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मले�रया परजीवी का जीवन चक
मले�रया प्लास्मोिडयमवंश के प्रोटोज़ोआ परजीिवयोंसे फैलता है।इस वंश क� पाच प्रजाितयां म
संक्रिमत करती - प्लास्मोिडयमफैल्सीप , प्लास्मोिडयम वाईवै , प्लास्मोिडयम ओव ,
प्लास्मोिडयम मले�रये तथा प्लास्मोिडयम नौलेसी।इनमें से सबसे पराक्रमी और . फैल्सीपैरम
माना जाता है, मले�रया के 80 प्रितशत रोगी इसी प्रजाित के संक्रमण क�देन है। मले�रया से मरने90
प्रितशत रोयो का कारण पी. फैल्सीपैर संक्रमण ही माना गयाहै

मच्छ
मादा एनोिफलीज़ मच्छर मले�रया परजीवी क� प्राथि
पोषक होती है , िजसे मले�रया का संक्रमणफैला में
महारत हािसल है। एनोिफलीज़ वंश के मच्छर सव र्
व्या� हैं। लेिकन िसफर् मादा एनोिफलीज़ मच्छर
र�पान करती है, अतः यही परजीवी क� वाहक बनती है
न िक नर। मादा एनोिफलीज़ मच्छरों क� सेना रात होत
ही िशकार क� तलाश में उड़ान भरती है और हमारे घर
तथा शयन-क� में पहँच कर मंडराते ह�ए हमारे शरीर के
�
कई िहस्सों पर अवतरण करतीहै और अपनेमुँह पर लग
सेंससर् से पता करतीहै िक कहाँ से र� लेना आसान रहेगा। उिचत स्थान का चुनाव होते ही एक कुशल
िचिकत्सा कम� क� तरह अपना लम्बा चूषण यंत्र त्वचा में घुसा देती है और पलक झपकते ही खून चू
चम्प हो जाती है।
यह ठहरे ह�ए पानी मे अंडे देती है क्योंिकअंडों और उनसे िनकलने वाले लावार् दोनों को पानी क� अ
आवश्यकता होती है। इसके अित�र� ल वार को �सन के िलए पानी क� सतह पर बार-बार आना पड़ता है।
अंडे, लावार , प्यूपा और िफर वयस्क होनेमें मच्छर ल10-14 िदन का समय लेते हैं। वयस्क मच्
पराग और शकर्रा वाले भोज-पदाथ� पर पलते हैं लेिकन मादा मच्छर कोअंडे देने के िलए र� क� ज�र
होती है।

प्लास्मोिडयम का जीवन 
मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती है। वयस्क मच्छर संक्
मनुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को ग्रहण कर लेतेहैं। र� में मौजूद परजीवी के जनन
(gametocytes) मच्छर क मध्य आहार निलक (Mid Gut) में नर और मादा के �प में िवकिसत होतेह
और िफर िमलकर अंडाणु ( Zygote) बनाते हैं जो मच्छर क आहार निलका क� िभि�यों में पलने लगतेहै
प�रपक्व होने पर ये फूटते ह , और इसमें से िनकलने वाले बीजाणु( Sporozoites) उस मच्छर क� लाग्रंिथयों में पह�ँच जाते हैं। जब मच् एक स्वस्थ मनुष्य को काटता है तो त्वचा में लार क-साथ
बीजाणु भी भेज देता है।
मले�रया परजीवी का मानव में िवकास दो चरणोंमें होता: यकृत में प्रथम , और लाल र� कोिशकाओं
में दूसरा चरण। जब एक संक्रिमत मच्छर मानव को काटता है तो बीज(Sporozoites) मानव र� में प्रव
कर यकृत में पहँचते हैं और शरीरमें प्रवेश पान30 िमनट के भीतर
ही ये यकृत क� कोिशकाओं को
�
संक्रिमत कर देतेहैं। िफर ये यकृत में अलैंिगक जनन करने लगते हैं। य6 से 15 िदन चलता है। इस
जनन से हजारों अंशाणु( Merozoites) बनते हैं जो अपनी मेहमान कोिशकाओं को तोड़ कर र -प्रवा में
