2. आयोजन NCERT के CIET ने दिल्ली में 18 मार्च,2010 से 20 मार्च,2010 तक 15वें राष्ट्रीय बाल शैक्षिक श्रव्य एवं दृश्य महोत्सव का आयोजन किया। इसमें CIET के अलावा विभिन्न राज्यों के राज्य शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थानों, स्कूलों, संस्थाओं तथा निजी निर्माताओं ने अपने वीडियो/ऑडियो का प्रदर्शन किया। प्रदर्शित वीडियो/ऑडियो के बीच एक प्रतियोगिता भी थी। इन्हें विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया।
3. आयोजन... महोत्सव का आयोजन सीआईईटी के चाचा नेहरू भवन में किया गया था। दो हाल एवं एक कमरे में स्क्रीनिंग की व्यवस्था की गई थी। इन तीनों जगहों पर एक साथ पहले तथा दूसरे दिन चार सत्रों में तथा तीसरे दिन दो सत्रों में स्क्रीनिंग की गई। तीनों जगह प्लाजमा स्क्रीन लगाए गए थे। महोत्सव में पांच श्रेणियों प्रीप्रायमरी,प्रायमरी,अपरप्रायमरी,सेकंडरी एंड सीनियर सेकंडरी एवं टीचर्स में कुल 31 ऑडियो सुनवाए गए। जबकि इन्हीं पांच श्रेणियों में कुल 83 वीडियो दिखाए गए।
4. आयोजन... हर सत्र की एक जाने माने-मीडिया विशेषज्ञ ने अध्यक्षता की। इनमें डॉ.प्रभुदयाल खट्टर,सुश्री शहीना खान,सुश्री रुक्मणी वेमराजू, डॉ.किरण बंसल, डॉ.अंजू मेहरोत्रा,प्रो. वीपी गुप्ता, प्रो.जयचंदीराम, डॉ.सावित्री सिंह, डॉ.अख्तर हुसैन, प्रो.चंद्रभूषण, प्रो. शम्भूनाथ सिंह, डॉ.माधवी कुमार, प्रो.एमजी चतुर्वेदी. डॉ.आरके आर्या. डॉ.एसके ग्रोवर आदि शामिल थे। सत्र के बाद उपस्थित दर्शकों से उनकी संक्षिप्त टिप्पणियां आमंत्रित की जाती थीं।
5. मैं आयोजन में .... फाउंडेशन की ओर से मैं इस महोत्सव में एक दर्शक और श्रोता की हैसियत से शामिल हुआ। महोत्सव के इन तीन दिनों में मैंने 29 वीडियो देखे और 6 ऑडियो सुने। टिप्पणी सत्र में भाग लिया तथा अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करवाई।
6. मुख्य अतिथि ने कहा... महोत्सव का उद्घाटन किया जाने-माने सिने अभिनेता डॉ.मोहन अगाशे एवं प्रो0 विजया मुल्ये ने। मोहन अगाशे ने अपने संबोधन में बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं। जैसे- हम पाठ्यपुस्तकें साल भर में नहीं पढ़ पाते, लेकिन उपन्यास दिन-भर या रात-भर बैठकर पढ़ डालते हैं। क्यों? उपन्यास में इमोशन होते हैं, जो हमारी जिंदगी से आते हैं। पाठ्यपुस्तकों में इमोशन नहीं केवल जानकारी होती है। केवल जानकारी या ज्ञान होने से हम सीख नहीं सकते। सीखने के लिए रुचि होना जरूरी है। सीखने के लिए दिमाग का भी इस्तेमाल भी करना पड़ता है। रुचि और दिमाग का इस्तेमाल करने पर ही हम सीख सकते हैं। परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करते जाना भी अच्छी बात नहीं है। क्योंकि इससे आगे का रास्ता बिना सोचे ही तय होता चला जाता है। लेकिन जैसे ही परीक्षा में कम अंक आते हैं हम तुरंत दूसरे विकल्पों के बारे में सोचने लगते हैं। यानी दिमाग का इस्तेमाल करने लगते हैं।
7. मुख्य अतिथि ने कहा... लैंग्वेज आफ इमेज एंड साउंड में काम करने के लिए लैंग्वेज आफ वर्ड का आना या उसके बारे में समझना बहुत जरूरी है। लैंग्वेज में हम जो शब्द इस्तेमाल करते हैं उसका अर्थ समझते हैं। हम वाक्य बनाते हैं तो उसका व्याकरण समझते हैं। हमें दिमाग लगाना पड़ता है। पढ़ने वाले को भी यह कसरत करनी पड़ती है। लेकिन लैंग्वेज ऑफ इमेज एंड साउंड को प्रकृति की दी गईं आंखों से देखते हैं और कानों से सुनते हैं। दिमाग का इस्तेमाल तो करते ही नहीं। इसलिए उसमें कोई बात कहना