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आस्था के नाम पर धोखा 
प्रस्तुत लेख का मंन्तव्य साँई के प्रित आलोचना का नही बल्किल्क उनके प्रित स्पष्ट
जानकारी प्राप्त करने का है। लेख मेँ िदिये गये प्रमाणोँ की पुिष्ट व सत्यापन “साँई
सत्चिरत” से करेँ, जो लगभग प्रत्येक साईँ मिन्दिरोँ मेँ उपलब्ध है। यहाँ पौरािणक
तकोँ के द्वारा भी सत्य का िवश्लेषण िकया गया है।
आजकल आयार्यावतर्या  मेँ तथाकिथत भगवानोँ का एक दिौर चल पड़ा है। यह संसार अंधिवश्वास और तुच्छ
ख्याित- सफलता के पीछे भागने वालोँ से भरा हुआ है।
“यह िवश्वगुरू आयार्यावतर्या का पतन ही है िक आज परमेश्वर की उपासना की अपेक्षा लोग गुरूओँ, पीरोँ और
कब्रोँ पर िसर पटकना ज्यादिा पसन्दि करते हैँ।”
आजकल सवर्यात साँई बल्काबल्का की धूम है, कहीँ साँई चौकी, साँई संध्या और साँई पालकी मेँ मुिस्लम कव्वाल साँई
भक्तोँ के साथ साँई जागरण करने मेँ लगे हैँ। मिन्दिरोँ मेँ साँई की मूित सनातन काल के दिेवी दिेवताओँ के साथ
सजी है। मुिस्लम तािन्तकोँ ने भी अपने काले इल्म का आधार साँई बल्काबल्का को बल्कना रखा है व उनकी सिक्रियता
सवर्यात दिेखी जा सकती है। 
कोई इसे  िवष्णुजी  का ,कोई िशिवजी  का तथा कोई दित्तातेयजी  का अवतार बल्कताता है ।
परन्तु साँई बल्काबल्का कौन थे? उनका आचरण व व्यवहार कैसा था? इन सबल्कके िलए हमेँ िनभर्यार होना पड़ता है
“साँई सत्चिरत” पर!
• जी हाँ ,दिोस्तोँ! कोई भी ऐसा व्यिक्त नहीँ जो रामायण व महाभारत का
नाम न जानता हो? ये दिोनोँ महाग्रन्थ क्रिमशिः श्रीराम और कृष्ण के
उज्ज्वल चिरत को उत्किषत करते हैँ, उसी प्रकार साईँ के जीवनचिरत की
एकमात प्रामािणक उपलब्ध पुस्तक है- “साँईँ सत्चिरत”॥
• इस पुस्तक के अध्ययन से साईँ के िजस पिवत चिरत का अनुदिशिर्यान होता
है,
क्या आप उसे जानते हैँ?
• चाहे चीलम/तम्बल्काकू/बल्कीडी  पीने की बल्कात हो, चाहे िस्त्रियोँ को अपशिब्दि
कहने की?, चाहे बल्कातबल्कात पर क्रिोध करने की , चाहे माँसाहार की बल्कात
हो, या चाहे धमर्याद्रोही, दिेशिद्रोही व इस्लामी कट्टरपन की….
• इन सबल्ककी दिौड़ मेँ शिायदि ही कोई साँई से आगे िनकल पाये। यकीन नहीँ
होता न?
तो आइये चलकर दिेखते हैँ…
साई के 95% से अिधक भक्तो ने "साँईँ सत्चिरत" नही पढ़ी है,
वे के वल दिेख दिेखी मे इस बल्काबल्के के पीछे हो िलए!
कोई बल्कात नही हम आपको िदिखाते है सत्य क्या है। 
साई शिब्दि का अथर्या :--
"साई बल्काबल्का नाम की उत्पित्त साई शिब्दि से हुई है, जो
मुसलमानो द्वारा प्रयुक्त फारसी भाषा का शिब्दि है, िजसका अथर्या
होता है पूज्य व्यिक्त और बल्काबल्का"
यहाँ दिेखे :---
http://bharatdiscovery.org/india/िशिरडी_साई_बल्काबल्का
फारसी एक भाषा है
जो ईरान, तािजिकस्तान, अफगािनस्तान और उजबल्केिकस्तान मे
बल्कोली जाती है।
अथार्यात साई नाम(संज्ञा/noun) नही है ! िजस प्रकार मंिदिर मे पूजा आिदि
करने वाले व्यिक्त को "पुजारी" कहा जाता है परन्तु पुजारी उसका नाम
नही है !
यहाँ साई भी नाम नही अिपतु िवशिेषण (Adjective) है !
उसी प्रकार 'बल्काबल्का' शिब्दि  भी कोई नाम नही !!
सभी साई बल्काबल्का ही कहते है तो िफर इसका नाम क्या
है ??
चाँदि िमयां !!!
साई बल्काबल्का का जीवन काल 1838 से 1918 (80 वषर्या) तक था (अध्याय 10 ) , उनके जीवन
काल के मध्य हुई घटनाये जो मन मे शिंकाएं पैदिा करती हैं की क्या वो सच मे भगवान थे
, क्या वो सच मे लोगो का दिुःख दिूर कर सकते है?
1. भारतभूिम पर जबल्क-जबल्क धमर्या की हािन हुई है और अधमर्या मेँ वृिध्दि हुई है, तबल्क-तबल्क
परमेश्वर साकाररूप मेँ अवतार ग्रहण करते हैँ और तबल्क तक धरती नहीँ छोड़ते, जबल्कतक
सम्पूणर्या पृथवी अधमर्याहीन नहीँ हो जाती। लेिकन साईँ के जीवनकाल मेँ पूरा भारत
गुलामी की बल्केिड़योँ मे जकड़ा हुआ था, मात अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ से मुिक्त न िदिला
सका तो साईँ अवतार कैसे?
न ही स्वयं अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ के िवरद आवाज उठाई और न ही अपने भक्तो को
प्रेिरत िकया । इसके अितिरक्त हजारो तरह की समस्या भी थी :- गौ हत्या, भस्ताचार,
भूखमरी तथा समाज मे फै ली अन्य कुरितयाँ ! इसके िवरद भी एक शिब्दि नही
बल्कोला !! जबल्किक अपनी पूरी आयु (80 वषर्या) िजया !!
साई सच्चरिरत मे बल्कताया गया है की बल्काबल्का की  जन्म ितिथ सन 1838 के आसपास थी ।
 हम 1838 ही मान  कर चलते है । इसी िकताबल्क मे बल्कताया गया है की बल्काबल्का 16 वषर्या की
आयु मे सवर्याप्रथम िदिखाई पड़े  (अध्याय 4)
अथार्यात 1854 मे सवर्याप्रथम िदिखाई पड़े , तभी लेखक ने 1838 मे जन्म कहा है ।  झाँसी
की रानी लक्ष्मी बल्काई ने  1857 की क्रिांित मे महत्व पूणर्या योगदिान िदिया तथा लड़ते लड़ते
िवरांगना हुई ।  1857 मे बल्काबल्का की आयु 19 वषर्या के आस पास रही होगी । 
एक अवतार के  धरती पर मोजूदि होते हुए िस्त्रियो को युद क्षेत मे जाना
पड़े ???
19  वषर्या की आयु क्या युद लड़ने के िलए पयार्याप्त नही ? िशिवाजी 19 वषर्या
की आयु मे िनकल पड़े थे !!
मात 18  वषर्या की आयु मे खुदिीराम बल्कोस सन 1908 मे  स्वतंतता
संग्राम मे शिहीदि हुये  !
तो लक्ष्मी बल्काई, िशिवाजी, खुदिीराम बल्कोस आिदि अवतार नही और साई
अवतार कै से ???
और िफर क्या श्री कृ ष्ण ने युवक अवस्था मे पािपयो  को नही पछाड़ा था ?
भगवान श्री राम जी ने तड़का तथा अन्य दिेत्यो को मात 16 वषर्या की आयु मे
मारा और वहां के लोगो को सुखी व भय मुक्त िकया !
यहाँ दिेखे :--
https://www.facebook.com/photo.php?
fbid=263864090416001&set=a.239268919542185.58500.23836216
6299527&type=1&theater
• 3. राषधमर्या कहता है िक राषोत्थान व आपातकाल मेँ प्रत्येक व्यिक्त का ये कतर्याव्य होना
चािहए िक वे राष को पूणर्यातया आतंकमुक्त करने के िलए सदिैव प्रयासरत रहेँ, परन्तु
गुलामी के समय साईँ िकसी परतन्तता िवरोधक आन्दिोलन तो दिूर, न जाने कहाँ िछप
कर बल्कैठा था,जबल्किक उसके अनुयािययोँ की संख्या की भी कमी नहीँ थी, तो क्या ये दिेशि
से गदारी के लक्षण नहीँ है?
•
• 4. यिदि साँईँ चमत्कारी था तो दिेशि की गुलामी के समय कहाँ छुपकर बल्कैठा था? इस
िकताबल्क मे लाखो बल्कार साई को अवतार, अंतयार्यामी आिदि आिदि बल्कताया गया है । तो क्या
अंतयार्यामी को यह ज्ञात नही हुआ की जिलयावाला बल्काग (1919) मे हजारो िनदिोष
लोग मरने वाले है । मैं अवतार हु, कुछ तो करूँ !!
5. श्री कृ ष्ण ने तो अजुर्यान को अन्याय, पाप, अधमर्या के िवरद लड़ने को प्रिरत िकया ।
तािक पाप के अंत के पशात धरती पर शिांित स्थािपत हो सके । तो िफर साई ने अपने
हजारो भक्तो को अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ के िखलाफ खड़ा कर उनका मागर्यादिशिर्यान क्यू नही
िकया ?
6. एक और राहता (दििक्षण मे) तथा दिूसरी और नीमगाँव (उत्तर मे) थे ।
िबल्कच मे था िशिडी । बल्काबल्का अपने जीवन काल मे इन सीमाओं से बल्कहार नही
गये (अध्याय 8)
एक और पूरा दिेशि अंग्रेजो से तस्त था पुरे दिेशि से सभी जन समय   समय  
अंग्रेजो के िवरद होते रहे, िपटते रहे , मरते रहे ।  और बल्काबल्का है की इस
सीमाओं से पार भी नही गये । जबल्किक श्री राम ने जंगलो मे घूम घूम कर
दिेत्यो का नाशि िकया । श्री राम तथा कृष्ण ने सदिेव कमर्याठ बल्कनने का मागर्या
िदिखाया । इसके िवपरीत आचरण करने वाला साई, श्री कृष्ण आिदि का
अवतार कैसे ????
7 . उस समय श्री कृष्ण की िप्रय गऊ माताएं कटती थी क्या कभी ये
उसके िवरद बल्कोला ?
• 8. भारत का सबल्कसे बल्कड़ा अकाल साई बल्काबल्का के जीवन के दिौरान पड़ा
• >(अ ) 1866 मे ओिड़सा के अकाल मे लगभग ढाई लाख भूंख से मर गए
• >(बल्क) 1873 -74 मे िबल्कहार के अकाल मे लगभग एक लाख लोग प्रभािवत हुए ….भूख के कारण
लोगो मे इंसािनयत खत्म हो गयी थी|
• >(स ) 1875 -1902 मे भारत का सबल्कसे बल्कड़ा अकाल पड़ा िजसमे लगभग 6 लाख लोग मरे गएँ|
•
• साई बल्काबल्का ने इन लाखो लोगो को अकाल से क्यूँ पीिड़त होने िदिया यिदि वो भगवान या
चमत्कारी थे? क्यूँ इन लाखो लोगो को भूंख से तड़प -तड़प कर मरने िदिया?
•
• 9 . साई बल्काबल्का के जीवन काल के दिौरान बल्कड़े भूकंप आये िजनमे हजारो लोग मरे गए
• (अ ) १८९७ जून िशिलांग मे
• (बल्क) १९०५ अप्रैल काँगड़ा मे
• (स) १९१८ जुलाई श्री मंगल असाम मे
साई बल्काबल्का भगवान होते हुए भी इन भूकम्पो को क्यूँ नही रोक पाए?…क्यूँ हजारो को असमय
मारने िदिया ?
10. एक कथा के अनुसार संत ितरवल्लुवर एक बल्कार एक गाँव मे गये "वहां उन्होने अपना
अपमान करने वालो को आबल्कादि रहो तथा सम्मान करने वालो को उजड़ जाओ " का
आशिीवार्यादि िदिया । जबल्क उन्हे इस आशिीवार्यादि का रहस्य पूछा गया तो उन्होने कहा
जो सत्पुरष है वे यिदि उजड़ जायेगे तो वे अपने ज्ञान का प्रकाशि जहाँ जहाँ जायेगे वहां
वहां फे लायेगे । िकन्तु साई तो एक ही जगह िचपक कर बल्कैठे रहे । ज्ञान का प्रकाशि एक
छोटे से गाँव तक ही िसिमत रहा !!
जबल्किक स्वामी िववेकानंदि आिदि ने भारतीय संस्कृित, योग, वेदि आिदि को िवदिेशिो तक
पहुँचाया ! जबल्क उन्होने िशिकागो मे (1893 ) प्रथम भाषण िदिया, िनकोल टेस्ला,
श्रोडेगर, आइंस्टीन, नील्स बल्कोहर जैसे जानेमाने वैज्ञािनक और अन्य हजारो लोग उनके
भक्त बल्कन गये । उस समय स्वामी जी मात 33 वषर्या के थे और बल्काबल्का 55 वषर्या के !
महापुरष का जीवन भटकाऊ होता है वो एक जगह सुस्त पड़ा नही रहता !
तो िववेकानंदि अवतार नही और साई अवतार कैसे ??
http://www.teslasociety.com/tesla_and_swami.htm
• B. साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं जीवहत्या
करता था!
१ मैं मिस्जदि मे एक बल्ककरा हलाल करने वाला हँ, बल्काबल्का ने शिामा से कहा
हाजी से पुछो उसे क्या रिचकर होगा - "बल्ककरे का मांस, नाध या
अंडकोष ?"
-अध्याय ११
(1)मिस्जदि मेँ एक बल्ककरा बल्किल दिेने के िलए लाया गया। वह अत्यन्त दिुबल्कर्याल
और मरने वाला था। बल्काबल्का ने उनसे चाकू लाकर बल्ककरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष 161.
(2)तबल्क बल्काबल्का ने काकासाहेबल्क से कहा िक मैँ स्वयं ही बल्किल चढ़ाने का कायर्या
करूँ गा।
-:अध्याय 23. पृष 162.
(3)फकीरोँ के साथ वो आिमष(मांस) और मछली का सेवन करते
थे।-:अध्याय 5. व 7.
