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(Hindi Translation) Bhagavad Gita Chapter - 4 : Jnan karma sanyas Yog
Articles - Bhagavad Gita - Hindi Translation
ीभगवानु वाच
इमं वव वते योगं ो वानहम ययम् ।
वव वा मनवे ाह मनु र वाकवे ऽ वीत् ॥४-१॥
इस अ यय योगा को मै ने वव वान को बताया। वव वान ने इसे मनु को कहा।
और मनु ने इसे इ वाक को बताया॥
एवं पर परा ा ममं राजषयो वदु ः।
स काले ने ह महता योगो न ः पर तप॥४-२॥
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हे पर तप, इस तरह यह योगा पर परा से राजष य को ा होती रह । ले कन
जै से जै से समय बीतता गया, बहु त समय बाद, इसका ान न हो गया॥
स एवायं मया ते ऽ योगः ो ः पु रातनः।
भ ोऽ स मे सखा चे त रह यं ेतदु मम् ॥४-३॥
वह पु रातन योगा को मै ने आज फर तु हे बताया है । तु म मे रे
भ हो, मे रे म हो और यह योगा एक उ म रह य है ॥
अजु न उवाच
अपरं भवतो ज म परं ज म वव वतः।
कथमे ति जानीयां वमादौ ो वा न त॥४-४॥
आपका ज म तो अभी हु आ है , वव वान तो बहु त पहले हु ऐ ह। कै से म
यह समझूँ क आप ने इसे शु मे बताया था॥
ीभगवानु वाच
बहू न मे यतीता न ज मा न तव चाजु न।
ता यहं वे द सवा ण न वं वे थ पर तप॥४-५॥
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अजु न, मे रे बहु त से ज म बीत चु के ह और तु हारे भी। उन सब को
म तो जानता हूँ पर तु म नह ं जानते , हे पर तप॥
अजोऽ प स यया मा भू तानामी रोऽ प सन् ।
कृ तं वाम ध ाय सं भवा या ममायया॥४-६॥
य प म अज मा और अ यय, सभी जीव का महे र हूँ ,
त प म अपनी कृ त को अपने वश म कर अपनी माया से ह
सं भव होता हूँ ॥
यदा यदा ह धम य ला नभव त भारत।
अ यु थानमधम य तदा मानं सृ जा यहम् ॥४-७॥
हे भारत, जब जब धम का लोप होता है , और अधम बढता है , तब तब म
सवयं म सवयं क रचना करता हूँ ॥
प र ाणाय साधू नां वनाशाय च दु कृ ताम् ।
धमसं थापनाथाय स भवा म यु गे यु गे ॥४-८॥
साधू पु ष के क याण के लये , और दु क मय के वनाश के लये ,
तथा धम क थापना के लये म यु ग योग मे ज म ले ता हूँ ॥
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ज म कम च मे द यमे वं यो वे ि त वतः।
य वा दे हं पु नज म नै त मामे त सोऽजु न॥४-९॥
मे रे ज म और कम द य ह, इसे जो सारवत जानता है ,
दे ह को यागने के बाद उसका पु नज म नह ं होता, बि क वो
मे रे पास आता है , हे अजु न॥
वीतरागभय ोधा म मया मामु पा ताः।
बहवो ानतपसा पू ता म ावमागताः॥४-१०॥
लगाव, भय और ोध से मु , मु झ म मन लगाये हु ऐ, मे रा ह
आ य लये लोग, ान और तप से प व हो, मे रे पास पहुँ चते ह॥
ये यथा मां प ते तां तथै व भजा यहम् ।
मम व मानु वत ते मनु याः पाथ सवशः॥४-११॥
जो मे रे पास जै से आता है , म उसे वै से ह मलता हूँ । हे पाथ,
सभी मनु य हर कार से मे रा ह अनु गमन करते ह॥
का तः कमणां सि ं यज त इह दे वताः।
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का तः कमणां सि ं यज त इह दे वताः।
