आहार मात्रा.pptx

प्रस्तुतकतता – डॉ. मतयत चन्देरियत
क्रियत शतिीि क्रिभतग
मदन मोहन मतलिीय ितजकीय आयुिेद महतक्रिद्यतलय,
उदयपुि (ितज.)
मात्राशी स्यात् । आहारमात्रा पुनरग्निबलापाप्ग्नी॥ी
(च. सू. 5/3)
वाग्भट अनुसार –
मात्राशी स्यात् ।मात्रा पुनरग्निबलापाहारद्रव्याप्ग्नी॥ी |
(अ. सं. सू. 11/3,4)
आहति
की मतत्रत
अक्रि
बल
आहति
द्रव्य
यावद्ध्यस्याशनमग्नशतमनुपहत्य प्रक
ृ ग्नतं यथाकापं
जरां गच्छग्नत तावदस्य मात्रा प्रमा॥ं व्ग्नदतव्यं
भवग्नत
(च. सू. 5/4)
आहार की जो मात्रा भोजन करन् वाप् की प्रक
ृ ग्नत
में उपघात (कष्ट) न पहुँचात् हए उग्नचत समय पर
पच जाए वही उस मनुष्य क
् ग्नपए प्रमाग्न॥त मात्रा
जाननी चाग्नहय् |
न च नाप्ीत् द्रव्यं, द्रव्याप्ीया च
ग्नत्रभागसौग्नहत्यमर्धसौग्नहत्यं वा गुरू॥ामुपग्नदश्यत्,
पघूनामग्नप च नाग्नतसौग्नहत्यमि्युधक्त्यथधम्
(च.सू. 5/7)
द्रव्य क
् अनुसार गुरु द्रव्यों का आहार क
ु ग्नी (उदर) क
्
1/3 भाग में या 1/2 भाग में ही प्ना चाग्नहए।
पघु आहार द्रव्यों स् क
ु ग्नी (उदर) को पू॥ध रूप स् पूररत
नहींकरना चाग्नहय्। इस प्रकार भोजन करन् स् अग्नि
(पाचकाग्नि) सम मात्रा में रहती है।
 गुरु॥ामर्धसौग्नहत्यं पघूनां नाग्नततृप्तता ।
मात्राप्रमा॥ं ग्ननग्नदधष्टं सुखं यावग्निजीयधग्नत
(अ. हृ. सू. 8/2)
ग्नजतनी आहार-राग्नश स् तृप्तप्त उत्पन्न हो, उसस् आर्ी मात्रा गुरु द्रव्यों
का स्वन करना चाग्नहय् । पघु द्रव्यों को बलाहत प्ट भर कर नहीं खाना
चाग्नहय् । ग्नजतना सुखपूवधक पच जाय् वही मात्रा का प्रमा॥ जानना
चाग्नहय्
 'गुरू॥ामर्धसौग्नहत्यं पघूनां तृप्तप्तररष्यत्' ।
द्रवोत्तरो द्रवश्चाग्नप न मात्रागुरुररष्यत् ।। (सु. सू. अ. 46/495)
 तत्र शाग्नपपग्नष्टक मुद्गपाव कग्नपञ्जपै॥शशशर
भशम्बरादीन्याहारद्रव्याग्न॥ प्रक
ृ ग्नतपघून्यग्नप मात्राप्ीीग्न॥ भवप्ति; तथा
ग्नपष्ट्नुीीरग्नवक
ृ ग्नतग्नतपमाषानूपौदकग्नपग्नशतादीन्याहारद्रव्याग्न॥
प्रक
ृ ग्नतगुरूण्यग्नप मात्राम्वाप्ीि् (च. सू. 5/5)
स्वभाव स् पघु आहार द्रव्य स्वभाव स् गुरु आहार द्रव्य
शाग्नप चावप ग्नपष्टग्नवक
ृ ग्नत (पूडी, रोटी, हपुआ आग्नद)
साठी का चावप (षग्नष्टक) इीुग्नवक
ृ ग्नत (गुड, चीनी आग्नद)
मूुँग की दाप ीीरग्नवक
ृ ग्नत (खोआ, ग्नकपाट,दही, मपाई, रबलाडी
इत्याग्नद)
पावा (पावक) पीी का मांस ग्नतप
कग्नपञ्जप (गौर्या पीी मांस) उडद
ए॥ (कापा ग्नहर॥ का मांस) आनूप मांस
शश (खरगोश का मांस) औदक मांस
शरभ (महाशृङ्गी हरर॥ चक्र बलाारहग्नसंघ् का मांस)
शम्बर (सांभर मृग का मांस)
न चैवमुक्त् द्रव्य् गुरुपाघवमकार॥ं मन्य्त; पघूग्नन