• (4)कभी वे मीठे चावल बल्कनाते और कभी मांसिमिश्रत चावल अथार्यात् नमकीन पुलाव।
• -:अध्याय 38. पृष 269.
•
• (5)एक एकादिशिी के िदिन उन्होँने दिादिा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीदि लाने को
िदिये। दिादिा पूरे कमर्याकाणडी थे और प्रायः सभी िनयमोँ का जीवन मेँ पालन िकया करते
थे।
• -:अध्याय 32. पृषः 270.
•
• (6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दिादिा से कहा िक दिेखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका
है? दिादिा ने योँ ही मुँहदिेखी कह िदिया िक अच्छा है। तबल्क बल्काबल्का कहने लगे िक तुमने न
अपनी आँखोँ से ही दिेखा है और न ही िजहवा से स्वादि िलया, िफर तुमने यह कैसे कह
िदिया िक उत्तम बल्कना है? थोड़ा ढकन हटाकर तो दिेखो। बल्काबल्का ने दिादिा की बल्काँह पकड़ी
और बल्कलपूवर्याक बल्कतर्यान मेँ डालकर बल्कोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर
दिेखो”।
• -:अध्याय 38. पृष 270.
• अबल्क जरा सोचे :--
•
• {1}क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँकहे जाते?
• {2}क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर िजहवा के स्वादि के िलए बल्केजुबल्कान नीरीह
जीवोँ का मारा जाना उिचत होगा?
• {3}सनातन धमर्या के अनुसार जीवहत्या पाप है।
• तो क्या साँई पापी नहीँ?
• {4}एक पापी िजसको स्वयं क्षणभंगुर िजहवा के स्वादि की तृष्णा थी, क्या वो आपको
मोक्ष का स्वादि चखा पायेगा?
• {5}तो क्या ऐसे नीचकमर्या करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे?
यातयामं गतरसं पूित पयुर्यािषतं च यत् ।
उिच्छष्टमिप चामेध्यं भोजनं तामसिप्रयम् ....गीता १७/१
• जो भोजन अधपका, रसरिहत, दिुगर्यान्धयुक्त, बल्कासी और उिच्छष्ट है तथा जो
अपिवत(मांस आिदि) भी है, वह भोजन तामस(अधम) पुरषो को िप्रय होते हैं ।
• यः पौरषेयेण किवषा समङके यो अशवेन पशुना यातुधानः 
यो अघनयाया भरित कीरमगे तेषां शीषारिण हरसािप वृश (ऋगवेद-10:87:16)
मनुष्य, अश्व या अनय पशुओं के मांस से पेट भरने वाले तथा दूध देने वाली अघनया गायों का िवनाश करने
वालों को कठोरतम दण्ड देना चािहए |
•
• य आमं मांसमदिनत पौरषेयं च ये किव: !
गभारन खादिनत के शवासतािनतो नाशयामिस !! (अथवरवेद- 8:6:23)
जो कच्चा माँस खाते है, जो मनुष्यों द्वारा पकाया हुआ माँस खाते है, जो गभर रप अंडों का सेवन करते है, उन के
इस दुष्ट वसन का नाश करो !
•
• अघनया यजमानसय पशूनपािह (यजुवेद-1:1)
हे मनुष्यों ! पशु अघनय है – कभी न मारने योगय, पशुओं की रका करो |
•
• अनुमंता िवशिसता िनहनता कयिवकयी ।
संसकतार चोपहतार च खादकशेित घातका: ॥ (मनुसमृित- 5:51)
मारने की आज्ञा देने, मांस के काटने, पशु आिद के मारने, उनको मारने के िलए लेने और बेचने, मांस के पकाने,
परोसने और खाने वाले - ये आठों प्रकार के मनुष्य घातक, िहसक अथारत् ये सब एक समान पापी है ।
•
• मां स भकियताऽमुत यसय मांसिमहाद् मयहम्। 
एततमांससय मांसतवं प्रवदिनत मनीिषणः॥ (मनुसमृित- 5:55)
िजस प्राणी को हे मनुष्य तूं इस जीवन में खायेगा, अगामी(अगले) जीवन मे वह प्राणी तुझे खायेगा।
• सारे वैिदक िनयम भंग करने वाला ये दुष्ट/मुरख  संत कहलाने योगय भी नही !
कया ऐसे पापी को पहले ही पने पर वेद माता  सरसवती (ज्ञान की देवी) के तुलय
बना देना उिचत है ?
• C. साँई िहनदू है या मुिसलम? व कया िहनदू- मुिसलम एकता का प्रतीक है?
•
• साँई िहनदू है या मुिसलम? व कया िहनदू- मुिसलम एकता का
प्रतीक है?
•
कई साँईभक अंधशधदा मेँ डू बकर कहते हैँ िक साँई न तो िहनदू
थे और न ही मुिसलम। इसके िलए अगर उनके जीवन चिरत का
प्रमाण देँ तो दुरागह वश उसके भक कु तको ँ की झिडयाँ लगा
देते हैँ।
ऐसे मेँ अगर साँई खुद को मुलला होना सवीकार करे तो मुदेभक
कया कहना चाहेँगे?
जी, हाँ!
• (1)िशरडी पहुँचने पर जब वह मिसजद मेँ घुसा तो बाबा अतयनत कोिधत हो गये और
उसे उनहोने मिसजद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गजरन कर कहने लगे िक इसे बाहर
िनकाल दो। िफर मेधा की ओर देखकर कहने लगे िक तुम तो एक उच्च कुलीन बाहण
हो और मैँ िनम जाित का यवन (मुसलमान)। तुमहारी जाित भष्ट हो जायेगी।
-:अधयाय 28. पृष 197.
•
(2)मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुिसलम, िहनदू साधू कहे जाते
हैँ फकीर नहीँ) हँ।मुझे गंगाजल से कया प्रायोजन?
-:अधयाय 32. पृष 228.
शी कृष्ण के अवतार को गंगा जल प्राणिप्रय नही होगा ?
•
(3)महाराष मेँ िशरडी साँई मिनदर मेँ गायी जाने वाली आरती का अंश-
“गोपीचंदा मंदा तवांची उदिरले!
मोमीन वंशी जनमुनी लोँका तािरले!”
•
उपरोक आरती मेँ “मोमीन” अथारत् मुसलमान शबद सपष्ट आया है।
• (4)मुिसलम होने के कारण माँसाहार आिद का सेवन करना उनकी पहली पसनद थी।
•
अब जरा सोचे :--
•
{1}साँई िजनदगी भर एक मिसजद मेँ रहा, कया इससे भी वह मुिसलम िसधद नहीँ हुआ? यिद वह वासतव मेँ
िहनदू मुिसलम एकता का प्रतीक होता तो उसे मिनदर मेँ रहने मेँ कया बुराई थी?
•
{2}िसर से पाँव तक इसलामी वस, िसर को हमेशा मुिसलम पिरधान कफनी मेँ बाँधकर रखना व एक लमबी
दाढी, यिद वो िहनदू मुिसलम एकता का प्रतीक होता तो उसे ऐसे ढोँग करने की कया आवशयकता थी? कया ये
मुिसलम कटरता के लकण नहीँ हैँ?
•
{3}वह िजनदगी भर एक मिसजद मेँ रहा, परनतु उसकी िजद थी की मरणोपरानत उसे एक मिनदर मेँ
दफना िदया जाये, कया ये नयाय अथवा धमर संगत है? “धयान रहे ताजमहल जैसी अनेक िहनदू मिनदरेँ व
इमारते ऐसी ही कटरता की बली चढ चुकी हैँ।”
•
"ताजमहल के सनदभर में भी िबलकुल ऐसा ही हुआ था , जब शाहजहाँ ने अपनी पती के शव को महाराजा
मानिसह के मंिदर तेजो महालय (िशव मंिदर) में लाकर पटक िदया और बलपूवरक तथा छलपूवरक वही गाड
कर दम िलया"
इस प्रकार वो मंिदर भी एक कब बन कर रहा गया और ये मंिदर भी !
यहाँ देखें --->
• http://www.vedicbharat.com/2013/03/truth-about-taj-mahal---its-tejo-mahalaya.html
• {4}उसका अपना विकगत जीवन कुरान व अल-फतीहा का पाठ करने
मेँ वतीत हुआ, वेद व गीता नहीँ?, तो कया वो अब भी िहनदू मुिसलम
एकता का सूत होने का हक रखता है?
•
{5}उसका सवरप्रमुख कथन था “अललाह मािलक है।” परनतु मृतयुपशात्
उसके िद्वतीय कथन “सबका मािलक एक है” को एक िवशेष नीित के
तहत िसके के जोर पर प्रसािरत िकया गया। यिद ऐसा होता तो उसने
ईश्वर-अललाह के एक होने की बात कयोँ नही ँ की? कभी नही
कही !!
"उनके होठों पर अललाह मािलक रहता था" ऐसा इस िकताब में पचासों
जगह आया है !
और िफर फकीर मुिसलम होता है, िहनदू साधू !
• D. साँई िहनदू- मुिसलम एकता सथािपत करने में पूरी तरह असफल रहे !!!!
१ हम सभी जानते है की 1906 में भारत में मुिसलम लीग की सथापना हुई !
िजसमे मुिसलम समुदाय ने सवयं को भारत से पृथक करने का मत प्रकट िकया तथािप मुहममद
अली िजना ने इसका नेतृतव िकया ॥
1906 में तो बाबा जीिवत थे, 68 वषर के थे ! तो िफर बाबा के रहते ये िवचार शांत कयू नही
िकया गया ? बाबा ने िहनदू भाई- मुिसलम भाई को एक साथ प्रेम पूवरक रहने को प्रेिरत कयू नही
िकया ?? कया अंतयारमी बाबा को यह ज्ञात नही था की इसका पिरणाम अमंगलकारी होगा !!
• २. यिद आप यह सोचते है की साई केवल िहनदू मुिसलम एकता सथािपत करने हेतु ही अवतीणर
हुए तो िफर सन 1947 में , िहनदुसथान -पािकसथान कयू बन गया ?? इसका अिभप्राय
बाबा िहनदू मुिसलम एकता सथािपत करने में भी पूणरतया असफल रहे । और यिद असफल नही
रहे तो उनकी मृतयु के मात 29 वषर पशात ही भारत के दो टुकडे कयू हुए ? बाबा के इतने प्रयास
के बाद भी िहनदू भाई - मुसलमान भाई एक साथ प्रेम से कयू न रह सके ?? साई के
आदशर मात 29 वषो में ही खंिडत हो गये ???
• E. साई िसयों को अपशबद कहा करता था ।
•
1.बाबा एक िदन गेहं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकितत
हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चकी ले ली और खुद गेहं
िपसना प्रारंभ कर िदया. पहले तो बाबा कोिधत हुए िफर मुसकुराने
लगे. जब गेंहँ पीस गए तो उन िसयों ने सोचा की गेहं का बाबा कया
करेंगे और उनहोंने उस िपसे हुए गेंह को आपस में बाँट िलया. ये देखकर
बाबा अतयंत कोिधत हो उठे और अपसबद कहने लगे -” िसयों कया तुम
पागल हो गयी हो? तुम िकसके बाप का मॉल हडपकर ले जा
रही हो? कया कोई कजरदार का माल है जो इतनी आसानी से
उठा कर िलए जा रही हो ?” िफर उनहोंने कहा की आटे को ले जा
कर गाँव की सीमा पर दाल दो. उन िदनों गाँव में हैजे का प्रकोप था और
इस आटे को गाँव की सीमा पर डालते ही गाँव में हैजा खतम हो गया.
(अधयाय 1 साई सतचिरत )
पहले तो िसयों को गाली दी ! ! िफर  आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर
दाल देने को कहा ! ये दोनों बाते जम नही रही ! यिद आटा िसयों को
देना ही था तो गाली कयू दी ? या िफर गाली मुह से िनकल
जाने के पशात ये भान हुआ  की, अरे ये मैने कया कह िदया ! ये
हरकतें अवतार तो दूर, संत की भी नही  !!
आटा  गाँव के चरों और डालने से कैसे हैजा दूर हो सकता है? िफर इन
भगवान्  ने केवल िशडी में ही फै ली हुयी बीमारी  के बारे में ही कयूँ सोचा
? कया ये केवल िशडी के ही भगवन थे?
2. वे कभी प्रेम दिष्ट से देखते तो कभी पतथर मारते , कभी गािलयाँ देते
और कभी हदय से लगा लेते । अधयाय १०
3.बाबा को समिपत करने के िलए अिधक मूलय वाले पदाथर लाने वालो
से बाबा अित कोिधत हो जाते और अपशबद कहने लगते । अधयाय १४
• F. बाबा बात बात पर कोिधत हो जाता था !
•
1. जैसा की आप ऊपर देख ही चुके है की िसयों द्वारा आटा लेते ही
वे कोिधत हो गये !
• 2. जब जब िशडी में कोई निवन कायरकम रचा जाता तब बाबा कुिपत
हो ही जाया करते थे । (अधयाय 6)
• 3. बाबा के भक उनकी मिसजद का जीणोधार करवाना चाहते थे जब बाबा से आज्ञा
मांगी तब पहले बाबा ने सवीकृित नही दी ततपशात एक सथानीय भक के आगह पर
सवीकृित दी । भकों ने कायर आरमभ करवाया । िदन रात पिरशम कर भकों ने लोहे के
खमभे जमी में गाडे । जब दुसरे िदन बाबा चावडी से लौटे तब उनहोंने उन खमभों को
उखाड कर फें क िदया और अित कोिधत हो गये । वे एक हाथ से खमभा
पकड कर उखाडने लगे और दुसरे हाथ से उनहोंने तातया का सफा उतार
िलया और उसमे आग लगा कर उसे गडे में फें क िदया । बाबा के एक भक कु छ
साहस कर आगे बडे बाबा ने धका दे िदया । एक अनय भक पर बाबा ईट के
ढेले फें कने लगे । और िफर शांत होने पर दुकान से एक साफा खरीद कर
तातया को पहनाया । अधयाय 6
•
ठीक उसी प्रकार जैसे आटा लेने पर बाबा ने िसयों को अपशबद कहे और बाद में
कहा आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो।
• यहाँ भी बाबा जी ने पहले तातया को धोया िफर उसे नया साफा पहनाया ।
• 4 अनायास ही बाबा िबना िकसी कारन कोिधत हो जाया करते थे । अधयाय 6
• 5 बाबा अपने भकों को उनकी इचछा अनुसार पूजन करने देते परनतु कभी कभी वे पूजन थाली फें क
कर अित कोिधत हो जाते । कभी वे भकों को िझडकते तथा कभी शांत हो जाते । अधयाय 11
• काश बाबा जी सवयं की पूजा से कभी समय िनकाल कर देश के िहत में भी कुछ करते !!
