãÁ
rÃá कË ¥क - ÁæyËè कáè ¡Ãáèक þ ZáकáË कèþ Áåh ÁèÃáá,
19. ÁæË yè Áèh ोèo कËÃáá,
20. qáy ¡áÃáè qË táËÃáá,
21. ोo yè sËè wjÃá कÒÃáá,
22. ãwã þuá yè ÏáÑÙá rÃáकË táËÃáá, कáºÿÃáá, ²èÿÁÃáá,
sèÁÃáá ¡áãÁò
तीसरे नरक तक असुरकुमार जाित के देव
(भवनवासी) जाकर िभडाते ह
िसफ अपने कोतूहल- मनोरंजन के िलये
जैसे - यहाँ दो भेड , दो तीतर, दो मुग
आ द को लोग िभडाकर मनोरंजन करते है
४.आग तुक
समु का स पूण जल पीने पर भी
यास न बुझे
पर पीने को एक बूंद भी नह
िमलती
यास क
पीडा
तीनलोक को नाज जु खाय, िमटै न भूख कणा न लहाय।
ये दुख ब सागर ल सहै,करम जोगत नरगित लहै ॥१३॥
भूख का दुःख
तीन लोको का अनाज भी खा
िलया जाये तो भी भूख न िमटे
खाने को अनाज का एक दाना भी
नह िमलता
भूख के मारे नरक क दुगिधत
िवषैली िम ी खा लेते है
भूख क पीडा
५.
कषायज य
िनयम से अशुभ ले या होने से -
सबसे यादा इसी से दुःखी
ोध, मान, अरित आ द कट होती
माया, लोभ, हा या द होती तो ह,
पर कटता के साधन नह िमलते ।
किचत् कट होती भी है
सभी नार कय का वेद िनयम से
नपुंसक होता है
नार कय
क आयु
जघ य - १० हजार वष
उ कृ - ३३ सागर
नरक म शरीर के टुकडे - टुकडे होने पर भी
आयु पूण होने के पहले मरण नह होता है
शरीर के टुकडे पारे क भांित िमल जाते है
पंचे य
सैनी
ितयच
मनु य
नारक मरकर कहाँ
उ प होते ह?
मनु य गित
का वणन
१ गभ
२ ज म
३ बालपना
४ युवाव था
५ बुढापा
जननी उदर व यो नव मास, अंग सकुचत पायो ास ।
िनकसत जे दुख पाये घोर, ितनको कहत न आवे ओर॥१४॥
गभ व ज म के दुःख
गभ के दुःख
१. नौ महीने माँ के पेट म अंग िसकुड के रहना पडता है
२. िहल - डुल भी नह सकते ह
३. िसर ऊपर, पैर नीचे रहते ह
४. खून-पीप आ द के क चड जैसी जगह म पडे रहना पडता
है
५. माँ क झूठन से भूख िमटाना पडती है
६. माँ के ारा खाये गये गम - चटपटे पदाथ से शरीर म
जलन/संताप होता है
७. कभी गभ म ही मृ यु हो जाती है
ज म के दुःख
✽ क ठनता से गभ से
बाहर िनकलता
✽ जैसे यं म से तार
बालपने म ान न ल ो,त ण समय त णी-रत र ो।
अधमृतकसम बूढ़ापनो, कैसे प लखै आपनो॥१५॥
बाल, युवा, बुढापे के दुःख
बालपने के दुःख
१.िहत - अिहत का िवचार करने का यादा
ान नह होता है
२.शि कम, इ छा ब त
३.एकदम छोटेपन म तो कह भी नह पाता
क या पीडा है
युवाव था के दुःख
१.िवषय क इ छापू त म
समय गंवाता है
२.घटी यं क भांित
गृह थी म एक िवपि
जाती नह , क दूसरी आ
जाती है
चार कार क इ छा
िवषय हण
क
कषाय के अनुसार
काय पू त क
पाप के उदय
को दूर करने
क
पु य के
उदय क
बुढापे के दुःख
१.अ मरे के समान
२.इ छा ब त, शि थोडी
देव गित का
वणन
देव के कार
भवनवासी ंतर योितषी वैमािनक
जो भवन
म िनवास
करते ह
जो नाना
कार के
देश
िनवास
करते ह
जो
योितमय
िवमान म
िनवास
करते है
जो
िवमान म
िनवास
करते ह
कभी अकाम िनजरा करै, भवनि क म सुरतन धरै ।
िवषय-चाह-दावानल द ो,मरत िवलाप करत दुख स ो॥१६॥
भवनि क म उ पि का कारण व दुःख
भवनि क से या
म लब?