प्रवेश कर जातेहैं तथा लाल र� कोिशकाओं को संक्रिमत करना शु� कर देत
मच्छर में स्पोरोगो
वयस्क मच्छरसंक्रि नुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को भी ग्रहण कर लेताह
अितसू�म, एक कािशक�य और संसाधनहीन मले�रया परजीवी का जीवन चक्र बह�त जिटल होताहै और द
वाहकों मादा एनोिफलीज़ मच्छर और मनुष्य पर आिश्रत रहता है। परजीवी अपनी सुर�ा और िवका
िलए वाहकों के5000 से ज्यादा जीन्स तथा िविश� प्रोटीन्स समेत अनेक संसाधनों का भर पूर
करता है।
मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती ह, जहाँ इसके जीवन चक्
क� लैंिगक अवस्, िजसे स्पोरोगोनी कहते ह, सम्पन्न होतीहै। इस अवस्था में मच्छर के शरीर में
बीजाणु िवकिसत होते हैं जो मनुष्य के शरीरमें पह�ँच कर मले�रया का कारक बनते ह
जब मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर मले�रया से संक्रिमतमनुष्य का र�पान करत, तब र� के साथ मले�रया के
नर और मादा जननाणु (gametocytes) भी उसक� आहार-निलका में प्रवेश कर जाते हैं। यहाँ नर और म
जननाणु जुड़ कर जाइगोट बनाते है, जो िवकिसत होकर सिक्रय ऊकाइने (Ookinete) बनता है। यह
ऊकाइनेट मध्य आहा-निलका क� िभि� में प्रवेश करता, जहाँ यह िवकिसत और िवभािजत होता है और
ऊिसस्ट(oocysts) बनता है। इसमें हजारों बीजाण( sporozoites) रहते हैं।8-15 िदन क� स्पोरोगोिनक
अवस्था के अन्तमें ऊिसस्ट टूट जाता है और असंख्य बीजाणु-निलका में आ जाते हैं। ये बीजाण
चल कर मच्छर क� लार ग्रंिथ( salivary glands) में एकित्रत हो जाते हैं। अब यह मच्छर मनुष
मले�रया फैलाने के िलए पूरी तरह तैयार है। जैसे ही यह मच्छर र�पान के िलए मनुष्य को काटता, लार
ग्रंिथयों में एकित्रतबीजाणुभी मनुष्य केशरीर में छोड़ िदये जाते हैं। यह देखा गया है िक परजीवी
दोनों एक दूसरे क� मदद करते हैं और मले�रयाफैलानेमें सिक्रय भागीदारी िनभाते

मनष्य में शाइज़ोगोन(Schizogony in the Human)
ु
मले�रया परजीवी के जीवन चक्र का अगला भाग मनुष्य के शरीर में सम्पन्न होता है।  जैसे हीब
(Sporozoites) मनुष्य के शरीर में पह�ँचते, ये यकृत क� कोिशकाओं में िछप कर अपने िवकास को आगे
बढ़ाते हैं। यकृत में अपना चक्र पूरा करने के बाद परजीवी अपनी अगली जीवन लीला लालर� कोिशकाओं
पूरा करते हैं। जीवन चक्र के इसी भाग में मनुष्य को मले�रया के अनेक ल�ण और जिटलताओं का स
करना पड़ता है।
िप्रइरेथ्रोसाइिटक अव– यकृत में शाइज़ोगोनी(Pre-erythrocytic Phase -

Schizogony in the Liver)

जब मनुष्य को संक्रिमत मच्छर काटता है तो मनुष्य क� त्वचा में दजर्नों या सैंकड़ों बीजाणु प्रवेश
कुछ बीजाणुओं को तो शरीर क� भ�ी कोिशकाएं ( Macrophages) खा जाती हैं। कुछ बीजाणु लिसका
वािहकाओं में तो कुछ र-वािहकाओं में पहँचने में सफल हो जातेहैं। जो बीजाणु लिसका वािहकाओं
�
पह�ँचते है, पास के लिसकापवर् में जाकर एक्सोइरेथ्रोसाइिटक अ( Exoerythrocytic stages) में
चिक्रत होने लगतेहैं। जो बीजाणु-वािहकाओं में पहँचते ह, वे मनुष्य क� सुर�ा सेना से बचते ह�ए कुछ ही