ग्नह द्रव्याग्न॥ वाय्वग्निगु॥बलाहपाग्नन भवप्ति,
पृथ्वीसोमगु॥बलाहपानीतराग्न॥; तस्मात् स्वगु॥ादग्नप
पघून्यग्निसन्धुी॥स्वभावान्यल्पदोषाग्न॥
चोच्यि्ऽग्नप सौग्नहत्योपयुक्ताग्नन, गुरूग्न॥
पुननाधग्निसन्धुी॥स्वभावान्यसामान्यात्,
अतश्चाग्नतमात्रं दोषवप्ति सौग्नहत्योपयुक्तान्यन्यत्र
व्यायामाग्निबलापात्; सैषा भवत्यग्निबलापाप्ग्नी॥ी
मात्रा (च.सू. 5/6)
पघु
आहार
द्रव्य
वायु और
अग्नि
गु॥ की
प्रबलापता
अग्नि का
संर्ुी॥
(तीव्र)
अग्नर्क
मात्रा में
खान् पर भी
अल्प दोष
(अल्प
ग्नवक
ृ ग्नत)
गुरु
आहार
द्रव्य
पृथ्वी
तथा जप
गु॥ की
प्रबलापता
अग्नि
को
कम
करना
अग्नर्क
मात्रा में
भोजन
करन् स्
अग्नर्क दोष
(ग्नवक
ृ ग्नत)
मात्राशी सवधकापं स्यान्मात्रा ह्यि्ेः प्रवग्नतधका ।
मात्रां द्रव्याण्यप्ीि् गुरुण्यग्नप पघून्यग्नप
(अ. हृ. सू. 8/1)
रोगी और स्वस्थावस्था में मनुष्य को मात्रा में खान्
वापा होना चाग्नहय्; क्ोंग्नक मात्रा अग्नि को
(स्वकमध=पाचन कायध में) प्रवृत्त करन् वापी है । गुरु
द्रव्य और पघु द्रव्य सभी मात्रा की अप्ीा करत् हैं |
मात्रावद्ध्यशनमग्नशतमनुपहत्य प्रक
ृ ग्नतं बलापव॥धसुखायुषा
योजयत्युपयोक्तारमवश्यग्नमग्नत
(च. सू. 5/8)
मात्रा युक्त भोजन, खान् वाप् व्यप्तक्त की प्रक
ृ ग्नत में बलाार्ा न
पहुँचात् हए उस् ग्ननश्चय ही बलाप, व॥ध, सुख और पू॥ध आयु स्
युक्त करता है।
सवधरसाभ्यासो बलापकरा॥ाम् ; एकरसाभ्यासो दौबलाधल्यकरा॥ाम्
।
(च. सू. 25/40)
'क
ु ी्रप्रपीडनमाहार्॥ हृदयस्यानवरोर्ेः
पार्श्धयोरग्नवपाटनं, नाग्नतगौरवमुदरस्य
प्री॥नग्नमप्तिया॥ां ीुप्तत्पपासोपरमेः
स्थानासनशयनगमनप्रर्श्ासोच्छ्वासहास्यसंकथासु
सुखानुवृग्नत्तेः सायं प्रातश्च सुख्न परर॥मनं बलाप
व॥ोपचयकरत्वं च्ग्नत मात्रावतो पी॥माहारस्य
भवग्नत ।“
(च. ग्नव. 2/5)
क
ु ी्रप्रपीडनमाहार्॥ आहार स् उदर म् (क
ु ग्नी म्) दबलााव न पड्।
हृदयस्यानवरोर्ेः हृदय की गग्नत (कायों) में रुकावट न हो।
पार्श्धयोरग्नवपाटनं पार्श्ध प्रद्श में फटन् जैसी पीडा न हो।
अनग्नतगौरवमुदरस्य उदर में अग्नर्क गुरुता न हो।
प्री॥नग्नमप्तिया॥ां इप्तियाुँ (चीु आग्नद) तृप्त रहें।
ीुप्तत्पपासोपरमेः भूख एवं प्यास शाि हो जाय ।
स्थानासनशयनगमनोच्छ्वासप्रर्श्ासहास्यसंकथासु
सुखानुवृग्नत्तेः
स्थान, आसन (बलाैठना), शयन (सोना), गमन, र्श्ास
प्रर्श्ास, हंसन् और वाताधपाप करन् में कग्नठनाई न हो।
सायं प्रातश्च सुख्न परर॥मनं सायंकाप और प्रात: काप सुखपूवधक आहार का पाचन
हो जाय।
बलापव॥ोपचयकरत्वं बलाप, व॥ध और शरीर की वृप्ति हो।
