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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
1. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ी गणेशाय नमः
ी जानक व लभो वजयते
ी रामच रतमानस
———तृतीय सोपान
(अर
यका ड)
लोक
मू लं धमतरो ववेकजलधेः पू ण दुमान ददं
वैरा या बु जभा करं यघघन वा तापहं तापहम ्।
मोहा भोधरपू गपाटन वधौ वःस भवं श करं
व दे
सा
मकलं कलंकशमनं ीरामभूप यम ्।।1।।
ु
ान दपयोदसौभगतनु ं पीता बरं सु दरं
पाणौ बाणशरासनं क टलस तू णीरभारं वरम ्
राजीवायतलोचनं धृतजटाजू टेन संशो भतं
सीताल मणसंयु तं प थगतं रामा भरामं भजे।।2।।
सो0-उमा राम गु न गू ढ़ पं डत मु न पाव हं बर त।
पाव हं मोह बमूढ़ जे ह र बमु ख न धम र त।।
पु र नर भरत ी त म गाई। म त अनु प अनू प सु हाई।।
अब भु च रत सु नहु अ त पावन। करत जे बन सु र नर मु न भावन।।
एक बार चु न कसु म सु हाए। नज कर भू षन राम बनाए।।
ु
सीत ह प हराए भु सादर। बैठे फ टक सला पर सु ंदर।।
सु रप त सु त ध र बायस बेषा। सठ चाहत रघु प त बल दे खा।।
िज म पपी लका सागर थाहा। महा मंदम त पावन चाहा।।
सीता चरन च च ह त भागा। मू ढ़ मंदम त कारन कागा।।
चला
धर रघु नायक जाना। सींक धनु ष सायक संधाना।।
दो0-अ त कृ पाल रघु नायक सदा द न पर नेह।
ता सन आइ क ह छलु मू रख अवगु न गेह।।1।।
े रत मं
मसर धावा। चला भािज बायस भय पावा।।
ध र नज प गयउ पतु पाह ं। राम बमु ख राखा ते ह नाह ं।।
भा नरास उपजी मन ासा। जथा च
मधाम सवपु र सब लोका। फरा
भय र ष दुबासा।।
मत याकल भय सोका।।
ु
2. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
काहू ँ बैठन कहा न ओह । रा ख को सकइ राम कर ोह ।।
मातु मृ यु पतु समन समाना। सु धा होइ बष सु नु ह रजाना।।
म करइ सत रपु क करनी। ता कहँ बबु धनद बैतरनी।।
ै
सब जगु ता ह अनलहु ते ताता। जो रघु बीर बमुख सु नु ाता।।
नारद दे खा बकल जयंता। ला ग दया कोमल चत संता।।
पठवा तु रत राम प हं ताह । कहे स पु का र नत हत पाह ।।
आतुर सभय गहे स पद जाई। ा ह ा ह दयाल रघु राई।।
अतु लत बल अतु लत भु ताई। म म तमंद जा न न हं पाई।।
नज कृ त कम ज नत फल पायउँ । अब भु पा ह सरन त क आयउँ ।।
सु न कृ पाल अ त आरत बानी। एकनयन क र तजा भवानी।।
सो0-क ह मोह बस ोह ज य प ते ह कर बध उ चत।
भु छाड़ेउ क र छोह को कृ पाल रघु बीर सम।।2।।
रघु प त च कट ब स नाना। च रत कए ु त सु धा समाना।।
ू
बहु र राम अस मन अनु माना। होइ ह भीर सब हं मो ह जाना।।
सकल मु न ह सन बदा कराई। सीता स हत चले वौ भाई।।
अ
क आ म जब भु गयऊ। सु नत महामु न हर षत भयऊ।।
े
पुल कत गात अ
उ ठ धाए। दे ख रामु आतु र च ल आए।।
करत दं डवत मु न उर लाए। ेम बा र वौ जन अ हवाए।।
दे ख राम छ ब नयन जु ड़ाने। सादर नज आ म तब आने।।
क र पू जा क ह बचन सु हाए। दए मू ल फल भु मन भाए।।
सो0- भु आसन आसीन भ र लोचन सोभा नर ख।
मु नबर परम बीन जो र पा न अ तु त करत।।3।।
छं 0-नमा म भ त व सलं। कृ पालु शील कोमलं।।
भजा म ते पदांबु जं। अका मनां वधामदं ।।
नकाम याम सु ंदरं । भवा बु नाथ मंदरं ।।
फ ल कज लोचनं। मदा द दोष मोचनं।।
ु
ं
लंब बाहु व मं। भोऽ मेय वैभवं।।
नषंग चाप सायक। धरं
ं
लोक नायक।।
ं
दनेश वंश मंडनं। महे श चाप खंडनं।।
मु नीं संत रं जनं। सु रा र वृंद भंजनं।।
मनोज वै र वं दतं। अजा द दे व से वतं।।
3. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
वशु बोध व हं। सम त दूषणापहं।।
नमा म इं दरा प तं। सु खाकरं सतां ग तं।।
भजे सशि त सानु जं। शची प तं
वदं
यानु जं।।
मू ल ये नराः। भजं त ह न म सरा।।
पतं त नो भवाणवे। वतक वी च संकले।।
ु
व व त वा सनः सदा। भजं त मु तये मु दा।।
नर य इं या दक। यां त ते ग तं वक।।
ं
ं
तमेकम दुतं भु ं। नर हमी वरं वभु ं।।
जग गु ं च शा वतं। तु र यमेव कवलं।।
े
भजा म भाव व लभं। कयो गनां सु दलभं।।
ु
ु
वभ त क प पादपं। समं सु से यम वहं।।
अनू प प भू प तं। नतोऽहमु वजा प तं।।
सीद मे नमा म ते। पदा ज भि त दे ह मे।।
पठं त ये तवं इदं । नरादरे ण ते पदं ।।
जं त ना संशयं। वद य भि त संयु ता।।
दो0- बनती क र मु न नाइ स कह कर जो र बहो र।
चरन सरो ह नाथ ज न कबहु ँ तजै म त मो र।।4।।
–*–*–
अनु सु इया क पद ग ह सीता। मल बहो र सु सील बनीता।।
े
र षप तनी मन सु ख अ धकाई। आ सष दे इ नकट बैठाई।।
द य बसन भू षन प हराए। जे नत नू तन अमल सु हाए।।
कह र षबधू सरस मृदु बानी। ना रधम कछ याज बखानी।।
ु
मातु पता ाता हतकार । मत द सब सु नु राजकमार ।।
ु
अ मत दा न भता बयदे ह । अधम सो ना र जो सेव न तेह ।।
धीरज धम म अ नार । आपद काल प र खअ हं चार ।।
बृ रोगबस जड़ धनह ना। अधं ब धर
ोधी अ त द ना।।
ऐसेहु प त कर कएँ अपमाना। ना र पाव जमपु र दुख नाना।।
एकइ धम एक त नेमा। कायँ बचन मन प त पद ेमा।।
जग प त ता चा र ब ध अह हं। बेद पु रान संत सब कह हं।।
उ तम क अस बस मन माह ं। सपनेहु ँआन पु ष जग नाह ं।।
े
म यम परप त दे खइ कस। ाता पता पु
ै
नज जस।।
4. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
धम बचा र समु झ कल रहई। सो न क ट
ु
य ु त अस कहई।।
बनु अवसर भय त रह जोई। जानेहु अधम ना र जग सोई।।
प त बंचक परप त र त करई। रौरव नरक क प सत परई।।
छन सु ख ला ग जनम सत को ट। दुख न समुझ ते ह सम को खोट ।।
बनु म ना र परम ग त लहई। प त त धम छा ड़ छल गहई।।
पत
तकल जनम जहँ जाई। बधवा होई पाई त नाई।।
ु
सो0-सहज अपाव न ना र प त सेवत सु भ ग त लहइ।
जसु गावत ु त चा र अजहु तु ल सका ह र ह
य।।5क।।
सनु सीता तव नाम सु मर ना र प त त कर ह।
तो ह ान य राम क हउँ कथा संसार हत।।5ख।।
सु न जानक ं परम सु खु पावा। सादर तासु चरन स नावा।।