और अधिक चुनौतीपूर्ण है। वह आप तभी कर सकते हैं जब आप लैंग्वेज आफ वर्ड की समझ रखते हों। आजकल इस माध्यम में भी ऐसे लोग आ गए हैं,जो उसे समझते नहीं हैं। जैसे छोटे बच्चे हाथ में पेन या पेंसिल लेकर कागज पर कुछ भी गूद देते हैं। फिर वे उत्साह से बड़ों को दिखाते हैं कि उन्होंने भी कुछ लिखा है। हम भी उनसे पीछा छ़़ुड़ाने के लिए कह देते हैं, हां बहुत अच्छा है। आज इस मीडियम में भी लोग छोटे बच्चे की तरह कुछ भी गूद कर यानी फिल्माकर ले आते हैं जबकि वह कुछ नहीं होता है।
8. लेटर(वीडियो,30.00 मिनट,मलयालम,सबटाइटिल अंग्रेजी में,प्रायमरी,गवर्नमेंट हायर सेंकडरी स्कूल,किडंगरा,केरल) केरल के एक गांव का बच्चा शहर में रहने वाले अपने एक दोस्त को तीन चिट्ठियां लिखता है। इन चिट्ठियों में वह अपने,स्कूल,गांव और गांव के जनजीवन के बारे में बताता है। बच्चा हमें दिखाई नहीं देता केवल उसकी आवाज सुनाई देती है और उसके विवरण के साथ-साथ वीडियो में विजुअल्स आते रहते हैं। पहली चिट्ठी में वह बताता है कैसे उसके स्कूल में पढ़ाई होती है,गांव के लोग अपनी जीविका के लिए क्या करते हैं। वह कहां खेलता है। दूसरी चिट्ठी वह अपने स्कूल की प्रयोगशाला में जब प्रयोग कर रहा होता है तो दो कैमीकल को आपस में मिलाने से जो प्रतिक्रिया होती है उसे वह अमरीका में ट्रेडसेंटर में हुए धमाके से जोड़कर देखता है। तीसरी चिट्टी में बताता है कि वह अखबारों दंगे-फसाद,भूकम्प,आतंकवाद आदि की खबरें पढ़ता है और क्या महसूस करता है। मुझे वीडियो बहुत अच्छा लगा। खासकर इसलिए भी कि उसे एक स्कूल ने बनाया था। मुझे लगा कि वीडियो का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा ऐसा है जो लोगों को बिना बताए फिल्माया गया है। इस कारण से उसमें बनावटीपन नहीं आया है। फोटोग्राफी भी सुंदर है। वीडियो बहुत मार्मिक ढंग से एक किशोर होते बच्चे की मनोभावनाओं और नजरिए को सामने रखता है। हां यह सवाल हो सकता है कि यह प्रायमरी के बच्चों के लिए है या नहीं। यह भी उल्लेखनीय है कि वीडियो देख रहे बहुत सारे कई लोगों को यह एक बेकार और बकवास वीडियो लगा।
9. नीलाकुरंजीकल(वीडियो,21 मिनट,अपर प्रायमरी,मलयालम, अंग्रेजी सब टाइटिल, बीआरसी,मुनेर,केरल) केरल के पहाड़ी इलाके में रहने वाले एक ऐसे बच्चे की कहानी जिसे घर के दबाव के चलते अपनी पढ़ाई छोड़कर काम करना पड़ता है। वह वापस अपनी पढ़ाई शुरू करता है। इसके लिए उसकी बहन,कक्षा के अन्य सहपाठी और शिक्षक उसे तैयार करते हैं। बहुत सहज ढंग से सारी कहानी कही गई है। वीडियो की खासयित यह है कि 21 मिनट के वीडियो में बमुश्किल पांच मिनट के संवाद हैं। बाकी पूरा वीडियो बच्चों के अभिनय,भावअभिव्यक्ति और कैमरे के माध्यम से ही सारी बात कहता है। खासयित यह भी है कि यह एक सच्ची कहानी है। और उसी स्कूल के शिक्षक ने अपने प्रयासों से इसे बनाया है, जिसमें यह बच्चा पढ़ता था। कहानी,स्क्रिप्ट और निर्देशन शिक्षक का ही है। खास बात यह भी है कि शिक्षक का यह पहला ही वीडियो है। वीडियो में एक ऐसा सीन आता है जब बच्चे का पिता उसे पीटने के लिए आगे आता है लेकिन वह हम स्क्रीन पर नहीं देख पाते हैं। निर्देशक ने लगभग एक मिनट के उस सीन के दौरान स्क्रीन पर ब्लैकआउट कर दिया है और केवल बैकग्रांउड में साउंड इफैक्टस के माध्यम से पूरा सीन उभारा है। वीडियो में ऐसे कई और सीन हैं जो निर्देशक की कल्पनाशीलता को जाहिर करते हैं। मुझे इस महोत्सव में जितनी फिल्में देखने का मौका मिला, उनमें निसंदेह यह सबसे अच्छा वीडियो है।