�
घंटों में सीधे यकृतमें पह�ँच जाते हैं। बीजाणु थ्रोम्बो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी( TRAP) प�रवार
और ऐिक्ट-सायोिसन मोटर क� मदद से प�रवहन करते हैं। यकृत में पह�ँच कर ये यकृत क� कोिशकाओं क
पेरसाइटोफोरस वेक्युओल में िवभािजत और िवकास करतेहैं। यहाँ हर बीजाणु बढ़ कर शाइज़ोन्ट बनत,
े
िजसमें10000-30000 अंशाणु ( Merozoites) होते हैं। यकृत में परजीवी के िवकासमें सकर्मस्पोरो
नामक प्रोटीन बह�त मदद करता, जो परजीवी स्वयं बनाता है। िप्रइरेथ्रोसाइिटक अ5-16 िदन चलती
है, फैिल्सपैरम में औसत5-6 िदन, वाइवेक्स मे8 िदन, ओवेल में8 िदन, मले�रये में13 िदन और नौलेसी
में8-9 चलती है। यह परजीवी क� शांत अवस्था ह, इसमें पोषक मनुष्य को मले�रया का कोई ल�ण य
िवकृित नहीं होती ह, क्योंिक बीजाणु यकृत क� थोड़ी कोिशकाओं पर ही आक्रमण करते हैं। यह अवस
ही चक्र पूरा करती, जबिक अगली इरेथ्रोसाइिटक अवस्था -बार पुनरचिक्रत होतीहै।
यकृत कोिशका में पनपने वाले अंशाणु पोषक कोिशका द्वारा ही बनाई मीरोज़ोम नामक एक कुिटया में
िवय� (Isolated) रहते है, और यकृत में िस्थत भ�ीकुफर कोिशकाओं के प्रकोप से सुरि�त रहते
ु
अंततः अंशाणु यकृत कोिशका से िनकल कर र�-प्रवाहमें िवलय हो जाते हैं और घातक तथा स
महत्वपूणर् इरेथ्रोसाइिटक अवस्थाक� शु�वात करते
वाइवेक्स और ओवेल मले�रया मेंकुछ बीजाणु यकृतमें महीनों और वष� तकसुषु� पड़े रहते हैं। इन्हों
(Hypnozoites) कहते है, और ये अव्य� अविध(जो कुछ स�ाह से कुछ महीने हो सकती है) के बाद
िवकिसत होकर शाइज़ोन्ट बनते हैं। येसु�ाणु हीसंक्रमण के कई महीने बाद ह�ए आवत� मले�रया का क
बनते हैं।

इरेथ्रोसाइिटक शाइगोन– लालर� कोिशकाओ ं में होने वाली मुख्य और केन्द
अवस्थ (Erythrocytic Schizogony - Centre Stage in Red Cells)
मले�रया परजीवी के अलैंिगक जीवन चक्र क� मुख्य और केन्द्रीय अवस्था लालर�कोिशकाओ
होती है। लालर� कोिशकाओं में परजीवी के िवकास का च एक िनि�त अविध में बा-बार पुनरचिक्र
होता है और चक्र केअंतमें सैंकड़ों नन्हेअंशाणु उत्पन्न होते हैं जो नई लालकोिशकाओं पर आ
हैं।
यकृत से िनकल कर अंशाणुओं को लालर� कोिशकाओं को पहचान कर उनसे िचपकने और िफर उनमें
प्रवेश करनेमें एक िमनट से भी कम समय लगता है। इससे परजीवी क� सतह पर लगा एंटीजन पो
(मनुष्) के सुर�ाकिमर्यों क� नजर से बच िनकलनेमें सफल हो जाता है। अंशाणुओं के लालर� कािशका
प्रवेश हेतु दोनों क� सतह पर लगे लाइगे न्ड्स के पारस्प�रक आणिवक संवाद भी मदद करता है। वाइ
डफ� बाइिन्डं-लाइक प्रोटीन और रेिटकुलोसाइट होमोलोजी प्रोटीन क� मदद से िसफर् डफ� ब्ल
पोज़ीिटव लाल कोिशकाओं पर ही आक्रमण करतेहै
ध्यान रहे ि आक्रामक और घातकफैलिसपैरममें चार तरह के डफ� बाइिन-लाइक प्रोटी( DBLEBP) जीन्स होते ह, जबिक वाइवेक्स में एक ही डफ� बाइिन्-लाइक प्रोटी( DBL-EBP) जीन होता है।
इसिलए फैलिसपैरम कई तरह के लाल र� कोिशकाओं पर आक्रमण कर सकताहै