ग्नत्रग्नवर्
क
ु ग्नी
ग्नवभाग
मूतध (ठोस)
आहार द्रव्य
(SOLIDS)
द्रव (तरप)
आहार
(LIQUIDS)
वात ग्नपत्त
कफ दोष
अन्न्न क
ु ी्िाधवंशौ पान्नैक
ं प्रपूरय्त् ।
आश्रयं पवनादीनां चतुथधमवश्षय्त् '
(अ. हृ. सू. 8/46)
उदर क
्
चार भाग
(कल्पना)
अन्न द्रव्य
अन्न द्रव्य
द्रव
पदाथध
वात आग्नद क
्
आश्रय क
् ग्नपय्
चतुथध भाग
ितक्रशस्तु सिाग्रहपरिग्रहौ; मतत्रतमतत्रफलक्रिक्रनश्चयतर्ाः ।
तत्र सिास्यतहतिस्य प्रमतणग्रहणमेकक्रपण्डेन सिाग्रहः; परिग्रहः
पुनः प्रमतणग्रहणमेक
ै कश्येनतहतिद्रव्यतणतम्।
सिास्य क्रह ग्रहः सिाग्रहः, सिातश्च ग्रहः परिग्रह उच्यते॥
(च. क्रि. 1/22.4)
ितक्रश (Quantity) - मतत्रत तर्त अमतत्रत क
े फल कत क्रनश्चय
किने क
े क्रलये ितक्रश है।
1. सिाग्रह
2. परिग्रह
अमात्रा पुनरशनस्य हीनताऽऽग्नर्क्ं च ।
(अ.सं.सू.11/10)
अमात्रा का पी॥
1. भोजन की हीनता (आहार की कमी)
2. भोजन की अग्नर्कता ।
अमात्रावत्वं पुनग्निधग्नवर्माचीत् –हीनम्, अग्नर्क
ं च।
तत्र हीनमात्रमाहारराग्नश
बलापव॥ोपचयीयकरमतृप्तप्तकरमुदावतधकरमनायुष्यम
वृष्य मनौजस्यं शरीरमनोबलाुिीप्तियोपघातकरं
सारग्नवर्मनमपक्ष्म्यावहमशीत्श्च
वातग्नवकारा॥ामायतनमाचीत्,
(च. ग्नव. 2/6)
ग्नवबलांर्क
ृ द (अ.सं.सू. 11/11)
बलापव॥ोपचयीयकर बलाप, व॥ध, शरीरावयवों की वृप्ति का नाश
करन् वापा
अतृप्तप्तकर अतृप्तप्तकारक अथाधत थोडी मात्रा में भोजन
करन् स् प्ट नहीं भरता
उदावतधकर उदावतधरोग को उत्पन्न करन् वापा
अनायुष्यम आयु का ह्रास करन् वापा
अवृष्यम वीयधनाशक
अनौजस्यं ओजस् का ीय कारक
शरीरमनोबलाुिीप्तियोपघातकरं शरीर, मन, बलाुप्ति तथा इप्तियों को हाग्नन
पहुँचान् वापा
सारग्नवर्मनमपक्ष्म्यावहमशीत्श्च
वातग्नवकारा॥ामायतनमाचीत्
शरीर को श्रीहीन ( त्जरग्नहत ) कर द्न् वापा
और अस्सी प्रकार क
् वातग्नवकारों का घर कहा
जाता है।
भोजनं हीनमात्रं तु न बलापोपचयौजस् ।
सवेषां वातरोगा॥ां ह्तुतां च प्रपद्यत्
(अ. हृ. सू. 8/3)
• बलाप, पुग्नष्ट और काप्ति को नष्ट करन् वापा |
• वातरोगों की उत्पग्नत्त में कार॥ |
 अग्नतमात्रं पुनेः सवधदोषप्रकोप॥ग्नमच्छप्ति क
ु शपाेः । यो ग्नह
मूताधनामाहारजातानां सौग्नहत्यं गत्वा द्रवैस्तृप्तप्तमापद्यत्
भूयस्तस्यामाशयगता
वातग्नपत्तश्ल्ष्मा॥ोऽभ्यवहार्॥ाग्नतमात्र्॥ाग्नतप्रपीड्यमानाेः सवे युगपत्
प्रकोपमापद्यि्, त् प्रक
ु ग्नपतास्तम्वाहारराग्नशमपरर॥तमाग्नवश्य
क
ु क्ष्य्कद्शमन्नाग्नश्रता ग्नवष्टम्भयिेः सहसा वाऽप्युत्तरार्राभ्यां
मागाधभ्यां प्रच्यावयिेः पृथक
् पृथग्नगमान् ग्नवकारानग्नभग्ननवधतधयन्त्यग्नत