10. डॉवरी (आडियो,2.00 मिनट, अंग्रेजी,छात्र,चिन्ह इंडिया) एक छोटा बच्चा गांव जाता है। वहां एक विवाह समारोह में शामिल होता है । दूल्हे के पिता द्वारा दहेज मांगने के कारण विवाह टूट जाता है। बच्चा अपने नजरिए से इस पर सवाल उठाता है और पूछता है कि ऐसा क्यों होता है। प्रभावी ऑडियो है। बच्चों को अपने आसपास घट रही सामाजिक घटनाओं को ध्यान से देखने के लिए प्रेरित करता है।
11. अद्भुत विद्यालय (वीडियो,10 मिनट,हिन्दी,छात्र एसआईईटी लखनऊ) सीआईईटी ने अलग-अलग राज्यों में ऐसी वर्कशाप आयोजित की हैं,जिनमें बच्चों को वीडियो बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। इन वर्कशाप में वीडियो बनाने के हर पहलू को शामिल किया गया है। वर्कशाप के अंत में बच्चों को एक वीडियो भी बनाना होता है। यह वीडियो लखनऊ की एक ऐसी ही वर्कशाप में बना है। और हर दृष्टि से बहुत अच्छा है। बच्चों ने अपने स्कूल के चार शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके को रोचक ढ़ंग से प्रस्तुत किया है,जिसमें उनकी समीक्षा भी है, व्यंग्य भी है और संदेश भी। अच्छी बात यह भी है कि जिन चार शिक्षकों को बच्चों ने चुना है उनमें से एक शिक्षक ऐसे भी हैं जिनका पढ़ाने का तरीका बच्चों को पसंद है। बच्चों का अभिनय स्वाभाविक है और संवाद अदायगी भी। कहानी,स्क्रिप्ट,निर्देशन,मंच सब कुछ बच्चों का है और अच्छा। सूत्रधार की भूमिका में भी एक छात्रा है और उसने अपना काम बहुत अच्छे तरीके से किया है। लखनऊ एसआईईटी की अन्य प्रस्तुतियों के मुकाबले यह लाख गुना बेहतर थी।
12. कुछ फुटकर बातें..... महोत्सव में एनसीईआरटी,सीआइईटी तथा राज्यों से आए प्रतिनिधि,वे संस्थाएं जिनके वीडियो या ऑडियो प्रदर्शन के लिए आए थे या फिर निजी निर्माता ही नजर आए। संभवत: मैं एक मात्र ऐसा दर्शक था, जो शुद्ध रूप से केवल वीडियो देखने या ऑडियो सुनने के लिए मौजूद था। महोत्सव में स्क्रीनिंग के अलावा अन्य कोई कार्यक्रम जैसे कि किसी विषय विशेष पर बातचीत आदि आयोजित नहीं की गई थी। महोत्सव की निदेशक प्रो.वसुधा कामथ का कहना था कि समय की कमी के कारण सेमीनार आदि नहीं रखे गए हैं।
13. फुटकर..... जिन सत्रों में मैं मौजूद था वहां मेरी टिप्पणी को बहुत ध्यान से सुना जा रहा था। दो-तीन प्रोड्यूसर ने मुझसे गुजारिश की कि जब उनके वीडियो या ऑडियो का प्रदर्शन हो तो मैं वहां जरूर रहूं। उन्हें मेरी टिप्पणी सार्थक लग रही थीं। इन सत्रों के अध्यक्षों ने भी मेरा और मेरी टिप्पणी का नोटिस लिया। उन्होंने बाद में यह भी जानना चाहा कि मैं कहां से हूं। निजी निर्माताओं में चिन्ह इंडिया और लियोआर्टस ने सबसे ज्यादा एंट्री भेजी थीं। लेकिन मजे की बात यह कि प्रदर्शन के समय उनका कोई भी प्रतिनिधि वहां मौजूद नहीं था। हां,पुरस्कार समारोह में वे मौजूद थे। उन्हें पुरस्कार मिले भी ढेर सारे।
14. फुटकर ..... मैंने महसूस किया कि सीआईईटी या राज्य संस्थानों द्वारा बनाए जा रहे वीडियो आदि में एनसीएफ 2005 की सोच कहीं नजर नहीं आती। जबकि वह एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में साफ झलकती है। यह महोत्सव यह समझने का एक अच्छा मौका था कि सीआईईटी और उनकी राज्य संस्थाएं किस तरह का काम कर रहीं हैं। सच कहूं तो मुझे उनके काम से निराशा ही हुई। इस तरह के काम के उनके पास अपने कारण हैं।
15. ध न्य वा द फोटो :नीलाकुरंजीकल ( महोत्सव में दिखाई गई मलयालम फिल्म से साभार)
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