भवनवासी ंतर योितषी
✽िबना इ छा दु:ख सहना
✽जहाँ पाप क िनजरा
पर पु य का बंध हो
भवनि क म उ प
होने का कारण या ह
अकाम िनजरा
भवनि क के दुःख
भवनि क के दुःख
का कारण
िवषय क इ छा
जो िवमानवासी थाय, स य दशन िबन दुख पाय ।
तहँ त चय थावर तन धरै, य प रवतन पूरे करै॥१७॥
वैमािनक के दुःख
वैमािनक देव भी दुःखी है !
य ?
स य दशन के अभाव म
देव के दुःख
भोग भोगने क आकुलता से दुःखी
िवषय क तृ णा ब त
बडे देव क िवभूित देख ईषा से
दुःखी
ह के जाित के देव को इ ा द क
आ ा मानने का दुःख
देव के दुःख
देवांगना/ देव (इ ) के िवयोग का दुःख
मंदार माला मृ यु से छः महीने पहले मुरझाने
पर िनकट मृ यु देखकर दुःखी
अविध ान से ( वयं या बडे देव के ारा) पता
पडने पर क ऎकेि या द म पैदा ह गे, दुःखी
होते
स य दशन के िबना दुःख ( सभी दुःख का मूल
कारण)
देव मरकर कहाँ उ प होते ह?
मनु य
पंचे य सैनी ितयच
ऎकेि य (पृ वी, जल,
येक वन पित)
जघ य उ कृ
१० हजार
वष
३१
सागर
(िम यादृ
ि देव)
३३ सागर
(स य दृि
देव)
५५
प य
(देवां
गना)
देव क आयु
प र मण
परावतन
संसार च
प रवतन मतलब
प रवतन के कार
भव
े
काल
भाव
1 de 92

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Chadhala Dhaal -1 | छहढाला ढाल 1

  • 1. तुतकता – काश और पूजा छाबडा, यंग जैन टडी ुप, इ दौर
  • 2. ंथ का नाम हढाला ंथ के रिचयता पं. दौलतराम जी ंथ का माण ९६ छंद -१७,१५,१७,१५,१५,१७ या ह ढाल िनिम भ जीव के क याण के िलये हेतु (लाभ) धा मक और सांसा रक मंगलाचरण म कसे नम कार कया गया ह वीतरागता और िव ानता को ंथ ारंभ करने के पहले यान रखने यो य छह बात
  • 3. दुःखपहली ढाल दुःख का कारणदूसरी ढाल दुःख से छूटने का उपायतीसरी से छठी ढाल
  • 4. तीन भुवन म सार, वीतराग – िव ानता । िशव व प - िशवकार, नम ँ ि योग स हा रक ॥१॥ मंगलाचरण
  • 6. वीत + राग = बीत गया है राग िजनका िजनके मोह, राग, ेष न हो गये ह वीतराग कसे कहते है?