6 . मिसजद में फशर बनाने की सवीकृित बाबा से िमल चुकी थी , परनतु जब कायर प्रारंभ हुआ बाबा
कोिधत हो गये और उतेिजत हो कर िचललाने लगे , िजससे भगदड मच गई ! अधयाय 13
•
• 7. िशरडी पहुँचने पर जब वह मिसजद मेँ घुसा तो बाबा अतयनत कोिधत हो गये और उसे उनहोने
मिसजद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गजरन कर कहने लगे िक इसे बाहर िनकाल दो। अधयाय 28
•
बेवजह बात बात पर कोिधत होने वाला व् अपशबद कहने वाला अवतार तो दूर, एक
संत/िसद पुरष भी नही होता । जबिक इस िकताब के अनुसार इसने सवयं को जीतेजी
पुजवा िलया !
दुःखेष्वनुिद्वगमनाः सुखेषु िवगतसपृहः ।
वीतरागभयकोधः िसथतधीमुरिनरचयते  ---- गीता  २/५ ६ 
• G. िवचारणीय िबदु :--
1. मानयवर सोचने की बात है की ये कैसे भगवन है जो िसयों को गािलयाँ िदया करते
है हमारी संसकृित में तो िसयों को सममान की दृिष्ट से देखा जाता है और कहागया है
की यत नायरसतु पुजनते रमनते तत देवता .
• 2. साई सतचिरत के लेखक ने इनहें कृष्ण का अवतार बताया गया है और कहा गया है
की पािपयों का नाश करने के िलए उतपन हुए थे परनतु इनही के समय में प्रथम िवश्व
युधध हुआ था और केवल यूरोप के ही ८० लाख सैिनक इस युधद में मरे गए थे और
जमरनी के ७.५ लाख लोग भूख की वजह से मर गए थे. तब ये भगवन कहाँ थे.
(अधयाय 4 साई सतचिरत )
खेर दुिनया की तो बात ही छोडो "भारत" के िलए ही बाबा ने कया िकया?? पुरे देश में
अंगेजों का आतंक था भारतवासी वेवजह मार खा रहे थे !
• 4. 1918 में साई बाबा की मृतयु हो गयी.
अतयंत आशयर की बात है की जो इश्वर अजनमा है
अिवनाशी है वो बीमारी से मर गया. भारतवषर में िजस समय
अंगेज कहर धा रहे थे. िनदोषों को मारा जा रहा था अनेकों
प्रकार की यातनाएं दी जा रही थी अनिगनत बुराइयाँ समाज
में वाप थी उस समय तथाकिथत भगवन िबना कुछ िकये ही
अपने लोक को वापस चले गए. हो सकता है की बाबा की
नजरों में भारत के सवतंतता सेनानी अपराधी थे और
िबिटश समाज सुधारक !
•
H.अनय कारनामे :--
1 साई बाबा िचलम भी पीते थे. एक बार बाबा ने अपने िचमटे को जमी मे घुसाया
और उसमे से अंगारा बहार िनकल आया और िफर जमी मे जोरो से पहार िकया तो
पानी िनकल आया और बाबा ने अंगारे से िचलम जलाई और पानी से कपडा िगला
िकया और िचलम पर लपेट िलया. (अधयाय 5 साई सतचिरत )
बाबा नशा करके कया सनदेश देना चाहते थे और जमी मे िचमटे से अंगारे िनकलने का
कया पयोजन था कया वो जादूगरी िदखाना चाहते थे ?
इस पकार के िकसी कायर से मानव जीवन का उदार तो नही हो सकता हाँ ये पतन के
साधन अवशय हे .
इस पकार की जादूगरी बाबा ने पुरे जीवनकाल मे की । काश एक जादू की छडी घुमा
कर बाबा सारे अंगेजो को इंगलैड पहंचा देते ! अपने हक के िलए बोलने वालो को बफर
पर नंगा िलटा कर पीटने कयू िदया ??
2 बाबा एक महान जादूगर थे । योग िकया (धोित) िवशेष पकार से करते थे । एक अवसर पर लोगो ने देखा की
उनहोने अपनी आँतो को अपने पेट से बाहर िनकल कर चारो ओर से साफ िकया और पेड पर सूखने के िलए
टांग िदया । और खंड योग मे उनहोने अपने पुरे शरीर के अंगो को पृथक पृथक कर मिसजद के िभन िभन
सथानो पर िबखेर िदया । अधयाय 7
3 िशडी मे एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनो मे कुशती हयी और बाबा हार
गए(अधयाय 5 साई सतचिरत ) . वो भगवान् का रप होते हए भी अपनी ही कृित मनुषय के हाथो परािजत
हो गए?
4 बाबा को पकाश से बडा अनुराग था और वो तेल के दीपक जलाते थे और इससके िलए
तेल की िभका लेने के िलए जाते थे एक बार लोगो ने देने से मना कर िदया तो बाबा ने
पानी से ही दीपक जला िदए.(अधयाय 5 साई सतचिरत ) आज तेल के िलए युधध हो
रहे है. तेल एक ऐसा पदाथर है जो आने वाले समय मे समाप हो जायेगा इससके भंडार
सीिमत हे और आवशयकता जयादा. यिद बाबा के पास ऐसी शिक थी जो पानी को
तेल मे बदल देती थी तो उनहोने इसको िकसी को बताया कयूँ नही? अंतयारमी को पता
नही था की ये िवदा देने से भिवषय मे होने वाले युद टल सकते है ।
5 गाँव मे केवल दो कुएं थे िजनमे से एक पाय सुख जाया करता था और
दुसरे का पानी खरा था. बाबा ने फू ल डाल कर खारे जल को मीठा
बना िदया. लेिकन कुएं का जल िकतने लोगो के िलए पयारप हो सकता
था इसिलए जल बहार से मंगवाया गया.(अधयाय 6 साई सतचिरत)
वलडर हेअथ ओगारनैजासन के अनुसार िवश की ४० पितशत से अिधक
लोगो को शुद पानी िपने को नही िमल पाता. यिद भगवन पीने के
पानी की समसया कोई समाप करना चाहते थे तो पुरे संसार की समसया
को समाप करते लेिकन वो तो िशडी के लोगो की समसया समाप नही
कर सके उनहे भी पानी बहार से मांगना पडा. और िफर खरे पानी को
फू ल डालकर कैसे मीठा बनाया जा सकता है?
6 फकीरो के साथ वो मांस और मचछली का सेवन करते थे. कुते भी उनके
भोजन पत मे मुंह डालकर सवतंतता पूवरक खाते थे.(अधयाय 7 साई
सतचिरत )
अपने मुख के सवाद पूित हेतु िकसी पाणी को मारकर खाना िकसी
इशर का तो काम नही हो सकता और कुतो के साथ खाना खाना िकसी
सभय मनुषय की पहचान भी नही है. और वो भी िफर एक संत के
िलए ?? जरा सोचे !! जैसा की हम उपर िदखा चुके है अपिवत भोजन
तामिसक मनुषयो को िपय होता है !
यातयामं गतरसं पूित पयुरिषतं च यत् ।
उिचछषमिप चामेधयं भोजनं तामसिपयम् ....गीता १७/१
अमुक चमतकारो को बताकर िजस तरह उनहे  भगवान्  की पदवी दी गयी है
इस तरह के चमतकार  तो सडको पर जादूगर िदखाते हे . िजसे
हाथ की सफाई भी कहते है ! काश इन तथाकिथत भगवान् ने इस
तरह की जादूगरी िदखने की अपेका कुछ सामािजक उतथान और िवश
की उनित एवं  समाज मे पनप रही समसयाओं जैसे बाल  िववाह सती
पथा भुखमरी आतंकवाद भासताचार आदी के िलए कुछ कायर िकया होता!
• I.पोरािणक िववेचन :-
•
•
1 – साई को अगर ईशर मान बैठे हो अथवा ईशर का अवतार मान बैठे हो तो कयो?
आप िहनदू है तो सनातन संसकृित के िकसी भी धमरगंथ मे साई महाराज का नाम तक
नही है।तो धमरगंथो को झूठा सािबत करते हये िकस आधार पर साई को भगवान मान
िलया ?( और पौरािणक गंथ कहते है िक कलयुग मे दो अवतार होने है ….एक
भगवान बुद का हो चुका दूसरा किलक नाम से कलयुग के अंितम चरण मे
होगा……. ।)
• कलयुग मे भगवान बुद के अवतार को हम सभी जानते है उनहोने
पूरी दुिनया मे योग व् शांित का सनदेश फे लाया । तथा इस धरती पर उनके
जीवन का उदेशय साथरक व सफल रहा । परनतु साई न तो कोई उदेशय लेकर
जनमे और न ही कु छ कर पाए !
10 अवतार->(मतसय, कूमर, वराह, नृिसह, वामन, परशुराम, राम, कृषण, बुद, कलकी)
• 2 – अगर साई को संत मानकर पूजा करते हो तो कयो? कया
जो िसफर अचछा उपदेश दे दे या कुछ चमतकार िदखा दे वो संत
हो जाता है? साई महाराज कभी गोहतया पर बोले?, साई
महाराज ने उस समय उपिसथत कौन सी सामािजक बुराई को
खतम िकया या करने का पयास िकया? ये तो संत का सबसे
बडा कतरव होता है ।और िफर संत ही पूजने है तो कमी थी
कया ? भगवा धारण करने वाले िकसी संत को पूज सकते थे !
अनाथ फकीर ही िमला ?
• 3- अगर िसफर दूसरो से सुनकर साई के भक बन गए हो तो
कयो? कया अपने धमरगंथो पर या अपने भगवान पर िवशास
नही रहा ?
4 – अगर आप पौरािणक हो और अगर मनोकामना पूित के
िलए साई के भक बन गए हो तो तुमहारी कौन सी ऐसी
मनोकामना है जो िक भगवान िशवजी , या शी िवषणु जी, या
कृषण जी, या राम जी पूरी नही कर सकते िसफर साई ही कर
सकता है?तुमहारी ऐसी कौन सी मनोकामना है जो िक वैषणो
देवी, या हिरदार या वृनदावन, या काशी या बाला जी मे शीश
झुकाने से पूणर नही होगी ..वो िसफर िशरडी जाकर माथा टेकने
से ही पूरी होगी???
और यिद शी िवषणु जी, या कृषण जी मनोकामना पूणर नही
कर सकते तो ये उनही का बताया जा रहा अवतार कैसे कर
देगा ?
• 5– आप खुद को राम या कृषण या िशव भक कहलाने मे कम गौरव महसूस करते है कया जो
साई भक होने का िबलला टाँगे िफरते हो …. कया राम और कृषण से पेम का कय हो गया है ….
?
•
• आज दुिनया सनातन धमर की ओर लौट रही है आप िकस िदशा मे जा रहे है ?
• सनातन धमर ईशर कृत, ईशर पदत है ! बािक सब विक िवशेष दारा चलाये हए
मत/मतानतर/पंथ/मजहब है !
• Hinduism is God centred. Other religions are prophet centred.
• यिद हमारी बात पर िवशास नही तो दिकण अफीका शोध संसथान पर तो िवशास करेगे
।
• यहाँ देखे :--> http://www.hinduism.co.za/founder.htm
".co.za" south african domain ---> http://www.africaregistry.com/
एक अमेिरकन की बात पर भी भरोसा नही करेगे ??
यहाँ देखे --->
http://www.stephen-knapp.com/proof_of_vedic_culture's_global_existence.htm
• कया आपके िलए ये गौरव पयारप नही !!?? जो देखा देखी मे अंधे बन साई के पीछे होिलये !
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=tS-qhqnM94Q
• http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=p6FiRt321mU#!
• http://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.in/2013/03/blog-post.html
http://www.stephen-knapp.com/proof_of_vedic_culture's_global_existence.htm
http://www.vedicbharat.com/2013/04/Embryology-in-ShriMad-Bhagwatam-and-Mah
International Society for Krishna Consciousness {ISKCON}
http://iskcon.org/
http://www.iskconcenters.com/
• 6– ॐ साई राम ……..'ॐ' हमेशा मंतो से पहले ही लगाया
जाता है अथवा ईशर के नाम से पहले …..साई के नाम के
पहले ॐ लगाने का अिधकार कहा से पाया?
शी साई राम ………. 'शी' मे शिक माता िनिहत है ….शी
शिकरपेण शबद है ……. जो िक अकसर भगवान जी के नाम
के साथ संयुक िकया जाता है ……. तो जय शी राम मे से
…..शी ततव को हटाकर ……साई िलख देने मे तुमहे गौरव
महसूस होना चािहए या शमर आनी चािहये?
• यिद आप ॐ के बारे मे कुछ नही जानते तो यहाँ देखे ॐ कया
है ! --->> ओ३म्
• http://www.vedicbharat.com/2013/03/om-bigbang-shi
• संत वही होता है जो लोगो को भगवान से जोडे , संत वो होता है जो
जनता को भिकमागर की और ले जाये , संत वो होता है जो समाज मे
वाप बुराइयो को दूर करने के िलए पहल करे … इस साई नाम के
मुिसलम पाखंडी फकीर ने जीवन भर तुमहारे राम या कृषण का नाम तक
नही िलया , और तुम इस साई की कालपिनक मिहमा की कहािनयो को
पढ़ के इसे भगवान मान रहे हो … िकतनी भयावह मूखरता है ये ….
•
महान ज्ञानी ऋषिष मुिनयो के वंशज आज इतने मूखर और कलुिषत बुिद के
हो गए है िक उनहे भगवान और एक साधारण से मुिसलम फकीर मे फकर
नही आता ?
•
"रामायण-गीता मे सदेव उिचत  कमर करने, कमरठ बनने
तथा  अनयाय के िवरद लडने की पेरणा िनिहत है कयू की
यिद दुराचारी/पापी/देतय के िवनाश से हजारो मासूम लोगो
का जीवन सुरिकत व् सुखी होता है तो वह उिचत बतलाया
गया है  !"
िकनतु साई की इस िकताब मे कमर करने -कमरठ बनने आिद
को  गोली मार दी गई है ! साई के जादू के िकससे है ! बस जो
भी हो, साई की शरण मे जाओ !! गुड की डली िदखा कर साई
मंिदरो तक खीचने का पपंच मात है !!
• H.एक और महाझूठ !!
साँईँ के चमतकािरता के पाखंड और झूठ का पता चलता है, उसके “साँईँ चािलसा” से।
दोसतोँ आईये पहले चािलसा का अथर जानलेते है:-
“िहनदी पद की ऐसी िवधा िजसमेँ चौपाईयोँ की संखया मात 40 हो, चािलसा
कहलाती है।”
•
• सवरपथम देखे की चोपाई कया / िकतनी बडी होती है ?