मात्रभोक्तेः । तत्र वातेः
शूपानाहाङ्गमदधमुखशोषमूच्छाधभ्रमाग्निवैषयपार्श्धपृ्ठककग्नट्रहहग्नसराक
ु ञ्च
नस्तम्भनाग्नन करोग्नत, ग्नपत्तं
पुनर्ज्धरातीसारािदाधहतृष्णामदभ्रमप्रपपनाग्नन श्ल्ष्मा तु
छद्यधरोचकाग्नवपाकशीतर्ज्रापस्यगात्रगौरवाग्न॥ (च. ग्नव. 2/7)
वातदोष ग्नपत्तदोष कफदोष
शूप र्ज्र वमन
आनाह (आफरा ) अग्नतसार अरोचक
अंगमदध तृष्णा भोजन का न पचना
मुखशोष भ्रम शीतर्ज्र ( जाडा पगकर आन्
वापा र्ज्र )
मूच्छाध (बला्होशी) प्रपाप आपस्य तथा शरीर में भारीपन
भ्रम (चक्कर आना )
अग्नि की ग्नवषमता
पसग्नपयों, कमर तथा पीठ में
जकडन
ग्नसराओं में संकोच तथा जकडन
अग्नतमात्रं पुनेः सवाधनाशु दोषान् प्रकोपय्त् । (अ. हृ. सू. 8/4)
 हीनमात्रमसंतोषं करोग्नत च बलापीयम् ।
आपस्यगौरवाटोपसादांश्च क
ु रुत्ऽग्नर्कम् ।। (सु. सू. 46/474)
आहार का हीन मात्रा में स्वन आहार का अग्नत मात्रा में स्वन
असंतोष आपस्य
बलाप ीय गौरव
आटोप
साद
पीड्यमाना ग्नह वाताद्या युगपत्त्न कोग्नपताेः ४
आम्नान्न्न दुष्ट्न तद्वाग्नवश्य क
ु वधत् ।
ग्नवष्टम्भयिोऽपसक
ं च्यावयिो ग्नवसूग्नचकाम् ५
अर्रोत्तरमागाधभ्यां सहसैवाग्नजतात्मनेः ।
(अ. हृ. सू. 8/4,5,6)
मात्रा स् अग्नर्क खान् स् प्रक
ु ग्नपत सभी दोष उसी आम अन्न स् दबलात्
हय् पुनेः एक साथ क
ु ग्नपत होकर उसी दू ग्नषत आम अन्न में प्रग्नवष्ट होकर
उसको रोकत् हय् अपसक को उत्पन्न करत् हैं; अथवा आम अन्न को
ऊपर एवं ग्ननचप् मागध स् (वमन-ग्नवर्चन रूप में) व्गपूवधक बलााहर करत्
हए असंयमी पुरुष में ग्नवसूग्नचका उत्पन्न करत् हैं |
तत्राल्प् पङ्घनं पथ्यं, मध्य् पंघनपाचनम्
प्रभूत् शोर्नं, तप्ति मूपादुन्मूपय्न्मपान् ।
(अ. हृ. सू. 8/21,22)
शोर्न मपों को जड स् उखाड द्ता है|
दोष कमध
अवर दोष पङ्घन
मध्यम दोष पंघन और पाचन
प्रवर दोष शोर्न
HEIGHT AGE SEX
GENERAL STATE
OF HEALTH
JOB
LEISURE TIME
ACTIVITIES
PHYSICAL
ACTIVITIES GENETICS
BODY SIZE
ENVIRONMENTAL
FACTORS
BODY
COMPOSITION
WHAT
MEDICATIONS
YOU MAY BE
TAKING
food is taken in excess
quantity
food is taken in less
quantity
Obesity Kwashiorkor/Marasmus
Cardiovascular diseases
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Iron deficiency
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Cerebrovascular stroke Stunting, wasting
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  • 1. प्रस्तुतकतता – डॉ. मतयत चन्देरियत क्रियत शतिीि क्रिभतग मदन मोहन मतलिीय ितजकीय आयुिेद महतक्रिद्यतलय, उदयपुि (ितज.)