तब मु न सन कह कृ पा नधाना। आयसु होइ जाउँ बन आना।।
संतत मो पर कृ पा करे हू । सेवक जा न तजेहु ज न नेहू ।।
धम धु रंधर भु क बानी। सु न स ेम बोले मु न यानी।।
ै
जासु कृ पा अज सव सनकाद । चहत सकल परमारथ बाद ।।
ते तु ह राम अकाम पआरे । द न बंधु मृदु बचन उचारे ।।
अब जानी म ी चतु राई। भजी तु ह ह सब दे व बहाई।।
जे ह समान अ तसय न हं कोई। ता कर सील कस न अस होई।।
क ह ब ध कह जाहु अब वामी। कहहु नाथ तु ह अंतरजामी।।
े
अस क ह भु बलो क मु न धीरा। लोचन जल बह पु लक सर रा।।
छं 0-तन पु लक नभर ेम पु रन नयन मु ख पंकज दए।
मन यान गु न गोतीत भु म द ख जप तप का कए।।
जप जोग धम समू ह त नर भग त अनु पम पावई।
रधु बीर च रत पु नीत न स दन दास तु लसी गावई।।
दो0- क लमल समन दमन मन राम सु जस सु खमू ल।
सादर सु न ह जे त ह पर राम रह हं अनु कल।।6(क)।।
ू
सो0-क ठन काल मल कोस धम न यान न जोग जप।
प रह र सकल भरोस राम ह भज हं ते चतु र नर।।6(ख)।।
–*–*–
मु न पद कमल नाइ क र सीसा। चले बन ह सु र नर मु न ईसा।।
आगे राम अनु ज पु न पाछ। मु न बर बेष बने अ त काछ।।
5. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
उमय बीच ी सोहइ कसी।
ै
म जीव बच माया जैसी।।
स रता बन ग र अवघट घाटा। प त प हचानी दे हं बर बाटा।।
जहँ जहँ जा ह दे व रघु राया। कर हं मेध तहँ तहँ नभ छाया।।
मला असु र बराध मग जाता। आवतह ं रघु वीर नपाता।।
तु रत हं चर प ते हं पावा। दे ख दुखी नज धाम पठावा।।
पु न आए जहँ मु न सरभंगा। सु ंदर अनु ज जानक संगा।।
दो0-दे खी राम मु ख पंकज मु नबर लोचन भृं ग।
सादर पान करत अ त ध य ज म सरभंग।।7।।
–*–*–
कह मु न सु नु रघु बीर कृ पाला। संकर मानस राजमराला।।
जात रहे उँ बरं च क धामा। सु नेउँ वन बन ऐह हं रामा।।
े
चतवत पंथ रहे उँ दन राती। अब भु दे ख जु ड़ानी छाती।।
नाथ सकल साधन म ह ना। क ह कृ पा जा न जन द ना।।
सो कछ दे व न मो ह नहोरा। नज पन राखेउ जन मन चोरा।।
ु
तब ल ग रहहु द न हत लागी। जब ल ग मल तु ह ह तनु यागी।।
जोग ज य जप तप त क हा। भु कहँ दे इ भग त बर ल हा।।
ए ह ब ध सर र च मु न सरभंगा। बैठे दयँ छा ड़ सब संगा।।
दो0-सीता अनु ज समेत भु नील जलद तनु याम।
मम हयँ बसहु नरं तर सगु न प ीराम।।8।।
–*–*–
अस क ह जोग अ ग न तनु जारा। राम कृ पाँ बैकंु ठ सधारा।।
ताते मु न ह र ल न न भयऊ। थम हं भेद भग त बर लयऊ।।
र ष नकाय मु नबर ग त दे ख। सु खी भए नज दयँ बसेषी।।
अ तु त कर हं सकल मु न बृंदा। जय त नत हत क ना कदा।।
ं
पु न रघु नाथ चले बन आगे। मु नबर बृंद बपु ल सँग लागे।।
अि थ समू ह दे ख रघु राया। पू छ मु न ह ला ग अ त दाया।।
जानतहु ँ पू छअ कस वामी। सबदरसी तु ह अंतरजामी।।
न सचर नकर सकल मु न खाए। सु न रघु बीर नयन जल छाए।।
दो0- न सचर ह न करउँ म ह भुज उठाइ पन क ह।
सकल मु न ह क आ मि ह जाइ जाइ सु ख द ह।।9।।
े
–*–*–
मु न अगि त कर स य सु जाना। नाम सु तीछन र त भगवाना।।
6. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
मन
म बचन राम पद सेवक। सपनेहु ँ आन भरोस न दे वक।।
भु आगवनु वन सु न पावा। करत मनोरथ आतु र धावा।।
हे ब ध द नबंधु रघु राया। मो से सठ पर क रह हं दाया।।
स हत अनु ज मो ह राम गोसाई। म लह हं नज सेवक क नाई।।
मोरे िजयँ भरोस ढ़ नाह ं। भग त बर त न यान मन माह ं।।
न हं सतसंग जोग जप जागा। न हं ढ़ चरन कमल अनु रागा।।
एक बा न क ना नधान क । सो
य जाक ग त न आन क ।।
होइह सु फल आजु मम लोचन। दे ख बदन पंकज भव मोचन।।
नभर ेम मगन मु न यानी। क ह न जाइ सो दसा भवानी।।
द सअ
ब द स पंथ न हं सू झा। को म चलेउँ कहाँ न हं बू झा।।
कबहु ँक फ र पाछ पु न जाई। कबहु ँक नृ य करइ गु न गाई।।
अ बरल ेम भग त मु न पाई। भु दे ख त ओट लु काई।।
अ तसय ी त दे ख रघु बीरा। गटे दयँ हरन भव भीरा।।
मु न मग माझ अचल होइ बैसा। पु लक सर र पनस फल जैसा।।
तब रघु नाथ नकट च ल आए। दे ख दसा नज जन मन भाए।।
मु न ह राम बहु भाँ त जगावा। जाग न यानज नत सु ख पावा।।
भू प प तब राम दुरावा। दयँ चतु भु ज प दे खावा।।
मु न अकलाइ उठा तब कस। बकल ह न म न फ न बर जैस ।।
ु
ै
आग दे ख राम तन यामा। सीता अनु ज स हत सु ख धामा।।
परे उ लकट इव चरनि ह लागी। ेम मगन मु नबर बड़भागी।।
ु
भु ज बसाल ग ह लए उठाई। परम ी त राखे उर लाई।।
मु न ह मलत अस सोह कृ पाला। कनक त ह जनु भट तमाला।।
राम बदनु बलोक मु न ठाढ़ा। मानहु ँ च माझ ल ख काढ़ा।।
दो0-तब मु न दयँ धीर धीर ग ह पद बार हं बार।
नज आ म भु आ न क र पू जा ब बध कार।।10।।
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कह मु न भु सु नु बनती मोर । अ तु त कर कवन ब ध तोर ।।
म हमा अ मत मो र म त थोर । र ब स मु ख ख योत अँजोर ।।
याम तामरस दाम शर रं । जटा मु कट प रधन मु नचीरं ।।
ु
पा ण चाप शर क ट तू णीरं । नौ म नरं तर ीरघु वीरं ।।
मोह व पन घन दहन कृ शानु ः। संत सरो ह कानन भानुः।।
7. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
न शचर क र व थ मृगराजः। ातु सदा नो भव खग बाजः।।
अ ण नयन राजीव सु वेश। सीता नयन चकोर नशेश।।
ं
ं
हर
द मानस बाल मरालं। नौ म राम उर बाहु वशालं।।
संशय सप सन उरगादः। शमन सु ककश तक वषादः।।
भव भंजन रं जन सु र यू थः। ातु सदा नो कृ पा व थः।।
नगु ण सगु ण वषम सम पं।
ान गरा गोतीतमनू पं।।
अमलम खलमनव यमपारं । नौ म राम भंजन म ह भारं ।।
भक् त क पपादप आरामः। तजन
ोध लोभ मद कामः।।
अ त नागर भव सागर सेतु ः। ातु सदा दनकर कल कतु ः।।
ु
े
अतु लत भु ज ताप बल धामः। क ल मल वपु ल वभंजन नामः।।
धम वम नमद गु ण ामः। संतत शं तनोतु मम रामः।।
जद प बरज यापक अ बनासी। सब क दयँ नरं तर बासी।।