अंशाणु के िसरे पर बने िविश� उपांग िजन्हें माइक्रो, रोपट्राइन्स और घने दा(
Micronemes,
Rhoptries, and Dense granules) कहते है, अंशाणु को लालर� कोिशकाओं से जुड़ने और घुसने क�
प्रिक्रया में बह�त सहायक होते हैं।अंशाणु और लाल कोिशका का प्रारंिभक सम्पकर् लाल कोिश
को एक लहर क� भांित तेजी से िवकृत करता है, इससे दोनों का िस्थरजुड़ाव स्थल बनता है। इसके ब
अंशाणु एिक्ट-मायोिसन मोटर, थ्रोम्बोस्पो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी(
TRAP) प�रवार और
ऐल्डोलेज क� मदद से लाल कोिशका क� ि-िभि� ( Bilayer) में घुसता है और पेरासाइटोफोरस वेक्युओ
बनाता है, िजससे अंशाणु का लाल कोिशका के कोिशका द्रव( Cytoplasm) से कोई सम्पकर् नहीं रहता,
और वह िनि�ंत होकर अपना जीवन चक्र आगे बढ़ाताहै। इस अवस्था में परजीवी लालकोिशका मे
अंगूठी जैसा िदखाई देता है, इसे मुिद्रकाणु कहतेहै
िवकासशील परजीवी का प्रमुख भोजन हीमोग्लोिबन होता है। इसिलए इसे भोजन पुिट( Food vacuole)
में ले जाकर अपघिटत िकया जाता ह, िजससे अमाइनो एिसड्स िनकलते है जो प्रोटीन िनमार्ण में काम
हैं। हीम पोलीमरेज एंजाइम बचे ह�ए टॉिक्सक हीम से हीमोज़ोइ (Malaria pigment) बनाते हैं। परजीवी
पीएलडीएच और प्लाज़मोिडयम ऐल्डोल्ज़ एंजाइम्स क� मदद से  अवायवीय ग्लाइकोलाइिसस द्वार
उत्पादन करता है। जैसे जैसे परजीवी िवकिसत और िवभािजत होता ह, लालकोिशका क� पारगम्यता और
संरचना में बदलाव आता है। यह बदलाव चयापचय अपिश� को बाहर करन, बाहर से उपयोगी पदाथ� का
अवशोषण करने में और िवद्-रासायिनक संतुलन बनाये रखने मे सहायता करता है। साथ ही हीमोग्लोिबन
का अन्तग्रर(Ingestion), पाचन और िवषहरण ( Detoxification) अितपारगम्य लालकोिशका के रअपघटन (Hemolysis) के रोकता है। और परासरणीय िस्थरता(Osmotic Stability) बनाये रहता है।
परजीवी का इरेथ्रोसाइिटक चक्र नौलेसी मे24 घंटे मे, फैलिसपैरम, वाइवेक्स तथा ओवेल में ह48 घंटे
में और मले�रये में ह72 घंटे में दोहराया जाता है। हर चक्र में अंशाणुवेकुओल में िवकिसत तथा िवभ
होते हैं और मुिद्रक, ट्रोफोजोइट तथा शाइज़ोन्ट अवस्था से गुजरते 8-32 (औसत 10) नये अंशाणु
बनते हैं। चक्र के अंत में लालकोिशका टूट जाती है औरनन्हेंअंशाणु बाहर िनकल
िफर से
लालकोिशका को िशकार बनाती है। इस तरह अंशाणु बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इनक� संख्य 1013 तक
पह�ँच जाती है।
कुछ अलैंिगक परजीवी शाइज़ोगोनी चक्र में न जाकर लैंिगक अवस्थाज(Gametocytes) में िवभेिदत
हो जाते हैं। ये नर और मादा जननाणु लालकोिशका से बाहर र� में रहतेहैं और पोषक के शरीर में कोई
या िवकृित उत्पन्न नहीं करते हैं। ये मादा ऐनोिफलीज़ मच्छर के काटने पर उसके शरीर में चले जाते
परजीवी के लैंिगक िवकास को आगे बढ़ाते हैं। इस तरह ये मले�रया केफैलनेमें मदद करते हैं। वाइवेक्
जननाणु बह�त जल्दी बन जाते ह, जबिक फैलिसपैरम में अलैंिगक चक्र के  भी काफ� देर बाद बनते