ं ह मानु षे लोके सि भव त कमजा॥४-१२॥
जो कये काम मे सफलता चाहते ह वो दे वताओ का पू जन करते ह। इस
मनु य लोक म कम ं से सफलता शी ह मलती है ॥
चातु व य मया सृ ं गु णकम वभागशः।
त य कतारम प मां व यकतारम ययम् ॥४-१३॥
ये जार वण मे रे ारा ह रचे गये थे , गु ण और कम ं के
वभाग के आधार पर। इन कम ं का कता होते हु ऐ भी
प रवतन र हत मु झ को तु म अकता ह जानो॥
न मां कमा ण ल पि त न मे कमफले पृ हा।
इ त मां योऽ भजाना त कम भन स ब यते ॥४-१४॥
न मु झे कम रं गते ह और न ह मु झ म कम ं के फल के लये कोई इ छा है ।
जो मु झे इस कार जानता है , उसे कम नह ं बाँधते ॥
एवं ा वा कृ तं कम पू वर प मु मु ु भः।
कु कमव त मा वं पू वः पू वतरं कृ तम् ॥४-१५॥
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पहले भी यह जान कर ह मो क इ छा रखने वाले कम
करते थे । इस लये तु म भी कम करो, जै से पू व ं ने पु रातन समय
म कये ॥
कं कम कमकम त कवयोऽ य मो हताः।
त े कम व या म य ा वा मो यसे ऽशु भात् ॥४-१६॥
कम कया है और अकम कया है , व ान भी इस के बारे म
मो हत ह। तु हे म कम कया है , ये बताता हूँ जसे जानकर
तु म अशु भ से मु ि पा लोगे ॥
कमणो प बो यं बो यं च वकमणः।
अकमण बो यं गहना कमणो ग तः॥४-१७॥
कम को जानना ज र है और न करने लायक कम को भी।
अकम को भी जानना ज र है , य क कम रह यमयी है ॥
कम यकम यः प ये दकम ण च कम यः।
स बु ि मा मनु ये षु स यु ः कृ कमकृ त् ॥४-१८॥
कम करने मे जो अकम दे खता है , और कम न करने मे भी
जो कम होता दे खता है , वह मनु य बु ि मान है और इसी
बु ि से यु होकर वो अपने सभी कम करता है ॥
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य य सव समार भाः कामसं क पव जताः।
ानाि द धकमाणं तमाहु ः पि डतं बु धाः॥४-१९॥
जसके ारा आर भ कया सब कु छ इ छा सं क प से
मु होता है , जसके सभी कम ान पी अि म जल
कर राख हो गये ह, उसे ानमं द लोग बु ि मान कहते ह॥
य वा कमफलास ं न यतृ ो नरा यः।
कम य भ वृ ोऽ प नै व कं च करो त सः॥४-२०॥
कम के फल से लगाव याग कर, सदा तृ और आ यह न रहने वाला,
कम मे लगा हु आ होकर भी, कभी कु छ नह ं करता है ॥
नराशीयत च ा मा य सवप र हः।
शार रं के वलं कम कु व ा ो त कि बषम् ॥४-२१॥
मोघ आशाओं से मु , अपने चत और आ मा को वश म
कर, घर स पि आ द मन सक प र ह को याग, जो
के वल शर र से कम करता है , वो कम करते हु ऐ भी पाप नह ं
ा करता॥
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य छालाभसं तु ो ातीतो वम सरः।
समः स ाव स ौ च कृ वा प न नब यते ॥४-२२॥
सवयं म ह चल कर आये लाभ से ह स तु , ि ता से ऊपर उठा हु आ,
और दमागी जलन से मु , जो सफलता असफलता मे एक सा है , वो
काय करता हु आ भी नह ं बँ धता॥
गतस य मु य ानावि थतचे तसः।
य ायाचरतः कम सम ं वल यते ॥४-२३॥
सं ग छोड़ जो मु हो चु का है , जसका चत ान म ि थत है ,
जो के वल य के लये कम कर रहा है , उसके सं पू ण कम पू र
तरह न हो जाते ह॥
ापणं ह व ा ौ णा हु तम् ।
ैव ते न ग त यं कमसमा धना॥४-२४॥