े
तद प अनु ज ी स हत खरार । बसतु मन स मम काननचार ।।
जे जान हं ते जानहु ँ वामी। सगु न अगु न उर अंतरजामी।।
जो कोसल प त रािजव नयना। करउ सो राम दय मम अयना।
अस अ भमान जाइ ज न भोरे । म सेवक रघु प त प त मोरे ।।
सु न मु न बचन राम मन भाए। बहु रहर ष मु नबर उर लाए।।
परम स न जानु मु न मोह । जो बर मागहु दे उ सो तोह ।।
मु न कह मै बर कबहु ँ न जाचा। समु झ न परइ झू ठ का साचा।।
तु ह ह नीक लागै रघु राई। सो मो ह दे हु दास सु खदाई।।
अ बरल भग त बर त ब याना। होहु सकल गु न यान नधाना।।
भु जो द ह सो ब म पावा। अब सो दे हु मो ह जो भावा।।
दो0-अनु ज जानक स हत भु चाप बान धर राम।
मम हय गगन इंद ु इव बसहु सदा नहकाम।।11।।
–*–*–
एवम तु क र रमा नवासा। हर ष चले कभंज र ष पासा।।
ु
बहु त दवस गु र दरसन पाएँ। भए मो ह ए हं आ म आएँ।।
अब भु संग जाउँ गु र पाह ं। तु ह कहँ नाथ नहोरा नाह ं।।
दे ख कृ पा न ध मु न चतु राई। लए संग बहसै वौ भाई।।
पंथ कहत नज भग त अनू पा। मु न आ म पहु ँचे सु रभूपा।।
तु रत सु तीछन गु र प हं गयऊ। क र दं डवत कहत अस भयऊ।।
8. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
नाथ कौसलाधीस कमारा। आए मलन जगत आधारा।।
ु
राम अनु ज समेत बैदेह । न स दनु दे व जपत हहु जेह ।।
सु नत अगि त तु रत उ ठ धाए। ह र बलो क लोचन जल छाए।।
मु न पद कमल परे वौ भाई। र ष अ त ी त लए उर लाई।।
सादर कसल पू छ मु न यानी। आसन बर बैठारे आनी।।
ु
पु न क र बहु कार भु पू जा। मो ह सम भा यवंत न हं दूजा।।
जहँ ल ग रहे अपर मु न बृंदा। हरषे सब बलो क सु खकदा।।
ं
दो0-मु न समू ह महँ बैठे स मु ख सब क ओर।
सरद इंद ु तन चतवत मानहु ँ नकर चकोर।।12।।
–*–*–
तब रघु बीर कहा मु न पाह ं। तु ह सन भु दुराव कछ नाह ।।
ु
तु ह जानहु जे ह कारन आयउँ । ताते तात न क ह समु झायउँ ।।
अब सो मं दे हु भु मोह । जे ह कार मार मु न ोह ।।
मु न मु सकाने सु न भु बानी। पू छेहु नाथ मो ह का जानी।।
तु हरे इँ भजन भाव अघार । जानउँ म हमा कछक तु हार ।।
ु
ऊम र त
बसाल तव माया। फल
मांड अनेक नकाया।।
जीव चराचर जंतु समाना। भीतर बस ह न जान हं आना।।
ते फल भ छक क ठन कराला। तव भयँ डरत सदा सोउ काला।।
ते तु ह सकल लोकप त सा । पूँछेहु मो ह मनु ज क ना ।।
यह बर मागउँ कृ पा नकता। बसहु दयँ ी अनु ज समेता।।
े
अ बरल भग त बर त सतसंगा। चरन सरो ह ी त अभंगा।।
ज यप
म अखंड अनंता। अनु भव ग य भज हं जे ह संता।।
अस तव प बखानउँ जानउँ । फ र फ र सगु न
म र त मानउँ ।।
संतत दास ह दे हु बड़ाई। तात मो ह पूँछेहु रघु राई।।
है भु परम मनोहर ठाऊ। पावन पंचबट ते ह नाऊ।।
ँ
ँ
दं डक बन पु नीत भु करहू । उ साप मु नबर कर हरहू ।।
बास करहु तहँ रघु कल राया। क जे सकल मु न ह पर दाया।।
ु
चले राम मु न आयसु पाई। तु रत हं पंचबट नअराई।।
दो0-गीधराज स भट भइ बहु ब ध ी त बढ़ाइ।।
गोदावर नकट भु रहे परन गृह छाइ।।13।।
–*–*–
जब ते राम क ह तहँ बासा। सु खी भए मु न बीती ासा।।
9. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ग र बन नद ं ताल छ ब छाए। दन दन
त अ त हौ हं सु हाए।।
खग मृग बृंद अनं दत रहह ं। मधु प मधु र गंजत छ ब लहह ं।।
सो बन बर न न सक अ हराजा। जहाँ गट रघु बीर बराजा।।
एक बार भु सु ख आसीना। ल छमन बचन कहे छलह ना।।
सु र नर मु न सचराचर सा । म पू छउँ नज भु क नाई।।
मो ह समुझाइ कहहु सोइ दे वा। सब तिज कर चरन रज सेवा।।
कहहु यान बराग अ माया। कहहु सो भग त करहु जे हं दाया।।
दो0- ई वर जीव भेद भु सकल कहौ समुझाइ।।
जात होइ चरन र त सोक मोह म जाइ।।14।।
–*–*–
थोरे ह महँ सब कहउँ बु झाई। सु नहु तात म त मन चत लाई।।
म अ मोर तोर त माया। जे हं बस क हे जीव नकाया।।
गो गोचर जहँ ल ग मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई।।
ते ह कर भेद सु नहु तु ह सोऊ। ब या अपर अ ब या दोऊ।।
एक दु ट अ तसय दुख पा। जा बस जीव परा भवकपा।।
ू
एक रचइ जग गु न बस जाक। भु े रत न हं नज बल ताक।।
यान मान जहँ एकउ नाह ं। दे ख
म समान सब माह ।।
क हअ तात सो परम बरागी। तृन सम स
ती न गु न यागी।।
दो0-माया ईस न आपु कहु ँ जान क हअ सो जीव।
बंध मो छ द सबपर माया ेरक सीव।।15।।
–*–*–
धम त बर त जोग त याना। यान मो छ द बेद बखाना।।
जात बे ग वउँ म भाई। सो मम भग त भगत सु खदाई।।
सो सु तं अवलंब न आना। ते ह आधीन यान ब याना।।
भग त तात अनु पम सु खमूला। मलइ जो संत होइँ अनु कला।।
ू
भग त क साधन कहउँ बखानी। सु गम पंथ मो ह पाव हं ानी।।
थम हं ब चरन अ त ीती। नज नज कम नरत ु त र ती।।
ए ह कर फल पु न बषय बरागा। तब मम धम उपज अनु रागा।।
वना दक नव भि त ढ़ाह ं। मम ल ला र त अ त मन माह ं।।
संत चरन पंकज अ त ेमा। मन
गु
म बचन भजन ढ़ नेमा।।
पतु मातु बंधु प त दे वा। सब मो ह कहँ जाने ढ़ सेवा।।
मम गु न गावत पु लक सर रा। गदगद गरा नयन बह नीरा।।
10. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
काम आ द मद दं भ न जाक। तात नरं तर बस म ताक।।
दो0-बचन कम मन मो र ग त भजनु कर हं नःकाम।।
त ह क दय कमल महु ँ करउँ सदा ब ाम।।16।।
े
–*–*–
भग त जोग सु न अ त सु ख पावा। ल छमन भु चरनि ह स नावा।।
ए ह ब ध गए कछक दन बीती। कहत बराग यान गुन नीती।।
ु
सू पनखा रावन क ब हनी। दु ट दय दा न जस अ हनी।।
ै
पंचबट सो गइ एक बारा। दे ख बकल भइ जु गल कमारा।।
ु
ाता पता पु उरगार । पु ष मनोहर नरखत नार ।।
होइ बकल सक मन ह न रोक । िज म र बम न व र ब ह बलोक ।।
चर प ध र भु प हं जाई। बोल बचन बहु त मु सु काई।।
तु ह सम पु ष न मो सम नार । यह सँजोग ब ध रचा बचार ।।
मम अनु प पु ष जग माह ं। दे खेउँ खोिज लोक तहु नाह ं।।