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Malaria life cycle

  • 1. मले�रया परजीवी का जीवन चक मले�रया प्लास्मोिडयमवंश के प्रोटोज़ोआ परजीिवयोंसे फैलता है।इस वंश क� पाच प्रजाितयां म संक्रिमत करती - प्लास्मोिडयमफैल्सीप , प्लास्मोिडयम वाईवै , प्लास्मोिडयम ओव , प्लास्मोिडयम मले�रये तथा प्लास्मोिडयम नौलेसी।इनमें से सबसे पराक्रमी और . फैल्सीपैरम माना जाता है, मले�रया के 80 प्रितशत रोगी इसी प्रजाित के संक्रमण क�देन है। मले�रया से मरने90 प्रितशत रोयो का कारण पी. फैल्सीपैर संक्रमण ही माना गयाहै मच्छ मादा एनोिफलीज़ मच्छर मले�रया परजीवी क� प्राथि पोषक होती है , िजसे मले�रया का संक्रमणफैला में महारत हािसल है। एनोिफलीज़ वंश के मच्छर सव र् व्या� हैं। लेिकन िसफर् मादा एनोिफलीज़ मच्छर र�पान करती है, अतः यही परजीवी क� वाहक बनती है न िक नर। मादा एनोिफलीज़ मच्छरों क� सेना रात होत ही िशकार क� तलाश में उड़ान भरती है और हमारे घर तथा शयन-क� में पहँच कर मंडराते ह�ए हमारे शरीर के � कई िहस्सों पर अवतरण करतीहै और अपनेमुँह पर लग सेंससर् से पता करतीहै िक कहाँ से र� लेना आसान रहेगा। उिचत स्थान का चुनाव होते ही एक कुशल िचिकत्सा कम� क� तरह अपना लम्बा चूषण यंत्र त्वचा में घुसा देती है और पलक झपकते ही खून चू चम्प हो जाती है। यह ठहरे ह�ए पानी मे अंडे देती है क्योंिकअंडों और उनसे िनकलने वाले लावार् दोनों को पानी क� अ आवश्यकता होती है। इसके अित�र� ल वार को �सन के िलए पानी क� सतह पर बार-बार आना पड़ता है। अंडे, लावार , प्यूपा और िफर वयस्क होनेमें मच्छर ल10-14 िदन का समय लेते हैं। वयस्क मच् पराग और शकर्रा वाले भोज-पदाथ� पर पलते हैं लेिकन मादा मच्छर कोअंडे देने के िलए र� क� ज�र होती है। प्लास्मोिडयम का जीवन मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती है। वयस्क मच्छर संक् मनुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को ग्रहण कर लेतेहैं। र� में मौजूद परजीवी के जनन
  • 2. (gametocytes) मच्छर क मध्य आहार निलक (Mid Gut) में नर और मादा के �प में िवकिसत होतेह और िफर िमलकर अंडाणु ( Zygote) बनाते हैं जो मच्छर क आहार निलका क� िभि�यों में पलने लगतेहै प�रपक्व होने पर ये फूटते ह , और इसमें से िनकलने वाले बीजाणु( Sporozoites) उस मच्छर क� लाग्रंिथयों में पह�ँच जाते हैं। जब मच् एक स्वस्थ मनुष्य को काटता है तो त्वचा में लार क-साथ बीजाणु भी भेज देता है। मले�रया परजीवी का मानव में िवकास दो चरणोंमें होता: यकृत में प्रथम , और लाल र� कोिशकाओं में दूसरा चरण। जब एक संक्रिमत मच्छर मानव को काटता है तो बीज(Sporozoites) मानव र� में प्रव कर यकृत में पहँचते हैं और शरीरमें प्रवेश पान30 िमनट के भीतर ही ये यकृत क� कोिशकाओं को � संक्रिमत कर देतेहैं। िफर ये यकृत में अलैंिगक जनन करने लगते हैं। य6 से 15 िदन चलता है। इस जनन से हजारों अंशाणु( Merozoites) बनते हैं जो अपनी मेहमान कोिशकाओं को तोड़ कर र -प्रवा में प्रवेश कर जातेहैं तथा लाल र� कोिशकाओं को संक्रिमत करना शु� कर देत