ह अपण करने का साधन है , ह जो अपण हो रहा है वो है ,
ह वो अि है जसमे अपण कया जा रहा है , और अपण करने
वाला भी ह है । इस कार कम करते समय जो मे समा धत ह,
वे को ह ा करते ह॥
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दै वमे वापरे य ं यो गनः पयु पासते ।
ा ावपरे य ं य ेनै वोपजु त॥४-२५॥
कु छ योगी य के ारा दे व क पू जा करते ह।
और कु छ क ह अि मे य क आहु त दे ते ह॥
ो ाद नीि या य ये सं यमाि षु जु त।
श दाद ि वषयान य इि याि षु जु त॥४-२६॥
अ य सु नने आ द इि य क सं यम अि मे आहु त दे ते ह।
और अ य श दा द वषय क इि य पी अि मे आहू त दे ते ह॥
सवाणीि यकमा ण ाणकमा ण चापरे ।
आ मसं यमयोगा ौ जु त ानद पते ॥४-२७॥
और दू सरे कोई, सभी इि य और ाण को कम मे लगा कर,
आ म सं यम ारा, ान से जल रह , योग अि मे अ पत करते ह
यय ा तपोय ा योगय ा तथापरे ।
वा याय ानय ा यतयः सं शत ताः॥४-२८॥
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इस कार कोई धन पदाथ ं ारा य करते ह, कोई तप ारा य करते ह,
कोई कम योग ारा य करते ह और कोई वा याय ारा ान य करते ह,
अपने अपने त का सावधा न से पालन करते हु ऐ॥
अपाने जु त ाणं ाणे ऽपानं तथापरे ।
ाणापानगती वा ाणायामपरायणाः॥४-२९॥
और भी कई, अपान म ाण को अ पत कर और ाण मे अपान को अ पत कर,
इस कार ाण और अपान क ग तय को नय मत कर, ाणायाम मे लगते है ॥
अपरे नयताहाराः ाणा ाणे षु जु त।
सवऽ ये ते य वदो य पतक मषाः॥४-३०॥
अ य कु छ, अहार न ले कर, ाण को ाण मे अ पत करते ह।
ये सभी ह , य ारा ीण पाप हु ऐ, य को जानने वाले ह॥
य श ामृ तभु जो याि त सनातनम् ।
नायं लोकोऽ यय य कु तोऽ यः कु स म॥४-३१॥
य से उ प इस अमृ त का जो पान करते ह अथात जो य कर
पाप को ीण कर उससे उ प शाि त को ा करते ह, वे सनातन
को ा करते ह। जो य नह ं करता, उसके लये यह लोक ह
सु खमयी नह ं है , तो और कोई लोक भी कै से हो सकता है , हे कु स म॥
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एवं बहु वधा य ा वतता णो मु खे ।
कमजाि वि ता सवाने वं ा वा वमो यसे ॥४-३२॥
इस कार से बहु त से य का वधान हु आ। इन सभी
को तु म कम से उ प हु आ जानो और ऍसा जान जाने पर
तु म भी कम से मो पा जाओगे ॥
ेया यमया ा ानय ः पर तप।
सव कमािखलं पाथ ाने प रसमा यते ॥४-३३॥
हे पर तप, धन आ द पदाथ ं के य से ान य यादा अ छा है ।
सारे कम पू ण प से ान मल जाने पर अ त पाते ह॥
ति ि णपाते न प र ेन से वया।
उपदे यि त ते ानं ा नन त वद शनः॥४-३४॥
सार को जानने वाले ानमं द को तु म णाम करो, उनसे शन
करो और उनक से वा करो॥वे तु हे ान मे उपदे श दगे ॥
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य ा वा न पु नम हमे वं या य स पा डव।
ये न भू ता यशे षे ण य या म यथो म य॥४-३५॥
हे पा डव, उस ान म, जसे जान ले ने पर तु म फर से मो हत
नह ं होगे , और अशे ष सभी जीव को तु म अपने म अ यथा मु झ मे
दे खोगे ॥
अ प चे द स पापे यः सव यः पापकृ मः।
सव ान लवे नै व वृ जनं स त र य स॥४-३६॥