ताते अब ल ग र हउँ कमार । मनु माना कछ तु ह ह नहार ।।
ु
ु
सीत ह चतइ कह
भु बाता। अहइ कआर मोर लघु ाता।।
ु
गइ ल छमन रपु भ गनी जानी। भु बलो क बोले मृदु बानी।।
सु ंद र सु नु म उन ्ह कर दासा। पराधीन न हं तोर सु पासा।।
भु समथ कोसलपु र राजा। जो कछ कर हं उन ह सब छाजा।।
ु
सेवक सु ख चह मान भखार । यसनी धन सु भ ग त ब भचार ।।
लोभी जसु चह चार गु मानी। नभ दु ह दूध चहत ए ानी।।
पु न फ र राम नकट सो आई। भु ल छमन प हं बहु रपठाई।।
ल छमन कहा तो ह सो बरई। जो तृन तो र लाज प रहरई।।
तब ख सआ न राम प हं गई। प भयंकर गटत भई।।
सीत ह सभय दे ख रघु राई। कहा अनु ज सन सयन बु झाई।।
दो0-ल छमन अ त लाघवँ सो नाक कान बनु क ि ह।
ताक कर रावन कहँ मनौ चु नौती द ि ह।।17।।
े
–*–*–
नाक कान बनु भइ बकरारा। जनु
व सैल गै क धारा।।
ै
खर दूषन प हं गइ बलपाता। धग धग तव पौ ष बल ाता।।
ते ह पू छा सब कहे स बु झाई। जातु धान सु न सेन बनाई।।
धाए न सचर नकर ब था। जनु सप छ क जल ग र जू था।।
नाना बाहन नानाकारा। नानायु ध धर घोर अपारा।।
11. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सु पनखा आग क र ल नी। असु भ प ु त नासा ह नी।।
असगु न अ मत हो हं भयकार । गन हं न मृ यु बबस सब झार ।।
गज ह तज हं गगन उड़ाह ं। दे ख कटक भट अ त हरषाह ं।।
ु
कोउ कह िजअत धरहु वौ भाई। ध र मारहु तय लेहु छड़ाई।।
धू र पू र नभ मंडल रहा। राम बोलाइ अनु ज सन कहा।।
लै जान क ह जाहु ग र कदर। आवा न सचर कटक भयंकर।।
ं
ु
रहे हु सजग सु न भु क बानी। चले स हत ी सर धनु पानी।।
ै
दे ख राम रपु दल च ल आवा। बह स क ठन कोदं ड चढ़ावा।।
छं 0-कोदं ड क ठन चढ़ाइ सर जट जू ट बाँधत सोह य ।
मरकत सयल पर लरत दा म न को ट स जु ग भु जग य ।।
क ट क स नषंग बसाल भु ज ग ह चाप ब सख सु धा र क।।
ै
चतवत मनहु ँ मृगराज भु गजराज घटा नहा र क।।
ै
सो0-आइ गए बगमेल धरहु धरहु धावत सु भट।
जथा बलो क अकल बाल र ब ह घेरत दनु ज।।18।।
े
भु बलो क सर सक हं न डार । थ कत भई रजनीचर धार ।।
स चव बो ल बोले खर दूषन। यह कोउ नृपबालक नर भू षन।।
नाग असु र सु र नर मु न जेते। दे खे िजते हते हम कते।।
े
हम भ र ज म सु नहु सब भाई। दे खी न हं अ स सु ंदरताई।।
ज य प भ गनी क ह क पा। बध लायक न हं पु ष अनू पा।।
ु
दे हु तु रत नज ना र दुराई। जीअत भवन जाहु वौ भाई।।
मोर कहा तु ह ता ह सु नावहु ।तासु बचन सु न आतु र आवहु ।।
दूतन ह कहा राम सन जाई। सु नत राम बोले मु सकाई।।
्
हम छ ी मृगया बन करह ं। तु ह से खल मृग खौजत फरह ं।।
रपु बलवंत दे ख न हं डरह ं। एक बार कालहु सन लरह ं।।
ज य प मनु ज दनु ज कल घालक। मु न पालक खल सालक बालक।।
ु
ज न होइ बल घर फ र जाहू । समर बमुख म हतउँ न काहू ।।
रन च ढ़ क रअ कपट चतु राई। रपु पर कृ पा परम कदराई।।
दूत ह जाइ तु रत सब कहे ऊ। सु न खर दूषन उर अ त दहे ऊ।।
छं -उर दहे उ कहे उ क धरहु धाए बकट भट रजनीचरा।
सर चाप तोमर सि त सू ल कृ पान प रघ परसु धरा।।
भु क ह धनु ष टकोर थम कठोर घोर भयावहा।
12. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
भए ब धर याकल जातु धान न यान ते ह अवसर रहा।।
ु
दो0-सावधान होइ धाए जा न सबल आरा त।
लागे बरषन राम पर अ
स
बहु भाँ त।।19(क)।।
त ह क आयु ध तल सम क र काटे रघु बीर।
े
ता न सरासन वन ल ग पु न छाँड़े नज तीर।।19(ख)।।
–*–*–
छं 0-तब चले जान बबान कराल। फंु करत जनु बहु याल।।
कोपेउ समर ीराम। चले ब सख न सत नकाम।।
अवलो क खरतर तीर। मु र चले न सचर बीर।।
भए ु
ती नउ भाइ। जो भा ग रन ते जाइ।।
ते ह बधब हम नज पा न। फरे मरन मन महु ँ ठा न।।
आयु ध अनेक कार। सनमु ख ते कर हं हार।।
रपु परम कोपे जा न। भु धनु ष सर संधा न।।
छाँड़े बपु ल नाराच। लगे कटन बकट पसाच।।
उर सीस भु ज कर चरन। जहँ तहँ लगे म ह परन।।
च करत लागत बान। धर परत कधर समान।।
ु
भट कटत तन सत खंड। पु न उठत क र पाषंड।।
नभ उड़त बहु भु ज मु ंड। बनु मौ ल धावत ं ड।।
खग कक काक सृगाल। कटकट हं क ठन कराल।।
ं
छं 0-कटकट हं ज़ंबु क भू त ेत पसाच खपर संचह ं।
बेताल बीर कपाल ताल बजाइ जो ग न नंचह ं।।
रघु बीर बान चंड खंड हं भट ह क उर भु ज सरा।
े
जहँ तहँ पर हं उ ठ लर हं धर ध ध कर हं भयकर गरा।।
अंतावर ं ग ह उड़त गीध पसाच कर ग ह धावह ं।।
सं ाम पु र बासी मनहु ँ बहु बाल गु ड़ी उड़ावह ं।।
मारे पछारे उर बदारे बपु ल भट कहँरत परे ।
अवलो क नज दल बकल भट त सरा द खर दूषन फरे ।।
सर सि त तोमर परसु सू ल कृ पान एक ह बारह ं।
क र कोप ीरघु बीर पर अग नत नसाचर डारह ं।।
भु न मष महु ँ रपु सर नवा र पचा र डारे सायका।
दस दस ब सख उर माझ मारे सकल न सचर नायका।।
13. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
म ह परत उ ठ भट भरत मरत न करत माया अ त घनी।
सु र डरत चौदह सहस ेत बलो क एक अवध धनी।।
सु र मु न सभय भु दे ख मायानाथ अ त कौतु क कर् यो।
दे ख ह परसपर राम क र सं ाम रपु दल ल र मर् यो।।
दो0-राम राम क ह तनु तज हं पाव हं पद नबान।
क र उपाय रपु मारे छन महु ँ कृ पा नधान।।20(क)।।
हर षत बरष हं सु मन सु र बाज हं गगन नसान।
अ तु त क र क र सब चले सो भत ब बध बमान।।20(ख)।।
–*–*–
जब रघु नाथ समर रपु जीते। सु र नर मु न सब क भय बीते।।
े
तब ल छमन सीत ह लै आए। भु पद परत हर ष उर लाए।
सीता चतव याम मृदु गाता। परम ेम लोचन न अघाता।।
पंचवट ं ब स ीरघु नायक। करत च रत सु र मु न सु खदायक।।
धु आँ दे ख खरदूषन करा। जाइ सु पनखाँ रावन ेरा।।
े
बो ल बचन
ोध क र भार । दे स कोस क सु र त बसार ।।
ै
कर स पान सोव स दनु राती। सु ध न हं तव सर पर आराती।।
राज नी त बनु धन बनु धमा। ह र ह समप बनु सतकमा।।
