1. आवरण कथा
आती है, ब्लड िेशर िढ़ जाता है, िह न्यज रूम में ज्यािा बचकलाने लगता है. और
ू
बफर टीआरपी िढ़ाने के नए-नए तरीके ईजाि करता है.'
सवाल सरकारी थतर पर भी उठ रहे हैं. 2008 में एक थथायी संसिीय सबमबत
ने भी टीआरपी की व्यिथथा को िोषपूणर् िताते हुए एक रपट संसि में िी थी. इस
सबमबत को िी गई जानकारी में सूचना और िसारण मंिालय ने भी माना था बक
एजेंबसयों िारा तैयार की जा रही टीआरपी में कई तरह की कबमयां हैं. िसार भारती
के मुताबिक टैम के आंकड़ों की बिकिसनीयता को िभाबित करने िाले कई
कारक हैं. इसमें साप्ताबहक आधार पर आंकडे़ जारी करना, घरों की चयन पधबत
में पारिबशर्ता की कमी और मीटर िाले घरों के नामों की गोपनीयता
शाबमल हैं. इसके अलािा थियं टैम िारा आंकड़ों से छेड़खानी की
संभािना से भी इनकार नहीं बकया जा सकता है, तयोंबक इन आंकड़ों
का बकसी िाहरी संथथा िारा ऑबडट नहीं कराया जाता. एक चैनल
के िमुख िताते हैं बक कुछ महीने पहले उनके चैनल की जो पहली
रेबटंग आई उस पर ििंधन को संिह हुआ. इसके िाि जि िोिारा
े
रेबटंग मंगिाई गई तो पहले और िाि के आंकड़ों में काफी फकर् था. उधर, भारतीय
िूरसंचार बिबनयामक िाबधकरण यानी ट्राई ने भी इस व्यिथथा को गलत िताया
है. अभी हाल ही में बफतकी के पूिर् महासबचि और पबकचम िंगाल के मौजूिा
बित्त मंिी अबमत बमिा की अध्यक्षता में भी सूचना और िसारण मंिालय िारा
गबठत टीआरपी सबमबत की बरपोटट आई है. इसमें भी िताया गया है बक टीआरपी
टीआरपी की शुरुआत कवज्ापन
एजेंकसयों ने की है इसकलए यह
व्यवस्था उनके कहतों की रक्षा करेगी
एनके ससंह, महासरिव, ब्रॉडकास्ट गिरावट खबरिया चैनलों पि खबि की गुणवत्ता
एडीटसि् एसोरसएशन रगिने का आिोप बाि-बाि लगता िहा है
की पूरी व्यिथथा में कई खाबमयां हैं. इसके िािजूि टीिी और मनोरंजन उयोग नहीं हैं.’ यह िात सोनी ने ति कही थी जि अबमत बमिा सबमबत की टीआरपी
इन्हीं की रेबटंग के आधार पर अपने व्यािसाबयक फैसले लेता है. बरपोटट नहीं आई थी. इस बरपोटट को आए अि सात महीने होने को हैं, लेबकन अि
जानकार मानते हैं बक इस उयोग की िुबनयाि ही ऐसी व्यिथथा पर बटकी हुई तक सबमबत की बसफाबरशों पर कोई उकलेखनीय िगबत नहीं हुई है.
है बजसमें जििर्थत खाबमयां हैं. अि इन खाबमयों को एक-एक करके समझने की हालांबक बसधाथर् िािा करते हैं बक िे 8,150 मीटरों के जबरए तकरीिन
कोबशश करते हैं. पहली और सिसे िड़ी खामी तो यही है बक 121 करोड़ की 36,000 लोगों की पसंि-नापसंि को इकट्ठा करते हैं. िे कहते हैं, 'िुबनया में इतना
आिािी िाले इस िेश में टीिी िशर्कों की पसंि-नापसंि तय करने का काम टैम िड़ा सैंपल बकसी िेश में टीआरपी के बलए इथतेमाल नहीं होता. बजस तरह से
165 शहरों में लगे महज 8,150 मीटरों के जबरए कर रही है. सहारा समय बिहार- शरीर के बकसी भी बहथसे से एक िूि खून लेने से यह पता चल जाता है बक ब्लड
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झारखंड के िमुख ििुध राज कहते हैं, ‘टीआरपी व्यिथथा की सिसे िड़ी खामी ग्रुप तया है, उसी तरह इतने मीटरों के सहारे टीिी िशर्कों की पसंि-नापसंि का
यही है. आबखर सैंपल के इतने छोटे आकार के िूते कैसे सभी टेलीबिजन िशर्कों अंिाजा भी लगाया जा सकता है.’
की पसंि-नापसंि को तय बकया जा सकता है.’ लेबकन आलोचकों के इस पर अपने तकर् हैं. पहला तो यह बक टीआरपी की
ििुध राज जो सिाल उठा रहे हैं िह सिाल अतसर उठता रहता है. कुछ समय ब्लड ग्रुप से तुलना करना ही गलत है. तयोंबक इस आधार पर तो बसफर् कुछ
पहले केंद्रीय सूचना और िसारण मंिी अंबिका सोनी ने भी एक अखिार को बिए हजार लोगों की राय लेकर सरकार भी िनाई जा सकती है, बफर चुनाि का तया
साक्षात्कार में कहा था, ‘टेलीबिजन कायर्िमों की रेबटंग तय करने के बलए न्यनतम
ू काम है? जाबहर है बक बसधाथर् इस तरह के तकोों का सहारा अपनी एजेंसी की
जरूरी मीटर तो लगने ही चाबहए. 8,000 मीटर टीआरपी तय करने के बलए पयार्प्त खाबमयों पर पिार् डालने के बलए कर रहे हैं. बसधाथर् तो यह भी कहते हैं बक अगर
60 करोड़ 10.3 करोड़ 8,150
लोग देश भर में देखते हैं टेलीववजन घरों में केबल और डीटीएच के जवरए देखा जा मीटरों के जवरए तय कर दी जा रही है टीआरपी,
रहा है टीवी गांवों में मीटर नहीं
42 आवरण कथा तहलका 15 अक्टूबर 2011