  • 2. मात्राशी स्यात् । आहारमात्रा पुनरग्निबलापाप्ग्नी॥ी (च. सू. 5/3) वाग्भट अनुसार – मात्राशी स्यात् ।मात्रा पुनरग्निबलापाहारद्रव्याप्ग्नी॥ी | (अ. सं. सू. 11/3,4) आहति की मतत्रत अक्रि बल आहति द्रव्य
  • 3. यावद्ध्यस्याशनमग्नशतमनुपहत्य प्रक ृ ग्नतं यथाकापं जरां गच्छग्नत तावदस्य मात्रा प्रमा॥ं व्ग्नदतव्यं भवग्नत (च. सू. 5/4) आहार की जो मात्रा भोजन करन् वाप् की प्रक ृ ग्नत में उपघात (कष्ट) न पहुँचात् हए उग्नचत समय पर पच जाए वही उस मनुष्य क ् ग्नपए प्रमाग्न॥त मात्रा जाननी चाग्नहय् |
  • 4. न च नाप्ीत् द्रव्यं, द्रव्याप्ीया च ग्नत्रभागसौग्नहत्यमर्धसौग्नहत्यं वा गुरू॥ामुपग्नदश्यत्, पघूनामग्नप च नाग्नतसौग्नहत्यमि्युधक्त्यथधम् (च.सू. 5/7) द्रव्य क ् अनुसार गुरु द्रव्यों का आहार क ु ग्नी (उदर) क ् 1/3 भाग में या 1/2 भाग में ही प्ना चाग्नहए। पघु आहार द्रव्यों स् क ु ग्नी (उदर) को पू॥ध रूप स् पूररत नहींकरना चाग्नहय्। इस प्रकार भोजन करन् स् अग्नि (पाचकाग्नि) सम मात्रा में रहती है।
  • 5.  गुरु॥ामर्धसौग्नहत्यं पघूनां नाग्नततृप्तता । मात्राप्रमा॥ं ग्ननग्नदधष्टं सुखं यावग्निजीयधग्नत (अ. हृ. सू. 8/2) ग्नजतनी आहार-राग्नश स् तृप्तप्त उत्पन्न हो, उसस् आर्ी मात्रा गुरु द्रव्यों का स्वन करना चाग्नहय् । पघु द्रव्यों को बलाहत प्ट भर कर नहीं खाना चाग्नहय् । ग्नजतना सुखपूवधक पच जाय् वही मात्रा का प्रमा॥ जानना चाग्नहय्  'गुरू॥ामर्धसौग्नहत्यं पघूनां तृप्तप्तररष्यत्' । द्रवोत्तरो द्रवश्चाग्नप न मात्रागुरुररष्यत् ।। (सु. सू. अ. 46/495)
  • 6.  तत्र शाग्नपपग्नष्टक मुद्गपाव कग्नपञ्जपै॥शशशर भशम्बरादीन्याहारद्रव्याग्न॥ प्रक ृ ग्नतपघून्यग्नप मात्राप्ीीग्न॥ भवप्ति; तथा ग्नपष्ट्नुीीरग्नवक ृ ग्नतग्नतपमाषानूपौदकग्नपग्नशतादीन्याहारद्रव्याग्न॥ प्रक ृ ग्नतगुरूण्यग्नप मात्राम्वाप्ीि् (च. सू. 5/5) स्वभाव स् पघु आहार द्रव्य स्वभाव स् गुरु आहार द्रव्य शाग्नप चावप ग्नपष्टग्नवक ृ ग्नत (पूडी, रोटी, हपुआ आग्नद) साठी का चावप (षग्नष्टक) इीुग्नवक ृ ग्नत (गुड, चीनी आग्नद) मूुँग की दाप ीीरग्नवक ृ ग्नत (खोआ, ग्नकपाट,दही, मपाई, रबलाडी इत्याग्नद) पावा (पावक) पीी का मांस ग्नतप कग्नपञ्जप (गौर्या पीी मांस) उडद ए॥ (कापा ग्नहर॥ का मांस) आनूप मांस शश (खरगोश का मांस) औदक मांस शरभ (महाशृङ्गी हरर॥ चक्र बलाारहग्नसंघ् का मांस) शम्बर (सांभर मृग का मांस)