ब या बनु बबेक उपजाएँ। म फल पढ़े कएँ अ पाएँ।।
संग ते जती कमं ते राजा। मान ते यान पान त लाजा।।
ु
ी त नय बनु मद ते गु नी। नास ह बे ग नी त अस सुनी।।
सो0- रपु ज पावक पाप भु अ ह ग नअ न छोट क र।
अस क ह ब बध बलाप क र लागी रोदन करन।।21(क)।।
दो0-सभा माझ प र याकल बहु कार कह रोइ।
ु
तो ह िजअत दसकधर मो र क अ स ग त होइ।।21(ख)।।
ं
–*–*–
सु नत सभासद उठे अकलाई। समु झाई ग ह बाहँ उठाई।।
ु
कह लंकस कह स नज बाता। कइँ तव नासा कान नपाता।।
े
अवध नृप त दसरथ क जाए। पु ष संघ बन खेलन आए।।
े
समु झ पर मो ह उ ह क करनी। र हत नसाचर क रह हं धरनी।।
ै
िज ह कर भु जबल पाइ दसानन। अभय भए बचरत मु न कानन।।
दे खत बालक काल समाना। परम धीर ध वी गु न नाना।।
अतु लत बल ताप वौ ाता। खल बध रत सु र मु न सुखदाता।।
14. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सोभाधाम राम अस नामा। त ह क संग ना र एक यामा।।
े
प रा स ब ध ना र सँवार । र त सत को ट तासु ब लहार ।।
तासु अनु ज काटे
ु त नासा। सु न तव भ ग न कर हं प रहासा।।
खर दूषन सु न लगे पु कारा। छन महु ँ सकल कटक उ ह मारा।।
खर दूषन त सरा कर घाता। सु न दससीस जरे सब गाता।।
दो0-सु पनख ह समुझाइ क र बल बोले स बहु भाँ त।
गयउ भवन अ त सोचबस नीद परइ न हं रा त।।22।।
–*–*–
सु र नर असु र नाग खग माह ं। मोरे अनु चर कहँ कोउ नाह ं।।
खर दूषन मो ह सम बलवंता। त ह ह को मारइ बनु भगवंता।।
सु र रं जन भंजन म ह भारा। ज भगवंत ल ह अवतारा।।
तौ मै जाइ बै ह ठ करऊ। भु सर ान तज भव तरऊ।।
ँ
ँ
होइ ह भजनु न तामस दे हा। मन
म बचन मं
ढ़ एहा।।
ज नर प भू पसु तकोऊ। ह रहउँ ना र जी त रन दोऊ।।
चला अकल जान च ढ तहवाँ। बस मार च संधु तट जहवाँ।।
े
इहाँ राम ज स जु गु त बनाई। सु नहु उमा सो कथा सु हाई।।
दो0-ल छमन गए बन हं जब लेन मू ल फल कद।
ं
जनकसु ता सन बोले बह स कृ पा सु ख बृंद।। 23।।
–*–*–
सु नहु
या त
चर सु सीला। म कछ कर ब ल लत नरल ला।।
ु
तु ह पावक महु ँ करहु नवासा। जौ ल ग कर नसाचर नासा।।
जब हं राम सब कहा बखानी। भु पद ध र हयँ अनल समानी।।
नज
त बंब रा ख तहँ सीता। तैसइ सील प सु बनीता।।
ल छमनहू ँयह मरमु न जाना। जो कछ च रत रचा भगवाना।।
ु
दसमुख गयउ जहाँ मार चा। नाइ माथ वारथ रत नीचा।।
नव न नीच क अ त दुखदाई। िज म अंकस धनु उरग बलाई।।
ै
ु
भयदायक खल क
ै
य बानी। िज म अकाल क कसु म भवानी।।
े ु
दो0-क र पू जा मार च तब सादर पूछ बात।
कवन हे तु मन य अ त अकसर आयहु तात।।24।।
–*–*–
दसमुख सकल कथा ते ह आग। कह स हत अ भमान अभाग।।
होहु कपट मृग तु ह छलकार । जे ह ब ध ह र आनौ नृपनार ।।
15. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ते हं पु न कहा सु नहु दससीसा। ते नर प चराचर ईसा।।
तास तात बय न हं क जे। मार म रअ िजआएँ जीजै।।
मु न मख राखन गयउ कमारा। बनु फर सर रघु प त मो ह मारा।।
ु
सत जोजन आयउँ छन माह ं। त ह सन बय
कएँ भल नाह ं।।
भइ मम क ट भृंग क नाई। जहँ तहँ म दे खउँ दोउ भाई।।
ज नर तात तद प अ त सू रा। त ह ह बरो ध न आइ ह पू रा।।
दो0-जे हं ताड़का सु बाहु ह त खंडेउ हर कोदं ड।।
खर दूषन त सरा बधेउ मनु ज क अस ब रबंड।।25।।
–*–*–
जाहु भवन कल कसल बचार । सु नत जरा द ि ह स बहु गार ।।
ु
ु
गु िज म मू ढ़ कर स मम बोधा। कहु जग मो ह समान को जोधा।।
तब मार च दयँ अनु माना। नव ह बरोध न हं क याना।।
स
ी मम
भु सठ धनी। बैद बं द क ब भानस गु नी।।
उभय भाँ त दे खा नज मरना। तब ता क स रघु नायक सरना।।
उत दे त मो ह बधब अभाग। कस न मर रघु प त सर लाग।।
अस िजयँ जा न दसानन संगा। चला राम पद ेम अभंगा।।
मन अ त हरष जनाव न तेह । आजु दे खहउँ परम सनेह ।।
छं 0- नज परम ीतम दे ख लोचन सु फल क र सु ख पाइह ।
ी स हत अनु ज समेत कृ पा नकत पद मन लाइह ।।
े
नबान दायक ोध जा कर भग त अबस ह बसकर ।
नज पा न सर संधा न सो मो ह ब ध ह सु खसागर हर ।।
दो0-मम पाछ धर धावत धर सरासन बान।
फ र फ र भु ह बलो कहउँ ध य न मो सम आन।।26।।
–*–*–
ते ह बन नकट दसानन गयऊ। तब मार च कपटमृग भयऊ।।
अ त ब च कछ बर न न जाई। कनक दे ह म न र चत बनाई।।
ु
सीता परम
चर मृग दे खा। अंग अंग सु मनोहर बेषा।।
सु नहु दे व रघु बीर कृ पाला। ए ह मृग कर अ त सु ंदर छाला।।
स यसंध भु ब ध क र एह । आनहु चम कह त बैदेह ।।
तब रघु प त जानत सब कारन। उठे हर ष सु र काजु सँवारन।।
मृग बलो क क ट प रकर बाँधा। करतल चाप
चर सर साँधा।।
भु ल छम न ह कहा समु झाई। फरत ब पन न सचर बहु भाई।।
16. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सीता क र करे हु रखवार । बु ध बबेक बल समय बचार ।।
े
भु ह बलो क चला मृग भाजी। धाए रामु सरासन साजी।।
नगम ने त सव यान न पावा। मायामृग पाछ सो धावा।।
कबहु ँ नकट पु न दू र पराई। कबहु ँक गटइ कबहु ँ छपाई।।
गटत दुरत करत छल भू र । ए ह ब ध भु ह गयउ लै दूर ।।
तब त क राम क ठन सर मारा। धर न परे उ क र घोर पु कारा।।
ल छमन कर थम हं लै नामा। पाछ सु मरे स मन महु ँ रामा।।
ान तजत गटे स नज दे हा। सु मरे स रामु समेत सनेहा।।
अंतर ेम तासु प हचाना। मु न दुलभ ग त द ि ह सु जाना।।
दो0- बपु ल सु मन सु र बरष हं गाव हं भु गु न गाथ।
नज पद द ह असु र कहु ँ द नबंधु रघु नाथ।।27।।
–*–*–
खल ब ध तु रत फरे रघु बीरा। सोह चाप कर क ट तू नीरा।।
आरत गरा सु नी जब सीता। कह ल छमन सन परम सभीता।।
जाहु बे ग संकट अ त ाता। ल छमन बह स कहा सु नु माता।।
भृक ट बलास सृि ट लय होई। सपनेहु ँ संकट परइ क सोई।।
ु
मरम बचन जब सीता बोला। ह र े रत ल छमन मन डोला।।
बन द स दे व स प सब काहू । चले जहाँ रावन स स राहू ।।
सू न बीच दसकधर दे खा। आवा नकट जती क बेषा।।
ं