• हनुमान चालीसा की पथम चोपाई :---
•
• जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस ितहँ लोक उजागर ॥...1
•
• ठीक है !!
•
• अब साँईँ चािलसा की एक चोपाई देखे :--
•
• पहले साई के चरणो मे, अपना शीश नवाऊँ मै।
कैसे िशडी साई आए, सारा हाल सुनाऊँ मै।। (1)
• उपरोक्त में प्रथम पंक्ति मक्त में एक कोमा (,) है अतः यदिदि पहली पंक्ति मक्त को (कोमे के पहले व बादि वाले भाग को)
एक चोपाई माने तो चोपाईयदों की संक्तख्यदा हुई :-- 204
और यदिदि दिोनों पंक्ति मक्तयदों को एक चोपाई माने तो चोपाईयदों की संक्तख्यदा हुई :-- 102
•
हनुमान चालीसा में पुरे 40 है आप यदहाँ दिेख सकते है --->
• http://www.vedicbharat.com/p/blog-page_6.html
साँईँ चाि मलसा में  कु ल 102 यदा  204 है .........................................झूठ नंक्त 10
• यदहाँ दिेखें -->
• http://bharatdiscovery.org/india/साई_चालीसा
• http://www.indif.com/nri/chalisas/sai_chalisa/sai_chalisa.asp
ति मनक ि मवचारेँ कयदा इतने चौपाईयदोँ के होने पर भी उसे चाि मलसा कहा जा सकता है??
नहीँन?…..
ि मबल्कुल सही समझा आप लोगोँ ने….
जब इन व्याकरि मणिक व आनुशासि मनक ि मनयदमोँ से इतना से इतना ि मखलवाड़ है, तो साईँ केझूठे पाखंक्तडवादिी
चमत्कारोँ की बात ही कुछ और है!
•
िकतने शमर्म की बात है िक आधुि मनक ि मवज्ञान के गुणिोत्तर प्रगि मति मशलता के बावजूदि लोग साईँ जैसे महापाखंक्ति मडयदोँ
के वि मशभूत हो जा रहे हैँ॥
• कयदा इस भूि मम की सनातनी संक्तताने इतनी बुि मद्धिहीन हो गयदी है िक ि मजसकी भी काल्पि मनक मि महमा
के गपोड़े सुन ले उसी को भगवान और महान मानकर भेडॉ की तरह उसके पीछे चल दिेती है ?
इसमे हमारा नहीं आपका ही फायददिा है …. श्रद्धिा और अंक्तधश्रद्धिा में फकर्म होता है,
श्रद्धिालु बनो ….
• भगवान को चुनो …
• जैसा की आप दिेख चुके है की साई चालीसा में 100-200 चोपाईयदाँ है!!!
उसी प्रकार इस िकताब में  51 अध्यदायद है !!!
ि मजन्हें  ध्यदान से पढने पर आप पाएंक्तगे -- पहले कई अध्यदायदों में इसे  यदुवक िफर साई  , श्री साई ,
िफर सदगुरु , अंक्ततयदार्ममी, दिेव , दिेवता, िफर  ईश्वर तथा िफर परमेश्वर कह कर चतुराई के साथ
प्रमोशन िकयदा गयदा है और िफर जयदजयद कार की गई है । तािक पाठकों के माथे में धीरे धीरे साई
इंक्तजेकशन लगा िदियदा जायदे !
जो व्यि मक्त एक गाँव की सीमा के बाहर  भी नही ि मनकला न ही ि मजसने कोई कीित पताका स्थाि मपत
की, उसके ि मलए 51 अध्यदायद !! ?
साई बाबा की माकेटिटिंग करने वालो ने यदा उनके अजेंटिंों ने यदा सीधे शब्दिो मे कहे तो उनके दिलालो
ने काफी कुछ ि मलख रखा है। साई बाबा की चमत्कािरक काल्पि मनक कहाि मनयदो व गपोड़ों को लेकर
बड़ी बड़ी िकताबे रच डाली है। 
स्तुि मत, मंक्तत, चालीसा, आरती, भजन, वत कथा सब कु छ बना डाला… साई को अवतार
बनाकर, भगवान बनाकर, और कही कही भगवान से भी बड़ा बना डाला है… 
• साई - "अनंक्तत कोिटिं ब्रम्हांक्तड नायदक और अंक्ततयदार्ममी"
• िकसी भी दिलाल ने आज तक यदे बताने का श्रम नहीं िकयदा िक साई िकस आधार पर भगवान यदा
भगवान का अवतार है ?
कृपयदा बुि मद्धिमान बने ! ि मजस भेड़ों के रेवड़ में आप चल रहे है :- कम से कम यदे तो दिेख लीि मजयदे की
गडिरयदा आप को कहाँ ि मलए जा रहा है ?
• K.सत्यद िदिखाने का अंक्ति मतम प्रयदास :------
•
गीता जी में श्री कृषणि ने अवतार लेने के कारणि और कमो का वणिर्मन करते
हुयदे ि मलखा है िक—-
•
पिरताणिायद साधूनांक्त ि मवनाशायद च दिुषकृ ताम ।
धमर्मसंक्तस्थापनाथार्मयद सम्भवाि मम यदूगे यदूगे ॥ ....गीता ४ /८
• अथार्मत, साधू पुरुषो के उद्धिार के ि मलए, पापकमर्म करने वालो का
ि मवनाश करने के ि मलए और धमर्म/शांक्तती की स्थापना के ि मलए मे
यदुग-यदुग मे प्रकटिं हुआ करता ह।
• श्री कृषणि जी दारा कहे गए इस शोक के आधार पर दिेखते है िक साई
िकतने पानी में है —
1 पिरताणिायद साधूनांक्त (साधु पुरुषो के उद्धिार के ि मलए ) – यदिदि यदे कटिंोरे
वाला साई भगवान का अवतार था तो इसने कौन से सजनों का उद्धिार
िकयदा था? जब िक इसके पूरे जीवनकाल मे यदे ि मशरडी नाम के पचास-सौ
घरो की बाड़ी (गाँव) से बाहर भी न ि मनकला था..और इसके मरने के
बादि उस गाँव के लगभग आधे लोग भी बेचारे रोगािदि प्रकोपों से पीि मड़त
होके मरे थे…यदाि मन ि मवश्व भर के सजन तो कयदा अपने गाँव के ही सजनों
का उद्धिार नहीं कर पायदा था….उस समयद ि मब्रिटिंश शाशन था, बेचारे
बेबस भारतीयद अंक्तगेजो के जूते, कोड़े, डंक्तडे, लाते खाते गए और साई
महाराज ि मशरडी मे बैठकर छोटिंे-मोटिंे जादिू िदिखाते रहे, िकसी का दिुख दिूर
नहीं बि मल्क खुदि का भी नहीं कर पायदे आधे से जयदादिा जीवन रोगगस्त
होकर व्यतीत िकयदा और अंक्तत मे भी बीमारी से ही मरे ।
2- ि मवनाशायद च दिुषकृताम( दिुषो के ि मवनाश के ि मलए) – साई बाबा
के समयद मे दिुष कमर्म करने वाले अंक्तगेज थे जो भारतीयदो का
शोषणि करते थे, जूि मतयदो के नीचे पीसते थे , दिूसरे गोहत्यदारे थे,
तीसरे जो िकसी न िकसी तरह पाप िकयदा करते थे, साई बाबा
ने न तो िकसी अंक्तगेज के कंक्तकड़ी-यदा पत्थर भी मारा, न ही
िकसी गोहत्यदारे के चुटिंकी भी काटिंी, न ही िकसी भी पाप
करने वाले को डांक्तटिंा-फटिंकारा। अरे बाबा तो चमत्कारी थे न !
पर अफसोस इनके चमत्कारो से एक भी दिुष अंक्तगेज को दिस्त न
लगे, िकसी भी पापी का पेटिं खराब न हुआ…. यदाि मन दिुषो का
ि मवनाश तो दिूर की बात दिुषो के आस-पास भी न फटिंके।
3- धमर्मसंक्तस्थापनाथार्मयद ( धमर्म की स्थापना के ि मलए ) – जब साई ने न तो
सजनों का उद्धिार ही िकयदा, और न ही दिुषो को दिंक्तड ही िदियदा तो धमर्म की
स्थापना का तो सवाल ही पैदिा नहीं होता..कयदो िक सजनों के उद्धिार,
और दिुषो के संक्तहार के ि मबना धमर्म-स्थापना नहीं हुआ करती। यदे आदिमी
मात एक छोटिंे से गाँव मे ही जादिू-टिंोने िदिखाता रहा पूरे जीवन भर…
मि मस्जदि के खणडहर मे जाने कौन से गड़े मुदिेट को पूजता रहा…। मतलब
इसने भीख मांक्तगने, बाजीगरी िदिखाने, ि मनठल्ले बैठकर ि महन्दिुओ को
इस्लाम की ओर ले जाने के अलावा , उन्हे मूखर्म बनाने के अलावा कोई
काम नहीं िकयदा….कोई भी धािमक, राजनैि मतक यदा सामाि मजक उपलि मब्ध
नहीं..
जब भगवान अवतार लेते है तो सम्पूणिर्म पृथ्वी उनके यदश से उनकी
गाथाओ से अलंक्तकृत हो जाती है… उनके जीवनकाल मे ही
उनका यदश ि मशखर पर होता है….परन्तु !!
१ ९ १ ८ में साई की मृत्यदु के पश्चात कम से कम एक लाख
स्वतंक्ततता सेनाि मनयदों को आजादिी रूपी यदज्ञ में अपनी आहुि मत
दिेि मन पड़ी !
और इस साई को इसके जीवन काल मे ि मशरडी और आस पास
के इलाके के अलावा और कोई जानता ही नहीं था…यदा यदू कहे
लगभग सौ- दिौ सौ सालो तक इसे ि मसफर्म ि मशरडी क्षेत के ही लोग
जानते थे…. आजकल की जो नयदी नस्ल साईराम साईराम
करती रहती है वो अपने माता-ि मपता से पुछे िक आज से पंक्तद्रह-
बीस वषर्म पहले तक उन्होने साई का नाम भी सुना था कयदा?
साई कोई कीटिं था पतंक्तग था यदा कोई जन्तु … िकसी ने भी नहीं
सुना था ….
• L.श्री कृ षणि ने गीता जी के ९ वे अध्यदायद में कयदा कहा है जरा दिेखें, गौर से
दिेखे :-
• यदाि मन्त दिेववता दिेवान् ि मपतृन्यदाि मन्त ि मपतृवताः
भूताि मन यदाि मन्त भूतेजयदा यदाि मन्त मदाि मजनोऽि मपमाम् .... गीता ९/२५
•
• अथार्मत
• दिेवताओ को पूजने वाले दिेवताओ को प्राप होते है, ि मपतरों को पूजने वाले ि मपतरों को
प्राप होते है।
• भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप होते है, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझे
ही प्राप होते है ॥
• ................इसि मलए मेरे भक्तों का पुनजर्मन्म नही होता !!
•
• भूत प्रेत, मूदिार्म (खुला यदा दिफनायदा हुआ अथार्मत् कब्र) को सकामभाव से पूजने
वाले स्वयदंक्त मरने के बादि भूत-प्रेत ही बनते है.!
यदही वो  साई बाबा उफर्म चाँदि ि ममयदांक्त की कब्र है जहाँ आप माथा पटिंकने जाते है !
बाबा का शरीर अब वही ँ ि मवश्रांक्ति मत पा  रहा है , और िफलहाल वह समाधी मंक्तिदिर नाम
से ि मवख्यदात है {अध्यदायद 4}
ध्यदान रहे :- आपकी समस्त समस्यदाओ का समाधान केवल ईश्वर के पास है ! ऐसे सड़े मुदिों के
पास नही !
ि मजसमे थोड़ी सी भी अकल होगी उसे समझ मे आएगा िक
यदे लेख हर तरह से  स्पष रूप से ि मसद्धि कर रहा है िक
साई कोई भगवान यदा अवतार नहीं था… …सभी
धमर्मप्रेमी ि महन्दिू भाइयदो से ि मनवेदिन है िक इस लेख को
अपने नाम से कोई भी कही भी पोस्टिं यदा कमेंटिं के रूप
में कर सकता है….अगर आपके एक कमेंटिं यदा
पोस्टिं से एक साईभक्त मुदिेट की पूजा छोडकर
भगवान की और लौटिंता है तो आप पुणयद के
भागी है…आप इस लेख को िप्रटिं करवा कर
अपने पिरवार/ि ममत/पड़ोस आिदि में बाँटिं भी
सकते है… ... जयद श्री राम
• यदह संक्तसार अंक्तधि मवश्वास और तुचछ ख्यदादिी एवंक्त सफलता के  पीछे  भागने
वालों से भरा पड़ा हुआ है. दियदानंक्तदि सरस्वती, महाराणिा प्रताप, ि मशवाजी,
सुभाष चन्द्र बोस, सरदिार भगत िसह, राम प्रसादि ि मबि मस्मल, सरीखे लोग
ि मजन्होंने इस दिेश के ि मलए अपने प्राणिों को न्यदोचावर कर दिीयदे  लोग
उन्हें भूलते जा रहे है और साई बाबा ि मजसने  भारतीयद स्वाधीनता संक्तगाम में
न कोई यदोगदिान िदियदा न ही सामाि मजक सुधार  में कोई भूि ममका रही उनको
 समाज के कु छ लोगों ने भगवान् का दिजार्म दिे िदियदा है. तथा उन्हें श्री कृ षणि
और श्री राम के अवतार के रूप में िदिखाकर  न के वल इनका अपमान िकयदा
जा रहा अि मपतु नयदी पीडी और समाज को अवनि मत के मागर्म की और ले जाने
का एक प्रयदास िकयदा जा रहा है.
•  आवशयदकता इस बात की है की समाज के पतन को रोका जायदे और जन
जागि मत लाकर वैिदिक महापुरुषों को अपमाि मनत करने की जो कोि मशशे की
जा रही, उनपर अंक्तकु श लगायदा जायदे.
•
• जयद ि मसयदाराम !
•
• कृ पयदा हमारी मुहीम के साथ जुड़े :--
• https://www.facebook.com/Shirdi.Sai.Expose
धन्यदवादि !!