  • 7. मोह कसे कहते ह? पर (दूसरे) म अपनापन राग कसे कहते ह? कसी को भला जानकर चाहना ेष कसे कहते ह? कसी को बुरा जानकर दूर करना चाहना
  • 8. वीतरागी १८ दोष से रिहत होते ह १. ुधा २.तृषा ३.जरा/वृ पना ४.आंतक/रोग ५.ज म ६.मरण ७.भय ८. मय(मद) ९.राग १०. ेष ११.मोह १२. चता १३.रित १४.िन ा १५.िव मय(आ य) १६.शोक १७. वेद(पसीना) १८.खेद( ाकुलता)
  • 9. िव ानता = सव सव + = सभी को + जान िव ानता कसे कहते ह?
  • 10. सभी पदाथ सभी का भूत,भिव य, वतमान एक साथ जान सव मतलब
  • 11. पाँच परमे ी वीतरागी और ानी ह अ रहंत-िस पूण वीतरागी और ानी ह आचाय,उपा याय,साधु एकदेश वीतरागी और ानी ह वीतराग माग पर चलने वाले ह
  • 12. िशव व प िशवकार मो / क याण प मो / क याण करने वाले
  • 14. जे ि भुवन म जीव अनंत, सुख चाह दुखत भयवंत । तात दुखहारी सुखकार, कह सीख गु क णाधार ॥।२॥ ंथ का उ े य
  • 15. लोक म जीव कतने ह अनंत सभी या चाहते है सुख कससे डरते ह दुःख से इसिलये ीगु या करते ह? दुःख को दूर और सुख करने वाली सीख देते ह
  • 16. इि दय सुख अतीि य सुख सुख के कार आकुलता प िनराकुल सुख वा तव म दुःख स ा सुख
  • 17. तािह सुनो भिव मन िथर आन, जो चाहो अपनो क यान। मोह महामद िपयो अना द, भूल आपको भरमत वा द॥३॥ संसार दुःख का कारण
  • 18. गु क सीख का या कर मन ि थर करके सुनो य सुनो अपना क याण चाहते हो तो अना द काल से संसार मण का कारण या ह? मोह (िम या व) के कारण अपने आ म व प को भूलकर...... थ मण हो रहा है
  • 19. जीव के कार(यो यता अनुसार) भ अभ िजसमे मो जाने क यो यता हो िजसमे मो जाने क यो यता न हो
  • 20. भ के कार िनकट भ दूर भ दूरा दूर भ
  • 22. िजसने चेतन- व प आ मा क बात स िच से सुनी वह भ है िनयम से अ प काल म मु ह गे
  • 23. तास मण क है ब कथा, पै कछु क ँकिह मुिन यथा । काल अनंत िनगोद मँझार, बी यो एके ी-तन धार॥४॥ दुःख क कथा मण क कथा कतनी बडी है ? ब त - अनंत काल क पं. जी कतनी बतायगे कुछ - ब त थोडी अना द काल तक जीव कहाँ रहा िनगोद म
  • 25. ,sdsfUnz;,sdsfUnz;,sdsfUnz;,sdsfUnz; }hfUnz;}hfUnz;}hfUnz;}hfUnz; =hfUnz;=hfUnz;=hfUnz;=hfUnz; prqfjfUnz;prqfjfUnz;prqfjfUnz;prqfjfUnz; iapsfUn;iapsfUn;iapsfUn;iapsfUn; vlSuhvlSuhvlSuhvlSuh lSuhlSuhlSuhlSuh ितयच के कारितयच के कारितयच के कारितयच के कार i`Fohi`Fohi`Fohi`Foh tytytyty vfXuvfXuvfXuvfXu ok;qok;qok;qok;q ouLifrouLifrouLifrouLifr lk/kkj.klk/kkj.klk/kkj.klk/kkj.k izR;sdizR;sdizR;sdizR;sd fuR;fuR;fuR;fuR; fuxksnfuxksnfuxksnfuxksn prqxZfrprqxZfrprqxZfrprqxZfr fuxksnfuxksnfuxksnfuxksn izfrf"Brizfrf"Brizfrf"Brizfrf"Br vizfrvizfrvizfrvizfr- f"Brf"Brf"Brf"Br
  • 26. जीव इि याँ उदाहरण एकेि य १- पशन पृ वी आ द ीि य २- पशन,रसना लट, शंख, सीप, कचुआ, ज क आ द ीि य ३- पशन,रसना, ाण च टी, जू, ल ख, खटमल, िब छू आ द चतु रि य ४- पशन, रसना, ाण, च ु म छर, भ रा, म खी, िततली, डांस, पतंगा आ द पंचेि य ५- पशन, रसना, ाण, च ु, कण मनु य, देव, नारक , पशु प ी कस जीव के कतनीकस जीव के कतनीकस जीव के कतनीकस जीव के कतनी इि याँइि याँइि याँइि याँ होती हहोती हहोती हहोती ह????