जाक डर सु र असु र डेराह ं। न स न नीद दन अ न न खाह ं।।
सो दससीस वान क नाई। इत उत चतइ चला भ ड़हाई।।
इ म कपंथ पग दे त खगेसा। रह न तेज बु ध बल लेसा।।
ु
नाना ब ध क र कथा सु हाई। राजनी त भय ी त दे खाई।।
कह सीता सु नु जती गोसा । बोलेहु बचन दु ट क ना ।।
तब रावन नज प दे खावा। भई सभय जब नाम सु नावा।।
कह सीता ध र धीरजु गाढ़ा। आइ गयउ भु रहु खल ठाढ़ा।।
िज म ह रबधु ह छ सस चाहा। भए स कालबस न सचर नाहा।।
ु
सु नत बचन दससीस रसाना। मन महु ँ चरन बं द सु ख माना।।
दो0- ोधवंत तब रावन ल ि ह स रथ बैठाइ।
चला गगनपथ आतु र भयँ रथ हाँ क न जाइ।।28।।
–*–*–
हा जग एक बीर रघु राया। क हं अपराध बसारे हु दाया।।
े
17. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
आर त हरन सरन सु खदायक। हा रघु कल सरोज दननायक।।
ु
हा ल छमन तु हार न हं दोसा। सो फलु पायउँ क हे उँ रोसा।।
ब बध बलाप कर त बैदेह । भू र कृ पा भु दू र सनेह ।।
बप त मो र को भु ह सु नावा। पु रोडास चह रासभ खावा।।
सीता क बलाप सु न भार । भए चराचर जीव दुखार ।।
ै
गीधराज सु न आरत बानी। रघु कल तलक ना र प हचानी।।
ु
अधम नसाचर ल हे जाई। िज म मलेछ बस क पला गाई।।
सीते पु
कर स ज न ासा। क रहउँ जातु धान कर नासा।।
धावा
ोधवंत खग कस। छटइ प ब परबत कहु ँ जैसे।।
ै
ू
रे रे दु ट ठाढ़ कन होह । नभय चले स न जाने ह मोह ।।
आवत दे ख कृ तांत समाना। फ र दसकधर कर अनु माना।।
ं
क मैनाक क खगप त होई। मम बल जान स हत प त सोई।।
जाना जरठ जटायू एहा। मम कर तीरथ छाँ ड़ ह दे हा।।
सु नत गीध ोधातु र धावा। कह सु नु रावन मोर सखावा।।
तिज जान क ह कसल गृह जाहू । ना हं त अस होइ ह बहु बाहू ।।
ु
राम रोष पावक अ त घोरा। होइ ह सकल सलभ कल तोरा।।
ु
उत न दे त दसानन जोधा। तब हं गीध धावा क र ोधा।।
ध र कच बरथ क ह म ह गरा। सीत ह रा ख गीध पु न फरा।।
चौच ह मा र बदारे स दे ह । दं ड एक भइ मु छा तेह ।।
तब स ोध न सचर ख सआना। काढ़े स परम कराल कृ पाना।।
काटे स पंख परा खग धरनी। सु म र राम क र अदभु त करनी।।
सीत ह जा न चढ़ाइ बहोर । चला उताइल ास न थोर ।।
कर त बलाप जा त नभ सीता। याध बबस जनु मृगी सभीता।।
ग र पर बैठे क प ह नहार । क ह ह र नाम द ह पट डार ।।
ए ह ब ध सीत ह सो लै गयऊ। बन असोक महँ राखत भयऊ।।
दो0-हा र परा खल बहु ब ध भय अ
ी त दे खाइ।
तब असोक पादप तर रा ख स जतन कराइ।।29(क)।।
नवा हपारायण, छठा व ाम
जे ह ब ध कपट करं ग सँग धाइ चले ीराम।
ु
सो छ ब सीता रा ख उर रट त रह त ह रनाम।।29(ख)।।
–*–*–
18. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
रघु प त अनु ज ह आवत दे खी। बा हज चंता क ि ह बसेषी।।
जनकसु ता प रह रहु अकल । आयहु तात बचन मम पेल ।।
े
न सचर नकर फर हं बन माह ं। मम मन सीता आ म नाह ं।।
ग ह पद कमल अनु ज कर जोर । कहे उ नाथ कछ मो ह न खोर ।।
ु
अनु ज समेत गए भु तहवाँ। गोदाव र तट आ म जहवाँ।।
आ म दे ख जानक ह ना। भए बकल जस ाकृ त द ना।।
हा गु न खा न जानक सीता। प सील त नेम पु नीता।।
ल छमन समु झाए बहु भाँती। पू छत चले लता त पाँती।।
हे खग मृग हे मधु कर ेनी। तु ह दे खी सीता मृगनैनी।।
खंजन सु क कपोत मृग मीना। मधु प नकर को कला बीना।।
कंु द कल दा ड़म दा मनी। कमल सरद स स अ हभा मनी।।
ब न पास मनोज धनु हंसा। गज कह र नज सु नत संसा।।
े
ीफल कनक कद ल हरषाह ं। नेक न संक सकच मन माह ं।।
ु
ु
सु नु जानक तो ह बनु आजू । हरषे सकल पाइ जनु राजू ।।
क म स ह जात अनख तो ह पाह ं ।
या बे ग गट स कस नाह ं।।
ए ह ब ध खौजत बलपत वामी। मनहु ँ महा बरह अ त कामी।।
पू रनकाम राम सु ख रासी। मनु ज च रत कर अज अ बनासी।।
आगे परा गीधप त दे खा। सु मरत राम चरन िज ह रे खा।।
दो0-कर सरोज सर परसेउ कृ पा संधु रधु बीर।।
नर ख राम छ ब धाम मु ख बगत भई सब पीर।।30।।
–*–*–
तब कह गीध बचन ध र धीरा । सु नहु राम भंजन भव भीरा।।
नाथ दसानन यह ग त क ह । ते ह खल जनकसु ता ह र ल ह ।।
लै दि छन द स गयउ गोसाई। बलप त अ त करर क नाई।।
ु
दरस लागी भु राखउँ ाना। चलन चहत अब कृ पा नधाना।।
राम कहा तनु राखहु ताता। मु ख मु सकाइ कह ते हं बाता।।
जा कर नाम मरत मु ख आवा। अधमउ मु कत होई ु त गावा।।
ु
सो मम लोचन गोचर आग। राख दे ह नाथ क ह खाँग।।
े
जल भ र नयन कह हँ रघु राई। तात कम नज ते ग तं पाई।।
पर हत बस िज ह क मन माह । त ह कहु ँ जग दुलभ कछ नाह ।।
े
ु
तनु तिज तात जाहु मम धामा। दे उँ काह तु ह पू रनकामा।।
19. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0-सीता हरन तात ज न कहहु पता सन जाइ।।
ज म राम त कल स हत क ह ह दसानन आइ।।31।।
ु
–*–*–
गीध दे ह तिज ध र ह र पा। भू षन बहु पट पीत अनू पा।।
याम गात बसाल भु ज चार । अ तु त करत नयन भ र बार ।।
छं 0-जय राम प अनू प नगु न सगु न गु न ेरक सह ।
दससीस बाहु चंड खंडन चंड सर मंडन मह ।।
पाथोद गात सरोज मु ख राजीव आयत लोचनं।
नत नौ म रामु कृ पाल बाहु बसाल भव भय मोचनं।।1।।
बलम मेयमना दमजम य तमेकमगोचरं ।
गो बंद गोपर वं वहर ब यानघन धरनीधरं ।।
जे राम मं जपंत संत अनंत जन मन रं जनं।
नत नौ म राम अकाम
जे ह ु त नरं जन
य कामा द खल दल गंजनं।।2।
म यापक बरज अज क ह गावह ं।।
क र यान यान बराग जोग अनेक मु न जे ह पावह ं।।
सो गट क ना कद सोभा बृंद अग जग मोहई।
ं
मम दय पंकज भृंग अंग अनंग बहु छ ब सोहई।।3।।
जो अगम सु गम सु भाव नमल असम सम सीतल सदा।
प यं त जं जोगी जतन क र करत मन गो बस सदा।।
सो राम रमा नवास संतत दास बस
भु वन धनी।
मम उर बसउ सो समन संस ृ त जासु क र त पावनी।।4।।
दो0-अ बरल भग त मा ग बर गीध गयउ ह रधाम।
ते ह क
या जथो चत नज कर क ह राम।।32।।
–*–*–