  • 7. न चैवमुक्त् द्रव्य् गुरुपाघवमकार॥ं मन्य्त; पघूग्नन ग्नह द्रव्याग्न॥ वाय्वग्निगु॥बलाहपाग्नन भवप्ति, पृथ्वीसोमगु॥बलाहपानीतराग्न॥; तस्मात् स्वगु॥ादग्नप पघून्यग्निसन्धुी॥स्वभावान्यल्पदोषाग्न॥ चोच्यि्ऽग्नप सौग्नहत्योपयुक्ताग्नन, गुरूग्न॥ पुननाधग्निसन्धुी॥स्वभावान्यसामान्यात्, अतश्चाग्नतमात्रं दोषवप्ति सौग्नहत्योपयुक्तान्यन्यत्र व्यायामाग्निबलापात्; सैषा भवत्यग्निबलापाप्ग्नी॥ी मात्रा (च.सू. 5/6)
  • 8. पघु आहार द्रव्य वायु और अग्नि गु॥ की प्रबलापता अग्नि का संर्ुी॥ (तीव्र) अग्नर्क मात्रा में खान् पर भी अल्प दोष (अल्प ग्नवक ृ ग्नत) गुरु आहार द्रव्य पृथ्वी तथा जप गु॥ की प्रबलापता अग्नि को कम करना अग्नर्क मात्रा में भोजन करन् स् अग्नर्क दोष (ग्नवक ृ ग्नत)
  • 9. मात्राशी सवधकापं स्यान्मात्रा ह्यि्ेः प्रवग्नतधका । मात्रां द्रव्याण्यप्ीि् गुरुण्यग्नप पघून्यग्नप (अ. हृ. सू. 8/1) रोगी और स्वस्थावस्था में मनुष्य को मात्रा में खान् वापा होना चाग्नहय्; क्ोंग्नक मात्रा अग्नि को (स्वकमध=पाचन कायध में) प्रवृत्त करन् वापी है । गुरु द्रव्य और पघु द्रव्य सभी मात्रा की अप्ीा करत् हैं |
  • 10. मात्रावद्ध्यशनमग्नशतमनुपहत्य प्रक ृ ग्नतं बलापव॥धसुखायुषा योजयत्युपयोक्तारमवश्यग्नमग्नत (च. सू. 5/8) मात्रा युक्त भोजन, खान् वाप् व्यप्तक्त की प्रक ृ ग्नत में बलाार्ा न पहुँचात् हए उस् ग्ननश्चय ही बलाप, व॥ध, सुख और पू॥ध आयु स् युक्त करता है। सवधरसाभ्यासो बलापकरा॥ाम् ; एकरसाभ्यासो दौबलाधल्यकरा॥ाम् । (च. सू. 25/40)
  • 11. 'क ु ी्रप्रपीडनमाहार्॥ हृदयस्यानवरोर्ेः पार्श्धयोरग्नवपाटनं, नाग्नतगौरवमुदरस्य प्री॥नग्नमप्तिया॥ां ीुप्तत्पपासोपरमेः स्थानासनशयनगमनप्रर्श्ासोच्छ्वासहास्यसंकथासु सुखानुवृग्नत्तेः सायं प्रातश्च सुख्न परर॥मनं बलाप व॥ोपचयकरत्वं च्ग्नत मात्रावतो पी॥माहारस्य भवग्नत ।“ (च. ग्नव. 2/5)
  • 12. क ु ी्रप्रपीडनमाहार्॥ आहार स् उदर म् (क ु ग्नी म्) दबलााव न पड्। हृदयस्यानवरोर्ेः हृदय की गग्नत (कायों) में रुकावट न हो। पार्श्धयोरग्नवपाटनं पार्श्ध प्रद्श में फटन् जैसी पीडा न हो। अनग्नतगौरवमुदरस्य उदर में अग्नर्क गुरुता न हो। प्री॥नग्नमप्तिया॥ां इप्तियाुँ (चीु आग्नद) तृप्त रहें। ीुप्तत्पपासोपरमेः भूख एवं प्यास शाि हो जाय । स्थानासनशयनगमनोच्छ्वासप्रर्श्ासहास्यसंकथासु सुखानुवृग्नत्तेः स्थान, आसन (बलाैठना), शयन (सोना), गमन, र्श्ास प्रर्श्ास, हंसन् और वाताधपाप करन् में कग्नठनाई न हो। सायं प्रातश्च सुख्न परर॥मनं सायंकाप और प्रात: काप सुखपूवधक आहार का पाचन हो जाय। बलापव॥ोपचयकरत्वं बलाप, व॥ध और शरीर की वृप्ति हो।
