2. मूलय है कया?
जीवन मूलयो पर चलकर ही िकसी भी घर, कं पनी, समाज एवं देश
के चिरत का िनमारण होता है. मूलय यानी जीवन के रासते को तय
करने के िलए कु छ मूलभूत आधार.
सतय साईबाबा
3. जीवन मूलय
जो विक अपने जीवन मूलयो पर अिडग रहकर चलता है, वह
कभी भी भय मे नही जीता. उसका चेहरा हमेशा आतमिवशास से
दमकता रहता है. वह िनभरय होकर अपनी बात कहता है और हर
पल सुरका का अनुभव करता है.
जीवन मूलय हमारे िलए एक सुरका कवच बन जाते है. इनसे हमे
हर पिरिसथित का सामना करने की शिक िमलती है. हमे हर कोई
सममान की दृिष से देखता है
िजस चिरतवान समाज-देश की कलपना हम करते है, िजसकी
इचछा हमारे मन मे है और जो हम कु छ हटकर अलग सा करना
चाहते है, उसकी शुरआत सवयं से ही होगी. सव-पिरवतरन से ही जग
पिरवतरन संभव है.
4. बचो मे जीवन मूलय
आज बचो का िवकास िजस रप मे होगा। वही हमे कल के आने
वाले अपने घर, पिरवार, समाज और देश के रप मे िदखेगा।
आज यिद ये लडाई-झगडे की ओर पवृत हो गए तो आगे जाकर
हमे िहसा ही देखने को िमलेगी।
बचे देश का भिवषय है। इनके पौधे रपी जडो मे यिद आपने
सही ढंग से खाद-पानी डालकर जीवन मूलय इनहे सीचा तो
समृिद का वृक बनकर पिरवार और देश का नाम रोशन करे ग।
े
5. सहज सुलभ वातावरण
आज हमारे बचो को सुिवधाएं सहजता से पाप है जो हम सबके
जमाने मे दुलभ था । मसलन मोबाइल , टी वी , कं पयूटर और भी न
र
जाने कया कया । बचो की रिचयाँ उसके पिरवार, पिरसर, और
परं पराओ के अनुसार बनती है । इसिलए घर का वातावरण शुद
होना चािहए ।
6. िजजासा
बचो को गुमराह न करे , उनहे सही समय पर सही िशका दे कर
उनके िजजासा को शांत करना चािहए तािक उनहे अपने कोमल
मन के उभरते हये पशो का सही उतर िमल जाए और वे यहाँ वहाँ
से अधकचरा जान न बटोरे ।
आपस मे भी अनगरल पलाप से बचे िजसका सीधा असर बचे पर
होता है । बचो से चीख िचलला कर न बोले अनयथा उनमे भी इसी
तरह बात करने की पवृित आती है ।
7. पेरणा
बचे के पित िनषावान रहे और उसको भी अपने पित िनषावान
रहने की पेरणा दे तािक वह समाज मे मजबूती से खडा रह सके
उनमे आतमिवशास िक कमी न होने पाये ।
8. आचरण
घर मे सवयम का आचरण भी संयिमत होन चािहए िजससे बचो मे
भी संयम से रहने की पेरणा िमलती रहे
मसलन आप टीवी देखने के शौकीन है और बचे का सोने का
समय है तो आप उस समय टीवी बंद कर दे , बचे के पढने के
समय टीवी बंद रखे । इसी तरह अनय बातो का भी धयान रखे
तािक बचे के कोमल मन पर गलत असर न होने पाये ।
9. बचे की मानिसकता
जब बचा बाहरी संसार मे अपने िलए एक जगह ढू ंढने की कोिशश
के तहत घर की चारदीवारी के बाहर कदम रखना चाहता है तो यह
माता-िपता और बचे के िलए बहत ही महतवपूणर िसथित होती है।
माता-िपता को लगता है िक बचा उनके िनयंतण से बाहर जा रहा
है और उसके पास उनके िलए समय नही है।
10. माता पथम िशिकका होती है। वे बचो के चिरत िनमारण मे सहायक है।
घर से सीखकर बचा समाज मे जाता है ,और वहाँ वही ववहार
करता है जो उसने अपने घर पर देखा होता है और सीखा होता है ,
मसलन कोई माँ अपने पित से झूठ बोल कर बचे की गलितयो पर
पदार डालती है तो वह अनजाने ही बचे के अंदर झूठ बोलने का बीज
बो रही होती है
11. मां का योगदान
हनुमान जी के चिरत िनमारण मे मां अंजना का पमुख योगदान
रहा।
माता पावरती ने गणेश जी को अपनी गोद मे बैठाकर शवण
कराया। पिरणाम सवरप माता-िपता की ही पिरकमा कर गणेश जी
35 करोड देवी-देवताओ मे पथम पूिजत हो गए।
इसके िवपरीत देवराज इं द अपने बेटे जयंत को गोद मे िबठाकर
मिदरापान िकया। अपसराओ का नृतय देखा। पिरणाम यह हआ िक
उनहे िनदा का पात बनना पडा।
12. आचरण