य द तु म सभी पाप करने वाल से भी अ धक पापी हो, तब भी
ान पी नाव ारा तु म उन सब पाप को पार कर जाओगे ॥
यथै धां स स म ोऽि भ मसा कु ते ऽजु न।
ानाि ः सवकमा ण भ मसा कु ते तथा॥४-३७॥
जै से समृ अि भ म कर डालती है , हे अजु न, उसी कार
ान अि सभी कम ं को भ म कर डालती है ॥
न ह ाने न स शं प व मह व ते ।
त वयं योगसं स ः काले ना म न व द त॥४-३८॥
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ान से अ धक प व इस सं सार पर और कु छ नह ं है । तु म
सवयं म ह , योग म स हो जाने पर, समय के साथ अपनी आ मा
म ान को ा करोगे ॥
ावाँ लभते ानं त परः सं यते ि यः।
ानं ल वा परां शाि तम चरे णा धग छ त॥४-३९॥
ा रखने वाले , अपनी इि य का सं यम कर ान लभते ह।
और ान मल जाने पर, जलद ह परम शाि त को ा होते ह॥
अ ा धान सं शया मा वन य त।
नायं लोकोऽि त न परो न सु खं सं शया मनः॥४-४०॥
ानह न और ाह न, शं काओं मे डू बी आ मा वाल का वनाश हो जाता है ।
न उनके लये ये लोक है , न कोई और न ह शं का म डू बी आ मा को कोई
सु ख है ॥
योगसं य तकमाणं ानसं छ सं शयम् ।
आ मव तं न कमा ण नब ि त धनं जय॥४-४१॥
योग ारा कम ं का याग कये हु आ, ान ारा शं काओं को छ भ कया हु आ,
आ म मे ि थत यि को कम नह ं बाँधते , हे धनं जय॥
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त माद ानस भू तं थं ाना सना मनः।
छ वै नं सं शयं योगमा त ोि भारत॥४-४२॥
इस लये अ ान से ज मे इस सं शय को जो तु हारे दय मे
घर कया हु आ है , ान पी त वार से चीर डालो, और योग को धारण
कर उठो हे भारत॥
Valid XHTML and CSS.
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  • 2. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API हे पर तप, इस तरह यह योगा पर परा से राजष य को ा होती रह । ले कन जै से जै से समय बीतता गया, बहु त समय बाद, इसका ान न हो गया॥ स एवायं मया ते ऽ योगः ो ः पु रातनः। भ ोऽ स मे सखा चे त रह यं ेतदु मम् ॥४-३॥ वह पु रातन योगा को मै ने आज फर तु हे बताया है । तु म मे रे भ हो, मे रे म हो और यह योगा एक उ म रह य है ॥ अजु न उवाच अपरं भवतो ज म परं ज म वव वतः। कथमे ति जानीयां वमादौ ो वा न त॥४-४॥ आपका ज म तो अभी हु आ है , वव वान तो बहु त पहले हु ऐ ह। कै से म यह समझूँ क आप ने इसे शु मे बताया था॥ ीभगवानु वाच बहू न मे यतीता न ज मा न तव चाजु न। ता यहं वे द सवा ण न वं वे थ पर तप॥४-५॥
  • 3. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API अजु न, मे रे बहु त से ज म बीत चु के ह और तु हारे भी। उन सब को म तो जानता हूँ पर तु म नह ं जानते , हे पर तप॥ अजोऽ प स यया मा भू तानामी रोऽ प सन् । कृ तं वाम ध ाय सं भवा या ममायया॥४-६॥ य प म अज मा और अ यय, सभी जीव का महे र हूँ , त प म अपनी कृ त को अपने वश म कर अपनी माया से ह सं भव होता हूँ ॥ यदा यदा ह धम य ला नभव त भारत। अ यु थानमधम य तदा मानं सृ जा यहम् ॥४-७॥ हे भारत, जब जब धम का लोप होता है , और अधम बढता है , तब तब म सवयं म सवयं क रचना करता हूँ ॥ प र ाणाय साधू नां वनाशाय च दु कृ ताम् । धमसं थापनाथाय स भवा म यु गे यु गे ॥४-८॥ साधू पु ष के क याण के लये , और दु क मय के वनाश के लये , तथा धम क थापना के लये म यु ग योग मे ज म ले ता हूँ ॥