  • 3. मच्छर में स्पोरोगो वयस्क मच्छरसंक्रि नुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को भी ग्रहण कर लेताह अितसू�म, एक कािशक�य और संसाधनहीन मले�रया परजीवी का जीवन चक्र बह�त जिटल होताहै और द वाहकों मादा एनोिफलीज़ मच्छर और मनुष्य पर आिश्रत रहता है। परजीवी अपनी सुर�ा और िवका िलए वाहकों के5000 से ज्यादा जीन्स तथा िविश� प्रोटीन्स समेत अनेक संसाधनों का भर पूर करता है। मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती ह, जहाँ इसके जीवन चक् क� लैंिगक अवस्, िजसे स्पोरोगोनी कहते ह, सम्पन्न होतीहै। इस अवस्था में मच्छर के शरीर में बीजाणु िवकिसत होते हैं जो मनुष्य के शरीरमें पह�ँच कर मले�रया का कारक बनते ह जब मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर मले�रया से संक्रिमतमनुष्य का र�पान करत, तब र� के साथ मले�रया के नर और मादा जननाणु (gametocytes) भी उसक� आहार-निलका में प्रवेश कर जाते हैं। यहाँ नर और म जननाणु जुड़ कर जाइगोट बनाते है, जो िवकिसत होकर सिक्रय ऊकाइने (Ookinete) बनता है। यह ऊकाइनेट मध्य आहा-निलका क� िभि� में प्रवेश करता, जहाँ यह िवकिसत और िवभािजत होता है और ऊिसस्ट(oocysts) बनता है। इसमें हजारों बीजाण( sporozoites) रहते हैं।8-15 िदन क� स्पोरोगोिनक अवस्था के अन्तमें ऊिसस्ट टूट जाता है और असंख्य बीजाणु-निलका में आ जाते हैं। ये बीजाण चल कर मच्छर क� लार ग्रंिथ( salivary glands) में एकित्रत हो जाते हैं। अब यह मच्छर मनुष मले�रया फैलाने के िलए पूरी तरह तैयार है। जैसे ही यह मच्छर र�पान के िलए मनुष्य को काटता, लार ग्रंिथयों में एकित्रतबीजाणुभी मनुष्य केशरीर में छोड़ िदये जाते हैं। यह देखा गया है िक परजीवी दोनों एक दूसरे क� मदद करते हैं और मले�रयाफैलानेमें सिक्रय भागीदारी िनभाते मनष्य में शाइज़ोगोन(Schizogony in the Human) ु मले�रया परजीवी के जीवन चक्र का अगला भाग मनुष्य के शरीर में सम्पन्न होता है। जैसे हीब (Sporozoites) मनुष्य के शरीर में पह�ँचते, ये यकृत क� कोिशकाओं में िछप कर अपने िवकास को आगे बढ़ाते हैं। यकृत में अपना चक्र पूरा करने के बाद परजीवी अपनी अगली जीवन लीला लालर� कोिशकाओं पूरा करते हैं। जीवन चक्र के इसी भाग में मनुष्य को मले�रया के अनेक ल�ण और जिटलताओं का स करना पड़ता है।
  • 4. िप्रइरेथ्रोसाइिटक अव– यकृत में शाइज़ोगोनी(Pre-erythrocytic Phase - Schizogony in the Liver) जब मनुष्य को संक्रिमत मच्छर काटता है तो मनुष्य क� त्वचा में दजर्नों या सैंकड़ों बीजाणु प्रवेश कुछ बीजाणुओं को तो शरीर क� भ�ी कोिशकाएं ( Macrophages) खा जाती हैं। कुछ बीजाणु लिसका वािहकाओं में तो कुछ र-वािहकाओं में पहँचने में सफल हो जातेहैं। जो बीजाणु लिसका वािहकाओं � पह�ँचते है, पास के लिसकापवर् में जाकर एक्सोइरेथ्रोसाइिटक अ( Exoerythrocytic stages) में चिक्रत होने लगतेहैं। जो बीजाणु-वािहकाओं में पहँचते ह, वे