याद रिखए बचे उस कोमल पौधे की तरह है िजसे सही देखभाल न
िमलने पर वह सूख जाता है खराब हो जाता है । बचो को सही
िशका घर से िमले इस बात को धयान मे रखते हए अपने आचरण
भी संयिमत रखना माता िपता का ही दाियतव है ।
13. समसया का हल
है।
•बचा माता-िपता पर उसे न समझने का दोष लगाता है।
•इस पकार उनके दरमयान संबंधो मे समसया उतपन हो जाती है।दोनो
पको मे खटास पैदा हो जाती है। इसका एकमात हल है बहस के िबना
बातचीत।
•बातचीत का मतलब है एक-दूसरे को समझने का पयास करना।
दूसरी ओर बहस का मतलब है नकारातमक ऊजार का लेन-देन।
•नकारातमक ऊजार यानी बहस संबधो मे पैदा हई िकसी भी समसया
ं
का हल नही िनकाल सकती।
सेहतमंद बातचीत ही एकमात हल
14. माता-िपता की भूिमका
माता-िपता की भूिमका एक मागरदशरक की होती है तािक बचे को
अनुशासन मे रखा जा सके और उसका मागरदशरन िकया जाए।
उसकी कौसिलग की जाए न िक उस पर िनयंतण रखा जाए। यिद
माता-िपता सजा देकर बचे को िनयंतण मे रखने की कोिशश करते
है तो इसके पिरणामसवरप बचा िवदोही हो सकता है
15. माता-िपता की भूिमका
बचो पर बात बात पर कोध न करे , उन पर िबना वजह
दोषारोपण न करे , दूसरे बचो से उनकी बराबरी न करे अनयथा
उनमे हीन भावना उतपन हो जाएगी । ऐसे बचे आकामक रख
अिखतयार कर लेते है और समाज के िलए मुसीबत बन जाते है ।
16. समाधान के िलये
दोनो पक अपना-अपना दृिषकोण खुल कर एक-दूसरे के सामने रख सकते है
िजससे िक वे एक-दूसरे की सोच को समझ सके । माता-िपता को समझ लेना
चािहए िक बचो को अपने दोसतो-सहपािठयो से अचछी समझ िमल रही है,
कही वे इतने नासमझ तो नही हो गए िजतने िक माता-िपता उसकी उम मे
दुशमन नही है बिलक शुभिचतक है।
17. िवशास
माता-िपता को बचो पर िवशास जताना चािहए और साथ ही िबना शतर
पयार का इजहार करना चािहए तािक बचा खुलकर बातचीत मे िहससा
ले सके । एक-दूसरे को न समझ पाने से िरशतो मे तनाव पैदा होता है।
अचछे िरशतो के िलए माता-िपता को बचे मे िवशास होना चािहए।
उनका दृिषकोण खुला हो और वे िबना िकसी शतर बचे से पेम करते हो।
एक बार माता-िपता बचो के पित इन भावो को दशारएं तो बचा अपने
आप अिधक िजममेदार और माता-िपता के पित जवाबदेह हो जाता है।
18. अिधकार जताने से, गुससा करने से या शक करने
से नकारातमक ऊजार पैदा होती है इसिलए हमे ऐसी
समसया का हल ढू ंढते समय अपने िदमाग पर पूरा
जोर देना चािहए।
19. सकारातमक ऊजार
माता-िपता को बचे दारा की गई कोिशशो मे िवशास होना चािहए।
उनहे बचो को सही मागरदशरन देना चािहए। वे खुलेपन और िवशास
वाली सकारातमक ऊजार के साथ पतयेक चरण पर बचे को सलाह-मशिवरा
दे। इससे बचा किठन पिरिसथितयो का सामना करने मे सकम हो सके गा।
उसके विकतव मे आतमिवशास बढेगा।
20. िनषकषर
माता-िपता और बचो का संबध अनािद काल से है। यह एक ऐसी
ं
कला है िजसमे उनहे टेिनग नही िमली।
बचो का मां से संवाद ही उसके जीवन की नीव रखता है।
माता-िपता के बचो को कम समय देने के चलते बचो मे कई तरह
की मनोवैजािनक वािधयां पैदा हो रही है।
िनमहानस की िरपोटर मे कहा अब नयूिकलयर पिरवारो का चलन है,
इसिलए दंपितयो को सारे तनाव खुद ही झेलने पड़ते है।
Contin……….
21. िनषकषर
िनमहांस के शोधकतारओ ने माना िक संयुक पिरवारो मे साझा
चूलहा होने से खचे बंट जाते थे। चारो ओर के तनाव और शारीिरकमानिसक थकान से माता-िपता इस लायक नही बचते िक अपने ही
बचो पर धयान दे सके ।
माता-िपता को खुद ही कोई रासता िनकालना होगा। खुद को शांत
रखने के तरीके खोजने होगे। जीवन मे अनुशासन लाना होगा और
अपनी पाथिमकताएं िनयत कर उन पर काम करना होगा। जीवन
शैली मे बदलाव करना होगा।