  • 4. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API ज म कम च मे द यमे वं यो वे ि त वतः। य वा दे हं पु नज म नै त मामे त सोऽजु न॥४-९॥ मे रे ज म और कम द य ह, इसे जो सारवत जानता है , दे ह को यागने के बाद उसका पु नज म नह ं होता, बि क वो मे रे पास आता है , हे अजु न॥ वीतरागभय ोधा म मया मामु पा ताः। बहवो ानतपसा पू ता म ावमागताः॥४-१०॥ लगाव, भय और ोध से मु , मु झ म मन लगाये हु ऐ, मे रा ह आ य लये लोग, ान और तप से प व हो, मे रे पास पहुँ चते ह॥ ये यथा मां प ते तां तथै व भजा यहम् । मम व मानु वत ते मनु याः पाथ सवशः॥४-११॥ जो मे रे पास जै से आता है , म उसे वै से ह मलता हूँ । हे पाथ, सभी मनु य हर कार से मे रा ह अनु गमन करते ह॥ का तः कमणां सि ं यज त इह दे वताः।
  • 5. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API का तः कमणां सि ं यज त इह दे वताः। ं ह मानु षे लोके सि भव त कमजा॥४-१२॥ जो कये काम मे सफलता चाहते ह वो दे वताओ का पू जन करते ह। इस मनु य लोक म कम ं से सफलता शी ह मलती है ॥ चातु व य मया सृ ं गु णकम वभागशः। त य कतारम प मां व यकतारम ययम् ॥४-१३॥ ये जार वण मे रे ारा ह रचे गये थे , गु ण और कम ं के वभाग के आधार पर। इन कम ं का कता होते हु ऐ भी प रवतन र हत मु झ को तु म अकता ह जानो॥ न मां कमा ण ल पि त न मे कमफले पृ हा। इ त मां योऽ भजाना त कम भन स ब यते ॥४-१४॥ न मु झे कम रं गते ह और न ह मु झ म कम ं के फल के लये कोई इ छा है । जो मु झे इस कार जानता है , उसे कम नह ं बाँधते ॥ एवं ा वा कृ तं कम पू वर प मु मु ु भः। कु कमव त मा वं पू वः पू वतरं कृ तम् ॥४-१५॥
  • 6. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API पहले भी यह जान कर ह मो क इ छा रखने वाले कम करते थे । इस लये तु म भी कम करो, जै से पू व ं ने पु रातन समय म कये ॥ कं कम कमकम त कवयोऽ य मो हताः। त े कम व या म य ा वा मो यसे ऽशु भात् ॥४-१६॥ कम कया है और अकम कया है , व ान भी इस के बारे म मो हत ह। तु हे म कम कया है , ये बताता हूँ जसे जानकर तु म अशु भ से मु ि पा लोगे ॥ कमणो प बो यं बो यं च वकमणः। अकमण बो यं गहना कमणो ग तः॥४-१७॥ कम को जानना ज र है और न करने लायक कम को भी। अकम को भी जानना ज र है , य क कम रह यमयी है ॥ कम यकम यः प ये दकम ण च कम यः। स बु ि मा मनु ये षु स यु ः कृ कमकृ त् ॥४-१८॥ कम करने मे जो अकम दे खता है , और कम न करने मे भी जो कम होता दे खता है , वह मनु य बु ि मान है और इसी बु ि से यु होकर वो अपने सभी कम करता है ॥