•
• साभार :
• श्री अि मगवीर । 
• श्री प्रेयदसी आयदर्म भरतवंक्तशी । 
•
रोि महत कु मार । 
• http://www.vedicbharat.com/2013/04/Shirdi-sai-baba-Exposed---must-
read.html
• http://hindurashtra.wordpress.com/expose-sai/
• http://vaidikdharma.wordpress.com/category/ि मशरडी-साई-का-पदिार्मफास/
• http://hinduawaken.wordpress.com/2012/01/page/2/
• http://www.voiceofaryas.com/author/mishra-preyasi/
http://hindurashtra.wordpress.com/2012/08/13/374/
http://hindutavamedia.blogspot.in/2013/01/blog-post_27.html#.UWAmmulJNm
http://krantikaribadlava.blogspot.in/2013/01/blog-post_7307.html
• उपरोक्त लेख Google Docs पर भी उपलब्ध करवा िदियदा गयदा है :
(detailed) https://docs.google.com/file/d/0B-
QqeB6P9jsHbGNvU0R0dGllbkE/edit?pli=1

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Shirdi sai baba exposed

  • 1. ? आस्था के नाम पर धोखा 
  • 2. प्रस्तुत लेख का मंन्तव्य साँई के प्रित आलोचना का नही बल्किल्क उनके प्रित स्पष्ट जानकारी प्राप्त करने का है। लेख मेँ िदिये गये प्रमाणोँ की पुिष्ट व सत्यापन “साँई सत्चिरत” से करेँ, जो लगभग प्रत्येक साईँ मिन्दिरोँ मेँ उपलब्ध है। यहाँ पौरािणक तकोँ के द्वारा भी सत्य का िवश्लेषण िकया गया है। आजकल आयार्यावतर्या  मेँ तथाकिथत भगवानोँ का एक दिौर चल पड़ा है। यह संसार अंधिवश्वास और तुच्छ ख्याित- सफलता के पीछे भागने वालोँ से भरा हुआ है। “यह िवश्वगुरू आयार्यावतर्या का पतन ही है िक आज परमेश्वर की उपासना की अपेक्षा लोग गुरूओँ, पीरोँ और कब्रोँ पर िसर पटकना ज्यादिा पसन्दि करते हैँ।” आजकल सवर्यात साँई बल्काबल्का की धूम है, कहीँ साँई चौकी, साँई संध्या और साँई पालकी मेँ मुिस्लम कव्वाल साँई भक्तोँ के साथ साँई जागरण करने मेँ लगे हैँ। मिन्दिरोँ मेँ साँई की मूित सनातन काल के दिेवी दिेवताओँ के साथ सजी है। मुिस्लम तािन्तकोँ ने भी अपने काले इल्म का आधार साँई बल्काबल्का को बल्कना रखा है व उनकी सिक्रियता सवर्यात दिेखी जा सकती है।  कोई इसे  िवष्णुजी  का ,कोई िशिवजी  का तथा कोई दित्तातेयजी  का अवतार बल्कताता है । परन्तु साँई बल्काबल्का कौन थे? उनका आचरण व व्यवहार कैसा था? इन सबल्कके िलए हमेँ िनभर्यार होना पड़ता है “साँई सत्चिरत” पर!
  • 3. • जी हाँ ,दिोस्तोँ! कोई भी ऐसा व्यिक्त नहीँ जो रामायण व महाभारत का नाम न जानता हो? ये दिोनोँ महाग्रन्थ क्रिमशिः श्रीराम और कृष्ण के उज्ज्वल चिरत को उत्किषत करते हैँ, उसी प्रकार साईँ के जीवनचिरत की एकमात प्रामािणक उपलब्ध पुस्तक है- “साँईँ सत्चिरत”॥ • इस पुस्तक के अध्ययन से साईँ के िजस पिवत चिरत का अनुदिशिर्यान होता है, क्या आप उसे जानते हैँ? • चाहे चीलम/तम्बल्काकू/बल्कीडी  पीने की बल्कात हो, चाहे िस्त्रियोँ को अपशिब्दि कहने की?, चाहे बल्कातबल्कात पर क्रिोध करने की , चाहे माँसाहार की बल्कात हो, या चाहे धमर्याद्रोही, दिेशिद्रोही व इस्लामी कट्टरपन की…. • इन सबल्ककी दिौड़ मेँ शिायदि ही कोई साँई से आगे िनकल पाये। यकीन नहीँ होता न? तो आइये चलकर दिेखते हैँ… साई के 95% से अिधक भक्तो ने "साँईँ सत्चिरत" नही पढ़ी है, वे के वल दिेख दिेखी मे इस बल्काबल्के के पीछे हो िलए! कोई बल्कात नही हम आपको िदिखाते है सत्य क्या है। 
  • 4. साई शिब्दि का अथर्या :-- "साई बल्काबल्का नाम की उत्पित्त साई शिब्दि से हुई है, जो मुसलमानो द्वारा प्रयुक्त फारसी भाषा का शिब्दि है, िजसका अथर्या होता है पूज्य व्यिक्त और बल्काबल्का" यहाँ दिेखे :--- http://bharatdiscovery.org/india/िशिरडी_साई_बल्काबल्का फारसी एक भाषा है जो ईरान, तािजिकस्तान, अफगािनस्तान और उजबल्केिकस्तान मे बल्कोली जाती है। अथार्यात साई नाम(संज्ञा/noun) नही है ! िजस प्रकार मंिदिर मे पूजा आिदि करने वाले व्यिक्त को "पुजारी" कहा जाता है परन्तु पुजारी उसका नाम नही है ! यहाँ साई भी नाम नही अिपतु िवशिेषण (Adjective) है ! उसी प्रकार 'बल्काबल्का' शिब्दि  भी कोई नाम नही !! सभी साई बल्काबल्का ही कहते है तो िफर इसका नाम क्या है ?? चाँदि िमयां !!!
  • 5. साई बल्काबल्का का जीवन काल 1838 से 1918 (80 वषर्या) तक था (अध्याय 10 ) , उनके जीवन काल के मध्य हुई घटनाये जो मन मे शिंकाएं पैदिा करती हैं की क्या वो सच मे भगवान थे , क्या वो सच मे लोगो का दिुःख दिूर कर सकते है? 1. भारतभूिम पर जबल्क-जबल्क धमर्या की हािन हुई है और अधमर्या मेँ वृिध्दि हुई है, तबल्क-तबल्क परमेश्वर साकाररूप मेँ अवतार ग्रहण करते हैँ और तबल्क तक धरती नहीँ छोड़ते, जबल्कतक सम्पूणर्या पृथवी अधमर्याहीन नहीँ हो जाती। लेिकन साईँ के जीवनकाल मेँ पूरा भारत गुलामी की बल्केिड़योँ मे जकड़ा हुआ था, मात अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ से मुिक्त न िदिला सका तो साईँ अवतार कैसे? न ही स्वयं अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ के िवरद आवाज उठाई और न ही अपने भक्तो को प्रेिरत िकया । इसके अितिरक्त हजारो तरह की समस्या भी थी :- गौ हत्या, भस्ताचार, भूखमरी तथा समाज मे फै ली अन्य कुरितयाँ ! इसके िवरद भी एक शिब्दि नही बल्कोला !! जबल्किक अपनी पूरी आयु (80 वषर्या) िजया !!
  • 6. साई सच्चरिरत मे बल्कताया गया है की बल्काबल्का की  जन्म ितिथ सन 1838 के आसपास थी ।  हम 1838 ही मान  कर चलते है । इसी िकताबल्क मे बल्कताया गया है की बल्काबल्का 16 वषर्या की आयु मे सवर्याप्रथम िदिखाई पड़े  (अध्याय 4) अथार्यात 1854 मे सवर्याप्रथम िदिखाई पड़े , तभी लेखक ने 1838 मे जन्म कहा है ।  झाँसी की रानी लक्ष्मी बल्काई ने  1857 की क्रिांित मे महत्व पूणर्या योगदिान िदिया तथा लड़ते लड़ते िवरांगना हुई ।  1857 मे बल्काबल्का की आयु 19 वषर्या के आस पास रही होगी ।  एक अवतार के  धरती पर मोजूदि होते हुए िस्त्रियो को युद क्षेत मे जाना पड़े ??? 19  वषर्या की आयु क्या युद लड़ने के िलए पयार्याप्त नही ? िशिवाजी 19 वषर्या की आयु मे िनकल पड़े थे !! मात 18  वषर्या की आयु मे खुदिीराम बल्कोस सन 1908 मे  स्वतंतता संग्राम मे शिहीदि हुये  ! तो लक्ष्मी बल्काई, िशिवाजी, खुदिीराम बल्कोस आिदि अवतार नही और साई अवतार कै से ??? और िफर क्या श्री कृ ष्ण ने युवक अवस्था मे पािपयो  को नही पछाड़ा था ? भगवान श्री राम जी ने तड़का तथा अन्य दिेत्यो को मात 16 वषर्या की आयु मे मारा और वहां के लोगो को सुखी व भय मुक्त िकया ! यहाँ दिेखे :-- https://www.facebook.com/photo.php? fbid=263864090416001&set=a.239268919542185.58500.23836216 6299527&type=1&theater
  • 7. • 3. राषधमर्या कहता है िक राषोत्थान व आपातकाल मेँ प्रत्येक व्यिक्त का ये कतर्याव्य होना चािहए िक वे राष को पूणर्यातया आतंकमुक्त करने के िलए सदिैव प्रयासरत रहेँ, परन्तु गुलामी के समय साईँ िकसी परतन्तता िवरोधक आन्दिोलन तो दिूर, न जाने कहाँ िछप कर बल्कैठा था,जबल्किक उसके अनुयािययोँ की संख्या की भी कमी नहीँ थी, तो क्या ये दिेशि से गदारी के लक्षण नहीँ है? • • 4. यिदि साँईँ चमत्कारी था तो दिेशि की गुलामी के समय कहाँ छुपकर बल्कैठा था? इस िकताबल्क मे लाखो बल्कार साई को अवतार, अंतयार्यामी आिदि आिदि बल्कताया गया है । तो क्या अंतयार्यामी को यह ज्ञात नही हुआ की जिलयावाला बल्काग (1919) मे हजारो िनदिोष लोग मरने वाले है । मैं अवतार हु, कुछ तो करूँ !! 5. श्री कृ ष्ण ने तो अजुर्यान को अन्याय, पाप, अधमर्या के िवरद लड़ने को प्रिरत िकया । तािक पाप के अंत के पशात धरती पर शिांित स्थािपत हो सके । तो िफर साई ने अपने हजारो भक्तो को अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ के िखलाफ खड़ा कर उनका मागर्यादिशिर्यान क्यू नही िकया ?
  • 8. 6. एक और राहता (दििक्षण मे) तथा दिूसरी और नीमगाँव (उत्तर मे) थे । िबल्कच मे था िशिडी । बल्काबल्का अपने जीवन काल मे इन सीमाओं से बल्कहार नही गये (अध्याय 8) एक और पूरा दिेशि अंग्रेजो से तस्त था पुरे दिेशि से सभी जन समय   समय   अंग्रेजो के िवरद होते रहे, िपटते रहे , मरते रहे ।  और बल्काबल्का है की इस सीमाओं से पार भी नही गये । जबल्किक श्री राम ने जंगलो मे घूम घूम कर दिेत्यो का नाशि िकया । श्री राम तथा कृष्ण ने सदिेव कमर्याठ बल्कनने का मागर्या िदिखाया । इसके िवपरीत आचरण करने वाला साई, श्री कृष्ण आिदि का अवतार कैसे ???? 7 . उस समय श्री कृष्ण की िप्रय गऊ माताएं कटती थी क्या कभी ये उसके िवरद बल्कोला ?
  • 9. • 8. भारत का सबल्कसे बल्कड़ा अकाल साई बल्काबल्का के जीवन के दिौरान पड़ा • >(अ ) 1866 मे ओिड़सा के अकाल मे लगभग ढाई लाख भूंख से मर गए • >(बल्क) 1873 -74 मे िबल्कहार के अकाल मे लगभग एक लाख लोग प्रभािवत हुए ….भूख के कारण लोगो मे इंसािनयत खत्म हो गयी थी| • >(स ) 1875 -1902 मे भारत का सबल्कसे बल्कड़ा अकाल पड़ा िजसमे लगभग 6 लाख लोग मरे गएँ| • • साई बल्काबल्का ने इन लाखो लोगो को अकाल से क्यूँ पीिड़त होने िदिया यिदि वो भगवान या चमत्कारी थे? क्यूँ इन लाखो लोगो को भूंख से तड़प -तड़प कर मरने िदिया? • • 9 . साई बल्काबल्का के जीवन काल के दिौरान बल्कड़े भूकंप आये िजनमे हजारो लोग मरे गए • (अ ) १८९७ जून िशिलांग मे • (बल्क) १९०५ अप्रैल काँगड़ा मे • (स) १९१८ जुलाई श्री मंगल असाम मे साई बल्काबल्का भगवान होते हुए भी इन भूकम्पो को क्यूँ नही रोक पाए?…क्यूँ हजारो को असमय मारने िदिया ?
  • 10. 10. एक कथा के अनुसार संत ितरवल्लुवर एक बल्कार एक गाँव मे गये "वहां उन्होने अपना अपमान करने वालो को आबल्कादि रहो तथा सम्मान करने वालो को उजड़ जाओ " का आशिीवार्यादि िदिया । जबल्क उन्हे इस आशिीवार्यादि का रहस्य पूछा गया तो उन्होने कहा जो सत्पुरष है वे यिदि उजड़ जायेगे तो वे अपने ज्ञान का प्रकाशि जहाँ जहाँ जायेगे वहां वहां फे लायेगे । िकन्तु साई तो एक ही जगह िचपक कर बल्कैठे रहे । ज्ञान का प्रकाशि एक छोटे से गाँव तक ही िसिमत रहा !! जबल्किक स्वामी िववेकानंदि आिदि ने भारतीय संस्कृित, योग, वेदि आिदि को िवदिेशिो तक पहुँचाया ! जबल्क उन्होने िशिकागो मे (1893 ) प्रथम भाषण िदिया, िनकोल टेस्ला, श्रोडेगर, आइंस्टीन, नील्स बल्कोहर जैसे जानेमाने वैज्ञािनक और अन्य हजारो लोग उनके भक्त बल्कन गये । उस समय स्वामी जी मात 33 वषर्या के थे और बल्काबल्का 55 वषर्या के ! महापुरष का जीवन भटकाऊ होता है वो एक जगह सुस्त पड़ा नही रहता ! तो िववेकानंदि अवतार नही और साई अवतार कैसे ?? http://www.teslasociety.com/tesla_and_swami.htm
  • 11. • B. साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं जीवहत्या करता था! १ मैं मिस्जदि मे एक बल्ककरा हलाल करने वाला हँ, बल्काबल्का ने शिामा से कहा हाजी से पुछो उसे क्या रिचकर होगा - "बल्ककरे का मांस, नाध या अंडकोष ?" -अध्याय ११ (1)मिस्जदि मेँ एक बल्ककरा बल्किल दिेने के िलए लाया गया। वह अत्यन्त दिुबल्कर्याल और मरने वाला था। बल्काबल्का ने उनसे चाकू लाकर बल्ककरा काटने को कहा। -:अध्याय 23. पृष 161. (2)तबल्क बल्काबल्का ने काकासाहेबल्क से कहा िक मैँ स्वयं ही बल्किल चढ़ाने का कायर्या करूँ गा। -:अध्याय 23. पृष 162. (3)फकीरोँ के साथ वो आिमष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।-:अध्याय 5. व 7.