  • 27. वन पित के भेद व प उदाहरण साधारण /िनगोद एक शरीर और अनंत वामी आलु, याज, लहसन, गाजर, मूली, अदरक, गराडू, आ द सव जमीकंद येक एक शरीर और एक वामी हरी वन पित
  • 28. एक ास म अठदस बार, ज यो मर यो भर यो दुखभार । िनकिस भूिम जल पावक भयो, पवन येक वन पित थयो ॥५॥ एकेि दय पयाय के दुःख
  • 29. अपया िनगोद - ास के १८व भाग म ज म - मरण होता है अनंत जीवो का एक शरीर, एक आहार, एक ास होता है इ छा अनंत, ान ब त कम( पशन इि य संबंधी ही),इसिलये इ छापू त न होने से महादुःखी िनगोद के दुःख
  • 30. एकेि दय पयाय के दुःख िनगोद से िनकलकर जीव कहाँ गया ? पृ वी जल अि वायु वन पित - थावर पयाय म
  • 31. थावर- स थावर एकेि य जीव स ीि या द जीव
  • 32. दुलभ लिह य िच तामिण, य पयाय लही सतणी। लट िपपील अिल आ द शरीर, धर धर मर यो सही ब पीर॥६॥ स पयाय क दुलभता व दुःख स पयाय क ाि कसके समान है ? चता मिण र न स पयाय म दुःख बार-बार ज म-मरण का दुःख सतणी ? दीि य, ीि य, चतु रि य
  • 33. स पयाय क दुलभता व दुःख
  • 34. कब ँ पंचेि य पशु भयो, मन िबन िनपट अ ानी थयो। सहा दक सैनी वै ूर, िनबल पशु हित खाये भूर ॥७॥ पंचेि य पयाय के दुःख असैनी पंचेि य पशु का दुःख मन िबना अ ान का दुःख सैनी पंचेि य ूर ितयच का दुःख सं लेशता के कारण दूसरे को मारता
  • 35. सैनी-असैनी सैनी/ सं ी मन सिहत जीव असैनी/असं ी मन रिहत जीव
  • 36. िजससे िहत – अिहत का िवचार कया जा सके जो िश ा उपदेश हण करने म सहायक हो मन या ?