  • 13. ग्नत्रग्नवर् क ु ग्नी ग्नवभाग मूतध (ठोस) आहार द्रव्य (SOLIDS) द्रव (तरप) आहार (LIQUIDS) वात ग्नपत्त कफ दोष
  • 14. अन्न्न क ु ी्िाधवंशौ पान्नैक ं प्रपूरय्त् । आश्रयं पवनादीनां चतुथधमवश्षय्त् ' (अ. हृ. सू. 8/46) उदर क ् चार भाग (कल्पना) अन्न द्रव्य अन्न द्रव्य द्रव पदाथध वात आग्नद क ् आश्रय क ् ग्नपय् चतुथध भाग
  • 15. ितक्रशस्तु सिाग्रहपरिग्रहौ; मतत्रतमतत्रफलक्रिक्रनश्चयतर्ाः । तत्र सिास्यतहतिस्य प्रमतणग्रहणमेकक्रपण्डेन सिाग्रहः; परिग्रहः पुनः प्रमतणग्रहणमेक ै कश्येनतहतिद्रव्यतणतम्। सिास्य क्रह ग्रहः सिाग्रहः, सिातश्च ग्रहः परिग्रह उच्यते॥ (च. क्रि. 1/22.4) ितक्रश (Quantity) - मतत्रत तर्त अमतत्रत क े फल कत क्रनश्चय किने क े क्रलये ितक्रश है। 1. सिाग्रह 2. परिग्रह
  • 16. अमात्रा पुनरशनस्य हीनताऽऽग्नर्क्ं च । (अ.सं.सू.11/10) अमात्रा का पी॥ 1. भोजन की हीनता (आहार की कमी) 2. भोजन की अग्नर्कता ।
  • 17. अमात्रावत्वं पुनग्निधग्नवर्माचीत् –हीनम्, अग्नर्क ं च। तत्र हीनमात्रमाहारराग्नश बलापव॥ोपचयीयकरमतृप्तप्तकरमुदावतधकरमनायुष्यम वृष्य मनौजस्यं शरीरमनोबलाुिीप्तियोपघातकरं सारग्नवर्मनमपक्ष्म्यावहमशीत्श्च वातग्नवकारा॥ामायतनमाचीत्, (च. ग्नव. 2/6) ग्नवबलांर्क ृ द (अ.सं.सू. 11/11)
  • 18. बलापव॥ोपचयीयकर बलाप, व॥ध, शरीरावयवों की वृप्ति का नाश करन् वापा अतृप्तप्तकर अतृप्तप्तकारक अथाधत थोडी मात्रा में भोजन करन् स् प्ट नहीं भरता उदावतधकर उदावतधरोग को उत्पन्न करन् वापा अनायुष्यम आयु का ह्रास करन् वापा अवृष्यम वीयधनाशक अनौजस्यं ओजस् का ीय कारक शरीरमनोबलाुिीप्तियोपघातकरं शरीर, मन, बलाुप्ति तथा इप्तियों को हाग्नन पहुँचान् वापा सारग्नवर्मनमपक्ष्म्यावहमशीत्श्च वातग्नवकारा॥ामायतनमाचीत् शरीर को श्रीहीन ( त्जरग्नहत ) कर द्न् वापा और अस्सी प्रकार क ् वातग्नवकारों का घर कहा जाता है।
  • 19. भोजनं हीनमात्रं तु न बलापोपचयौजस् । सवेषां वातरोगा॥ां ह्तुतां च प्रपद्यत् (अ. हृ. सू. 8/3) • बलाप, पुग्नष्ट और काप्ति को नष्ट करन् वापा | • वातरोगों की उत्पग्नत्त में कार॥ |
  • 20.  अग्नतमात्रं पुनेः सवधदोषप्रकोप॥ग्नमच्छप्ति क ु शपाेः । यो ग्नह मूताधनामाहारजातानां सौग्नहत्यं गत्वा द्रवैस्तृप्तप्तमापद्यत् भूयस्तस्यामाशयगता वातग्नपत्तश्ल्ष्मा॥ोऽभ्यवहार्॥ाग्नतमात्र्॥ाग्नतप्रपीड्यमानाेः सवे युगपत् प्रकोपमापद्यि्, त् प्रक ु ग्नपतास्तम्वाहारराग्नशमपरर॥