  • 12. • (4)कभी वे मीठे चावल बल्कनाते और कभी मांसिमिश्रत चावल अथार्यात् नमकीन पुलाव। • -:अध्याय 38. पृष 269. • • (5)एक एकादिशिी के िदिन उन्होँने दिादिा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीदि लाने को िदिये। दिादिा पूरे कमर्याकाणडी थे और प्रायः सभी िनयमोँ का जीवन मेँ पालन िकया करते थे। • -:अध्याय 32. पृषः 270. • • (6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दिादिा से कहा िक दिेखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दिादिा ने योँ ही मुँहदिेखी कह िदिया िक अच्छा है। तबल्क बल्काबल्का कहने लगे िक तुमने न अपनी आँखोँ से ही दिेखा है और न ही िजहवा से स्वादि िलया, िफर तुमने यह कैसे कह िदिया िक उत्तम बल्कना है? थोड़ा ढकन हटाकर तो दिेखो। बल्काबल्का ने दिादिा की बल्काँह पकड़ी और बल्कलपूवर्याक बल्कतर्यान मेँ डालकर बल्कोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर दिेखो”। • -:अध्याय 38. पृष 270.
  • 13. • अबल्क जरा सोचे :-- • • {1}क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँकहे जाते? • {2}क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर िजहवा के स्वादि के िलए बल्केजुबल्कान नीरीह जीवोँ का मारा जाना उिचत होगा? • {3}सनातन धमर्या के अनुसार जीवहत्या पाप है। • तो क्या साँई पापी नहीँ? • {4}एक पापी िजसको स्वयं क्षणभंगुर िजहवा के स्वादि की तृष्णा थी, क्या वो आपको मोक्ष का स्वादि चखा पायेगा? • {5}तो क्या ऐसे नीचकमर्या करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे? यातयामं गतरसं पूित पयुर्यािषतं च यत् । उिच्छष्टमिप चामेध्यं भोजनं तामसिप्रयम् ....गीता १७/१ • जो भोजन अधपका, रसरिहत, दिुगर्यान्धयुक्त, बल्कासी और उिच्छष्ट है तथा जो अपिवत(मांस आिदि) भी है, वह भोजन तामस(अधम) पुरषो को िप्रय होते हैं ।
  • 14. • यः पौरषेयेण किवषा समङके यो अशवेन पशुना यातुधानः  यो अघनयाया भरित कीरमगे तेषां शीषारिण हरसािप वृश (ऋगवेद-10:87:16) मनुष्य, अश्व या अनय पशुओं के मांस से पेट भरने वाले तथा दूध देने वाली अघनया गायों का िवनाश करने वालों को कठोरतम दण्ड देना चािहए | • • य आमं मांसमदिनत पौरषेयं च ये किव: ! गभारन खादिनत के शवासतािनतो नाशयामिस !! (अथवरवेद- 8:6:23) जो कच्चा माँस खाते है, जो मनुष्यों द्वारा पकाया हुआ माँस खाते है, जो गभर रप अंडों का सेवन करते है, उन के इस दुष्ट वसन का नाश करो ! • • अघनया यजमानसय पशूनपािह (यजुवेद-1:1) हे मनुष्यों ! पशु अघनय है – कभी न मारने योगय, पशुओं की रका करो | • • अनुमंता िवशिसता िनहनता कयिवकयी । संसकतार चोपहतार च खादकशेित घातका: ॥ (मनुसमृित- 5:51) मारने की आज्ञा देने, मांस के काटने, पशु आिद के मारने, उनको मारने के िलए लेने और बेचने, मांस के पकाने, परोसने और खाने वाले - ये आठों प्रकार के मनुष्य घातक, िहसक अथारत् ये सब एक समान पापी है । • • मां स भकियताऽमुत यसय मांसिमहाद् मयहम्।  एततमांससय मांसतवं प्रवदिनत मनीिषणः॥ (मनुसमृित- 5:55) िजस प्राणी को हे मनुष्य तूं इस जीवन में खायेगा, अगामी(अगले) जीवन मे वह प्राणी तुझे खायेगा।
  • 15. • सारे वैिदक िनयम भंग करने वाला ये दुष्ट/मुरख  संत कहलाने योगय भी नही ! कया ऐसे पापी को पहले ही पने पर वेद माता  सरसवती (ज्ञान की देवी) के तुलय बना देना उिचत है ? • C. साँई िहनदू है या मुिसलम? व कया िहनदू- मुिसलम एकता का प्रतीक है? • • साँई िहनदू है या मुिसलम? व कया िहनदू- मुिसलम एकता का प्रतीक है? • कई साँईभक अंधशधदा मेँ डू बकर कहते हैँ िक साँई न तो िहनदू थे और न ही मुिसलम। इसके िलए अगर उनके जीवन चिरत का प्रमाण देँ तो दुरागह वश उसके भक कु तको ँ की झिडयाँ लगा देते हैँ। ऐसे मेँ अगर साँई खुद को मुलला होना सवीकार करे तो मुदेभक कया कहना चाहेँगे? जी, हाँ!
  • 16. • (1)िशरडी पहुँचने पर जब वह मिसजद मेँ घुसा तो बाबा अतयनत कोिधत हो गये और उसे उनहोने मिसजद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गजरन कर कहने लगे िक इसे बाहर िनकाल दो। िफर मेधा की ओर देखकर कहने लगे िक तुम तो एक उच्च कुलीन बाहण हो और मैँ िनम जाित का यवन (मुसलमान)। तुमहारी जाित भष्ट हो जायेगी। -:अधयाय 28. पृष 197. • (2)मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुिसलम, िहनदू साधू कहे जाते हैँ फकीर नहीँ) हँ।मुझे गंगाजल से कया प्रायोजन? -:अधयाय 32. पृष 228. शी कृष्ण के अवतार को गंगा जल प्राणिप्रय नही होगा ? • (3)महाराष मेँ िशरडी साँई मिनदर मेँ गायी जाने वाली आरती का अंश- “गोपीचंदा मंदा तवांची उदिरले! मोमीन वंशी जनमुनी लोँका तािरले!” • उपरोक आरती मेँ “मोमीन” अथारत् मुसलमान शबद सपष्ट आया है।
  • 17. • (4)मुिसलम होने के कारण माँसाहार आिद का सेवन करना उनकी पहली पसनद थी। • अब जरा सोचे :-- • {1}साँई िजनदगी भर एक मिसजद मेँ रहा, कया इससे भी वह मुिसलम िसधद नहीँ हुआ? यिद वह वासतव मेँ िहनदू मुिसलम एकता का प्रतीक होता तो उसे मिनदर मेँ रहने मेँ कया बुराई थी? • {2}िसर से पाँव तक इसलामी वस, िसर को हमेशा मुिसलम पिरधान कफनी मेँ बाँधकर रखना व एक लमबी दाढी, यिद वो िहनदू मुिसलम एकता का प्रतीक होता तो उसे ऐसे ढोँग करने की कया आवशयकता थी? कया ये मुिसलम कटरता के लकण नहीँ हैँ? • {3}वह िजनदगी भर एक मिसजद मेँ रहा, परनतु उसकी िजद थी की मरणोपरानत उसे एक मिनदर मेँ दफना िदया जाये, कया ये नयाय अथवा धमर संगत है? “धयान रहे ताजमहल जैसी अनेक िहनदू मिनदरेँ व इमारते ऐसी ही कटरता की बली चढ चुकी हैँ।” • "ताजमहल के सनदभर में भी िबलकुल ऐसा ही हुआ था , जब शाहजहाँ ने अपनी पती के शव को महाराजा मानिसह के मंिदर तेजो महालय (िशव मंिदर) में लाकर पटक िदया और बलपूवरक तथा छलपूवरक वही गाड कर दम िलया" इस प्रकार वो मंिदर भी एक कब बन कर रहा गया और ये मंिदर भी ! यहाँ देखें ---> • http://www.vedicbharat.com/2013/03/truth-about-taj-mahal---its-tejo-mahalaya.html
  • 18. • {4}उसका अपना विकगत जीवन कुरान व अल-फतीहा का पाठ करने मेँ वतीत हुआ, वेद व गीता नहीँ?, तो कया वो अब भी िहनदू मुिसलम एकता का सूत होने का हक रखता है? • {5}उसका सवरप्रमुख कथन था “अललाह मािलक है।” परनतु मृतयुपशात् उसके िद्वतीय कथन “सबका मािलक एक है” को एक िवशेष नीित के तहत िसके के जोर पर प्रसािरत िकया गया। यिद ऐसा होता तो उसने ईश्वर-अललाह के एक होने की बात कयोँ नही ँ की? कभी नही कही !! "उनके होठों पर अललाह मािलक रहता था" ऐसा इस िकताब में पचासों जगह आया है ! और िफर फकीर मुिसलम होता है, िहनदू साधू !
  • 19. • D. साँई िहनदू- मुिसलम एकता सथािपत करने में पूरी तरह असफल रहे !!!! १ हम सभी जानते है की 1906 में भारत में मुिसलम लीग की सथापना हुई ! िजसमे मुिसलम समुदाय ने सवयं को भारत से पृथक करने का मत प्रकट िकया तथािप मुहममद अली िजना ने इसका नेतृतव िकया ॥ 1906 में तो बाबा जीिवत थे, 68 वषर के थे ! तो िफर बाबा के रहते ये िवचार शांत कयू नही िकया गया ? बाबा ने िहनदू भाई- मुिसलम भाई को एक साथ प्रेम पूवरक रहने को प्रेिरत कयू नही िकया ?? कया अंतयारमी बाबा को यह ज्ञात नही था की इसका पिरणाम अमंगलकारी होगा !! • २. यिद आप यह सोचते है की साई केवल िहनदू मुिसलम एकता सथािपत करने हेतु ही अवतीणर हुए तो िफर सन 1947 में , िहनदुसथान -पािकसथान कयू बन गया ?? इसका अिभप्राय बाबा िहनदू मुिसलम एकता सथािपत करने में भी पूणरतया असफल रहे । और यिद असफल नही रहे तो उनकी मृतयु के मात 29 वषर पशात ही भारत के दो टुकडे कयू हुए ? बाबा के इतने प्रयास के बाद भी िहनदू भाई - मुसलमान भाई एक साथ प्रेम से कयू न रह सके ?? साई के आदशर मात 29 वषो में ही खंिडत हो गये ???
  • 20. • E. साई िसयों को अपशबद कहा करता था । • 1.बाबा एक िदन गेहं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकितत हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चकी ले ली और खुद गेहं िपसना प्रारंभ कर िदया. पहले तो बाबा कोिधत हुए िफर मुसकुराने लगे. जब गेंहँ पीस गए तो उन िसयों ने सोचा की गेहं का बाबा कया करेंगे और उनहोंने उस िपसे हुए गेंह को आपस में बाँट िलया. ये देखकर बाबा अतयंत कोिधत हो उठे और अपसबद कहने लगे -” िसयों कया तुम पागल हो गयी हो? तुम िकसके बाप का मॉल हडपकर ले जा रही हो? कया कोई कजरदार का माल है जो इतनी आसानी से उठा कर िलए जा रही हो ?” िफर उनहोंने कहा की आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो. उन िदनों गाँव में हैजे का प्रकोप था और इस आटे को गाँव की सीमा पर डालते ही गाँव में हैजा खतम हो गया. (अधयाय 1 साई सतचिरत )
  • 21. पहले तो िसयों को गाली दी ! ! िफर  आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल देने को कहा ! ये दोनों बाते जम नही रही ! यिद आटा िसयों को देना ही था तो गाली कयू दी ? या िफर गाली मुह से िनकल जाने के पशात ये भान हुआ  की, अरे ये मैने कया कह िदया ! ये हरकतें अवतार तो दूर, संत की भी नही  !! आटा  गाँव के चरों और डालने से कैसे हैजा दूर हो सकता है? िफर इन भगवान्  ने केवल िशडी में ही फै ली हुयी बीमारी  के बारे में ही कयूँ सोचा ? कया ये केवल िशडी के ही भगवन थे? 2. वे कभी प्रेम दिष्ट से देखते तो कभी पतथर मारते , कभी गािलयाँ देते और कभी हदय से लगा लेते । अधयाय १० 3.बाबा को समिपत करने के िलए अिधक मूलय वाले पदाथर लाने वालो से बाबा अित कोिधत हो जाते और अपशबद कहने लगते । अधयाय १४
  • 22. • F. बाबा बात बात पर कोिधत हो जाता था ! • 1. जैसा की आप ऊपर देख ही चुके है की िसयों द्वारा आटा लेते ही वे कोिधत हो गये ! • 2. जब जब िशडी में कोई निवन कायरकम रचा जाता तब बाबा कुिपत हो ही जाया करते थे । (अधयाय 6)
  • 23. • 3. बाबा के भक उनकी मिसजद का जीणोधार करवाना चाहते थे जब बाबा से आज्ञा मांगी तब पहले बाबा ने सवीकृित नही दी ततपशात एक सथानीय भक के आगह पर सवीकृित दी । भकों ने कायर आरमभ करवाया । िदन रात पिरशम कर भकों ने लोहे के खमभे जमी में गाडे । जब दुसरे िदन बाबा चावडी से लौटे तब उनहोंने उन खमभों को उखाड कर फें क िदया और अित कोिधत हो गये । वे एक हाथ से खमभा पकड कर उखाडने लगे और दुसरे हाथ से उनहोंने तातया का सफा उतार िलया और उसमे आग लगा कर उसे गडे में फें क िदया । बाबा के एक भक कु छ साहस कर आगे बडे बाबा ने धका दे िदया । एक अनय भक पर बाबा ईट के ढेले फें कने लगे । और िफर शांत होने पर दुकान से एक साफा खरीद कर तातया को पहनाया । अधयाय 6 • ठीक उसी प्रकार जैसे आटा लेने पर बाबा ने िसयों को अपशबद कहे और बाद में कहा आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो। • यहाँ भी बाबा जी ने पहले तातया को धोया िफर उसे नया साफा पहनाया ।
  • 24. • 4 अनायास ही बाबा िबना िकसी कारन कोिधत हो जाया करते थे । अधयाय 6 • 5 बाबा अपने भकों को उनकी इचछा अनुसार पूजन करने देते परनतु कभी कभी वे पूजन थाली फें क कर अित कोिधत हो जाते । कभी वे भकों को िझडकते तथा कभी शांत हो जाते । अधयाय 11 • काश बाबा जी सवयं की पूजा से कभी समय िनकाल कर देश के िहत में भी कुछ करते !! 6 . मिसजद में फशर बनाने की सवीकृित बाबा से िमल चुकी थी , परनतु जब कायर प्रारंभ हुआ बाबा कोिधत हो गये और उतेिजत हो कर िचललाने लगे , िजससे भगदड मच गई ! अधयाय 13 • • 7. िशरडी पहुँचने पर जब वह मिसजद मेँ घुसा तो बाबा अतयनत कोिधत हो गये और उसे उनहोने मिसजद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गजरन कर कहने लगे िक इसे बाहर िनकाल दो। अधयाय 28 • बेवजह बात बात पर कोिधत होने वाला व् अपशबद कहने वाला अवतार तो दूर, एक संत/िसद पुरष भी नही होता । जबिक इस िकताब के अनुसार इसने सवयं को जीतेजी पुजवा िलया !