  • 37. कब ँ आप भयो बलहीन, सबलिन क र खायो अितदीन। छेदन भेदन भूख िपयास, भार-वहन,िहम, आतप ास॥८॥ बध बंधन आ दक दुख घने, को ट जीभ त जात न भने । पंचेि य पयाय के दुःख सैनी पंचेि य िनबल ितयच का दुःख ताकत न होने से दूसर के ारा मारा गया, खाया गया
  • 38. • कान, नाक,ओ आ द अंग को छेदनाछेदन -छेदन - • अंगो को भेदनाभेदन-भेदन- सं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच के दुःखदुःखदुःखदुःख
  • 39. • खाना पीने से रोकना, कम देनाभूख- यास -भूख- यास - • पशु पर अ यिधक बोझ लादनाभार-वहन -भार-वहन - • ठ डी- गम का दुखशीत-उ णताशीत-उ णता सं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच के दुःखदुःखदुःखदुःख
  • 40. • वध कर देनावध-वध- • बांधना, बं दगृह, पजर म डालना, मजबूत बंधन से बांधनाबंधन-बंधन- • लात,घूमका, लाठी, चाबुक आ द से मारनापीड़न-पीड़न- सं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच केसं ी ितयच के दुःखदुःखदुःखदुःख
  • 41. असैनी - मन के िबना ब त अ ान होने का दुःख सैनी ूर पशु - िनबल पशु को मारकर खाने पर सं लेिशत प रणाम का दुःख सैनी िनबल पशु - बलवान के ारा खाया गया, छेदन, भेदन, भूख, यास, भार - वहन, गम , सद , वध, बंधन आ द करोड दुःख पंचेि य ितयच के दुःख
  • 42. १. िनगोद २. पृ वी आ द थावर ३. िवकल य ( ीि य, ीि य, चतुरि य) = स णी ४. असैनी - सैनी पंचेि य
  • 44. अित सं लेश भावत मर यो, घोर सागर म पर यो ॥९॥ नरक जाने का कारण ितयच पयाय के अंत म या आ? अित सं लेश भाव से मरकर नरक जा प ँचा
  • 45. नरक गित के दुःख के कार १. े ज य २. शारी रक ३. पर पर दये जाने वाले ४.आग तुक ५. कषाय ज य
  • 46. ना + रत = वयं से तथा पर पर ीित को ा न हो जैसे ान को जाितगत िवरोध होता है नारक कसे कहते ह?
  • 47. ज म के दुःख
  • 49. तहाँ भूिम परसत दुख इसो, िब छू सहस डसे न ह ितसो । तहाँ राध- ोिणतवािहनी,कृिम-कुल-किलत,देह-दािहनी ॥१०॥ नरक क भूिम व नदी
  • 50. हजार िब छू एक साथ काटने से भी अिधक पीडा भूिम का पश
  • 51. खून, पीप, मवाद से भरी छोटे - छोटे क ड से भरी (नारक ही िव या से प बनाते ह) शरीर म दाह उ प करती है वैतरणी नदी
  • 52. सेमर त दलजुत अिसप , अिस य देह िवदार त । मे समान लोह गिल जाय, ऐसी शीत उ णता थाय॥११॥ वृ व सद - गम
  • 53. तलवार क धार के समान प े वाले वृ सेमर वृ
  • 54. मे के बराबर लोहे का गोला ण मा म... ... टुकडे- टुकडे हो जाये ५व के १/४ भाग व ६, ७ नरक म सद
  • 55. मे के बराबर लोहे का गोला ण मा म... ... िपघल जाये शु के ४ व ५व के ३/४ भाग तक गम