कोमल चत अ त द नदयाला। कारन बनु रघु नाथ कृ पाला।।
गीध अधम खग आ मष भोगी। ग त द ि ह जो जाचत जोगी।।
सु नहु उमा ते लोग अभागी। ह र तिज हो हं बषय अनु रागी।।
पु न सीत ह खोजत वौ भाई। चले बलोकत बन बहु ताई।।
संकल लता बटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन।।
ु
आवत पंथ कबंध नपाता। ते हं सब कह साप क बाता।।
ै
दुरबासा मो ह द ह सापा। भु पद पे ख मटा सो पापा।।
सु नु गंधब कहउँ मै तोह । मो ह न सोहाइ
मकल ोह ।।
ु
20. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0-मन
म बचन कपट तिज जो कर भू सु र सेव।
मो ह समेत बरं च सव बस ताक सब दे व।।33।।
–*–*–
सापत ताड़त प ष कहंता। ब पू य अस गाव हं संता।।
पू िजअ ब सील गु न ह ना। सू न गु न गन यान बीना।।
क ह नज धम ता ह समु झावा। नज पद ी त दे ख मन भावा।।
रघु प त चरन कमल स नाई। गयउ गगन आप न ग त पाई।।
ता ह दे इ ग त राम उदारा। सबर क आ म पगु धारा।।
सबर दे ख राम गृहँ आए। मु न क बचन समु झ िजयँ भाए।।
े
सर सज लोचन बाहु बसाला। जटा मु कट सर उर बनमाला।।
ु
याम गौर सु ंदर दोउ भाई। सबर पर चरन लपटाई।।
ेम मगन मु ख बचन न आवा। पु न पु न पद सरोज सर नावा।।
सादर जल लै चरन पखारे । पु न सु ंदर आसन बैठारे ।।
दो0-कद मू ल फल सु रस अ त दए राम कहु ँ आ न।
ं
ेम स हत भु खाए बारं बार बखा न।।34।।
–*–*–
पा न जो र आग भइ ठाढ़ । भु ह बलो क ी त अ त बाढ़ ।।
क ह ब ध अ तु त करौ तु हार । अधम जा त म जड़म त भार ।।
े
अधम ते अधम अधम अ त नार । त ह महँ म म तमंद अघार ।।
कह रघु प त सु नु भा म न बाता। मानउँ एक भग त कर नाता।।
जा त पाँ त कल धम बड़ाई। धन बल प रजन गु न चतु राई।।
ु
भग त ह न नर सोहइ कसा। बनु जल बा रद दे खअ जैसा।।
ै
नवधा भग त कहउँ तो ह पाह ं। सावधान सु नु ध मन माह ं।।
थम भग त संत ह कर संगा। दूस र र त मम कथा संगा।।
दो0-गु र पद पंकज सेवा तीस र भग त अमान।
चौ थ भग त मम गु न गन करइ कपट तिज गान।।35।।
–*–*–
मं जाप मम ढ़ ब वासा। पंचम भजन सो बेद कासा।।
छठ दम सील बर त बहु करमा। नरत नरं तर स जन धरमा।।
सातवँ सम मो ह मय जग दे खा। मोत संत अ धक क र लेखा।।
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहु ँ न हं दे खइ परदोषा।।
नवम सरल सब सन छलह ना। मम भरोस हयँ हरष न द ना।।
21. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
नव महु ँ एकउ िज ह क होई। ना र पु ष सचराचर कोई।।
े
सोइ अ तसय
य भा म न मोरे । सकल कार भग त ढ़ तोर।।
जो ग बृंद दुरलभ ग त जोई। तो कहु ँ आजु सु लभ भइ सोई।।
मम दरसन फल परम अनू पा। जीव पाव नज सहज स पा।।
जनकसु ता कइ सु ध भा मनी। जान ह कहु क रबरगा मनी।।
पंपा सर ह जाहु रघु राई। तहँ होइ ह सु ीव मताई।।
सो सब क ह ह दे व रघु बीरा। जानतहू ँ पू छहु म तधीरा।।
बार बार भु पद स नाई। ेम स हत सब कथा सु नाई।।
छं 0-क ह कथा सकल बलो क ह र मु ख दयँ पद पंकज धरे ।
तिज जोग पावक दे ह ह र पद ल न भइ जहँ न हं फरे ।।
नर ब बध कम अधम बहु मत सोक द सब यागहू ।
ब वास क र कह दास तु लसी राम पद अनु रागहू ।।
दो0-जा त ह न अघ ज म म ह मु त क ि ह अ स ना र।
महामंद मन सु ख चह स ऐसे भु ह बसा र।।36।।
–*–*–
चले राम यागा बन सोऊ। अतु लत बल नर कह र दोऊ।।
े
बरह इव भु करत बषादा। कहत कथा अनेक संबादा।।
ल छमन दे खु ब पन कइ सोभा। दे खत क ह कर मन न हं छोभा।।
े
ना र स हत सब खग मृग बृंदा। मानहु ँ मो र करत ह हं नंदा।।
हम ह दे ख मृग नकर पराह ं। मृगीं कह हं तु ह कहँ भय नाह ं।।
तु ह आनंद करहु मृग जाए। कचन मृग खोजन ए आए।।
ं
संग लाइ क रनीं क र लेह ं। मानहु ँ मो ह सखावनु दे ह ं।।
सा
सु चं तत पु न पु न दे खअ। भू प सु से वत बस न हं ले खअ।।
रा खअ ना र जद प उर माह ं। जु बती सा
दे खहु तात बसंत सु हावा।
नृप त बस नाह ं।।
या ह न मो ह भय उपजावा।।
दो0- बरह बकल बलह न मो ह जाने स नपट अकल।
े
स हत ब पन मधु कर खग मदन क ह बगमेल।।37(क)।।
दे ख गयउ ाता स हत तासु दूत सु न बात।
डेरा क हे उ मनहु ँ तब कटक हट क मनजात।।37(ख)।।
ु
–*–*–
बटप बसाल लता अ झानी। ब बध बतान दए जनु तानी।।
कद ल ताल बर धु जा पताका। दै ख न मोह धीर मन जाका।।
22. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ब बध भाँ त फले त नाना। जनु बानैत बने बहु बाना।।
ू
कहु ँ कहु ँ सु दर बटप सु हाए। जनु भट बलग बलग होइ छाए।।
कजत पक मानहु ँ गज माते। ढे क महोख ऊट बसराते।।
ू
ँ
मोर चकोर क र बर बाजी। पारावत मराल सब ताजी।।
ती तर लावक पदचर जू था। बर न न जाइ मनोज ब था।।
रथ ग र सला दुं दभी झरना। चातक बंद गु न गन बरना।।
ु
मधु कर मु खर भे र सहनाई।
बध बया र बसीठ ं आई।।
चतु रं गनी सेन सँग ल ह। बचरत सब ह चु नौती द ह।।
ल छमन दे खत काम अनीका। रह हं धीर त ह क जग ल का।।
ै
ए ह क एक परम बल नार । ते ह त उबर सु भट सोइ भार ।।
दो0-तात ती न अ त बल खल काम
ोध अ लोभ।
मु न ब यान धाम मन कर हं न मष महु ँ छोभ।।38(क)।।
लोभ क इ छा दं भ बल काम क कवल ना र।
े
ोध क प ष बचन बल मु नबर कह हं बचा र।।38(ख)।।
े
–*–*–
गु नातीत सचराचर वामी। राम उमा सब अंतरजामी।।
का म ह क द नता दे खाई। धीर ह क मन बर त ढ़ाई।।
ै
ोध मनोज लोभ मद माया। छट हं सकल राम क ं दाया।।
ू
सो नर इं जाल न हं भू ला। जा पर होइ सो नट अनु कला।।
ू
उमा कहउँ म अनु भव अपना। सत ह र भजनु जगत सब सपना।।
पु न भु गए सरोबर तीरा। पंपा नाम सु भग गंभीरा।।
संत दय जस नमल बार । बाँधे घाट मनोहर चार ।।
जहँ तहँ पअ हं ब बध मृग नीरा। जनु उदार गृह जाचक भीरा।।
दो0-पु रइ न सबन ओट जल बे ग न पाइअ मम।
मायाछ न न दे खऐ जैसे नगु न
म।।39(क)।।
सु ख मीन सब एकरस अ त अगाध जल मा हं।