  • 7. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API य य सव समार भाः कामसं क पव जताः। ानाि द धकमाणं तमाहु ः पि डतं बु धाः॥४-१९॥ जसके ारा आर भ कया सब कु छ इ छा सं क प से मु होता है , जसके सभी कम ान पी अि म जल कर राख हो गये ह, उसे ानमं द लोग बु ि मान कहते ह॥ य वा कमफलास ं न यतृ ो नरा यः। कम य भ वृ ोऽ प नै व कं च करो त सः॥४-२०॥ कम के फल से लगाव याग कर, सदा तृ और आ यह न रहने वाला, कम मे लगा हु आ होकर भी, कभी कु छ नह ं करता है ॥ नराशीयत च ा मा य सवप र हः। शार रं के वलं कम कु व ा ो त कि बषम् ॥४-२१॥ मोघ आशाओं से मु , अपने चत और आ मा को वश म कर, घर स पि आ द मन सक प र ह को याग, जो के वल शर र से कम करता है , वो कम करते हु ऐ भी पाप नह ं ा करता॥
  • 8. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API य छालाभसं तु ो ातीतो वम सरः। समः स ाव स ौ च कृ वा प न नब यते ॥४-२२॥ सवयं म ह चल कर आये लाभ से ह स तु , ि ता से ऊपर उठा हु आ, और दमागी जलन से मु , जो सफलता असफलता मे एक सा है , वो काय करता हु आ भी नह ं बँ धता॥ गतस य मु य ानावि थतचे तसः। य ायाचरतः कम सम ं वल यते ॥४-२३॥ सं ग छोड़ जो मु हो चु का है , जसका चत ान म ि थत है , जो के वल य के लये कम कर रहा है , उसके सं पू ण कम पू र तरह न हो जाते ह॥ ापणं ह व ा ौ णा हु तम् । ैव ते न ग त यं कमसमा धना॥४-२४॥ ह अपण करने का साधन है , ह जो अपण हो रहा है वो है , ह वो अि है जसमे अपण कया जा रहा है , और अपण करने वाला भी ह है । इस कार कम करते समय जो मे समा धत ह, वे को ह ा करते ह॥
  • 9. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API दै वमे वापरे य ं यो गनः पयु पासते । ा ावपरे य ं य ेनै वोपजु त॥४-२५॥ कु छ योगी य के ारा दे व क पू जा करते ह। और कु छ क ह अि मे य क आहु त दे ते ह॥ ो ाद नीि या य ये सं यमाि षु जु त। श दाद ि वषयान य इि याि षु जु त॥४-२६॥ अ य सु नने आ द इि य क सं यम अि मे आहु त दे ते ह। और अ य श दा द वषय क इि य पी अि मे आहू त दे ते ह॥ सवाणीि यकमा ण ाणकमा ण चापरे । आ मसं यमयोगा ौ जु त ानद पते ॥४-२७॥ और दू सरे कोई, सभी इि य और ाण को कम मे लगा कर, आ म सं यम ारा, ान से जल रह , योग अि मे अ पत करते ह यय ा तपोय ा योगय ा तथापरे । वा याय ानय ा यतयः सं शत ताः॥४-२८॥
  • 10. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API इस कार कोई धन पदाथ ं ारा य करते ह, कोई तप ारा य करते ह, कोई कम योग ारा य करते ह और कोई वा याय ारा ान य करते ह, अपने अपने त का सावधा न से पालन करते हु ऐ॥ अपाने जु त ाणं ाणे ऽपानं तथापरे । ाणापानगती वा ाणायामपरायणाः॥४-२९॥ और भी कई, अपान म ाण को अ पत कर और ाण मे अपान को अ पत कर, इस कार ाण और अपान क ग तय को नय मत कर, ाणायाम मे लगते है ॥ अपरे नयताहाराः ाणा ाणे षु जु त। सवऽ ये ते य वदो य पतक मषाः॥४-३०॥ अ य कु छ, अहार न ले कर, ाण को ाण मे अ पत करते ह। ये सभी ह , य ारा ीण पाप हु ऐ, य को जानने वाले ह॥ य श ामृ तभु जो याि त सनातनम् । नायं लोकोऽ यय य कु तोऽ यः कु स म॥४-३१॥ य से उ प इस अमृ त का जो पान करते ह अथात जो य कर पाप को ीण कर उससे उ प शाि त को ा करते ह, वे सनातन को ा करते ह। जो य नह ं करता, उसके लये यह लोक ह सु खमयी नह ं है , तो और कोई लोक भी कै से हो सकता है , हे कु स म॥