तमाग्नवश्य क ु क्ष्य्कद्शमन्नाग्नश्रता ग्नवष्टम्भयिेः सहसा वाऽप्युत्तरार्राभ्यां मागाधभ्यां प्रच्यावयिेः पृथक ् पृथग्नगमान् ग्नवकारानग्नभग्ननवधतधयन्त्यग्नत मात्रभोक्तेः । तत्र वातेः शूपानाहाङ्गमदधमुखशोषमूच्छाधभ्रमाग्निवैषयपार्श्धपृ्ठककग्नट्रहहग्नसराक ु ञ्च नस्तम्भनाग्नन करोग्नत, ग्नपत्तं पुनर्ज्धरातीसारािदाधहतृष्णामदभ्रमप्रपपनाग्नन श्ल्ष्मा तु छद्यधरोचकाग्नवपाकशीतर्ज्रापस्यगात्रगौरवाग्न॥ (च. ग्नव. 2/7)
  • 21. वातदोष ग्नपत्तदोष कफदोष शूप र्ज्र वमन आनाह (आफरा ) अग्नतसार अरोचक अंगमदध तृष्णा भोजन का न पचना मुखशोष भ्रम शीतर्ज्र ( जाडा पगकर आन् वापा र्ज्र ) मूच्छाध (बला्होशी) प्रपाप आपस्य तथा शरीर में भारीपन भ्रम (चक्कर आना ) अग्नि की ग्नवषमता पसग्नपयों, कमर तथा पीठ में जकडन ग्नसराओं में संकोच तथा जकडन
  • 22. अग्नतमात्रं पुनेः सवाधनाशु दोषान् प्रकोपय्त् । (अ. हृ. सू. 8/4)  हीनमात्रमसंतोषं करोग्नत च बलापीयम् । आपस्यगौरवाटोपसादांश्च क ु रुत्ऽग्नर्कम् ।। (सु. सू. 46/474) आहार का हीन मात्रा में स्वन आहार का अग्नत मात्रा में स्वन असंतोष आपस्य बलाप ीय गौरव आटोप साद
  • 23. पीड्यमाना ग्नह वाताद्या युगपत्त्न कोग्नपताेः ४ आम्नान्न्न दुष्ट्न तद्वाग्नवश्य क ु वधत् । ग्नवष्टम्भयिोऽपसक ं च्यावयिो ग्नवसूग्नचकाम् ५ अर्रोत्तरमागाधभ्यां सहसैवाग्नजतात्मनेः । (अ. हृ. सू. 8/4,5,6) मात्रा स् अग्नर्क खान् स् प्रक ु ग्नपत सभी दोष उसी आम अन्न स् दबलात् हय् पुनेः एक साथ क ु ग्नपत होकर उसी दू ग्नषत आम अन्न में प्रग्नवष्ट होकर उसको रोकत् हय् अपसक को उत्पन्न करत् हैं; अथवा आम अन्न को ऊपर एवं ग्ननचप् मागध स् (वमन-ग्नवर्चन रूप में) व्गपूवधक बलााहर करत् हए असंयमी पुरुष में ग्नवसूग्नचका उत्पन्न करत् हैं |
  • 24. तत्राल्प् पङ्घनं पथ्यं, मध्य् पंघनपाचनम् प्रभूत् शोर्नं, तप्ति मूपादुन्मूपय्न्मपान् । (अ. हृ. सू. 8/21,22) शोर्न मपों को जड स् उखाड द्ता है| दोष कमध अवर दोष पङ्घन मध्यम दोष पंघन और पाचन प्रवर दोष शोर्न
  • 25. HEIGHT AGE SEX GENERAL STATE OF HEALTH JOB LEISURE TIME ACTIVITIES PHYSICAL ACTIVITIES GENETICS BODY SIZE ENVIRONMENTAL FACTORS BODY COMPOSITION WHAT MEDICATIONS YOU MAY BE TAKING
  • 26. food is taken in excess quantity food is taken in less quantity Obesity Kwashiorkor/Marasmus Cardiovascular diseases including Coronary artery disease and Hypertension Iron deficiency Diabetes Anaemia Cerebrovascular stroke Stunting, wasting especially in children