  • 25. दुःखेष्वनुिद्वगमनाः सुखेषु िवगतसपृहः । वीतरागभयकोधः िसथतधीमुरिनरचयते  ---- गीता  २/५ ६  • G. िवचारणीय िबदु :-- 1. मानयवर सोचने की बात है की ये कैसे भगवन है जो िसयों को गािलयाँ िदया करते है हमारी संसकृित में तो िसयों को सममान की दृिष्ट से देखा जाता है और कहागया है की यत नायरसतु पुजनते रमनते तत देवता . • 2. साई सतचिरत के लेखक ने इनहें कृष्ण का अवतार बताया गया है और कहा गया है की पािपयों का नाश करने के िलए उतपन हुए थे परनतु इनही के समय में प्रथम िवश्व युधध हुआ था और केवल यूरोप के ही ८० लाख सैिनक इस युधद में मरे गए थे और जमरनी के ७.५ लाख लोग भूख की वजह से मर गए थे. तब ये भगवन कहाँ थे. (अधयाय 4 साई सतचिरत ) खेर दुिनया की तो बात ही छोडो "भारत" के िलए ही बाबा ने कया िकया?? पुरे देश में अंगेजों का आतंक था भारतवासी वेवजह मार खा रहे थे !
  • 26. • 4. 1918 में साई बाबा की मृतयु हो गयी. अतयंत आशयर की बात है की जो इश्वर अजनमा है अिवनाशी है वो बीमारी से मर गया. भारतवषर में िजस समय अंगेज कहर धा रहे थे. िनदोषों को मारा जा रहा था अनेकों प्रकार की यातनाएं दी जा रही थी अनिगनत बुराइयाँ समाज में वाप थी उस समय तथाकिथत भगवन िबना कुछ िकये ही अपने लोक को वापस चले गए. हो सकता है की बाबा की नजरों में भारत के सवतंतता सेनानी अपराधी थे और िबिटश समाज सुधारक ! •
  • 27. H.अनय कारनामे :-- 1 साई बाबा िचलम भी पीते थे. एक बार बाबा ने अपने िचमटे को जमी मे घुसाया और उसमे से अंगारा बहार िनकल आया और िफर जमी मे जोरो से पहार िकया तो पानी िनकल आया और बाबा ने अंगारे से िचलम जलाई और पानी से कपडा िगला िकया और िचलम पर लपेट िलया. (अधयाय 5 साई सतचिरत ) बाबा नशा करके कया सनदेश देना चाहते थे और जमी मे िचमटे से अंगारे िनकलने का कया पयोजन था कया वो जादूगरी िदखाना चाहते थे ? इस पकार के िकसी कायर से मानव जीवन का उदार तो नही हो सकता हाँ ये पतन के साधन अवशय हे . इस पकार की जादूगरी बाबा ने पुरे जीवनकाल मे की । काश एक जादू की छडी घुमा कर बाबा सारे अंगेजो को इंगलैड पहंचा देते ! अपने हक के िलए बोलने वालो को बफर पर नंगा िलटा कर पीटने कयू िदया ??
  • 28. 2 बाबा एक महान जादूगर थे । योग िकया (धोित) िवशेष पकार से करते थे । एक अवसर पर लोगो ने देखा की उनहोने अपनी आँतो को अपने पेट से बाहर िनकल कर चारो ओर से साफ िकया और पेड पर सूखने के िलए टांग िदया । और खंड योग मे उनहोने अपने पुरे शरीर के अंगो को पृथक पृथक कर मिसजद के िभन िभन सथानो पर िबखेर िदया । अधयाय 7 3 िशडी मे एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनो मे कुशती हयी और बाबा हार गए(अधयाय 5 साई सतचिरत ) . वो भगवान् का रप होते हए भी अपनी ही कृित मनुषय के हाथो परािजत हो गए? 4 बाबा को पकाश से बडा अनुराग था और वो तेल के दीपक जलाते थे और इससके िलए तेल की िभका लेने के िलए जाते थे एक बार लोगो ने देने से मना कर िदया तो बाबा ने पानी से ही दीपक जला िदए.(अधयाय 5 साई सतचिरत ) आज तेल के िलए युधध हो रहे है. तेल एक ऐसा पदाथर है जो आने वाले समय मे समाप हो जायेगा इससके भंडार सीिमत हे और आवशयकता जयादा. यिद बाबा के पास ऐसी शिक थी जो पानी को तेल मे बदल देती थी तो उनहोने इसको िकसी को बताया कयूँ नही? अंतयारमी को पता नही था की ये िवदा देने से भिवषय मे होने वाले युद टल सकते है ।
  • 29. 5 गाँव मे केवल दो कुएं थे िजनमे से एक पाय सुख जाया करता था और दुसरे का पानी खरा था. बाबा ने फू ल डाल कर खारे जल को मीठा बना िदया. लेिकन कुएं का जल िकतने लोगो के िलए पयारप हो सकता था इसिलए जल बहार से मंगवाया गया.(अधयाय 6 साई सतचिरत) वलडर हेअथ ओगारनैजासन के अनुसार िवश की ४० पितशत से अिधक लोगो को शुद पानी िपने को नही िमल पाता. यिद भगवन पीने के पानी की समसया कोई समाप करना चाहते थे तो पुरे संसार की समसया को समाप करते लेिकन वो तो िशडी के लोगो की समसया समाप नही कर सके उनहे भी पानी बहार से मांगना पडा. और िफर खरे पानी को फू ल डालकर कैसे मीठा बनाया जा सकता है?
  • 30. 6 फकीरो के साथ वो मांस और मचछली का सेवन करते थे. कुते भी उनके भोजन पत मे मुंह डालकर सवतंतता पूवरक खाते थे.(अधयाय 7 साई सतचिरत ) अपने मुख के सवाद पूित हेतु िकसी पाणी को मारकर खाना िकसी इशर का तो काम नही हो सकता और कुतो के साथ खाना खाना िकसी सभय मनुषय की पहचान भी नही है. और वो भी िफर एक संत के िलए ?? जरा सोचे !! जैसा की हम उपर िदखा चुके है अपिवत भोजन तामिसक मनुषयो को िपय होता है ! यातयामं गतरसं पूित पयुरिषतं च यत् । उिचछषमिप चामेधयं भोजनं तामसिपयम् ....गीता १७/१
  • 31. अमुक चमतकारो को बताकर िजस तरह उनहे  भगवान्  की पदवी दी गयी है इस तरह के चमतकार  तो सडको पर जादूगर िदखाते हे . िजसे हाथ की सफाई भी कहते है ! काश इन तथाकिथत भगवान् ने इस तरह की जादूगरी िदखने की अपेका कुछ सामािजक उतथान और िवश की उनित एवं  समाज मे पनप रही समसयाओं जैसे बाल  िववाह सती पथा भुखमरी आतंकवाद भासताचार आदी के िलए कुछ कायर िकया होता!
  • 32. • I.पोरािणक िववेचन :- • • 1 – साई को अगर ईशर मान बैठे हो अथवा ईशर का अवतार मान बैठे हो तो कयो? आप िहनदू है तो सनातन संसकृित के िकसी भी धमरगंथ मे साई महाराज का नाम तक नही है।तो धमरगंथो को झूठा सािबत करते हये िकस आधार पर साई को भगवान मान िलया ?( और पौरािणक गंथ कहते है िक कलयुग मे दो अवतार होने है ….एक भगवान बुद का हो चुका दूसरा किलक नाम से कलयुग के अंितम चरण मे होगा……. ।) • कलयुग मे भगवान बुद के अवतार को हम सभी जानते है उनहोने पूरी दुिनया मे योग व् शांित का सनदेश फे लाया । तथा इस धरती पर उनके जीवन का उदेशय साथरक व सफल रहा । परनतु साई न तो कोई उदेशय लेकर जनमे और न ही कु छ कर पाए ! 10 अवतार->(मतसय, कूमर, वराह, नृिसह, वामन, परशुराम, राम, कृषण, बुद, कलकी)
  • 33. • 2 – अगर साई को संत मानकर पूजा करते हो तो कयो? कया जो िसफर अचछा उपदेश दे दे या कुछ चमतकार िदखा दे वो संत हो जाता है? साई महाराज कभी गोहतया पर बोले?, साई महाराज ने उस समय उपिसथत कौन सी सामािजक बुराई को खतम िकया या करने का पयास िकया? ये तो संत का सबसे बडा कतरव होता है ।और िफर संत ही पूजने है तो कमी थी कया ? भगवा धारण करने वाले िकसी संत को पूज सकते थे ! अनाथ फकीर ही िमला ? • 3- अगर िसफर दूसरो से सुनकर साई के भक बन गए हो तो कयो? कया अपने धमरगंथो पर या अपने भगवान पर िवशास नही रहा ?
  • 34. 4 – अगर आप पौरािणक हो और अगर मनोकामना पूित के िलए साई के भक बन गए हो तो तुमहारी कौन सी ऐसी मनोकामना है जो िक भगवान िशवजी , या शी िवषणु जी, या कृषण जी, या राम जी पूरी नही कर सकते िसफर साई ही कर सकता है?तुमहारी ऐसी कौन सी मनोकामना है जो िक वैषणो देवी, या हिरदार या वृनदावन, या काशी या बाला जी मे शीश झुकाने से पूणर नही होगी ..वो िसफर िशरडी जाकर माथा टेकने से ही पूरी होगी??? और यिद शी िवषणु जी, या कृषण जी मनोकामना पूणर नही कर सकते तो ये उनही का बताया जा रहा अवतार कैसे कर देगा ?
  • 35. • 5– आप खुद को राम या कृषण या िशव भक कहलाने मे कम गौरव महसूस करते है कया जो साई भक होने का िबलला टाँगे िफरते हो …. कया राम और कृषण से पेम का कय हो गया है …. ? • • आज दुिनया सनातन धमर की ओर लौट रही है आप िकस िदशा मे जा रहे है ? • सनातन धमर ईशर कृत, ईशर पदत है ! बािक सब विक िवशेष दारा चलाये हए मत/मतानतर/पंथ/मजहब है ! • Hinduism is God centred. Other religions are prophet centred. • यिद हमारी बात पर िवशास नही तो दिकण अफीका शोध संसथान पर तो िवशास करेगे । • यहाँ देखे :--> http://www.hinduism.co.za/founder.htm ".co.za" south african domain ---> http://www.africaregistry.com/ एक अमेिरकन की बात पर भी भरोसा नही करेगे ?? यहाँ देखे ---> http://www.stephen-knapp.com/proof_of_vedic_culture's_global_existence.htm • कया आपके िलए ये गौरव पयारप नही !!?? जो देखा देखी मे अंधे बन साई के पीछे होिलये !
  • 37. • 6– ॐ साई राम ……..'ॐ' हमेशा मंतो से पहले ही लगाया जाता है अथवा ईशर के नाम से पहले …..साई के नाम के पहले ॐ लगाने का अिधकार कहा से पाया? शी साई राम ………. 'शी' मे शिक माता िनिहत है ….शी शिकरपेण शबद है ……. जो िक अकसर भगवान जी के नाम के साथ संयुक िकया जाता है ……. तो जय शी राम मे से …..शी ततव को हटाकर ……साई िलख देने मे तुमहे गौरव महसूस होना चािहए या शमर आनी चािहये? • यिद आप ॐ के बारे मे कुछ नही जानते तो यहाँ देखे ॐ कया है ! --->> ओ३म् • http://www.vedicbharat.com/2013/03/om-bigbang-shi
  • 38. • संत वही होता है जो लोगो को भगवान से जोडे , संत वो होता है जो जनता को भिकमागर की और ले जाये , संत वो होता है जो समाज मे वाप बुराइयो को दूर करने के िलए पहल करे … इस साई नाम के मुिसलम पाखंडी फकीर ने जीवन भर तुमहारे राम या कृषण का नाम तक नही िलया , और तुम इस साई की कालपिनक मिहमा की कहािनयो को पढ़ के इसे भगवान मान रहे हो … िकतनी भयावह मूखरता है ये …. • महान ज्ञानी ऋषिष मुिनयो के वंशज आज इतने मूखर और कलुिषत बुिद के हो गए है िक उनहे भगवान और एक साधारण से मुिसलम फकीर मे फकर नही आता ? • "रामायण-गीता मे सदेव उिचत  कमर करने, कमरठ बनने तथा  अनयाय के िवरद लडने की पेरणा िनिहत है कयू की यिद दुराचारी/पापी/देतय के िवनाश से हजारो मासूम लोगो का जीवन सुरिकत व् सुखी होता है तो वह उिचत बतलाया गया है  !" िकनतु साई की इस िकताब मे कमर करने -कमरठ बनने आिद को  गोली मार दी गई है ! साई के जादू के िकससे है ! बस जो भी हो, साई की शरण मे जाओ !! गुड की डली िदखा कर साई मंिदरो तक खीचने का पपंच मात है !!