मनुष्य क� सुर�ा सेना से बचते ह�ए कुछ ही � घंटों में सीधे यकृतमें पह�ँच जाते हैं। बीजाणु थ्रोम्बो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी( TRAP) प�रवार और ऐिक्ट-सायोिसन मोटर क� मदद से प�रवहन करते हैं। यकृत में पह�ँच कर ये यकृत क� कोिशकाओं क पेरसाइटोफोरस वेक्युओल में िवभािजत और िवकास करतेहैं। यहाँ हर बीजाणु बढ़ कर शाइज़ोन्ट बनत, े िजसमें10000-30000 अंशाणु ( Merozoites) होते हैं। यकृत में परजीवी के िवकासमें सकर्मस्पोरो नामक प्रोटीन बह�त मदद करता, जो परजीवी स्वयं बनाता है। िप्रइरेथ्रोसाइिटक अ5-16 िदन चलती है, फैिल्सपैरम में औसत5-6 िदन, वाइवेक्स मे8 िदन, ओवेल में8 िदन, मले�रये में13 िदन और नौलेसी में8-9 चलती है। यह परजीवी क� शांत अवस्था ह, इसमें पोषक मनुष्य को मले�रया का कोई ल�ण य िवकृित नहीं होती ह, क्योंिक बीजाणु यकृत क� थोड़ी कोिशकाओं पर ही आक्रमण करते हैं। यह अवस ही चक्र पूरा करती, जबिक अगली इरेथ्रोसाइिटक अवस्था -बार पुनरचिक्रत होतीहै। यकृत कोिशका में पनपने वाले अंशाणु पोषक कोिशका द्वारा ही बनाई मीरोज़ोम नामक एक कुिटया में िवय� (Isolated) रहते है, और यकृत में िस्थत भ�ीकुफर कोिशकाओं के प्रकोप से सुरि�त रहते ु अंततः अंशाणु यकृत कोिशका से िनकल कर र�-प्रवाहमें िवलय हो जाते हैं और घातक तथा स महत्वपूणर् इरेथ्रोसाइिटक अवस्थाक� शु�वात करते वाइवेक्स और ओवेल मले�रया मेंकुछ बीजाणु यकृतमें महीनों और वष� तकसुषु� पड़े रहते हैं। इन्हों (Hypnozoites) कहते है, और ये अव्य� अविध(जो कुछ स�ाह से कुछ महीने हो सकती है) के बाद िवकिसत होकर शाइज़ोन्ट बनते हैं। येसु�ाणु हीसंक्रमण के कई महीने बाद ह�ए आवत� मले�रया का क बनते हैं। इरेथ्रोसाइिटक शाइगोन– लालर� कोिशकाओ ं में होने वाली मुख्य और केन्द अवस्थ (Erythrocytic Schizogony - Centre Stage in Red Cells) मले�रया परजीवी के अलैंिगक जीवन चक्र क� मुख्य और केन्द्रीय अवस्था लालर�कोिशकाओ होती है। लालर� कोिशकाओं में परजीवी के िवकास का च एक िनि�त अविध में बा-बार पुनरचिक्र
  • 5. होता है और चक्र केअंतमें सैंकड़ों नन्हेअंशाणु उत्पन्न होते हैं जो नई लालकोिशकाओं पर आ हैं।
  • 6. यकृत से िनकल कर अंशाणुओं को लालर� कोिशकाओं को पहचान कर उनसे िचपकने और िफर उनमें प्रवेश करनेमें एक िमनट से भी कम समय लगता है। इससे परजीवी क� सतह पर लगा एंटीजन पो (मनुष्) के सुर�ाकिमर्यों क� नजर से बच िनकलनेमें सफल हो जाता है। अंशाणुओं के लालर� कािशका प्रवेश हेतु दोनों क� सतह पर लगे लाइगे न्ड्स के पारस्प�रक आणिवक संवाद भी मदद करता है। वाइ डफ� बाइिन्डं-लाइक प्रोटीन और रेिटकुलोसाइट होमोलोजी प्रोटीन क� मदद से िसफर् डफ� ब्ल पोज़ीिटव लाल कोिशकाओं पर ही आक्रमण करतेहै ध्यान रहे ि आक्रामक और घातकफैलिसपैरममें चार तरह के डफ� बाइिन-लाइक प्रोटी( DBLEBP) जीन्स होते ह, जबिक वाइवेक्स में एक ही डफ� बाइिन्-लाइक प्रोटी( DBL-EBP) जीन होता है। इसिलए फैलिसपैरम कई तरह के लाल र� कोिशकाओं पर आक्रमण कर सकताहै अंशाणु के िसरे पर बने िविश� उपांग िजन्हें माइक्रो, रोपट्राइन्स और घने दा( Micronemes, Rhoptries, and Dense granules) कहते है, अंशाणु को लालर� कोिशकाओं से जुड़ने और घुसने क� प्रिक्रया में बह�त सहायक होते हैं।