जथा धमसील ह क दन सु ख संजु त जा हं।।39(ख)।।
े
–*–*–
बकसे सर सज नाना रं गा। मधु र मु खर गु ंजत बहु भृंगा।।
बोलत जलक कट कलहंसा। भु बलो क जनु करत संसा।।
ु ु
च वाक बक खग समु दाई। दे खत बनइ बर न न हं जाई।।
सु दर खग गन गरा सुहाई। जात प थक जनु लेत बोलाई।।
23. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ताल समीप मु न ह गृह छाए। चहु द स कानन बटप सु हाए।।
चंपक बकल कदं ब तमाला। पाटल पनस परास रसाला।।
ु
नव प लव कसु मत त नाना। चंचर क पटल कर गाना।।
ु
सीतल मंद सु गंध सु भाऊ। संतत बहइ मनोहर बाऊ।।
कहू कहू को कल धु न करह ं। सु न रव सरस यान मु न टरह ं।।
ु
ु
दो0-फल भारन न म बटप सब रहे भू म नअराइ।
पर उपकार पु ष िज म नव हं सु संप त पाइ।।40।।
–*–*–
दे ख राम अ त
चर तलावा। म जनु क ह परम सु ख पावा।।
दे खी सु ंदर त बर छाया। बैठे अनु ज स हत रघु राया।।
तहँ पु न सकल दे व मु न आए। अ तु त क र नज धाम सधाए।।
बैठे परम स न कृ पाला। कहत अनु ज सन कथा रसाला।।
बरहवंत भगवंत ह दे खी। नारद मन भा सोच बसेषी।।
मोर साप क र अंगीकारा। सहत राम नाना दुख भारा।।
ऐसे भु ह बलोकउँ जाई। पु न न ब न ह अस अवस आई।।
यह बचा र नारद कर बीना। गए जहाँ भु सु ख आसीना।।
गावत राम च रत मृदु बानी। ेम स हत बहु भाँ त बखानी।।
करत दं डवत लए उठाई। राखे बहु त बार उर लाई।।
वागत पूँ छ नकट बैठारे । ल छमन सादर चरन पखारे ।।
दो0- नाना ब ध बनती क र भु स न िजयँ जा न।
नारद बोले बचन तब जो र सरो ह पा न।।41।।
–*–*–
सु नहु उदार सहज रघु नायक। सु ंदर अगम सु गम बर दायक।।
दे हु एक बर मागउँ वामी। ज य प जानत अंतरजामी।।
जानहु मु न तु ह मोर सु भाऊ। जन सन कबहु ँ क करउँ दुराऊ।।
कवन ब तु अ स
य मो ह लागी। जो मु नबर न सकहु तु ह मागी।।
जन कहु ँ कछ अदे य न हं मोर। अस ब वास तजहु ज न भोर।।
ु
तब नारद बोले हरषाई । अस बर मागउँ करउँ ढठाई।।
ज य प भु क नाम अनेका। ु त कह अ धक एक त एका।।
े
राम सकल नाम ह ते अ धका। होउ नाथ अघ खग गन ब धका।।
दो0-राका रजनी भग त तव राम नाम सोइ सोम।
अपर नाम उडगन बमल बसु हु भगत उर योम।।42(क)।।
ँ
24. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
एवम तु मु न सन कहे उ कृ पा संधु रघु नाथ।
तब नारद मन हरष अ त भु पद नायउ माथ।।42(ख)।।
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अ त स न रघु नाथ ह जानी। पु न नारद बोले मृदु बानी।।
राम जब हं ेरेउ नज माया। मोहे हु मो ह सु नहु रघु राया।।
तब बबाह म चाहउँ क हा। भु क ह कारन करै न द हा।।
े
सु नु मु न तो ह कहउँ सहरोसा। भज हं जे मो ह तिज सकल भरोसा।।
करउँ सदा त ह क रखवार । िज म बालक राखइ महतार ।।
ै
गह ससु ब छ अनल अ ह धाई। तहँ राखइ जननी अरगाई।।
ौढ़ भएँ ते ह सु त पर माता। ी त करइ न हं पा छ ल बाता।।
मोरे ौढ़ तनय सम यानी। बालक सु त सम दास अमानी।।
जन ह मोर बल नज बल ताह । दुहु कहँ काम
ोध रपु आह ।।
यह बचा र पं डत मो ह भजह ं। पाएहु ँ यान भग त न हं तजह ं।।
दो0-काम
ोध लोभा द मद बल मोह क धा र।
ै
त ह महँ अ त दा न दुखद माया पी ना र।।43।।
–*–*–
सु न मु न कह पु रान ु त संता। मोह ब पन कहु ँ ना र बसंता।।
जप तप नेम जला य झार । होइ ीषम सोषइ सब नार ।।
काम
ोध मद म सर भेका। इ ह ह हरष द बरषा एका।।
दुबासना कमु द समु दाई। त ह कहँ सरद सदा सु खदाई।।
ु
धम सकल सरसी ह बृंदा। होइ हम त ह ह दहइ सु ख मंदा।।
पु न ममता जवास बहु ताई। पलु हइ ना र स सर रतु पाई।।
पाप उलू क नकर सु खकार । ना र न बड़ रजनी अँ धआर ।।
बु ध बल सील स य सब मीना। बनसी सम
य कह हं बीना।।
दो0-अवगु न मू ल सू ल द मदा सब दुख खा न।
ताते क ह नवारन मु न म यह िजयँ जा न।।44।।
–*–*–
सु न रघु प त क बचन सु हाए। मु न तन पु लक नयन भ र आए।।
े
कहहु कवन भु क अ स र ती। सेवक पर ममता अ
ै
ीती।।
जे न भज हं अस भु म यागी। यान रं क नर मंद अभागी।।
पु न सादर बोले मु न नारद। सु नहु राम ब यान बसारद।।
संत ह क ल छन रघु बीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा।।
े
25. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सु नु मु न संत ह क गु न कहऊ। िज ह ते म उ ह क बस रहऊ।।
े
ँ
ँ
षट बकार िजत अनघ अकामा। अचल अ कं चन सु च सु खधामा।।
अ मतबोध अनीह मतभोगी। स यसार क ब को बद जोगी।।
सावधान मानद मदह ना। धीर धम ग त परम बीना।।
दो0-गु नागार संसार दुख र हत बगत संदेह।।
तिज मम चरन सरोज
य त ह कहु ँ दे ह न गेह।।45।।
–*–*–
नज गु न वन सु नत सकचाह ं। पर गु न सु नत अ धक हरषाह ं।।
ु
सम सीतल न हं याग हं नीती। सरल सु भाउ सब हं सन ीती।।
जप तप त दम संजम नेमा। गु गो बंद ब पद ेमा।।
ा छमा मय ी दाया। मु दता मम पद ी त अमाया।।
बर त बबेक बनय ब याना। बोध जथारथ बेद पु राना।।
दं भ मान मद कर हं न काऊ। भू ल न दे हं कमारग पाऊ।।
ु
गाव हं सु न हं सदा मम ल ला। हे तु र हत पर हत रत सीला।।
मु न सु नु साधु ह क गु न जेते। क ह न सक हं सारद ु त तेते।।
े
छं 0-क ह सक न सारद सेष नारद सु नत पद पंकज गहे ।
अस द नबंधु कृ पाल अपने भगत गु न नज मु ख कहे ।।
स नाह बार हं बार चरनि ह
मपु र नारद गए।।
ते ध य तु लसीदास आस बहाइ जे ह र रँग रँए।।
दो0-रावना र जसु पावन गाव हं सु न हं जे लोग।
राम भग त ढ़ पाव हं बनु बराग जप जोग।।46(क)।।
द प सखा सम जु ब त तन मन ज न हो स पतंग।
भज ह राम तिज काम मद कर ह सदा सतसंग।।46(ख)।।
मासपारायण, बाईसवाँ व ाम
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इ त ीम ामच रतमानसे सकलक लकलु ष व वंसने
तृतीयः सोपानः समा तः।
(अर यका ड समा त)
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