  • 11. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API एवं बहु वधा य ा वतता णो मु खे । कमजाि वि ता सवाने वं ा वा वमो यसे ॥४-३२॥ इस कार से बहु त से य का वधान हु आ। इन सभी को तु म कम से उ प हु आ जानो और ऍसा जान जाने पर तु म भी कम से मो पा जाओगे ॥ ेया यमया ा ानय ः पर तप। सव कमािखलं पाथ ाने प रसमा यते ॥४-३३॥ हे पर तप, धन आ द पदाथ ं के य से ान य यादा अ छा है । सारे कम पू ण प से ान मल जाने पर अ त पाते ह॥ ति ि णपाते न प र ेन से वया। उपदे यि त ते ानं ा नन त वद शनः॥४-३४॥ सार को जानने वाले ानमं द को तु म णाम करो, उनसे शन करो और उनक से वा करो॥वे तु हे ान मे उपदे श दगे ॥
  • 12. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API य ा वा न पु नम हमे वं या य स पा डव। ये न भू ता यशे षे ण य या म यथो म य॥४-३५॥ हे पा डव, उस ान म, जसे जान ले ने पर तु म फर से मो हत नह ं होगे , और अशे ष सभी जीव को तु म अपने म अ यथा मु झ मे दे खोगे ॥ अ प चे द स पापे यः सव यः पापकृ मः। सव ान लवे नै व वृ जनं स त र य स॥४-३६॥ य द तु म सभी पाप करने वाल से भी अ धक पापी हो, तब भी ान पी नाव ारा तु म उन सब पाप को पार कर जाओगे ॥ यथै धां स स म ोऽि भ मसा कु ते ऽजु न। ानाि ः सवकमा ण भ मसा कु ते तथा॥४-३७॥ जै से समृ अि भ म कर डालती है , हे अजु न, उसी कार ान अि सभी कम ं को भ म कर डालती है ॥ न ह ाने न स शं प व मह व ते । त वयं योगसं स ः काले ना म न व द त॥४-३८॥
  • 13. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API ान से अ धक प व इस सं सार पर और कु छ नह ं है । तु म सवयं म ह , योग म स हो जाने पर, समय के साथ अपनी आ मा म ान को ा करोगे ॥ ावाँ लभते ानं त परः सं यते ि यः। ानं ल वा परां शाि तम चरे णा धग छ त॥४-३९॥ ा रखने वाले , अपनी इि य का सं यम कर ान लभते ह। और ान मल जाने पर, जलद ह परम शाि त को ा होते ह॥ अ ा धान सं शया मा वन य त। नायं लोकोऽि त न परो न सु खं सं शया मनः॥४-४०॥ ानह न और ाह न, शं काओं मे डू बी आ मा वाल का वनाश हो जाता है । न उनके लये ये लोक है , न कोई और न ह शं का म डू बी आ मा को कोई सु ख है ॥ योगसं य तकमाणं ानसं छ सं शयम् । आ मव तं न कमा ण नब ि त धनं जय॥४-४१॥ योग ारा कम ं का याग कये हु आ, ान ारा शं काओं को छ भ कया हु आ, आ म मे ि थत यि को कम नह ं बाँधते , हे धनं जय॥
  • 14. pdfcrowd.comopen in browser PRO version Are you a developer? Try out the HTML to PDF API त माद ानस भू तं थं ाना सना मनः। छ वै नं सं शयं योगमा त ोि भारत॥४-४२॥ इस लये अ ान से ज मे इस सं शय को जो तु हारे दय मे घर कया हु आ है , ान पी त वार से चीर डालो, और योग को धारण कर उठो हे भारत॥ Valid XHTML and CSS. Bhaktisagar.net ; Site designed & developed by RSD Infosys