  • 39. • H.एक और महाझूठ !! साँईँ के चमतकािरता के पाखंड और झूठ का पता चलता है, उसके “साँईँ चािलसा” से। दोसतोँ आईये पहले चािलसा का अथर जानलेते है:- “िहनदी पद की ऐसी िवधा िजसमेँ चौपाईयोँ की संखया मात 40 हो, चािलसा कहलाती है।” • • सवरपथम देखे की चोपाई कया / िकतनी बडी होती है ? • हनुमान चालीसा की पथम चोपाई :--- • • जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस ितहँ लोक उजागर ॥...1 • • ठीक है !! • • अब साँईँ चािलसा की एक चोपाई देखे :-- • • पहले साई के चरणो मे, अपना शीश नवाऊँ मै। कैसे िशडी साई आए, सारा हाल सुनाऊँ मै।। (1)
  • 40. • उपरोक्त में प्रथम पंक्ति मक्त में एक कोमा (,) है अतः यदिदि पहली पंक्ति मक्त को (कोमे के पहले व बादि वाले भाग को) एक चोपाई माने तो चोपाईयदों की संक्तख्यदा हुई :-- 204 और यदिदि दिोनों पंक्ति मक्तयदों को एक चोपाई माने तो चोपाईयदों की संक्तख्यदा हुई :-- 102 • हनुमान चालीसा में पुरे 40 है आप यदहाँ दिेख सकते है ---> • http://www.vedicbharat.com/p/blog-page_6.html साँईँ चाि मलसा में  कु ल 102 यदा  204 है .........................................झूठ नंक्त 10 • यदहाँ दिेखें --> • http://bharatdiscovery.org/india/साई_चालीसा • http://www.indif.com/nri/chalisas/sai_chalisa/sai_chalisa.asp ति मनक ि मवचारेँ कयदा इतने चौपाईयदोँ के होने पर भी उसे चाि मलसा कहा जा सकता है?? नहीँन?….. ि मबल्कुल सही समझा आप लोगोँ ने…. जब इन व्याकरि मणिक व आनुशासि मनक ि मनयदमोँ से इतना से इतना ि मखलवाड़ है, तो साईँ केझूठे पाखंक्तडवादिी चमत्कारोँ की बात ही कुछ और है! • िकतने शमर्म की बात है िक आधुि मनक ि मवज्ञान के गुणिोत्तर प्रगि मति मशलता के बावजूदि लोग साईँ जैसे महापाखंक्ति मडयदोँ के वि मशभूत हो जा रहे हैँ॥
  • 41. • कयदा इस भूि मम की सनातनी संक्तताने इतनी बुि मद्धिहीन हो गयदी है िक ि मजसकी भी काल्पि मनक मि महमा के गपोड़े सुन ले उसी को भगवान और महान मानकर भेडॉ की तरह उसके पीछे चल दिेती है ? इसमे हमारा नहीं आपका ही फायददिा है …. श्रद्धिा और अंक्तधश्रद्धिा में फकर्म होता है, श्रद्धिालु बनो …. • भगवान को चुनो …
  • 42. • जैसा की आप दिेख चुके है की साई चालीसा में 100-200 चोपाईयदाँ है!!! उसी प्रकार इस िकताब में  51 अध्यदायद है !!! ि मजन्हें  ध्यदान से पढने पर आप पाएंक्तगे -- पहले कई अध्यदायदों में इसे  यदुवक िफर साई  , श्री साई , िफर सदगुरु , अंक्ततयदार्ममी, दिेव , दिेवता, िफर  ईश्वर तथा िफर परमेश्वर कह कर चतुराई के साथ प्रमोशन िकयदा गयदा है और िफर जयदजयद कार की गई है । तािक पाठकों के माथे में धीरे धीरे साई इंक्तजेकशन लगा िदियदा जायदे ! जो व्यि मक्त एक गाँव की सीमा के बाहर  भी नही ि मनकला न ही ि मजसने कोई कीित पताका स्थाि मपत की, उसके ि मलए 51 अध्यदायद !! ? साई बाबा की माकेटिटिंग करने वालो ने यदा उनके अजेंटिंों ने यदा सीधे शब्दिो मे कहे तो उनके दिलालो ने काफी कुछ ि मलख रखा है। साई बाबा की चमत्कािरक काल्पि मनक कहाि मनयदो व गपोड़ों को लेकर बड़ी बड़ी िकताबे रच डाली है।  स्तुि मत, मंक्तत, चालीसा, आरती, भजन, वत कथा सब कु छ बना डाला… साई को अवतार बनाकर, भगवान बनाकर, और कही कही भगवान से भी बड़ा बना डाला है…  • साई - "अनंक्तत कोिटिं ब्रम्हांक्तड नायदक और अंक्ततयदार्ममी" • िकसी भी दिलाल ने आज तक यदे बताने का श्रम नहीं िकयदा िक साई िकस आधार पर भगवान यदा भगवान का अवतार है ? कृपयदा बुि मद्धिमान बने ! ि मजस भेड़ों के रेवड़ में आप चल रहे है :- कम से कम यदे तो दिेख लीि मजयदे की गडिरयदा आप को कहाँ ि मलए जा रहा है ?
  • 43. • K.सत्यद िदिखाने का अंक्ति मतम प्रयदास :------ • गीता जी में श्री कृषणि ने अवतार लेने के कारणि और कमो का वणिर्मन करते हुयदे ि मलखा है िक—- • पिरताणिायद साधूनांक्त ि मवनाशायद च दिुषकृ ताम । धमर्मसंक्तस्थापनाथार्मयद सम्भवाि मम यदूगे यदूगे ॥ ....गीता ४ /८ • अथार्मत, साधू पुरुषो के उद्धिार के ि मलए, पापकमर्म करने वालो का ि मवनाश करने के ि मलए और धमर्म/शांक्तती की स्थापना के ि मलए मे यदुग-यदुग मे प्रकटिं हुआ करता ह। • श्री कृषणि जी दारा कहे गए इस शोक के आधार पर दिेखते है िक साई िकतने पानी में है —
  • 44. 1 पिरताणिायद साधूनांक्त (साधु पुरुषो के उद्धिार के ि मलए ) – यदिदि यदे कटिंोरे वाला साई भगवान का अवतार था तो इसने कौन से सजनों का उद्धिार िकयदा था? जब िक इसके पूरे जीवनकाल मे यदे ि मशरडी नाम के पचास-सौ घरो की बाड़ी (गाँव) से बाहर भी न ि मनकला था..और इसके मरने के बादि उस गाँव के लगभग आधे लोग भी बेचारे रोगािदि प्रकोपों से पीि मड़त होके मरे थे…यदाि मन ि मवश्व भर के सजन तो कयदा अपने गाँव के ही सजनों का उद्धिार नहीं कर पायदा था….उस समयद ि मब्रिटिंश शाशन था, बेचारे बेबस भारतीयद अंक्तगेजो के जूते, कोड़े, डंक्तडे, लाते खाते गए और साई महाराज ि मशरडी मे बैठकर छोटिंे-मोटिंे जादिू िदिखाते रहे, िकसी का दिुख दिूर नहीं बि मल्क खुदि का भी नहीं कर पायदे आधे से जयदादिा जीवन रोगगस्त होकर व्यतीत िकयदा और अंक्तत मे भी बीमारी से ही मरे ।
  • 45. 2- ि मवनाशायद च दिुषकृताम( दिुषो के ि मवनाश के ि मलए) – साई बाबा के समयद मे दिुष कमर्म करने वाले अंक्तगेज थे जो भारतीयदो का शोषणि करते थे, जूि मतयदो के नीचे पीसते थे , दिूसरे गोहत्यदारे थे, तीसरे जो िकसी न िकसी तरह पाप िकयदा करते थे, साई बाबा ने न तो िकसी अंक्तगेज के कंक्तकड़ी-यदा पत्थर भी मारा, न ही िकसी गोहत्यदारे के चुटिंकी भी काटिंी, न ही िकसी भी पाप करने वाले को डांक्तटिंा-फटिंकारा। अरे बाबा तो चमत्कारी थे न ! पर अफसोस इनके चमत्कारो से एक भी दिुष अंक्तगेज को दिस्त न लगे, िकसी भी पापी का पेटिं खराब न हुआ…. यदाि मन दिुषो का ि मवनाश तो दिूर की बात दिुषो के आस-पास भी न फटिंके।
  • 46. 3- धमर्मसंक्तस्थापनाथार्मयद ( धमर्म की स्थापना के ि मलए ) – जब साई ने न तो सजनों का उद्धिार ही िकयदा, और न ही दिुषो को दिंक्तड ही िदियदा तो धमर्म की स्थापना का तो सवाल ही पैदिा नहीं होता..कयदो िक सजनों के उद्धिार, और दिुषो के संक्तहार के ि मबना धमर्म-स्थापना नहीं हुआ करती। यदे आदिमी मात एक छोटिंे से गाँव मे ही जादिू-टिंोने िदिखाता रहा पूरे जीवन भर… मि मस्जदि के खणडहर मे जाने कौन से गड़े मुदिेट को पूजता रहा…। मतलब इसने भीख मांक्तगने, बाजीगरी िदिखाने, ि मनठल्ले बैठकर ि महन्दिुओ को इस्लाम की ओर ले जाने के अलावा , उन्हे मूखर्म बनाने के अलावा कोई काम नहीं िकयदा….कोई भी धािमक, राजनैि मतक यदा सामाि मजक उपलि मब्ध नहीं..
  • 47. जब भगवान अवतार लेते है तो सम्पूणिर्म पृथ्वी उनके यदश से उनकी गाथाओ से अलंक्तकृत हो जाती है… उनके जीवनकाल मे ही उनका यदश ि मशखर पर होता है….परन्तु !! १ ९ १ ८ में साई की मृत्यदु के पश्चात कम से कम एक लाख स्वतंक्ततता सेनाि मनयदों को आजादिी रूपी यदज्ञ में अपनी आहुि मत दिेि मन पड़ी ! और इस साई को इसके जीवन काल मे ि मशरडी और आस पास के इलाके के अलावा और कोई जानता ही नहीं था…यदा यदू कहे लगभग सौ- दिौ सौ सालो तक इसे ि मसफर्म ि मशरडी क्षेत के ही लोग जानते थे…. आजकल की जो नयदी नस्ल साईराम साईराम करती रहती है वो अपने माता-ि मपता से पुछे िक आज से पंक्तद्रह- बीस वषर्म पहले तक उन्होने साई का नाम भी सुना था कयदा? साई कोई कीटिं था पतंक्तग था यदा कोई जन्तु … िकसी ने भी नहीं सुना था ….
  • 48. • L.श्री कृ षणि ने गीता जी के ९ वे अध्यदायद में कयदा कहा है जरा दिेखें, गौर से दिेखे :- • यदाि मन्त दिेववता दिेवान् ि मपतृन्यदाि मन्त ि मपतृवताः भूताि मन यदाि मन्त भूतेजयदा यदाि मन्त मदाि मजनोऽि मपमाम् .... गीता ९/२५ • • अथार्मत • दिेवताओ को पूजने वाले दिेवताओ को प्राप होते है, ि मपतरों को पूजने वाले ि मपतरों को प्राप होते है। • भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप होते है, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझे ही प्राप होते है ॥ • ................इसि मलए मेरे भक्तों का पुनजर्मन्म नही होता !! • • भूत प्रेत, मूदिार्म (खुला यदा दिफनायदा हुआ अथार्मत् कब्र) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयदंक्त मरने के बादि भूत-प्रेत ही बनते है.!
  • 49. यदही वो  साई बाबा उफर्म चाँदि ि ममयदांक्त की कब्र है जहाँ आप माथा पटिंकने जाते है ! बाबा का शरीर अब वही ँ ि मवश्रांक्ति मत पा  रहा है , और िफलहाल वह समाधी मंक्तिदिर नाम से ि मवख्यदात है {अध्यदायद 4} ध्यदान रहे :- आपकी समस्त समस्यदाओ का समाधान केवल ईश्वर के पास है ! ऐसे सड़े मुदिों के पास नही !
  • 50. ि मजसमे थोड़ी सी भी अकल होगी उसे समझ मे आएगा िक यदे लेख हर तरह से  स्पष रूप से ि मसद्धि कर रहा है िक साई कोई भगवान यदा अवतार नहीं था… …सभी धमर्मप्रेमी ि महन्दिू भाइयदो से ि मनवेदिन है िक इस लेख को अपने नाम से कोई भी कही भी पोस्टिं यदा कमेंटिं के रूप में कर सकता है….अगर आपके एक कमेंटिं यदा पोस्टिं से एक साईभक्त मुदिेट की पूजा छोडकर भगवान की और लौटिंता है तो आप पुणयद के भागी है…आप इस लेख को िप्रटिं करवा कर अपने पिरवार/ि ममत/पड़ोस आिदि में बाँटिं भी सकते है… ... जयद श्री राम
  • 51. • यदह संक्तसार अंक्तधि मवश्वास और तुचछ ख्यदादिी एवंक्त सफलता के  पीछे  भागने वालों से भरा पड़ा हुआ है. दियदानंक्तदि सरस्वती, महाराणिा प्रताप, ि मशवाजी, सुभाष चन्द्र बोस, सरदिार भगत िसह, राम प्रसादि ि मबि मस्मल, सरीखे लोग ि मजन्होंने इस दिेश के ि मलए अपने प्राणिों को न्यदोचावर कर दिीयदे  लोग उन्हें भूलते जा रहे है और साई बाबा ि मजसने  भारतीयद स्वाधीनता संक्तगाम में न कोई यदोगदिान िदियदा न ही सामाि मजक सुधार  में कोई भूि ममका रही उनको  समाज के कु छ लोगों ने भगवान् का दिजार्म दिे िदियदा है. तथा उन्हें श्री कृ षणि और श्री राम के अवतार के रूप में िदिखाकर  न के वल इनका अपमान िकयदा जा रहा अि मपतु नयदी पीडी और समाज को अवनि मत के मागर्म की और ले जाने का एक प्रयदास िकयदा जा रहा है. •  आवशयदकता इस बात की है की समाज के पतन को रोका जायदे और जन जागि मत लाकर वैिदिक महापुरुषों को अपमाि मनत करने की जो कोि मशशे की जा रही, उनपर अंक्तकु श लगायदा जायदे. • • जयद ि मसयदाराम ! • • कृ पयदा हमारी मुहीम के साथ जुड़े :-- • https://www.facebook.com/Shirdi.Sai.Expose धन्यदवादि !!
  • 52. • • साभार : • श्री अि मगवीर ।  • श्री प्रेयदसी आयदर्म भरतवंक्तशी ।  • रोि महत कु मार ।  • http://www.vedicbharat.com/2013/04/Shirdi-sai-baba-Exposed---must- read.html • http://hindurashtra.wordpress.com/expose-sai/ • http://vaidikdharma.wordpress.com/category/ि मशरडी-साई-का-पदिार्मफास/ • http://hinduawaken.wordpress.com/2012/01/page/2/ • http://www.voiceofaryas.com/author/mishra-preyasi/ http://hindurashtra.wordpress.com/2012/08/13/374/ http://hindutavamedia.blogspot.in/2013/01/blog-post_27.html#.UWAmmulJNm http://krantikaribadlava.blogspot.in/2013/01/blog-post_7307.html • उपरोक्त लेख Google Docs पर भी उपलब्ध करवा िदियदा गयदा है : (detailed) https://docs.google.com/file/d/0B- QqeB6P9jsHbGNvU0R0dGllbkE/edit?pli=1