अंशाणु और लाल कोिशका का प्रारंिभक सम्पकर् लाल कोिश को एक लहर क� भांित तेजी से िवकृत करता है, इससे दोनों का िस्थरजुड़ाव स्थल बनता है। इसके ब अंशाणु एिक्ट-मायोिसन मोटर, थ्रोम्बोस्पो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी( TRAP) प�रवार और ऐल्डोलेज क� मदद से लाल कोिशका क� ि-िभि� ( Bilayer) में घुसता है और पेरासाइटोफोरस वेक्युओ बनाता है, िजससे अंशाणु का लाल कोिशका के कोिशका द्रव( Cytoplasm) से कोई सम्पकर् नहीं रहता, और वह िनि�ंत होकर अपना जीवन चक्र आगे बढ़ाताहै। इस अवस्था में परजीवी लालकोिशका मे अंगूठी जैसा िदखाई देता है, इसे मुिद्रकाणु कहतेहै िवकासशील परजीवी का प्रमुख भोजन हीमोग्लोिबन होता है। इसिलए इसे भोजन पुिट( Food vacuole) में ले जाकर अपघिटत िकया जाता ह, िजससे अमाइनो एिसड्स िनकलते है जो प्रोटीन िनमार्ण में काम हैं। हीम पोलीमरेज एंजाइम बचे ह�ए टॉिक्सक हीम से हीमोज़ोइ (Malaria pigment) बनाते हैं। परजीवी पीएलडीएच और प्लाज़मोिडयम ऐल्डोल्ज़ एंजाइम्स क� मदद से अवायवीय ग्लाइकोलाइिसस द्वार उत्पादन करता है। जैसे जैसे परजीवी िवकिसत और िवभािजत होता ह, लालकोिशका क� पारगम्यता और संरचना में बदलाव आता है। यह बदलाव चयापचय अपिश� को बाहर करन, बाहर से उपयोगी पदाथ� का अवशोषण करने में और िवद्-रासायिनक संतुलन बनाये रखने मे सहायता करता है। साथ ही हीमोग्लोिबन का अन्तग्रर(Ingestion), पाचन और िवषहरण ( Detoxification) अितपारगम्य लालकोिशका के रअपघटन (Hemolysis) के रोकता है। और परासरणीय िस्थरता(Osmotic Stability) बनाये रहता है। परजीवी का इरेथ्रोसाइिटक चक्र नौलेसी मे24 घंटे मे, फैलिसपैरम, वाइवेक्स तथा ओवेल में ह48 घंटे में और मले�रये में ह72 घंटे में दोहराया जाता है। हर चक्र में अंशाणुवेकुओल में िवकिसत तथा िवभ
  • 7. होते हैं और मुिद्रक, ट्रोफोजोइट तथा शाइज़ोन्ट अवस्था से गुजरते 8-32 (औसत 10) नये अंशाणु बनते हैं। चक्र के अंत में लालकोिशका टूट जाती है औरनन्हेंअंशाणु बाहर िनकल िफर से लालकोिशका को िशकार बनाती है। इस तरह अंशाणु बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इनक� संख्य 1013 तक पह�ँच जाती है। कुछ अलैंिगक परजीवी शाइज़ोगोनी चक्र में न जाकर लैंिगक अवस्थाज(Gametocytes) में िवभेिदत हो जाते हैं। ये नर और मादा जननाणु लालकोिशका से बाहर र� में रहतेहैं और पोषक के शरीर में कोई या िवकृित उत्पन्न नहीं करते हैं। ये मादा ऐनोिफलीज़ मच्छर के काटने पर उसके शरीर में चले जाते परजीवी के लैंिगक िवकास को आगे बढ़ाते हैं। इस तरह ये मले�रया केफैलनेमें मदद करते हैं। वाइवेक् जननाणु बह�त जल्दी बन जाते ह, जबिक फैलिसपैरम में अलैंिगक चक्र के भी काफ� देर बाद बनते