  • 56. हजार चूहे, िब ली, सुअर, कु े आ द जानवर के मृतक शरीर एक साथ कई दन तक सडने पर िजतनी गंध आये उससे भी यादा थम नरक क िम ी का १ कण यहाँ आ जाये तो १ कोस तक के जीव मर जाय नीचे नीचे क िम ी क दुगध से दूने-दूने े तक के जीव मर जाय दुगिधत िम ी
  • 57. पश :- भूिम का पश म बताया गया रस :- हलाहल िवषवत् गंध :- दुगिधत िम ी म बताया गया वण :- अंधकार, नीचे-नीचे अिधक अिधक श द :- अित कोलाहल पूण, मारो - काटो के श द नरक के पशा द
  • 58. ितल-ितल कर देह के ख ड, असुर िभड़ाव दु च ड । िस धुनीर त यास न जाय,तो पण एक न बूँद लहाय॥१२॥ पर पर दए जाने वाले, देव ारा दये जाने वाले व यास का दुःख
  • 59. ३. पर पर दये जाने वाले दुःख
  • 61. 1. ªátë váèÒtu Ëy ãqváÃáá, 2. ¡ãªÃáÜþq váv mÄm váèÒè कè hÉsáèß yè ¡áãvߪáÃá कËáÃáá, 3. कæºÿ - ÏááÍtãv wçÖá कè ¤þqË jñ½ÿáÃáá - £máËÃáá, 4. váèÒtu iÃááèß yè qäºÿÃáá, 5. wyævè yè ²ÿävÃáá, 6. jtñ¼ÿä £máËÃáá, 7.ªátë mèv yè ÃáÒváÃáá, 8.váèÒè कèþ ªátë कñ¼ÿáÒáèß tèß qकáÃáá, 9.sáñ¼ÿ tèß yèßकÃáá, 10.iáÃáä tèß qèvÃáá, 11.Ïáævä qË jñ½ÿáÃáá, 12.sávè yè räAoÃáá, 13.कËáèßm yè jäËÃáá, 14.¡ßªááËáèß qË ãvºÿáÃáá, 15.ªátë Ëèm qË jváÃáá, 16.wém˾áä tèß ÑÃááÃá कËáÃáá,
  • 62. 17.mvwáË kéyè qÚááèß कèþ wÃá tèß ZáwèÏá कËáÃáá, 18.Îuáiî, Ëä²ÿ, ãyßÒ, ÏwáÃá, ãyuáË, ãyuáËÃáä, ãrváw, Ãáèwvá, yqë, कáéwá, ªáäo, jtªááÁñ¼ÿ, £ÍvC, rák, ¡áãÁ rÃá कË ¥क - ÁæyËè कáè ¡Ãáèक þ ZáकáË कèþ Áåh ÁèÃáá, 19. ÁæË yè Áèh ोèo कËÃáá, 20. qáy ¡áÃáè qË táËÃáá, 21. ोo yè sËè wjÃá कÒÃáá, 22. ãwã þuá yè ÏáÑÙá rÃáकË táËÃáá, कáºÿÃáá, ²èÿÁÃáá, sèÁÃáá ¡áãÁò
  • 63. तीसरे नरक तक असुरकुमार जाित के देव (भवनवासी) जाकर िभडाते ह िसफ अपने कोतूहल- मनोरंजन के िलये जैसे - यहाँ दो भेड , दो तीतर, दो मुग आ द को लोग िभडाकर मनोरंजन करते है ४.आग तुक
  • 64. समु का स पूण जल पीने पर भी यास न बुझे पर पीने को एक बूंद भी नह िमलती यास क पीडा
  • 65. तीनलोक को नाज जु खाय, िमटै न भूख कणा न लहाय। ये दुख ब सागर ल सहै,करम जोगत नरगित लहै ॥१३॥ भूख का दुःख
  • 66. तीन लोको का अनाज भी खा िलया जाये तो भी भूख न िमटे खाने को अनाज का एक दाना भी नह िमलता भूख के मारे नरक क दुगिधत िवषैली िम ी खा लेते है भूख क पीडा
  • 68. िनयम से अशुभ ले या होने से - सबसे यादा इसी से दुःखी ोध, मान, अरित आ द कट होती माया, लोभ, हा या द होती तो ह, पर कटता के साधन नह िमलते । किचत् कट होती भी है सभी नार कय का वेद िनयम से नपुंसक होता है
  • 69. नार कय क आयु जघ य - १० हजार वष उ कृ - ३३ सागर नरक म शरीर के टुकडे - टुकडे होने पर भी आयु पूण होने के पहले मरण नह होता है शरीर के टुकडे पारे क भांित िमल जाते है
  • 70. पंचे य सैनी ितयच मनु य नारक मरकर कहाँ उ प होते ह?
  • 72. १ गभ २ ज म ३ बालपना ४ युवाव था ५ बुढापा
  • 73. जननी उदर व यो नव मास, अंग सकुचत पायो ास । िनकसत जे दुख पाये घोर, ितनको कहत न आवे ओर॥१४॥ गभ व ज म के दुःख
  • 74. गभ के दुःख १. नौ महीने माँ के पेट म अंग िसकुड के रहना पडता है २. िहल - डुल भी नह सकते ह ३. िसर ऊपर, पैर नीचे रहते ह ४. खून-पीप आ द के क चड जैसी जगह म पडे रहना पडता है ५. माँ क झूठन से भूख िमटाना पडती है ६. माँ के ारा खाये गये गम - चटपटे पदाथ से शरीर म जलन/संताप होता है ७. कभी गभ म ही मृ यु हो जाती है
  • 75. ज म के दुःख ✽ क ठनता से गभ से बाहर िनकलता ✽ जैसे यं म से तार
  • 76. बालपने म ान न ल ो,त ण समय त णी-रत र ो। अधमृतकसम बूढ़ापनो, कैसे प लखै आपनो॥१५॥ बाल, युवा, बुढापे के दुःख
  • 77. बालपने के दुःख १.िहत - अिहत का िवचार करने का यादा ान नह होता है २.शि कम, इ छा ब त ३.एकदम छोटेपन म तो कह भी नह पाता क या पीडा है
  • 78. युवाव था के दुःख १.िवषय क इ छापू त म समय गंवाता है २.घटी यं क भांित गृह थी म एक िवपि जाती नह , क दूसरी आ जाती है
  • 79. चार कार क इ छा िवषय हण क कषाय के अनुसार काय पू त क पाप के उदय को दूर करने क पु य के उदय क
  • 80. बुढापे के दुःख १.अ मरे के समान २.इ छा ब त, शि थोडी
  • 82. देव के कार भवनवासी ंतर योितषी वैमािनक जो भवन म िनवास करते ह जो नाना कार के देश िनवास करते ह जो योितमय िवमान म िनवास करते है जो िवमान म िनवास करते ह
  • 83. कभी अकाम िनजरा करै, भवनि क म सुरतन धरै । िवषय-चाह-दावानल द ो,मरत िवलाप करत दुख स ो॥१६॥ भवनि क म उ पि का कारण व दुःख भवनि क से या म लब? भवनवासी ंतर योितषी
  • 84. ✽िबना इ छा दु:ख सहना ✽जहाँ पाप क िनजरा पर पु य का बंध हो भवनि क म उ प होने का कारण या ह अकाम िनजरा
  • 85. भवनि क के दुःख भवनि क के दुःख का कारण िवषय क इ छा
  • 86. जो िवमानवासी थाय, स य दशन िबन दुख पाय । तहँ त चय थावर तन धरै, य प रवतन पूरे करै॥१७॥ वैमािनक के दुःख वैमािनक देव भी दुःखी है ! य ? स य दशन के अभाव म
  • 87. देव के दुःख भोग भोगने क आकुलता से दुःखी िवषय क तृ णा ब त बडे देव क िवभूित देख ईषा से दुःखी ह के जाित के देव को इ ा द क आ ा मानने का दुःख
  • 88. देव के दुःख देवांगना/ देव (इ ) के िवयोग का दुःख मंदार माला मृ यु से छः महीने पहले मुरझाने पर िनकट मृ यु देखकर दुःखी अविध ान से ( वयं या बडे देव के ारा) पता पडने पर क ऎकेि या द म पैदा ह गे, दुःखी होते स य दशन के िबना दुःख ( सभी दुःख का मूल कारण)
  • 89. देव मरकर कहाँ उ प होते ह? मनु य पंचे य सैनी ितयच ऎकेि य (पृ वी, जल, येक वन पित)
  • 90. जघ य उ कृ १० हजार वष ३१ सागर (िम यादृ ि देव) ३३ सागर (स य दृि देव) ५५ प य (देवां गना) देव क आयु
  • 91. प र मण परावतन संसार च प रवतन मतलब
  • 92. प रवतन के कार भव े काल भाव